सरकारें कम आय वाले समुदायों में कुपोषण को दूर करने के लिए महंगे खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमों पर निर्भर हैं, हालाँकि उनका प्रभाव स्पष्ट नहीं है क्योंकि खाद्य खरीद निर्णयों के सम्बन्ध में केवल स्व-रिपोर्ट किए गए डेटा ही उपलब्ध हैं। इस लेख में, ‘पॉइंट-ऑफ़-सेल’ स्कैनर से उपलब्ध डेटा का उपयोग करके मुम्बई में किए गए एक प्रयोग के आधार पर पाया गया है कि कम आय वाले व्यक्ति, विशेष रूप से वे लोग जिनके परिवारों में बच्चे हैं, जिन्हें गेहूँ और चावल की सब्सिडी मिलती है, उन्होंने ‘जंक फूड’ यानी बाहर के कम पोषक आहार पर कम खर्च किया तथा घर में खाना पकाने में अनाज के पूरक मसालों और अन्य खाद्य पदार्थों पर अधिक खर्च किया।
कुपोषण, जिसमें अल्पपोषण और मोटापा शामिल है, एक महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दा बना हुआ है, जिससे वर्ष 2022 तक दुनिया के 2.5 अरब से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, केवल भारत में ही वैश्विक कुपोषणग्रस्त में से एक तिहाई लोग रहते हैं। दूसरे सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी-2) के तहत वर्ष 2030 तक बेहतर पोषण उपलब्ध कराने और भुखमरी को समाप्त करने लक्ष्य रखा गया है (संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग)। अन्य सतत विकास लक्ष्यों जैसे कि शिक्षा और आर्थिक विकास से संबंधित लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में भी पोषण एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक है।
क्या खाद्य सब्सिडी से कुपोषण की समस्या का समाधान होता है?
कई दशकों से सरकारी और गैर-सरकारी दोनों संगठन लगातार कुपोषण को दूर करने के लिए खाद्य सब्सिडी पर निर्भर रहे हैं। इन कार्यक्रमों में आम तौर पर कम आय वाले समुदायों को अनाज और दालों जैसे बुनियादी खाद्य पदार्थों का वितरण शामिल होता है। देश के सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) कार्यक्रम के माध्यम से भारत में अनाज और दालों तक नियमित पहुँच से 80 करोड़ से अधिक लोग लाभान्वित होते हैं। यह सहायता ‘उचित मूल्य की दुकानों’ के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है।
भारत के पीडीएस की लागत काफी अधिक है। वर्ष 2021-22 में, केन्द्र सरकार को इस कार्यक्रम की प्रत्यक्ष लागत, अनुमानित 16.5 अरब अमेरिकी डॉलर (पुरी और पिंगली 2024) और संभवतः अप्रत्यक्ष पर्यावरणीय और आर्थिक लागतें भी उठानी पड़ीं, जिसमें उर्वरक सब्सिडी, पानी का कम उपयोग और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशन, 2022) शामिल हैं।
खाद्य सब्सिडी के कारण वैश्विक स्तर पर सरकारों और गैर-सरकारी निकायों पर पड़ने वाले महत्वपूर्ण वित्तीय बोझ के बावजूद, उनकी प्रभावकारिता के बारे में आम सहमति का अभाव बना हुआ है। खाद्य सब्सिडी के प्रभाव के बारे में वर्तमान शोध काफी हद तक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण जैसे तंत्रों का उपयोग करके प्राप्तकर्ताओं द्वारा की जानेवाली स्व-रिपोर्टिंग पर निर्भर रहा है (जेन्सन और मिलर 2008, बनर्जी एवं अन्य. 2018, श्रीनिवास एवं अन्य. 2018)। निम्न आय वाले समुदायों द्वारा डिजिटल भुगतान और रिकॉर्ड रखने सम्बन्धी प्रणालियों का कम उपयोग किए जाने की स्थिति को देखते हुए, इन सर्वेक्षणों ने नीति निर्माताओं को ऐसी जानकारियाँ प्रदान की हैं जो अन्यथा उपलब्ध नहीं हो पातीं।
इसके बावजूद सर्वेक्षणों के माध्यम से की जाने वाली स्व-रिपोर्टिंग से खाद्य खरीद निर्णयों और उपभोग की आदतों का वस्तुनिष्ठ रिकॉर्ड नहीं मिल सकता है। पूर्वाग्रह, गलत याद रखने और गलत रिपोर्टिंग की संभावना खाद्य सब्सिडी की प्रभावशीलता को मापने की विधि के रूप में उनकी उपयोगिता को सीमित कर देती है। उदाहरण के लिए, यदि उत्तरदाता द्वारा उपभोग की गई वस्तुओं की मात्रा और पोषण मूल्य को याद करने और उसे मापने में असमर्थ हों, तो सर्वेक्षणों में पैकेज्ड वस्तुओं का पता लगाने व उनका रिकॉर्ड रखने में कठिनाई के चलते अक्सर पैकेज्ड वस्तुओं के रूप में बेचे जाने वाले ‘जंक फूड’ की खपत को मापने में दिक्कत आती है। इसके अलावा, ऐसे सर्वेक्षणों के अनुदैर्ध्य (क्रॉस-सेक्शनल) के बजाय स्वरूप का अर्थ है कि व्यक्तियों में व्यवस्थित भिन्नता के चलते, प्रयोगात्मक अध्ययन में सब्सिडी के प्रभावों का अनुमान लगाना कठिन हो सकता है।
खाद्य सब्सिडी के प्रभाव का आकलन
हमने अपने अध्ययन में खाद्य सब्सिडी के प्रभाव के बारे में व्यापक और वस्तुनिष्ठ डेटा एकत्र करने के लिए एक नई पद्धति प्रस्तुत की है। इसमें विशेष रूप से यह जाँच की गई है कि खाद्य सब्सिडी कम आय वाले व्यक्तियों की खाद्य टोकरी और पोषण सम्बन्धी खरीद में कैसे बदलाव लाती है (औवाद, रामदास और संगु 2024)।
हमने मुम्बई के मानखुर्द इलाके में कम आय वाली बस्ती में 52 खाद्य विक्रेताओं में से 39 को पॉइंट-ऑफ-सेल (पीओएस) डिजिटल स्कैनर से लैस किया, ताकि ‘रैंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल’ (आरसीटी)1 से पहले, उसके दौरान और बाद में सभी प्रकार के लेन-देन को रिकॉर्ड किया जा सके। स्कैनरों ने अध्ययन आईडी के माध्यम से एक-एक खरीदार को रिकॉर्ड किया, साथ ही उसके द्वारा खरीदे गए उत्पादों, उनकी कीमतों और मात्राओं और खरीद के समय को भी रिकॉर्ड किया। प्रत्येक लेन-देन को एक विशिष्ट आईडी भी दी गई और खरीदी गई वस्तुओं के पोषण मूल्य की गणना की गई।2 डेटा संग्रह प्रक्रिया की सटीकता को सत्यापित करने के लिए पूर्णकालिक अनुसंधान सहायकों और ‘अज्ञात खरीदार’ (मिस्ट्री शॉपर्स) का उपयोग किया गया।
कुल मिलाकर, मार्च से अक्टूबर 2022 तक 23,717 ग्राहकों द्वारा 7,68,074 उत्पाद लेन-देन दर्ज किए गए। इन लेन-देनों में से 84.05% को विशिष्ट ग्राहक पहचानकर्ता के साथ टैग किया गया था, जिससे एक ही व्यक्ति द्वारा किए गए अलग-अलग लेन-देनों को रिकॉर्ड किया जा सका।
मानखुर्द में पीडीएस सब्सिडी वितरित करने वाली उचित मूल्य की दुकानों के समान एक ‘सब्सिडी स्टोर’ भी स्थापित किया गया था। इस डिज़ाइन के ज़रिए आपूर्ति-पक्ष की अनिश्चितता को दूर किया जा सका और क्रय निर्णयों पर मांग-पक्ष कारकों के प्रभाव को अलग-थलग करने की सुविधा मिली। हमने अपने साझेदार स्टोर पर पिछले लेन-देन के माध्यम से पहचाने गए खरीदारों के एक यादृच्छिक उपसमूह को हमारे आरसीटी में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जो कि 1 जुलाई और 4 सितंबर 2022 के बीच किया गया। हमारा समावेशन मानदंड यह था कि पहली खरीदारी प्रयोग के शुरू होने से कम से कम पाँच सप्ताह पहले की हो तथा अंतिम खरीदारी अधिकतम दो सप्ताह पहले की हो।
कुल 1,255 मानखुर्द निवासियों को यादृच्छिक रूप से 'उपचार शाखा' और 'नियंत्रण शाखा' में शामिल किया गया ‘उपचार समूह’ के प्रतिभागियों को छह सप्ताह तक साप्ताहिक आधार पर चावल और गेहूँ की सब्सिडी दी गई। ‘नियंत्रण समूह’ के व्यक्तियों को प्रयोग पूरा होने के बाद विलंबित सब्सिडी दी गई। ‘उपचार’ और ‘नियंत्रण’ दोनो समूहों के प्रतिभागियों की खरीदारी की आदतों को हमारे साझेदार विक्रेताओं के यहाँ स्थापित ‘पीओएस’ स्कैनर के उपयोग से रिकॉर्ड किया गया। ‘उपचार’ और ‘नियंत्रण’ समूहों के व्यक्ति औसतन 26.135 बार हमारे साझेदार विक्रेताओं के पास गए और छह सप्ताह की प्रयोग अवधि के दौरान 3.16 साझेदार स्टोरों का दौरा किया।
इस पद्धति से एक नया डेटा स्रोत प्राप्त हुआ जिससे स्व-रिपोर्टिंग की कुछ सीमाओं से निपटने का हल मिलता है और एक विस्तारित अवधि में क्रय निर्णयों में व्यक्तिगत-स्तर के परिवर्तनों को मापने की सुविधा मिलती है। जहां तक हमारी जानकारी है, यह प्रयोग निम्न आय वाले समुदाय में खाद्य खरीद का पहला वस्तुपरक रिकॉर्ड तथा उभरते बाजारों में सब्सिडी के प्रभाव को दर्शाता है।
निष्कर्ष
हमने पाया कि खाद्य सब्सिडी के अभाव में (यानी, नियंत्रण समूह के लिए), जिन 39 दुकानों से हमने आंकड़े एकत्रित किए थे, वहां के खरीदारों ने अस्वास्थ्यकर, अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (स्नैक्स, शीतल पेय) पर उतना ही खर्च किया जितना उन्होंने गेहूँ और चावल पर किया था। ‘उपचार’ से पूर्व जिन परिवारों में बच्चे थे, उन घरों के व्यक्तियों ने बिना बच्चों वाले परिवारों के व्यक्तियों की तुलना में ‘स्नैक्स’ पर 60% अधिक खर्च किया।
जिन प्रतिभागियों को चावल और गेहूँ की सब्सिडी (उपचार समूह) मिली, उन्होंने ‘नियंत्रण समूह’ की तुलना में प्रयोग अवधि के दौरान शीतल पेय (31%), साथ ही ‘स्नैक्स’ और चीनी (16%) पर अपने खर्च में उल्लेखनीय कमी की। यह प्रभाव बच्चों वाले परिवारों में ‘उपचार समूह’ के प्रतिभागियों के बीच सबसे अधिक स्पष्ट था। मसालों और सहायक वस्तुओं (सब्सिडी वाले अनाज के पूरक) पर खर्च में उन प्रतिभागियों की तुलना में जिन्हें खाद्य सब्सिडी नहीं मिली, क्रमशः 27% और 21% की वृद्धि हुई। ‘नियंत्रण’ और ‘उपचार’ दोनों समूहों में खर्च की गई कुल राशि स्थिर रही। ‘जंक फूड’ पर व्यय में कमी के साथ-साथ, साथ में खाने-पीने की चीज़ों और मसालों पर व्यय में वृद्धि से पता चलता है कि सब्सिडी वाले अनाज तक पहुँच से घर पर खाना पकाने को बढ़ावा मिलता है और अधिक ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले कार्बोहाइड्रेट पर निर्भरता कम होती है। इससे पता चलता है कि भारत सरकार द्वारा वितरित सब्सिडी लाभार्थियों के पोषण में सुधार कर रही है।
हमें खाद्य सब्सिडी तक पहुँच से किसी भी नकारात्मक प्रतिस्थापन पैटर्न जैसे कि कुल खरीदे गए पोषक तत्वों या खाद्य व्यय में कमी का कोई सबूत नहीं मिला। ‘नियंत्रण’ और ‘उपचार’ दोनों समूहों ने छह सप्ताह के प्रयोग के दौरान समान मात्रा में कैलोरी, वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और कई सूक्ष्म पोषक तत्वों वाली खाद्य सामग्री खरीदी। हालाँकि, खाद्य श्रेणियों में खर्च के वितरण में परिवर्तन से पता चलता है कि ‘उपचार’ समूह के प्रतिभागियों ने सब्सिडी के कारण पोषण के स्वस्थ, कम-ग्लाइसेमिक इंडेक्स खाद्य स्रोतों की ओर रुख किया। ये निष्कर्ष उस उप-नमूने में भी बने हुए हैं जो पहले से ही सरकारी सब्सिडी प्राप्त कर रहा है। इससे पता चलता है कि भारत में पहले से ही दी जा रही सरकारी सब्सिडी का पोषण पर और भी अधिक सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
नीतिगत निहितार्थ
यह अध्ययन नीतिगत अंतर्दृष्टि प्रदान करता है जिससे वैश्विक स्तर पर कुपोषण की समस्या के समाधान के लिए चल रहे प्रयासों को बल मिलता है। हमारी नई कार्यप्रणाली से निम्न आय वाले समुदायों में व्यक्तियों की क्रय आदतों और उनके खरीद निर्णयों पर बुनियादी खाद्य सब्सिडी के प्रभाव पर उच्च गुणवत्ता वाला अनुदैर्ध्य (क्रॉस-सेक्शनल) डेटा प्राप्त होता है।
एकत्रित साक्ष्य से निम्न आय वाले समुदायों में खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमों की निरंतरता और उसके विस्तार के लिए एक मज़बूत आधार मिलता है। इससे यह पुष्टि होती है कि गेहूँ और आटे की सब्सिडी तक विश्वसनीय पहुँच से 'खाली कैलोरी' वाले खाद्य पदार्थों पर व्यय कम होता है और घर पर खाना पकाने को प्रोत्साहित करने वाली सामग्री पर अधिक खर्च को बढ़ावा मिलता है। सब्सिडी, महत्वपूर्ण रूप से, प्राप्तकर्ताओं की कुल पोषण सम्बन्धी खरीद को नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं करती है। प्रारंभिक विकास में अच्छे पोषण के महत्व को देखते हुए यह बात महत्वपूर्ण है कि प्रतिस्थापन प्रभाव बच्चों वाले परिवारों में इसका प्रभाव अधिक स्पष्ट देखा गया है।
हम यह साक्ष्य भी पेश करते हैं कि परिवारों के खरीद निर्णय उनको दी जाने वाली खाद्य सब्सिडी के प्रकार से प्रभावित होते हैं। पोषण सम्बन्धी परिणामों को बेहतर बनाने का लक्ष्य रखने वाले नीति निर्माताओं को इस बात पर विचार करना चाहिए कि निम्न आय वर्ग की आबादी विशेष अनाजों को किस प्रकार से अपनाएगा। उदाहरण के लिए, ज्वार, बाजरा, रागी जैसे कम लोकप्रिय लेकिन अधिक पौष्टिक मोटे अनाज को सब्सिडी कार्यक्रमों में शामिल करने के लिए खरीद निर्णयों पर इसके प्रभाव को समझने की दिशा में और अधिक शोध की आवश्यकता हो सकती है।
टिप्पणियाँ :
- आरसीटी में व्यक्तियों को यादृच्छिक रूप से समूहों में विभाजित किया जाता है- 'उपचार समूह' जो हस्तक्षेप के सम्पर्क में आता है, तथा 'नियंत्रण समूह' जो हस्तक्षेप के सम्पर्क में नहीं आता है। ये दोनों समूह सांख्यिकीय रूप से समान होते हैं और इसलिए, हस्तक्षेप के बाद ‘उपचार समूह’ और ‘नियंत्रण समूह’ के बीच पाए गए किसी भी अंतर को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- हमने एक डेटाबेस बनाया जिसमें हमारे ‘पार्टनर स्टोर’ में बेचे जाने वाले सभी उत्पादों की जानकारी शामिल है, जिसमें प्रत्येक आइटम का शुद्ध वजन, पोषण घटक और श्रेणी शामिल है। पोषण मानचित्रण खुले, पैकेज्ड और 'स्व-पैकेज्ड' खाद्य पदार्थों के लिए विभिन्न रणनीतियों का उपयोग करके बनाया गया है। अधिक जानकारी औउद, रामदास और संगु (2024) में दी गई है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : अली औवद एमआईटी स्लोन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में सहायक प्रोफेसर हैं, और लंदन बिज़नेस स्कूल में एसोसिएट प्रोफेसर (छुट्टी पर) हैं। उनका काम व्यापक रूप से आपूर्ति श्रृंखलाओं, बाजार डिजाइन और सार्वजनिक क्षेत्र के मुद्दों को कवर करने वाले अनुप्रयोगों के साथ डेटा-संचालित निर्णय प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। कमलिनी रामदास लंदन बिज़नेस स्कूल में इनोवेशन और उद्यमिता में डेलोइट प्रोफेसर हैं। उनकी शोध रुचि वंचित आबादी में मूलभूत सेवा वितरण नवाचारों की पहचान करने में है जो आवश्यक जीवन-सुधार सेवाओं तक पहुँच का विस्तार करते हैं और उनके अपनाने को बढ़ाने के तरीके खोजते हैं। एल्प संगु पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के व्हार्टन स्कूल में संचालन, सूचना और निर्णय के सहायक प्रोफेसर हैं।
क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक न्यूज़ लेटर की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।
Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.