गत सप्ताह 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस था। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत है यह लेख। भारत सरकार की अंशदायी पेंशन योजना, अटल पेंशन योजना के माध्यम से, नागरिकों को सेवानिवृत्ति के लिए बचत करने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है। इस अध्ययन में पाया गया कि अटल पेंशन योजना (एपीवाई) न केवल एक बुनियादी पेंशन प्रदान करती है, बल्कि इसमें नामांकित परिवारों को अन्य औपचारिक वित्तीय साधनों के माध्यम से अधिक बचत करने के लिए प्रोत्साहित करके व्यापक वित्तीय समावेशन को भी बढ़ावा देती है। डिजिटल वित्तीय तकनीकों में सहभागिता को बढ़ावा देने की क्षमता होने के कारण हाशिए पर रहने वाली और ग्रामीण आबादी के एपीवाई योजना में नामांकन की संभावना अधिक है।
हालांकि भारत दुनिया की सबसे युवा आबादी वाले देशों में से एक है, फिर भी यह एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव का अनुभव कर रहा है, और वह है बुज़ुर्ग आबादी में तेज़ी से वृद्धि। वर्ष 2011 में भारत में 60 और उससे अधिक आयु के 10 करोड़ 40 लाख से अधिक लोग थे, जो जनसंख्या का 8% से अधिक था और यह हिस्सा वर्ष 2050 तक दोगुना होने का अनुमान है (यूएनएफपीए, 2023)।
बुज़ुर्गों की आबादी तेज़ी से बढ़ने के कारण, वृद्ध हो रहे समाज के सामने आने वाली आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। प्रति-व्यक्ति कम और उच्च आय असमानता के कारण, भारत के वृद्ध लोग आबादी के सबसे कमज़ोर वर्गों में से हैं (श्रीवास्तव और मोहंती 2012, सेनगुप्ता और रूज 2019)। जीवन प्रत्याशा में वृद्धि और प्रजनन दर में गिरावट ने मौजूदा सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों पर बोझ को भी बढ़ा दिया है। भारत में वृद्धों के सामने एक महत्वपूर्ण चुनौती पर्याप्त सेवानिवृत्ति बचत का अभाव है। चूँकि वे सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ रहे हैं, इस मुद्दे का उनके जीवन की गुणवत्ता और उनकी आर्थिक सुरक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।
सेवानिवृत्ति के बाद जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से विभिन्न वित्तीय साधनों की शुरुआत के बावजूद, भारत में औपचारिक सेवानिवृत्ति बचत चिंताजनक रूप से कम बनी हुई है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के अनुसार, वर्ष 2019 में केवल लगभग 14.5% परिवारों ने औपचारिक सेवानिवृत्ति बचत किए जाने के बारे में बताया, जो वर्ष 2013 के 10.9% से मामूली ज़्यादा है। सेवानिवृत्ति के बाद की इस महत्वपूर्ण वित्तीय स्थिति में धीमी वृद्धि के कारण भारत के बुज़ुर्गों के लिए जीवन की अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करना कठिन हो सकता है।
अटल पेंशन योजना के माध्यम से वृद्धावस्था आय सुरक्षा को बढ़ावा देना
निम्न-आय वाली आबादी को अक्सर संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है और उन्हें अपने सेवानिवृत्ति के वर्षों के लिए बचत करने और संपत्ति बनाने में सहायता की आवश्यकता होती है। सामाजिक पेंशन योजनाएं अधिक उपभोग व्यय और बेहतर स्वास्थ्य के माध्यम से घरेलू कल्याण में सुधार ला सकती हैं (हुआंग और झांग 2021)। ऐसी ही एक योजना अटल पेंशन योजना (एपीवाई) है, जिसे भारत सरकार ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में वृद्धावस्था आय सुरक्षा की अनुपस्थिति से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए वर्ष 2015-16 के केंद्रीय बजट के हिस्से के रूप में शुरू किया था। एपीवाई नागरिकों को अपने कार्यकाल के दौरान एक निश्चित राशि का योगदान करके सेवानिवृत्ति के लिए स्वेच्छा से बचत करने के लिए प्रोत्साहित करती है। पेंशन निधि नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के अंतर्गत एपीवाई का प्रबंधन करता है। 18 से 40 वर्ष की आयु का कोई भी भारतीय नागरिक जिसके पास बैंक खाता हो, इस योजना का पात्र है और एपीवाई के अंशदाताओं को उनके योगदान के आधार पर 60 वर्ष की आयु होने पर 1,000, 2,000, 3,000, 4,000 या 5,000 रुपये की न्यूनतम मासिक पेंशन की गारंटी दी जाती है। अंशदाता विभिन्न तरीकों अर्थात मासिक, त्रैमासिक या अर्धवार्षिक रूप से अपना योगदान कर सकते हैं। वे स्वेच्छा से एपीवाई से बाहर भी निकल सकते हैं और उस बिंदु तक अर्जित राशि प्राप्त कर सकते हैं जिसमें सरकारी सह-योगदान और ब्याज़ शामिल है, बशर्ते वे कुछ शर्तों को पूरा करें।
एपीवाई योजना नागरिकों को, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के लोगों को वृद्धावस्था आय सुरक्षा प्रदान करती है, जिनके लिए संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के समान औपचारिक सेवानिवृत्ति बचत जैसी व्यवस्था नहीं है। एपीवाई योजना समाज में व्यापक वित्तीय समावेशन लाने और घरेलू कल्याण को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इस योजना का असर परिवारों की समग्र वित्तीय बचत पर पड़ सकता है जिसमें यह बात भी शामिल है कि क्या वे औपचारिक सेवानिवृत्ति बचत के अन्य रूपों में भाग लेते हैं।
योजना के प्रभाव का आकलन
हमने अपने हाल के एक अध्ययन (रूज और सेनगुप्ता 2024) में यह जाँच की है कि क्या एपीवाई की शुरूआत ने परिवारों की शुद्ध बचत को प्रभावित किया है, जिसका वृद्ध भारतीयों की भावी पीढ़ियों और अर्थव्यवस्था की समग्र स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
सेवानिवृत्ति के लिए बचत करने के निर्णय में एपीवाई की भूमिका की जाँच करते समय एक बड़ी चुनौती संभावित 'अंतर्जातता' समस्या का समाधान करना है। अंतर्जातता तब होती है जब किसी व्यक्ति की प्रेरणा या वित्तीय साक्षरता जैसे अप्रत्याशित कारक, एपीवाई में नामांकन के निर्णय और सेवानिवृत्ति के लिए बचत करने के निर्णय, दोनों को प्रभावित करते हैं। हम एक आधुनिक "कोपुला रिग्रेशन" पद्धति1 का उपयोग करके इस चुनौती का समाधान करते हैं, जिससे शोधकर्ता इन अप्रत्याशित कारकों को नियंत्रित करते हुए एपीवाई में सहभागिता तथा औपचारिक सेवानिवृत्ति बचत के बीच के कारण-संबंध की स्पष्ट समझ प्राप्त कर पाते हैं (मार्रा और रेडिस 2017)2।
हम जनवरी से दिसंबर 2019 तक किये गए एनएसएस के 77वें दौर के ऋण और निवेश सर्वेक्षण के आँकड़ों का उपयोग करके भारत में सेवानिवृत्ति बचत के अन्य तरीकों पर एपीवाई की भूमिका का अनुभवजन्य विश्लेषण करते हैं।
व्यापक वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना
हम दर्शाते हैं कि एपीवाई का एक ‘क्राउडिंग-इन’ प्रभाव होता है। अर्थात, बचत के अन्य तरीकों को हटाने के बजाय, यह परिवारों को अतिरिक्त औपचारिक वित्तीय साधनों के माध्यम से अधिक बचत करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इनमें निजी पेंशन योजनाएँ, भविष्य निधि, जीवन बीमा और वार्षिकी प्रमाणपत्र शामिल हो सकते हैं। एपीवाई में नामांकित परिवारों द्वारा गैर-नामांकित परिवारों की तुलना में, अन्य औपचारिक सेवानिवृत्ति बचत साधनों में पैसा लगाने की औसतन लगभग 2 प्रतिशत अधिक संभावना होती है। हालांकि इसका परिमाण मामूली है, लेकिन इसका प्रभाव सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण है, जो एपीवाई और अन्य औपचारिक बचत माध्यमों के बीच प्रतिस्थापन के बजाय पूरकता का संकेत देता है।
एपीवाई के ‘क्राउडिंग-इन’ प्रभाव का एक संभावित कारण यह है कि यह एक कम लागत वाली, स्वचालित बचत प्रणाली है, जिसमें अंशदान नियमित रूप से ग्राहक के बैंक खाते से डेबिट किया जाता है। यह विशेषता एक प्रतिबद्धता उपकरण के रूप में कार्य करती है, विशेष रूप से उन निम्न-आय वाले परिवारों के लिए जो वित्तीय अनुशासन से जूझते हैं या जिनकी औपचारिक बचत साधनों तक सीमित पहुँच है।
दीर्घकालिक सेवानिवृत्ति बचत के लिए एक माध्यम को औपचारिक रूप देकर, एपीवाई वित्तीय नियोजन के बारे में जागरूकता को बढ़ा सकती है और वित्तीय साक्षरता में वृद्धि में योगदान दे सकती है, जिससे परिवारों को अतिरिक्त औपचारिक बचत साधनों का पता लगाने तथा उन्हें अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है। इसके अलावा, इस योजना में बैंक खाते से जुड़े होने की आवश्यकता लेनदेन लागत को कम करने में मदद करती है, जिससे वित्तीय प्रणाली के साथ व्यापक जुड़ाव संभव होता है। कुल मिलाकर, ये प्रणालियाँ उन परिवारों में छिपी बचत प्राथमिकताओं को सक्रिय कर सकती हैं जो पहले औपचारिक वित्त से वंचित थे या जिनके मन में औपचारिक वित्त के प्रति अविश्वास था। इससे मौजूदा बचत के स्थान पर परिवारों की सेवानिवृत्ति बचत में शुद्ध वृद्धि हो सकती है। यह निष्कर्ष महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दर्शाता है कि एपीवाई न केवल एक बुनियादी पेंशन प्रदान करती है, बल्कि व्यक्तियों को विभिन्न सेवानिवृत्ति बचत विकल्पों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करके व्यापक वित्तीय समावेशन को भी बढ़ावा देती है।
प्रतिभागियों की जनसांख्यिकीय विशेषताएँ
हम आगे दर्शाते हैं कि हाशिए पर रहने वाले समूहों, विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों, में एपीवाई में नामांकन की प्रवृत्ति अधिक है। ये समूह आमतौर पर कम वेतन वाले, अनौपचारिक रोज़गार में लगे होते हैं जहाँ नौकरी की सुरक्षा बहुत कम होती है। उनके लिए एपीवाई सेवानिवृत्ति योजना बचत के लिए उपलब्ध कुछ औपचारिक विकल्पों में से एक है। हाशिये पर रहने वाली आबादी की उच्च सहभागिता दर से पता चलता है कि एपीवाई उन लोगों तक सफलतापूर्वक पहुँच रही है जो सबसे कमज़ोर हैं और जिनकी अन्य वित्तीय उत्पादों तक सबसे कम पहुँच है।
एपीवाई ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जहाँ वित्तीय बुनियादी ढाँचा कम विकसित है। शहरी परिवारों की तुलना में, ग्रामीण परिवारों द्वारा एपीवाई में भाग लेने की संभावना अधिक होती है, जो यह दर्शाता है कि यह योजना शहरी और ग्रामीण आबादी के बीच वित्तीय समावेशन के अंतर को कम करने में मदद कर रही है।
इस योजना का प्रभाव विभिन्न सामाजिक और आर्थिक श्रेणियों में भी देखा जाता है। जिन परिवारों में महिला सदस्यों की संख्या अधिक होती है, वे अधिक बचत करते हैं। संभवतः इसलिए क्योंकि महिलाएँ अपने वित्तीय भविष्य को सुरक्षित करने के लिए संरचित बचत योजनाओं पर अधिक निर्भर होती हैं। इसके अतिरिक्त, स्व-नियोजित व्यक्तियों को, आय में उतार-चढ़ाव के कारण औपचारिक सेवानिवृत्ति बचत में भाग लेने की संभावना कम होने के बावजूद, एपीवाई से काफी लाभ होता है, क्योंकि यह सेवानिवृत्ति के लिए एक संरचित और सरकार समर्थित सुरक्षा जाल प्रदान करती है।
डिजिटल वित्तीय तकनीकों का लाभ उठाना
डिजिटल वित्तीय तकनीकों का एकीकरण एपीवाई की सफलता का एक और प्रमुख कारक है। जो परिवार मोबाइल बैंकिंग और क्रेडिट/डेबिट कार्ड जैसी डिजिटल भुगतान विधियों का उपयोग करते हैं, उनके एपीवाई में नामांकन की संभावना अधिक होती है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत अपनी अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण जारी रखे हुए है। डिजिटल इंडिया जैसी पहलों के माध्यम से डिजिटल समावेशन के प्रयासों ने पहले वंचित रहे लाखों व्यक्तियों तक वित्तीय सेवाएँ पहुँचाने में मदद की है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से एपीवाई की पहुँच दूर-दराज के क्षेत्रों के लोगों को आसानी से खाता खोलने और योजना में योगदान करने में सक्षम बनाती है, जिससे इसकी पहुँच और बढ़ती है।
डिजिटल वित्तीय साधनों का लाभ उठाकर, एपीवाई न केवल वित्तीय समावेशन में बल्कि डिजिटल अर्थव्यवस्था के समग्र विकास में भी योगदान देती है। जैसे-जैसे डिजिटल बुनियादी ढाँचा बेहतर होता जाएगा, अधिक परिवारों के एपीवाई में नामांकन करने की उम्मीद है, जिससे औपचारिक सेवानिवृत्ति बचत में उनकी भागीदारी बढ़ेगी।
इसके अतिरिक्त, विश्लेषण से पता चला है कि बड़े परिवारों को परिवार के अधिक सदस्यों का भरण-पोषण करने के वित्तीय बोझ के कारण सेवानिवृत्ति के लिए बचत करने में कठिनाई हो सकती है। इस बीच, उच्च उपभोग व्यय का एपीवाई नामांकन के साथ सकारात्मक संबंध है, जो यह दर्शाता है कि अधिक प्रयोज्य आय वाले परिवारों के इस योजना में भाग लेने की संभावना अधिक है।
नीति के लिए अंतर्दृष्टि
इन निष्कर्षों के महत्वपूर्ण नीतिगत निहितार्थ हैं। पहला, एपीवाई वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए एक सफल साधन साबित हुआ है, विशेष रूप से हाशिए पर और ग्रामीण आबादी के लिए। जैसे-जैसे यह योजना लोकप्रिय होती जाएगी, नीति-निर्माताओं को अपना ध्यान, विशेष रूप से असंगठित श्रमिकों के बीच इसकी पहुँच बढ़ाने पर केंद्रित करना चाहिए, जिनकी अभी भी औपचारिक पेंशन योजनाओं तक पहुँच नहीं है। स्व-नियोजित लोगों के लिए, नीति-निर्माता संभवतः अधिक लचीली अंशदान योजनाएँ प्रदान करके जो आय में उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखती हैं, लक्षित हस्तक्षेपों पर विचार कर सकते हैं।
दूसरा, डिजिटल वित्तीय तकनीकों और एपीवाई नामांकन के बीच सकारात्मक सह-संबंध वित्तीय समावेशन को बढ़ाने की दिशा में भारत के बढ़ते डिजिटल बुनियादी ढाँचे का लाभ उठाने की क्षमता को दर्शाता है। सरकार की प्राथमिकता ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में वित्तीय उत्पादों और सेवाओं तक डिजिटल पहुँच का विस्तार करना होनी चाहिए। इससे न केवल एपीवाई में सहभागिता बढ़ेगी, बल्कि समग्र वित्तीय साक्षरता एवं सुरक्षा में भी सुधार होगा।
भविष्य की राह पहुँच का विस्तार करने, वित्तीय साक्षरता बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने में निहित है कि सभी भारतीयों, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के लोगों के पास सुरक्षित और स्थिर सेवानिवृत्ति की योजना बनाने हेतु आवश्यक साधन और संसाधन हों।
टिप्पणियाँ :
- कोपुला रिग्रेशन एक ऐसी लचीली सांख्यिकीय पद्धति है जो त्रुटि संदर्भों के बीच निर्भरता को मापकर अनेक परिणामों के संयुक्त वितरण का मॉडल प्रस्तुत करती है– यह विशेष रूप से तब उपयोगी होती है जब अप्रेक्षित कारक दोनों परिणामों को प्रभावित करते हैं। ओएलएस (साधारण न्यूनतम वर्ग) समाश्रयण के विपरीत, जो त्रुटियों की स्वतंत्रता और रैखिकता को मानता है, कोपुला मॉडल अरैखिक संबंधों (जिन्हें सीधी रेखा द्वारा प्रदर्शित नहीं किया जा सकता), विषम-स्केडैस्टिसिटी (परिणाम चर की परिवर्तनशीलता व्याख्यात्मक चर के विभिन्न मानों में असमान होती है), और अंतर्जातता को समायोजित कर सकते हैं।
- अनुमान एल्गोरिद्म का कम्प्यूटेशनल विवरण रेडिस, मार्रा और वोज्टीस एवं अन्य (2016) में दिया गया है। हम कार्यान्वयन के लिए, मार्रा और रैडिस (2017) द्वारा विकसित आर पैकेज जीजेआरएम (जनरलाइज्ड जॉइंट रिग्रेशन मॉडलिंग) का उपयोग करते हैं।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : देबाशीष रूज फ्लेम (एफएलएएई) विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। फ्लेम में शामिल होने से पहले, वे रांची में मानव विकास संस्थान में एसोसिएट फेलो थे। उन्होंने झारखंड सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 और 2018-19 के लिए शोध सहायता प्रदान की है। उन्होंने उत्तरी इलिनॉय विश्वविद्यालय से पीएचडी की है। रेशमी सेनगुप्ता भी फ्लेम (एफएलएएई) विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर और अर्थशास्त्र तथा सार्वजनिक नीति केन्द्र की सह-अध्यक्ष हैं। उन्होंने उत्तरी इलिनॉय विश्वविद्यालय से पीएचडी और कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमएससी की डिग्री प्राप्त की है। उनकी शोध रुचि आधुनिक अर्थमितीय विधियों का उपयोग करके बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण डेटासेट का विश्लेषण करने में है।
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17 जुलाई, 2025 





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