मानव विकास

क्या स्कूल प्रबंधन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढाने से स्कूल की गुणवत्ता में सुधार होता है?

  • Blog Post Date 05 मई, 2022
  • लेख
  • Print Page
Author Image

Chandan Jain

International Initiative for Impact Evaluation (3ie)

cjain@3ieimpact.org

Author Image

Bharti Nandwani

Indira Gandhi Institute of Development Research (IGIDR)

bharti@igidr.ac.in

वर्ष 2009 में लागू किये गए शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) ने सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से स्कूलों में जवाबदेही में सुधार लाने हेतु सार्वजनिक और निजी सहायता-प्राप्त स्कूलों को स्कूल प्रबंधन समितियों (एसएमसी) का गठन करने के लिए अनिवार्य किया। यह लेख स्कूलों के बारे में वर्ष 2012-2018 के बीच के भारतीय प्रशासनिक डेटा और एएसईआर (शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट) डेटा का उपयोग करते हुए, दर्शाता है कि स्कूल प्रबंधन समितियों में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व उस स्कूल की उच्चतम गुणवत्ता से जुड़ा है; जिसे तैनात किए गए शिक्षकों की संख्या, शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता, शैक्षणिक संसाधन, स्कूल में छात्रों के दाखिले, और शिक्षा प्राप्त करने के परिणाम के संदर्भ में मापा गया है। 

भारत सरकार ने 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) लागू किया। अधिनियम ने सार्वजनिक और निजी सहायता-प्राप्त स्कूलों को सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से स्कूलों में जवाबदेही में सुधार लाने हेतु स्कूल प्रबंधन समितियों (एसएमसी) का गठन करने के लिए अनिवार्य किया। एसएमसी माता-पिता, स्थानीय अधिकारियों और शिक्षकों के निर्वाचित प्रतिनिधियों का एक संगठन है। इन एसएमसी की मुख्य भूमिका स्कूल की गतिविधियों की निगरानी करना, स्कूल में नहीं जानेवाले 6 से 14 साल के बीच के बच्चों को स्कूल में दाखिला लेने के लिए प्रोत्साहित करना, स्कूलों की बुनियादी सुविधाओं और शिक्षकों की आवश्यकताओं के बारे में स्थानीय अधिकारियों को बताना और स्कूलों द्वारा प्राप्त अनुदान का कुशल तरीके से उपयोग करवाना है। आरटीई ने यह भी अनिवार्य किया कि इन समितियों में तीन-चौथाई सदस्य अभिभावक (माता-पिता) हों। इसके अलावा, उक्त अधिनियम के अनुसार स्कूलों द्वारा महिलाओं के लिए एसएमसी पदों को 50% आरक्षित करने की भी आवश्यकता है।

इस बात के उभरते हुए प्रमाण मिलते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नीतिगत प्राथमिकताएँ भिन्न होती हैं (मिलर 2008, एडलंड और पांडे 2002)। विशेष रूप से, यह देखा गया है कि पुरुषों की तुलना में बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य में सार्वजनिक और निजी निवेश- दोनों के लिए महिलाओं की प्राथमिकता अधिक है (भालोत्रा ​​और क्लॉट्स-फिगुएरास 2014, थॉमस 1990)। तथापि, स्कूल प्रबंधन और नेतृत्व वाले पदों में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व है, और इससे स्कूल की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है (मार्टिनेज एवं अन्य 2021, मैथिली 2017)। यह स्थिति भारत जैसे देश के लिए विशेष रूप से और भी चिंताजनक है, जहां पब्लिक स्कूल में बुनियादी ढांचे की निराशाजनक स्थिति, शिक्षकों की अनुपस्थिति और छात्रों के शिक्षा प्राप्त करने के परिणाम कम दिखाई देते हैं, और ऐसी स्थिति में देश स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार के तरीकों को खोजने के लिए संघर्षरत है। इस संदर्भ में, स्कूल प्रबंधन के निर्णयों में महिलाओं को शामिल करने संबंधी अधिदेश सही समय पर आया है और इसमें लाभकारी होने की क्षमता है।

एक अध्ययन 

हाल के एक अध्ययन (जैन और नंदवानी 2021) में, हम एसएमसी में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि के स्कूल की गुणवत्ता के लिए निहितार्थों का अध्ययन करते हैं। भले ही स्कूलों को महिलाओं के लिए एसएमसी पदों का 50% आरक्षित करना अनिवार्य है, लेकिन कानून इस दिशानिर्देश के गैर-अनुपालन के प्रभाव के बारे में अस्पष्ट है। इसलिए, हम समय के साथ स्कूलों के भीतर और स्कूलों में एसएमसी में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में भिन्नता देखते हैं। हम स्कूल की गुणवत्ता और स्कूलों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के बीच के संबंध का अध्ययन करने के लिए इस भिन्नता का उपयोग करते हैं। हम स्कूल 'इनपुट' (शिक्षकों की संख्या, शिक्षकों की योग्यता, और बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता) और स्कूल 'परिणामों' (मूल्यांकन परीक्षणों में नामांकन और छात्र प्रदर्शन) का उपयोग करके स्कूल की गुणवत्ता को मापते हैं।

हम शिक्षा हेतु एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यू-डीआईएसई) डेटा का उपयोग करते हैं, जो देश के सभी पंजीकृत स्कूलों की वार्षिक गणना है। वर्ष 2012-13 में स्थापित यू-डीआईएसई, एसएमसी सहित भारतीय स्कूल सुविधाओं पर सबसे बड़ा और सबसे व्यापक डेटा है। यू-डीआईएसई के प्रत्येक दौर में करीब दस लाख स्कूलों की जानकारी है। हम वर्ष 2012-13 से 2017-18 के डेटा का उपयोग करते हुए, सार्वजनिक और निजी सहायता-प्राप्त स्कूलों के पैनल1 डेटासेट का निर्माण करते हैं, जिनमें प्राथमिक और उच्च प्राथमिक कक्षाएं (ग्रेड 1-8) हैं, इस प्रकार हमें लगभग 650 लाख अवलोकन2 मिलते हैं। हालांकि, यू-डीआईएसई में छात्रों के सीखने के परिणामों के बारे में जानकारी नहीं है, और इसलिए इस विश्लेषण के लिए, हम 2012-2016 की शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) डेटा का उपयोग करते हैं; यह पारिवारिक स्तर का एक सर्वेक्षण है जो बच्चों के बुनियादी स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने के परिणामों के बारे में जानकारी एकत्र करता है।

स्कूल की गुणवत्ता और स्कूल प्रबंधन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

हम एसएमसी में लैंगिक संरचना (स्त्री-पुरुष संख्या) और स्कूल की गुणवत्ता3 के बीच संबंध का अनुमान लगाते हैं और पाते हैं कि एसएमसी के आकार को स्थिर रखते हुए (जो पुरुष सदस्यों की जगह महिला सदस्यों द्वारा ले रही है) एसएमसी में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि,अगले शैक्षणिक वर्ष में शिक्षकों- विशेष रूप से महिला शिक्षकों की अधिक संख्या और पुरुष शिक्षकों की कम संख्या के साथ जुड़ी हुई है। इस प्रकार हम शिक्षक भर्ती में लैंगिक आधार पर वरीयता पाते हैं, जब एसएमसी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ता है तो अधिक महिला शिक्षकों को काम पर रखा जाता है। इसके अलावा, हम यह भी पाते हैं कि एसएमसी में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि का सह-संबंध बेहतर योग्य शिक्षकों वाले स्कूलों से है। विशेष रूप से, किसी स्कूल में 10 पुरुष एसएमसी सदस्यों के स्थान पर महिला सदस्यों को शामिल करने से स्नातक और पेशेवर रूप से योग्य शिक्षकों में 16.8% और 9% अंकों की वृद्धि होती है। इसलिए, भले ही अधिक महिला शिक्षकों को काम पर रखने की वरीयता में वृद्धि हुई है, कम योग्य शिक्षकों के मामले में यह भर्ती अप्रभावी नहीं लगती। यह देखते हुए कि स्कूलों में महिला शिक्षकों की संख्या औसतन कम है, प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के लैंगिक अनुपात (स्त्री-पुरुष संख्या) में सुधार की दृष्टि से यह निष्कर्ष बहुत महत्वपूर्ण है।

दूसरी ओर, स्कूलों में बिजली की उपलब्धता और पुस्तकालय में पुस्तकों की उपलब्धता को छोड़कर- एसएमसी में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और स्कूल में बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता के बीच या तो कमजोर संबंध है या कोई संबंध नहीं है। संभवत: यह दर्शाता है कि महिलाएं स्कूल की गुणवत्ता में सुधार के लिए बुनियादी ढांचे की तुलना में शिक्षकों को अधिक महत्वपूर्ण स्कूल इनपुट के रूप में मानती हैं। परिणाम की व्याख्या इस संदर्भ में की जानी चाहिए कि हमारे नमूने में से किसी दिए गए नामांकन आकार के एक औसत स्कूल में कक्षाओं और अन्य बुनियादी सुविधाओं की तुलना में शिक्षकों की संख्या बहुत कम है।

स्कूल के परिणामों के संबंध में, हम पाते हैं कि एसएमसी के आकार में वृद्धि किये बगैर उसमें महिला सदस्यों में वृद्धि की जाने से वहां छात्रों के नामांकन में वृद्धि होती है। हालांकि, यह लड़कियों के नामांकन में बिना किसी बदलाव के,लड़कों के नामांकन में वृद्धि से प्रेरित है, यह दर्शाता है कि स्कूल में लड़कियों का नामांकन बढ़ाना शायद अधिक चुनौतीपूर्ण है। हमारे परिणाम किसी जिले में औसत महिला एसएमसी सदस्यों के बीच के सकारात्मक सह-संबंध और कक्षा दो के बराबर पढ़ने, गणित और अंग्रेजी सीखने के आकलन को पूरा करने वाले4 बच्चों की संभावना को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त, हम लैंगिक आधार पर शिक्षा प्राप्त करने के परिणामों पर महिला एसएमसी सदस्यों के अंतर-प्रभाव5 का अध्ययन करते हुए पाते हैं कि लड़कियों के शिक्षा प्राप्त करने संबंधी अंकों में सुधार लड़कों की तुलना में अधिक है।

जैसे-जैसे एसएमसी में महिलाओं का अनुपात बढ़ता जाता है, स्कूल में महिला और योग्य शिक्षकों की अधिक संख्या के साथ-साथ पुस्तकालय में अधिक पुस्तकों तथा स्कूल में बिजली की उपलब्धता का परिणाम, छात्र नामांकन और शिक्षा प्राप्त करने के परिणामों के साथ दर्ज किया गया सकारात्मक जुड़ाव हो सकता है। मौजूदा कार्य ने यह दर्ज किया है कि स्कूल में महिला शिक्षकों की वृद्धि बेहतर नामांकन और शिक्षा प्राप्त करने के परिणामों के मामले में विशेष रूप से महिला छात्रों के लिए फायदेमंद है(मुरलीधरन और शेठ 2016,अदुकिया 2017, लिम और मीर 2017, क्लॉटफेल्टर एवं अन्य 2010)। यह देखते हुए कि लड़कों की तुलना में लड़कियों के शिक्षा प्राप्त करने के कमजोर परिणामों को दर्ज किया गया है, एसएमसी में महिलाओं की भागीदारी और लड़कियों के लिए सीखने के परिणामों के बीच देखा गया यह सकारात्मक संबंध विशेष रूप से महत्वपूर्ण है (जैन 2019, मुरलीधरन और शेठ 2016)।

हम एसएमसी में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और शिक्षक गुणवत्ता, नामांकन और शिक्षा प्राप्त करने के परिणामों के बीच रिपोर्ट किए गए सकारात्मक सहयोग पर प्रभाव डालने वाले संभावित चैनल की भी जांच करते हैं। हम दिखाते हैं कि एसएमसी में महिलाओं का उच्च प्रतिनिधित्व एक शैक्षणिक वर्ष में आयोजित एसएमसी बैठकों की संख्या के साथ-साथ स्कूल विकास योजना तैयार करने की संभावना को बढ़ाता है। एसएमसी बैठकें उस प्रक्रिया के पहले चरण का प्रतिनिधित्व करती हैं जिसके द्वारा एसएमसी सदस्य स्कूल की आवश्यकताओं पर चर्चा करते हैं और स्कूल के कामकाज और प्रबंधन के संबंध में निर्णय लेते हैं। दूसरी ओर, स्कूल विकास योजना, एसएमसी सदस्यों द्वारा तैयार की जाती है जो आने वाले शैक्षणिक वर्ष में स्कूल की आवश्यकताओं का अनुमान प्रदान करती है, और इस प्रकार स्कूल को सरकार से प्राप्त होने वाले अनुदान का आधार बनाती है। इस प्रकार ये दो परिणाम इस बात के महत्वपूर्ण संकेतक हैं कि स्कूल की गतिविधियों की निगरानी में और स्थानीय अधिकारियों को स्कूल की आवश्यकताओं को संप्रेषित करने में एक एसएमसी कितना सक्रिय है,जो संभवतः अवलोकित किए गए सकारात्मक संबंध का चालक है।

नीति निहितार्थ

हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी के साथ विकेंद्रीकृत स्कूल प्रबंधन में, स्कूल इनपुट के साथ-साथ स्कूलों में नामांकन और शिक्षा प्राप्त करने के परिणामों सहित विभिन्न आयामों पर स्कूल की गुणवत्ता में सुधार करने की काफी क्षमता है। यह, शौचालयों के निर्माण, नकद हस्तांतरण,और पोषण कार्यक्रमों जैसे स्कूल की गुणवत्ता में सुधार के लिए मौजूदा हस्तक्षेपों- जो छात्र नामांकन में सुधार करते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि छात्रों के शिक्षा प्राप्त करने के परिणामों (अडुकिया 2017, मिगुएल और क्रेमर 2004,वर्मीर्श और क्रेमर 2005) को लाभ पहुंचाते हैं, की तुलना में एक महत्वपूर्ण नीति इनपुट है। इसके अतिरिक्त,ये नीतिगत हस्तक्षेप बहुत महंगे हैं, जिसमें लाखों डॉलर की आवश्यकता होती है, जबकि हमारे अध्ययन से पता चलता है कि सामुदायिक भागीदारी, विशेष रूप से महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के माध्यम से, पब्लिक स्कूल की गुणवत्ता में सुधार करने का एक अपेक्षाकृत सस्ता और किफायती तरीका है।

हालांकि आरटीई कानून में निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को एसएमसी के गठन (और इस तरह एसएमसी में महिलाओं की भागीदारी) के संबंध में कोई दिशानिर्देश नहीं दिए गए हैं। यू-डीआईएसई डेटा के अनुसार यह एक बहुत बड़ा अपवर्जन (बहिष्करण)है, अब 35% छात्र धर्मार्थ ट्रस्टों या सोसाइटियों द्वारा संचालित और प्रबंधित किए जा रहे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। अतः महिला एसएमसी सदस्यों और स्कूल की गुणवत्ता के बीच दर्ज किये गये सकारात्मक संबंध को देखते हुए, यह दिशानिर्देश निजी स्कूलों के लिए भी विस्तारित करना देश के सभी प्राथमिक छात्रों के लिए स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने के माहौल में सुधार लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

टिप्पणियाँ:

  1. पैनल डेटा बार-बार अवलोकन की एक ही इकाई (इस मामले में स्कूल) को बार-बार दर्ज करता है।
  2. आरटीई अधिनियम में निजी गैर-सहायता प्राप्त और माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक पब्लिक स्कूल शामिल नहीं हैं।
  3. हमारे विश्लेषण में, हम एसएमसी के आकार का नियंत्रण करते हैं, और संभावित रूप से भ्रमित करने वाले स्कूल-विशिष्ट समय-अपरिवर्तनीय कारकों, प्रारंभिक स्कूल विशेषताओं, राज्य-वर्ष और वर्ष के झटके के बारे में गणना करते हैं।
  4. यहां "पूरा करना" इन आकलनों पर निर्दिष्ट सीमा से अधिक अंक प्राप्त करने का संकेत देता है।
  5. विभेदक या विषम प्रभाव उन उपचार-प्रभावों को संदर्भित करते हैं जो अध्ययन के नमूने के भीतर अलग-अलग व्यक्तियों को अलग तरह से प्रभावित करते हैं।


लेखक परिचय:   चंदन जैन 3ie के दिल्ली कार्यालय में एक मूल्यांकन विशेषज्ञ हैं भारती नंदवानी इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान (IGIDR),मुंबई में अर्थशास्त्र की सहायक प्रोफेसर हैं।

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

संबंधित विषयवस्तु

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें