भारत के बच्चे दुनिया के सबसे नाटे बच्चों में आते हैं। देश में बच्चों की लंबाई संबंधी जटिलता और विविधता की जांच के लिए इस आलेख में राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। इसमें पाया गया है कि भारत में बच्चों के हाइट-फॉर-एज (उम्र की तुलना में लंबाई) के मामले में 2005-06 और 2015-16 के बीच सुधार हुआ है। हालांकि यह महत्वपूर्ण बात है परन्तु भारत में कुल मिलाकर कम लंबाई और भारत की आर्थिक प्रगति को देखते हुए यह वृद्धि बहुत कम है।
एक आबादी के बच्चों की औसत लंबाई उसके मानव विकास का एक महत्वपूर्ण माप होता है। किसी आबादी में लंबाई का वितरण उस स्वास्थ्य और भलाई को व्यक्त करता है जिसका अनुभव बच्चे कम उम्र में करते हैं। शिशुओं और बच्चों के साथ जो होता है, वह पूरी जिंदगी में उनकी उपलब्धि, स्वास्थ्य, और उत्तर जीविता के लिए महत्वपूर्ण होता है।
दशकों से नीति निर्माता, शोधकर्ता, और बच्चों की भलाई केलिए चिंतित प्रत्येक व्यक्ति इस सामान्य तथ्य पर सहमत रहे हैं कि भारत के बच्चे दुनिया के सबसे नाटे बच्चों में आते हैं। दुर्भाग्यवश, लगभग पिछले एक दशक से हमने इस तथ्य के लिए एक मुख्य स्रोत पर भरोसा किया है। वह स्रोत है 2005-06 में हुआ एक सर्वे।
नए आकड़ों के बिना साल बीत गए। यहां तक कि बंगलादेश, नेपाल, और अन्य देशों ने भी अनेक नए जनसांख्यिक सर्वेक्षणों के आंकड़े जारी कर दिए। अगर किसी शोधकर्ता ने इस बात पर सवाल उठाए हों कि कुछ निर्णयकर्ता बच्चों की लंबाई से संबंधित तथ्यों को लेकर उदासीन हैं, तो उसे माफ किया जा सकता है।
वर्ष 2015 और 2016 में वह बदल गया : भारत का राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) पूरा किया गया। पूरे भारत में सर्वेक्षकों ने पांच वर्ष से कम उम्र के 1,80,867 बच्चों के प्रतिनिधिक सैंपल के माप लिए। शोधकर्ताओं को उम्मीद थी कि तेज आर्थिक विकास और मानव विकास में अन्य सुधारों के साथ बच्चों की औसत लंबाई भी एक दशक पहले से बढ़ गई होगी। लेकिन कितनी? क्या भारत शेष विश्व के समकक्ष पहुंच रहा है? और भारत में भी किसको सबसे अधिक लाभ हो रहा है?
क्या चीज अलग है?
हाल के शोध में हमने एनएफएचएस-4 के बच्चों की लंबाई के आंकड़ों का विश्लेषण किया। सांख्यिकी के शोधकर्ता बच्चों की लंबाई का सारांश ‘हाइट-फॉर-एज स्टैंडर्ड डेविएशन’ के बतौर प्रस्तुत करते हैं जिसमें दर्शाया जाता है कि बच्चों की एक आबादी स्वस्थ बच्चों की लंबाई के वितरण से औसतन कितनी अलग है। हाइट-फॉर-एज के औसत का ‘0’ बताता है कि आबादी स्वस्थ है। दुर्भाग्यवश, भारतीय बच्चों की उप-आबादी के लिए यह संख्या आमतौर पर नकारात्मक रहती है।
वर्ष 2005-06 से 2015-16 के बीच भारत के बच्चों के हाइट-फॉर-एज का औसत कुल मिलाकर -1.87 से बढ़कर -1.48 हो गया। यह बड़ा और महत्वपूर्ण सुधार है जो मानव विकास में हुई उपलब्धियों को दर्शाता है। औसत लंबाई के मामले में ग्रामीण और शहरी बच्चों में, लड़कों और लड़कियों में, उत्तर भारत के मैदानी राज्यों में और शेष भारत में – हर जगह सुधार हुआ है।
आँकड़ोंको देखने का एक तरीका यह है कि भारत में जो स्थान सबसे वंचित हैं, वे अब वैसी बुरी स्थिति में हैं जिसमे संपूर्ण भारत 10 साल पहले था। वर्ष 2005-06 में भारत के 3, 4 और 5 वर्ष उम्र के बच्चों का हाइट-फॉर-एज -2.11 था। यह उन्हें ‘ठिगना’ के रूप में वर्गीकृत करने के लिहाज से लगभग पर्याप्त है। ठिगनापन ऐसी स्थिति है जो अभाव के चरम स्तर को दर्शाती है। वर्ष 2015-16 में ‘फोकस वाले राज्यों’ – बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश – में इन उम्रों वाले औसत ग्रामीण बच्चे का हाइट-फॉर-एज -2.06 है। इसलिए जिन जगहों पर सबसे अधिक नीतिगत फोकस की जरूरत है, वे अब लगभग वहाँ हैं जहां पूरा देश 10 साल पहले था। स्पष्ट तौर पर प्रगति हुई है लेकिन स्थिर असमानता अभी भी मौजूद है।
क्या चीज समान है?
हालांकि भारतीय बच्चे अब औसतन अधिक ऊंचे हैं लेकिन भेदभाव का पहले का पैटर्न अभी भी मौजूद है। एनएफएचएस-3 और एनएफएचएस-4 की तुलना करने पर हर जाति समूह में बच्चों का हाइट-फॉर-एज औसत रूप से बढ़ता दिखता है। फिर भी, वंचित जातियों और सामान्य जातियों के बच्चों के बीच लंबाई के मामले में अंतर पहले जैसा ही है। सर्वे के दोनो चक्रों में अनुसूचित जाति/ जनजाति (अजा/ अजजा) के बच्चे सामान्य जाति के बच्चों से लगभग आधा स्टैंडर्ड डेविएशन कम लंबे थे। वहीं, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बच्चे सामान्य जाति के बच्चों से एक स्टैंडर्ड डेविएशन के लगभग तीन-दसवें हिस्से से कम लंबे थे। इसके अलावा, 2005 में सामान्य जाति के बच्चों की जितनी औसत लंबाई थी, 2015 में अजा/ अजजा बच्चों की औसत भारत के बच्चे दुनिया के सबसे नाटे बच्चों में आते हैं। देश में बच्चों की लंबाई संबंधी जटिलता और विविधता की जांच के लिए इस आलेख में राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। इसमें पाया गया है कि भारत में बच्चों के हाइट-फॉर-एज (उम्र की तुलना में लंबाई) के मामले में 2005-06 और 2015-16 के बीच सुधार हुआ है। हालांकि यह महत्वपूर्ण बात है परन्तु भारत में कुल मिलाकर कम लंबाई और भारत की आर्थिक प्रगति को देखते हुए यह वृद्धि बहुत कम है। उससे अधिक नहीं थी। एनएफएचएस-4 के आंकड़ों में लैंगिक भेदभाव का सूक्ष्म पैटर्न भी मौजूद है।
बाकी दुनिया में भी लंबाई में सुधार हुआ है
वर्ष 2005 से 2015 के बीच भारत में बच्चों की औसत लंबाई में वृद्धि महत्वपूर्ण और खुशी मनाने की बात है। लेकिन हमारा निष्कर्ष है कि प्रगति मामूली और धीमी थी क्योंकि वृद्धि पर किसी संदर्भ में विचार किया जाना चाहिए। एक संदर्भ तो भारत का तेज आर्थिक विकास है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, भारत की प्रति व्यक्ति आय इस अवधि में लगभग दोगुनी हो गई है।
दूसरा महत्वपूर्ण संदर्भ अंतर्राष्ट्रीय तुलना का है। वर्ष 2005-06 में बच्चों के हाइट-फॉर-एज संबंधी वितरण के मामले में भारत का स्थान सबसे नीचे की तरफ था, और 2015-16 में भी ऐसा ही था। कुछ देशों में ही बच्चों की औसत लंबाई उतनी कम थी जितनी फोकस वाले भारतीय राज्यों की 2005-06 में थी। हाल के वर्षों में किसी भी देश में बच्चों की हाइट-फॉर-एज इतनी कम नहीं मापी गई है जितनी फोकस वाले राज्यों में 2015-16 में थी। इन राज्यों में भी बच्चों की औसत हाइट-फॉर-एज 2005 से 2015 के बीच बढ़ी है लेकिन उतनी नहीं कि उनकी स्थिति बदलकर सबसे नीचे से हट जाय, या इथियोपिया, नाइजीरिया, और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसे गरीब बड़े राज्यों से ऊपर हो जाय।
प्रगति इतनी धीमी क्यों रही है?
लंबाई में सुधार सीमित थे क्योंकि लंबाई के निर्धारक धीमी गति से ही बढ़े। एक महत्वपूर्ण निर्धारक खुले में शौच है जिससे रोगाणुऔर रोग फैलते हैं जो बच्चों को पूरी क्षमता के साथ बढ़ने से रोकते हैं। खुले में शौच घटा है, लेकिन 2016 में भी अधिकांश ग्रामीण परिवारों में यह आदत बरकरार थी।
एक अन्य महत्वपूर्ण कारक माताओं का पोषण है। भारत में महिलाएं अंडरवेट हैं विशेषकर उस उम्र में जब उनके गर्भवती होने की संभावना होती है। कम उम्र वाली महिलाओं की निम्न सामाजिक हैसियत उनको और उनको बच्चों को वैसे बॉडी मास से वंचित कर देती है जो उनके लिए अगली पीढ़ी के विकास और पोषण के लिहाज से जरूरी होता है।
भारत में ठिगनापन के मूल कारण सामाजिक शक्तियों और सामाजिक असमानता – माताओं के पोषण के मामले में लैंगिक भेदभाव, और खुले में शौच के मामले में छुआछूत – को व्यक्त करते हैं। भारत में बच्चों के स्वास्थ्य और लंबाई में सुधार के लिए इन कारकों और ताकतों को प्रयासों के केंद्र में होना चाहिए।
लेखक परिचय: डीन स्पीयर्स अमेरिका के ऑस्टिन स्थित टेक्सास विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर और भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आइएसआइ) के दिल्ली केंद्र में विजिटिंग इकोनॉमिस्ट हैं। डाएन कॉफी अमेरिका के ऑस्टिन स्थित टेक्सास विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र और जनसंख्या अनुसंधान की असिस्टेंट प्रोफेसर और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली में विजिटिंग रिसर्चर हैं।
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