मानव विकास

भारत में महिला बाल विवाह के संबंध में एक डेटा अध्ययन

  • Blog Post Date 03 अगस्त, 2023
  • दृष्टिकोण
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 के उपलक्ष्य में I4I के महीने भर चलने वाले अभियान के दौरान प्रस्तुत अपने लेख में, क्वांटम हब के शुभम मुदगिल और स्वाति राव देश भर के संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में बाल विवाह पर डेटा हाइलाइट्स प्रस्तुत करने के लिए एनएफएचएस पर आधारित एक नवीनतम डेटासेट का उपयोग करते हैं। वे महिला बाल विवाह की व्यापकता और पिछले वर्षों में कुछ राज्यों में इसकी स्थिति में हुए सुधार का पता लगाते हैं। साथ ही वे बाल विवाह की कम रिपोर्टिंग के मुद्दे और महिला बाल विवाह दरों में कमी सुनिश्चित करने के लिए महिला सशक्तिकरण के एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी चर्चा करते हैं।

बाल विवाह बचपन के अंत का संकेत है। यह न केवल कम उम्र में विवाहिता लड़कियों के लिए, बल्कि विस्तृत पैमाने पर समाज के लिए भी एक बड़े पैमाने की गंभीर समस्या है। अध्ययनों से पता चलता है कि बाल विवाह से लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और आर्थिक अवसरों तक पहुंच प्रतिबंधित हो जाती है और साथ ही इसका बच्चों में अल्पपोषण जैसा अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव भी पड़ता है (फील्ड एवं अन्य 2016)।

महिलाओं के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को 15 वर्ष से बढ़ाने के लिए, वर्ष 1978 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 में संशोधन किया गया था। इसके लगभग 45 साल बाद, आज महिलाओं के विवाह की न्यूनतम कानूनी उम्र 18 साल है, फिर भी देश भर में महिला बाल विवाह एक व्यापक समस्या बनी हुई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2019-21 के दौरान देश में महिला बाल विवाह की 23.3% घटनाएं हुईं। इस आंकड़े की भयावहता विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि वर्तमान में, भारत में 19 वर्ष से कम उम्र की लगभग 22.5 करोड़ लड़कियां होने का अनुमान है (राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग, 2020)।

अब तक बाल विवाह के बारे में एनएफएचएस डेटा जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एकत्रित और उपलब्ध कराया गया है। इसके परिणामस्वरूप संसदीय क्षेत्रों (पीसी) के निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपने-अपने क्षेत्र की निगरानी के लिए उपलब्ध जिला-स्तरीय आँकड़ों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। क्योंकि पीसी और जिले की सीमाएँ ओवरलैप नहीं होती, इसलिए यह नहीं माना जा सकता है कि जिला-स्तरीय डेटा से पीसी के लिए सटीक अनुमान मिल पाएगा। उदाहरण के लिए, कन्‍नौज संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का नाम कन्‍नौज जिले से से मेल खाता है परन्तु वास्तव में यह तीन अलग-अलग जिलों- कन्‍नौज, औरैया और कानपुर देहात में फैला हुआ है। वर्ष 2022 की स्थिति के अनुसार भारत में 543 लोकसभा क्षेत्र और 766 जिले हैं।

यह देखते हुए कि संसद सदस्य सीधे अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं, पीसी-स्तरीय आँकड़ों की कमी के चलते सार्थक, निर्वाचन क्षेत्र-विशिष्ट नीति की चर्चा में बाधा उत्पन्न होती है। और यह मतदाताओं के साथ सांसदों के जुड़ाव को बाधित करती है। इस डेटा अध्ययन में, हम विशेष रूप से संसदीय निर्वाचन क्षेत्र (पीसी) स्तर पर मैप किए गए एनएफएचएस डेटा का उपयोग करके भारत में महिला बाल विवाह के रुझानों का पता लगाते हैं।

हमारा उद्देश्य इस मामले की स्थिति को उजागर करना और भारत में महिला बाल विवाह के उच्च स्तर वाले क्षेत्रों पर ध्यान आकर्षित करना है। साथ ही, इस समस्या को हल करने के लिए संभावित समाधानों पर चर्चा करना भी है। बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) 2006 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉस्को) 2012 के लागू होने के बावजूद, बाल विवाह की निरंतर व्यापकता से पता चलता है कि केवल आपराधिक मुकदमा ही बाल विवाह का निवारक उपाय नहीं हो सकता और न ही शायद भूतकाल में बाल विवाह के भागीदार परिवारों पर पूर्वव्यापी कार्रवाई की जा सकती है।

तालिका-1: एनएफएचएस सर्वेक्षणों में महिला बाल विवाह की राष्ट्रीय स्तर पर व्यापकता  

NFHS Round

Prevalence of Female Child Marriage

NFHS-1 (1992-93)

54.2%

NFHS-2 (1998-99)

50.0%

NFHS-3 (2005-06)

47.4%

NFHS-4 (2015-16)

26.8%

NFHS-5 (2019-21)

23.3%

वर्ष 1992 के अपने पहले राउंड के बाद से, एनएफएचएस ने उन महिलाओं का सर्वेक्षण करके महिला बाल विवाह को मापा है जिनकी शादी पहले 18 साल की उम्र में हुई थी। हालांकि एनएफएचएस के पांच सर्वेक्षणों के आंकड़े, जैसा कि तालिका-1 में प्रस्तुत है, दर्शाते हैं कि इस प्रथा में गिरावट आ रही है, लेकिन बाल विवाह का उन्मूलन अभी तक नहीं हुआ है। वास्तव में, आकृति-1 में, महिला बाल विवाह के उच्च स्तर वाले पीसी के लाल रंग के घने समूहों को पूरे देश में देखा जा सकता है।

आकृति-1. एनएफएचएस-5 में महिलाओं के बाल विवाह की व्यापकता 

नोट : नीले से लाल रंग तक, महिलाओं के बाल विवाह के सबसे कम (और अधिकतम) प्रसार वाले संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के निचले (और सबसे ऊपर के) 10 प्रतिशतक को दर्शाया गया है।

बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और आंध्र प्रदेश जैसे सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्यों में, एनएफएचएस द्वारा सर्वेक्षित आयु वर्ग की प्रत्येक 4 लड़कियों में से 1.5 की शादी कम उम्र में कर दी गई थी।      महिला बाल विवाह की दर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में बहुत भिन्न है। जहाँ नीचे के 10% में पीसी में यह            दर 41-61% के बीच है, वहीँ शीर्ष 10% में 2.7-8% है। दुर्भाग्यपूर्ण भारत में ऐसा कोई संसदीय क्षेत्र नहीं है, जहां बाल विवाह बंद हो गया है।

वर्ष 2014-15 से संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में परिवर्तन

राष्ट्रीय महिला बाल विवाह दर एनएफएचएस-4 (2015-2016) में 26.8% थी, जो कम होकर एनएफएचएस-5 (2019-2021) में 23.3% हो गई है। इन पाँच वर्षों में हुई प्रगति उल्लेखनीय है, 77% संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है (आकृति-2 देखें)। हालाँकि शेष संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में बाल विवाह दर में औसतन 3.3 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है। कुछ पीसी में तो 10 प्रतिशत अंकों से भी अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।

आकृति-2. बाल विवाह के स्तर में एनएफएचएस-4 से एनएफएचएस-5 में परिवर्तन

झाँसी (उत्तर प्रदेश), सेलम (तमिलनाडु), और परभणी (महाराष्ट्र) के संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में एक अजीब मामला सामने आता है। इन पीसी में महिला बाल विवाह दर में बढ़त दर्ज़ की गयी परन्तु इनके आसपास सारी पीसी में महिला बाल विवाह दर में गिरावट आई। इन अपवादों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि वृद्धि के पीछे के कारणों की समय से पहचान की जा सके और प्रभावी समाधानों के माध्यम से उनका हल निकला जा सके।

बाल विवाह के उच्च स्तर वाले बड़े राज्यों में प्रगति का मार्ग

राजस्थान और मध्य प्रदेश दोनों बड़े भारतीय राज्य हैं जहां महिला बाल विवाह का उच्च स्तर है (आकृति-3 देखें)। हालांकि एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 के बीच, इन निकटवर्ती राज्यों ने जबरदस्त प्रगति दर्ज की। जहां राजस्थान में बाल विवाह का प्रचलन 35.4% से घटकर 25.4% हो गया, वहीं मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा 32.4% से घटकर 23.1% हो गया है (आकृति-4)।

आकृति-3. एनएफएचएस-5 के अनुसार राजस्थान (बाएं) और मध्य प्रदेश (दाएं) में बाल विवाह का स्तर

आकृति-4. राजस्थान (बाएं) और मध्य प्रदेश (दाएं) द्वारा बाल विवाह उन्मूलन में की गई प्रगति

यह उत्साह जनक प्रवृत्ति आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में भी दिखाई दे रही है। हालांकि संबंधित राज्य सरकारों को अपने प्रयासों में लगातार जुटे रहना चाहिए, क्योंकि उनके अधिकतर संसदीय क्षेत्र अभी भी 'रेड' ज़ोन में हैं। इसके इलावा, बीकानेर (राजस्थान) और मुरैना (म.प्र.) जैसे उन पीसी के लिए बढ़े हुए प्रयास किए जाने चाहिए, जो इसी पांच साल की अवधि के दौरान पीछे सरक गए हैं।

बाल विवाह की कम रिपोर्टिंग : एनसीआरबी बनाम एनएफएचएस

हालांकि एनएफएचएस डेटा से पता चलता है कि देश के कई हिस्सों में महिला बाल विवाह अभी भी प्रचलित है, लेकिन इससे सम्बद्ध कानून के चलते ऐसे विवाहों की जानकारी और शिकायतें यानी रिपोर्टिंग बहुत कम होती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक 'भारत में अपराध' रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2001 के बाद से अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, नागालैंड और सिक्किम जैसे राज्यों ने पीसीएमए के तहत शून्य मामले दर्ज किए हैं। जबकि एनएफएचएस अभी भी इन चारों राज्यों में बाल विवाह के एक महत्वपूर्ण प्रचलन की तस्वीर दिखता है (आकृति-5 देखें)।1

आकृति-5. एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 के अनुसार चुनिंदा राज्यों में बाल विवाह का स्तर

वर्ष 2001-10 के बीच, एनसीआरबी के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर प्रति वर्ष औसतन लगभग 80 बाल विवाह के मामले दर्ज किए गए। वर्ष 2011-20 के दौरान यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 360 हो गया। यह राष्ट्रीय औसत एनएफएचएस द्वारा अनुमानित संख्या से काफी कम है, जिसमें लगातार राष्ट्रीय स्तर पर बाल विवाह की उच्च दर दर्ज की गई है– वर्ष 2005-06 के सर्वेक्षण में 47.4%, वर्ष 2015-16 में 6.8% और वर्ष 2019-21 में 23.3%। हालांकि कानून के कारण कुछ बदलाव आए हैं, लेकिन यह एक प्रथा के रूप में बाल विवाह की व्यापक सामाजिक स्वीकृति और परिवार के सदस्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की संभावित अनिच्छा को खत्म करने में सक्षम नहीं हो पाया है।

वैकल्पिक समाधान

महिला बाल विवाह महिलाओं की एजेंसी और उनके सशक्तिकरण के एक बड़े अंतर्निहित मुद्दे का लक्षण है। अध्ययनों से पता चलता है कि एक महिला की शादी की उम्र उसकी शिक्षा, आय और प्रचलित सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों (देसाई 2010) से जुड़ी हुई होती है। बाल विवाह एक जटिल मुद्दा है और इससे निपटने के लिए एक ऐसे समग्र, समानयन दृष्टिकोण और एक बॉटम-उप अप्रोच की आवश्यकता है, जिसमें आपराधिक सजा पर विशेष ध्यान देने के बजाय, महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक उत्थान पर अधिक ध्यान दिया जाए।

लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करके और उनके वित्तीय सशक्तिकरण को सुनिश्चित करके लड़कियों के बाल विवाह की समस्या के समाधान के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और सुकन्या समृद्धि योजना जैसी केंद्रीय योजनाएं लागू की गई हैं। इसी तर्ज पर, विभिन्न राज्य सरकारों ने लड़कियों और महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए योजनाएं और कार्यक्रम लागू किए हैं।

पश्चिम बंगाल में कन्याश्री प्रकल्प योजना एक ऐसे कार्यक्रम का उदाहरण है, जो लड़कियों के लिए निरंतर शिक्षा और स्कूलों में उनकी पढ़ाई जारी रखने पर ध्यान केंद्रित करती है। यह योजना लड़कियों की वित्तीय स्वतंत्रता के लिए कुछ ज़रूरी शर्तों के साथ, उनको सीधे नकद रकम प्रदान करती है। साथ ही योजना में आने वाली लकड़ियों के समुदायों में विवाह के मानदंडों को पर भी ध्यान देती है। इसी तर्ज पर, वर्ष 2015 में कर्नाटक हेल्थ प्रमोशन ट्रस्ट ने 51 गांवों में लड़कियों और महिलाओं के जीवन परिणामों को बेहतर बनाने के लिए एक स्फूर्ति परियोजना शुरू की। इस परियोजना का उद्देश्य किशोर लड़कियों को सशक्त बनाना और उनके माता-पिता को रोल मॉडल के रूप में काम करने के लिए प्रोत्साहित करना है ताकि लड़कियों की शिक्षा और शादी की उम्र से जुड़े प्रचलित मानदंडों को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया जा सके। इस परियोजना को कोप्पल जिले (सिंह 2018) में मिली सफलता ने राज्य के अन्य जिलों में भी इसके विस्तार को प्रेरित किया है।

हालांकि बाल विवाह से निपटने के लिए आपराधिक मुकदमा चलाना भी एक रणनीति के तौर पर बनी रह सकती है, लेकिन महिला बाल विवाह और महिलाओं की व्यक्तिगत एजेंसी के बीच के संबंधों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। लड़कियों और महिलाओं को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं को मज़बूत करने से पूरे भारत में महिला बाल विवाह की व्यापकता को कम करने, और शायद उसे खत्म करने, पर बड़ा और स्थायी प्रभाव पड़ने की संभावना है।

इस अध्ययन में इंडिया पॉलिसी इनसाइट्स (आईपीआई) पर उपलब्ध डेटा का उपयोग किया गया है।

टिप्पणी :1. किसी क्षेत्र में बाल विवाह के स्तर का पता लगाने के लिए एनएफएचएस महिलाओं का सर्वेक्षण करके यह पता लगाता है कि क्या उनकी शादी 18 वर्ष से पहले हुई थी। दूसरी ओर एनसीआरबी केभारत में अपराधरिपोर्ट में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत दर्ज मामलों की संख्या शामिल रहती है। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : शुभम मुदगिल क्वांटम हब में सार्वजनिक नीति सहयोगी हैं। स्वाति राव क्वांटम हब में सार्वजनिक नीति विश्लेषक हैं। 

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