मानव विकास

शौचालय तक पहुँच और महिलाओं की सार्वजनिक सुरक्षा

  • Blog Post Date 02 अक्टूबर, 2019
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भारत सरकार ने 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन का शुभारंभ किया था। इस कार्यक्रम का लक्ष्‍य ग्रामीण भारत में शौचालय युक्त घरों का अनुपात वर्ष 2019 तक 38.8% से बढ़ाकर 100% करने का था। महाजन और सेखरी के इस लेख में यह जांच की गई है कि इस कार्यक्रम के परिणामस्वरूप घरों में शौचालय की सुविधा में हुई वृद्धि का प्रभाव महिलाओं के खिलाफ हिंसक अपराधों के आशंका पर किस प्रकार पड़ता है। शौचालयों की सुविधा मिलने से महिलाओं पर यौन-उत्पीड़न में कमी तो आती है, लेकिन इनसे बलात्कार की घटनाओं में संगत परिवर्तन नहीं देखे गए हैं।

मई 2014 की शाम में, उत्तर-पश्चिमी भारत के एक ग्रामीण इलाके में जब दो किशोरियां अकेले अपने घर के पास एक खुले मैदान में शौच के लिए निकली थीं तब उनके साथ हुए बलात्कारों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इसने ग्रामीण भारत में उन महिलाओं की दुर्दशा को उजागर किया, जो घर में शौचालय न होने के कारण बाहर अंधेरे में शौच के लिए जाती थीं। इस घटना के बाद, भारत में आगामी नीति निर्माण में शौचालय बनाने को प्राथमिकता दी जाने लगी।

स्वच्छ भारत मिशन: युद्धस्तर पर शौचालयों का निर्माण

भारत में पिछले 15 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय में बड़ी वृद्धि हाने के बावजूद खुले में शौच करने वालों की दर लगातार ऊंची बनी हुई है। यद्यपि खुले में शौच करने वाले लोगों का अनुपात, जो वर्ष 2000 में 66% से घटकर वर्ष 2015 में 40% हो गया था, लेकिन यह अभी भी दुनिया के औसत 12% और उप-सहारा अफ्रीकी देशों के औसत 23% (विश्व विकास सूचकांक) से काफी अधिक है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस मुद्दे को हल करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ वर्ष 2014 में स्‍वच्‍छ भारत मिशन को शुरू किया जो अपने पूर्ववर्ती कार्यक्रमों, जैसे केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (1986-1999), संपूर्ण स्वच्छता अभियान (2000-2011) और निर्मल भारत अभियान (2012-14), जिन्‍होंने सीमित सफलता प्राप्त की थी, की तुलना में काफी अधिक सफल रहा है। शौचालय युक्त घरों का अनुपात वर्ष 1991 में 24% से बढ़ कर वर्ष 2011 में 47% हो गया (जनगणना 1991, 2011)। दूसरी ओर, स्‍वच्‍छ भारत मिशन के अंतर्गत पूरे भारत में 9 करोड़ 76 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है। 2019 तक के आधिकारिक आंकड़े यह दावा करते हैं कि ग्रामीण भारत के 99.9% घरों में शौचालय हैं।1

आकृति 1 जिला स्‍तर पर शौचालयों की उपलब्धता के साथ-साथ यह भी दर्शाता है कि हमारे अध्ययन के पहले और अंतिम वर्ष (2012-2016) के बीच इसमें किस प्रकार परिवर्तन आया है। यह स्पष्ट है कि शौचालयों की उपलब्धता में वृद्धि हुई है, लेकिन जिलों में इसकी वृद्धि दर भिन्न-भिन्‍न है। अभी तक इस कार्यक्रम का मूल्यांकन विभिन्न परिणामों पर इसके प्रभावों के संदर्भ में नहीं किया गया है। इस लेख में हमने अपने हालिया अध्ययन के निष्कर्षों को साझा किया है जो महिलाओं की सार्वजनिक सुरक्षा पर स्‍वच्‍छ भारत मिशन के प्रभाव का मूल्यांकन Sहै।2

आकृति 1. ग्रामीण घरों में शौचालय का अनुपात

(क) 2012

(ख) 2015

स्रोत: पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मंत्रालय (MDWS) भारत।

महिलाओं की सुरक्षा पर प्रभाव का आकलन

खुले में शौच या स्वच्छता सुविधाओं की उपलब्धता के परिणामों पर पहले के शोध ने स्वास्थ्य और मानव पूंजी (डुफ़्लो और अन्य 2015, पाटिल और अन्य 2014, गेरुसो और स्पियर्स 2018, कोफ़्फ़ी और अन्य 2017, हैमर और स्पियर्स 2016, स्पियर्स और लैम्बा 2016) पर और मृत्यु दर (अलसन और गोल्डिन 2019) पर ध्यान केंद्रित किया है। हालांकि, घर में शौचालय लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ा सकता है। हमारा अनुमान है कि घर में शौचालय होने से महिलाओं के उनके घर से बाहर अंधेरे में सुनसान इलाकों में रहने की समयावधि में कमी आ जाती है। इसके परिणामस्‍वरूप, महिला संबन्धित अपराधों में कमी आती है।

चूंकि वर्ष 2016 तक के ही अपराध डेटा3 उपलब्‍ध है, हमने रिपोर्ट किए गए अपराधों (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) और 2012-2016 के दौरान शौचालयों के निर्माण (पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय (MDWS)) के आंकड़ों को मिला कर जिला स्‍तरीय पेनल डेटा का एक तुलनात्‍मक अध्‍ययन किया है। शौचालय निर्माण और महिलाओं के खिलाफ अपराधों के बीच एक वर्गगत संबंध होने के परिणामस्वरूप भ्रामक संबंध प्रदर्शित हो सकते हैं। अपराधों को कम करने वाले अन्य अनदेखे तथ्‍य भी हो सकते हैं, जो एक जिले में शौचालय निर्माण को भी प्रभावित करते हों। इसलिए, हमने यह पता लगाने के लिए कि घर में शौचालय का उपयोग महिलाओं की सुरक्षा को कैसे प्रभावित करता है, दो तरीकों का उपयोग किया:

1) पहला, हमने समानीत दृष्टिकोण का प्रयोग करते हैं। इस पद्धति में हमने पिछले वर्षों में जिले के भीतर शौचालय निर्माण में हुए परिवर्तन के आंकडे का उपयोग किया क्‍योंकि स्‍वच्‍छ भारत अभियान के चलते उनकी संख्‍या में बढ़ोतरी हुई है। जिलों की समय अनिश्‍चर विशेषताएँ जो संभवतः अधिक शौचालयों के निर्माण का कारण बनी है, हमने उनकी उत्‍तरदेयता के लिए जिला-नियत प्रभावों को मानक बनाया है। हमने किन्‍हीं भी स्‍थूल परिवर्तनों का कारण बताने हेतु वर्ष-विशेष के नियत प्रभावों को भी शामिल किया है जो किसी विशेष वर्ष में होते हैं तथा जो शौचालय निर्माण और अपराध दोनों को प्रभावित करते हैं।4

2) दूसरा, हमने एक गैर-यादृच्छिक प्लेसमेंट रणनीति का उपयोग किया जो इस तथ्‍य को प्रकट करती है कि शौचालयों का अधिक निर्माण उन क्षेत्रों में हुआ है जहां राज्य विधायी सदस्यों की संख्‍या का एक बड़ा हिस्सा वर्ष 2014 में राष्ट्रीय सरकार बनाने वाली पार्टी यानि भाजपा के सदस्‍यों का था। हम करीबी चुनावों के नतीजों का उपयोग करते हैं, क्योंकि एक भाजपा उम्मीदवार का करीबी चुनाव जीतना प्रशंसनीय रूप से बाह्य है। इस प्रकार, भाजपा के साथ गठबंधन करके विधान सभा चुनाव विजेताओं का अनुपात शौचालय निर्माण में भिन्नता उत्पन्न करता है जो हमें निष्पक्ष परिणाम देता है। इसके अलावा, एक जिले (अशर और नोवोसैड 2017) के समग्र आर्थिक विकास पर राजनीतिक संरेखण के संभावित प्रभाव को पता लगाने के लिए, हमने प्रारंभिक जनसांख्यिकी और विकास परिणामों के कारण अपराधों में रुझान के साथ-साथ नाइटलाइट्स को भी नियंत्रण में रखा है।

हमने क्‍या पाया

हमारे आकलन यह प्रदर्शित करते हैं कि जिन क्षेत्रों में अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया था वहां यौन हिंसा और बलात्कारों में कमी आई है। वे बताते हैं कि शौचालय वाले घरों का प्रतिशत 0 से 100% होने पर यौन हमलों में 22% की उल्‍लेखनीय कमी आएगी। हम यह भी पाते हैं कि इससे बलात्कारों में 14% की गिरावट आती है लेकिन यह सटीक रूप से मापित नहीं है।

अनुमानों से यह प्रदर्शित होता है कि 2015-16 के दौरान, भाजपा के साथ जुड़े विधायकों का शौचालय निर्माण की गति पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अनुमानों का द्वितीय चरण यौन हमलों के स्‍वरूप में आई कमी के पिछले परिणामों की पुष्टि करता है। उपांतिक प्रभाव अब शौचालय उपलब्धता में 100 प्रतिशत बिंदु के परिवर्तन के साथ बड़ा हो गया है, जिसके कारण यौन हमलों में 70% तक कमी आई है।

2014-2016 के दौरान, भारत में शौचालयों वाले घरों के प्रतिशत में 22% की वृद्धि हुई है। इसका निहितार्थ है कि इस अवधि के दौरान शौचालय के निर्माण के कारण महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा में 15% की कमी आई है। ये परिणाम दिखलाते हैं की राज्य-स्तरीय विशेषताओं में रुझानों से परिणाम प्रभावित नहीं होते। बलात्कार के संबंध में ये परिणाम हमारे अनुभवजन्य विशिष्टताओं के प्रति संवेदनशील हैं और हमारे परीक्षणों पर खरे नहीं उतरते हैं। इस अवधि के दौरान बलात्‍कार की रिपोर्टिंग और बलात्‍कार से संबंधित कानूनों में भी महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। इन परिवर्तनों के बाद 2014 में स्‍वच्‍छ भारत मिशन को लॉन्च किया गया था। इसलिए, हम इन अन्य परिवर्तनों के कारण बलात्कारों पर पड़ने वाले किसी भी संभावित सांख्यिकीय प्रभाव का अपने आंकड़ों से अनुमान नहीं लगा सकते।

रिपोर्टिंग बनाम अन्य तंत्र

महिलाओं के खिलाफ अपराधों की रिपोर्टिंग अपेक्षानुरूप नहीं की जाती। अभी तक चूंकि इस रिपोर्टिंग की प्रवृत्ति समय-निश्‍चर है और क्षेत्रवार भिन्‍न-भिन्‍न होती है, यह हमारे अनुभवजन्य कार्यप्रणाली के लिए जिम्मेदार है। लेकिन क्या हमारा परिणाम रिपोर्टिंग में बदलाव से प्रेरित हो सकता है? हम बताते हैं कि ये प्रभाव ग्रामीण आबादी वाले जिलों (जहां स्‍वच्‍छ भारत मिशन शौचालय निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया था) और सबसे कम विकसित क्षेत्रों में सर्वाधिक मजबूत हैं। हमारे परिणामों को समझाने के लिए रिपोर्टिंग के पक्ष को इन सभी उपांतों पर परिवर्तित होना होगा। यह एक चिंता का विषय है कि इन अपराधों की रिपोर्टिंग भारत में 2012-13 के दौरान अधिक हो रही थी, खासकर उत्तरी राज्यों में। हमारे परिणाम यौन हमलों के लिए वर्ष 2012-13 को हटाने के बाद मजबूत हैं। यदि कार्यक्रम का क्रियान्वयन अधिक जागरूकता के साथ होता और बदले में रिपोर्टिंग ऊपर जा रही होती, तो नकारात्मक प्रभाव केवल तभी प्राप्त होते जब घटनाओं में कमी बढ़ी हुई रिपोर्टिंग को मात दे देती। इसलिए, उन क्षेत्रों में जहां अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया था, हमारे नकारात्मक प्रभाव घटनाओं में कमी को प्रतिबिंबित करते हैं। हम चोरी, अपहरण और हत्या जैसे अन्य अपराधों पर लगातार नकारात्मक और महत्वपूर्ण प्रभावों पर विचार नहीं करते हैं, जो हमारे परिणामों को प्रभावित करने वाले क्रियाविधि के रूप में अपराधों में सामान्य कमी के विरुद्ध होता है।

उपसंहार

हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि घर में शौचालय की उपलब्धता एवं उपयोग महिलाओं की सार्वजनिक सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। सामाजिक और वित्तीय लागतों को कम करने के अलावा, सुरक्षा पर चिंता महिलाओं द्वारा मानव पूंजी में कम निवेश करने के साथ-साथ उनके कल्याण को भी कम कर सकती है (ब्रोकर 2017, चक्रवर्ती एट अल. 2018)। हम दिखाते हैं कि विकासशील देशों में स्वच्छता सुविधाओं में सुधार महिलाओं की बढ़ती सार्वजनिक सुरक्षा के लिए एक माध्‍यम हो सकता है। हमारे निष्कर्ष नीति के संबंध में महत्वपूर्ण रूप से प्रासंगिक हैं। एक नीति साधन के रूप में, स्‍वच्‍छ भारत मिशन ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में घर में शौचालय की उपलब्धता बढ़ाने में सफल रहा, जिसके कारण महिलाओं पर होने वाली यौन हिंसाओं में कमी आई। खुले में शौच पर घर की स्वच्छता सुविधाओं के लिए जोर देने वाली नीतियां न केवल मानव पूंजी और स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं - बल्कि महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण को भी बढ़ाती हैं।

लेखक परिचय: कनिका महाजन सोनीपत  (हरियाणा) में स्थित अशोका विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। शीतल सेखरी वर्जिनिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की असोसिएट प्रोफेसर हैं।

नोट्स

  1. यद्यपि खुले में शौच में कमी ठीक उसी अनुपात में नहीं हो सकती, पर शौचालय उपलब्धता वाले और खुले में शौच के बीच एक उच्‍च सहसंबंध है। राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वच्‍छता सर्वेक्षण (एनएआरएसएस) में यह ज्ञात हुआ है कि जिन घरों में शौचालय हैं उनमें रहने वाले 96.5% व्‍यक्ति अपने शौचालयों का नियमित इस्‍तेमाल करते हैं।
  2. श्रीनिवासन (2015) ने भारत में बड़े पैमाने पर किए गए वर्गगत सर्वेक्षण में पाया है कि महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा और घरों में शौचालयों की कमी के बीच सह संबंध है।
  3. पैनल डाटा (देशांतरीय डाटा के नाम से भी जाना जाता है) वह डाटा सैट है जिसमें बहु इकाई को समय में पर्यवेक्षित किया जाता है।
  4. ये परिणाम कई अलग-अलग अनुभवजन्य विशिष्टताओं के लिए मजबूत हैं।
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