गरीबी तथा असमानता

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और कोविड-19

  • Blog Post Date 31 अगस्त, 2021
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Ruchira Boss

International Food Policy Research Institute

R.Boss@cgiar.org

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Mamata Pradhan

Independent researcher

pradhan.mamata@gmail.com

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Devesh Roy

International Food Policy Research Institute

d.roy@cgiar.org

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Sunil Saroj

International Food Policy Research Institute

s.saroj@cgiar.org

2013 में लागू किया गया राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में मूलभूत सुधार ले आया और सबसे महत्वपूर्ण इसके जरिये कानूनी रूप से 'भोजन का अधिकार' दिया गया। यह लेख बिहार, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में किये गए प्राथमिक सर्वेक्षण के आधार पर, एनएफएसए के लागू होने के बाद और कोविड-19 संकट के दौरान, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में हुए परिवर्तनों का पता लगाता है।

 

2013 में लागू किया गया राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य-आधारित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम है जो 80 करोड़ व्यक्तियों (ग्रामीण आबादी का 75% और शहरी आबादी का 50%) को कवर करता है और इसकी लागत 4,400 अरब रुपये (2017 में) है (भट्टाचार्य एवं अन्य 2017)। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) नागरिकों को अत्यधिक रियायती खाद्यान्न उपलब्ध कराने हेतु, एनएफएसए को इसके उचित मूल्य की दुकानों (एफपीएस) के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क से लागू करने का एक माध्यम है।

एनएफएसए से पहले, परिवारों को अंतर पात्रताके साथ तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था: गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल), गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल), और सबसे गरीब को अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई)। एनएफएसए के अंतर्गत परिवारों को दो समूहों में वर्गीकृत किया गया: एनएफएसए-प्राथमिकता वाले घर (एनएफएसए-पीएचएच) और एएवाई। पीएचएच श्रेणी के लिए प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम (किग्रा) खाद्यान्न का भत्ता और एएवाई के लिए प्रति परिवार 35 किग्रा निर्धारित किया गया था। चावल, गेहूं और मोटे अनाज के लिए क्रमशः 3, 2, और 1 रुपये प्रति किलो की कीमत तय की गई थी। एनएफएसए का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह था कि इसके जरिये कानूनी रूप से 'भोजन का अधिकार' निर्धारित किया गया जिसके तहत हकदार को खाद्यान्न का कोटा प्रदान करने में विफल सरकार मुआवजे के लिए उत्तरदायी है (बेज़बरुआ 2013)। एनएफएसए के जरिये लाए गए अन्य मौलिक और संस्थागत सुधारों में से एक शिकायत निवारण प्रणाली (जीआरएस) का प्रावधान और उसका सुदृढ़ीकरण है ।

एनएफएसए के बाद और कोविड-19 महामारी के दौरान पीडीएस तक पहुंच

एनएफएसए के कारण पीडीएस में हुए बड़े पैमाने पर बदलाव के बावजूद इसके लाभार्थियों पर पड़े प्रभाव काफी हद तक अज्ञात हैं। इसका एक कारण आंकड़ों की कमी है, क्योंकि 2011 में 68वें दौर के बाद से राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) (उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण) नहीं किया गया। कोविड-19 महामारी के कारण, पीडीएस को खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने का काम सौंपा गया जिसमें इसके पोर्टफोलियो का विस्तार कर मुफ्त में अनाज उपलब्ध कराना था। हालाँकि, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई)2के माध्यम से कोविड-19 राहत के रूप में पीडीएस को कितनी अच्छी तरह से संचालित किया गया, इसका आकलन नहीं किया गया है। हाल के शोध (रॉय एवं अन्य 2021) में हम बिहार, ओडिशा और पूर्वी उत्तर प्रदेश (ईयूपी)3 में प्राथमिक सर्वेक्षणों के आधार पर एनएफएसए के लागू होने के बाद और कोविड-19 के दौरान की स्थिति का आकलन करके इन अंतरालों को स्पष्ट करना चाहते हैं।

यह अध्ययन आंशिक रूप से 2014 (प्रधान 2018) में किए गए नमूने और शोध पर आधारित है, जब इन राज्यों में एनएफएसए को अभी तक लागू नहीं किया गया था। एनएफएसए को धीरे-धीरे चरणों में मार्च 2014 (बिहार), नवंबर 2015 (ओडिशा), और मार्च 2016 (यूपी) (पुरी 2017) से लागू किया गया था। प्रधान (2018) से पता चलता है कि न केवल मात्रा, कीमतों और अनाज की गुणवत्ता के संबंध में, बल्कि आय और स्थान के समान पात्रता मानदंड के अधीन होने पर भी परिवारों के पीडीएस के बारे में अलग-अलग अनुभव हैं। खाद्यान्नों को वास्तविक रूप में प्राप्त करने और अनुभवों में, आर्थिक स्थिति और लैंगिक आधार पर अंतर (प्रधान और रॉय 2019) पाए गए।

हम, हाल के एक सर्वेक्षण में पीडीएस तक पहुँचने और पात्रताओं का उपयोग करने के संदर्भ में एनएफएसए के लागू होने के पूर्व और बाद के अनुभवों की तुलना करने के लिए जानकारी एकत्र की, और यह पता लगाया कि एनएफएसए के लागू होने के कारण, परिवार श्रेणी और राज्य-विशिष्ट समायोजन के चलते पीडीएस पात्रता में हुए बदलाव के बारे में उत्तरदाताओं को पता है या नहीं। यह सर्वेक्षण कोविड-19 के दौरान किए गए पीडीएस वितरण और वन नेशन वन राशन कार्ड (ओएनओआरसी)4जैसे सुधारों के बारे में जागरूकता और प्राथमिकताओं को भी देखता है, जो पहले से प्रस्तावित थे लेकिन कोविड-19 के सन्दर्भ में भारत की प्रतिक्रिया के एक भाग के रूप में लागू किये गये थे। हमारे सर्वेक्षण की अवधि के दौरान ओएनओआरसी पर कार्य चल रहा था।

सेवाओं की पात्रता: एनएफएसए के लागू होने के बाद राशन कार्ड तक पहुंच

हमारे सर्वेक्षण के नमूने में, कई ऐसे उत्तरदाता जो एनएफएसए लागूहोने के पहले की अवधि में एएवाई श्रेणी में थे, उन्हें एनएफएसए के तहत पीएचएच सूची (बिहार में 69%) में शामिल कर दिया गया और कई बिना राशन कार्ड के पीएचएच (बिहार में 95% और ओडिशा और यूपी में 93%) में शामिल कर दिए गए। चित्र 1 इस बदलाव को दर्शाता है, आंतरिक गोला मूल रूप से बीपीएल, एपीएल, एएवाई, एएनपी (अन्नपूर्णा, जिसमें निम्न-आय वाले वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं) को और बिना राशन कार्ड श्रेणियों को और उनको एनएफएसए-पीएचएच एवं एनएफएसए-एएवाई श्रेणी में शामिल कर दिए जाने (बाहरी गोला) के प्रतिशत को इंगित करता है। यह बदलाव विभिन्न राज्यों में अलग-अलग गति से हुआ(चित्र 2) है। 2013-14 में बिहार में लगभग 40% और यूपी में 23% (ईयूपी में 15%) को पीएचएच कार्ड प्राप्त हुए। ओडिशा में अधिकांश बदलाव 2015-16(36%) और 2017-18(36%) में हुआ। 2017-18 में ईयूपी में, 40% को पीएचएच कार्ड प्राप्त हुए।

चित्र 1. एनएफएसए-पूर्व और बाद की कार्ड श्रेणियों में राशन कार्डधारकों में बदलाव

चित्र 2. एनएफएसए कार्ड में बदलाव का वर्ष (%)

एनएफएसए कार्ड के जारी होने में हुई देरी, पात्र परिवारों के चयन (ड्रेज़ एवं अन्य 2019) के लिए 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) में उन्हें शामिल करने में हुई देरी, बहिष्करण त्रुटियों, एनएफएसए प्रावधानों और पात्रता आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता की व्यापक कमी के कारण थी। ओडिशा में, लाभार्थियों को एक फॉर्म भरकर पात्रता की स्व-घोषणा करने के लिए कहा गया, जिसके परिणामस्वरूप देरी हुई। इस कागजी कार्रवाई के प्रभारी लोगों को इसकी कम जानकारी थी और वे इन जिम्मेदारियों को कुशलतापूर्वक निभाने में सक्षम नहीं थे। इसके अलावा, प्रति-व्यक्ति पात्रता में परिवर्तन के साथ ही राशन कार्डों का नियमित और विश्वसनीय अद्यतन करना आवश्यक हो गया और यह कार्य बोझिल-सा साबित हुआ।

आवंटन: एनएफएसए के लागू होने के बाद खाद्यान्न की मात्रा और कीमत

प्रति-व्यक्ति पात्रता के चलते बड़े परिवारों को प्राप्त अनाज की मात्रा के मामले में लाभ हुआ जबकि छोटे परिवारों को नुकसान हुआ। एनएफएसए की शुरुआत के बाद से कुछ समय बीत जाने के बावजूद भी, यह आश्चर्यजनक है कि कई लोग मात्रा और कीमत- दोनों के सन्दर्भ में (बिहार में 30%, ईयूपी में 22% और ओडिशा में 17%) अपने विशिष्ट अधिकारों के बारे में अनजान रहे हैं।

एनएफएसए के लागू होने के बाद खाद्यान्न की कीमतों में भी बदलाव आया: ओडिशा में चावल की कीमत केंद्र सरकार के निर्गम मूल्य से भी कम थी। 61 प्रतिशत कार्डधारकों ने माना कि उन्हें एनएफएसए के लागू होने के पहले चावल के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ी, क्योंकि तब राज्य योजना सक्रिय नहीं थी। एनएफएसए के लागू होने के बाद के काल में, ओडिशा में लगभग 11% कार्डधारकों का मानना है की उन्होंने चावल के लिए अधिक कीमत चुकाई। राज्य सरकार द्वारा कीमतों में और सब्सिडी दिए जाने के बाद भी, ओडिशा में लगभग 22% राशन कार्डधारक एनएसएफए के लागू होने से पहले और बाद में एक ही कीमत का भुगतान करने का अनुभव करते हैं। यह इन राज्यों में एनएफएसए के प्रति जागरूकता और समझ की कमी को दर्शाता है।

हालांकि, बिहार और ईयूपी में क्रमशः 27% और 18% लोग यह मानते हैं कि उन्होंने एनएफएसए के लागू होने के बाद अधिक कीमत का भुगतान किया है। इसके अलावा, बिहार में लगभग 39% और ईयूपी में 38% लोगों का मानना है कि उन्होंने एनएफएसए के लागू होने के बाद उसी कीमत का भुगतान किया जो एनएफएसए के लागु होने के पहले थी।

बिहार और ईयूपी में लगभग 43% परिवार और ओडिशा में 91% परिवार चावल की अनिवार्य कीमत के बारे में जानते हैं। सरकार द्वारा अनिवार्य चावल और गेहूं की मात्रा के बारे में जागरूकता उनकी कीमत के बारे में जागरूकता (70% बिहार, 78% ईयूपी, और 83% ओडिशा) से अधिक है। अनजान परिवारों में हकदारी छिनी जाने की और हकदारी से कम मात्रा मिलने की संभावना रहती है। ये लाभार्थी अनिवार्य से कम मात्रा मिलने या अधिक कीमतों के बारे में सूचित करते हैं।

एनएफएसए के लागू होने के बाद अनाज की गुणवत्ता में फर्क

चूंकि मध्यस्थता के अवसर बदल गए हैं, अनाज की गुणवत्ता और सेवाओं के मानक (प्रतीक्षा समय और डीलर-ग्राहक व्यवहार)5 में पीडीएस में भेदभाव के नए रूप उभर सकते हैं। अनाज की मात्रा और मूल्य-आधारित भेदभाव को आसानी से और सामान्य रूप से पहचाना जा सकता है जबकि अनाज और सेवाओं की गुणवत्ता को पूर्ण रूप से देखा नहीं जा सकता है और इसे चुनौती देना भी मुश्किल होता है। चित्र 3 एनएफएसए के पूर्व की और बाद की गुणवत्ता का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है।

चित्र 3. पीडीएस चावल की गुणवत्ता की तुलना (%)

चित्र-3 में आये अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय :

Better under Pre-NFSA: एनएफएसए के पूर्व बेहतर

Better under Post NFSA: एनएफएसए के पश्चात बेहतर

Same under Pre and Post NFSA: एनएफएसए के पूर्व और पश्चात समान

Did not know: मालूम नहीं

आगे, हम आकलन करते हैं कि क्या परिवारों की आवश्यकताओं को पीडीएस द्वारा पूरी तरह से पूरा किया गया या उन्हें कम मात्रा अथवा घटिया गुणवत्ता के कारण पूरक बाजार में खरीद की आवश्यकता थी। ज्यादातर (52%) ने एनएफएसए के बाद भी पीडीएस पूरक की आवश्यकता बताई (चित्र 4)। बिहार में 20% उत्तरदाताओं का कहना है कि वे पीडीएस चावल की गुणवत्ता से संतुष्ट नहीं हैं और 15% को अनाज की किस्म 'अस्वीकार्य'6है।

चित्र 4. पीडीएस चावल के साथ बाजार में पूरक खरीद करने के कारण

चित्र-4 में आये अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय :

Inferior quality of PDS rice: पीडीएस चावल की ख़राब गुणवत्ता

Insufficient quantity of PDS rice: पीडीएस चावल की अपर्याप्त मात्रा

PDS rice grain not according to taste: पीडीएस चावल का दाना स्वाद के अनुसार नहीं

एनएफएसए के लागू होने के पहले और बाद में पीडीएस वितरण सेवाएं

कुछ वर्षों से, कुप्रशासन और कुछ मामलों में खुली चोरी के चलते पीडीएस वितरण प्रणाली में धांधली होने की संभावना मानी जाती रही है। पीडीएस (चोइथानी और प्रिचर्ड 2015) की संचालन विश्वसनीयता के मामले में बिहार काफी पीछे है। इसी तरह की कहानी एनएफएसए के बाद उभरती है (चित्र 5)। लाभार्थियों ने कहा कि एनएफएसए के लागू होने के पहले उन्हें एफपीएस (56%) पर लंबे समय का प्रतीक्षा समय, इलेक्ट्रॉनिक वजन मशीन (ईडब्ल्यूएम) (30%) का न होना, अनाज की निम्न गुणवत्ता (20%), और एफपीएस खोलने में देरी (20%) की समस्या का सामना करना पड़ा था।

चित्र 5. एनएफएसए के लागू होने के पहले और बाद में राशन कार्डधारकों द्वारा सामना की गई समस्याएं (%)

चित्र-5 में आये अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय :

Long waiting hours at PDS shop: पीडीएस दुकान पर घंटों इंतजार

No electronic weighing machine: कोई इलेक्ट्रॉनिक वजन मशीन नहीं

Poor quality of grains: अनाज की खराब गुणवत्ता

Delay in PDS shop opening: पीडीएस दुकान खुलने में देरी

Ration not disbursed every month: हर माह राशन नहीं बंटता

Forced disbursement schedule: जबरन संवितरण अनुसूची

Inadequate quantity of grains: अनाज की अपर्याप्त मात्रा

Dealer biased towards own friends/relatives: डीलर अपने ही दोस्तों/रिश्तेदारों के प्रति पक्षपाती

Dealer not from the same hamlet: डीलर एक ही बस्ती से नहीं

Forced uptake schedule: जबरन उठाव कार्यक्रम

Dealer behaviour abusive: डीलर का अभद्र व्यवहार

Discrimination based on Caste/Religion, Gender and Disability: जाति/धर्म, लिंग और विकलांगता के आधार पर भेदभाव

Dealer preoccupied with own work: खुद के काम में मशगूल डीलर

No provision for seasonal disbursement: मौसमी संवितरण का कोई प्रावधान नहीं:

Erratic functioning of E-Pos machine: ई-पॉस मशीन की अनियमित कार्यप्रणाली

एनएफएसए में योजना की व्याप्ति, पात्रता नियम, अनाज की द्वार डिलीवरी (विशेष मामलों में), निश्चित वितरण कार्यक्रम, इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ़ सेल (ईपीओएस) और ईडब्ल्यूएम का उपयोग, आधार7को राशन कार्ड से जोड़ने और जीआरएस की स्थापना के बारे में सुधार पेश किए गए। एनएफएसए के लागू होने के बाद से हम कुछ समस्याओं में गिरावट पाते हैं (चित्र 5)। फिर भी, लंबे समय के प्रतीक्षा समय (56%) की समस्या बनी हुई है। इसके अलावा, एनएफएसए के लागू होने के बाद भी, 18% ने मात्रा को अपर्याप्त (गुणवत्ता-समायोजित) पाया। अन्य मुद्दे जैसे अनियमित संवितरण, संवितरण का लादा गया समय, और एफपीएस खोलने में देरी एनएफएसए के बाद भी जारी रहे।

डिजिटलीकरण और सेवा वितरण

ई-पीओएस मशीन तभी बिल जनरेट करती है, जब पात्रता के अनुसार संबंधित भार, ईडब्ल्यूएम (पुरी 2017) पर रखा गया हो, और यह लोगों की पात्रता की रक्षा करने में मदद करता है। हमारे नमूने में, 66% उत्तरदाताओं ने ईडब्ल्यूएम का उपयोग करते हुए डीलर की रिपोर्ट की (चित्र-6)। कुल मिलाकर, एनएफएसए के लागू होने के बाद ईडब्ल्यूएम के उपयोग में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। ओडिशा में 17% उत्तरदाताओं ने बताया कि ईडब्ल्यूएम का उपयोग नहीं किया जा रहा है। हालांकि अधिकांश लाभार्थी एफपीएस पर ई-पीओएस मशीन स्थापित पाते हैं, बिहार में 15% और ओडिशा में 9% की तुलना में ईयूपी में 45% लोगों ने तकनीकी गड़बड़ियों, अनियमित कामकाज, बायोमेट्रिक पहचान में समस्याओं और सर्वर (इंटरनेट) के मुद्दों के बारे में सूचित किया। कई उत्तरदाताओं ने बताया कि इन तकनीकी गड़बड़ियों के चलते उन्हें एफपीएस पर अधिक समय बिताना पड़ा और दुबारा जाने की जरुरत भी पड़ी।

चित्र 6. इलेक्ट्रॉनिक वजन मशीनों का उपयोग (%)

एनएफएसए के लागू होने के बाद, कुछ राज्यों ने लाभार्थियों को एफपीएस पर उनकी खाद्यान्न पात्रता की उपलब्धता और अपेक्षित समय के बारे में सूचित करने के हेतु एक संदेश भेजने की एक प्रणाली शुरू की। हालांकि, हमारे सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि एनएफएसए के तहत अनिवार्य रूप से इन संदेशों को प्राप्त करने वाले बहुत कम प्रतिशत (बिहार में 3%, क्रमशः ओडिशा और ईयूपी में 1%)लोग हैं। अधिकांश (66%) लोग एफपीएस पर जाकर सीधे डीलर से जानकारी प्राप्त करते हैं, और 50% लोग यह जानकारी अपने दोस्तों या पड़ोसियों के नेटवर्क से प्राप्त करते हैं।

स्थानीय सुधारात्मक संस्थान: शिकायत निवारण प्रणाली

एनएफएसए का अध्याय VII जीआरएस से संबंधित है, जिसमें कॉल सेंटर, हेल्पलाइन और शिकायत निवारण के लिए नोडल अधिकारियों के पदनाम शामिल हैं। अन्य प्रावधानों में प्रत्येक जिले में राज्य सरकार द्वारा एक नियुक्त अधिकारी (जिला शिकायत निवारण अधिकारी या डीजीआरओ) और एनएफएसए के कार्यान्वयन की निगरानी और समीक्षा के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित राज्य खाद्य आयोग (एसएफसी) शामिल हैं।

बिहार और ईयूपी में 17 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना है कि उन्हें जीआरएस में कोई विश्वास नहीं है, और ईयूपी में 10% ने इस प्रक्रिया को बहुत बोझिल पाया (चित्र 7ए)। शिकायत दर्ज कराने वालों में से, बिहार में 64%, ओडिशा में 57% और ईयूपी में 73% लोगों को उनकी शिकायत का निवारण नहीं मिला (चित्र 7बी)।

चित्र 7ए. जीआरएस का उपयोग नहीं करने के कारण (%)

चित्र-7ए में आये अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय :

Did not have any complaint: कोई शिकायत नहीं थी

Anonymity is not maintained: गुमनामी नहीं रखी जाती है

Nothing will happen: कुछ होगा नहीं

They ask for a bribe: वे रिश्वत मांगते हैं

Discrimination on caste, gender or religion: जाति, लिंग या धर्म पर भेदभाव

Complicated system/process: जटिल प्रणाली/प्रक्रिया

Other: अन्य

चित्र 7बी. शिकायत की स्थिति (%)

चित्र-7बी में आये अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय :

Complaint not addressed: शिकायत का समाधान नहीं हुआ

Complaint addressed: शिकायत का समाधान हुआ

Cannot say: कह नहीं सकते

जीआरएस का उपयोग नहीं करने के कारण पूर्व-एनएफएसए सर्वेक्षणों में समान थे। जीआरएस का उपयोग करने में सामूहिक कार्रवाई के बिना, संकटमोचक के रूप में सुर्खियों में आने का डर बना रहता है (प्रधान 2018)। जैसा कि मजूमदार (2009) और नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (2015) द्वारा उल्लेख किया गया है, अधिकांश लाभार्थी डीलरों और प्रभावशाली लोगों के बीच गठजोड़ के कारण तथा डीलरों, ग्राम परिषद और जिला स्तरीय आपूर्ति अधिकारियों के बीच गहरी मिलीभगतके चलते शिकायत नहीं करते हैं या संघर्ष से बचना चाहते हैं।

वन नेशन वन राशन कार्ड: व्यक्तिपरक मूल्यांकन

जून 2019 में, केंद्र सरकार ने ओएनओआरसी की शुरुआत की, जिसे जुलाई 2021 में ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा देश भर में लागू करने की अनुमति दी गई थी। बिहार और यूपी ने जून 2021 से राशन कार्डों की अंतर-राज्यीय पोर्टेबिलिटी हेतु तकनीकी मंच प्रदान करने वाले पीडीएस की एकीकृत प्रबंधन प्रणाली को अपनाया है। हम ओएनओआरसी की जागरूकता और मूल्यांकन,पोर्टेबिलिटी प्रदान करने में इसकी प्रभावशीलता के साथ-साथ आवंटन में विभाज्यता का आकलन करते हैं। हमारे अधिकांश उत्तरदाता (बिहार में 57%, ईयूपी में 62% और ओडिशा में 72%) न तो ओएनओआरसी के बारे में जानते हैं और न ही समझते हैं (चित्र 8ए)।

फिर भी, समझाने पर 76% लोग ओएनओआरसी के लिए भुगतान करने को तैयार थे (चित्र 8बी)। बिहार जो कई प्रवासी कामगारों का एक स्रोत है, जिसमें ओएनओआरसी के लिए भुगतान करने को तैयार सर्वेक्षण के उत्तरदाता बहुसंख्य(80%) हैं।

चित्र 8ए. ओएनओआरसी के बारे में जागरूकता (%)

Not aware:जागरूक नहीं

Aware: जागरूक

चित्र 8बी: ओएनओआरसी का लाभ उठाने के लिए भुगतान करने की इच्छा

कोविड-19 के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)

सरकार ने मार्च 2020 में पीएमजीकेवाई के एक भाग के रूप में महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों और किसानों को मुफ्त खाद्यान्न और नकद भुगतान की घोषणा की। हमारे सर्वेक्षण से पता चलता है कि अधिकांश 98% (चित्र 9) लोगों को मुफ्त में खाद्यान्न यानी 5 किलो चावल या गेहूं और 1 किलो दाल प्राप्त हुआ। हालांकि, कई मामलों में, पीडीएस खाद्य राहत में घर के सदस्यों की संख्या जोड़ी नहीं गई, जो प्रति व्यक्ति आवंटन के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण है (रॉय एवं अन्य 2020)। आपूर्ति की बाध्यताओं के कारण सरकार 'पसंद की पल्स' प्रतिज्ञा का सम्मान करने में भी असमर्थ थी। सभी घरों में या तो चना या चना दाल (विभाजित चना) मिला। दालों का 1 किलोग्राम आवंटन अपर्याप्त पाया गया जबकि जरुरत का अधिक सटीक अनुमान 4-5 किलोग्राम है।

चित्र 9. कोविड-19 महामारी के दौरान सरकारी सहायता

चित्र-9 में आये अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय :

Received free food grains: मुफ्त में खाद्यान्न मिला

Received cash support: नकद सहायता मिली

निष्कर्ष

ईयूपी, बिहार और ओडिशा पर ध्यान केंद्रित करते हुए, हम एनएफएसए के बाद के परिदृश्य में पीडीएस का अध्ययन करते हैं। कुछ सकारात्मक गतिविधियों के प्रमाण हैं जैसे परिवारों का कवरेज, लेकिन अन्य क्षेत्रों में सुधार की काफी गुंजाइश है। अनाज की कीमतों और मात्रा के अलावा अनाज की गुणवत्ता, उसकी विविधता और एफपीएस पर सेवाओं की गुणवत्ता जैसे भी मुद्दे हैं जिनके परिणामस्वरूप एनएफएसए के लागू होने के बाद भी योजना तक पहुंच में अंतर बना हुआ है, उनका समाधान करने की आवश्यकता है।

नीतियों को अलग-अलग तरीकों पर विचार करना चाहिए जिससे एनएफएसए के बाद भी लाभार्थियों को उनका हक नहीं मिलता है। हमारे परिणाम बताते हैं कि एनएफएसए के एक भाग के रूप में वादा किया गया जीआरएस शायद ही प्रभावी है। एनएफएसए के साथ या उसके बिना, नीतियों के द्वारा उन कारकों की बहुलता को आंतरिक बनाने की आवश्यकता है जो योजना तक पहुंच निश्चित करने हेतु जटिल बनकर उभरते हैं। ईपीओएस मशीन, ईडब्ल्यूएम, और बायोमेट्रिक पहचान के साथ लिंक जैसी नीतियों पर अन्य प्रयोगों के मिश्रित परिणाम मिलते प्रतीत होते हैं।

हम मानते हैं कि पीडीएस के साथ ये अंतर अनुभव आकस्मिक नहीं हैं और संभवतः खराब डिजाइन और सामुदायिक जरूरतों और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रमों के मांग पक्ष के प्रति संवेदनशीलता की कमी का परिणाम हैं।

कोविड -19 के दौरान दिखाई देता है कि पीडीएस के तहत वितरण हुआ है, लेकिन पात्रता और उपभोग्य वस्तुओं के विकल्पों की कमी के मुद्दे एनएफएसए के सन्दर्भ में भी बने हुए हैं। अंत में, ओएनओआरसी जैसे कुछ उचित परिशोधन के संदर्भ में, हम फिर से अधिक सूचना प्रसार और विभाज्यता को शामिल करने हेतु पोर्टेबिलिटी के विस्तार की आवश्यकता पाते हैं। ओएनओआरसी कैसे काम करता है इस अनिश्चितता के होते हुए भी, बड़ी प्रवासी आबादी वाले क्षेत्रों में इसके लिए भुगतान करने की इच्छा है।

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टिप्पणियाँ:

  1. अंत्योदय अन्न योजना एक लक्षित सरकारी योजना है, जिसका उद्देश्य सबसे गरीब बीपीएल परिवारों को अत्यधिक रियायती खाद्यान्न उपलब्ध कराना है।
  2. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोविड-19 महामारी के दौरान गरीबों के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 2.7 खरब रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की।
  3. कोविड-19 प्रेरित लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के नियमों के कारण, हमने दिसंबर 2020 और फरवरी 2021 के बीच फोन पर सर्वेक्षण किया।
  4. वन नेशन वन राशन कार्ड योजना पात्र लाभार्थियों को देश भर में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से खाद्यान्न प्राप्त करने की अनुमति देती है।
  5. हमारे द्वारा किए गए पहले के एक सर्वेक्षण (प्रधान 2018) के मात्रात्मक परिणाम के जरिये उन रास्तों की पहचान करते हैं जिनके माध्यम से पीडीएस में समूह नुकसान होता है। गुणवत्ता के मामले में भेदभाव का एक सतत स्रोत उपस्थित था, जहां खराब गुणवत्ता वाले अनाज - खराब गंध, खराब स्वाद, खराब रंग, पत्थरों की उपस्थिति, अन्य तत्वों और कीड़ों की उपस्थिति के मिश्रित मामले थे। तीनों राज्यों में, अधिकांश अधिकार-धारकों की प्रमुख शिकायत यह थी कि डीलर अच्छी और खराब गुणवत्ता वाले चावल को एक साथ मिलाता है। यह उनके द्वारा अलग से देने के लिए किये गए अनुरोध के बावजूद है। खराब गुणवत्ता वाले अनाज से महिलाओं को छँटाई और साफ करने के लिए अधिक काम करना पड़ता है। अनाज की खराब गुणवत्ता के कारण बाजारों से पीडीएस के साथ पूरक अनाज की आपूर्ति करनी पड़ी। जाति, लिंग और वर्ग के संदर्भ में वंचित समूहों के लिए गुणवत्ता की समस्याएं अधिक स्पष्ट थीं।
  6. पूर्व एनएफएसए अवधि में यह आंकड़ा लगभग समान था।
  7. आधार या विशिष्ट पहचान (यूआईडी) संख्या भारत सरकार की ओर से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा भारतीय निवासियों को जारी किए गए एक व्यक्ति के बायोमेट्रिक्स (उंगलियों के निशान, आईरिस और तस्वीरों) से जुड़ी एक 12-अंकीय पहचान संख्या है।

लेखक परिचय : रुचिरा बॉस अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान में कृषि में पोषण और स्वास्थ्य (A4NH) के लिए एक शोध विश्लेषक हैं। ममता प्रधान सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों पर विकास शोध में एक विद्वान हैं | देवेश रॉय नई दिल्ली में स्थित अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान कार्यालय में कृषि में पोषण और स्वास्थ्य के लिए एक व्यापक कार्यक्रम के साथ एक वरिष्ठ रिसर्च फेलो हैं। सुनील सरोज अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान में वरिष्ठ अनुसंधान विश्लेषक हैं।

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