भारत में काफी संख्या में कृषि परिवार अपनी आय बढ़ाने और अपने परिवार के पोषण में सुधार लाने के लिए पशुपालन तथा दूध उत्पादन कार्य में लगे हुए हैं। यह आलेख इस बात की जांच करता है कि वैश्विक तापमान वृद्धि विशेष रूप से दूध उत्पादन में गिरावट के माध्यम से किस प्रकार छोटे पशु पालक किसानों को प्रभावित करती है। पाया गया है कि दूध उत्पादन पर ऊँचे अधिकतम या न्यूनतम तापमान का महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, और सबसे अधिक प्रभाव 35°C से ऊपर के तापमान पर पड़ता है।
इस सम्बन्ध में हुए व्यापक शोध में मानव उत्पादकता और बचपन के स्वास्थ्य सहित विभिन्न आर्थिक परिणामों पर उच्च तापमान के प्रभावों को दर्ज किया गया है। इस साहित्य का एक उल्लेखनीय उपसमूह कृषि पैदावार पर उच्च तापमान के प्रतिकूल प्रभावों की पड़ताल करता है (श्लेनकर और रॉबर्ट्स 2009, श्लेनकर और लोबेल 2010)। हालांकि, डेयरी उत्पादन पर उच्च तापमान के प्रभाव का अपेक्षाकृत कम अध्ययन हुआ है, छोटे पैमाने पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि गोजातीय शरीर क्रिया में उच्च तापमान पर खराब प्रतिक्रिया होती है, जिससे दूध उत्पादन में कमी आती है और प्रजनन क्षमता भी कम होती है (थॉर्नटन एवं अन्य 2009)। इन निष्कर्षों से आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर कमज़ोर आबादी के लिए वैश्विक तापमान वृद्धि के आर्थिक परिणामों के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं।
कृषक परिवारों में पशुधन की भूमिका
विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में पशु पालन कृषक परिवारों का एक अभिन्न अंग है, जहाँ फसल की खेती और पशु पालन अक्सर एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। छोटे कृषक परिवारों में, पशुधन और उसके उप-उत्पाद ऊर्जा और उर्वरक के प्राथमिक स्रोत के रूप में काम करते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे आमदनी पैदा होती है और दूध उत्पादन के माध्यम से पारिवारिक आहार में बढ़ोतरी भी होती है (हेरेरो एवं अन्य 2013)।
भारत में 6 करोड़ से अधिक कृषक परिवारों के पास पशुधन है, जो आम तौर पर दो से तीन पशुओं का झुंड पालते हैं। ये 'छोटे डेयरी किसान’ न्यूनतम लागत पर काम करते हैं और मामूली उपज देते हैं (हेम्मे और ओट्टे 2010)। अपने हाल के शोध (दास गुप्ता 2024) में मैंने, इन किसानों के दूध उत्पादन पर बढ़ते तापमान के प्रभाव का अनुमान लगाया है।
भारत में दूध और छोटे पशु पालक किसानों का महत्व
भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है। पशुपालन और डेयरी विभाग (2020) के अनुसार, उत्पादित दूध का मौद्रिक मूल्य चावल और गेहूँ (जो देश की सबसे महत्वपूर्ण फसलें हैं) के संयुक्त मूल्य से कहीं अधिक है। हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था में दूध का महत्व सिर्फ़ इसके मौद्रिक मूल्य से नहीं है। भारत में बड़ी संख्या में शाकाहारी लोग रहते हैं, जिनके लिए दूध ही पशु प्रोटीन का एकमात्र स्रोत है। इसलिए, अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि से दूध उत्पादन प्रभावित होता है, तो इसका पोषण और स्वास्थ्य पर असर पड़ने की संभावना है।
इसके अलावा, भारतीय कृषि की प्रकृति के कारण, सीमित संसाधनों वाले छोटे किसानों पर पड़ने वाला प्रभाव एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। ऐसे कई छोटे किसानों के लिए पशुपालन गरीबी से बाहर निकलने का एक तरीका है। आर्थिक रूप से समृद्ध भारतीय मध्यम वर्ग में दूध की बढ़ती मांग के चलते, दूध बेचना गरीब परिवारों के लिए अतिरिक्त आय का एक विश्वसनीय स्रोत बन सकता है। साथ ही पशुधन का उपयोग कृषक परिवारों द्वारा नकारात्मक आय झटकों से निपटने के लिए भी किया जाता है, क्योंकि पशुधन की बिक्री हमेशा नकदी का एक स्रोत होती है।
डेटा का स्रोत
मैं राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के 77वें दौर (2018-19) के किसान स्थिति आकलन सर्वेक्षण का उपयोग मुख्य चर के निर्माण के लिए करता हूँ, जो कि दूध की पैदावार है। यह सर्वेक्षण देश भर के कृषक परिवारों का एक व्यापक मूल्यांकन है। यह सर्वेक्षण के समय दूध देने वाले पशुओं की संख्या सहित परिवारों द्वारा पाले गए झुंड की संरचना के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। इसके अलावा, सर्वेक्षण में पिछले 30 दिनों में प्रत्येक परिवार द्वारा उत्पादित दूध की मात्रा भी दी गई है। मैं इस जानकारी का उपयोग करते हुए, ‘प्रति पशु प्रतिदिन दूध उत्पादन’ का एक माप बनाता हूँ, जो गायों और भैंसों के लिए अलग-अलग होता है।
मैं एनएसएस डेटा को मौसम चरों- प्रत्येक दिन के लिए अधिकतम तापमान, न्यूनतम तापमान और वर्षा के साथ जोड़ता हूँ, जो भारतीय मौसम विभाग से प्राप्त होता है, और 1° ग्रिड स्क्वायर1 से जिला स्तर पर एकत्रित होता है। निर्मित तापमान चर एनएसएस सर्वेक्षण की स्मरण अवधि के औसत के अनुरूप हैं, जो सर्वेक्षण की तारीख से 30 दिन पहले की अवधि है। इसके बाद मैं परिवार के जिले और सर्वेक्षण की तिथि के अनुसार एनएसएस सर्वेक्षण के आँकड़ों को मिला देता हूँ। तापमान संबंधी आँकड़ों से मुझे यह अनुमान लगाने में भी मदद मिलती है कि एनएसएस सर्वेक्षण अवधि के दौरान किसी जिले में कितने घंटों तक विभिन्न स्तर का तापमान रहता है।
अनुभवजन्य पद्धति
अध्ययन में दूध उत्पादन और तापमान के बीच सम्बन्ध का आकलन करने के लिए प्रतिगमन विश्लेषण यानी रिग्रेशन एनालिसिस का उपयोग किया गया है। मैं गर्मी प्रतिरोध के सन्दर्भ में शारीरिक अंतर को ध्यान में रखते हुए गायों और भैंसों के लिए अलग-अलग प्रतिगमन चलाता हूँ। भैंसें आम तौर पर गायों की तुलना में गर्मी के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं। प्रत्येक प्रतिगमन 'मासिक स्थिर प्रभावों' के माध्यम से मौसम को नियंत्रित करता है, तथा 'जिला स्थिर प्रभावों' के माध्यम से क्षेत्रीय कारकों को नियंत्रित करता है।2 मैं विभिन्न परिवारों की अपने पशुओं पर गर्मी के प्रभाव को कम करने की विलक्षण क्षमता का आंशिक आकलन करने के लिए परिवार की संपदा और संसाधनों के उपायों को भी शामिल करता हूँ।
मैं न्यूनतम और अधिकतम तापमान के लिए अलग-अलग प्रतिगमन करता हूँ। शोध साहित्य में न्यूनतम तापमान में वृद्धि का बड़ा प्रभाव होने का अनुमान लगाया गया है, क्योंकि अधिकतम तापमान आमतौर पर इन जानवरों के लिए आरामदायक सीमा से ऊपर होता है। यदि न्यूनतम तापमान कम है तो जानवरों को उस दौरान कुछ राहत मिलती है। दूसरी ओर, यदि न्यूनतम तापमान पशु की आरामदायक सीमा से कम हो जाता है, तो उसके शरीर क्रिया विज्ञान पर इसका प्रभाव गंभीर होता है।
शोध साहित्य में यह बात अच्छी तरह स्थापित है कि पैदावार पर उच्च तापमान का प्रभाव ‘गैर-रैखिक’ होता है, अर्थात तापमान के एक निश्चित सीमा स्तर से ऊपर प्रभाव तीव्र हो जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि सरल रैखिक अनुमान पूरे तापमान रेंज पर औसत करके प्रभाव को कम करके आँक सकते हैं।
इसलिए, इस अध्ययन में दूसरे दृष्टिकोण का उपयोग किया गया है, जो यह मानता है कि तापमान का दूध उत्पादन पर गैर-रैखिक प्रभाव हो सकता है। यहाँ, विभिन्न तापमान अंतरालों के संपर्क में आने वाले घंटों के मापों का उपयोग प्रतिगमन में व्याख्यात्मक चर के रूप में किया गया है। तापमान की पूरी श्रृंखला को चार अंतरालों में विभाजित किया गया है जो 15°C से नीचे से शुरू होकर 10° की वृद्धि के साथ 35°C से ऊपर के अंतिम अंतराल तक बढ़ते हैं। इससे तापमान में वृद्धि के अनुमानित प्रभाव में परिवर्तन के आकार के साथ-साथ परिवर्तन के स्तर के आधार पर भिन्नता हो सकती है।3
परिणाम
मैं गायों और भैंसों दोनों की दूध की पैदावार पर उच्च अधिकतम या न्यूनतम तापमान का महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव पाता हूँ (आकृति-1)। औसत अधिकतम तापमान में 1°C की वृद्धि से गायों के दूध उत्पादन में 2.4% की गिरावट आती है, तथा भैंस के दूध उत्पादन में 2.1% की गिरावट आती है। गायों और भैंसों के लिए न्यूनतम तापमान में वृद्धि के संगत आँकड़े क्रमशः 3.6% और 2.5% हैं।
आकृति-1. दूध उत्पादन पर पिछले 30 दिनों में औसत तापमान का प्रभाव

टिप्पणियाँ : (i) रेखा खंडों का मध्य बिंदु तापमान में प्रत्येक 1°C की वृद्धि के लिए दूध उत्पादन में प्रतिशत परिवर्तन को दर्शाता है। (ii) आकृति में ऊर्ध्वाधर रेखा खंड 95% विश्वास अंतराल को दर्शाते हैं। 95% विश्वास अंतराल का मतलब है कि, यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो 95% बार गणना किए गए विश्वास अंतराल में ही वास्तविक प्रभाव होगा।

गैर-रेखीय विश्लेषण के परिणाम आकृति-2 में दर्शाए गए हैं। गायों और भैंसों दोनों के सन्दर्भ में, उच्च तापमान में एक घंटे अतिरिक्त रहने से दूध की पैदावार पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सबसे अधिक प्रभाव 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर की सीमा पर पड़ता है।
आकृति-2. पिछले 30 दिनों में तापमान अंतराल के अनुसार, जोखिम के एक घंटे की वृद्धि के साथ दूध उत्पादन में परिवर्तन

टिप्पणियाँ : (i) प्रत्येक रेखाखंड के मध्य बिंदु दूध उत्पादन में प्रतिशत परिवर्तन को दर्शाते हैं, क्योंकि पिछले 30 दिनों में 15°C से कम तापमान रेंज में संपर्क में आए एक घंटे की तुलना में एक विशेष तापमान अंतराल में संपर्क में आने से दूध उत्पादन में वृद्धि होती है। ii) रेखाखंडों की लंबाई 95% विश्वास अंतराल का प्रतिनिधित्व करती है।

ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में निहितार्थ
जलवायु परिवर्तन के बढ़ने के साथ ही इन निष्कर्षों का छोटे डेयरी किसानों के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सभी जिलों में एक समान 1°C तापमान वृद्धि के एक काल्पनिक परिदृश्य से प्रति पशु प्रतिदिन आधे लीटर से अधिक (गायों के लिए 2.64 से 1.84 लीटर, तथा भैंसों के लिए 3.2 से 2.6 लीटर) दूध उत्पादन में महत्वपूर्ण गिरावट आने का अनुमान है। इसका मतलब है कि गाय पालकों को 740 रुपये और भैंस पालकों को 900 रुपये की आय का नुकसान होता है, जो औसत परिवार के मासिक उपभोग व्यय का 8% है। पोषण के मामले में, यही नुकसान गाय और भैंस पालक परिवारों के लिए प्रति व्यक्ति दैनिक प्रोटीन सेवन में क्रमशः 4.73 ग्राम और 5.76 ग्राम की कमी का संकेत देता है। राष्ट्रीय स्तर पर, तापमान में 1°C की वृद्धि से कुल दूध उत्पादन में 16.2 मिलियन टन की कमी आ सकती है, जो 2018-19 में कुल दूध उत्पादन का लगभग 8.6% है। इस गिरावट का मुख्य कारण उच्च तापमान के लंबे समय तक संपर्क में रहना है। मेरा अनुमान है कि 35°C से अधिक तापमान पर एक घंटे का अतिरिक्त समय बिताने का नकारात्मक प्रभाव औसत किसान के लिए दोगुना से भी अधिक हो जाएगा, क्योंकि हम तापमान में 1, 2, या 3°C की वृद्धि की तुलना वर्तमान स्थिति से करते हैं।
निष्कर्ष
यह अध्ययन भारत में बढ़ते तापमान के कारण छोटे डेयरी किसानों के सामने आने वाली आर्थिक और पोषण संबंधी चुनौतियों को रेखांकित करता है। इसका प्रभाव किन्हीं परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इससे राष्ट्रीय दुग्ध उत्पादन और खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न हो रहा है। हालांकि बड़े उत्पादक मांग को पूरा करने के लिए आगे आ सकते हैं, लेकिन इससे समाज में सबसे कमज़ोर छोटे किसानों को होने वाले नुकसान के कम होने की संभावना नहीं है।
टिप्पणियाँ:
- 1° ग्रिड स्क्वायर पृथ्वी की सतह को आयतों में मापने की एक इकाई है। प्रत्येक 'वर्ग' वास्तव में 1° अक्षांश और 2° देशांतर का एक आयत है।
- क्षेत्रों, समय या समूहों में डेटा का अध्ययन करते समय, सांस्कृतिक या भौगोलिक अंतर जैसी अप्रत्याशित विशेषताएँ परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं। निश्चित प्रभाव इन अपरिवर्तनीय विशेषताओं को प्रभावी ढंग से घटाकर उनका हिसाब रखते हैं, जिससे शोधकर्ताओं को रुचि के चरों के बीच के संबंधों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
- गैर-रैखिक संबंधों का पता लगाने के इस दृष्टिकोण का उपयोग शोधकर्ताओं द्वारा जीवित प्राणियों के स्वास्थ्य और शरीर क्रिया विज्ञान पर तापमान के प्रभावों के अध्ययन में बड़े पैमाने पर किया गया है (देखें श्लेन्कर एवं अन्य 2009, ब्लोम एवं अन्य 2022, सोमनाथन एवं अन्य 2021)।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : अमलन दास गुप्ता वर्तमान में सोनीपत में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में बैंकिंग और वित्त स्कूल में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। इससे पहले, उन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान दिल्ली और वित्तीय प्रबंधन और अनुसंधान संस्थान जैसे विभिन्न संस्थानों में शिक्षक और शोधकर्ता के रूप में काम किया है। उन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली से मात्रात्मक अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री और ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की है। उनके शोध के हित विकास अर्थशास्त्र, पर्यावरण अर्थशास्त्र और जलवायु परिवर्तन के अर्थशास्त्र के क्षेत्रों में हैं।
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