दुनिया के अनेक हिस्सों में हम साझा हितों को लेकर सहयोग करना सीखने के मामले में लगातार गड़बड़ी देखते हैं। सांस्कृतिक भिन्नताओं – अर्थात ऐसे विचार कि अपमान क्या होता है और उसका सही रिस्पांस क्या होता है – की इसमें भूमिका हो सकती है। इस आलेख में ग्रामीण उत्तर प्रदेश में उच्च और निम्न जातियों के पुरुषों के बीच बार-बार समन्वय वाले प्रायोगिक खेल (रिपीटेड कोऑर्डिनेशन गेम) के आधार पर दर्शाया गया है कि निम्न जाति के अधिकांश जोड़े शीघ्र ही कुशल और सहयोगपूर्ण सहमति (कन्वेंशन) बना लेते हैं जबकि उच्च जाति के अधिकांश जोड़े ऐसा नहीं कर पाते हैं।
अमेरिकी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ प्रयोगों में साझा हितों वाले व्यक्तियों के छोटे समूहों में बार-बार इंटरऍक्शन के दौरान आम तौर पर शीघ्र ही कुशल और सहयोगपूर्ण सहमति विकसित हो जाती है। अगर समूहों का धीमा विकास होता है, तो कुशल सहमति बनी रह सकती है (वान ह्यूक एवं अन्य 1990, वेबर 2006)। हालांकि दुनिया के अनेक हिस्सों में हमें साझा हितों को लेकर सहयोग करना सीखने के मामले में लगातार शिथिलता दिखती है।
सहयोग करना सीखने के मामले में संभावित सांस्कृतिक बाधाओं पर प्रकाश डालने के लिए मैंने और मेरे सह-लेखकों ने उत्तर प्रदेश के 10 गांवों में उच्च (सामान्य) जाति और निम्न (अनुसूचित) जाति के 122 पुरुषों के साथ एक प्रयोग किया (ब्रूक्स, हॉफ एवं पांडेय 2018)। साक्ष्यों से पता चलता है कि समन्वय नही हो पाने से नुकसान होने के मामले में व्याख्या और रिस्पांस पर सांस्कृतिक भिन्नताओं का, अर्थात क्या चीज अपमानजनक होती है और उसका सही रिस्पांस क्या होता है, इसके मामले में समूहों के बीच विचारों में होने वाले अंतरों का भारी प्रभाव होता है। हाल में किए गए अन्य शोधों (जैसे कि हेनरिक एवं अन्य 2010) के अनुरूप हमें यह साक्ष्य उपलब्ध होता है कि आर्थिक व्यवहार में संस्कृति का महत्व होता है।
उच्च और निम्न जाति के पुरुषों के साथ बार-बार समन्वय वाला खेल खेलना
दस गांवों में से प्रत्येक से हमने उच्च और निम्न जाति के पुरुषों के बीच से प्रतिनिधिक सैंपल चुने। हर व्यक्ति ने समन्वय वाले एक खेल (‘स्टैग हंट’) के पांच राउंड समान जाति के अनजान खिलाड़ी के साथ और पांच राउंड भिन्न जाति के अनजान खिलाड़ी के साथ खेले। हर खिलाड़ी को कह दिया गया था कि अनजान पार्टनर उच्च जाति का है या निम्न जाति का, और हमलोगों ने खेलों के सेट के क्रम को रैंडमाइज कर दिया था।
प्रयोगकर्ताओं की हमारी टीम ने खेल में भाग लेने वालों को स्टैग हंट के बारे में इस तरह की जानकारी दी : आपलोग चुन सकते हैं कि किसी संयुक्त परियोजना में बड़ा निवेश करना है या छोटा। आपके बड़ा निवेश करने पर अगर दूसरा खिलाड़ी भी बड़ा निवेश करता है तो आपको अधिक रिटर्न मिलेगा। लेकिन वह अगर छोटा निवेश करता है, तो आपके रुपए (उस समय के लिए आपके एंडोमेंट की आधी रकम) हाथ से चले जाएंगे। छोटा निवेश करने पर कम रिटर्न मिलेगा चाहे दूसरा खिलाड़ी कितना भी निवेश क्यों न करे।
इस खेल में सहयोग कैसे किया जाय इसे सीखने की बहुत सामान्य समस्या को प्रस्तुत किया गया है। खिलाडि़यों के समान हित होते हैं। यह विश्वास हो जाने पर कि उनका पार्टनर भी बड़ा निवेश करेगा, दोनो ही खिलाड़ी बड़ा निवेश करना चाहेंगे।
उत्तर प्रदेश सहमति बनाने में संस्कृति के प्रभावों का अध्ययन करने के लिहाज से अच्छी जगह है क्योंकि यहां एक ही गांव में उच्च जाति और निम्न जाति – दोनो मुख्य संस्कृतियों के लोग रहते हैं, और उच्च जातियों के प्रभुत्व वाले गांवों में उल्लेखनीय रूप से अकुशल सहमतियां होती हैं। ज्यां द्रेज और उनके साथियों (द्रेज और गज़दार 1997, द्रेज और शर्मा 1998) ने स्थिति का वर्णन राजनीतिक और सामाजिक जड़ता के रूप में किया है। ग्रामवासी अधिकाधिक उत्पादन के लिहाज से फसलें लगाने का समय तय करने, कच्चे रास्तों को सूखा और चलने-फिरने लायक रखने के लिए घर के गंदे पानी की निकासी, और स्वच्छता जैसे साझा हितों वाले कार्यों में समन्वय नहीं करते हैं।
लेकिन संस्कृति के प्रभाव के अध्ययन के लिए उच्च और निम्न जातियों के उपयोग का नुकसान यह है कि दोनो समूह संस्कृति के अलावा भी कई तरह से भिन्न हैं – खास कर संपत्ति, शिक्षा, और राजनीतिक शक्ति के लिहाज से। हमने संपत्ति और अनेक अन्य अंतरों को यथासंभव नियंत्रित किया है। भारत की आजादी के सत्तर वर्षों के बाद, उच्च जातियों के अनेक परिवार गरीब और निम्न जातियों के परिवार अमीर भी हैं।
हम ने क्या देखा?
सिर्फ निम्न जाति के पुरुषों के अधिकांश जोड़ों ने तेजी से सहयोगपूर्ण सहमति विकसित की (फिगर 1 का पैनल ए देखें)। पीरियड 5 तक निम्न जाति के दो तिहाई जोड़े सहयोग कर रहे थे, और अंतिम पीरियड (पीरियड 10) में तो 80 प्रतिशत जोड़े सहयोग कर रहे थे।
इसके विपरीत, उच्च जाति के अधिकांश जोड़े सहयोगपूर्ण सहमति नहीं दर्शा रहे थे और पीरियड 1-5 या पीरियड 6-10 में तय जोड़ों के लोगों में सहयोग बढ़ने का कोई रुझान नहीं था। पीरियड 5 में उच्च जाति के जोड़ों का पांचवां हिस्सा ही सहयोग कर रहा था। वहीं, पीरियड 10 में आधे जोड़े सहयोग कर रहे थे। उच्च जाति के जोड़े जो सहयोग नहीं कर रहे थे या तो समन्वय में असफल थे या दोनो खिलाडि़यों के बीच अकुशल संतुलन था जिसमें दोनो खिलाड़ी छोटे निवेश करते हैं। उच्च जाति के एक-तिहाई जोड़ों में अकुशल, सहयोग-रहित व्यवहार पीरियड 10 के अंत तक बना रहा दिखता है (देखें पैनल बी)। उच्च जाति के जोड़ों की तुलना में मिश्रित जातियों के जोड़ों में सहयोगपूर्ण संतुलन की अधिक संभावना दिखती है।
फिगर 1. उत्तर प्रदेश में उच्च और निम्न जाति के पुरुषों के साथ खेले गए बार-बार समन्वय वाले खेल के परिणाम
टिप्पणी : याद रखें कि पैनल ए के ऑब्जर्वेशन पैनल बी से भिन्न व्यक्तियों के लिए किए गए हैं। पीरियड 1-5 में सिर्फ उच्च जातियों या सिर्फ निम्न जातियों के जोड़ों के भागीदार पुरुष पीरियड 6-10 में मिश्रित जोड़ों के रूप में खेल रहे थे। वहीं, पीरियड 6-10 में सिर्फ उच्च जातियों या सिर्फ निम्न जातियों के जोड़ों के भागीदार पुरुष पीरियड 1-5 में मिश्रित जोड़ों के रूप में खेल रहे थे। अतः पैनल ए और बी के ऑब्जर्वेशन भिन्न-भिन्न खिलाड़ी समूहों के लिए किए गए हैं।
गौरतलब बात यह है कि उच्च जाति और निम्न जाति के खिलाडि़यों का व्यवहार इनको छोड़कर सारे पीरियड में एक जैसा था : (1) पहला पीरियड (जब बड़ा निवेश करने वालो का अनुपात निम्न-जाति के खिलाडि़यों में 68 प्रतिशत था जबकि उच्च जाति के खिलाडि़यों में उनका अनुपात 53 प्रतिशत ही था) और (2) उस पीरियड में जब समन्वय न होने के कारण किसी खिलाड़ी को नुकसान हो गया। नुकसान के प्रति रिस्पांस में अंतर क्यों? उच्च जाति और निम्न जाति के खिलाड़ी नुकसान की अलग-अलग ढंग से व्याख्या करते दिखते हैं। या अगर वे एक जैसी व्याख्या करते हैं, तो बदले की कार्रवाई के मामले में उनकी पसंद में अंतर होता है। दूसरे खिलाड़ी ने सहयोग किया होता तो नुकसान से बचा जा सकता था, इसलिए इसका वर्गीकरण अपमान के रूप में किया जा सकता है, जिसके लिए उच्च जाति के पुरुष के लिए सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त रिस्पांस बदला लेना है। साथ ही, उच्च जाति के पुरुष नैतिक रूप से काम करने के लिए उच्च जाति के अन्य पुरुषों से आशा करते हैं, निम्न जाति के पुरुषों से नहीं। इसीलिए निम्न जाति के पुरुष की अपेक्षा उच्च जाति के पुरुष के कारण नुकसान होने पर वे अधिक अपमानित महसूस करते हैं।
क्या बदला लेना विलासिता है? क्या इसकी व्याख्या की जा सकती है कि औसत से अधिक संपत्ति होने पर उच्च जाति के पुरुष निम्न जाति के पुरुषों की अपेक्षा अधिक बदला क्यों लेते हैं? उत्तर है - नहीं। जब हम अपना सैंपल सबसे गरीब खिलाडि़यों तक – मिट्टी-फूस की झोंपडि़यों में रहने वाले लोगों तक सीमित रखते हैं, तो समन्वय में कमी के कारण नुकसान के प्रति रिस्पांस में उच्च और निम्न जातियों के बीच में अधिक फासला रहता है। मिट्टी की झोंपडि़यों में रहने वाले लोगों में बड़े निवेश में नुकसान उठाने के बाद अगली बार बड़ा निवेश करना जारी रखने की संभावना उच्च जाति के जोड़ों में निम्न जाति के जोड़ों की अपेक्षा 72 प्रतिशत-अंक कम होती है। इसके विपरीत, जो खिलाड़ी मिट्टी की झोंपडि़यों में नहीं रहते हैं, उनमें बड़े निवेश में नुकसान उठाने के बाद अगली बार बड़ा निवेश करना जारी रखने की संभावना उच्च जाति के जोड़ों में निम्न जाति के जोड़ों की अपेक्षा सिर्फ 38 प्रतिशत-अंक कम होती है। बदले को विलासिता या संपन्न के हक की अनुभूति की अभिव्यक्ति के बतौर देखने पर इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है कि उच्च जाति के भागीदारों द्वारा बदले की कार्रवाई में असंगति क्यों है। हमारे प्रयोग में हक की भावना और बदले की कार्रवाई करने की इच्छा उच्च जाति से जुड़ी है न कि उच्च वर्ग से। उच्च जाति के गरीब लोग कुशल सहमति बना पाने में सबसे कम सक्षम थे।
जाति की स्थिति और बदला लेने के सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के बीच लिंक की और भी जांच करने के लिए हमने उत्तर प्रदेश के 22 छोटे गॉंवो में से प्रत्येक से उच्च जाति और निम्न जाति के पुरुषों के प्रतिनिधिक नमूनों का उपयोग करके मनोवैज्ञानिक सर्वे सर्वे किया। हमलोगों ने दो परिकल्पनात्मक परिदृश्य उनलोगों के सामने रखे। इसमें दिनेश नामक एक व्यक्ति का व्यवहार इस तरह का था कि उससे महेश नामक व्यक्ति को नुकसान पहुंचा। महेश ने दिनेश को बुरी तरह पीटकर उसका बदला लिया। दोनो में से प्रत्येक परिदृश्य के लिए हमने नमूने के हर व्यक्ति से पूछा कि नुकसान होने पर उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी। जिन मामलों में नुकसान करने वाले व्यक्ति के इरादों के प्रति अस्पष्टता थी, उनमें निम्न जाति के उत्तरदाताओं के मुकाबले काफी ऊंचे अनुपात में उच्च जाति के उत्तरदाताओं ने कहा कि वे आक्रामक ढंग से बदले की कार्रवाई करेंगे। आम आक्रामक टिप्पणी इस तरह की थी, ‘‘मैं जैसे को तैसा करूंगा, नहीं तो लोग सोचेंगे कि मैं कमजोर हूं’’ और ‘‘नुकसान करना गलत बात है’’। मनोवैज्ञानिक सर्वे के उत्तर में जाति के आधार पर अंतर नृवैज्ञानिक अध्ययन के साथ संगतिपूर्ण हैं जिसमें उच्च जाति के लोगों में निम्न जाति के लोगों की अपेक्षा हैसियत और सम्मान के प्रति काफी अधिक चिंता होना दर्शाया गया है।
सम्मान की संस्कृति में ‘सम्मान’ कथित अपराधों के मामले में आक्रामक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए एक प्रतिष्ठा का पर्याय है। विश्वास किया जाता है कि यह प्रतिष्ठा दूसरे लोगों को किसी के अधिकार या पद को चुनौती देने से रोकती है।
आप क्या देखते हैं यह इस पर निर्भर करता है कि कौन से विचार सबसे सुलभ हैं
आर्थिक व्यवहार को समझने में विशेष अर्थ लगाने की अवधारणा का बहुत उपयोग नहीं किया गया है। व्यक्ति तटस्थ परिस्थितियों में प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करते हैं; वे उसको जैसा समझते हैं और उसकी जैसी व्याख्या करते हैं, उस स्थिति के अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।
समझ को विभिन्न अवधारणाओं की सुलभता कैसे प्रभावित करती है, उसका एक उदाहरण यह है : नीचे की तस्वीर में आप क्या देखते हैं?
अक्तूबर में पूछने पर प्रयोग के लिए चुने गए अधिकांश उत्तरदाताओं ने ज्युरिख चिडि़याघर में जाते हुए बताया कि वह पक्षी है। लेकिन जब इस्टर वाले रविवार को पूछा गया, तो अधिकांश लोगों ने कहा कि वह खरगोश है। अपेक्षाओं का समझ पर पूर्वाग्रह पैदा करने वाला प्रभाव होता है (ब्रगर एंड ब्रगर 1993)। पश्चिमी लोगों के लिए ईस्टर के समय खरगोश आसानी से उपलब्ध होता है लेकिन पतझड़ में नहीं। इसलिए ईस्टर के आसपास अधिकांश लोग उसे खरगोश के रूप में देखते हैं और पतझड़ में पक्षी के रूप में (जिस चिड़िया का नाम सबसे अधिक बार लिया गया वह बत्तख थी)।
गांवों में उच्च जाति के लड़कों को कम उम्र से ही अपमान के खिलाफ बदले की कार्रवाई करने के लिए सिखाया जाता है। इससे उच्च जाति के पुरुषों के लिए सम्मान अत्यंत सुलभ धारणा बन जाता है। सम्मान की संस्कृति का वर्णन ‘‘मध्यस्थ धारणा’’ के रूप में किया गया है जिसके जरिए व्यक्ति वास्तविकता की व्याख्या करते हैं (पिट-रिवर्स 1966)। ग्रामीण उत्तर भारत में यह संस्कृति निम्न जाति की अपेक्षा उच्च जाति के लोगों में अधिक मजबूत है। यह विश्व के अनेक समूहों में मजबूत है, जैसे कि अमेरिका के दक्षिणी भाग में गोरे लोगों में और अमेरिका के ‘घेट्टो’ (अविकसित बस्तियों) के अपराधी गिरोह के सदस्यों में (निस्बत एंड कोहेन 1996, हेलर एवं अन्य 2017)। एक मिल्वाकी पुलिस प्रधान ने अपने शहर के उग्र निम्नवर्गीय समुदायों में सम्मान की संस्कृति का वर्णन इस तरह से किया था : ‘‘अपने समकक्ष समुदाय में कोई अगर अपनी हैसियत और विश्वसनीयता तथा सम्मान बनाए रखना चाहता है, तो यह उसके लिए जीवन-मरण का मामला होता है’’ (डेवी एंड स्मिथ 2015)। सम्मान की प्राचीन संस्कृति के बारे में कादार (1990) का ‘ब्रोकन अप्रैल’ एक खूबसूरत उपन्यास है।
साक्ष्य बताते हैं कि हमारे प्रयोग में सहयोग करना सीखने के मामले में जातियों के बीच अंतर की व्याख्या यह है कि उच्च जाति के अनेक पुरुष समन्वय नहीं हो पाने के कारण हुए नुकसान को नासमझी में की गई भूल के बजाय अपमान के जैसे महसूस करते हैं। उन्हें अपमान के खिलाफ बदला लेने की कार्रवाई करना सिखाया गया है। समन्वय वाले खेल में बदला लेने की कार्रवाई (संयुक्त परियोजना में छोटे निवेश करके) दोनो खिलाडि़यों को बड़े निवेश करने के लिहाज से एक जैसी अपेक्षा करना अधिक मुश्किल बना देती है।
आर्थिक परिवर्तनशीलता के लिए नीतिगत निहितार्थ
चूंकि आर्थिक विकास से परिवर्तनशीलता (मोबिलिटी) ऊपर और नीचे, दोनो दिशा में बढ़ जाती है इसलिए इससे सामाजिक वर्ग और हैसियत में तुलनात्मक गिरावट के मामले में असुरक्षा बढ़ जाती है। हमारे प्रयोग के उच्च जाति के गरीब उत्तरदाता – ऐसे लोग जिनके पूर्वज आय के वितरण के लिहाज से संभवतः ऊंची स्थिति में थे – सहयोग करना सीखने में सबसे कम सक्षम थे। इससे पता चलता है कि आर्थिक विकास से ग्रामीण उत्तर भारत में खराब समन्वय की समस्या के और भी गंभीर होने की आशंका है।
हमारे शोध परिणाम समस्या के समाधान के लिए नई तरह की नीतियां अपनाने का सुझाव देते हैं। लोग स्थितियों को जिस तरह से समझते हैं और उनके मामले में जैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, उनमें नीतियां बदलाव ला सकती हैं। समझ में बदलाव लाने वाले हस्तक्षेपों में सफलता मिली है जिन से शिकागो के घेट्टो में सम्मान की संस्कृति वाले युवकों द्वारा होने वाली हिंसा में कमी आई है (हेलर एवं अन्य 2017)। ऐसे हस्तक्षेपों से लाइबेरिया में गृहयुद्ध के बाद जमीन के दावेदारों के बीच विवादों में कमी लाने में भी सफलता मिली है (ब्लैटमैन, हार्टमैन एंड ब्लेयर 2014)। शिकागो में हस्तक्षेपों के तीन ‘रैंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल' ने वंचित पुरुषों को सिखाया कि अधिकार प्रदर्शन के मामले में आक्रामक प्रतिक्रिया दर्शाने के पहले उन्हें दुबारा सोचना चाहिए। हस्तक्षेपों से सहभागियों की उच्च विद्यालय की शिक्षा पूरी करने की दरों में 6 से 9 प्रतिशत-अंकों की वृद्धि हुई और कार्यक्रम की अवधि में हिंसक अपराध के मामले में गिरफ्तारी में 44 से 50 प्रतिशत की कमी आई।
हमारा शोध परिणाम यह है कि उच्च जाति के पुरुष अक्सर नासमझी में समन्वय में कमी होने के चलते हुए नुकसान के मामले में अक्सर बदले की कार्रवाई करते हैं, और साझा हित वाले खेल में बार-बार होने वाले इंटरऍक्शन से सहयोग करना सीखने की उनकी क्षमता उस आक्रामक प्रतिक्रिया से बाधित होती है। यह उत्तर भारत के गांवों में समझ में बदलाव लाने के मामले में इस तरह के हस्तक्षेपों के महत्व को रेखांकित करता है।
लेखक परिचय: कार्ला हॉफ़ वर्ल्ड बैंक में लीड इकनॉमिस्ट, और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में विज़िटिंग प्रॉफेसर हैं।
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