मानव विकास

क्या भारत अपने सरकारी स्कूलों में सुधार कर सकता है? - शोध कहता है हां

  • Blog Post Date 17 जुलाई, 2020
  • लेख
  • Print Page
Author Image

Naveen Kumar

University of California, San Diego

navkumg@gmail.com

यह एक महत्वपूर्ण नीतिगत प्रश्न है कि क्या छात्र परिणामों को प्रभावी ढंग से बढ़ाने के लिए सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार किया जा सकता है। यह लेख भारत में उच्च गुणवत्ता वाले सार्वजनिक स्कूल बनाने के लिए एक प्राकृतिक प्रयोग के प्रभावों की जांच करता है, जिसे 'मॉडल स्कूल' कहा जाता है। यह ज्ञात होता है कि मॉडल स्कूलों में अध्‍ययन करने से छात्रों के मुख्य विषयों की परीक्षाओं में अंक बढ़ जाते हैं, और ग्रेड 10 में A या A+ प्राप्त करने की संभावना 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

 

विकासशील देशों में सरकारी स्कूलों में बच्चों के सीखने का स्तर काफी कम है। उदाहरण के लिए, 2018 में, भारत में सार्वजनिक-स्कूल के पाँचवी कक्षा के आधे से ज्यादा बच्चे दूसरी कक्षा स्तर (एएसईआर (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) सेंटर, 2019) में भी नहीं पढ़ पा रहे थे। सरकारी स्कूलों की निम्न गुणवत्ता की प्रतिक्रिया स्‍वरूप, विकासशील देशों ने ऐसी नीतियां लागू की हैं जो निजी स्कूल में अध्‍ययन पर सब्सिडी देती हैं। हालांकि, इस बात के साक्ष्‍य मिश्रित हैं कि क्या निजी स्कूल छात्र परीक्षा के अंकों में सुधार करते हैं, और कई बच्चे अभी भी सरकारी स्कूलों (उरक्विओला 2016) पर निर्भर हैं। अकेले भारत में, 65% स्कूली बच्चे (12 करोड़ छात्र) सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं।

इस प्रकार, यह एक महत्वपूर्ण नीतिगत प्रश्न है कि क्या छात्र परिणामों को प्रभावी ढंग से बढ़ाने के लिए सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार किया जा सकता है। मेरे हाल के शोध (2020) में मैंने भारत में शिक्षा नीति में एक नैचुरल एक्सपेरिमेंट का उपयोग किया है ताकि उच्च-गुणवत्ता वाले सरकारी स्कूलों को बनाने के लघु एवं दीर्घकालिक प्रभावों पर प्रथम साक्ष्‍य प्रदान किया जा सके।

एक प्राकृतिक प्रयोग: 'मॉडल' स्कूलों का कार्यक्रम

2009 में शुरू किए गए मॉडल स्कूलों के कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे सरकारी स्कूलों की स्थापना की गई, जिनका बुनियादी ढाँचा बेहतर हो, उच्च जवाबदेही हो, शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो, और जिनमें संविदा शिक्षक कार्यरत हों। इसका उद्देश्य प्रत्येक शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉक (ईबीबी) में एक असाधारण अच्छे सार्वजनिक स्कूल की शुरुआत करना था जो पारंपरिक सरकारी स्कूलों के अनुकरण के लिए एक आदर्श की भूमिका निभा सके। एक ब्लॉक को शैक्षिक रूप से पिछड़ा तब माना जाता है जब उसका महिला साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम हो, और साक्षरता में उसका लिंग अंतर 2001 में राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो। मैंने भारत के एक दक्षिणी राज्य कर्नाटक के सभी 74 मॉडल स्कूलों को देखा, जहां मॉडल स्कूल ग्रेड 6 से शुरू होते हैं और ग्रेड 10 पर समाप्त होते हैं।

स्कूल की गुणवत्ता को मापने की चुनौती

ऐसी कुछ अनदेखी विशेषताओं के आधार पर छात्र स्कूलों का चयन कर सकते हैं जो शैक्षणिक उपलब्धि में योगदान देते हैं, जैसे स्वयं की क्षमता, माता-पिता की शिक्षा, आय इत्यादि। मॉडल स्कूलों या निजी स्कूलों में छात्र की उपलब्धि में कोई भी अंतर स्कूल की गुणवत्ता या पारिवारिक विशेषताओं के कारण हो सकता है। इसलिए, केवल स्कूल के प्रभाव को अलग करना मुश्किल है।

मॉडल स्कूलों की प्रवेश संरचना मुझे उपरोक्‍त स्कूल चयन चुनौती से उबरने की अनुमति देती है। कर्नाटक में एक मॉडल स्कूल में प्रवेश एक प्रवेश परीक्षा के माध्यम से निर्धारित किया जाता है। प्रवेश परीक्षा ब्लॉक स्तर पर आयोजित की जाती है, इसलिए एक विशेष ब्लॉक में रहने वाले छात्र ही उस ब्लॉक में मॉडल स्कूल के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसके अलावा, एक मॉडल स्कूल में भाग लेने के लिए छात्र आठ जाति श्रेणियों (एससी, एसटी, 2, 2A, 2B, 3A, 3B, C1, जीएम)1 के तहत आवेदन कर सकते हैं क्योंकि दाखिला उनकी श्रेणी के अंतर्गत प्रदर्शन के आधार पर होता है।

प्रत्येक मॉडल स्कूल में कुल 80 छात्रों को दाखिला दिया जा सकता है। परीक्षा प्राधिकरण द्वारा तैयार की गई प्रवेश सूचियों का उपयोग करते हुए प्रत्येक मॉडल स्कूल के प्रधानाचार्य प्रवेश परीक्षा स्कोर और जाति श्रेणी के आधार पर घटते क्रम में छात्रों को प्रवेश देते हैं। इस चयन प्रक्रिया से प्रत्येक मॉडल स्कूल के भीतर प्रत्येक जाति श्रेणी के लिए कट-ऑफ स्‍कोर बन जाता है। इस प्रवेश प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, एक मॉडल स्कूल में लगभग एक जैसे छात्रों को या तो दाखिला मिलता है या अस्वीकार कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि एक स्कूल में अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी के तहत कट-ऑफ स्कोर 70 अंक है और एक एससी श्रेणी का छात्र जिसने 70 का स्कोर प्राप्‍त किया है तो वह मॉडल स्कूल में जा सकता है। लेकिन एक एससी श्रेणी में 69 का स्कोर करने वाले छात्र का दाखिला नहीं होगा।

मैंने उन छात्रों, जो अपने ब्लॉक और जाति श्रेणी के भीतर प्रवेश कट-ऑफ स्कोर से थोड़ा सा ऊपर और नीचे स्कोर करते हैं, के परिणामों की तुलना करके एक मॉडल स्कूल में अध्‍ययन करने के कारण प्रभावों का निर्धारण किया है।

मैंने भविष्य के दो बिंदुओं: ग्रेड 10 और विश्वविद्यालय-पूर्व स्‍तर पर तीन प्रतिबंधित छात्र-स्तरीय प्रशासनिक डेटासेट को उन छात्रों पर नज़र रखने के लिए जोड़ा जो ग्रेड 5 में मॉडल स्कूल प्रवेश परीक्षा में उपस्थित हुए थे। इन तीन वर्गों में 74 मॉडल स्कूलों के 63,000 से अधिक छात्रों के डेटासेट के साथ, मैं स्कूली परिणामों के तीन आयामों की जांच कर सका: (ए) परीक्षा स्कोर और अंतिम ग्रेड द्वारा मापी गई शैक्षणिक उपलब्धि; (बी) स्कूली शिक्षा के वर्षों का उपयोग करते हुए शैक्षणिक उपलब्धि संकेतक; और (सी) विश्वविद्यालय-पूर्व स्‍तर पर प्रमुख पसंद का उपयोग कर कैरियर विकल्प।

निष्‍कर्ष

शैक्षणिक उपलब्धि के संबंध में, एक मॉडल स्कूल में अध्‍ययन करने से गणित परीक्षा के अंकों में 0.38 मानक विचलन (एसडी)2 (100 अंकों में से 6.8), विज्ञान परीक्षा के अंकों में 0.26 एसडी (4.1 अंक), तथा सामाजिक विज्ञान परीक्षा के अंकों में 0.26 एसडी (4.7 अंक) तक की औसतन वृद्धि होती है (सभी सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण)। एक मॉडल स्कूल में अध्‍ययन करने से ग्रेड 10 में A या A+ ग्रेड प्राप्त करने की संभावना सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण 20 प्रतिशत अंक तक बढ़ जाती है।

शैक्षणिक उपलब्धि संकेतकों के संदर्भ में, एक मॉडल स्कूल में अध्‍ययन करने से ग्रेड 10 उत्तीर्ण करने की संभावना 5.3 प्रतिशत अंक बढ़ जाती है, और विश्वविद्यालय-पूर्व कॉलेज में प्रवेश लेने की संभावना सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण 11.9 प्रतिशत अंकों तक बढ़ जाती है। हालांकि विश्वविद्यालय-पूर्व शिक्षा में विज्ञान, कला, या वाणिज्य को एक प्रमुख विषय के रूप में चुनने की संभावना पर मॉडल स्कूलों का कोई सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं प्रतीत होता है।

यह सबसे ज्यादा किसको प्रभावित करता है?

गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा के लिए असमानता के संबंध में स्पष्ट चिंताओं को देखते हुए एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि क्या ये प्रभाव जाति, लिंग या छात्र की योग्यता के अनुसार अलग-अलग हैं। प्रारंभिक परिणाम बताते हैं कि जाति के हिसाब से बदलाव बहुत कम है। यह प्रवेश परीक्षा के अंकों में पर्याप्त जातिगत अंतर न होने और कुछ जाति श्रेणियों के भीतर प्रतिदर्श आकार की कमी के कारण है। लिंग के संबंध में, मुझे लगता है कि मॉडल स्कूल लड़कियों के परिणामों में लड़कों के परिणामों के बराबर ही सुधार करते हैं। छात्र की अभिरुचि के संबंध में परिणाम बताते हैं कि छात्रों की क्षमता वितरण पर मॉडल स्कूलों का ऐसा ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

संभावित परिवर्तन तंत्र

स्कूल की विशेषताओं, साक्षात्कारों, स्कूलों में व्‍यक्तिगत रूप से जाकर और वास्तविक साक्ष्‍यों के प्रशासनिक डेटा का उपयोग करते हुए मैंने एक मॉडल स्कूल में अध्‍ययन करने के बड़े महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभावों हेतु निम्नलिखित तीन कारकों को श्रेय दिया है:

  • संविदा शिक्षक: शिक्षकों को स्थायी सिविल कर्मचारी के रूप में नियोजित करने के बजाय उन्‍हें संविदा संरचना के आधार पर काम पर रखा जाता है। जैसा कि साक्ष्‍यों से ज्ञात होता है, यह प्रोत्साहन को बदल देता है, और शिक्षकों को उच्च प्रयास स्तर (ड्यूफ्लो एवं अन्‍य 2015) के आगे प्रेरित करता है।
  • स्कूल प्रशासन: स्कूल प्रशासन, जो स्‍कूल के दैनिक कार्यों निष्‍पादन हेतु जिम्मेदार होता है, में सुधार किया जाता है। इसे शिक्षक संविदा ढ़ांचे के साथ पूरक किया जाता है, जिससे सरकारी स्कूलों के उचित कामकाज (एंबिटी एवं अन्‍य 2019) को बढ़ावा मिलता है।
  • अध्‍ययन के माध्यम के रूप में अंग्रेजी, और बुनियादी ढाँचा: अध्‍ययन के माध्‍यम के रूप में क्षेत्रीय भाषा को रखने के बजाय अंग्रेजी को डिफ़ॉल्ट माध्यम के रूप में रखने के साथ-साथ बेहतर बुनियादी ढांचा छात्र मनोविज्ञान को सकारात्मक तरीके से प्रभावित कर सकता है। अंग्रेजी में अध्‍ययन से उच्च प्रतिगमन (आजम और चिन 2011) का संकेत देने वाले सुप्रलेखित साक्ष्‍य हैं।

नीति निर्माताओं के लिए निहितार्थ

मैंने अपने अध्ययन में पाया कि साक्ष्‍य नीति निर्माताओं के लिए भी प्रासंगिक हैं।

  • महत्वाकांक्षी मॉडल स्कूलों की योजना को अभी सभी राज्य सरकारों द्वारा या तो पूर्ण रूप से लागू किया जाना है या अपनाया जाना है। उदाहरण के लिए, ईबीबी वाले 21 राज्यों में से 12 राज्‍यों में 2016 तक मॉडल स्कूल सक्रिय नहीं थे।
  • कर्नाटक में 2019-20 शैक्षणिक वर्ष में 1,000 पारंपरिक सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी-माध्यम ट्रैक शुरू करने की योजना बनाई गई है। एक अलग नीति में, कर्नाटक सरकार मॉडल स्कूलों की डिजाइन के बाद बनाए गए 173 ‘कर्नाटक सरकारी स्कूलों’ की स्थापना कर रही है जो ग्रेड 1 से लेकर ग्रेड 12 तक होंगे।
  • एक गणना से पता चलता है कि मॉडल स्कूलों में प्रति छात्र वार्षिक खर्च पारंपरिक सरकारी स्कूलों के तुलनीय है।

कुल स्‍कूलों में से 75% स्कूल (लगभग 10 लाख) सार्वजनिक स्कूल होने, और स्‍कूलों में अध्‍ययनरत बच्‍चों में से 65% (लगभग 12 करोड़) बच्चे सार्वजनिक स्कूल में अध्‍ययनरत होने के साथ, भारत में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता एक प्रथम-क्रम नीतिगत विषय है (मुरलीधरन 2018)। पिछले 15 वर्षों से, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार भारत के पूर्व योजना आयोग के मूल में रहा है। राष्ट्रीय या राज्यव्यापी कार्यान्वयन से पहले बेहतर सरकारी स्कूलों के प्रभावों को उजागर करना उनकी सफलता के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।

टिप्पणियाँ:

  1. एससी - अनुसूचित जाति, एसटी - अनुसूचित जनजाति, ओबीसी - अन्य पिछड़ा वर्ग (2A, 2B, 3A, 3 B, C1), और जीएम - सामान्य योग्यता।
  2. मानक विचलन वह माप है जिसका उपयोग किसी सेट के मध्‍य-मान (औसत) से मानों के उस सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। 

लेखक परिचय: नवीन कुमार, सैन डिएगो स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में पोस्टडॉक्टोरल स्कॉलर हैं।

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें