उत्पादकता तथा नव-प्रवर्तन

एक उज्जवल भविष्य : झारखंड के एक गाँव में सौर ऊर्जा माइक्रो-ग्रिड

  • Blog Post Date 17 दिसंबर, 2024
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Animesh Ghosh

Ashoka Centre for a People-centric Energy Transition

animesh.ghosh@ashoka.edu.in

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Anandjit Goswami

Ashoka Centre for a People-centric Energy Transition

anandajit.goswami@ashoka.edu.in

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Rakesh Kacker

Ashoka Centre for People-centric Energy Transition

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस, जो हर साल 14 दिसंबर को मनाया जाता है, भारत में ऊर्जा संरक्षण और संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित करता है। 2024 की थीम सामूहिक ऊर्जा-बचत प्रयासों के प्रभाव पर जोर देती है- 'सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देना : हर वाट महत्वपूर्ण है'। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत इस आलेख में एक सौर माइक्रो ग्रिड की चर्चा की गई है। छोटी-छोटी बस्तियों वाला, झारखंड का सिमडेगा जिला, नीति आयोग के 'आकांक्षी जिलों' में शामिल हैं जो अभी तक ग्रिड-आधारित बिजली से नहीं जुड़ा है। लेखकों ने इस लेख में चर्चा की है कि कैसे चेंझेरिया गाँव में सौर माइक्रो-ग्रिड की स्थापना से आजीविका के अवसर पैदा हुए हैं, साथ ही पारिवारिक जीवन को आसान और अधिक उत्पादक बनाया है। उन्होंने इस पहल के वित्तीय पहलुओं को रेखांकित किया है और टिकाऊ व्यवसाय मॉडल विकसित करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला है।

झारखंड के सिमडेगा जिले के चेंझेरिया गाँव के लालिंदर ने कभी अपने घर में बिजली नहीं देखी थी। तीन ‘स्टैंडअलोन सोलर-ऑपरेटेड’ स्ट्रीट लाइट्स को छोड़कर, लालिंदर का गाँव हर दिन सूर्यास्त के बाद अंधेरे में डूब जाता था, जबकि छोटी सोलर बैटरी से चलने वाली लाइटें या केरोसिन वाले दीप घरों को पर्याप्त रूप से रोशन नहीं कर पाते थे।

सिमडेगा भारत सरकार के 'आकांक्षी जिला कार्यक्रम'1 के दायरे में आता है। जिले में छोटी और अलग-थलग बसी बस्तियाँ शामिल हैं जो बिजली आपूर्ति के लिए अभी तक मुख्य ग्रिड से नहीं जुड़ी हैं। सम्भावित सोलर मिनी और माइक्रो-ग्रिड परियोजनाओं (माइक्रो-ग्रिड यूनिट 10 किलोवाट से कम क्षमता वाली होती है) के सन्दर्भ में ऐसी बस्तियों को 'वर्जिन एरिया' माना जाता है। दिसंबर 2022 में परोपकारी अनुदान के समर्थन से सोलर माइक्रो-ग्रिड यूनिट की स्थापना होने के बाद, चेंझेरिया के 36 घरों के जीवन में एक जादुई बदलाव आया है।


फोटो स्रोत : लेखकों द्वारा खींचा हुआ चित्र।

घरों और कार्यस्थलों को बिजली की आपूर्ति

लालिंदर के लिए, सुनिश्चित बिजली आपूर्ति का मतलब था सपनों और आकांक्षाओं को साकार करने की सम्भावना। उनकी माँ और बहनों को अब काम करने के लिए ज़्यादा समय मिलता है। उनका दिन बिजली की रोशनी में खाना बनाने और दूसरे घरेलू काम निपटाने से सुबह 3 बजे से ही शुरू हो जाता है। मिक्सर ब्लेंडर और बिजली वाली इस्तरी जैसे उपकरणों के इस्तेमाल से महिलाओं का जीवन पहले से आसान हो गया है।

चावल को सैला करना यानी पारबोइलिंग और छिलका निकालना जैसी फसल के बाद की प्रक्रिया का कार्य सुबह के समय शुरू हो जाता है। परिवार सुबह 8 बजे तक अपने खेतों में काम पर जाने के लिए तैयार हो जाता है ताकि बहुत अधिक गर्मी होने से पहले सुबह के कीमती घंटों का सदुपयोग किया जा सके। इसके अलावा, खेतों की सिंचाई के लिए किफायती दर से बिजली उपलब्ध है और मानसून पर निर्भर फसलों के अलावा दूसरी फसलें भी उगाई जा सकती हैं। अब लकड़ी काटते समय लालिंदर को बिजली की आरी के उपयोग की सुविधा भी मिली है जिसके परिणामस्वरूप काम तेज़ी से पूरा हो रहा है और उनकी उत्पादकता में भी वृद्धि हो रही है।

दोपहर से पहले खेत का कार्य खत्म करने से से न केवल पूरे परिवार को दिन के कार्यक्रम की योजना बनाने और अन्य घरेलू कामों को पूरा करने में सुविध मिलती है, बल्कि अन्य भुगतान वाले काम करने का अवसर भी मिल जाता है। उदाहरण के लिए, लालिन्दर अब गाँव के समारोहों और शादियों में बिजली वाले डीजे सेट का उपयोग कर रहे हैं तथा बिजली कनेक्शन के कारण उन्हें अपेक्षाकृत महंगे डीज़ल चालित जनरेटर सेट के उपयोग से मुक्ति मिल गई है।

घर के बच्चे शाम को अपनी पढ़ाई और आराम से अपना होमवर्क पूरा कर पाते हैं। गर्मी के दिनों की तपती धूप से राहत के लिए पंखे का इस्तेमाल किया जाता है। यह सब चेंझेरिया गाँव में 8 किलोवाट के सोलर माइक्रो-ग्रिड सिस्टम से बिजली मिलने के कारण सम्भव हुआ है। पिछले एक साल में इन घरों में बिजली आपूर्ति में वोल्टेज या ल्यूमेन में कोई उतार-चढ़ाव नहीं हुआ है और बिजली गुल होने की एक भी घटना नहीं हुई है। यहाँ तक ​​कि घने बादल छाए रहने पर भी, जब धूप की कमी के कारण सौर पैनलों को चार्ज करना मुश्किल हो जाता है, तब भी सौर माइक्रो-ग्रिड एक सप्ताह तक बिना किसी रुकावट के काम कर सकता है और गाँव की बिजली की ज़रूरतों को पूरा कर सकता है। यह बैटरी स्टोरेज सिस्टम के कारण सम्भव हुआ है, जिसमें 2 वोल्ट की क्षमता वाली 60 बैटरियाँ शामिल हैं। पावर स्टैक के पाँच सेटों की एक श्रृंखला में नियोजित 120-वोल्ट स्टोरेज क्षमता से रात में और बादल वाले दिनों में भी बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हो जाती है। यह पूरी तरह से एक स्वचालित प्रणाली है जिसमें इन्वर्टर उत्पन्न बिजली से बैटरियों को चार्ज करते हैं और इन बैटरियों से आगे ग्रिड को आपूर्ति की जाती है। जब बैटरी स्टोरेज अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच जाती है तो इन्वर्टर अपने आप कट जाता है और स्टोरेज कम होने पर बैटरी चार्जिंग प्रक्रिया को फिर से शुरू कर देता है।

इसकी लागत कितनी है

चेंझेरिया गाँव के मामले में, स्वचालित प्रणाली की निवेश लागत प्रति परिवार लगभग 60,000 रुपये है। परिवारों को आंतरिक वायरिंग, चार बल्बों के कनेक्शन, दो प्लग पॉइंट, बिजली मीटर और मिनिएचर सर्किट ब्रेकर (एमसीबी) सिस्टम के लिए 1,500 रुपये का अग्रिम भुगतान करना पड़ता है।


फोटो स्रोत : लेखकों द्वारा खींचा हुआ चित्र।

इसके अलावा, ग्राम समिति द्वारा जिसमें गाँव के परिवारों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, प्रत्येक परिवार से 1,500 रुपये की सुरक्षा जमा राशि ली जाती है। औसत मासिक बिल 120-130 रुपये के बीच है, जिसमें से 100 रुपये निश्चित लागत है और शेष 10 रुपये प्रति यूनिट की दर से खपत के आधार पर भिन्न-भिन्न होता है, जिससे तीन-फेज़ कनेक्शन से चार चार्जिंग पॉइंट और एक पंखे का अतिरिक्त कनेक्शन सुनिश्चित होता है। यदि कोई परिवार अंशकालिक व्यवसाय के लिए एक से अधिक उपकरणों का उपयोग करता है, तो मासिक बिल 350 रुपये तक जा सकता है। माइक्रो-ग्रिड से जुड़े अधिकांश परिवार इसके लिए भुगतान करने में सक्षम थे और कनेक्शन के सम्भावित भविष्य के लाभों को देखते हुए, भुगतान के लिए तैयार थे।

मासिक बिजली बिलों के माध्यम से उपभोक्ताओं से प्राप्त आय का उपयोग माइक्रो-ग्रिड इकाई के पूर्ण परिचालन, मरम्मत और रखरखाव की लागतों को पूरा करने के लिए किया जाता है। जिस भूमि पर परियोजना स्थित है, उसके मालिक को मुफ्त बिजली प्रदान की जाती है और बदले में उसे, पट्टे की लागत माफ कर दी जाती है।

चूंकि ये शुल्क सब्सिडी वाले हैं, इसलिए वे बिजली प्रावधान की वास्तविक लागत को नहीं दर्शाते हैं। वर्तमान में, यह सब्सिडी निवेश और परिचालन लागतों का 75% है। एक ओर, लागत में वृद्धि से सब्सिडी वाले बिल पर दबाव बढ़ सकता है, जबकि परिवारों में माइक्रो-ग्रिड तक पहुँच के लिए अधिक भुगतान करने की क्षमता और इच्छा में वृद्धि से भविष्य में सब्सिडी में कमी आ सकती है।

भविष्य में सार्वजनिक वित्त के साथ मिश्रित वित्त के एक आत्मनिर्भर व्यवसाय मॉडल पर काम करने की आवश्यकता है ताकि निवेश एवं परिचालन लागतों की वसूली के लिए दी जाने वाली सब्सिडी राशि को कम किया जा सके।

आत्मनिर्भर व्यवसाय मॉडल की ओर बढ़ना

ग्रामीण परिवारों को लम्बे समय तक सब्सिडी आधारित बिजली के प्रावधान से बाहर आने के लिए, गाँव में परिवारों की भुगतान क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है। सौर माइक्रो-ग्रिड संचालन ने कृषि और सामाजिक उद्यमों के निर्माण को बढ़ावा दिया है, जिसका इस सम्बन्ध में लाभ उठाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, चेंझेरिया गाँव में एक सह-लाभ जो सामने आया है, वह बचत की सहकारी संरचना है। प्रत्येक परिवार से प्राप्त 1,500 रुपये की सुरक्षा जमा राशि का उपयोग भविष्य में किसी भी मरम्मत या प्रतिस्थापन संबंधी लागत को पूरा करने हेतु एक कोष के लिए किया जाता है। इस कोष से एक सामुदायिक बचत पूल सुनिश्चित होता है, जिसका उपयोग उसके बाद की पारिवारिक ज़रूरतों के लिए भी किया जा सकता है और यह जोखिम को रोकने या ‘रिस्क हेजिंग’ विकल्प के रूप में कार्य कर सकता है, जो पहले केवल पारिवारिक बचत के ज़रिए पूरा किया जाता था। उपभोक्ताओं में डिफ़ॉल्ट दर बहुत कम है, साथ ही अधिकांश उपभोक्ताओं द्वारा अपने मासिक बिलों और सुरक्षा जमा का भुगतान करने के कारण बचत संचय में वृद्धि हुई है। गाँव के प्रतिनिधियों द्वारा परिवारों से चुने गए पाँच महिला और चार पुरुष प्रतिनिधियों की एक 'ऊर्जा समिति' कोष का प्रबंधन करती है और ग्रिड ऑपरेटर को हर महीने 1,000 रुपये की मामूली राशि का भुगतान किया जाता है।

भविष्य की तैयारी

जैसा कि लालिंदर के मामले में नजर आता है, सौर ऊर्जा के चलते गाँव में उद्यम निर्माण को बढ़ावा मिला है। बिजली के उपकरणों के उपयोग में वृद्धि के साथ, समय के साथ सौर ग्रिड पर वाणिज्यिक भार बढ़ने की उम्मीद है। यदि प्रत्येक परिवार को उसके व्यावसायिक भार को पूरा करने हेतु बिजली उपलब्ध करानी है तो गाँव के परिवारों को अलग से कनेक्शन देने की आवश्यकता होगी।

समुदाय ने इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, सौर मिनी-ग्रिड के मॉड्यूलर विस्तार या भविष्य में एक नए माइक्रो-ग्रिड की स्थापना का सुझाव दिया है। यदि सामुदायिक, ग्रामीण विकास और ऊर्जा पहुँच कार्यक्रमों और सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से बड़े परोपकारी धन जुटाए जाए जाएँ तो ऐसी स्थापनाएँ हो सकती हैं।


फोटो स्रोत : लेखकों द्वारा खींचा हुआ चित्र।

ग्रामीण परिवारों में ग्रिड-आधारित बिजली के अभाव में, चेंझेरिया जैसे अलग-थलग गाँवों में सौर-आधारित माइक्रो-ग्रिड का महत्व केवल बढ़ने वाला है। इसका निरंतर प्रावधान इस बात पर निर्भर करेगा कि ऊर्जा वित्तपोषण के उपयुक्त व्यवसाय मॉडल, जिसमें सामाजिक-आर्थिक, विकास, शासन और राजनीतिक संदर्भों को ध्यान में रखते हुए इनके विकास की परिकल्पना किस प्रकार से की गई है। यह इन परिवारों तक ग्रिड आधारित, उच्च गुणवत्ता वाली बिजली बैकअप प्रणालियों और मॉड्यूलर क्षमताओं की पहुँच तक परिवर्तन के अंतरिम चरण में सही साबित होगा।

चेंझेरिया का मामला इस बात पर प्रकाश डालता है कि भारत के ‘आकांक्षी’ गाँवों में सौर माइक्रो-ग्रिड के परोपकारी, अनुदान-आधारित वित्तपोषण मॉडल, माइक्रो-ग्रिड वित्तपोषण को बढ़ाने हेतु उत्प्रेरक वित्तपोषण द्वारा समर्थित, वर्ष 2030 तक देश के 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं, जबकि वर्ष 2047 तक देश के विकासात्मक लक्ष्यों को संतुलित और प्राप्त किया जा सकता है।

यहाँ व्यक्त सभी विचार व्यक्तिगत हैं। इस विश्लेषण के लिए किया गया शोध, एचएसबीसी परियोजना के वित्तपोषण ऊर्जा संक्रमण घटक के लिए अशोका सेंटर फॉर पीपल-सेंट्रिक एनर्जी ट्रांजिशन (एसीपीईटी) द्वारा एचएसबीसी से प्राप्त वित्त-पोषण सहायता के कारण सम्भव हुआ है।

क्षेत्र का दौरा टीआरआईएफ से क्षेत्रीय समन्वय और सुविधा समर्थन के कारण सम्भव हुआ है।

टिप्पणी :

  1. ‘आकांक्षी जिला कार्यक्रम’ के अंतर्गत स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, बुनियादी ढाँचे और गरीबी (नीति आयोग, 2018) से युक्त एक समग्र सूचकांक के आधार पर जिलों को रैंक किया गया है। यह कार्यक्रम प्रगति को मापता है और उन क्षेत्रों को लक्षित करता है जहाँ विकास की सबसे अधिक आवश्यकता है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : शर्मिष्ठा बेग अशोका सेंटर फॉर ए पीपल-सेंट्रिक एनर्जी ट्रांजिशन (एसीपीईटी) में रिसर्च फेलो हैं। इससे पहले उन्होंने नीलसनआईक्यू के साथ 27 साल तक काम किया है। अनिमेष घोष भी एसीपीईटी में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं और ऊर्जा वित्तपोषण, संसाधन दक्षता और ऊर्जा संक्रमण के इर्द-गिर्द सामाजिक बदलाव पर परियोजनाओं से जुड़े हुए हैं। आनंदजीत गोस्वामी भी इसी संस्थान, एसीपीईटी में रिसर्च फेलो हैं और स्कूल ऑफ बिहेवियरल एंड सोशल साइंसेज (एसबीएसएस), मानव रचना इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज (एमआरआईआईआरएस) के निदेशक रह चुके हैं। राकेश कक्कड़ तमिलनाडु कैडर के 1977 बैच के एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं जिन्होंने 1974 में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। वे अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के लिए समान मानक बोली दिशानिर्देश तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 

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