उत्पादकता तथा नव-प्रवर्तन

कौशल निर्माण और उत्पादक रोजगार तक महिलाओं की पहुँच को बढ़ाना

  • Blog Post Date 08 मार्च, 2023
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Farzana Afridi

Indian Statistical Institute, Delhi Centre

fafridi@isid.ac.in

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर फ़रज़ाना अफरीदी ने महिलाओं के लिए अच्छी नौकरियों के निर्माण से जुड़े एक महत्वपूर्ण मुद्दे – कौशल के प्रावधान के बारे में चर्चा की है। वे महिलाओं के कौशल प्रशिक्षण हेतु भौतिक और वित्तीय पहुंच की कमी के साथ-साथ उनके लिए उपलब्ध पाठ्यक्रमों और प्रशिक्षण के बाद की नौकरियों में कमी पर चर्चा करती हैं, और उनके कौशल प्रशिक्षण हेतु डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च करने सहित हाल के सरकारी प्रयासों पर प्रकाश डालती हैं। तथापि, वे निष्कर्ष निकालती हैं कि महिलाओं के सामने आनेवाली औपचारिक रोजगार की बाधाओं को दूर करने हेतु इससे संबंधित नीति में थोड़ा और सुधार होना चाहिए।

भारत में रोजगार की क्षेत्रीय संरचना समय के साथ पारंपरिक कृषि क्षेत्र से हटकर, विनिर्माण के बजाय सेवाओं की ओर बदल गई है। अर्थशास्त्रियों ने भारत में कुल मिलाकर निम्न से उच्च उत्पादकता गतिविधि में धीमी गति से बदलाव के बारे में चिंता जताते हुए 'अच्छी नौकरियों' के सृजन की तत्काल आवश्यकता (कोटवाल 2017) पर जोर दिया है। पिछले कुछ दशकों में हुए संरचनात्मक परिवर्तन और श्रम बाजार के अनौपचारिक स्वरूप ने महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित किया है — ग्रामीण महिलाओं की श्रम-शक्ति भागीदारी में देखी गई गिरावट (अफरीदी एवं अन्य 2018), अनौपचारिक क्षेत्र1 में काम करने वाली महिलाओं के उच्च अनुपात और शहरी क्षेत्रों में स्थिर कार्यबल भागीदारी दर के साथ है।

इसलिए औपचारिक क्षेत्र के रोजगार निर्माण के बारे में चर्चा में जनता के लिए, और विशेष रूप से महिलाओं के लिए, एक महत्वपूर्ण मुद्दा उच्च गुणवत्ता वाले, प्रासंगिक और किफायती कौशल का प्रावधान है।

क्या कौशल प्रशिक्षण से अधिक सुरक्षित वेतन वाला रोजगार मिलता है?

रोजगार पर कौशल प्रशिक्षण के प्रभाव के बारे में बड़े पैमाने पर गहन शोध की आश्चर्यजनक कमी तो है ही, हम भारतीय संदर्भ में कौशल प्रशिक्षण के निर्धारकों के बारे में भी बहुत कम जानते हैं। कुछ गिने चुने अध्ययनों से संकेत मिलता है कि महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने से भारत में महिलाओं की श्रम-शक्ति भागीदारी दर में उन महिलाओं की तुलना में सुधार हो सकता है जो महिलाएं कुशल नहीं हैं।

सर्वेक्षण डेटा का उपयोग कर बरुआ एवं अन्य (2022) दर्शाते हैं कि दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (डीडीयू-जीकेवाई – गरीब ग्रामीण युवाओं पर लक्षित एक सार्वजनिक व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम) ने अल्पावधि में चार राज्यों में पंजीकृत प्रशिक्षुओं की रोजगार क्षमता में वृद्धि की है। यद्यपि, वे वेतन रोजगार पर प्रशिक्षण के प्रभाव में लैंगिक आधार पर कोई अंतर नहीं पाते हैं, प्रशिक्षित महिलाओं के स्व-रोजगार में संलग्न होने की संभावना अधिक होती है। मैत्रा और मणि (2017) ने कम आय वाले परिवारों की महिलाओं को सिलाई में सब्सिडी वाले व्यावसायिक प्रशिक्षण की पेशकश की, और पाया कि 'उपचारित' महिलाओं के स्व-नियोजित होने, प्रति सप्ताह अधिक घंटे काम करने और निरंतर 18 महीने की अवधि हेतु उच्च मासिक आय-लाभ होने की अधिक संभावना थी।

उल्लेखनीय रूप से, इन निष्कर्षों से पता चलता है कि महिलाओं के कुशल होने पर भी उनके भुगतान कार्य के बजाय स्व-रोजगार (अक्सर अनौपचारिक स्वरूप के) में शामिल होने की संभावना बढ़ जाती है। यह अन्य देशों के विपरीत है, जहाँ औपचारिक रोजगार में वृद्धि पाई गई है (कोलोंबिया में अटानासियो एवं अन्य (2011) द्वारा किये गए प्रयोग देखें)। अतः मौजूदा कौशल प्रशिक्षण इकोसिस्टम को खंगालना सार्थक होगा ताकि उन संभावित कारकों को समझा जा सके जो न केवल महिलाओं की पहुंच को सीमित करते हैं, बल्कि यह भी कि उन्हें भारत में कौशल प्रशिक्षण से किस हद तक फायदा होता है। 

कौशल निर्माण की सीमाएँ: श्रम बाजार और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का प्रभाव

भौतिक पहुंच और गतिशीलता: उपलब्ध अध्ययनों में, कौशल प्रशिक्षण केंद्रों तक की दूरी, ऋण की कमी और महिलाओं के बच्चों की देखभाल सहायता में कमी को महिलाओं की पहुँच तथा कौशल प्रशिक्षण पूर्णता दरों में बाधाओं के रूप में उजागर किया है (मैत्रा और मणि 2017)। चीमा एवं अन्य (2022) ने पाकिस्तान में घरों से अलग-अलग दूरी पर स्थित केंद्रों में कौशल प्रशिक्षण की पेशकश की और पाया कि यदि प्रशिक्षण केंद्र उनके गांव के अन्दर हो तो महिलाओं के कार्यक्रम को पूरा करने की संभावना चार गुना अधिक होगी। यह काफी हद तक किसी दूर जगह जाने से होने वाले सुरक्षा-संबंधी चिंताओं के कारण है। हालाँकि समूह परिवहन की व्यवस्था से यह समस्या कुछ हद तक कम हुई, लेकिन भारत में भी इन चिंताओं के प्रमुख होने की संभावना है।

प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का चुनाव और गुणवत्ता: यद्यपि, भारत में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) प्रणाली प्रशिक्षण केंद्रों का सबसे सस्ता और सघन नेटवर्क है (देश भर में लगभग 15,000 केंद्र हैं) जबकि इनमें नामांकित महिलाएं केवल 7% हैं (नीति आयोग, 2023)। टेक्निकल और इलेक्ट्रिकल/मैकेनिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम अधिकतर पुरुषों को पेश किया जाता है और पुरुष प्रशिक्षुओं का प्रभुत्व होता है, और इनमे महिलाओं द्वारा खुद का नामांकन करने की संभावना कम होती है।  बुनियादी ढांचे और गुणवत्ता प्रशिक्षकों की कमी के अलावा, 17% से कम आईटीआई, विशेष रूप से महिलाओं के लिए, कंप्यूटिंग, सचिवीय, कॉस्मेटोलॉजी और सॉफ्ट कौशल प्रशिक्षण की पेशकश करते हैं।

प्रशिक्षण के बाद नियोक्ताओं और नौकरियों के साथ मिलान: सीमित साक्ष्य यह भी दर्शाते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के प्रशिक्षण के बाद के रोजगार के परिणाम बेहद खराब हैं। पांडे एवं अन्य (2017), 'कौशल भारत' कार्यक्रम के प्रतिभागियों का अध्ययन करते हुए पाते हैं कि प्रशिक्षण के अंत में नौकरी के प्रस्ताव प्राप्त करने और स्वीकार करने की पुरुषों की संभावना अधिक है। नौकरी छोड़ने वाली महिलाओं की उच्च दर उनके पारिवारिक कारणों और नौकरी के स्थान से जुड़ी हुई है। चक्रवर्ती और बेदी (2019) ने बिहार में डीडीयू-जीकेवाई के मामले में पाया कि नौकरी में रखे गए प्रशिक्षु (महिलाओं सहित) 2-6 महीने के बाद छोड़ जाते हैं। उद्योग की मांग में कमी और प्रशिक्षण संस्थानों, कैरियर परामर्श और नौकरी प्लेसमेंट कार्यक्रमों के साथ जुड़ाव की कमी के कारण विशेष रूप से महिलाओं को नुकसान हो सकता है क्योंकि उनके नौकरी खोज नेटवर्क अक्सर कम और सीमित होते हैं (अफरीदी एवं अन्य 2022)।

उपलब्ध साहित्य में इस दृष्टिकोण को समर्थन मिलता है कि कौशल प्रशिक्षण में महिलाओं के लिए रोजगार के परिणामों में सुधार करने की जबरदस्त क्षमता है। फिर भी, व्यवहार में, इस क्षमता का अस्तित्व में आना वास्तविक नौकरी बाजार की स्थितियों से इन संबंधित चुनौतियों में है कि — कौन से कौशल की मांग है? रोजगार कहाँ स्थित है? यह कितना भुगतान करता है? और रोजगार का माहौल महिलाओं को रोजगार देने हेतु अनुकूल है या नहीं?

कौशल प्रशिक्षण तक महिलाओं  की पहुँच को बढ़ाना

कौशल प्रशिक्षण तक पहुंच में सुधार

वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में एकीकृत स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म के लॉन्च के साथ कौशल प्रशिक्षण के लिए एक विस्तारित डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का प्रस्ताव किया गया है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और महिला आर्थिक अधिकारिता (डीपी-डब्लूईई) कार्यक्रम के तहत प्रारंभिक क्षेत्र कार्य में पाया गया है कि प्लेटफ़ॉर्म-आधारित नियोक्ता, प्रशिक्षण मॉड्यूल में लचीली भागीदारी की अनुमति देने हेतु प्लेटफ़ॉर्म ऐप्स पर या हाइब्रिड प्रारूपों में ऑनलाइन वीडियो के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। यह गतिशीलता और पारिवारिक बाधाओं वाली महिलाओं के कौशल प्रशिक्षण को कुछ हद तक आसान बना सकता है। हालाँकि, साथ ही, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि महिलाओं को होनेवाले डिजिटल नुकसान का समाधान किया जाए - राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-20) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत में सबसे कम धन पंचमक (वेल्थ क्विंटाईल) में शामिल केवल 33% महिलाओं के पास एक मोबाइल फोन है जिसका वे स्वयं उपयोग करती हैं।

इसके अलावा, डिजिटल प्रशिक्षण में पूरी तरह से व्यक्तिगत कक्षाओं को बदलने की संभावना नहीं है, ऐसे में महिलाओं को उन दोस्तों और सहकर्मियों से प्रेरित होने की आवश्यकता हो सकती है जो प्रशिक्षण ले रहे हैं, और अपनी सुरक्षा की भावना को बढाने के लिए जोड़े में यात्रा करते हैं। इस संदर्भ में, विश्वसनीय और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन और प्रशिक्षण संस्थानों में छात्रावास की व्यवस्था परिवर्तनकारी साबित हो सकते हैं।

कौशल प्रशिक्षण को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना

उच्च गुणवत्ता वाले कौशल प्रशिक्षण अक्सर महंगे होते हैं, और परिवार इस तरह के निवेश पर अच्छे रिटर्न की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। अतः वे महिलाओं के व्यावसायिक प्रशिक्षण हेतु अपने सीमित संसाधनों को समर्पित करने के लिए अनिच्छुक हो सकते हैं। हालांकि, वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार ने वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में, तीन वर्षों में 47 लाख युवाओं को छात्रवृत्ति सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षुता प्रोत्साहन योजना का प्रस्ताव रखा है। कौशल प्रशिक्षण तक पहुंच में सुधार के लिए, विशेष रूप से महिलाओं हेतु, लक्षित क्रेडिट और छात्रवृत्ति कार्यक्रमों तक पहुंच बढ़ाने के अलावा, सरकार द्वारा संचालित आईटीआई अपने पाठ्यक्रम की शुरुआत में पूर्ण शुल्क के भुगतान की मांग करने के बजाय किस्तों में शुल्क भुगतान स्वीकार करने या रियायती ऋण देने पर विचार कर सकते हैं। इसके अलावा, संभावित नियोक्ता प्रशिक्षण पूरा होने के पश्चात समय के साथ श्रमिक की आय से कौशल प्रशिक्षण की लागत की छोटी किश्तों में वसूली करते हुए कौशल को प्रोत्साहित भी कर सकते हैं, जिससे प्रशिक्षु को अपना प्रमाणन पूरा करने में प्रोत्साहन मिलता है।

कौशल प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा प्रशिक्षण के बाद के बेहतर परिणाम गहन उद्योग गठजोड़ और मांग मानचित्रण के माध्यम से भी प्राप्त किए जा सकते हैं। इस संदर्भ में, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना ऑन-जॉब प्रशिक्षण, एमएसएमई और उद्योग साझेदारी, तथा उद्योग की जरूरतों के अनुसार पाठ्यक्रमों के निर्धारण पर जोर देती है। इस योजना का उद्देश्य कोडिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स जैसे नए-पुराने पाठ्यक्रमों के साथ-साथ सॉफ्ट स्किल्स को भी कवर करना है। साथ ही, करियर परामर्श, प्रशिक्षण संस्थानों में सन्निहित जॉब प्लेसमेंट सेल/गुट और पूर्व छात्रों के नेटवर्क का उपयोग महिला प्रशिक्षुओं के लिए 'प्रेरणास्रोत' प्रभाव को निष्क्रिय करने में प्रभावी साबित हो सकता है।

निष्कर्ष

यद्यपि भारत में कौशल प्रशिक्षण परिवेश में सुधार के लिए कई पहलें की जा रही हैं। लेकिन वर्तमान में वे महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करने की कमी से बाधित हैं, जो अप्रयुक्त संभावित श्रम का एक बड़ा हिस्सा हैं। उच्च-उत्पादकता, औपचारिक क्षेत्र की नौकरियों में शामिल होने के संबंध में महिलाओं द्वारा उठाए जा रहे विशिष्ट नुकसान को कम करने वाली नीति को प्रोत्साहन देने की तत्काल आवश्यकता है। नए युग की प्रौद्योगिकी और क्षेत्र की मांगों को पूरा करने वाले कौशल तक महिलाओं की पहुंच में सुधार करने वाले उपायों के माध्यम से हम देश के आर्थिक विकास की पूरी क्षमता का एहसास कर सकते हैं।

इस लेख के लिए, नलिनी गुलाटी और रोहन वर्गीस ने इनपुट प्रदान किया है, जो तनु गुप्ता (आईएसआई दिल्ली) और कनिका महाजन (अशोक विश्वविद्यालय) के साथ चल रहे काम पर आधारित है।

टिप्पणी:

  1. ILO रिपोर्ट (2018) के अनुसार, रोज़गार में लगभग 90% महिलाएँ अनौपचारिक क्षेत्र में काम करती हैं।

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लेखक परिचय: फ़रज़ाना आफरीदी भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली की अर्थशास्त्र और योजना इकाई में प्रोफेसर हैं। 

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