सामाजिक पहचान

क्या अल्पसंख्यकों के बारे में बातचीत के ज़रिए भेदभाव कम हो सकता है? चेन्नई में ट्रांसजेंडर-विरोधी भेदभाव से जुड़े साक्ष्य

  • Blog Post Date 20 दिसंबर, 2024
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Duncan Webb

Princeton University

dmbwebb@gmail.com

भारत में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस भाषाई, धर्म, जाति, लिंग और रंग के आधार पर अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों को बढ़ावा और संरक्षण देने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है और प्रति वर्ष 18 दिसम्बर को मनाया जाता है। भले ही भारतीय संविधान अल्पसंख्यकों समेत सभी हाशिए पर रहने वाले समुदायों को समान और न्यायपूर्ण अधिकार प्रदान करता है लेकिन अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित कई मुद्दे अभी भी जीवित हैं। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत है यह शोध आलेख। सभी जानते हैं कि भेदभावपूर्ण व्यवहार से विभिन्न आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में समानता और दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस लेख के माध्यम से, चेन्नई के शहरी भागों में ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ भेदभाव के सन्दर्भ में यह पता लगाया गया है कि क्या अल्पसंख्यक के बारे में बहुसंख्यक समूह के सदस्यों के बीच आपसी बातचीत से भेदभाव को कम किया जा सकता है। यह पाया गया कि इस तरह के आपसी बातचीत के महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव होते हैं, जो समूह के सदस्यों द्वारा एक-दूसरे को ट्रांसजेंडर के प्रति अधिक संवेदनशील बनने के लिए राजी करने से प्रेरित होते हैं।

भेदभाव नुकसानदेह होता है क्योंकि यह स्कूल में प्रवेश और भर्ती के फैसले से लेकर घर किराए पर लेने की क्षमता जैसे कई आर्थिक विकृतियों का कारण बनता है (हजॉर्ट 2014, हसीह एवं अन्य 2019, राव 2019, लोवे 2021, क्रिस्टेंसन और टिमिन्स 2023)। आमतौर पर यह माना जाता है कि अल्पसंख्यकों के बारे में गहरी जड़ें जमाए हुए पूर्वाग्रह या रूढ़िवादी नकारात्मक मान्यताओं के कारण इसे बदलना काफी मुश्किल है। लेकिन कभी-कभी समाज कम भेदभावपूर्ण प्राथमिकताओं की ओर बढ़ जाता है- लोग एक पीढ़ी से भी कम समय में समलैंगिक विवाह, अंतर-जातीय विवाह (फोर्ड 2014), या महिलाओं के अधिकारों (शिंगवेट एवं अन्य 2014) को अधिक स्वीकार करने लगे हैं। ये परिवर्तन अक्सर अल्पसंख्यक के बारे में लोगों के आपसी संवाद करने के तरीके में बदलाव के साथ मेल खाते हैं, जिससे यह पता चलता है कि इनके बीच कोई कारण-कार्य संबंध हो सकता है। अर्थात, अल्पसंख्यकों के बारे में लोगों के बात करने के तरीके से भेदभाव में तेज़ी से कमी आ सकती है।

नए शोध (वेब ​​2024) में, मैंने जाँच की कि क्या 'क्षैतिज संचार'– अल्पसंख्यकों के बारे में बहुसंख्यक समूह के सदस्यों के बीच होने वाली ‘पीयर टु पीयर’ बातचीत से भेदभाव को कम किया जा सकता है। क्या ऐसी आपसी बातचीत मददगार साबित हो सकती है? सम्भवतः ऐसा किसी के बारे में अच्छी राय के माध्यम से किया जा सकता है- यदि लोग भेदभावपूर्ण नहीं दिखना चाहते हैं, तो वे समूह में अल्पसंख्यक समर्थक तरीके से बातचीत कर सकते हैं और दूसरों को कम भेदभाव करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। एक अन्य तरीका इस बात पर ध्यान केन्द्रित करना है कि समूह में संवाद कौन करता है- यदि अल्पसंख्यक के अधिक समर्थक विशेष रूप से मुखर हैं, तो वे दूसरों को कम भेदभाव करने के लिए राजी कर सकते हैं।

मैंने 2023 में तमिलनाडु के शहरी चेन्नई में 3,397 व्यक्तियों के नमूने के साथ एक क्षेत्रीय प्रयोग किया, जिसमें भारत में सबसे अधिक दिखाई देने वाले एलजीबीटीक्यू+ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समूहों में से एक के खिलाफ भेदभाव की जाँच की गई। यह ट्रांसजेंडर महिलाओं का एक समुदाय है, जिसे तिरुनांगई कहा जाता है। देश में उनकी सामाजिक पहचान ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रही है तथा वे दृष्टि से पहचाने जाने योग्य नहीं हैं, तथा व्यापक आर्थिक भेदभाव और हिंसा के प्रति संवेदनशील हैं। भारत में कम से कम 4,90,000 तिरुनांगई हैं और वे परंपरागत रूप से भीख मांगने और यौन कार्य से जुड़े हुए हैं, जिससे उनके लिए अन्य प्रकार के काम ढूंढना विशेष रूप से कठिन हो जाता है। इसका संकेत इस समूह के बीच औपचारिक रोजगार की बहुत कम दर मिलता है।

उन्हें परिवार द्वारा अस्वीकार किया जाना, आवास प्राप्त करने में कठिनाई, चिकित्सा सेवाओं से बहिष्कार और पुलिस उत्पीड़न जैसे अन्य प्रकार के भेदभावों का भी सामना करना पड़ता है। इस भेदभाव के बावजूद, उन्हें स्वीकृत किए जाने की दिशा में नए सामाजिक परिवर्तन के कुछ साक्ष्य नज़र आते हैं (थॉमस 2017), यह भेदभाव पर ‘क्षैतिज संचार’ के प्रभावों का अध्ययन करने हेतु एक उपयुक्त सेटिंग है।

‘संचार’ भेदभाव को कैसे प्रभावित करता है

मैं अपने प्रयोग में, ट्रांसजेंडर श्रमिकों के विरुद्ध भेदभाव को मापने के लिए प्रतिभागियों को निःशुल्क किराने का सामान उपलब्ध कराने की पेशकश करता हूँ और उनसे यह पूछता हूँ कि कौन सा कर्मचारी सामान पहुँचाने आएगा या डिलीवरी करेगा। इसके लिए उन्हें बाइनरी विकल्पों की एक श्रृंखला बनानी होती है, जिसके लिए श्रमिकों की तस्वीरें और उन्हें प्राप्त होने वाली वस्तुओं को देखना होता है- विकल्प बेतरतीब ढंग से भिन्न-भिन्न होते हैं।

सभी प्रतिभागी गैर-ट्रांसजेंडर हैं और उन्हें घर-घर जाकर प्रचार करके भर्ती किया गया था। मैं विकल्पों में पेश की जाने वाली वस्तुओं में यादृच्छिक भिन्नता का उपयोग करके, प्रतिभागियों द्वारा श्रमिकों और वस्तु मूल्य के बीच किए जाने वाले ट्रेड-ऑफ का मूल्याँकन कर सकता हूँ। मैं अर्थशास्त्रियों की भेदभाव की मानक परिभाषा का अनुसरण करते हुए, इसे एक गैर-ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता की तुलना में एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता को चुनने की संभावना में अंतर के रूप में परिभाषित करता हूँ, जिसमें कार्यकर्ता और वस्तुओं की अन्य विशेषताओं को स्थिर रखा जाता है।

फिर, प्रतिभागियों के बीच ‘क्षैतिज संचार’ के प्रभावों को मापने के लिए, मैं यादृच्छिकता से तय करता हूँ कि क्या प्रतिभागी पहले अपने दो पड़ोसियों के साथ चर्चा में शामिल हुए हैं (आकृति-1 देखें)। इस चर्चा में, प्रतिभागियों को भर्ती विकल्पों की एक श्रृंखला भी दिखाई जाती है और उन्हें सामूहिक रूप से यह चुनने के लिए कहा जाता है कि वे कौन से विकल्प पसंद करते हैं। कुछ विकल्पों में ट्रांसजेंडर श्रमिक शामिल होते हैं, और प्रतिभागी चर्चा करते हैं कि क्या वे ट्रांसजेंडर श्रमिकों को काम पर रखना चाहते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस चर्चा में ट्रांसजेंडर लोगों के बारे में एकमात्र चर्चा (संवाद- संचार) सूत्रधार की बजाय प्रतिभागियों से ही आती है। साथ ही, प्रतिक्रिया पूर्वाग्रह से बचने के लिए इस प्रयोग का उद्देश्य प्रतिभागियों से छिपाया गया था, केवल 8% उत्तरदाताओं ने अनुमान लगाया कि अध्ययन भेदभाव के बारे में था, और ये उत्तरदाता परिणामों को प्रभावित नहीं करते हैं।

मैं इसकी तुलना सामाजिक प्राधिकार से ‘ऊपर से नीचे तक संचार’ के एक अन्य रूप, विशेष रूप से, भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कानूनी अधिकारों के बारे में संचार के प्रभावों, से भी करता हूँ। इसे मापने के लिए, मैंने सर्वेक्षण के आरंभ में कुछ प्रतिभागियों को एक वीडियो दिखाया, जिसमें उन्हें भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले के बारे में बताया गया, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की पुष्टि की गई थी।

आकृति-1. प्रायोगिक डिज़ाइन 



संचार का प्रभाव

मैंने सबसे पहले यह दर्ज किया कि प्रतिभागी निजी तौर पर चयन करते समय, औसतन, अत्यधिक भेदभावपूर्ण होते हैं। ‘नियंत्रण समूह’ में, जो किसी भी संचार का भाग नहीं होता, प्रतिभागियों में गैर-ट्रांसजेंडर श्रमिकों की तुलना में ट्रांसजेंडर श्रमिकों को काम पर रखने की संभावना 19 प्रतिशत अंक (32%) कम होती है (आकृति-2, बायाँ पैनल)। उनके द्वारा चुने गए विकल्पों से यह संकेत मिलता है कि वे ट्रांसजेंडर कर्मचारियों से बातचीत से बचने के लिए अपने दैनिक भोजन व्यय के औसत मूल्य से 1.9 गुना अधिक मूल्य की किराने की वस्तुओं का त्याग करने को तैयार हैं।

आकृति-2. एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता को काम पर रखने की संभावना पर संचार का प्रभाव

नोट : मोटी पट्टियाँ विश्वास अंतराल को दर्शाती हैं, पतली पट्टियाँ विश्वास अंतराल को दर्शाती हैं। विश्वास अंतराल अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करने का एक तरीका है, विशेष रूप से इसका मतलब है कि यदि अध्ययन नए नमूनों के साथ इसे बार-बार दोहराया गया तो 95% समय परिकलित विश्वास अंतराल में सही प्रभाव होगा। (ii) "अवलोकन" अवलोकनों की संख्या को इंगित करता है। 

हालांकि, इन भेदभावपूर्ण प्रतिभागियों के बीच ‘क्षैतिज संचार’ भेदभाव को काफी हद तक कम करता है। भेदभाव के बारे में समूह चर्चा के प्रभाव बहुत स्पष्ट हैं- यहाँ तक ​​कि जब लोग चर्चा समाप्त होने के बाद निजी, व्यक्तिगत विकल्प बना रहे होते हैं तब भी नियंत्रण समूह (जो चर्चा में शामिल नहीं थे) की तुलना में ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता का चयन करने की संभावना 17 प्रतिशत अंक (42%) अधिक होती है (आकृति-1, दायां पैनल)। इस स्तर का तात्पर्य यह है कि चर्चा के क्षेत्र में औसतन कोई महत्वपूर्ण ट्रांसजेंडर-विरोधी भेदभाव नहीं है।

इस चर्चा का प्रभाव सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को दिए गए कानूनी अधिकारों के बारे में ऊपर से नीचे तक किए गए संचार से कहीं अधिक बड़ा है। यह संचार भेदभाव को कम तो करता है, लेकिन चर्चा की तुलना में केवल 59% तक। चर्चा के प्रभाव आंशिक रूप से स्थायी भी हैं। जब मैंने लगभग एक महीने बाद प्रतिभागियों का पुनः सर्वेक्षण किया, तो पाया कि चर्चा प्रतिभागियों द्वारा काल्पनिक नियुक्ति विकल्पों की श्रृंखला में ट्रांसजेंडर श्रमिकों को चुनने की संभावना अभी भी 5 प्रतिशत अधिक है। हालांकि प्रभाव स्थायी हैं लेकिन वे काफी हद तक कम भी हो गए हैं, जिसका अर्थ है कि यह हल्की-फुल्की 10 मिनट की चर्चा मध्यम अवधि में व्यवहार में बड़े बदलाव लाने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे बदलावों के लिए सम्भवतः अधिक गहन, बार-बार हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी।

भेदभाव को कम करने के तंत्र

यह उल्लेखनीय है कि निजी तौर पर भेदभाव करने वाले व्यक्तियों के बीच संवाद स्थापित करने से संवाद के बाद भेदभाव में तेज़ी से कमी आ सकती है। यह किस तरह से होता है? मुझे प्राप्त अतिरिक्त परिणाम दर्शाते हैं कि दो चैनल- गलत धारणा को सही करना और किसी के चरित्र के बारे में अच्छी राय देना- प्रभावों को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। बजाय इसके, ये परिणाम किसी तीसरे चैनल, ‘अनुनय’ द्वारा संचालित प्रतीत होते हैं। तीन संभावित चैनलों पर नीचे चर्चा की गई है-

i) गलत धारणा को सही करना : एक संभावित व्याख्या यह होगी कि प्रतिभागी शुरू में यह अनुमान लगाते हैं कि उनके पड़ोसी कितने भेदभावपूर्ण हैं (जैसा कि बर्स्ज़टीन एवं अन्य 2020 में है)। फिर, जब वे संवाद करते हैं, तो यह गलत धारणा सही हो जाती है, इसलिए हर कोई एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता का चयन करने में अधिक सहज महसूस करता है। फिर भी यह पैटर्न हस्तक्षेप के बड़े प्रभावों को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हालांकि ‘नियंत्रण’ समूह के लोग अपने पड़ोसियों के भेदभावपूर्ण होने का अनुमान (5 प्रतिशत अंकों से) लगाते हैं, लेकिन चर्चा से उत्पन्न अनुमानित भेदभाव में कमी प्रारंभिक गलत धारणा की तुलना में कहीं अधिक बड़ी (24 प्रतिशत अंक) है। इससे पता चलता है कि गलत धारणा का सरल सुधार हस्तक्षेप के प्रभाव का केवल 21% ही हो सकता है।

ii) चरित्र के बारे में अच्छी राय देना : परिणाम चरित्र बखान की एक सरल कहानी से भी स्पष्ट नहीं होते हैं। यदि प्रतिभागियों को सामाजिक छवि की चिंता है और वे समूह सेटिंग में भेदभावपूर्ण नहीं दिखना चाहते हैं, तो वे समूह सेटिंग में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रति अधिक अनुकूल व्यवहार कर सकते हैं, बदले में वे दूसरों को अधिक ट्रांसजेंडर समर्थक बनने के लिए राजी कर सकते हैं। मैं एक अतिरिक्त 'सार्वजनिक' भिन्नता का उपयोग करके इस चैनल का परीक्षण करता हूँ जिसमें प्रतिभागी एक-दूसरे के साथ चर्चा नहीं करते हैं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से भर्ती विकल्प बनाते हैं, जिसके बारे में उन्हें पता होता है कि उनके समूह के अन्य सदस्यों को पता चल जाएगा। इसका भेदभाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जो यह दर्शाता है कि ‘क्षैतिज संचार’ के अभाव में केवल चरित्र बखान ट्रांसजेंडर समर्थक व्यवहार को प्रेरित नहीं कर सकते हैं।

iii) अनुनय : इसके विपरीत, अनुनय चर्चा के प्रभावों को स्पष्ट करता प्रतीत होता है। यह दर्शाने के लिए कि अनुनय होता है, मैं एक ‘भिन्नता’ जोड़ता हूँ जिसमें एक प्रतिभागी चुपचाप दो अन्य लोगों की बात सुनता है जो चर्चा कर रहे हैं। इन 'श्रोताओं' पर प्रभाव उतना ही बड़ा होता है जितना कि उन लोगों पर जो सक्रिय रूप से चर्चा में भाग लेते हैं। इसलिए, ऐसा लगता है कि प्रतिभागियों के बीच अनुनय के कारण यह प्रभाव पड़ता है, न कि प्रतिभागियों द्वारा खुद को इस बात के लिए राजी करने के कारण कि किसे काम पर रखना है।

लेकिन प्रतिभागी एक-दूसरे को ट्रांसजेंडर विरोधी होने के बजाय अधिक ट्रांसजेंडर समर्थक होने के लिए क्यों प्रेरित करते हैं? मेरा सुझाव से ऐसा इसलिए है क्योंकि ट्रांसजेंडर के पक्ष में प्रतिभागी चर्चाओं में अधिक मुखर होते हैं। वे चर्चा में पहले बोलने और हावी होने की अधिक संभावना रखते हैं, खासकर जब उन्हें ट्रांसजेंडर कर्मचारी से जुड़े किसी विकल्प का सामना करना पड़ता है। इसलिए, प्रतिभागियों को कम भेदभाव के लिए राजी किया जाता है। वे सामाजिक, समर्थक तर्कों का भी उपयोग करते हैं- प्रतिभागी अक्सर स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ट्रांसजेंडर लोगों की मदद करना, उन्हें काम करने का अवसर देना या भेदभाव न करना महत्वपूर्ण है।

प्राप्त जानकारी (अंतर्दृष्टि) का लाभ

सही परिस्थितियों में, भेदभाव करने वाले व्यक्तियों के बीच ‘क्षैतिज संचार’ भेदभाव को काफी हद तक कम कर सकता है। मैं यह दर्शाता कि यह तब हो सकता है जब भेदभाव के खिलाफ़ प्रेरक तर्क हों और ऐसे लोगों का एक उपसमूह हो जो भेदभाव करने वाले समूह के भीतर भी अल्पसंख्यक के पक्ष में बोलने को तैयार हों। जबकि मैं एक विशिष्ट सेटिंग पर ध्यान केन्द्रित करता हूँ, भारत में ट्रांसजेंडर भेदभाव के खिलाफ़ ; आगे के शोध यह जाँच कर सकते हैं कि ऐसे परिणाम अन्य संदर्भों में कैसे लागू होते हैं।

फिर भी, यह अध्ययन एक अवधारणा का प्रमाण प्रदान करता है जिसे नीतियों में लागू किया जा सकता है। सबसे पहले, हम ऐसी नीतियों को डिज़ाइन और मूल्याँकन कर सकते हैं जो अल्पसंख्यक विरोधी दृष्टिकोण को बदलने के लिए बड़े पैमाने पर चर्चाएँ पैदा करें। पिछले अध्ययनों से पता चलता है कि स्कूलों में चर्चा-आधारित हस्तक्षेप (धर एवं अन्य 2022) या घर-घर जाकर प्रचार करके (कल्ला और ब्रूकमैन 2020) भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण को प्रभावित करना सम्भव हो सकता है। मुझे मिले परिणाम दर्शाते हैं कि बिना चर्चा किए भी भेदभाव को कम किया जा सकता है। इसके बजाय, बस एक ऐसा परिदृश्य बनाना जहाँ अल्पसंख्यकों पर स्वाभाविक रूप से चर्चा हो, पर्याप्त हो सकता है।

दूसरा, हम उच्च जोखिम वाले वातावरण में, जहाँ भेदभाव होता है, व्यक्तिगत निर्णय लेने के बजाय समूह-आधारित निर्णय लेने को प्रोत्साहित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, नियुक्ति, कॉलेज में प्रवेश और आवास आवंटन की प्रक्रियाएँ, व्यक्तियों के बजाय समितियों के निर्णयों पर आधारित हों, तो भेदभाव के भारी परिणाम से बचा जा सकता है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें

लेखक परिचय : डंकन वेब प्रिंसटन विश्वविद्यालय में एक पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता हैं, और 2025 में नोवाएसबीई में सहायक प्रोफेसर के रूप में अपना काम शुरू करेंगे। वह एक विकास अर्थशास्त्री हैं जो व्यवहारिक अर्थशास्त्र से उपकरण और अंतर्दृष्टि का उपयोग करते हैं। उनकी वर्तमान परियोजनाएं भेदभाव, सामाजिक परिवर्तन और मानव पूंजी पर केन्द्रित हैं।

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