गरीब या वंचित होना अक्सर कलंक का कारण बनता है, जो किसी व्यक्ति की आत्म-छवि को छिन्न-भिन्न कर सकता है, उप-इष्टतम विकल्पों को प्रेरित कर सकता है और परिणामस्वरूप व्यक्ति मनोवैज्ञानिक गरीबी के जाल में फंस सकता है। कोलकाता के वेश्यालयों में किए गए एक अध्ययन के पर आधारित इस लेख से यह पता चलता है कि आत्मसात कलंक के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए मनोवैज्ञानिक प्रयोग लघु और मध्यम अवधि दोनों ही में बेहतर आत्म-छवि निर्मित करने, बेहतर बचत विकल्प, और निवारक स्वास्थ्य देखभाल के रूप में सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन ला सकते हैं।
गरीबी और सामाजिक बहिष्कार का आर्थिक विश्लेषण आम तौर पर इस बात की जांच करता है कि बाहरी संसाधन की कमी के कारण पोषण, ऋण और शिक्षा (जेन्सेन 2010), या स्वास्थ्य संबंधी देखभाल तक पहुंच में किस प्रकार लगातार बाधा पहुंचती है (डुपास 2011)। हालांकि इस तरह के शोध अक्सर गरीब और वंचित व्यक्तियों के किसी 'आत्म-पराजय' रूपी व्यवहार की व्याख्या नहीं करते हैं, उदाहरण के लिए, कल्याणकारी लाभ प्राप्त नहीं करना (मोफिट 1983, करी एवं अन्य, 2001), बैंक खाते खोलने और उपयोग करने की इच्छा न होना (बर्ट्रेंड एवं अन्य, 2004) या सस्ते, निवारक स्वास्थ्य उपायों को नहीं अपनाना (काट्ज़ एवं होफर 1994) आदि। इसलिए, इस उलझन ने हमें एक ऐसे वैकल्पिक दृष्टिकोण पर विचार करने के लिए प्रेरित किया जिसके अंतर्गत व्यक्तिगत व्यवहार और विकल्पों को आकार देने में सामाजिक बहिष्कार से उत्पन्न आंतरिक या मनोवैज्ञानिक बाधाओं की भूमिका की जांच की जाती है।
गरीब या वंचित होना अक्सर कलंक का कारण बनता है, जो किसी व्यक्ति की आत्म-छवि को छिन्न-भिन्न कर सकता है (गोफमैन 1963)। यह "कुछ गतिविधियों के लिए प्रयासों के प्रतिफल के बारे में आत्म-पूर्ति निराशावाद" को जन्म दे सकता है (लौरी 1999) और उप-इष्टतम विकल्पों को प्रेरित कर सकता है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति मनोवैज्ञानिक गरीबी के जाल में फंस सकता है। आत्म-पुष्टि पर मनोविज्ञान साहित्य (स्टील 1988, शर्मन और कोहेन 2006) का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति एक अच्छा, नैतिक व्यक्ति होने की आत्म-छवि को बनाए रखना चाहता है, और इस तरह की आत्म-छवि को बनाए रखने में आने वाले खतरे रक्षात्मक प्रतिक्रियाओं का कारण बन सकते हैं जो प्रतिकूल परिणामों को जन्म देते हैं।
इसलिए, अपने शोध में, हम यह जांच करते हैं कि क्या आत्म-छवि को बनाए रखना सामाजिक कलंक का सामना कर रहे लोगों में सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन लाने के लिए प्रेरक हो सकता है (घोषाल एवं अन्य 2020)। इस मुद्दे को हल करने के लिए, हमने कोलकाता राज्य में महिला यौनकर्मियों के साथ एक प्रयोग किया। इन महिलाओं को यौन कार्य के प्रति घृणा (रोथ 2007) में निहित एक बड़े सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है, और वे इसे आत्मसात करने लगती हैं। इस तरह के आत्मसात कलंक को एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में पहचाना गया है क्योंकि यह यौनकर्मियों को स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने से हतोत्साहित करता है, जो एचआईवी को रोकने और उसके इलाज के लिए आवश्यक है (शैनन और मोंटानेर 2012)।
प्रयोग
हमने जिस प्रयोग का अध्ययन किया, वह यौनकर्मियों के ऐसे आत्मसात कलंक को कम करने के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम था, जो उन्हें व्यवहार परिवर्तन के लिए सशक्त बनाने के साधन के रूप में था। इसके अंतर्गत 15-20 यौनकर्मियों के बीच समूह चर्चा के रूप में आठ साप्ताहिक सत्र शामिल थे। यह कार्यक्रम कोलकाता स्थित हमारे स्थानीय सहयोगी दरबार द्वारा चलाया गया, जो एक गैर सरकारी संगठन है और 25 वर्षों से अधिक समय से यौनकर्मियों को सशक्त बनाने में लगा हुआ है। सत्र की शुरुआत प्रतिभागियों की यौनकर्मी के रूप में व्यक्तिगत पहचान के संबंध में चर्चा के साथ हुई, जिसे इस प्रकार तैयार किया गया था कि उन्हें स्वयं को और अधिक सकारात्मक रूप से समझने में मदद मिल सके: क्या वे यह समझ सकती हैं कि जो कुछ भी वे करती हैं वह मनोरंजन प्रदान करने वाला कार्य है, और इसलिए वे स्वयं को मनोरंजन करने वाले व्यक्ति के रूप में मानें? क्या वे इस बात से सहमत होंगी कि उन्होंने ईमानदार तरीकों से अपनी आजीविका कमाई, और यदि ऐसा है, तो क्या वे खुद को एक चोर की तुलना में नैतिक रूप से श्रेष्ठ मानेंगी? इस प्रयोग के अंतर्गत उनके समूह की आत्म-छवि को फिर से बनाने और उनकी सामूहिक ताकत को उजागर करने का प्रयास भी किया गया और इसके एक उदाहरण के रूप में यौनकर्मियों की सहकारी बैंक पहल (उषा) की सफलता का हवाला दिया। सकारात्मक रूप से पुनर्गठित आत्म-छवि के इस आधार का उपयोग करते हुए, कार्यक्रम ने बेहतर जीवन परिणामों की दिशा में निर्देशित और निरंतर प्रयासों के मार्ग (उदाहरण के लिए, हिंसा से कैसे निपटें, आपसी विश्वास और संगठन का निर्माण करना) की पेशकश की।
प्रत्येक सप्ताह के अंत में, कार्यक्रम के सभी प्रतिभागियों (दोनों 'उपचार' और 'नियंत्रण', यानि प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले और प्राप्त नहीं करने वालों) को 100 रुपये प्रदान करने की पेशकश की गई थी। यह भुगतान या तो कम ब्याज दर वाले एक चालू खाते के माध्यम से या लंबी अवधि में उच्च रिटर्न देने वाले एक सावधि जमा खाते के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता था। हम सावधि जमा में निवेश का अर्थ यह लगाते हैं कि ये हमारे अध्ययन प्रतिभागियों द्वारा किए गए अधिक भविष्योन्मुखी प्रयासों को दर्शाते हैं। दोनों तरह के खातों को यौनकर्मियों की सहकारी बैंक, उषा में रखा गया था।
नियंत्रण समूह के प्रतिभागी भी हर सप्ताह (लगभग 20-25 के समूहों में) हमें अपनी बचत के विकल्प देने के लिए सामने आए। ये साप्ताहिक बचत विकल्प हमारे मुख्य आर्थिक परिणाम चरों में से एक हैं। हमने इन यौनकर्मियों के लिए दो अन्य प्रमुख परिणामों की भी निगरानी की: उनके स्वयं-रिपोर्ट किए गए मनोवैज्ञानिक परिणाम, और दरबार क्लीनिक में उनकी नियमित स्वास्थ्य जांच।
बेहतर मनोवैज्ञानिक और आर्थिक विकल्प
आठ-सप्ताह के कार्यक्रम के तीन महीने बाद, हमने पाया कि प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली यौनकर्मियों द्वारा रिपोर्ट की गई आत्म-छवि में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जिसमें उनके व्यवसाय के बारे में शर्म की भावना कम होना, चुनौतियों का सामना करने में अधिक सक्षम होना और अधिक आसानी से सार्वजनिक बातचीत करना शामिल है।
हम यह भी पाते हैं कि नियंत्रण समूह की तुलना में उपचार समूह में चालू खाते की बजाय सावधि जमा बचत विकल्प चुनने की संभावना 25-50 प्रतिशत अंक अधिक थी (आकृति 1)। हम इस निष्कर्ष का अर्थ यह लगाते हैं कि उपचार समूह द्वारा उनके भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में अधिक प्रयास किए गए हैं, जो उनकी बेहतर आत्म-छवि से प्रेरित है। हम ऐसे कई वैकल्पिक तंत्रों को खारिज करते हैं जो हमारे बचत परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं, जिसमें यह चिंता भी शामिल है कि हमारे प्रतिभागियों को प्रयोगकर्ताओं (सामाजिक वांछनीयता पूर्वाग्रह) के साथ उनकी बातचीत के बाद अनजाने में सावधि जमा का चयन करने के लिए 'प्रेरित' किया गया हो।
आकृति 1. सत्र के अनुसार, सावधि जमा की बजाय चालू खाता चुनने वाली यौनकर्मियों का प्रतिशत
प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली यौनकर्मियों ने प्रशिक्षण प्राप्त नहीं करने वालों की तुलना में नियमित स्वास्थ्य जांच के लिए जाने की संभावना में भी 9 प्रतिशत अंक की वृद्धि दर्ज की है।
मध्यम अवधि के प्रभाव
महत्वपूर्ण रूप से, हम पाते हैं कि बचत और स्वास्थ्य लाभों पर कार्यक्रम के उपरोक्त अल्पकालिक प्रभाव मध्यम अवधि में भी बने रहते हैं। सहकारी बैंक और स्थानीय स्वास्थ्य क्लीनिकों के आधिकारिक रिकॉर्ड से प्राप्त प्रशासनिक (स्वयं रिपोर्ट नहीं किए गए) डेटा का उपयोग करते हुए, हम पाते हैं कि कार्यक्रम समाप्त होने के 15 महीने बाद भी उपचार समूह के यौनकर्मियों द्वारा खातों में अधिक जमा राशि के साथ, अपने खातों को खुला रखने की संभावना 53 प्रतिशत अंक अधिक थी। कार्यक्रम के 21 महीने बाद, निवारक स्वास्थ्य जांच जारी रखने की संभावना 15 प्रतिशत अधिक थी (आकृति 2)। यह आश्चर्यजनक है कि आठ सप्ताह के कार्यक्रम के दौरान स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं होने के बावजूद ऐसा हो रहा है।
आकृति 2. समय के साथ, स्वास्थ्य जांच में उपचार और नियंत्रण समूहों के बीच अंतर
टिप्पणियां : (i) लंबी-डैश वाली ऊर्ध्वाधर रेखा आधार रेखा सर्वेक्षण को दर्शाती है। (ii) मोटी ऊर्ध्वाधर रेखा प्रयोग को इंगित करती है। (iii) डैश-बिंदुवत ऊर्ध्वाधर रेखा सर्वेक्षण के बाद के परिणामों को दर्शाती है। (iv) क्षैतिज अक्ष महीनों में अवधि को दर्शाता है, कार्यक्रम से पहले से लेकर बाद के महीनों तक।
निष्कर्ष
उपरोक्त परिणामों के आधार पर, हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि इस मनोवैज्ञानिक प्रयोग का इस वंचित समूह के भीतर आत्मसात कलंक को कम करने पर सकारात्मक और लगातार प्रभाव पड़ा। कार्यक्रम ने उन्हें वित्तीय और स्वास्थ्य परिणामों के संदर्भ में बेहतर भविष्य की दिशा में और अधिक उद्देश्यपूर्ण कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया। हमारा मानना है कि मनोवैज्ञानिक सशक्तिकरण को लक्षित करते हुए इस प्रकार के कार्यक्रमों को यदि मौजूदा कल्याण कार्यक्रमों के साथ जोड़ दिया जाए, तो हाशिए पर पड़े समूहों के बाहरी संसाधनों सबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए इन कार्यक्रमों की प्रभावकारिता और मजबूत हो सकती है तथा कार्यक्रम को प्रभावी रूप से बढ़ाने के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्राप्त हो सकती है।
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लेखक भारत और उसके बाहर यौनकर्मियों को सशक्त बनाने के क्षेत्र में अग्रणी कार्य के लिए अपने सह-लेखक डॉ. जाना के प्रति आभार व्यक्त करना चाहते हैं, जिनका 8 मई 2021 को कोविड-19 के कारण निधन हो गया।
लेखक परिचय: सायंतन घोषाल यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लैसगो में एडम स्मिथ बिजनेस स्कूल में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। स्मरजीत जाना एक महामारी विज्ञानी और कोलकाता स्थित यौनकर्मियों के सामूहिक, दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) के संस्थापक थे। आनंदी मणि ब्लावतनिक स्कूल ऑफ गवर्नमेंट में व्यवहार अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीति की प्रोफेसर हैं। संदीप मित्रा भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। संचारी रॉय किंग्स कॉलेज लंदन में विकास अर्थशास्त्र में वरिष्ठ व्याख्याता (एसोसिएट प्रोफेसर) हैं।
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