सामाजिक पहचान

जागरूकता और आत्म-रक्षा प्रशिक्षण के माध्यम से महिलाओं के खिलाफ हिंसा का सामना करना

  • Blog Post Date 07 सितंबर, 2021
  • लेख
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Chitwan Lalji

Indian Institute of Management Kozhikode

chitwan@iimk.ac.in

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Debayan Pakrashi

Indian Institute of Technology, Kanpur

pakrashi@iitk.ac.in

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Sarani Saha

Indian Institute of Technology Kanpur

sarani@iitk.ac.in

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Soubhagya Sahoo

Indian Institute of Technology Kanpur

ssahoo@iitk.ac.in

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के प्रति हिंसा में 2018 की तुलना में 7.3% की वृद्धि हुई है जिसमें तीन में से एक महिला शारीरिक, भावनात्मक या यौन हिंसा की शिकार होती है। इस संदर्भ में, बिहार में किये गए अपने क्षेत्र-अध्ययन में लालजी एवं अन्य किशोर लड़कियों के बीच उनकी सुरक्षा से संबंधित कानूनों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और आत्मरक्षा कार्यशालाओं के माध्यम से पढ़ाई और काम करने के लिए उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए आवश्यक हस्तक्षेप पर चर्चा करते हैं।

 

महिलाओं के यौन उत्पीड़न की उच्च घटनाओं (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी), 2020, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5, 2020) के चलते भारत महिलाओं के प्रति हिंसा (वीएडब्ल्यू) के बारे में बढ़ती चिंताओं से ग्रस्त है। भारत की कुल आबादी में महिलाएं लगभग 48% हैं, और आंकड़े बताते हैं कि हर तीन में से एक महिला शारीरिक, भावनात्मक या यौन हिंसा का शिकार है। 2020 की एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार 2018 की तुलना में 2019 में वीएडब्ल्यू में 7.3% की वृद्धि हुई है। वीएडब्ल्यू के रूप में दर्ज मामलों में 'पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता', 'महिलाओं का शील भंग करने के इरादे से हमला', 'महिलाओं का अपहरण और धोखे से भगा ले जाना', और ' बलात्कार' प्रमुख कथित कारण थे। चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2019 में भारत में प्रतिदिन औसतन 88 बलात्कार के मामले दर्ज हुए, जिसमें हर 16 मिनट में लगभग एक बलात्कार हुआ (एनसीआरबी, 2020)। वीएडब्ल्यू की बढ़ती घटनाओं के कारण भारत भर में महिला श्रम-शक्ति भागीदारी दर 1990 के 30.3% से घटकर 2019 में 20.8% हो गई।

विशेष रूप से बिहार राज्य में, पिछले दो दशकों में हर साल दर्ज किए गए बलात्कार के मामलों की कुल संख्या लगभग दोगुनी हो गई है, जो 2001 में 746 थी और 2020 में 1,438 हो गई है। वर्ष 2019 में बिहार में महिलाओं के अपहरण और धोखे से भगा ले जाने के रिपोर्ट किए गए मामले लगभग 9,025 हैं और इस मामले में यह राज्य उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है। इन 9,025 मामलों में से 7,114 मामलों में जबरन शादी करने का इरादा शामिल था– और इस लिहाज से भी यह देश में दूसरा सबसे बड़ा (एनसीआरबी, 2020) राज्य है। अपहरण के इन 7,114 मामलों में से बड़ी संख्या (4,482) 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की थी। तथापि, बिहार में लिंग-आधारित हिंसा की व्यापक रिपोर्टिंग को देखते हुए ऐसे मामलों की वास्तविक संख्या इससे अधिक भी हो सकती है।

लिंग-आधारित हिंसा: काम और शिक्षा पर प्रभाव, और कानून

लिंग-आधारित हिंसा न केवल पीड़ित के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य, और स्वास्थ्य व्यवहार जैसे धूम्रपान, और शराब के दुरुपयोग (कैंपबेल 2002, हेइज़ एवं अन्य 2002, क्रुग एवं अन्य 2002, वाट्स और ज़िमरमैन 2002) पर ही नहीं, बल्कि महिला श्रम-शक्ति भागीदारी पर भी (चक्रवर्ती एवं अन्य 2018) असर डालती है। लिंग-आधारित हिंसा के वास्तविक और कथित खतरे के कारण महिलाएं और उनके परिवार भी अक्सर उनके घर से बाहर वेतनभोगी काम करने से हिचकते हैं (सिद्दीकी 2019)। शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा दोनों के लिए परिवार पर अत्यधिक निर्भरता तथा महिलाओं की संरक्षा और सुरक्षा हेतु विद्यमान विभिन्न कानूनों के बारे में जानकारी की कमी को अक्सर महिला श्रम-शक्ति भागीदारी दर में कमी के प्रमुख कारणों के रूप में उद्धृत किया जाता रहा है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए इस तरह के अपराधों के खिलाफ लागू वीएडब्ल्यू और कानूनों के बारे में जागरूकता में कमी वीएडब्ल्यू की उच्च घटनाओं के होने और ऐसे अपराधों की कम रिपोर्टिंग होने के कारणों में से एक हो सकती है। इसलिए कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसे अपराध महिलाओं की आकांक्षाओं को सीमित करते हैं,परिणामतः उनके आर्थिक सशक्तिकरण पर प्रतिकूल प्रभाव भी डालते हैं। अक्सर किशोर लड़कियों पर इस कथित खतरे के नकारात्मक प्रभाव अधिक होते हैं, और इसके परिणामस्वरूप उनके परिवार एहतियात के तौर पर उनकी शादी जल्दी करने का फैसला करते हैं (पक्रशी एवं अन्य 2021)। सुदर्शन और भट्टाचार्य (2009) ने भी यह पाया कि सुरक्षा चिंताएं घर से बाहर काम करने में प्रमुख बाधाओं में से एक हैं। गार्सिया-रीड (2007) पाते हैं कि आसपास के हिंसा-प्रवण माहौल के नकारात्मक प्रभावों का असर लड़कियों के स्कूल जाने पर होता है।

भारत में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हेतु कई कानून हैं जैसे कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम,2013, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005, दहेज निषेध अधिनियम,1961, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15,16,19(1)(जी), और 21; और भारतीय दंड संहिता की धारा 294, 354, और 509 जो छेड़खानी, पीछा करना, उत्पीडन करना, महिला को ज़बर्दस्ती से छूना और यौन उत्पीड़न के अन्य रूपों से संबंधित हैं। ऐसे मामलों से निपटने के लिए विशिष्ट सरकारी विभाग भी मौजूद हैं। फिर भी, वीएडब्ल्यू में वृद्धि हो रही है और कई ऐसे मामले भी हैं जो रिपोर्ट नहीं किए गए हैं।

इसलिए जरूरी है कि महिलाओं को इन कानूनों की जानकारी हो। इसके अतिरिक्त, महिलाओं को बुनियादी तौर पर आत्मरक्षा की तकनीक सिखाने से भी वीएडब्ल्यू को कुछ हद तक रोकने में मदद मिल सकती है।

जागरूकता निर्माण और आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम

हाल ही के आईजीसी अनुसंधान (लालजी एवं अन्य 2020) में, हम यह पता लगाते हैं कि क्या एक अच्छी तरह से डिज़ाइन किया गया जागरूकता1 और आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम किशोर लड़कियों को सुरक्षित महसूस करने में और किसी प्रकार के आक्रमण का डटकर सामना करने हेतु उनके आत्मविश्वास को बढाने में एक प्रभावी साधन साबित हो सकता है। कुल मिलाकर इससे अपेक्षित है कि यह उन्हें अपनी आकांक्षाएं रखने और अपनी शिक्षा, करियर, शादी और बच्चे पैदा करने आदि के संबंध में अधिक इष्टतम निर्णय लेने के लिए प्रेरित करेगा। हम सितंबर और दिसंबर 20202 के बीच बिहार राज्य के पटना जिले के 20 गांवों में स्थित 45 स्कूलों के कक्षा 7-12 में नामांकित 690 किशोर लड़कियों के एक नमूने का अध्ययन करते हैं। हम यह भी पता लगाते हैं कि क्या प्रशिक्षु ऐसा करने के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित नहीं किये जाने के बावजूद भी इन कार्यशालाओं में प्राप्त जानकारी अपने भाई-बहनों और दोस्तों के साथ साझा करते हैं। इस उद्देश्य के लिए, हम प्रतिभागियों के लगभग 200 भाई-बहनों3 और 504 करीबी दोस्तों4 को महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों के बारे में उनके ज्ञान का आकलन करने हेतु एक लघु-परीक्षण पूरा करने के लिए कहते हैं।

हस्तक्षेप से पहले एक आधारभूत सर्वेक्षण किया गया, और इसने संकेत दिया कि तीन समूहों में छात्र व्यक्तिगत रूप से (आयु, वर्ग, जाति, जन्म क्रम के सन्दर्भ में) और घरेलू स्तर की विशेषताओं (जैसे परिवार संरचना, निवास-क्षेत्र, माता-पिता की शिक्षा, पिता और माता दोनों का रोजगार, घर का आकार, घरेलू आय) के साथ-साथ परिणाम चर (जैसे सुरक्षा की धारणा, डटकर सामना करने का आत्मविश्वास, तथा स्नातक होकर काम करने के लिए प्रेरणा) की दृष्टी से बहुत समान हैं। सुरक्षा के बारे में धारणा, डटकर सामना करने का आत्मविश्वास, और स्नातक होकर काम करने के लिए प्रेरणा एक दूसरे से बहुत अलग नहीं हैं, और यह निम्न स्तर पर हैं। हम आधारभूत सर्वेक्षण (हस्तक्षेप से पहले)5 के दौरान प्रतिभागियों से इस सन्दर्भ में कानूनों और सामान्य जागरूकता के बारे में ज्ञान-आधारित प्रश्न नहीं पूछते हैं।

जो छात्र अध्ययन का हिस्सा हैं, उन्हें मोटे तौर पर दो समूहों 'उपचार' (जो हस्तक्षेप प्राप्त करते हैं) और एक 'नियंत्रण' समूह (जिन्हें कोई हस्तक्षेप नहीं मिलता है) में शामिल किया गया। उपचार समूह में 488 लड़कियां और नियंत्रण समूह में 202 लड़कियां थीं। पहले उपचार समूह में 243 लड़कियां ('केवल जागरूकता' (ए) के रूप में संदर्भित), प्रशिक्षित महिला परामर्शदाताओं के जरिये केवल जागरूकता अभियान में भाग लेती हैं। प्रत्येक छात्र को महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले सुरक्षा मुद्दों, प्रासंगिक कानूनों और महिलाओं द्वारा अपने दैनिक जीवन में अपनी सुरक्षा के लिए उठाए जाने वाले कदमों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। छात्रों को कई वीडियो दिखाए जाते हैं, जिनमें 'गुड टच' और 'बैड टच' (बच्चों के यौन उत्पीड़न से संबंधित) के बीच के अंतर को समझना, घर पर आसानी से उपलब्ध सामग्री के माध्यम से पेपर स्प्रे बनाना, और डटकर सामना करने वाली लड़कियों के प्रेरणादायक किस्से (शारीरिक रूप से डटकर सामना करना और सामाजिक दबाव के खिलाफ लड़ना) शामिल हैं। छात्रों को अपने लक्ष्यों का पीछा करने, स्वतंत्र होने और बेहतर जीवन और करियर की आशा और आकांक्षा करने के लिए भी प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाता है।

245 लड़कियों के दूसरे उपचार समूह ('जागरूकता और प्रशिक्षण' (ए एंड टी) संदर्भित) में छात्र जागरूकता अभियान के साथ-साथ एक ऑनलाइन आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यशाला में भी भाग लेते हैं। कार्यशाला में, छात्रों को सहनशक्ति और ताकत बनाने में मदद करने के लिए बुनियादी शारीरिक व्यायाम और लिंग आधारित हिंसा की विभिन्न स्थितियों में खुद को बचाने में मदद करने के लिए विशिष्ट आत्मरक्षा तकनीकों को सिखाया जाता है।

प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों का आकलन

हम देखते हैं कि हस्तक्षेप के बाद (जैसा कि एंडलाइन सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त किया गया) नियंत्रण समूह की तुलना में दोनों उपचार समूहों-ए और ए एंड टी-के सन्दर्भ में ज्ञान सूचकांक पर्याप्त रूप से (0-11 के पैमाने पर लगभग 7 अंक) बढ़ गया (चित्र 1) है। दो उपचार समूहों में छात्रों के डटकर सामना करने के आत्मविश्वास का स्तर भी नियंत्रण समूह की तुलना में दोगुने से अधिक था। हालांकि, 'ए एंड टी' समूह के छात्र 'ए' समूह की तुलना में शारीरिक शोषण की विभिन्न स्थितियों में डटकर सामना करने के लिए अपेक्षाकृत अधिक आश्वस्त थे।

चित्र 1. प्रशिक्षण प्रभाव

ध्यान दें; हम 95% विश्वास अंतराल पर विचार करते हैं। विश्वास अंतराल अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करने का एक तरीका है। 95% विश्वास अंतराल का अर्थ है, कि यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो परिकलित विश्वास अंतराल के 95% समय में सही प्रभाव होगा।

चित्र-1 में आये अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय :

Knowledge Index: ञान सूचकांक

Confidence to fight back (in different situations): वापस लड़ने का विश्वास (विभिन्न स्थितियों में):

Motivation to graduate & work: स्नातक और काम के लिए प्रेरणा

हम छात्रों की भविष्य की आकांक्षाओं पर हस्तक्षेप के कारण प्रत्यक्ष प्रभाव पाते हैं। जो छात्र किसी न किसी रूप में उपचार प्राप्त करते हैं उनमें स्नातक होने और काम करने के लिए प्रेरणा के उच्च स्तर (लगभग 2-3 अंक, 0-10 के पैमाने पर) होते हैं (चित्र 1)। यह प्रभाव 'ए' समूह की तुलना में 'ए एंड टी' समूह के लिए अधिक है। इसलिए लक्षित हस्तक्षेप प्रतिभागियों को उनके अधिकारों, उनकी सुरक्षा के लिए मौजूद कानूनों के बारे में जागरूक करता है, और डटकर सामना करने हेतु उनके आत्मविश्वास में सुधार करता है, जो उन्हें भविष्य में स्नातक होने और काम करने के लिए प्रेरित करने के लिए एक चैनल के रूप में कार्य कर सकता है।

प्रतिभागियों के भाई-बहनों और करीबी दोस्तों तक जानकारी के प्रसार के संबंध में, हम पाते हैं कि (चित्र 2) उपचार समूहों (नियंत्रण समूह के सापेक्ष) के प्रतिभागियों के भाई-बहनों और करीबी दोस्त- दोनों का महिला सुरक्षा कानूनों और अधिकारों के बारे में जागरूकता एवं ज्ञान अधिक (लगभग 5 अंक) है, जो यह दर्शाता है कि किशोर लड़कियां वास्तव में प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्राप्त जानकारी को अपने घर और सामाजिक नेटवर्क में दूसरों के साथ साझा करती हैं। हम पाते हैं कि भाई-बहनों की उम्र और लिंग, और उनके करीबी दोस्तों की जाति चाहे जो भी हो, यह जानकारी सभी से समान रूप में साझा की जाती है। उल्लेखनीय है कि किशोरियां इस जानकारी को अपने भाइयों के साथ भी समान रूप में साझा करती हैं।

चित्र 2. भाई-बहनों और करीबी दोस्तों में जानकारी के प्रसार का प्रभाव

चित्र-2 में आये अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय :

By whether sibling younger/older: चाहे भाई-बहन छोटा हो या बड़ा

By gender of the sibling: भाई-बहन के लिंग के अनुसार

Whether friend is of same caste: क्या दोस्त एक ही जाति का है

नीति का क्रियान्वयन

भारत में महिलाओं और किशोर लड़कियों को शारीरिक, भावनात्मक और यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए कई कानून मौजूद हैं। हालांकि, इन कानूनों के बारे में जागरूकता की कमी अभी भी सर्वदूर है और हमारा मानना ​​है कि इन कानूनों को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है। हम पाते हैं कि जागरूकता अभियान के साथ-साथ आत्मरक्षा प्रशिक्षण कक्षाएं न केवल महिलाओं के बीच उनकी सुरक्षा और अधिकारों के बारे में ज्ञान के स्तर को बढ़ाती हैं, बल्कि इन किशोरियों के आत्मविश्वास को भी बढ़ाती हैं और उन्हें स्नातक होने के लिए और काम पर जाने के लिए प्रेरित करती हैं। हमारे परिणाम यह भी दर्शाते हैं कि इन प्रशिक्षण और जागरूकता अभियानों के प्रत्यक्ष संपर्क के बिना भी इस तरह के सत्र समाज के दूसरों लोगों पर भी महत्वपूर्ण सकारात्मक बाहरी प्रभाव डाल सकते हैं।

स्कूलों में अनिवार्य जागरूकता अभियान (जहां विभिन्न कानूनों और प्रावधानों के बारे में ज्ञान औपचारिक रूप से प्रचारित किया जा सकता है) और किशोर लड़कियों के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में आत्मरक्षा प्रशिक्षण सत्रों को शामिल करने से भविष्य में लड़कियों को सशक्त बनाने में मदद मिल सकती है।

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टिप्पणियाँ:

  1. जबकि इस संदर्भ में कानून प्रवर्तन की वास्तविक/कथित प्रभावशीलता भी एक महत्वपूर्ण कारक है, यह इस अध्ययन के दायरे से बाहर है।
  2. इस अध्ययन के उद्देश्य के लिए, हम अपना ध्यान परिवार में एंड्रॉइड मोबाइल फोन (ऑनलाइन कक्षाओं के लिए सुविधाओं के साथ) का उपयोग कर रही किशोर लड़कियों पर ही केंद्रित करते हैं। हम इस पात्रता मानदंड का उपयोग सभी गांवों के छात्रों का चयन करने के लिए करते हैं और फिर छात्रों और गांवों को उपचार और नियंत्रण समूहों में यादृच्छिक रूप से शामिल करते हैं। कोविड-19 के कारण स्कूल में प्रत्यक्ष उपस्थिति बंद होने के बाद से, गाँवों में 75 प्रतिशत लड़कियों के पास एंड्रॉइड फोन है और वे पहले से ही ऑनलाइन कक्षाओं के लिए उनका उपयोग काफी आराम से कर रही थीं। बेसलाइन और एंडलाइन सर्वेक्षणों के बीच हमारी पूरी भागीदारी थी और इनमें कोई ड्रॉपआउट नहीं था।
  3. 690 किशोरों में से केवल 200 के भाई-बहन उनके साथ एक ही घर में रहते थे।
  4. चूँकि मित्रों से ज्ञान-आधारित प्रश्न केवल फोन पर ही पूछे जा सकते थे, हमने केवल उन्हीं मित्रों को शामिल किया जिनके पास फोन था और जिनका मोबाइल नंबर प्रशिक्षु द्वारा उपलब्ध कराया जा सकता था।
  5. संबंधित कानूनों को देखने के लिए आधारभूत सर्वेक्षण में महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित ज्ञान-आधारित प्रश्नों से उपचार और नियंत्रण समूहों दोनों के प्रतिभागियों को प्रेरित किया जा सकता है, और इसलिए, यह कहना मुश्किल है कि आकस्मिक प्रभाव हस्तक्षेप के कारण थे या इस अप्रत्यक्ष चैनल के कारण थे।

लेखक परिचय : चितवन लालजी भारतीय प्रबंधन संस्थान कोझीकोड में सहायक प्रोफेसर हैं। देबायन पक्रशी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। सरानी साहा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में प्रोफेसर हैं। सौभाग्य साहू भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में आर्थिक विज्ञान विभाग में पीएच.डी. छात्र हैं।

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