सामाजिक समूहों के बीच शारीरिक स्वास्थ्य असमानताओं को लेकर अब तक काफी शोध किया जा चुका है, लेकिन इसमें मानसिक स्वास्थ्य का पहलू अब तक अनदेखा है। 2007-2008 में छह भारतीय राज्यों में डब्ल्यूएचओ द्वारा किए गए सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण कर इस लेख में बताया गया है कि अनुसूचित जाति एवं मुस्लिम समुदाय का मानसिक स्वास्थ्य उच्च-जाति के हिंदुओं के मानसिक स्वास्थ्य की तुलना में बदतर है - शिक्षा और संपत्ति में अंतर को परे कर दें, तब भी।
मई 2019 में जाति-संबंधित भेदभाव का सामना करने के बाद एक आदिवासी मुस्लिम समुदाय की मेडिकल छात्रा पायल तड़वी ने आत्महत्या कर ली। यह कोई इकलौती घटना नहीं है। नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ हिंसा में 50 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें से दो तिहाई मुस्लिम थे। जाति एवं धर्म-आधारित निरंतर भेदभाव को ध्यान में रखते हुए यह समझना ज़रूरी है कि जाति और धर्म मानसिक स्वास्थ्य परिणामों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
पृष्ठभूमि
लिंग, आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्तर, और जातिगत आधार पर स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं को समझने के लिए भरी संख्या में बहु-विषयी लेखन कार्य किया जा चुका है। इसमें शिशु मृत्यु दर (गियो एवं ऐलनलडॉर् 2010, स्पीयर्स एवं गेरुसो 2018, रमैया 2015), बच्चो का कद(कॉफ़ी एवं अन्य 2019), स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग (बारु एवं अन्य 2010), आदि शामिल है। इस संदर्भ में हाशिए पर समूहों का सदस्य होना और मानसिक स्वास्थ्य पर हानी के बीच संबंध-निर्धारण विशेष रूप से ज़रूरी है। भारतीय राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) के अनुसार भारतीय आबादी का 10% हिस्सा सामान्य मानसिक रोगों (गुरुराज एवं अन्य 2016) से पीड़ित है। असल में, यह संख्या इससे ज़्यादा हो सकती है क्योंकि खराब मानसिक स्वास्थ्य की रिपोर्टिंग को समाज में अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के मनोचिकित्सक सुश्रुत जाधव, सुरिंदर जोधका (प्रोफेसर, समाजशास्त्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) के साथ हुए साक्षात्कार में यह तर्क देते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य के जाति आधारित आयाम “अकादमिक और लोकप्रिय संस्कृति दोनों स्तरों पर गायब” रहते हैं (जोधका और जाधव 2012)। हाल के शोध में हमने भारत में सामाजिक समूहों के मानसिक स्वास्थ्य में असमानताओं का विश्लेषण कर साक्ष्यों के अंतर का पता लगाने की कोशिश की है (गुप्ता और कॉफ़ी 2020)। हमारी जानकारी में, जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वालों के आंकड़ों का उपयोग करने वाला यह पहला अध्ययन है।
आंकड़े
हम वर्ष 2007-08 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के स्टडी ऑफ ग्लोबल एजिंग एंड एडल्ट हेल्थ (SAGE - सेज) द्वारा भारत के छह बड़े राज्यों में किए गए अध्ययन के आंकड़ों का उपयोग करते हैं। डबल्यूएचओ-सेज, इन राज्यों में वयस्क जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है, और मानसिक स्वास्थ्य परिणामों, सामाजिक समूह तथा सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर जानकारी इकठ्ठा करता है। इन आंकड़ों का विश्लेषण करने पर निम्नलिखित परिणाम आए:
- पिछले 30 दिनों में कुल मिलाकर आपको उदास या दुखी होने के कारण कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा – बिलकुल नहीं, थोड़ा, मध्यम, गंभीर या अत्यधिक?
- पिछले 30 दिनों में कुल मिलाकर आपको चिंता अथवा बेचैनी के कारण कितनी समस्या हुई – बिलकुल नहीं, थोड़ा, मध्यम, गंभीर या अत्यधिक?
पद्धति
हमारा अध्ययन निम्नलिखित प्रश्नों पर केंद्रित है:
- क्या अनुसूचित जातियों (एससी / दलित) और उच्च-जाति के हिंदुओं एवं मुसलमानों और उच्च-जाति के हिंदुओं के बीच स्व-सूचित मानसिक स्वास्थ्य संकेतकों में असमानताएं हैं?
- इन विषमताओं का परिमाण क्या है?
- सामाजिक समूहों में असमाता किस हद तक संपत्ति और शिक्षा की असमानता की वजह से है?
इन सवालों का जवाब देने के लिए हमने दो अनुभव-सिद्ध रणनीतियों का उपयोग किया है –
1) पहला ‘गैर-पैरामीट्रिक पुनर्भारण मानकीकरण’ तकनीक है, जो यह बताती है यदि मुसलमानों और अनुसूचित जातियों के पास उच्च हिंदुओं के समान ही शिक्षा और परिसंपत्ति का वितरण हों, तो उनके मानसिक स्वास्थ्य परिणाम क्या होंगे।
2) दूसरा ‘प्रतिगमन विश्लेषण’ (रिग्रेशन एनालिसिस), जो यह बताता है कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति के अंतर को नियंत्रित करने के बाद भी एससी और मुसलमानों के मानसिक स्वास्थ्य के परिणाम बदतर हैं।
हाशिए के समूहों के लिए मानसिक स्वास्थ्य परिणाम
दोनों रणनीति के अनुसार परिणामों में एससी और मुस्लिम उत्तरदाताओं का मानसिक स्वास्थ्य उच्च जाति के हिंदू उत्तरदाताओं (आकृति 1) की तुलना में निम्न था। पिछले महीने में लगभग 41% उच्च जाति के हिंदू उत्तरदाता, 46% अनुसूचित जाति के उत्तरदाता, और 51% मुस्लिम उत्तरदाताओं ने स्वयं को थोड़े, मध्यम, गंभीर या अत्यंत उदास होने की सूचना दी। उच्च जाति के हिंदू उत्तरदाता में आधे से कम, अनुसूचित जाति के 57% उत्तरदाता और मुस्लिम समुदाय के 60% उत्तरदाताओं ने पिछले महीने में चिंता को महसूस किया।
आकृति 1. सामाजिक समूह द्वारा स्व-सूचित मानसिक स्वास्थ्य परिणाम
आकृति में प्रयुक्त अङ्ग्रेज़ी शब्दों के अर्थ:
Any problem with sadness or depression - उदासी या दुख के साथ कोई समस्या
Any problem with worry or anxiety - चिंता या घबराहट के साथ कोई समस्या
Proportion reporting any problem - किसी समस्या के होने का अनुपात
Scheduled Castes (SCs) - अनुसूचित जाति (एससी)
Higher-caste Hindus - उच्च-जाति के हिंदु
Muslims - मुसलमान
आकृति-2 उपरोक्त वर्णित पुनर्भारित तकनीक के आधार पर स्व-सूचित मानसिक स्वास्थ्य के वितरण को चित्रित करता है। यह पुनर्भारित वितरण मानसिक स्वास्थ्य परिणामों के प्रति तथ्यात्मक वितरणों को दर्शाता है। मुस्लिमों और एससी के उच्च जाति के हिंदुओं के समान शिक्षा और संपत्ति की प्राप्ति के बाद भी मानसिक स्वास्थ्य परिणामों की स्थिति क्या होगी, यह आकृति बताती है।
आकृति 2. स्व-सूचित मानसिक स्वास्थ्य परिणामों का वितरण
आकृति में प्रयुक्त अंग्रेज़ी शब्दों का अर्थ:
None - बिलकुल नहीं
Mild - थोड़ा
Moderate - मध्यम
Severe - गंभीर
Extreme - अत्यधिक
Reweighted - पुनःभारित
आकृति 2 में अनुसूचित जाति और मुस्लिमों के पुन:भारित किए गए वितरण मानसिक स्वास्थ्य परिणामों के वितरण के करीब हैं। बिलकुल नहीं से अत्यधिक चिंता के रेंज में अ-भारित वितरणों में उच्च जाति के हिंदुओं से मुस्लिमों के वितरण की समानता है। हालांकि अधिकांश परिणामों के लिए अभी भी एक मानसिक स्वास्थ्य अंतर दिखाई देता है। अनुसूचित जाति और उच्च जाति के हिंदुओं के बीच दुख का अंतर एक अपवाद है, जो संपत्ति और शिक्षा प्राप्ति में अंतर के आधार पर पूरी तरह से समझाया गया है।
पूरे अनुभवजन्य विश्लेषण के दौरान हम पाते हैं कि मुस्लिमों में उच्च-जाति के हिंदुओं की तुलना में उम्र, शिक्षा, संपत्ति, व्यय, निवास की स्थिति और ग्रामीण निवास में समानता के बाद भी अवसाद और चिंता की संभावना काफी अधिक है।
निष्कर्ष
अनुसूचित जातियों और मुसलमानों में उच्च जाति के हिंदुओं की तुलना में स्व-सूचित मानसिक स्वास्थ्य खराब है। अधिकांश मामलों में ये अंतराल इस तथ्य के लिए जिम्मेदार होने के बाद भी रहता है कि एससी और मुस्लिमों के पास अशिक्षा और कम संपत्ति का वितरण है।
वर्ष 2007-2008 के आंकड़ों का उपयोग कर किए गए इस विश्लेषण को ध्यान में रखते हुए वर्तमान समय में भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के मामलों मे वृद्धि ने इस असमानता को बढ़ाते हुए उन्हें और हाशिये पर धकेल दिया है। हमें लगता है कि मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव में वृद्धि (विदेशी संबंधों पर परिषद 2020), लिंचिंग की घटनाओं में वृद्धि, असम में नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर कार्यान्वयन, नागरिकता संशोधन अधिनियम से संबंधित विरोध प्रदर्शन, दिल्ली में बाद में हुए दंगे और संबंधित घटनाओं ने मुसलमानों में दुख और चिंता के स्तर में वृद्धि लाई है। और इस कारण मुसलमानों एवं उच्च जाति के हिंदुओं के बीच मानसिक स्वास्थ्य परिणामों में अंतर और बढ़ गया है। 2020 में मानसिक स्वास्थ्य असमानताओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें अधिक राज्यों के हालिया आंकड़ों की आवश्यकता होगी। अंत में, भेदभाव, हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य परिणामों के बीच संबंधों को समझने के लिए आगे काम करना ज़रूरी है।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं के दस्तावेजीकरण के इस कार्य के क्या निहितार्थ हो सकते हैं? मौजूदा नीतिगत ढांचे भारत की सामाजिक असमानताओं को चुनौती देते हैं , साथ हीं सकारात्मक कार्रवाई और पुनर्वितरण नीतियों को प्राथमिकता देते हैं। हिंसा और भेदभाव के खिलाफ मजबूत रुख अपनाने वाली नीतियों के साथ इन रूपरेखाओं को पूरा करने की तत्काल आवश्यकता है। मानसिक स्वास्थ्य नीतियों द्वारा भी एक निवारक दृष्टिकोण को प्राथमिकता दिया जा सकता है। इस हद तक कि भेदभाव और हिंसा भारत में अवसाद और चिंता बढ़ाने में योगदान करते हैं, उन्हें कम करने से समग्र मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा। यह भारत जैसे कम-संसाधन वाले जगहों में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहाँ मानसिक स्वास्थ्य सेवा की लोगों तक पहुंच बेहद सीमित है।
यह आलेखों की तीन शृंखलाओं (मोबाइल फोन सर्वेक्षण विधि, मानसिक स्वास्थ्य मापना और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी असमानताएँ) का आखरी भाग है।
क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।
लेखक परिचय: डाएन कॉफी अमेरिका के ऑस्टिन स्थित टेक्सास विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र और जनसंख्या अनुसंधान की असिस्टेंट प्रोफेसर और भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आइएसआइ), दिल्ली में विजिटिंग रिसर्चर हैं। आशीष गुप्ता यूनिवरसिटि ऑफ पेंसिलवेनिया में जनसांख्यिकी एवं समाजशास्त्र में पीएचडी कर रहे हैं, साथ हीं वे रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कंपैशनेट इक्नोमिक्स (आरआईसीई) में रिसर्च फैलो हैं। मेघना मुंगिकर प्रिंसटन स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (इंटरनेशनल डेवलपमेंट) में मास्टर की छात्रा हैं।
Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.