भारत सरकार का एक क्रियाशील नीतिगत प्रस्ताव है कि सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव और राष्ट्रीय चुनाव एक साथ ही कराए जाएँ। यह लेख इस बात की जाँच करता है कि क्या राष्ट्रीय एवं राज्य के चुनाव एक साथ होने से मतदाता के फैसले प्रभावित होते हैं, और क्या इसके परिणामस्वरूप भारत में चुनावी नतीजों पर प्रभाव पड़ता है। इससे यह ज्ञात होता है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से निर्वाचन क्षेत्रों के दोनों स्तरों पर एक ही राजनीतिक पार्टी के जीतने की संभावना 21% बढ़ जाती है।
भारत सरकार तथा उसके संस्थानों (जैसे नीति आयोग तथा भारतीय विधि आयोग) का एक क्रियाशील नीतिगत प्रस्ताव है कि आम (या राष्ट्रीय) चुनाव के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जाएँ। इस प्रस्ताव के पीछे का मुख्य तर्क यह है कि चुनाव सरकारी खजाने के लिए महंगे होते हैं, और इनमें शासन का बहुत ज्यादा समय चला जाता है क्योंकि सरकार के मानव संसाधन (और पदधारी प्रतिनिधि) पूरी तरह से चुनाव प्रबंधन में लग जाते हैं। दूसरी ओर, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से देश का संघीय ढांचा कमजोर हो सकता है क्योंकि राष्ट्रीय चुनाव राज्य चुनाव के एजेंडे पर हावी हो सकते हैं1।
क्या एक साथ चुनाव कराए जाने से मतदाता का व्यवहार और चुनाव के नतीजे प्रभावित हो सकते हैं?
हालिया शोध (बालासुब्रमण्यम एवं अन्य 2020) में हम एक और अधिक मौलिक प्रश्न पूछकर इस बहस में योगदान करना चाहते हैं: क्या एक साथ चुनाव मतदाता का व्यवहार और परिणामस्वरूप चुनावी एवं आर्थिक नतीजों को प्रभावित करते हैं? हमारा तर्क है कि जब मतदाता एक ही समय में कई चुनावों में मतदान करते हैं तो वे यह तय करने के लिए कि किसे वोट देना है, अधिक संज्ञानात्मक चुनौती का सामना करते हैं। नतीजतन, चुनावों को एक साथ कराए जाने से इस बात पर प्रभाव पड़ सकता है कि मतदाता कैसे वोट डालते हैं। उदाहरण के लिए - कई चुनावों का सामना करते हुए एक मतदाता उम्मीदवारों की एक खास विशेषता (जैसे कि उनकी पार्टी संबद्धता या जाति/धार्मिक पहचान), अथवा नीतिगत मुद्दों के एक संकीर्ण सेट पर ध्यान केंद्रित करके अपनी निर्णय प्रक्रिया को सरल बना सकता है। यदि मतदाता के व्यवहार पर इस तरह के प्रभाव महत्वपूर्ण हैं, तो यह उम्मीद की जा सकती है कि चुनावों को एक साथ कराए जाने के परिणामस्वरूप चुनावी नतीजे भी प्रभावित हो सकते हैं।
इसकी जांच करने के लिए हम 1977-2018 के दौरान भारत में हुए राष्ट्रीय (या आम) चुनावों और राज्य चुनावों का विश्लेषण करते हैं और इन्हें एक साथ कराए जाने के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए चुनावी चक्रों में प्राकृतिक भिन्नता का उपयोग करते हैं। हम प्रत्येक विधानसभा चुनावों को अतीत में और सबसे हाल ही में हुए राष्ट्रीय चुनाव के साथ मिलाते हैं। और अगर वे एक ही तिथि पर कराए गए हैं तो ऐसे एक साथ कराए गए राष्ट्रीय और विधानसभा चुनावों को एक जोड़ी के रूप में वर्गीकृत करते हैं,; अन्य को गैर-समकालिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। प्रत्येक आम चुनाव के समय कुछ ही राज्य ऐसे होते हैं जहां उनके विधानसभा चुनाव उसी समय कराए जा सकते हैं, तो वहां एक साथ चुनाव कराया जाना संभव है2। इसके अलावा राष्ट्रीय और राज्य सरकारें कभी-कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती हैं तब वहां जल्दी चुनाव कराने पड़ते हैं। ये दोनों ही तथ्य हमें राज्यों और समय के अनुसार समकालिकता में भिन्नता प्रदान करते हैं। हम केवल उन राज्यों पर विचार करते हैं जिनमें 1977-2018 के दौरान एक साथ और अलग-अलग दोनों प्रकार के चुनाव हुए थे; ऐसे 21 राज्य हैं।
हम यह प्रश्न पूछ कर आरंभ करते हैं कि क्या किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र और उसके भीतर स्थित राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में एक ही राजनीतिक दल के जीतने की संभावना पर इस बात का कोई फर्क पड़ता है कि वहां एक ही दिन चुनाव होते हैं या अलग-अलग दिनों में? इसके लिए हम समय के साथ एक ही संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का अध्ययन करते हैं, और चुनावों को एक साथ और अलग-अलग कराए जाने पर इनके परिणामों की तुलना करते हैं। हमने निष्कर्षों को निम्नवत आकृति 1 में ग्राफ के रूप में प्रदर्शित किया है।
निष्कर्ष
दो नक्शों (आकृति 1) की तुलना से यह स्पष्ट होता है कि चुनावों के एक साथ होने पर दोनों स्तरों पर निर्वाचन क्षेत्रों में एक ही पार्टी के जीतने की संभावना काफी बढ़ जाती है। दांए पैनल में लाल रंग से दर्शाए गए निर्वाचन क्षेत्र काफी अधिक हैं जो यह दर्शाता है कि जब चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो अधिक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए संभावना [0.66, 1] के उच्चतम बैंड में होती है। इसके अलावा वृद्धि पूरे देश में एक-समान है, अर्थात्, प्रभाव किसी भी विशिष्ट क्षेत्र द्वारा चालित नहीं है।
आकृति 1. एक साथ बनाम अलग-अलग कराए गए चुनावों में संसदीय और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में एक ही पार्टी के जीतने की संभावना
नोट: बायां पैनल (सिंक = 0) भारत के निर्वाचन क्षेत्रों में अलग-अलग कराए गए चुनावों के लिए औसत मानों को दर्शाता है, जबकि दायां पैनल (सिंक = 1) उन्हें एक साथ कराए गए चुनावों के लिए दर्शाता है।
फिर हम इस तुलना को और व्यापक करते हुए एक साथ कराए गए चुनावों की तुलना केवल ऐसे अलग-अलग कराए गए चुनावों से करते हैं जिनमें आम चुनाव और विधानसभा चुनाव एक दूसरे के 180 दिनों के भीतर हुए। इस प्रकार हम एक साथ कराए गए चुनावों की तुलना ‘समीपस्थ’ चुनावों के साथ करते हैं ताकि समकालिकता के प्रभाव को अन्य ऐसे प्रभावों से अलग किया जा सके जो उस समय शुरू होते हैं जब चुनावों के समय में अधिक अंतर नहीं होता है। हालांकि यह प्रक्रिया केवल 10 राज्यों के लिए की गयी जहां एक साथ चुनाव और 180 दिनों के अंतर से अलग-अलग चुनाव, दोनों हुए हैं3। हम पाते हैं कि एक साथ चुनाव होने से संसदीय और राज्य विधानसभा सीट पर एक ही राजनीतिक दल के जीतने की संभावना 8.9 प्रतिशत अंकों के साथ बढ़ गई है जो कि 0.42 की आधार संभावना का लगभग 21% है4। यह प्रभाव सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण एवं अत्यधिक अर्थपूर्ण है। दिलचस्प रूप से हम यह भी पाते हैं कि सभी प्रभाव राज्य और क्षेत्रीय दलों में केंद्रित हैं। इसके अतिरिक्त राज्य में जिस दल की सरकार हैं उसकी वृद्धि होने की अधिक संभावना है। इससे पता चलता है कि एक साथ चुनाव कराए जाने के दौरान संभवतया राज्य के राजनैतिक मुद्दे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संभावित प्रक्रियाएं
हम कई प्रक्रियाओं पर विचार करते हैं जो इस अवलोकित प्रभाव को संभावित रूप से स्पष्ट करती हैं, फिर हम उन्हें एक-एक करके बाहर निकालते हैं। इस लेख में, हमने दो ऐसी प्रक्रियाओं पर चर्चा की है। पहली, यह हो सकता है कि समय के साथ नई जानकारी उपलब्ध होने के कारण मतदाता की पार्टियों पर प्राथमिकताएं बदल जाएं। इसलिए जब चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं तो मतदाताओं द्वारा अलग-अलग दलों के लिए वोट करने की संभावना अधिक हो जाती है, जिसके कारण संभवतः दोनों स्तरों पर अलग-अलग दल जीतते हैं। हालाँकि अगर यह वास्तव में प्राथमिक कारण है तो हमें यह उम्मीद करनी चाहिए कि जब हम एक साथ कराए गए और एक दूसरे से काफी समय अंतराल पर कराए गए चुनावों की आपस में तुलना करते हैं तो हमारा अनुमानित प्रभाव बढ़ जाएगा क्योंकि क्रमिक रूप से आयोजित चुनावों के बीच मतदाता की वरीयताएं और भी बदल जाएंगी। इसके विपरीत यदि हम समय अंतराल को कम करते जाते हैं तो हमें अपने अनुमानित प्रभाव में गिरावट की उम्मीद करनी चाहिए। हालांकि हमें ये दोनों ही स्थितियों नहीं दिखती हैं। जब हम समय अंतराल को 180 से दुगना कर 360 दिन करते हैं तो हमारा अनुमानित प्रभाव वही रहता है। इसके अलावा यदि समय अंतराल को कम करके 150 और 120 दिन करते हैं, तो हमारा अनुमान, कुछ न कुछ मात्रा में बढ़ जाता है।
दूसरी चिंता यह है कि क्रमिक चुनावों में मतदाताओं का एक अलग सेट मतदान कर सकता है। इसका परिणाम हमारे अवलोकित प्रभाव में हो सकता है। हम पाते हैं कि जब विधानसभा चुनावों को आम चुनाव के साथ कराया जाता है तो विधानसभा चुनाव के लिए मतदान में औसतन बदलाव नहीं होता है। एक साथ कराए जाने के कारण राष्ट्रीय चुनावों में मतदान में 5% तक वृद्धि हो जाती है। हालांकि हम पाते हैं कि हमारा मुख्य प्रभाव उन संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में एक समान है जहां एक साथ कराए गए चुनावों के दौरान उच्च और निम्न मतदान होता है (अलग-अलग कराए गए चुनावों के सापेक्ष) जिसका अर्थ है कि मतदाता संयोजन हमारे परिणाम के पीछे प्रमुख प्रेरक शक्ति नहीं है।
हम सीधे परीक्षण करते हैं कि क्या एक साथ चुनाव कराए जाने के कारण मतदाता के व्यवहार में लगातार बदलाव हुए। यह परीक्षण हम 1996-2018 के दौरान सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) द्वारा किए गए सभी राष्ट्रीय और विधानसभा चुनावों के बाद के सर्वेक्षणों के संकलन के द्वारा करते हैं। इन सर्वेक्षणों के दौरान निर्वाचन क्षेत्रों के यादृच्छिक नमूने में यादृच्छिक रूप से चयनित मतदाताओं से राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के बाद, लेकिन चुनाव परिणामों से पहले कई प्रश्न पूछे गए। यहां हम सर्वेक्षण में पूछे गए दो प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो सभी क्षेत्रों में पूछे गए थे और हमारे अध्ययन के लिए प्रासंगिक हैं। पहला प्रश्न यह था कि मतदान करते समय मतदाता के लिए सबसे महत्वपूर्ण विचार क्या है। प्रतिक्रिया के विकल्प थे - 'पार्टी', 'उम्मीदवार', 'जाति', और 'निश्चित नहीं'। हम जाँचते हैं कि ये प्रतिक्रियाएँ एक साथ कराए गए चुनावों के बाद व्यवस्थित रूप से भिन्न थीं या नहीं।
आकृति 2. एक साथ कराए गए चुनावों का मतदाता व्यवहार पर प्रभाव
आकृति में आए अंग्रेजी वाक्यांशों का हिंदी अर्थ
Most important consideration while voting: वोट करते समय सबसे महत्वपूर्ण विचार
What do you think was the main issue for elections: आपके अनुसार चुनावों का मुख्य मुद्दा क्या था
Effect on salience: विशिष्टता पर प्रभाव
Effect on priority of issues: मुद्दों की प्राथमिकता पर प्रभाव
आकृति 2 में पैनल (ए) इस प्रश्न के लिए परिणाम दिखाता है। हम पाते हैं कि एक साथ कराए गए चुनावों के बाद 'पार्टी' कहने वाले उत्तरदाता 12 प्रतिशत अंक अधिक थे (अलग-अलग समय पर कराए गए राज्य चुनावों की तुलना में)5। यह देखते हुए यह एक बड़ा प्रभाव है कि पूरे प्रतिदर्श में औसतन 46% उत्तरदाताओं ने 'पार्टी' का उल्लेख किया है। इससे पता चलता है कि हमारे उपरोक्त तर्क के अनुरूप मतदाता वास्तव में एक साथ कराए गए चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के एक मुख्य पहलू पर ध्यान केंद्रित करते हैं अर्थात् वे किस पार्टी से जुड़े हैं। दूसरा सवाल चुनाव के दौरान मुख्य मुद्दे के बारे में पूछा गया जिसके परिणाम चित्र 2 के पैनल (बी) में दिखाए गए हैं। हम पाते हैं कि अलग-अलग समय पर कराए गए चुनावों की तुलना में एक साथ कराए गए चुनावों के दौरान राज्य से संबंधित मुद्दे का उल्लेख करने वाले उत्तरदाता लगभग 30 प्रतिशत अंक अधिक हैं। यह इस अवलोकन के अनुरूप है कि चुनावी नतीजों का असर राज्य दलों के बीच केंद्रित है।
इसलिए हम पाते हैं कि मतदाताओं द्वारा निर्णय लेने के तरीके पर एक साथ चुनाव कराए जाने का वास्तव में एक बड़ा और महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप दोनों स्तरों पर निर्वाचन क्षेत्रों में एक ही पार्टी के जीतने की संभावना अधिक होती है। साथ ही हम यह भी पाते हैं कि एक साथ कराए गए चुनावों के संबंध में आर्थिक लाभ काफी हल्के हैं। हम इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि एक साथ चुनाव कराने संबंधी व्यवस्था लागू करने से पहले की जाने वाली किसी भी चर्चा में इन बातों पर अवश्य विचार किया जाना चाहिए कि मतदाता के व्यवहार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है और परिणामस्वरूप चुनावी नतीजों पर इसके क्या निहितार्थ होते हैं।
टिप्पणियाँ:
- यूरोपीय संघ (ईयू) देशों के राष्ट्रीय चुनावों को ईयू संसदीय चुनावों के साथ कराए जाने के बारे में यही चिंताएं हैं। इस पर चर्चा के लिए, बसेवी (2013) देखें।
- भारत में किसी भी वर्ष में औसतन पाँच राज्य विधानसभा चुनाव होते हैं।
- 10 राज्य हैं: अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पुदुचेरी।
- हम राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के किसी भी जोड़े के बीच समय अंतराल को 150 दिनों से लेकर 270 दिनों तक बदलते हैं, और हमारे अनुमान 0.15 (150 दिनों के लिए) से 0.082 (270 दिनों के लिए) तक आते हैं। हालांकि, अनुमान सांख्यिकीय रूप से एक दूसरे से काफी अलग नहीं हैं।
- अनुमानों को भूरे लाल रंग में दर्शाया गया है। अनुमान के चारों ओर बिंदीदार रेखा अनुमान से जुड़ी सांख्यिकीय अनिश्चितता को दर्शाती है। नीला रंग अलग-अलग राष्ट्रीय चुनावों के सापेक्ष एक साथ चुनावों के प्रभावों के अनुमान को दर्शाता है। जैसा कि अनुमान दिखाते हैं, हम उस मामले में कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पाते हैं।
लेखक परिचय: विमल बालसुब्रमण्यम लंदन स्थित क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी में वित्त के सहायक प्रोफेसर हैं। सब्यसाची दास अशोका यूनिवरसिटि में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। अपूर्व यश भाटिया वारविक यूनिवरसिटि में अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रहे हैं।
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