नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च हर साल भारत नीति मंच, इंडिया पॉलिसी फोरम (आईपीएफ) की मेज़बानी करता है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ अर्थशास्त्री और नीति-निर्माता सार्वजनिक नीति के लिए उनकी प्रासंगिकता हेतु शोध विचारों का विश्लेषण करते हैं। दिनांक 2-3 जुलाई को आयोजित आईपीएफ के 21वें संस्करण के बाद, आइडियाज़ फॉर इंडिया (आइ4आइ) हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनो में, आइडियाज़@आईपीएफ2024 श्रृंखला प्रस्तुत कर रहा है, जिसका परिचय एनसीएईआर के वरिष्ठ सलाहकार प्रदीप कुमार बागची द्वारा इस एंकर पोस्ट में प्रस्तुत है।
दिनांक 18 जुलाई से 8 अगस्त के बीच आई4आई के हिन्दी अनुभाग में आईपीएफ में प्रस्तुत नीति-प्रासंगिक अर्थशास्त्र शोध के सारांश प्रकाशित होंगे, जिसमें कॉर्पोरेट भारत में महिला नेतृत्व, विदेशी मुद्रा भंडार रखने की लागत और लाभ से लेकर पंजाब राज्य में सामाजिक सुरक्षा जाल और आर्थिक विकास तक के विषय शामिल होंगे।
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के एक प्रमुख आयोजन भारत नीति मंच (इंडिया पॉलिसी फोरम- आईपीएफ) ने भारत के सामने आने वाले प्रमुख सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर सार्थक विचार-विमर्श हेतु एक संवादात्मक मंच के रूप में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लिया है। आईपीएफ भारत और विदेश दोनों से नीति, अनुसंधान और शैक्षणिक क्षेत्रों से प्रतिष्ठित प्रतिभागियों को आकर्षित करता है। आईपीएफ जैसे मंचों पर विचारों का बौद्धिक आदान-प्रदान एनसीएईआर के अपने काम के माध्यम से 'गुणवत्ता, प्रासंगिकता और प्रभाव' सुनिश्चित करने के जनादेश को भी आगे बढ़ाता है।
आईपीएफ 2024 के शोध में कई मुद्दों को शामिल किया गया है, जिसमें महिला निदेशकों के फर्म के प्रदर्शन पर प्रभाव, गरीबी की वर्तमान स्थिति का आकलन तथा सामाजिक सुरक्षा जाल के स्वरूप को बदलने की आवश्यकता, और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उच्च स्तर के विदेशी भंडार रखने के औचित्य से लेकर पंजाब अपने 'कम विकास और उच्च ऋण' के जाल से कैसे निकल सकता है, जैसे मुद्दे शामिल हैं।
"कॉरपोरेट भारत में महिलाओं का नेतृत्व- फर्मों का प्रदर्शन और संस्कृति" नामक शोधपत्र में, रत्ना सहाय (एनसीएईआर और सीजीडी) नव्या श्रीवास्तव (एनसीएईआर) व महिमा वशिष्ठ (एनसीएईआर और बोकोनी विश्वविद्यालय) ने कम्पनी अधिनियम 2013 के तहत अधिदेश के प्रभाव का मूल्याँकन किया है, जिसके अनुसार सूचीबद्ध फर्मों के बोर्ड में कम से कम एक महिला का होना आवश्यक है। उन्होंने पाया कि एक वर्ष के भीतर, उन सूचीबद्ध फर्मों का प्रतिशत तेज़ी से गिरा जिनके बोर्ड में महिला का प्रतिनिधित्व नहीं था। इस के बावजूद, भारत अभी भी मध्यम और वरिष्ठ प्रबंधन भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी में पीछे है। वे कार्मिक स्तर के आँकड़ों को फर्म के प्रदर्शन आँकड़ों के साथ जोड़ते हैं, ताकि बोर्ड में कम से कम एक महिला की उपस्थिति का फर्म के आर्थिक प्रदर्शन, वित्तीय स्थिरता और फर्मों के जोखिम पर पड़ने वाले प्रभाव की जाँच की जा सके और शीर्ष पदों पर अधिक महिलाओं की नियुक्ति के लिए व्यावसायिक आधार तैयार किया जा सके।
"भारत के विदेशी मुद्रा भंडार और वैश्विक जोखिम" पर अपने शोधपत्र में, चेतन घाटे (आर्थिक विकास संस्थान), केनेथ क्लेटज़र (कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय) और महिमा यादव (भारतीय सांख्यिकी संस्थान) भारत के बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार और भंडार रखने के पीछे के तर्क पर नज़र डालते हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य द्वारा निर्धारित सीमा से काफ़ी आगे हैं। वे स्वस्थ भंडार के लाभों की सूची बनाते हैं, जिनमें अचानक वित्तीय बहिर्वाह की स्थिति में आत्म-बीमा प्रदान करना और विनिमय दर में अस्थिरता का प्रबंधन करना, वैश्विक वित्तीय जोखिमों के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करना तथा सापेक्ष नीतिगत ब्याज़ दर के चलते पोर्टफोलियो ऋण प्रवाह में होने वाली अस्थिरता को कम करना शामिल है। वे यह भी आकलन करते हैं कि क्या ये लाभ भंडार रखने की लागत से अधिक हैं। वे सुझाव देते हैं कि जैसे-जैसे भारत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ारों में और अधिक एकीकृत होता जाएगा, भंडार के एहतियाती लाभ बढ़ सकते हैं।
अपने शोधपत्र "बदलते समाज में सामाजिक सुरक्षा जाल पर पुनर्विचार" में, एनसीएईआर की सोनाल्डे देसाई के नेतृत्व में लेखक उस अनोखी चुनौती पर नज़र डालते हैं, जिसका सामना भारत को बढ़ती अर्थव्यवस्था और घटती गरीबी के साथ अपने नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा जाल प्रदान करने में करना पड़ता है। भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के डेटा का उपयोग करते हुए किया गया यह शोध-कार्य दर्शाता है कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ती है, परिवारों को गरीबी में और इससे बाहर निकलने के लिए काफी बदलाव का सामना करना पड़ता है। परम्परागत रूप से, सामाजिक सुरक्षा जाल के लिए भारत के दृष्टिकोण में गरीबों की पहचान करना और उन्हें विभिन्न सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों तक प्राथमिकता के साथ पहुँच प्रदान करना शामिल है, जिसमें वस्तु और नकद सहायता दोनों शामिल हैं। हालाँकि, जैसे-जैसे गरीबी का स्वरूप बदलता जाता है, गरीबों की सटीक पहचान करना और उन्हें लक्षित करना मुश्किल हो जाता है। गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) कार्ड के प्रावधान के माध्यम से गरीबों की पहचान करने के पारम्परिक तरीकों में गरीबी की दीर्घकालिक स्थिरता को माना जाता है और दीर्घकालिक गरीब परिवारों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। तथापि आईएचडीएस के आँकड़े दर्शाते हैं कि दीर्घकालिक गरीबी में कमी के साथ ही अस्थाई गरीबी हावी होने लगती है। इससे पता चलता है कि सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण को जीवन की उन परिस्थितियों पर अधिक ध्यान देना चाहिए जो लोगों को गरीबी में धकेलती हैं।
“पंजाब का आर्थिक विकास- सम्भावनाएँ और नीतियाँ” शोधपत्र में पंजाब की अर्थव्यवस्था और इसके कम विकास और उच्च ऋण में फँसे होने के कारणों का आकलन किया गया है। लेखक लखविंदर सिंह (मानव विकास संस्थान), निर्विकार सिंह (कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय) और प्रकाश सिंह (प्लाक्षा विश्वविद्यालय) पंजाब के लिए मोनो-कल्चर खेती से दूर जाने, बिजली और पानी की सब्सिडी को खत्म करने तथा उद्योग और सेवाओं को समकालीन आवश्यकताओं के अनुसार पुनर्निर्देशित किए जाने का तर्क देते हैं। इस शोध-कार्य में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार हरित क्रांति द्वारा सृजित कृषि प्रणाली में पंजाब के फंसने से सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, जहाँ कृषि से कर राजस्व प्राप्ति का बहुत कम अवसर मिलता है तथा बिजली और पानी पर दी जाने वाली भारी सब्सिडी से समस्या और भी जटिल हो गई है। इसमें खासकर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की महिलाओं में राज्य की बेरोज़गारी की बढ़ती समस्या को दर्शाया गया है।
कॉरपोरेट भारत में महिलाओं का नेतृत्व- फर्मों का प्रदर्शन और संस्कृति
रत्ना सहाय, नव्या श्रीवास्तव और महिमा वशिष्ठ द्वारा
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार और वैश्विक जोखिम
चेतन घाटे, केनेथ क्लेटज़र और महिमा यादव द्वारा
आगामी दिनों में एनसीएईआर के सहयोग से आईपीएफ 2024 में प्रस्तुत शोध पत्रों को आइडियाज़ फॉर इंडिया पर साझा किया जाएगा। हमें उम्मीद है कि इससे महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों पर और अधिक बहस व चर्चा हो पाएगी।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : प्रदीप कुमार बागची नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) में वरिष्ठ सलाहकार हैं, जो संपादकीय और मीडिया आउटरीच कार्य का नेतृत्व करते हैं।
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