अग्रवाल एवं अन्य, स्वास्थ्य देखभाल की मांग के संदर्भ में लिंग-आधारित प्राथमिकताओं की भूमिका का पता लगाते हैं। सीपीएचएस डेटा का उपयोग करते हुए वे पाते हैं कि ईपीएफ में योगदान की अनिवार्य दरों में बदलाव से उत्पन्न सकारात्मक आय-झटके के कारण चिकित्सा परामर्श और दवाओं पर खर्च कम होने से, स्वास्थ्य देखभाल के खर्चों में 11.6% की गिरावट आती है। पर यह गिरावट स्पष्ट रूप से महिलाओं के बेहतर स्वास्थ्य परिणामों को इंगित नहीं करती है। यह दर्शाती है कि महिलाएँ, विशेष रूप से विवाहित महिलाएँ, अपनी बढ़ी हुई आय का उपयोग घरेलू सामान की खरीद पर करने को प्रमुखता देती हैं।
लिंग-आधारित रूचि और प्राथमिकताएं परिवार में मौद्रिक संसाधनों के आवंटन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती हैं (बनर्जी एवं अन्य 2019)। नकद हस्तांतरण सम्बन्धी प्रतिक्रियाओं के बारे में पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है, जिसमें पुरुषों और महिलाओं के व्यय-आवंटन निर्णयों पर अतिरिक्त आय की भूमिका का विश्लेषण किया गया है। यह देखते हुए कि महिलाओं के निवेश निर्णय और उपभोग व्यय का आवंटन अधिक कुशल प्रतीत होता है (गुडमैन और कपलान 2019), विकासशील देशों में गरीबी-हटाने सम्बन्धी कई प्रमुख मौजूदा हस्तांतरण कार्यक्रम महिलाओं पर लक्षित हैं (बनर्जी और डुफ्लो 2019)। यह भी व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि हस्तांतरण भुगतान सम्बन्धी प्रतिक्रियाएं, आम तौर पर अर्जित आय के झटके से भिन्न होंगी (ऑटोर और डुगैन 2007, बेयर्ड एवं अन्य 2011)।
प्रतीत होता है कि स्थानांतरण आय का स्वास्थ्य देखभाल पर काफी हद तक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आय में वृद्धि के नतीजे में स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग बढ़ता है, लोग अस्पताल अधिक जाते हैं और अधिक लाभार्थी बाल देखभाल सुविधाओं को अपनाते हैं (पिट एवं अन्य 2003, गर्टलर 2004, मॉरिस एवं अन्य 2004, रिवेरा एवं अन्य 2004, मालुशियो एवं अन्य 2005, थॉर्नटन 2008, काहयादी एवं अन्य 2020)। हालांकि स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च करने की इच्छा गुणवत्तापूर्ण सेवाओं तक पहुंच, उपचार की अवसर-लागत, बीमारी के बारे में जानकारी के स्तर और घरेलू आय पर निर्भर करती है (एंसर और कूपर 2004, गार्डर एवं अन्य 2010, चंद्रा एवं अन्य 2011), हम यह समझना चाहते हैं कि जैसा नकद हस्तांतरण सम्बन्धी साहित्य में स्थापित किया गया है, क्या महिलाओं को मिलने वाले सकारात्मक 'आय के झटके' से स्वास्थ्य देखभाल की मांग में बदलाव आता है? वैकल्पिक रूप से हो सकता है कि जब स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च की बात आती है तो अपनी अतिरिक्त खर्च-योग्य आय का उपयोग स्वास्थ्य देखभाल, जो कि मुख्य रूप से एक विश्वसनीय वस्तु (क्रेडेंस गुड)1 है, उसकी खरीद के समय पुरुषों की तुलना में महिलाओं की अपनी अलग प्राथमिकताएं होती हों (डुलेक एवं अन्य 2011, गॉट्सचॉक एवं अन्य 2020)।
इस पृष्ठभूमि में हम एक हालिया अध्ययन (अग्रवाल एवं अन्य 2022) में, भारत में औपचारिक रोज़गार में जुटी महिलाओं की खर्च-योग्य आय में प्रत्यक्ष वृद्धि के स्वास्थ्य देखभाल की मांग पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच करते हैं। विशेष रूप से, हम भारत सरकार द्वारा 1 फरवरी 2018 को कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योगदान के नियमों में किए गए बदलाव से पैदा होने वाले अन्तर को देखते हैं। औपचारिक क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के लिए ईपीएफ में योगदान 12% से घटाकर 8% कर दिया गया था। इससे इन महिलाओं के ‘टेक होम वेतन’ में वृद्धि हुई और नतीजे में इस बदलाव से पहले की तुलना में अधिक खर्च-योग्य आय हाथ आने लगी। हमने पाया कि अपनी खर्च-योग्य आय में इस बढ़त के जवाब में महिलाएं स्वास्थ्य देखभाल पर औसतन कम खर्च करती हैं। हालांकि सरसरी तौर पर ऐसा लगता है कि मांग की नकारात्मक ‘आय लोच’ के कारण महिलाओं द्वारा स्वास्थ्य देखभाल को सामान्य नहीं माना जा रहा है, लेकिन गहरी जाँच से पता चलता है कि स्वास्थ्य देखभाल खर्च के विभिन्न घटकों के बीच के आपसी फेरबदल से ये प्रभाव समझे जा सकते हैं।
अध्ययन डिज़ाइन : मैक्रो डेटा का उपयोग
ईपीएफ सुधार की संस्थागत संरचना, जो अनिवार्य योगदान दरों में बदलाव के लाभ के लिए पात्रता नियमों को परिभाषित करती है, एक उपयोगी अर्ध-प्रयोगात्मक सेटिंग का प्रतिनिधित्व करती है। हम कारण-प्रभावों की पहचान करने के लिए डिफ़रेंस-इन-डिफ़रेंस फ्रेमवर्क2 का उपयोग करते हैं और रुचि के परिणामों पर सुधार के कम हुए प्रभावों को प्रस्तुत करने हेतु इंटेंट-टू-ट्रीट (आईटीटी)3 को प्रस्तुत करते हैं। बिंदु अनुमान ईपीएफ योगदान में कमी के कारण लाभार्थी परिवार के टेक होम वेतन में हुई वृद्धि के चलते उनके आय आवंटन सम्बन्धी निर्णय पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाता है। हम दो समूहों की पहचान करने के लिए उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (सीपीएचएस) डेटा का उपयोग करते हैं । इसमें वह लाभार्थी समूह जो औपचारिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कार्यरत महिलाओं वाले परिवार हैं, ‘उपचार’ समूह में रखे गए और ‘नियंत्रण’ में उन्हें रखा गया जो गैर-औपचारिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कार्यरत महिलाओं वाले परिवार हैं।
सीपीएचएस डेटा से हमें एक बड़ा पैनल डेटा प्राप्त होता है जिसमें 28 राज्यों और 514 जिलों में फैले 1,60,000 से अधिक परिवारों को शामिल किया गया है। हम भारतीय अर्थव्यवस्था के तहत जनवरी 2016 और फरवरी 2020 के बीच परिवारों के मासिक उपभोग व्यय का डेटा निकालते हैं। इस डेटा से स्वास्थ्य देखभाल पर परिवारों के मासिक खर्च की जानकारी मिलती है, जिसे दवाओं, डॉक्टर की फीस, जाँच, अस्पताल में भर्ती का खर्च, बीमा प्रीमियम की किश्तें और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक गतिविधियों में बाँटा गया है। हम स्वास्थ्य देखभाल के अलावा परिवार के आय आवंटन निर्णय की जांच करने के लिए, भोजन, कपड़े, नशीले पदार्थ, शिक्षा सहित अन्य वस्तुओं और सेवाओं की 15 श्रेणियों पर किए गए मासिक व्यय को भी देखते हैं।
इस सर्वेक्षण की जानकारी का उपयोग करते हुए हमारा अध्ययन उन परिवारों, जिन्हें फरवरी 2018 के बाद अतिरिक्त आय प्राप्त हुई, को स्वास्थ्य देखभाल और अन्य वस्तुओं व सेवाओं पर किए गए मासिक व्यय में बदलाव के लिए ऐसे परिवारों की तुलना में मापता है, जिन्हें अतिरिक्त आय नहीं मिली।
स्वास्थ्य देखभाल व्यय पर आय के झटके का प्रभाव
हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि ईपीएफ कटौती के बाद गैर-लाभार्थियों की तुलना में लाभार्थी परिवारों के कुल स्वास्थ्य व्यय में 11.6% की गिरावट आई है। दूसरे शब्दों में कहें तो, हम अतिरिक्त आय प्राप्त करने वाले परिवारों द्वारा ऐसे परिवारों की तुलना में स्वास्थ्य देखभाल पर मासिक व्यय में कमी पाते हैं, जिन्हें आय लाभ नहीं मिला। आकृति -1 में सम्पूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और स्वास्थ्य व्यय की विभिन्न श्रेणियों के गुणांक अनुमान को रेखांकन द्वारा दर्शाया गया है।
आकृति -1. परिवारों के स्वास्थ्य व्यय पर अतिरिक्त आय का प्रभाव
कुल स्वास्थ्य व्यय में कमी मुख्य रूप से दवा पर व्यय (9%) और डॉक्टर की फीस का खर्च (10%) में कमी के कारण है। व्यय में इस कमी को आंशिक रूप से महिलाओं की बेहतर स्वास्थ्य स्थितियों से समझा जा सकता है क्योंकि वे स्वास्थ्यवर्धक गतिविधियों- जैसे जिम जाने, पोषण विशेषज्ञ की सलाह पाने आदि पर अधिक खर्च कर रही हैं। हम पारिवारिक व्यय की समग्र संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव पाते हैं। मोटे तौर पर, हमारे परिणाम दर्शाते हैं कि महिला परिवारों को जब बिना किसी विशिष्ट परिणाम पर खर्च करने के आधार पर अतिरिक्त आय प्राप्त होती है, तब वे स्वास्थ्य सेवा सम्बन्धी व्यय को प्राथमिकता नहीं देते हैं।
मानव पूंजी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ, हम यह भी देखते हैं कि लाभार्थी परिवार कपड़े, जूते, आभूषण और सौंदर्य उत्पादों की खरीद के लिए आय आवंटित करते हैं। हम मनोरंजन, नशीले पदार्थों और रेस्तरां में भोजन जैसी वस्तुओं पर प्रलोभन वाली खपत में कमी पाते हैं। परिणामों की इस श्रृंखला से पता चलता है कि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में स्वास्थ्य देखभाल के लिए एक अलग 'पसंद' है और वे अपनी आय में वृद्धि को खर्च के अन्य घटकों के लिए आवंटित करना पसंद करती हैं।
अस्पताल विज़िट के आधार पर स्वास्थ्य देखभाल व्यय
स्वास्थ्य देखभाल व्यय में गिरावट का एक संभावित तर्क यह हो सकता है कि सामान्य तौर पर महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर होता है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य व्यय की आवश्यकता में गिरावट आती है। इस मुद्दे को अच्छी तरह से अधिक समझने के लिए, हम यह जांच करते हैं कि स्वास्थ्य सुविधा की ज़रूरत पड़ने के बाद महिलाएं स्वास्थ्य देखभाल पर कैसे खर्च करती हैं, अर्थात ऐसी स्थिति में, जब उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी चिंताएं हो जाती हैं। हमारा अध्ययन, इस आधार पर कि अस्पताल जाकर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का लाभ मिल सकता है, समान डिफ़रेंस-इन-डिफ़रेंस फ्रेमवर्क को लागू करने के बाद, गैर-औपचारिक क्षेत्र (गैर-लाभार्थी) में कार्यरत महिलाओं की तुलना में औपचारिक क्षेत्र (लाभार्थी) में कार्यरत महिलाओं के औसत व्यय में अन्तर को दर्शाता है।
इस उद्देश्य के लिए हम जनवरी 2016 और फरवरी 2020 के बीच एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट (एलवीपीईआई) में आने वाले मरीज़ों के प्रशासनिक इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड का उल्लेख करते हैं। एलवीपीईआई के पास भारत के चार राज्यों में प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक केन्द्रों के रूप में अस्पतालों का एक विस्तृत नेटवर्क है। इस पिरामिड संरचना के कारण, यहां आंखों की देखभाल के लिए सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के आते हैं। अस्पताल प्रणाली के इस व्यापक रूप से प्रतिनिधि डेटासेट में 5,00,000 मेडिकल रिकॉर्ड हैं और इनमें आंखों की जाँच और शल्य चिकित्सा आदि के लिए किसी भी केन्द्र में किसी महीने में किसी एक व्यक्ति के खर्च के बारे में जानकारी मिलती है।
दिलचस्प बात यह है कि हम अस्पताल दौरे के मेडिकल रिकॉर्ड डेटा का उपयोग करके, स्वास्थ्य देखभाल खर्च पर एक नकारात्मक प्रभाव पाते हैं (जैसा कि तालिका-1 में दर्शाया गया है)। शीर्ष पैनल में गुणांक यह दर्शाता है कि नेत्र अस्पताल में आने वाली महिला लाभार्थी, महिला गैर-लाभार्थियों की तुलना में सर्जिकल उपचार पर काफी कम खर्च करती हैं। इससे अनिवार्य रूप से वह मुद्दा खारिज हो जाता कि बेहतर स्वास्थ्य होने के कारण स्वास्थ्य व्यय में गिरावट दिखती है। इसके अलावा, निचले पैनल में, गुणांक अनुमान से पता चलता है कि महिला की वैवाहिक स्थिति स्वास्थ्य देखभाल व्यय पर अधिक नकारात्मक प्रभाव डालती है। ये निष्कर्ष मोंडल और दुबे (2020) के अनुरूप हैं, जो यह पाते हैं कि अस्पताल के खर्च में लैंगिक स्तर पर बड़ा अंतर मौजूद है, खासकर विवाहित महिलाओं के मामले में। इससे पता चलता है कि विवाहित महिलाएं परिवार कल्याण के लिए अतिरिक्त आय का योगदान देती हैं, जिसे पिछले अध्ययन कार्य (डोएपके और टर्टिल्ट 2019) में भी पाया गया है। इन निष्कर्षों से इस बात का प्रमाण मिलता है कि जब स्वास्थ्य देखभाल की बात आती है तो महिलाओं की अलग-अलग प्राथमिकताएँ होती हैं और यह ज़रूरी नहीं कि सकारात्मक आय के झटके से स्वास्थ्य देखभाल खर्च में वृद्धि में हो।
तालिका-1 सभी महिला लाभार्थियों (शीर्ष पैनल) और विवाहित महिलाओं (निचला पैनल) के संदर्भ में अतिरिक्त आय का स्वास्थ्य व्यय पर प्रभाव
टिप्पणियाँ: i) हमारे पूरे नमूने में 2,23,106 महिलाएँ हैं, जिनमें से 1,68,491 विवाहित महिलाएँ हैं। ii) आश्रित चर प्रत्येक कॉलम में दिए गए परिणामों का लॉग हैं। iii) अनुमान में नियंत्रण के एक सेट के साथ समय, निवास की स्थिति और अस्पताल के केंद्र के लिए निश्चित प्रभाव शामिल हैं। iv) मानक त्रुटियों (गुणांक के नीचे कोष्ठक में) को जिला स्तर पर क्लस्टर किया गया है, जिसमें '***' का चिन्ह 1% महत्व को दर्शाता है।
अंतर्दृष्टि
हमारी अनुभवजन्य जांच से इस परिकल्पना की पुष्टि हो जाती है कि विकासशील देशों में महिलाओं की आय में सकारात्मक बदलाव, बाकी सब समान होने पर भी, ज़रूरी नहीं है कि स्वास्थ्य देखभाल खर्च में वृद्धि हो, और कुछ मामलों में गिरावट भी हो सकती है। क्योंकि हम इस बात को नकारने में सक्षम हैं कि यह पूरी तरह से बेहतर स्वास्थ्य परिणामों के कारण है, हमारे परिणाम यह दर्शाते हैं कि इन सेटिंग्स में महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल सामान्य रूप से अच्छी नहीं हो सकती है। डी रॉक एवं अन्य (2022) और अंतर-परवारिक निर्णय-प्रक्रिया के हॉडिनॉट और स्कौफियास (2004) के मॉडल के अनुरूप, हमारे अध्ययन से पता चलता है कि यदि विकासशील देशों में महिलाओं की अपने परिवार के कल्याण में योगदान देने के प्रति ठोस प्राथमिकता है, तो उनकी आय में मामूली वृद्धि के कारण व्यक्तिगत उपभोग व्यय में वृद्धि नहीं हो सकती है। इसका अर्थ यह है कि अगर आय के झटके के जवाब में महिलाओं की प्राथमिकताएं इस तरह से बदल जाती हैं कि प्राथमिकता के क्रम में स्वास्थ्य देखभाल व्यय को कम स्थान और अन्य उपभोग को उच्च स्थान दिया जाता है, तो यह संभव है कि आय में वृद्धि स्वास्थ्य देखभाल की माँग में वृद्धि में तब्दील न हो। घरेलू वस्तुओं के पक्ष में इस प्रकार की विषम प्राथमिकता विकासशील देशों में परिवारों में, परिवार या साथियों के दबाव जैसे सामाजिक कारकों के कारण हो सकती है (अनुकृति एवं अन्य 2020, करीम एवं अन्य 2022) या यह केवल महिला उपभोक्ताओं के बीच प्रकट प्राथमिकता को प्रतिबिंबित कर सकता है (कैपलिन और डीन 2011, क्लाइन और टार्टारी 2016)।
टिप्पणियाँ:
- विश्वसनीय वस्तु (क्रेडेंस गुड) एक प्रकार का सामान है जिसकी गुणवत्ता उपभोक्ता खरीदारी करने के बाद तक नहीं देख पाता है, जिसका अर्थ है कि इसकी उपयोगिता का आकलन करना मुश्किल है।
- ‘डिफरेंस-इन-डिफरेंस’ एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग समान समूहों में समय के साथ परिणामों के विकास की तुलना करने के लिए किया जाता है, जहाँ इस मामले में किसी ने एक घटना- सकारात्मक आय झटके का अनुभव किया और दूसरे ने अनुभव नहीं किया।
- ‘आईटीटी’ का उपयोग अपूर्ण अनुपालन के मामले में किया जाता है, जहाँ ‘नियंत्रण’ समूह में यादृच्छिक रूप से शामिल सभी लोगों को ‘उपचार’ नहीं मिलता है, जबकि ‘उपचार’ समूह में यादृच्छिक रूप से शामिल लोग उपचार न लेने का विकल्प चुन सकते हैं।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : शुभांगी अग्रवाल भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद और आईएचओपीई हैदराबाद में एक शोध सहायक हैं। सोमदीप चटर्जी भारतीय प्रबंधन संस्थान कलकत्ता में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। चिरंतन चटर्जी ससेक्स बिजनेस स्कूल विश्वविद्यालय में विज्ञान नीति अनुसंधान इकाई (एसपीआरयू) में नवाचार अर्थशास्त्र के रीडर हैं।
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