जैसे-जैसे कॉलेज शिक्षा में श्रम बाजार के लाभों में बढ़ोतरी हुई है, अब पहले से कहीं अधिक युवको को किसी न किसी प्रकार की उच्च शिक्षा प्राप्त हो रही है। फिर भी, गरीब सामाजिक आर्थिक स्थिति के बच्चों की कॉलेज में उपस्थिति कम रहती है। यह लेख उस असमानता की पड़ताल करता है। इस लेख में पाया गया है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि कॉलेज में उपस्थिति के लिए अकादमिक तैयारी से अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि अपनी कक्षा में शीर्ष स्थान पर रहने वाले गरीब छात्रों के कॉलेज में उपस्थित रहने की संभावना उतनी ही होती है जितनी उनकी कक्षा में सबसे नीचे स्थान पर रहने वाले अमीर छात्रों की होती है।
हमारे शैक्षिक परिदृश्य में दो महत्वपूर्ण विकास हुए हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं:
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में कई युवा अब कॉलेज जाने लगे हैं। यंग लाइव्स सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग करते हुए, सांचेज़ और सिंह (2019) ने दर्शाया कि वर्ष 2015 में भारत (विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में, जहां यंग लाइव्स अध्ययन आधारित है), पेरू और वियतनाम जैसे देशों में 19 साल के 35 से 45% युवा किसी न किसी रूप में तृतीयक शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। तब से, संख्या में केवल वृद्धि हुई है।
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में कॉलेज के बगैर शिक्षा का महत्त्व काफी कम है। मोंटेनेग्रो और पैट्रिनोस (2014) ने दर्शाया है कि, उप-सहारन अफ्रीका के देशों को छोड़कर, स्कूली शिक्षा के से मिलने वाले सारभूत लाभ प्राथमिक से माध्यमिक विद्यालय से अब कॉलेज में अंतरित हो गए हैं। उदाहरण के लिए, दक्षिण एशिया में, प्राथमिक विद्यालय का एक वर्ष का लाभ 6% है, जबकि कॉलेज के एक वर्ष के लिए यह लाभ 3 प्रतिशत है।
लेकिन यहाँ समस्या है: उच्च शिक्षा और कॉलेज में उपस्थिति में वृद्धि के बावजूद, अवसर के रूप में शिक्षा का विचार निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले लोगों के लिए कमजोर बना हुआ है। भारत, पेरू, इथियोपिया और वियतनाम के चार यंग लाइव्स देशों के साथ-साथ पाकिस्तान में, उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति (एसईएस) वाले परिवारों की तुलना में निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले परिवारों के बच्चों की कॉलेज में उपस्थिति 28 से 38 प्रतिशत कम है।
हमारा अध्ययन
हाल के अध्ययन (दास और अन्य 2022) में, हम जांच करते हैं कि ये अंतर जीवन में बाद में आने वाली बाधाओं और संघर्षों के बजाय प्राथमिक वर्षों में स्कूली शिक्षा की खराब गुणवत्ता को किस हद तक दर्शाते हैं। विशेष रूप से, हम पता लगाते हैं कि स्कूली शिक्षा के वर्षों में (22 वर्ष की आयु में) सामाजिक-आर्थिक स्थिति-अंतर को दस साल पहले उनके परीक्षण स्कोर में अंतर से किस प्रकार समझा जा सकता है। यदि एसईएस कॉलेज में उपस्थिति में गिरावट प्राथमिक स्कूली शिक्षा के दौरान खराब शैक्षणिक तैयारी को दर्शाती है, तो विशेष रूप से 16-18 साल की उम्र में स्कूल में रहने या कॉलेज जारी रखने के निर्णय पर ध्यान केंद्रित करना एक प्रभावी उपाय नहीं है। यह प्राथमिक विद्यालय में मूलभूत कौशल है जो उच्च स्तर की शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। दूसरी ओर, यदि यह गिरावट बाद के समय में वित्तीय संसाधनों, सामाजिक नेटवर्क, या अन्य संघर्षों की कमी को दर्शाती है, तो एसईएस कॉलेज में उपस्थिति की कमी को दूर करने के लिए प्राथमिक स्कूली शिक्षा कौशल पर विशेष ध्यान देना अपर्याप्त होगा।
हम जिन पांच देशों का अध्ययन करते हैं - भारत (विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना), इथियोपिया, पाकिस्तान (विशेष रूप से पंजाब प्रांत), पेरू और वियतनाम- इन सभी देशों में डेटा है जो एलएमआईसी के लिए एकत्र करने के बेहद असामान्य है। विशेष रूप से, वे पहले एलएमआईसी देश हैं जिनके पास प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के लिए स्वतंत्र रूप से प्रशासित परीक्षण के साथ-साथ 22 वर्ष की आयु- जिस उम्र में अधिकांश व्यक्तियों ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर ली है और अगर वे पहले से ही नामांकित नहीं हैं, तो आगे उनके कॉलेज में उपस्थित होने की संभावना नहीं है, में शैक्षिक प्राप्ति पर डेटा उपलब्ध है।
चित्र 1 हमारे अध्ययन में पांच देशों में 22 वर्ष की आयु में स्कूली शिक्षा के वर्षों, एसईएस के अनुसार भिन्नता तथा 12 वर्ष की आयु में परीक्षण स्कोर- का एक स्नैपशॉट है। अच्छी खबर यह है कि यह डेटा पिछले दो दशकों में स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में आकस्मिक सुधार की पुष्टि करता है: यहां तक कि हमारे नमूने के सबसे गरीब तीसरे भाग में भी, अधिकांश व्यक्तियों को 8-10 साल की स्कूली शिक्षा प्राप्त होती है। यह डेटा इस बात की भी पुष्टि करता है कि प्राथमिक स्कूली शिक्षा में उपलब्धि महत्वपूर्ण है: प्रत्येक सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले समूह में, 12 वर्ष की आयु में उच्च परीक्षा स्कोर 22 वर्ष की आयु में अधिक पूर्ण स्कूली शिक्षा के साथ सह-संबंधित होते हैं।
चित्र 1. एसईएस और परीक्षण स्कोर तीन बराबर भागो के अनुसार पूर्ण स्कूली शिक्षा के वर्षों में अंतर
नोट: टेस्ट स्कोर तीन बराबर भाग लगभग 12 साल की उम्र में प्रशासित उपलब्धि परीक्षणों पर आधारित होते हैं। सामाजिक-आर्थिक स्थिति को 12 साल की उम्र में माता-पिता की शिक्षा और पारिवारिक सामग्री की स्थिति के संयोजन के रूप में परिभाषित किया गया है।
फिर भी, सभी देशों में (इथियोपिया को छोड़कर), उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति (एसईएस) की पृष्ठभूमि वाले 12 वर्ष की आयु के छात्र जिनके परीक्षा स्कोर नीचे से तीसरे स्थान पर हैं, उनके पास परीक्षण स्कोर वितरण में तीसरे शीर्ष स्थान पर स्कोर करने वाले सबसे कम एसईएस पृष्ठभूमि वाले छात्रों की तुलना में शिक्षा के कई अधिक वर्ष हैं। सीधे शब्दों में कहें तो- यदि आप निम्न एसईएस पृष्ठभूमि से हैं और अपनी कक्षा में शीर्ष पर पहुंचने के लिए कार्य करते हैं, तो अंततः आपके पास परीक्षण स्कोर के आधार पर अपनी कक्षा में सबसे निचले स्थान के उच्च एसईएस पृष्ठभूमि वाले बच्चों के जितने ही शिक्षा के वर्ष होंगे।
हालांकि चित्र 1 समानता की एक गंभीर समस्या पर प्रकाश डालता है, लेकिन यह नहीं दर्शाता कि समस्या कितनी बड़ी है। शायद, संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, कम एसईएस पृष्ठभूमि वाले बहुत कम बच्चे हैं, जिनके उच्च परीक्षा स्कोर हैं। वास्तव में, पांच देशों में से कम से कम तीन देशों- भारत, इथियोपिया और पाकिस्तान में, निम्न और उच्च-एसईएस परिवारों के बच्चों के संदर्भ में 12 साल की उम्र में टेस्ट स्कोर में काफी ओवरलैप है। कहने का तात्पर्य यह है कि कम एसईएस पृष्ठभूमि वाले छात्रों के एक बड़े समूह का परीक्षा स्कोर उच्च एसईएस पृष्ठभूमि वाले छात्रों के बराबर या उससे अधिक है। एक औपचारिक अपघटन से पता चलता है कि पांच देशों में, 12 साल की उम्र में टेस्ट स्कोर को बराबर करने से पाकिस्तान में केवल 15% का अंतर और अन्य देशों में 35-55% के बीच का अंतर कम हो जाएगा, फिर भी भविष्य की संभावनाओं में एसईएस की एक महत्वपूर्ण भूमिका रह जाती है।
इस प्रकार निम्न एसईएस पृष्ठभूमि वाले बच्चे जहां श्रम बाजार से लाभ सबसे अधिक होते हैं वहां शिक्षा के स्तर प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं, ऐसी घटना जब उनकी शैक्षणिक तैयारी उच्च एसईएस परिवारों के बच्चों के बराबर होती है। इससे हमारी शिक्षा प्रणालियों में समानता के लिए परेशान करने वाले निहितार्थ हैं। यह प्रतिभा के महत्वपूर्ण गलत आवंटन को दर्शाता है, क्योंकि कॉलेज में उपस्थित रहने वाले कई बच्चे कक्षा में सर्वश्रेष्ठ नहीं होते। उनमें से कुछ अपनी कक्षा में सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में से होते हैं, लेकिन वे उच्च एसईएस पृष्ठभूमि वाले होते हैं। यह इस बात को भी साबित करता है कि बिना किसी ‘ट्रेड-ऑफ’ के, भविष्य के स्नातकों की शैक्षणिक तैयारी में माध्यमिक और तृतीयक शिक्षा तक पहुंच में काफी सुधार किया जा सकता है।
निष्कर्ष
उपरोक्त वर्णनात्मक तथ्य उच्च शिक्षा तक पहुंच और पारिवारिक पृष्ठभूमि बनाम शैक्षणिक तैयारी के सापेक्ष महत्व के बारे में प्रश्नों को तैयार करने में मदद करते हैं। गरीबों के लिए, स्कूल में अच्छा प्रदर्शन करना कभी-कभी पर्याप्त नहीं होता है- डेटा दर्शाता है कि वे शिक्षा के उन स्तरों तक नहीं पहुंच सकते हैं जिनसे श्रम बाजार में बड़े लाभ मिलते हैं। पूर्व के शोध से पता चलता है कि बीमा और क्रेडिट की कमी से लेकर खराब सूचना या नेटवर्क तक कई बाधाएं परिलक्षित होती हैं। इस प्रकार से, शिक्षा के माध्यम से गरीबों के जीवन में सुधार लाने हेतु प्राथमिक स्कूली शिक्षा में मूलभूत शिक्षा पर विशेष ध्यान देने से और आगे बढ़ने की आवश्यकता होगी। हालांकि यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, लेकिन इससे उच्च स्कोरिंग नहीं बल्कि गरीब व्यक्तियों को मदद मिलेगी।
हमारे निष्कर्षों के समक्ष दो चेतावनियां हैं। सबसे पहली, ये अपघटन कारण अनुमान नहीं हैं; क्रमशः माप त्रुटि और छोड़े गए चर, बाद की शिक्षा का अनुमान लगाते समय परीक्षण स्कोर पर गुणांक को कम कर सकते हैं या बढ़ा सकते हैं। अगर हमें ऐसी नीतियां बनानी हैं जो कम सामाजिक-आर्थिक स्थिति पृष्ठभूमि के उच्च स्कोरिंग करने वाले बच्चों की मदद करेंगी, तो हमें कारण अनुमानों पर ध्यान देने की जरूरत है जो हमें कॉलेज जाने में आने वाली बाधाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते हैं।
दूसरी, और समान रूप से महत्वपूर्ण चेतावनी, हमें ऐसे सिस्टम स्थापित करने की आवश्यकता है जिससे नीति-निर्माता और शोधकर्ता बुनियादी तथ्यों- जिनको हमने यहां नियमित रूप से प्रस्तुत किया है, की खोज कर सकें। अधिकांश सेटिंग्स में, दशकों से बच्चों की शिक्षा का अनुसरण करने वाले दीर्घावधि के पैनल अध्ययन उपलब्ध नहीं हैं- और सीखने के परिणामों से संबंधित हमारे प्रशासनिक डेटा से परीक्षण की सटीकता (सिंह 2020) और कवरेज के संदर्भ में (बच्चे- जैसे कि निजी स्कूलों के छात्र नामांकित नहीं हैं या आधिकारिक परीक्षण में शामिल नहीं हैं, वे इस डेटा में शामिल नहीं होते) गंभीर रूप से समझौता किया जाता है। तथ्य यह है कि हमारे पास शिक्षा को जीवन के परिणामों से जोड़ने वाले बुनियादी सवालों का हल पाने हेतु डेटा उपलब्ध नहीं है, यह एक कमी है जिस पर सरकारों, बहुपक्षीय एजेंसियों और अनुसंधान निधियों को तत्काल कार्य करना चाहिए।
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लेखक परिचय: एंड्रेस यी चांग विश्व बैंक मानव विकास मुख्य अर्थशास्त्री कार्यालय में एक अर्थशास्त्री हैं,जहां वे शिक्षा सेवा वितरण संकेतक (एसडीआई) कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में भी कार्य करते हैं। जिष्णु दास जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में मैककोर्ट स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी और वॉल्श स्कूल ऑफ फॉरेन सर्विस में प्रोफेसर हैं। अभिजीत स्टॉकहोम स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एक अर्थशास्त्री हैं।
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