मुद्रा तथा वित्त

एनबीएफसी किस प्रकार से एमएसएमई वित्त की पुनर्रचना कर रहे हैं

  • Blog Post Date 24 अक्टूबर, 2022
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Rohit Chandra

Indian Insitute of Technology Delhi

chandra@sopp.iitd.ac.in

हालांकि भारत के एमएसएमई में 99% से अधिक सूक्ष्म और लघु उद्यम शामिल हैं, उन्हें बैंक ऋण का अपेक्षाकृत कम अनुपात प्राप्त होता है। चंद्रा और मुथुसामी पिछले दो दशकों में एमएसएमई को उधार किस प्रकार से विकसित हुआ है तथा एमएसएमई को पूंजी तक पहुंच प्रदान करने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और एनबीएफसी की किस तरह की भूमिका रही है, इस पर ध्यान देते हैं। वे पाते हैं कि वित्तीय और नियामक प्रणालियों में सुधार किए जाने से एमएसएमई क्षेत्र में रोजगार में वृद्धि हो सकती है।

1969 में जब भारतीय बैंकिंग प्रणाली का राष्ट्रीयकरण किया गया, तो इस निर्णय के पीछे व्यक्त औचित्य में से एक था "कृषि, छोटे उद्योगों और निर्यात में विकास को बढ़ावा देना, और नए उद्यमियों को प्रोत्साहित करना और सभी पिछड़े क्षेत्रों का विकास करना।" प्राथमिकता ऋण (पीएसएल) की पूरी अवधारणा शुरू में उन क्षेत्रों में पूंजी प्रदान करने की थी, जिन्हें भारत की विकासात्मक परियोजना के लिए आवश्यक माना जाता था, हालांकि उनमें आकर्षक रिटर्न नहीं थे। इसके कुछ सबूत हैं कि ग्रामीण बैंक शाखाएं खोलने से अल्पसंख्यक समुदायों के लिए पूंजी तक पहुंच में सुधार हुआ (बर्जेस और पांडे 2005) है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि विशेष रूप से छोटे व्यवसायों और उद्योगों को उधार देने के संबंध में, इनमें से कई आकांक्षाएं वर्ष 2000 के बाद साकार नहीं हो पाई1। वास्तव में, पिछले दशक में भारत में उद्योगों (चंद्रा 2022) में- विशेष रूप से स्थानिक रूप से, आर्थिक केंद्रीकरण बढ़ रहा है; मार्च 2020 तक देश के सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (एससीबी) क्रेडिट में से  54% क्रेडिट 10 जिलों में था (दलाल 2020)।

एमएसएमई को क्रेडिट कैसे आवंटित किया जाता है?

वर्ष 2016 के एनएसएस सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) में 11 करोड़ से अधिक लोग कार्यरत हैं। यह एमएसएमई को कृषि के बाद भारत में सबसे बड़ा रोजगार देने वाला क्षेत्र बनाता है। एमएसएमई के अंतर्गत, फर्मों का वितरण काफी विषम है। मोटे तौर पर 6.3 करोड़ एमएसएमई में से, 99.4% सूक्ष्म हैं, 0.5% लघु हैं, और मात्र 0.1% मध्यम श्रेणी2 में आते हैं। हालांकि, आरबीआई के अनुसार, सकल बैंक ऋण का 14% एमएसएमई को जाता है, और इसमें से केवल 11% सूक्ष्म और लघु उद्यमों को जाता है। शीर्ष पर क्रेडिट के इस संकेंद्रण का एक मुख्य कारण पिछले कुछ दशकों में भारतीय बैंकों द्वारा विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में ऋण आवंटन के दृष्टिकोण में अपनाया गया नाटकीय परिवर्तन है।

लापता मध्य (मिसिंग मिडल)

पिछले कुछ दशकों से, "लापता मध्य" भारत और विकासशील देशों के बारे में व्यापक रूप से आर्थिक विचार-विमर्श का मुख्य केंद्र बन गया है (क्रुएगर 2009)। जहां कई लोगों ने यह तर्क दिया है कि श्रम कानून भारतीय फर्मों के छोटे रहने और न बढ़ने का निर्णय लेने के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार हैं, शायद इससे भी अधिक गंभीर समस्या विकास और कार्यशील पूंजी तक पहुंच रही है। वास्तव में, हाल के दिनों में, एमएसएमई क्षेत्र में पूंजी का सबसे बड़ा प्रवाह यकीनन आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) था, जिसने एमएसएमई की मदद के लिए बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को 100% सरकारी गारंटी प्रदान की थी ताकि एमएसएमई अपनी कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें और कोविड-19 महामारी के दौरान डिफ़ॉल्टर होने से बच जाएँ। इस नीति के तहत मई 2020 और जून 2021 के बीच एमएसएमई को 1,700 अरब रुपये से अधिक का वितरण किया गया (जिसमें से लगभग 90% सार्वजनिक क्षेत्र या निजी बैंकों के माध्यम से था)। इसमें आश्चर्य की बात नहीं कि इन ऋणों के प्रबंधन और लक्ष्यीकरण में निजी बैंक और एनबीएफसी (ईसीएलजीएस ऋणों पर 6.2% और 11.1% गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) दरों के साथ) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (जिनकी ईसीएलजीएस ऋणों पर 17.4 प्रतिशत एनपीए दर थी) की तुलना में अधिक प्रभावी थे।

वर्ष 2000 और 2015 के बीच, भारत में अधिकांश बैंक ऋण बुनियादी ढांचे और बड़े कॉर्पोरेट उधार पर केंद्रित थे। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 2010 के दशक के दौरान भारत के बुनियादी ढांचे के विस्तार को उदारतापूर्वक कम आँका, लेकिन इसके परिणाम का एक भाग शाखा-स्तरीय उधार प्रथाओं और स्थानीय विशेषज्ञता का घट जाना रहा; और बड़ी टिकट परियोजनाओं का पीछा करते समय, उनके लिए एक ग्राहक और व्यवसाय के स्रोत के रूप में छोटे एमएसएमई उधारकर्ता यकीनन कम महत्वपूर्ण हो गए। जैसा कि 2010 के दशक के मध्य3 तथा इसके आगे से एनपीए संकट को तेजी से भांप लिया गया था, बैंकों ने बुनियादी ढांचे को वित्तपोषण करना रोक लिया, और बजाय इसके, ऋण देने हेतु ‘उपभोक्ता वित्त’ के रूप में एक नया आउटलेट ढूंढ निकाला। मार्च 2022 तक, देश में जारी व्यक्तिगत ऋण (आवास, वाहन, क्रेडिट कार्ड, आदि के लिए) सकल बैंक ऋण के 28.4% से अधिक था- जो एमएसएमई को दी गई राशि का लगभग दोगुना है; एमएसएमई को उधार देना पर्याप्त रिटर्न के बिना बहुत जटिल माना गया, जबकि ‘उपभोक्ता वित्त’ तार्किक रूप से बहुत आसान था।

क्रेडिट गैप को भरने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी)

पिछले एक दशक में पूंजी तक एमएसएमई की पहुंच की इस कमी को किसने पूरा किया है? एमएसएमई क्षेत्र को अपने व्यापार मॉडल के हिस्से के रूप में लक्षित करने की कोशिश कर रहे एनबीएफसी की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। कई अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने महसूस किया है कि वे अब न तो सक्षम हैं और न ही छोटे व्यवसायों को सीधे उधार देने में रुचि रखते हैं। बजाय इसके, वे एक छोटे एनबीएफसी को पैसा उधार (या सह-उधार) देना चाहेंगे, उन्हें ऋण की ब्याज दर में कुछ प्रतिशत जोड़ने देंगे (जो उनके कमीशन के रूप में है), और उनके लिए अपने लघु व्यवसाय ऋण पोर्टफोलियो का प्रबंधन करना चाहेंगे।

बैंकिंग संवाददाता और सह-उधार ऐसे समाधान के रूप में उभरे हैं जो एनबीएफसी और फिनटेक प्लेटफार्मों की उत्पत्ति और स्थानीय बाजार विशेषज्ञता को, आम तौर पर प्रोत्साहनों को संरेखित करने हेतु किसी प्रकार के जोखिम और राजस्व साझाकरण और सभी हितधारकों के लिए प्रस्ताव को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाए रखने के दृष्टिकोण के साथ, बैंकों की बैलेंस शीट को मिलाते हैं। यह नए निजी बैंकों (आरबीएल बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट, आदि सहित) के लिए एक पसंदीदा तरीका रहा है, जो संभावित भागीदारों के साथ आसानी से एकीकृत करने और सभी क्षेत्रों में सह-उधार के माध्यम से व्यापार को बढ़ाने में चुस्त और सक्षम हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऐसी साझेदारियों के संबंध में कहीं अधिक चौकस रहे हैं, और उनकी कई साझेदारियाँ अभी भी आवास और वाहन-आधारित ऋण जैसे क्षेत्रों से जुड़ी हुई हैं।

जहां अधिकतर नवाचार एमएसएमई वित्तीय प्रणाली में हो रहा है, एनबीएफसी/फिनटेक प्लेटफॉर्म की गुंजाइश (स्पेस) यकीनन है। नई फिनटेक कंपनियां एमएसएमई ऋण देने हेतु डेटा-आधारित, एल्गोरिथम-संचालित दृष्टिकोणों का उपयोग करने की कोशिश कर रही हैं। एक लोकप्रिय तरीका एनबीएफसी द्वारा उन फिनटेक कंपनियों के साथ गठजोड़ है, जिनकी बड़े पैमाने पर लेनदेन डेटा (जैसे फोन पे, भारत पे, पेटीएम या रेजर पे) तक पहुंच है और जो न्यूनतम परिश्रम के साथ ऋण की पेशकश करती हैं; और फिनटेक कंपनियां उधारकर्ताओं को शुरू से अंत तक डिजिटल ऑनबोर्डिंग प्रदान करती हैं (उदाहरण के लिए, नियोग्रोथ, कैपिटल फ्लोट, इंडिफी)। हाल ही में, संगठन डेटा एग्रीगेटर्स (अमेज़ॅन, उबर, ज़ोमैटो, स्विगी, ओला, फ्लिपकार्ट, उड़ान सहित) के साथ राजस्व डेटा (लेंडिंग कार्ट, एक्सियो) के आधार पर उधार देने के लिए गठजोड़ कर रहे हैं। क्रेड अवेन्यु/यूबी, विवृति कैपिटल और निम्बस द्वारा नॉर्दर्न आर्क जैसे संगठनों के जरिये बनाए गए प्लेटफार्मों का एक और सेट बड़े वित्तीय संस्थानों के साथ अपने संबंधों का लाभ उठाने और सह-उधार के घर्षण को कम करने हेतु ऋण सिंडिकेशन के उनके सफल इतिहास का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है। उनका उद्देश्य बैंकों द्वारा आवश्यक अनुपालन और प्रक्रिया नियंत्रण को सुनिश्चित करते हुए डिजिटल समाधान तैयार करके टर्नअराउंड समय में सुधार करना है। इससे अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों सहित ऋण प्रवर्तकों और पूंजी के बड़े पूल को एक साथ लाना आसान हो जाता है। नौकरशाही की प्रशासनिक रूप से बोझिल प्रक्रिया को देखते हुए कि एमएसएमई ऋण ऐतिहासिक रूप से बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से रहा है, इनमें से कई नवाचार व्यापक स्वीकृति प्राप्त करने की गुंजाइश में नाटकीय रूप से बदलाव ला सकते हैं।

निष्कर्ष

अंततः, यह अभी भी उभरते दृष्टिकोण और व्यावसायिक मॉडल के साथ कुछ जोखिम भरी गुंजाइश है। स्टार्टअप्स हेतु अक्सर बताए गए ग्रोथ मेट्रिक्स ऋण देने के क्षेत्र में लागू नहीं होते हैं- जहाँ नुकसान अक्सर बैकएंडेड होते हैं, और ऋण की अवधि में बाद में महसूस किए जाते हैं। एक बैड लोन 8-10 लोन से प्राप्त मुनाफा गँवा सकता है, जिसकी वजह से एनपीए की 5-7% दरें भी लंबी अवधि तक सतत नहीं रह पाती हैं।

महामारी और इससे संबंधित लॉकडाउन जैसी बाजार जोखिम की घटनाओं का पूरे क्षेत्र में फिनटेक के नेतृत्व वाले मॉडल-सहित कुछ प्लेयरों के ऊपर गहरा असर पड़ा है, जिसमें ऋण देने के दृष्टिकोण में भारी नुकसान और आधारभूत निर्भरता शामिल थी। परिणामस्वरूप, ऋण देने के पूरे अनुभवजन्य आधार को धीरे-धीरे संशोधित किया जा रहा है। एमएसएमई की वित्तीय समस्याएं केवल उधार में नहीं हैं; वे अक्सर प्राप्तियों में भी समाप्त होती हैं। बड़े आपूर्तिकर्ताओं और उपभोक्ताओं के साथ आपूर्ति श्रृंखला में बड़ी शक्ति विषमता के कारण, एमएसएमई को भुगतान में अत्यधिक देरी का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें उच्च इनपुट लागत, बड़े कार्यशील पूंजी चक्र और इन अंतरालों को पूरा करने के लिए ब्याज लागत के चक्र में घसीटती है। एक हालिया रिपोर्ट का अनुमान है कि प्रति वर्ष 10,700 अरब रुपये, या भारतीय व्यवसायों के सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) का लगभग 5.9%, "खरीदारों से एमएसएमई को विलंबित भुगतान के रूप में लॉक हो जाता है" (ग्लोबल एलायंस फॉर मास एंटरप्रेन्योरशिप (गेम) और डन एंड ब्रैडस्ट्रीट, 2022)। सरकार समर्थित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के साथ-साथ राजकोष इस लॉक नकदी प्रवाह में महत्वपूर्ण उत्तरदायी हैं।

अच्छी खबर यह है कि एमएसएमई ऋण को कॉर्पोरेट ऋण या व्यक्तिगत ऋण के सबसेट के रूप में मानने के बजाय, ऋण देने की गुंजाइश अंततः एमएसएमई की जरूरतों के लिए खुद को ढाल रही है। एमएसएमई के ऋण के लिए अनुकूलित वित्तीय उत्पादों और प्लेटफार्मों की संख्या बढ़ रही है, इसमें नवाचार को आगे बढ़ाने में पीएसएल संस्थान कम हो गए हैं। वेंचर कैपिटल प्लेटफॉर्म बनाने और एमएसएमई को संभावित ग्राहकों के रूप में विकसित करने की कोशिश में दांव लगा रहा है। समय के साथ, मजबूत समाधान फ्रंट रनर के रूप में उभरेंगे। बुरी खबर यह है कि इस तरह के प्रयोग से अच्छी-खासी प्रीडेटरी लेंडिंग भी हो सकती है। 'अभी खरीदें, बाद में भुगतान करें' उत्पादों में धमाका और व्यक्तिगत ऋण देने की गुंजाइश से उभरने वाली डरावनी कहानियों को एमएसएमई में अच्छे तरीके से टाला जाता है, जहां लाखों नौकरियां और आजीविकायें लाइन पर हैं। नियामक प्रणाली इसे कैसे संभालेगी यह एक खुला प्रश्न है। हालांकि, अगर वित्तीय नवाचार में इन प्रयोगों में से कुछ कारगर होते हैं, तो आने वाले वर्षों में भारत के एमएसएमई क्षेत्र में लाखों नए रोजगार पैदा करने की क्षमता होगी।

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टिप्पणियाँ:

  1. 1990 के दशक के दौरान, भारत के भुगतान संतुलन संकट के मद्देनजर और नरसिम्हन समिति की रिपोर्ट के सुझावों के आधार पर बैंकिंग सुधारों की एक बृहत श्रृंखला लागू की गई थी। 2000 के दशक की शुरुआत में अवसंरचना ऋण में भारी इजाफा हुआ, क्योंकि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने देश भर में प्रमुख परियोजनाओं (बिजली, इस्पात, खनन आदि) को सीधे ऋण देना शुरू कर दिया था (मोहन 2004)।
  2. सूक्ष्म उद्यम वे हैं जिनका निवेश 1 करोड़ रुपये और कारोबार रु 5 करोड़ रुपये; छोटे उद्यमों का निवेश 10 करोड़ रुपये और कारोबार 50 करोड़ रुपये; और मध्यम उद्यमों का निवेश 50 करोड़ रुपये से कम और कारोबार 2.5 अरब करोड़ रुपये का होता है।
  3. बड़े भारतीय व्यापारिक समूहों को एनपीए ऋण का भारी प्रवाह क्रेडिट सुइस की हाउस ऑफ डेट इक्विटी अनुसंधान श्रृंखला (गुप्ता एवं अन्य 2015) में दर्ज है।

लेखक परिचय: रोहित चंद्रा आईआईटी-दिल्ली स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में सहायक प्रोफेसर और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में विजिटिंग फेलो हैं। निशांत मुथुसामी वर्तमान में स्वकर्मा फाइनेंस में सीएफओ हैं, जो एक एनबीएफसी है|

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