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I4I के 2020 के हाइलाइट: प्रधान संपादक की टिप्पणी

  • Blog Post Date 14 जनवरी, 2021
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Ashok Kotwal

University of British Columbia

अब जब हम वर्ष 2021 में प्रवेश कर रहे हैं, प्रधान संपादक अशोक कोटवाल पीछे मुड़ कर देखते हैं कि पिछला वर्ष कितना अभूतपूर्व और महत्त्वपूर्ण रहा है। साथ ही उन्होंने आइडियास फॉर इंडिया के 2020 के मुख्य हाइलाइट भी प्रस्तुत कर रहे हैं।

 

प्रिय पाठकगण,

दुनिया ने पहले शायद ही कभी ऐसे महत्त्वपूर्ण वर्ष का अनुभव किया। भारत के लिए यह विशेष रूप से दर्दनाक रहा है। महामारी फैलने से पहले ही देश धीमी गति का विकास अनुभव कर रहा था जिसने नीति निर्माताओं को हैरान कर रखा था। औपचारिक अर्थव्यवस्था पर्याप्त संख्‍या में नौकरियां पैदा नहीं कर रही थीं जिसमें अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के अतिरिक्त श्रमिकों को समाहित किया जा सके, जिससे पूरे देश में विस्फोटक स्थिति पैदा हो गई। महामारी ने हम पर तब प्रहार किया जब हमें लग रहा था कि इसे संभालने के लिए हमारे पास थोड़ा-बहुत नीतिगत समय उपलब्‍ध है। सरकार ने चार घंटे के नोटिस के साथ एक कठोर, देशव्यापी लॉकडाउन लागू कर दिया, जिससे प्रवासी श्रमिकों का एक लंबा पैदल मार्च शुरू हो गया, और इसके कारण न केवल उनको बल्कि उनके परिवारों, जिनकी वे घर पर मदद कर रहे थे, दोनों को ही भारी हानि हुई। ऐसे दिहाड़ी मजदूर जिनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा जाल नहीं था वे काम के बिना शहरों में नहीं रह सकते थे और परिवहन साधन बंद होने के कारण उनके पास अपने दूर-दराज के गांवों में पैदल जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। इस कड़े लॉकडाउन के कारण लाखों लोगों की आजीविका चली गई। अधिकांश विकसित दुनिया के विपरीत केवल कुछ ही संसाधन ऐसे गरीबों को हस्तांतरित किए गए थे जो और गरीब हो चुके थे। इस बात पर कोई सहमति नहीं थी कि सरकार को क्या नीतिगत उपाय करने चाहिए। क्‍या वित्त मंत्री को घाटे की चिंता नहीं करते हुए गरीबों और छोटे व्यवसायों को नकद हस्तांतरण उपलब्‍ध कराना चाहिए था ताकि वे लॉकडाउन में भी बचे रह सकें? अपर्याप्त वित्तीय सहायता का अर्थ यह होगा कि गरीबों को असाध्‍य पीड़ा तो झेलनी ही पड़ेगी, बल्कि साथ ही साथ अर्थव्यवस्था में मांग अचानक गिर जाएगी और भारी मंदी आ जाएगी। लेकिन सरकार ने सावधानी से कदम रखने की कोशिश की। 2020 की पहली तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) 24% तक घट गया।

‘आइडियाज फॉर इंडिया’ (I4I) का निर्माण इस मिशन के साथ किया गया था कि आर्थिक वृद्धि और विकास से संबंधित मुद्दों पर सार्वजनिक बहस की गुणवत्ता बढ़ाई जा सके। पिछले साल, हमारे संकल्पित मिशन का महत्व पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक था। समस्याएं अभूतपूर्व थीं: नोटबंदी, बैंकिंग संकट और जीएसटी लागू होने के परिणाव्स्वरूप धीमी वृद्धि; एक तेजी से फैलने वाले नए वाइरस का आक्रमण; कड़ा लॉकडाउन और इसके कारण आने वाली आर्थिक गिरावट। इन समस्याओं से संबंधित प्रत्येक नीतिगत मुद्दे पर एक व्यापक चर्चा शुरू करने की सख्त आवश्यकता थी। I4I ने विशेषज्ञों यानि अकादमिक शोधकर्ताओं, नीति क्रियान्‍वयन से जुड़े पेशेवरों और साथ ही जमीनी स्तर की वास्तविकता से प्रत्‍यक्ष अनुभव करने वाले लोगों के विभिन्‍न प्रकार के विचारों के लिए एक मंच प्रदान किया। कभी-कभी इसे एक संगोष्ठी का रूप दिया गया ताकि पाठकों को नीतिगत सिफारिशों और उनके पीछे के तर्कों के बारे में अलग-अलग तरह के विचारों से अवगत कराया जा सके। अपनी स्‍थापना के आठ वर्षों में ही I4I भारत पर नीति-प्रासंगिक, आर्थिक अनुसंधान का सुलभ संग्रह स्रोत बन गया है: ऐसा पिछले कुछ महीनों के अनुभव से भी प्रतीत हुआ है जबसे महामारी के प्रभाव के विभिन्न पहलुओं पर साक्ष्य उभरने शुरू हुए थे।

अब मैं उपर्युक्‍त प्रत्येक प्रमुख विषय पर I4I पर पोस्ट किए गए विश्लेषण के उदाहरणों को उल्लिखित करता हूं: कोविड-पूर्व अर्थव्यवस्था, महामारी से निपटना, अर्थव्यवस्था पर कोविड का प्रभाव, कमजोर आबादी और छोटे व्यवसायों पर प्रभाव, केंद्र-राज्य के वित्त, संकट के समय सरकार की प्रतिक्रिया, और सामाजिक एवं पर्यावरणीय पहलू।

वर्तमान में सभी की नज़र बड़े पैमाने पर हो रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन पर है। सरकार ने एकदम कम चर्चा के साथ तीन संसदीय अधिनियमों को जल्‍दबाजी में पारित कर दिया, जिन्‍हें माना जा रहा था कि ये किसानों के व्यापारिक अवसरों का विस्तार करके उनको लाभ पहुंचाने के उद्देश्‍य से बनाये गये हैं। यह हैरान करने वाली बात है कि इसने किसानों को नाराज कर उन्हें विरोध करने के लिए प्रेरित कर दिया है। क्या इसे लागू करने का यही एक तरीका था? अथवा, क्या सरकार के पास कोई छिपा हुआ एजेंडा है जिसका किसानों को पता चल गया है? हमने इन सवालों का पता लगाने के लिए कृषि कानूनों पर एक मौलिक संगोष्ठी आयोजित की। पूरे देश को प्रभावित करने वाली इन महत्वपूर्ण घटनाओं पर सार्वजनिक बहस में शामिल होने के अलावा, हमने ज्यां द्रेज़ द्वारा परिकल्पित ‘ड्यूएट’ (विकेंद्रीकृत शहरी रोजगार और प्रशिक्षण) नामक एक नए विचार पर चर्चा शुरू की थी। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) ने ग्रामीण आबादी के लिए अच्छा काम किया है। क्या शहरी क्षेत्रों में रोज़गार पैदा करने के लिए कुछ इसी तरह की कोशिश की जा सकती है? क्या यह एक व्यावहारिक विचार है? यह भ्रष्टाचार से कैसे बचेगा? क्या यह योजना स्थानीय सरकारों को सौंपे गए कार्यों में से कुछ कार्यों को उनसे लेकर उनके साथ प्रतिस्पर्धा करेगा? हमने ड्यूएट पर एक विचार-गोष्ठी आयोजित की जिसमें इन सभी दृष्टिकोणों से मूल प्रस्ताव की जांच की गई। हमारे अधिकांश पोस्ट कठोर अनुभवजन्य शोधों के निष्कर्षों पर आधारित हैं। शोध में कुछ पद्धतिगत मुद्दों पर टिप्पणी करने वाले हमारे कुछ पोस्टों ने शिक्षाविदों के साथ-साथ हमारे अन्‍य पाठकों का ध्‍यान भी आकर्षित किया है।

पिछले वर्ष हमने जिन आर्थिक एवं सामाजिक कठिनाइयों का सामना किया, और उनके प्रति हमारी जो प्रतिकृया रही वे I4I की महत्ता के बारे में यह पुष्टि देते हैं कि यह नीति-विश्लेषणों तथा टिप्पणियों के लिए एक विश्वसनीय एवं वैचारिक रूप से तटस्थ मंच है। इसके पाठकों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है और हम इसका अर्थ यह समझते हैं कि आप हमारे प्रयासों की सराहना कर रहे हैं। शायद इस वृद्धि का कारण रहा है भारतीय अर्थव्यवस्था में एक के बाद एक लगातार अप्रत्‍याशित समस्याओं आना। हमारे लिए आपका समर्थन अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है। हम अपने हिंदी अनुभाग का भी विस्तार कर रहे हैं और इसका पाठक वर्ग भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है जो हमारे लिए उत्साहजनक है। 2020 में पाठकों ने कुल 10,27,326 बार I4I की विषयवस्तुओं को पढ़ा, यह संख्या 2019 के आंकड़ों से 48% अधिक है (इनमें से 47,043 हिंदी विषयवस्तुओं के लिए हैं, जो 2019 के हिन्दी विषयवस्तुओं के आंकड़ों से 252% अधिक है)।

जैसा कि आप देख रहे हैं हम 2020 में काफी क्रियाशील रहे हैं, और महामारी द्वारा उत्पन्न अप्रत्याशित समस्याओं के बावजूद अक्‍सर एक सप्ताह में 4 से 6 पोस्‍ट प्रकाशित कर रहे हैं। ऐसे भारी कार्यभार को संभालने का श्रेय हमारी अद्भुत संपादकीय टीम को जाता है। हमारे पास प्रबंध संपादक के रूप में नलिनी गुलाटी हैं जो एक ऑक्सफोर्ड-प्रशिक्षित अर्थशास्त्री हैं और लैंगिक (स्त्री-पुरुष समानता संबंधी) मुद्दों में गहरी दिलचस्पी रखती हैं तथा उनके पास उत्कृष्ट शैक्षिक निर्णय-क्षमता और एक कल्पनाशील मस्तिष्‍क है जो लगातार नई-नई विशेषताओं के लिए विचार लेकर आती हैं। नलिनी द्वारा संचालन किए जाने के कारण मेरा काम आसान हो जाता है। शिवानी चौधरी, जिन्होंने पिछले वर्ष डैलस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में सार्वजनिक नीति में डॉक्टरेट की पढ़ाई प्रारम्भ की, वे पिछले 4 वर्षों से हमारी कॉपी एडिटर (हाल ही में उप संपादक के रूप में पदोन्नत) के रूप में अद्भुत कार्य किया था। हालांकि हमें उनकी कमी बेहद खलेगी परंतु हमारी ओर से उन्‍हें डॉक्टरेट की पढ़ाई के लिए अनेक शुभकामनाएँ। उन्‍होंने केवल इतना अच्‍छा गुणवत्‍तापूर्ण कार्य ही नहीं किया बल्कि यह कार्य उन्‍होंने प्रसन्‍न मन से किया। हम भाग्यशाली रहे हैं कि अक्टूबर 2020 से शिवानी के स्थान पर मिशेल मैरी बर्नैडाइन हमारे साथ जुड़ गईं हैं। मिशेल (मैत्रीश घटक की छात्रा) ने हाल ही में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एम.एससी. स्‍नातक प्राप्त किया है और अब वे मुंबई में रह रही हैं, वे एक सुप्रशिक्षित विकास अर्थशास्त्री हैं और उन्होंने नलिनी के मार्गदर्शन में I4I में शानदार भूमिका निभाई है। हिंदी अनुभाग में हमने जो प्रगति की है उसका लगभग सारा श्रेय ऋषभ महेंद्र को जाता है। उन्होंने इस पहल को आगे बढ़ाने और इसे सफल बनाने में केंद्रीय भूमिका निभाई है। अब वे कोलम्बिया स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ मिज़ूरी में पर्यावरण अर्थशास्त्र में अपने डॉक्टरेट अध्ययन को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में है। पूजा कपाही हमारी बहुत ही रचनात्मक संचार अधिकारी है, जो हमारे इन्फोग्राफिक्स, वीडियो और पॉडकास्ट का निर्माण करती है, और हमारे ई-इवेंट को आयोजित करती है। विकास डिंबले हमारे लिए एक और महत्‍वपूर्ण परिसंपत्ति हैं। वह स्रोत सामग्री के लिए नए, प्रकाशित शोध की जांच करते है, साथ ही साथ अवांछित प्रस्‍तुतियों की समीक्षा करने में भी सहयोग करते हैं। विकास जो हमारे लिए कर रहे हैं वह वास्तव में उल्लेखनीय है क्योंकि 2018 में जब से उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय विकास केंद्र (आईजीसी) को औपचारिक रूप से छोड़ा उस के बाद से वे लगातार हमारा निस्‍वार्थ सहयोग कर रहे है। अब उन्होने अशोका यूनिवर्सिटी में अरविंद सुब्रमण्यन द्वारा स्थापित आर्थिक नीति हेतु नए केंद्र के उप निदेशक के रूप में एक नई एवं रोमांचकारी भूमिका की शुरुआत की है। इस अवसर पर हम फ्रीडा डि’सूज़ा को भी नहीं भूल सकते हैं जो इस यात्रा को जारी रखने के लिए आवश्‍यक प्रत्‍येक गतिविधि के लिए संचालन एवं क्रियान्‍वयन का प्रबंधन करती हैं।

मैं इस अवसर पर आईजीसी इंडिया के निदेशक डॉ. प्रोनाब सेन का भी आभार प्रकट करना चाहूंगा जिनकी विवेकी सलाह और विद्वतापूर्ण योगदान ने I4I को और भी मूल्‍यवान बना दिया है। हम आईजीसी और भारत में आईजीसी के भागीदारों एवं निधि प्रदानकर्ताओं द्वारा दिए जा रहे सहयोग के लिए आभारी हैं। हम भाग्यशाली हैं कि हमारा मार्गदर्शन करने के लिए हमारे पास संपादकीय बोर्ड के सदस्यों की एक शानदार टीम है।

इन सबसे ऊपर हम अपने पाठकों को धन्यवाद देते हैं जिनकी वास्तविक रुचि और सक्रिय जुड़ाव के कारण हम गुंजयमान रहे हैं, और हम योगदानकर्ताओं (लेखकों) को I4I को उनके साक्ष्य आधारित नीति लेखन प्रस्तुत करने के लिए एक माध्यम के रूप में चुनने के लिए भी धन्‍यवाद देते है।

हमारी शुभकामनाएं हैं कि आपका 2021 प्रसन्‍नतापूर्वक, मंगलमय और सुरक्षित बीतें! इस वर्ष हम वापस से कुछ नए शोध-आधारित लेख, राय-आधारित दृष्टिकोण, क्षेत्र से प्राप्‍त अनुभव-आधारित नोट्स, विचार-गोष्ठी, वीडियो, पॉडकास्ट, इन्फोग्राफिक्स, ई-इवेंट तथा और भी बहुत कुछ प्रस्तुत करेंगे।

भवदीय,

अशोक कोटवाल
प्रधान संपादक
आइडियाज फॉर इंडिया

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