भारत के वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहले तिमाही के रिपोर्ट आने से यह ज्ञात हो रहा है कि कई कारणों से देश आर्थिक सुस्ती से गुज़र रहा है। इस बढ़ती हुई आर्थिक सुस्ती के ऊपर डॉ प्रणव सेन का कहना है कि देश की सरकार को मांग बढ़ाने की ज़रूरत है, जबकि सरकारी घोषणाओं का झुकाव आपूर्ति बढ़ाने पर ज्यादा है और इन घोषणाओं से लाभ मिलना मुश्किल है।
आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिये सरकार को मांग बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देना होगा जबकि हाल में सरकार ने जो कदम उठाये हैं उनका झुकाव आपूर्ति बढ़ाने की तरफ ज्यादा है। इससे घोषणाओं का पूरा लाभ मिलना मुश्किल लगता है। अर्थव्यवस्था में मांग की कमी है। इसे दूर किया जाना चाहिये। यह कहना है कि ततकालीन योजना आयोग से डेढ दशक तक जुड़े रहे पूर्व प्रधान आर्थिक सलाहकार प्रणव सेन का।
डॉ. सेन ने भाषा के साथ खास बातचीत में कहा कि अर्थव्यवस्था में समस्या मांग की कमी की है। ग्रामीण क्षेत्र में मांग कमजोर बनी हुई है। ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की आय नहीं बढी है। यहां तक कि शहरी क्षेत्र में भी आर्थिक रूप से कमजोर तबके की आय नहीं बढ़ी है। इसका असर मांग पर पड़ रहा है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि ‘पीएम किसान’ योजना एक अच्छा कदम है, लेकिन इस पर ठीक से अमल नहीं हो पाया है। इस योजना के तहत किसानों को साल में 6,000 रूपये देने का प्रावधान है। पिछले साल के बजट में इस योजना के तहत रखे गये 25,000 करोड़ रुपये खर्च नहीं हो पाये हैं।
सरकार यदि सार्वजनिक निवेश बढाती है तो यह ऐसा होना चाहिये जिसमें ग्रामीण जनता के हाथ में पैसा जाये। ग्रामीण सड़कों, ग्रामीण क्षेत्र की आवासीय परियोजनाओं, लघु सिंचाई योजनाओं पर काम तेज किया जाना चाहिये। इनमें स्थानीय ठेकेदारों और स्थानीय मजदूरों को काम दिया जाना चाहिये। इससे अर्थव्यवस्था में गतिविधियां बढ़ेगी, आय बढ़ेगी और मांग पर इसका अनुकूल असर होगा।
उल्लेखनीय है कि देश दुनिया में आर्थिक मंदी की चर्चा जोरों पर है। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्व से अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रभावित हो रहा है। क्या भारत पर भी इसका असर पड़ रहा है? इस सवाल पर प्रणव सेन ने कहा कि थोड़ा बहुत असर जरूर पड़ेगा लेकिन पहले के योजना आयोग में काम करने का उनका अनुभव बताता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में अपने बूते पर ही सात प्रतिशत के आसपास आर्थिक वृद्वि हासिल करने की क्षमता है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में यदि मांग का फैलाव बेहतर रहता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत की वृद्वि आसानी से हासिल कर सकती है। प्रणव सेन 1994 से लेकर 2012 तक ततकालीन योजना आयोग अब ‘नीति आयोग’ से जुड़े रहे हैं। बीच में 2007 से 2010 तक (तीन साल) वह मुख्य सांख्यिकीविद भी रहे। इन्होने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान नौंवीं, दसवीं पंचवर्षीय योजनाओं में अहम‘ भूमिका निभाई थी।
इन्होने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी का असर अभी भी बरकरार है। कृषि कारोबार आमतौर पर पूरा नकद में होता रहा है। अब नकदी का लेनदेन करना आसान नहीं है। कृषि उत्पादों की खरीद फरोख्त ज्यादा नहीं हो रही है इसलिये भाव नीचे हैं। सरकारी खरीद भी गेहूं, चावल और कुछेक अन्य जिंस (कृषि उत्पाद वस्तु) तक ही सीमित है इसलिये किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। जीएसटी लागू होने का छोटे और मध्य वर्गीय उद्योगों पर ज्यादा असर पड़ा। उनको जीएसटी रिफंड मिलने में देर हुई है। रिफंड नहीं मिलने से खासतौर से निर्यातकों को ज्यादा परेशानी हुई है। बैंक उनकी कार्यशील पूंजी नहीं बढ़ा रहे हैं।
सरकार के डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के बारे में पूछे जाने पर इन्होने कहा कि इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन समस्या दूरदराज ग्रामीण इलाकों में इसके लिये जरूरी सुविधाओं की कमी की है। गांवों में इंटरनेट सुविधा नहीं है। बड़ी आबादी डिजिटल सुविधाओं को लेकर शिक्षित नहीं है। शिक्षा का अभाव है। ’’अभी भी आबादी का बड़ा तबका है जो नोट का रंग देखकर उसे पहचानता है। वह मोबाइलफोन का इस्तेमाल कैसे करेगा।’’
वर्तमान वित्तवर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्वि कमजोर पड़कर पांच प्रतिशत रही है। एक साल पहले इसी तिमाही में यह 8 प्रतिशत की उुंचाई पर थी। इस बारे में प्रणव सेन का कहना है कि मांग की कमी के चलते दूसरी तिमाही में भी यह इसी स्तर के आसपास रहेगी और पूरे साल में भी साढ़े पांच प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी। हमें आपूर्ति बढ़ाने की जरूरत नहीं है बल्कि, यह समय, मांग बढ़ाने पर ध्यान देने का है। मांग बढ़ेगी तो आपूर्ति अपने आप बढ़ेगी और निवेश भी बढ़ेगा। मांग बढ़ाने के लिये ग्रामीण क्षेत्र पर ध्यान देना होगा। ग्रामीण क्षेत्र में छोटी छोटी परियोजनाओं पर काम तेजी से आगे बढ़ाना होगा। स्थानीय लोगों की आय बढ़ाने वाली परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
सरकार के बड़े बैंक बनाने की घोषणा पर सेन ने कहा कि इसका थोड़ा बहुत फायदा तो होगा। जो बैंक अब तक रिजर्व बैंक की त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (प्रौम्ट करेक्टिव एक्शन - पीसीए) के तहत लाये गये थे और उसकी वजह से नया कर्ज नहीं दे पा रहे थे वह अब बाहर निकल आयेंगे और कर्ज का लेनदेन कर पायेंगे। लेकिन समस्या यही है कि कर्ज लेने वाला कोई तो होना चाहिये। एक-दो साल तक इसका कोई फायदा नहीं लगता है। जब अर्थव्यवस्था में मांग की वृद्धि होगी तभी इसका फायदा मिलेगा। वाहन क्षेत्र में उत्पादन क्षमता काफी अधिक है। आपूर्ति की समस्या नहीं है। पिछले साल में इस क्षेत्र में 17-18 प्रतिशत तक मांग बढ़ने के बाद अब कुछ सुस्ती आई है, इसलिये समस्या खड़ी हुई है। यह समस्या कुछ समय और बनी रह सकती है।
लेखक परिचय: डॉ प्रणव सेन इंटरनैशनल ग्रोथ सेंटर (आई.जी.सी.) के कंट्री डाइरेक्टर हैं।
यह साक्षात्कार प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया-भाषा द्वारा लिया गया था ।
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