केंद्र सरकार द्वारा 2014 में शुरू की गई दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना ग्रामीण, साधनहीन युवाओं को कौशल आधारित प्रशिक्षण प्रदान करने और उन्हें वेतनभोगी नौकरियां दिलवाने का प्रयास करती है। बिहार और झारखंड में किए गए एक प्रयोग के आधार पर, इस लेख में बताया गया है कि प्रशिक्षुओं को कार्यक्रम और भावी नौकरियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने से उनकी उम्मीदों को वास्तविकताओं के अनुरूप रखने में मदद मिलती है और साथ ही इससे उन्हें नौकरियों में बनाए रखने में भी वृद्धि होती है।
भारत में अधिकांश युवा अनौपचारिक नौकरियों या छोटे असंगठित उद्यमों में कार्यरत हैं (मेहरोत्रा 2020)। औपचारिक वेतनभोगी रोजगार को बढ़ावा देने के लिए, वर्ष 2014 में, भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक राष्ट्रीय कौशल-आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम अर्थात दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (डीडीयू-जीकेवाई) आरंभ की। इस कार्यक्रम के अंतर्गत 15 से 35 वर्ष की आयु के वंचित ग्रामीण युवाओं को अल्पकालिक आवासीय प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। अन्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों के विपरीत, डीडीयू-जीकेवाई यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक प्रशिक्षु को नौकरी उपलब्ध कराई जाए। इसके बावजूद, आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2014 के बाद से लगभग एक मिलियन युवाओं को प्रशिक्षित किया गया था, लेकिन उनमें से केवल 55% को ही नौकरियां दी गईं।
बिहार और झारखंड में प्रशिक्षण प्रदाताओं और इस योजना के कार्यान्वयन के प्रभारी राज्य अधिकारियों के साथ प्रारंभिक चर्चा में उन्होंने प्रशिक्षण को बीच में छोड़ दिए जाने (प्रशासनिक रिकॉर्ड के अनुसार 12%), कम प्लेसमेंट दर (लगभग 50%), और प्लेसमेंट नौकरियों को बनाए रखने की कम दर (तीन महीने के बाद लगभग 60%) के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। एक संभावित कारण यह बताया गया कि कई प्रशिक्षुओं को प्लेसमेंट नौकरियों के बारे में विस्तार से जानकारी नहीं थी। प्रशिक्षुओं की उम्मीदों और प्रशिक्षण के वास्तविक आर्थिक प्रतिफल के बीच कुछ बेमेल भी प्रतीत होता है, जिसे बैनर्जी और चिपलूनकर के हालिया शोध (2020) द्वारा भी उजागर किया गया था। यही हमारे शोध का आधार बनता है।
प्रयोग
आईजीसी, आर्थिक और सामाजिक अनुसंधान परिषद (ईएसआरसी) तथा वार्विक विश्वविद्यालय द्वारा वित्तपोषित एक परियोजना में, हमने, भारत के दो सबसे गरीब राज्यों बिहार और झारखंड में यह जांचने के लिए एक यादृच्छिक प्रयोग किया कि क्या प्रशिक्षण के बाद की नौकरियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने से डीडीयूजीकेवाई के प्रशिक्षुओं के लिए प्लेसमेंट परिणामों में सुधार हो सकता है (चक्रवर्ती एवं अन्य 2020)। इस प्रयोग में 86 प्रशिक्षण बैच (लगभग 2,500 प्रशिक्षु)1 शामिल किए गए, जिनमें से यादच्छिक रूप से 42 को उपचार समूह में और बाकी 44 को नियंत्रण समूह2 में बांटा गया था।
प्रयोग के अंतर्गत उपचार समूह के लिए दो क्लासरूम सूचना सत्र रखे गए जिसमें उनको डीडीयू-जीकेवाई कार्यक्रम (प्रशिक्षण के दिनों की संख्या, पढ़ाए जाने वाले मॉड्यूल, प्रशिक्षण के दौरान और उसके बाद दी जाने वाली सुविधाएं), और भावी नौकरी के अवसर (नौकरी का स्थान, मुआवजा पैकेज, कार्य के घंटे) के बारे में जानकारी प्रदान की गई । इन सत्रों का समापन ऑन-द-जॉब कैरियर प्रगति की संभावनाओं के बारे में प्रेरक टिप्पणी के साथ किया गया। पहला सत्र प्रशिक्षण की शुरुआत में और दूसरा सत्र प्लेसमेंट से पहले रखा गया।
इस प्रयोग से हमारी उम्मीद यह है कि प्रशिक्षण जारी रखने वाले प्रशिक्षुओं को प्लेसमेंट नौकरियों के बारे में बेहतर जानकारी होगी और इसलिए उनके अचानक निराश होने की संभावना कम होगी तथा प्रशिक्षण में उनके बने रहने की अधिक संभावना रहेगी। जिन अभ्यर्थियों को इस बात का जल्दी एहसास हो जाता है कि प्लेसमेंट नौकरियां उनकी अपेक्षाओं से मेल नहीं खाती हैं तो वे प्रशिक्षण से बाहर होने का फैसला कर सकते हैं, और उनकी जगह ऐसे अभ्यर्थी आ सकते हैं जिन्हें इस कार्यक्रम की अधिक जरूरत है। इसलिए, यह प्रयोग ऐसे प्रशिक्षुओं पर संसाधनों के लक्ष्यीकरण में सुधार करेगा जो वास्तव में इसका मूल्य समझते हैं।
परिणाम
प्रयोग के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए, हमने दिसंबर 2018 और मई 2020 के बीच 2,488 प्रशिक्षुओं के साथ चार दौरों में सर्वेक्षण किया। औसत आयु 20 वर्ष है, और 52% प्रशिक्षु महिला हैं। झारखंड में 46% प्रशिक्षु अनुसूचित जनजाति, बिहार में 33% अनुसूचित जाति, और लगभग 79% प्रशिक्षु बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) परिवारों से हैं, जो यह बताता है कि डीडीयू-जीकेवाई वंचित युवाओं को लक्षित करने के अपने मिशन को पूरा करता हैं। प्रशिक्षण में शामिल होने से पहले अधिकांश प्रशिक्षुओं के पास कोई नौकरी नहीं थी।
हम पाते हैं कि कुल मिलाकर, प्रयोग ने न तो प्रशिक्षण पूरा होने की संभावना को बदला, और न ही नौकरी दिए जाने की संभावना को (आकृति 1)। हालांकि, उपचार समूह में इस बात की संभावना 17% अधिक थी कि प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण पूरा होने के बाद जो नौकरियां प्रदान की गईं थी उनमें वे कम से कम पांच महीने तक बने रहें। इससे पता चलता है कि कम लागत वाला यह प्रयोग नौकरी परिणामों में काफी सुधार कर सकता है। ये औसत प्रभाव शिक्षा के स्तर और लिंग आधारित एक महत्वपूर्ण विविधता को छिपा देते हैं3।
आकृति 1. प्रशिक्षण और नौकरी परिणामों पर प्रयेाग का प्रभाव
आकृति में आए अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अर्थ
Trained : प्रशिक्षित
Placed if Trained : यदि प्रशिक्षित तो नौकरी प्राप्त
Stay if Placed : यदि नौकरी मिली तो इसमें बने रहे
हम पहले शिक्षा के स्तर के अनुसार विविधता पर विचार करते हैं। प्रयोग कम शिक्षित युवाओं (कक्षा 12 से कम) के बीच प्रशिक्षण पूरा होने की संभावना को 7% बढ़ाता है (आकृति 2ए)। इसके विपरीत, प्रयोग अधिक शिक्षित युवाओं (कक्षा 12 और ऊपर) के बीच प्रशिक्षण पूरा होने की संभावना को 50% कम कर देता है (आकृति 2बी)। इससे पता चलता है कि अधिक शिक्षित युवाओं के पास बेहतर विकल्प हैं, और इसलिए, जब उन्हें प्लेसमेंट नौकरियों के विवरण के बारे में पता चलता है, तो वे निराश हो जाते हैं और प्रशिक्षण से बाहर हो जाते हैं। इस प्रकार, प्रयोग कम शिक्षित युवाओं के प्रति डीडीयू-जीकेवाई के लक्ष्यीकरण में सुधार करता है।
आकृति 2. शिक्षा के स्तर के अनुसार प्रयोग का प्रभाव: कक्षा 12 से कम (बाएं; 2ए) और कक्षा 12 एवं उससे ऊपर (दाएं; 2बी);
यदि लिंग के अनुसार विषमता को देखें तो हम पाते हैं कि उपचार का महिलाओं पर कोई प्रभाव नहीं है (आकृति 3ए) । इसके विपरीत, पुरुषों पर उपचार का प्रभाव बड़ा है (आकृति 3बी) – प्रयोग से पुरुषों में प्लेसमेंट की संभावना 33% बढ़ जाती है और प्रशिक्षण के बाद कम से कम पांच महीने के लिए नौकरी में बने रहने की संभावना 46% बढ़ जाती है। ये परिणाम बताते हैं कि महिला प्रशिक्षुओं की तुलना में पुरुष प्रशिक्षु के लिए अपेक्षाओं और प्लेसमेंट नौकरियों में बेमेल अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है – महिलाओं के पास वैकल्पिक रोजगार के अवसर कम हैं, और वे बहुत कम संख्या में प्रशिक्षण को बीच में छोड़ती हैं, उनका प्लेसमेंट अधिक है और शुरुआत में वे नौकरियों में ज्यादा बने रहती हैं।
आकृति 3. लिंग के अनुसार प्रयोग का प्रभाव: महिला (बाएं; 3ए) और पुरुष (दाएं; 3बी)
निष्कर्ष
हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि प्रशिक्षण के बाद नौकरी के अवसरों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने से प्रशिक्षुओं की उम्मीदों और वास्तविक कमाई के बीच मेल बैठाने में मदद मिल सकती है, और नौकरी में बनाए रखने में अधिक प्रभावी हो सकता है। यह देखते हुए कि इस तरह के प्रयोग पर कम लागत आती है, ये निष्कर्ष उल्लेखनीय हैं। इस प्रयोग को बड़े पैमाने पर लागू करने से संभव है कि प्रशिक्षण प्रदाता डीडीयू-जीकेवाई के लक्ष्यों को बेहतर ढ़ंग से पूरा करने में सक्षम होंगे।
लेखक शोध में सहयोग के लिए बीआरएलपीएस (बिहार ग्रामीण आजीविका संवर्धन सोसाइटी), जेएसएलपीएस (झारखंड राज्य आजीविका संवर्धन सोसाइटी) और ग्रामीण विकास मंत्रालय को धन्यवाद देना चाहते हैं। वे परियोजना कार्यान्वयन के दौरान श्री संजय कुमार (बीआरएलपीएस) और श्री अभिनव बख्शी (जेएसएलपीएस) को उनके व्यापक सहयोग के लिए धन्यवाद देना चाहते हैं।
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टिप्पणियाँ:
- एक बैच उन छात्रों का एक समूह है जो एक साथ दाखिला लेते हैं, पढ़ाई करते हैं और स्नातक होते हैं।
- यादृच्छिीकरण यह सुनिश्चित करता है कि नियंत्रण समूह उपचार समूह के तुल्य है, और दोनों के बीच एकमात्र अंतर यह है कि उपचार समूह को सूचना का लाभ प्राप्त हुआ। यादृच्छिीकरण डिज़ाइन ने प्रत्येक राज्य और प्रशिक्षण के क्षेत्र में उपचार और नियंत्रण की बराबर संख्या सुनिश्चित की है ।
- हम जाति के आधार पर विविधता की जांच करते हैं और उसमें कोई बड़ा सांख्यिकीय अंतर नहीं पाते हैं।
लेखक परिचय: विजी अरुलमपालम यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं। भास्कर चक्रवर्ती यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक के इंस्टीट्यूट फॉर एम्प्लॉयमेंट रिसर्च (IER) में एक पीएच.डी. छात्र तथा चांसलर इंटरनेशनल स्कॉलर हैं। क्लेमों इम्बर्ट यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। रोलैंड राथेलॉ यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं।
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