सामाजिक पहचान

शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन: महिलाओं की राजनीतिक वरीयताओं को आकार देने में मीडिया की भूमिका

  • Blog Post Date 23 दिसंबर, 2021
  • दृष्टिकोण
  • Print Page

राजनीतिक वरीयताओं को तय करने में सूचना स्रोतों की क्या भूमिका होती है, और किन परिस्थितियों में महिलाएं अपनी राजनीतिक राय बनाने के लिए पुरुषों से अलग संज्ञानात्मक सोच रखती हैं? इसका पता लगाने हेतु, उत्तर भारत के दो शहरी समूहों के किये गए सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए, यह लेख दर्शाता है कि रोजगार या अन्य गतिविधियों के माध्यम से घर के बाहर के महिलाओं के नेटवर्क का परिवार में पक्षपातपूर्ण असहमति की संभावना पर एक प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।

यह लेख 'शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन' पर आधारित पांच-भाग की श्रृंखला में अंतिम है।

आधुनिक लोकतंत्रों में, अपनी राजनीतिक राय बनाने और निर्वाचित अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित कराने के लिए राजनीति के बारे में विश्वसनीय जानकारी रखना आवश्यक है (ड्रुकमैन 2004)। इस प्रकार, पक्षपातपूर्ण वरीयताओं को समझने में मीडिया और जनता के व्यवहार के बीच का संबंध स्वाभाविक रुचि का है। भारत में लोगों की राजनीतिक वरीयताएँ बनाने में सोशल मीडिया और सूचना स्रोतों की क्या भूमिका है? और किन परिस्थितियों में महिलाएं अपनी राजनीतिक राय बनाने के लिए पुरुषों से अलग संज्ञानात्मक सोच रखती हैं?

एक नए अध्ययन (बद्रीनाथन एवं अन्य 2021) में, हम परिवार में महिलाओं की पुरुषों से स्वतंत्र राजनीतिक वरीयताओं को व्यक्त करने के अवसर पैदा करने में मीडिया और गैर मीडिया व्यक्तिगत नेटवर्क की भूमिका को समझना चाहते हैं। ऐसा करने के लिए, हम एक ही परिवार में महिलाओं और पुरुषों के बीच राजनीतिक-पार्टी की वरीयताओं में असहमति से संबंधित राजनीतिक स्वतंत्रता के एक प्रमुख संकेतक पर ध्यान केंद्रित करते हैं। हम इस व्यवहार को 'अंतर-पारिवारिक पक्षपातपूर्ण असहमति' कहते हैं।

राजनीतिक वरीयताओं में सूचना स्रोतों की भूमिका को समझने में भारत एक महत्वपूर्ण परीक्षण मामला है। भारत में इंटरनेट तक पहुँच और मीडिया के नए रूपों में तेजी से और अभूतपूर्व प्रगति के साथ ही मीडिया परिदृश्य में पिछले कुछ दशकों में बड़े पैमाने पर बदलाव देखे गए हैं। हालांकि, पैमाना, पहुंच और प्रभाव में यह वृद्धि भारत में मीडिया के उपभोग के सटीक तरीकों पर ध्यान देने संबंधी समान वृद्धि से मेल नहीं खाती है और परिवारों के भीतर इससे जुडी असमानताएं और परिणामी राजनीतिक प्रभाव नजर आते हैं।

सूचना और राजनीतिक वरीयताओं का सिद्धांत

महिलाओं की राजनीतिक स्वतंत्रता पर विभिन्न सूचना स्रोत किस प्रकार से असर डालते हैं यह स्पष्ट करने के लिए हम एक सरल सैद्धांतिक फ्रेमवर्क तैयार करते हैं। हम सूचना पहुंच के दो रूपों के बीच अंतर करते हैं- टेलीविजन जैसे मास मीडिया का 'वन-वे' या निष्क्रिय स्रोत, जिसमें सूचना प्राप्त करने वाला समाचार स्रोत के साथ चर्चा या बातचीत नहीं कर सकता है; तथा सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट और एप्लिकेशन के 'टू-वे' या सूचना के सक्रिय स्रोत, जिसमें सूचना प्राप्त करने वाला सूचना-प्रदाता के साथ सक्रिय रूप से चर्चा या बहस कर सकता है। यहाँ तक कि ​​लोगों के सोशल मीडिया पर अलग-अलग निजी नेटवर्क हैं (एक ही समाचार कार्यक्रम देखने के विपरीत) और वे निजी तौर पर अपने नेटवर्क से जुड़ सकते हैं, सोशल मीडिया में एक ही परिवार के भीतर अलग-अलग पक्षपातपूर्ण वरीयताएं उत्पन्न करने की क्षमता है। मास मीडिया के स्रोत को व्यक्ति द्वारा अलग-अलग नहीं किया जाता है, क्योंकि इसके अधिकांश उपभोग को परिवार के सदस्यों द्वारा सार्वजनिक रूप से साझा किया जाता है।

हमारा तर्क है कि परिवार के सभी सदस्यों की सोशल मीडिया तक पहुंच में वृद्धि से पूरी आबादी में, विशेष रूप से एक ही परिवार के महिलाओं और पुरुषों के बीच सूचना तक पहुंच में असमानताओं को कम करने की क्षमता है। तथापि, अगर महिलाओं की सोशल मीडिया तक व्यक्तिगत पहुंच कम है, तो वे निजी जानकारी के लिए भौतिक (मीडियेतर) नेटवर्क पर निर्भर होंगी। यदि ऐसा है, तो जिन महिलाओं की रोजगार या घर के बाहर अन्य प्रकार की गतिशीलता के माध्यम से घर के बाहर नेटवर्क तक अधिक पहुंच है, उनकी पुरुषों के साथ पक्षपातपूर्ण असहमति प्रदर्शित करने की संभावना अधिक है। इसके अलावा, हम मानते हैं कि इस तरह की असहमति राष्ट्रीय राजनीति की तुलना में राज्य की राजनीति में प्रदर्शित होने की अधिक संभावना है, क्योंकि महिलाओं के लिए भौतिक नेटवर्क राज्य की राजनीति के संदर्भ में सबसे अधिक जानकारीपूर्ण होने की संभावना है।

इन तर्कों की जाँच के लिए, हम उत्तर भारत के दो शहरी समूहों- पटना (बिहार) और धनबाद (झारखंड) में रहनेवाले 1,600 से अधिक परिवारों का एक अनूठा सर्वेक्षण करते हैं। हम प्रत्येक परिवार के भीतर, एक पुरुष प्राथमिक वेतन-भोगी और एक बेतरतीब ढंग से चुनी गई कामकाजी उम्र की महिला का साक्षात्कार करते हैं, और मीडिया तक पहुंच में लैंगिक असमानता और पक्षपातपूर्ण असहमति के संबंध को दर्शाने के लिए हम मीडिया उपभोग पर एक व्यापक मॉड्यूल का इस्तेमाल करते हैं।

सूचना पहुंच में लैंगिक अंतर

सबसे पहले, हम विभिन्न प्रकार के मीडिया में समाचार-सूचना प्राप्त करने वाले महिलाओं और पुरुषों के प्रतिशत में प्रमुख लैंगिक असमानताएँ पाते हैं। पटना और धनबाद दोनों में, लगभग तीन-चौथाई महिला उत्तरदाताओं ने दुनिया के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी समाचार स्रोत से परामर्श करने की बात नहीं कही, इससे पता चलता है कि वे इसके लिए अपने परिवार या निजी जानकारी पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर थे। इससे स्पष्ट होता है कि महिलाओं के संदर्भ में प्रभाव के मीडियेतर स्रोत विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

दूसरा, आम तौर पर टेलीविजन और मास मीडिया, समाचारों के लिए अब तक सबसे अधिक उपभोग वाले मीडिया स्रोत हैं। हालांकि, मास मीडिया के संदर्भ में, ध्यान देने योग्य लैंगिक अंतर है। जबकि, विशेष रूप से कक्षा 10 तक शिक्षा पूरी करने वाले पुरुष प्राथमिक वेतन-भोगी बताते हैं कि उन्होंने मीडिया के विविध स्रोतों का उपयोग किया। कामकाजी उम्र की महिलाएं यदि एक ही समाचार स्रोत के उपयोग के बारे में बताती है तो वे लगभग विशेष रूप से टेलीविजन से जुड़ी होती हैं। इसके अलावा, नियमित रूप से सोशल मीडिया तक पहुंचने के लिए आवश्यक मोबाइल फोन (विशेषकर स्मार्टफोन) का व्यक्तिगत उपयोग जनता में महिलाओं के बीच कम रहता है। उदाहरण के लिए, धनबाद के वयस्कों में, 82 फीसदी पुरुषों की तुलना में केवल 35% महिलाओं के पास मोबाइल फोन (स्मार्टफोन) हैं।

तीसरा, आबादी का केवल एक छोटा सा हिस्सा दो प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म- फेसबुक और व्हाट्सएप का उपयोग समाचार के स्रोत के रूप में करता है। यहां भी, एक महत्वपूर्ण लैंगिक अंतर है- समाचार के स्रोत के रूप में फेसबुक या व्हाट्सएप का उपयोग करनेवाली 10 वीं कक्षा पूरी कर चुकी महिलाओं की हिस्सेदारी समान शैक्षिक योग्यता वाले पुरुषों की तुलना में 7 से 10 प्रतिशत कम है।

पक्षपातपूर्ण असहमति

पक्षपातपूर्ण असहमति को मापने के लिए, हमने उत्तरदाताओं से हमें यह बताने के लिए कहा कि केंद्र में और अपने-अपने राज्यों में "वे किस पार्टी का समर्थन करते हैं"। हमने असहमति के एक रूढ़िवादी उपाय का विकल्प चुना, यह कोडिंग कि क्या किसी व्यक्ति ने भाजपा और जद(यू) को छोड़कर किसी भी प्रमुख विपक्षी दल (भले ही ये विपक्षी दल गठबंधन में हों या नहीं) का समर्थन करने की तुलना में भाजपा (भारतीय जनता पार्टी; केंद्र में सत्तारूढ़ दल) या जद (यू) (जनता दल (यूनाइटेड); बिहार में सत्तारूढ़ दल, भाजपा के साथ गठबंधन में) का समर्थन किया।

तालिका 1. पक्षपातपूर्ण समर्थन और अंतर-पारिवारिक सहमति के स्तर

पटना

धनबाद

राष्ट्रीय

राज्य

राष्ट्रीय

राज्य

महिला भाजपा गठबंधन का समर्थन (%)

89

63

93

91

पुरुष भाजपा गठबंधन का समर्थन (%)

85

65

95

90

पक्षपातपूर्ण समझौता (%)

86

61

92

87

कई निष्कर्ष असाधारण हैं। सबसे पहले, भाजपा गठबंधन के बहुत उच्च स्तर के समर्थन के साथ भी, हमें इस 'समान-लैंगिकता' के मजबूत प्रमाण मिलते हैं कि यादृच्छिक रूप से जोड़े गए दो व्यक्तियों की तुलना में परिवार में पक्षपातपूर्ण वरीयता साझा करने की अधिक संभावना है (अर्थात, यादृच्छिक संयोग से प्रत्याशित दो लोगों की तुलना में एक ही परिवार के दो लोगों के सहमत होने की अधिक संभावना है)। इसके अलावा, हम पाते हैं कि गैर मीडिया व्यक्तिगत नेटवर्क पक्षपातपूर्ण असहमति पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विशेष रूप से, राष्ट्रीय स्तर की राजनीति के विपरीत राज्य-स्तरीय राजनीति में पक्षपातपूर्ण असहमति की संभावना अधिक होती है। यह इस तथ्य के अनुरूप है कि व्यक्तिगत नेटवर्क का स्वरूप अधिक स्थानीय होने की संभावना रहती है, और इस प्रकार से यह राज्य-स्तरीय राजनीति के संदर्भ में अधिक प्रभावपूर्ण है।

दूसरा, पक्षपातपूर्ण (अ)सहमति के कई महत्वपूर्ण सह-संबंध हैं। टेलीविजन और समाचार पत्रों के सन्दर्भ में मास मीडिया एक्सपोजर परिवार के भीतर अधिक सहमति से जुड़ा हुआ है। यह हमारी परिकल्पना के अनुरूप है कि जनसंचार माध्यमों का एक परिवार के भीतर समरूप प्रभाव पड़ता है। रोजगार अधिक पक्षपातपूर्ण असहमति से जुड़ा है, लेकिन यह केवल कृषि रोजगार के सन्दर्भ में सही है। पटना में, एक नियोजित महिला (अर्थात, आय-सृजन के काम में लगी हुई) द्वारा अनुमानतः 38% बार पक्षपातपूर्ण असहमति दर्शाई जाती है, और अगर वह कृषि कार्य में लगी होती है तो यह पक्षपातपूर्ण असहमति 46% दर्शाती है। आखिरकार, बाहरी नेटवर्क के उपाय मोटे तौर पर अधिक असहमति से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, पटना में दोस्तों या रिश्तेदारों से मिलने के लिए घर से बाहर जाने सूचित करने वाली एक कामकाजी उम्र की महिला अनुमानतः अपने परिवार में पुरुष उत्तरदाता के साथ 40% बार असहमत होती है, जब वह घर से बाहर नहीं गई होती है तो 31% बार असहमत होती है।

संक्षेप में, हमारे तर्कों के अनुरूप, रोजगार या अन्य गतिविधियों (यानी, प्रभाव के संभावित मीडियेतर स्रोत) के माध्यम से महिलाओं के घर के बाहर के नेटवर्क से परिवार में उनकी पक्षपातपूर्ण असहमति की संभावना पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इससे पता चलता है कि, समाचार मीडिया और सोशल मीडिया की व्यापकता के बावजूद, सूचना के निजी गैर मीडिया स्रोत अभी भी राजनीतिक वरीयताओं के संबंध में महिलाओं की स्वतंत्र सोच सबसे बड़ी भूमिका निभा सकती है, हालांकि महिलाओं द्वारा स्मार्टफोन का उपयोग बढ़ने पर यह बदल सकता है।

समापन विचार

हमारी जानकारी के अनुसार, यह भारतीय संदर्भ में पहला बड़े पैमाने का सर्वेक्षण है जो मीडिया तक पहुंच में लैंगिक अंतर और अंतर-पारिवारिक पक्षपातपूर्ण असहमति के साथ इसके सह-संबंध का विस्तृत विश्लेषण प्रदान करता है, जो तुलनात्मक राजनीतिक व्यवहार (सरकार 2020, छिब्बर और वर्मा 2018) के सन्दर्भ में भारत को एक बड़े साहित्य से जोड़ता है।

हमारा यह अध्ययन विकासशील विश्व के संदर्भों में, मीडिया और प्रभाव के गैर मीडिया स्रोतों का एक साथ अध्ययन करने के महत्व पर जोर देता है। यह मौजूदा साहित्य के लिए एक संशोधनात्मक अध्ययन है, जो आम तौर पर शिक्षा के उच्च स्तर और अधिक विविध मीडिया उपभोग के संदर्भ में मीडिया और वरीयताओं के बीच के सह-संबंधों का समाधान करता है। इस प्रकार से, हम राजनीतिक वरीयताओं के संबंध में लैंगिक असमानताओं, पक्षपातपूर्ण असहमति और उसमें भिन्नता को समझने के लिए एक ही परिवार के भीतर महिलाओं और पुरुषों दोनों का अलग-अलग सर्वेक्षण करने के पद्धति-गत महत्व को प्रदर्शित करते हैं।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

लेखक परिचय: सुमित्रा बद्रीनाथन यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो हैं। दीपाबोली चटर्जी सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली (भारत) से संबद्ध एक शोधकर्ता हैं। देवेश कपूर दक्षिण एशियाई अध्ययन के स्टार फाउंडेशन प्रोफेसर और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज (एसएआईएस) में एशिया कार्यक्रमों के निदेशक हैं। नीलांजन सरकार सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फेलो हैं।

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

संबंधित विषयवस्तु

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें