भारत में महिलाएं अवैतनिक घरेलू काम करते हुए अपने परिवार के पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक समय बिताती हैं, और दोगुना समय बच्चों और आश्रित वयस्कों की देखभाल संबंधी गतिविधियों में बिताती हैं। यह लेख, उत्तर भारत के चार शहरी समूहों में वर्ष 2019 में किये गए एक सर्वेक्षण के आधार पर, महिलाओं से उनके वैवाहिक परिवार द्वारा रखी गई अपेक्षाओं और परिवार के बाहर काम करने की उनकी क्षमता के बीच के संबंधों की जांच करता है।
यह लेख 'शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन' पर आधारित पांच-भाग की श्रृंखला में चौथा है।
भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने वर्ष 2019 में एक समय-उपयोग सर्वेक्षण किया जिसमें खुलासा हुआ कि महिलाएं अवैतनिक घरेलू काम करते हुए अपने परिवार के पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक समय बिताती हैं। सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि महिलाएं घर में बच्चों या आश्रित वयस्कों की देखभाल करने वाली गतिविधियों पर दोगुना समय बिताती हैं। दुनिया भर के कई देशों में, पारिवारिक दायित्व महिलाओं के फैसलों पर ऐसे प्रभाव डालते हैं जैसे पुरुषों के लिए नहीं। पाकिस्तान में किये गए एक अनूठे सर्वेक्षण से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर, खान (2021) ने पाया कि महिलाएं, पुरुषों के विपरीत, अपनी नैतिक प्राथमिकताओं का क्रम-निर्धारण करते समय अपने परिवार की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देती हैं, और एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में अपनी स्वयं की जरूरतों को कम महत्त्व के मुद्दों के रूप में मानती हैं।
घर का काम, विशेष रूप से देखभाल का कार्य, किस प्रकार से महिलाओं को रोजगार प्राप्त करने से रोकता है?
घर बनाम काम
परिवार के भीतर महिलाओं के काम संबंधी बढ़ी हुई उम्मीदों को देखते हुए, महिलाओं द्वारा कार्य-बल को छोड़ देने या इसमें प्रवेश नहीं करने के सबसे महत्वपूर्ण कारण के रूप में अक्सर विवाह को उद्धृत किया जाता है (भंडारे 2018)। वैवाहिक परिवार द्वारा महिलाओं से रखी गई अपेक्षाओं और परिवार के बाहर काम करने की उनकी क्षमता के बीच के संबंधों के बारे में जानकारी हासिल करने हेतु, हम हाल के एक अध्ययन में, महिलाओं के रोजगार के बारे में विवाहित जोड़ों की धारणाओं की जांच करते हैं (कारिया और मेहता 2021)। हमारा विश्लेषण 2019 में उत्तर भारत के चार शहरी समूहों- धनबाद (झारखंड), इंदौर (मध्य प्रदेश), पटना (बिहार) और वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में रहने वाले 7,829 परिवारों के किए गए एक अनूठे सर्वेक्षण पर आधारित है। हमारा डेटा दर्शाता है कि, कई महिलाओं के बारे में काम करने का निर्णय उनके विवाह के बाद लिया जाता है। परिणामस्वरूप, एक वैवाहिक परिवार की उम्मीदें महिलाओं और उनके विभिन्न कार्य-जीवन व्यवस्थाओं के बीच के संबंधों को नियमित कर सकेंगी और संभावित रूप से उनके रोजगार को समान रूप से बाधित करने के बजाय उन्हें रोजगार हेतु सक्षम बनायेंगी।
विवाह के भीतर का पदानुक्रम
वैवाहिक परिवार के वातावरण का आकलन करने के लिए, हम उन शर्तों पर विचार करते हैं जिनके आधार पर विवाह की सहमति होती है। भारत में तय किये जानेवाले विवाह में परिवार को- विशेष रूप से वर और वधू के माता-पिता को विवाह-पूर्व वार्ताओं के केंद्र में रखा जाता है। पूरी तरह से जीवन-साथियों (वर-वधू) द्वारा तय किए गए विवाहों का अनुपात कम रहता है और ऐसे 'प्रेम विवाहों' में भी परिवार की स्वीकृति सर्वोपरि रहती है (मुखोपाध्याय 2012)। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि ये स्थितियां महिलाओं और पुरुषों में जीवन-साथी के रूप में अपेक्षित गुणों को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं।
सुंदरता और सफलता संबंधी प्रत्याशित लैंगिक धारणाओं के साथ-साथ, वैवाहिक विज्ञापन भी वैवाहिक जीवन-साथियों (रेयेस-हॉकिंग्स 1966) के लिए अधिक वास्तविक प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं। संभावित जीवन-साथी की शिक्षा और उम्र को प्राथमिक महत्व दिया जाता है। महिलाओं और पुरुषों- दोनों में उच्च शैक्षणिक योग्यता वांछनीय मानी जाती है; हालांकि, सबूत बताते हैं कि महिलाएं अपने से अधिक शिक्षित पुरुषों से शादी करने की इच्छुक रहती हैं (राव और राव 1990)। इसी तरह, पुरुष बहुत विरले ही अपने से बड़ी उम्र की महिला से शादी करना चाहते हैं। इसके अलावा, हमने पाया कि विशेष रूप से उत्तर भारत में यह आम बात है कि महिलाओं को शादी के बाद अपने पति के घर में रहने के लिए जाने हेतु, अक्सर अपने गृहनगर (चक्रवर्ती और चौधरी 2018) से प्रवास करने की आवश्यकता होती है।
पति-पत्नी के बीच की 'विवाह योग्यता', संरचना पदानुक्रम की इन विशेषताओं का झुकाव पुरुषों के पक्ष में होता है। हमारे नमूने में, हम पाते हैं कि सर्वेक्षण किए गए जोड़ों में से केवल 1% में महिलाएं अपने पति से बड़ी हैं, और केवल 10% उनसे अधिक शिक्षित हैं। हमारे नमूने में से 47% जोड़े ऐसे हैं जिनके विवाह को ‘बहिर्विवाह’ के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है (जहां महिला शादी के लिए अपने वर्तमान निवास स्थान पर चली गई है)। हम अपने अध्ययन में यह देखते हैं कि घर के विभिन्न क्रिया-कलापों में निर्णय लेने वाले निर्णय-कर्ता सहित ये पदानुक्रम, महिलाओं के काम के बारे में लोगों की धारणाओं को कैसे प्रभावित करते हैं। कामकाजी महिलाओं को समर्थन नहीं करने वाले ये मानदंड आते कहां से हैं?
बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी
हमारे पूरे विश्लेषण में यह पता चलता है कि पदानुक्रमित विवाहों में महिलाओं के लिए मातृत्व का एक बाध्यता के रूप में अपना स्थान है। एक 'अच्छी पत्नी' और/या 'अच्छी मां' होने का दायित्व एक ऐसे आदर्श में तब्दील हो जाता है जो महिलाओं को घर के अंदर रखता है, और जो 'काम' को बड़े पैमाने पर पुरुषों के प्रांत के रूप में प्रतिपादित करता है। जो महिलाएं उम्र में अपने पति से काफी छोटी होती हैं, उनके द्वारा यह महसूस करने की संभावना अधिक होती है कि कामकाजी मां होने पर बच्चों को परेशानी होती है, जैसा कि चित्र 1 (बाएं पैनल) में देखा जा सकता है। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि बड़ी उम्र के पुरुषों से विवाहित युवा महिलाएं अन्य सर्वेक्षण प्रश्नों में महिलाओं के काम पर आशावादी दृष्टिकोण रखती हैं, लेकिन जब मातृत्व की बात आती है तो वे इस दृष्टिकोण को छोड़ देती हैं। इसके विपरीत, उनके पति इस सवाल को लेकर सकारात्मक रहते हैं। इसके अतिरिक्त, रसोई में प्राथमिक निर्णय लेने वाली महिलाएं और साथ ही बहिर्विवाह करने वाली महिलाएं भी यह महसूस करती हैं कि कामकाजी माताएं बच्चों के लिए प्रतिकूल वातावरण बनाती हैं (चित्र 1 (दायां पैनल), और चित्र 2)।
चित्र 1. उम्र के अंतर (बाएं पैनल) और पारिवारिक कर्त्तव्य (दाएं पैनल) के अनुसार कामकाजी माताओं की अनुमानित धारणाएं
टिप्पणियाँ: (i) ये ग्राफ कामकाजी माताओं के बारे में पुरुषों और महिलाओं की धारणाओं में अनुमानित भिन्नता को इन सन्दर्भों में प्रदर्शित करते हैं: (क) पुरुष की उम्र से महिला की उम्र घटाकर उनके बीच का उम्र का अंतर; और (ख) खाना बनाने से संबंधित निर्णय लेने का सूचकांक, जहां 1 घर में महिला द्वारा ली गई पूरी जिम्मेदारी को इंगित करता है, और 0 इंगित करता है कि यह अधिकार पुरुष के पास है। (ii) धारणाओं को मापते समय, 1 कामकाजी माताओं के अपने बच्चों पर प्रभाव के बारे में पूरी तरह से अनुकूल राय को दर्शाता है, जबकि 0 एक प्रतिकूल राय को दर्शाता है।
चित्र 2. कामकाजी माताओं की धारणाओं पर बहिर्विवाह का प्रभाव
चित्र 2 में आये शब्दों का अनुवाद:-
predicted value= प्रत्याशित मान ; marriage type= विवाह का प्रकार
endogamous=अंतर्विवाह ; exogamous= बहिर्विवाह
gender= लिंग, महिला, पुरुष
नोट: यह ग्राफ कामकाजी माताओं के बारे में पुरुषों और महिलाओं की धारणाओं पर विवाह के प्रकार के अनुमानित प्रभावों को प्रदर्शित करता है। यहां विवाह के प्रकार को बहिर्विवाह और अंतर्विवाह के दो अंकों की संख्यात्मक प्रणाली (या तो 0 या 1 मान के रूप में लेते हुए) में वर्गीकृत किया गया है, जो यह दर्शाता है कि क्या महिलाएं विवाह के लिए अपने वर्तमान निवास स्थान पर चली गई हैं।
एक पूर्व-सूचक के रूप में स्कूली शिक्षा संबंधी निर्णय
बच्चों की स्कूली शिक्षा से संबंधित फैसलों की जिम्मेदारी लेने की वजह से महिलाएं कई मोर्चों पर घर से बाहर काम करने से कतराती हैं। इस तथ्य के साथ-साथ कि वे कामकाजी माताओं के समर्थन में नहीं होती, उनकी प्रतिक्रियाओं में लैंगिक भूमिकाओं के आंतरिककरण का सुझाव रहता हैं जो अन्य जिम्मेदारियों से जुडी हैं। महिलाओं को लगता है कि वे अपने पति से अधिक कमाएंगी तो घर में समस्याएँ पैदा होंगी, और ऐसा सोचने की वजह से वे पुरुषों की तरह व्यवसायी बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। इस संदर्भ में उनके पति अपनी प्रतिक्रियाओं में उनसे कहीं अधिक सकारात्मक हैं (चित्र 3)।
चित्र 3. स्कूली शिक्षा संबंधी जिम्मेदारियों का महिलाओं के काम पर प्रभाव
टिप्पणियाँ: (i) यह ‘प्लाट’ महिलाओं के काम के बारे में पुरुषों और महिलाओं की धारणाओं पर हमारे स्कूली शिक्षा-संबंधी निर्णय लेने के सूचकांक के प्रभावों को दर्शाता है। (ii) यहां, दर्शाया गया ‘डॉट’ स्कूली शिक्षा से संबंधित निर्णयों की पूरी जिम्मेदारी लेने वाली परिवार की महिलाओं के संदर्भ में, तीन प्रश्नों में दोनों जीवन-साथियों की धारणाओं पर सीमांत प्रभावों को इंगित करता है।
संभव है कि माता-पिता की जिम्मेदारियों में असंतुलन के चलते पैदा हुआ यह अवग्रह इन महिलाओं की ओर से रूढ़िवादिता को दर्शाता है। बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी निभाने में अधिक समय बिताने के कारण महिलाएं उस समय और ऊर्जा के बारे में अधिक यथार्थवादी होती हैं जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है। एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि जिनके छोटे बच्चे हैं और जिन्हें अपनी मां से अधिक समय की आवश्यकता होती है ऐसी भारत की शहरी महिलाओं की, उन महिलाओं की तुलना में नियोजित होने की संभावना बहुत कम होती है जिनके बच्चे बड़े होते हैं, या जिनके परिवार में काम का बोझ साझा करने के लिए अन्य महिलाएं हैं (दास और जंबाइट, 2017)। यह नियोक्ताओं के पूर्वाग्रहों का आधार भी बनता है- क्योंकि बच्चे पैदा करने के बाद कार्य-बल में फिर से प्रवेश करते समय महिलाओं को मजदूरी और फिर से काम पर रखने में नियोक्ताओं को असुविधा का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, भारत में 'पुरुष-कमाई के मानदंड' को महिलाओं के रोजगार निर्णयों (गुप्ता 2021) को सीधे प्रभावित करने वाला दिखाया गया है। अपने पति से अधिक कमानेवाली महिलाओं के श्रम बाजार छोड़ने की संभावना उन महिलाओं की तुलना में अधिक होती है जो ऐसा नहीं करती हैं।
समापन विचार
मौजूदा आंकड़ों से यह स्पष्ट पता चलता है कि भारत में महिलाएं घर के भीतर बड़ी मात्रा में अवैतनिक काम करती हैं। घर चलाने के बोझ को प्रभावी ढंग से साझा करने के लिए सार्वजनिक नीतियां जीवन-साथियों की सहायता कैसे कर सकती हैं इसे समझने के लिए औपचारिक और अवैतनिक- दोनों प्रकार के कार्यों को पहचानने हेतु ‘काम’ की मानक परिभाषाओं को तय किये जाने की तत्काल आवश्यकता है। ऐसा करने से बच्चों को पालने के लिए रोजगार पाने हेतु महिलाओं के सामने आने वाली बाधाओं में कमी आएगी, और घर में उनके योगदान को अभिन्न आर्थिक गतिविधियों के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
श्रृंखला का अगला और अंतिम भाग महिलाओं की राजनीतिक प्राथमिकताओं को आकार देने में मीडिया की भूमिका पर चर्चा करता है।
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लेखक परिचय: शुभांगी कारिया वर्तमान में नई दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में रिसर्च एसोसिएट हैं। तन्वी मेहता वर्तमान में आईडीइनसाइट में एसोसिएट हैं।
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