उत्पादकता तथा नव-प्रवर्तन

अल्पकालिक बीमारी और परिवार में श्रम का प्रतिस्थापन

  • Blog Post Date 10 सितंबर, 2021
  • लेख
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Abhishek Dureja

Indira Gandhi Institute of Development Research

abhishekd@igidr.ac.in

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Digvijay S. Negi

Indira Gandhi Institute of Development Research

digvijay@igidr.ac.in

गरीब कृषि परिवारों में स्वास्थ्य-संबंधी झटकों की वजह से होने वाले चिकित्सा खर्चों का असर उनके पास के सीमित संसाधनों पर पड़ता है और इसके परिणामस्वरूप रोजगार के संभावित उत्पादक दिनों का नुकसान होता है। ग्रामीण भारत के आंकड़ों के आधार पर, यह लेख दर्शाता है कि एक बार की बीमारी के कारण बीमार व्यक्ति की औसत मासिक मजदूरी आय में 7% की गिरावट आती है। इसके साथ ही, परिवार के पुरुष मुखिया की बीमारी के कारण उसकी पत्नी की बाजार में श्रम आपूर्ति में औसतन 3.2% की वृद्धि होती है।

 

वर्तमान कोविड-19 की महामारी ने यह महसूस कराया है कि हमें इस बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है कि कमजोर परिवार स्वास्थ्य-संबंधी झटकों का सामना कैसे करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब कृषि परिवारों के लिए स्वास्थ्य-संबंधी झटके बहुत भारी होते हैं क्योंकि वे न केवल चिकित्सा खर्चों के चलते परिवार के सीमित संसाधनों पर असर करते हैं, बल्कि इसके परिणामस्वरूप रोजगार के संभावित उत्पादक दिनों का और बीमार सदस्यों की कमाई का भी नुकसान होता है। ऐसे परिवारों के लिए, अल्पकालिक और अस्थायी स्वास्थ्य झटके भी इस अर्थ में परिणामकारी हो सकते हैं कि उन्हें अपनी बचत को खर्च करने, अपनी उत्पादक संपत्ति का परिसमापन करने और इससे भी बदतर कि उन्हें अपने बच्चों को स्कूलों से निकालकर काम पर भेजने का सहारा लेना पड़ सकता है (हेल्टबर्ग और लुंड 2009, यिल्मा एवं अन्य 2014)। नए शोध (दुरेजा और नेगी 2021) में, हम पहले स्वास्थ्य-संबंधी झटके के कारण होने वाली आय के नुकसान का आकलन करते हैं, और फिर स्वस्थ सदस्यों के परिवार में श्रम आपूर्ति प्रतिक्रियाओं के रूप में घरेलू जोखिम-साझाकरण तंत्र की पहचान करते हैं।

डेटा और प्रणाली

हम आईसीआरआईएसएटी-वीडीएसए (इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स-विलेज डायनेमिक्स इन साउथ एशिया) के मासिक घरेलू पैनल1 सर्वेक्षण के डेटा का उपयोग करते हैं, जिसमें भारत के आठ राज्यों के 30 गावों के लगभग 1400 परिवारों को शामिल किया गया है ((भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद)-आईसीआरआईएसएटी, 2010)। हम 2010-11 से 2014-15 तक के पांच वर्षों के सर्वेक्षण के हाल के दौरों का उपयोग करते हैं। सर्वेक्षण का रोजगार मॉड्यूल एक महीने में उन दिनों की संख्या को रिकॉर्ड करता है जिसमें एक व्यक्ति श्रम-बाजार में, अपने खेत पर, घरेलू कामों में और पशुधन की देखभाल का काम करता है। इसके अलावा, उसी मॉड्यूल के भीतर, व्यक्तियों को यह बताने के लिए कहा जाता है कि वे उक्त महीने में कितने दिनों तक बीमार रहे। इस जानकारी से हम एक व्यक्ति-स्तरीय मासिक पैनल बना पाते हैं जिसके जरिये परिवार के प्रत्येक सदस्य की बीमारी की संख्याओं के साथ-साथ बाजार में श्रम आपूर्ति और गैर-बाजार घरेलू-उत्पादन गतिविधियों को ट्रैक किया जा सकता है। हमारे विश्लेषण के लिए, हम नमूने को 15-65 वर्ष2 के आयु वर्ग के व्यक्तियों तक सीमित रखते हैं।

हमारे नमूने में अधिकांश व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं और मुख्य रूप से कृषि श्रमिकों के रूप में या निम्न या अर्ध-कुशल नौकरियों में काम करते हैं। चित्र 1 इन ग्रामीण कृषि परिवारों के सन्दर्भ में श्रम के आयु-लिंग विभाजन को प्रस्तुत करता है जहां महिला और पुरुष दोनों सदस्य अपने तुलनात्मक लाभ और समय की अवसर लागत के आधार पर गतिविधियों में प्रवीण होते हैं। युवा पुरुष मजदूरी बाजार में अधिक कार्य-दिवस बिताते हैं जबकि वृद्ध पुरुष अपने खेत पर काम करने या पशुओं की देखभाल करने में अधिक दिन व्यतीत करते हैं। दूसरी ओर, महिलाएं मुख्य रूप से घरेलू कामकाजों में शामिल होती हैं। पुरुष और महिला दोनों समान रूप से पशुओं की देखभाल में समय व्यतीत करते हैं।

चित्र 1. श्रम का आयु-लिंग विभाजन

कुल व्यक्तिगत-महीने के अवलोकनों में से, लगभग 8% मामलों में एक व्यक्ति अपनी बीमारी के बारे में रिपोर्ट करता है। स्व-रिपोर्ट की गई बीमारी के एपिसोड आम तौर पर अल्पकालिक होते हैं। चित्र 2 (बायाँ पैनल) हमारे व्यक्तियों के नमूने में बीमारी के दिनों के 'सशर्त' वितरण को दर्शाता है: यह वितरण बीमारी की घटनाओं पर सशर्त है, और एक व्यक्ति महीने में सिर्फ तीन दिन के लिए बीमार रहता है, और 92% बीमारियां एक सप्ताह तक या उससे कम समय के लिए रहती हैं। इन बीमारियों का स्वरूप अल्पकालिक और क्षणिक होने से इनके अप्रत्याशित होने की संभावना होती है, और इसलिए सम्बंधित परिवार के सदस्यों की श्रम आपूर्ति में अस्थायी परिवर्तन होगा। स्वास्थ्य-संबंधी झटके के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए, हम एक व्यक्ति के श्रम परिणामों की तुलना वर्ष के दौरान उसके बीमार होने के महीने और स्वस्थ रहने के महीनों के बीच करते हैं, और ग्रामीण स्तर के आवर्तनों3 को भी निग्रहित करते हैं।

चित्र 2. बीमारी के दिन (बायाँ पैनल) और बीमारी के झटके में आवर्तन (दायां पैनल)

बीमारी, श्रम आपूर्ति, और मजदूरी आय

हम पाते हैं कि बीमारी के झटके की घटना किसी व्यक्ति के बाजार और गैर-बाजार श्रम आपूर्ति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। औसतन, एक बार की बीमारी से मासिक वेतन आय में 127 रुपये का नुकसान होता है। चूँकि हमारे नमूने में औसत वेतन आय रु.1,777 दर्शाई गई है अतः यह नुकसान उस बीमार व्यक्ति की औसत मजदूरी आय का लगभग 7% हो जाता है।

तालिका 1 से पता चलता है कि बीमारी के झटके का असर घरेलू उत्पादन गतिविधियों में श्रम आपूर्ति पर भी होता है। बीमारी के झटके गैर-बाजार घरेलू उत्पादन गतिविधियों में व्यक्तियों की श्रम आपूर्ति को क्रमशः अपने खेत, घरेलू और पशुधन गतिविधियों पर खर्च किए गए औसत कार्य-दिनों के लगभग 5.8%, 6.7% और 7% तक कम कर देते हैं।

तालिका 1. व्यक्तियों की मासिक श्रम आपूर्ति पर बीमारी के झटके का प्रभाव

बाजार श्रम आपूर्ति गैर-बाजार घरेलू उत्पादन

आय

श्रम मजदूरी

अपने खेत पर

घरेलू

पशुधन

बीमारी

-126.853***

-0.819***

-0.201**

-0.742***

-0.335**

अवलोकनों की संख्या

253,334

256,532

256,532

256,532

256,532

औसत

1,777

8.94

3.45

11.08

4.81

नोट: (i) तालिका में दिया गया अनुमान व्यक्ति की बीमारी के महीने और उसके स्वस्थ रहने के महीने के बीच के कुल मासिक वेतन और कार्य-दिवसों में अंतर को दर्शाता है। (ii) *** यह दर्शाता है कि अनुमान सांख्यिकीय रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और इसका तात्पर्य एक छोटी मानक त्रुटि और उच्च परिशुद्धता है; *, **, और *** क्रमशः 1%, 5% और 10% स्तरों पर सांख्यिकीय महत्व को दर्शाते हैं। (iii) आंकड़ों में, बीमारी के दिन शून्य होने पर बीमारी का मान 1 हो जाता है।

चित्र 1 में दर्शाई गई श्रम की लिंग-आधारित प्रवीणता मजदूरी आय और श्रम आपूर्ति पर बीमारी के झटके के असर पर आधारित है। हम पाते हैं कि बाजार के कार्य-दिवसों और मजदूरी की कमाई में नुकसान मुख्य रूप से पुरुषों के कारण होता है क्योंकि वही लोग बाहर जाते हैं और मजदूरी वाले रोजगार में संलग्न होते हैं। बीमारी के कारण अपने खेत पर पुरुषों के कार्य-दिवसों में गिरावट भी अधिक स्पष्ट है क्योंकि वे खेती की गतिविधियों में अधिक समय व्यतीत करते हैं। तथापि, घरेलू कामकाजों में महिलाओं के कार्य-दिवसों में गिरावट अधिक स्पष्ट है, क्योंकि पारिवारिक काम और घरेलू कामकाज बड़े पैमाने पर महिलाओं द्वारा किए जाते हैं।

हम यह भी पाते हैं कि जिन परिवारों के पास भूमि या पशुधन नहीं है, उन्हें बाजार मजदूरी रोजगार पर अधिक निर्भरता के कारण कार्य-दिवसों और मजदूरी आय में अधिक नुकसान हो सकता है। जिनके पास कोई संपत्ति (खेत आदि) नहीं है, ऐसे गरीब परिवार मुख्य रूप से अपनी आजीविका के लिए अनौपचारिक मजदूरी रोजगार पर निर्भर हैं, और इसलिए उनकी बीमारी के झटके की चपेट में आने की अधिक संभावना रहती है।

परिवार में श्रम का प्रतिस्थापन

परिवार के कमाई करने वाले सदस्यों की बाजार श्रम आपूर्ति में गिरावट के चलते परिवार की कुल मासिक मजदूरी आय में कमी से परिवार की सकल आय को झटका लगता है। हम पाते हैं कि परिवार के पुरुष मुखिया के एक बार बीमार पड़ने से परिवार की कुल मजदूरी आय में 4% की गिरावट होती है, जबकि परिवार के मुखिया की पत्नी के एक बार बीमार पड़ने से परिवार की कुल मजदूरी आय में केवल 1% की कमी होती है।

परिवार के बीमार सदस्य की श्रम आपूर्ति और आय को कम करके, बीमारी का झटका परिवार के स्वस्थ सदस्यों के समय की अवसर लागत को बदल देता है, जिससे उनसे 'प्रतिपूरक' श्रम आपूर्ति प्रतिक्रियाएं उत्पन्न होती हैं। तथापि, श्रम की लिंग-आधारित प्रवीणता, भेदभावपूर्ण ग्रामीण श्रम बाजार और महिलाओं की गतिशीलता को सीमित करने वाले सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों के चलते परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा उस परिवार के बीमार सदस्य का काम करने और तदनुसार कमाई कर उस झटके की भरपाई करना सीमित होता है। यह परिवार में महिलाओं और पुरुषों के बीच श्रम के प्रतिस्थापन के सन्दर्भ में विशेष रूप से सच है।

हम परिवार के पुरुष मुखिया और मुखिया की पत्नी के बीच परिवार के श्रम में प्रतिस्थापन पर ध्यान केंद्रित करते हैं। तालिका 2 पत्नी की श्रम आपूर्ति पर परिवार के पुरुष मुखिया की बीमारी के झटके के प्रभाव को दर्शाती है। परिवार के मुखिया की बीमारी के कारण आय में होने वाली हानि को कम करने के लिए उसकी पत्नी खुद के खेत की गतिविधियों में अपने कार्य-दिवसों को कम करके उसी महीने में अपने बाजार श्रम की आपूर्ति में 3.2% (या 0.19 दिन) की वृद्धि करती है, जिससे उसकी मासिक वेतन आय में औसतन 2.3% (या 17 रुपये) की वृद्धि होती है। यह 'अतिरिक्त श्रमिक प्रभाव'4 (लुंडबर्ग 1985) है। हालांकि, आय में यह वृद्धि परिवार के मुखिया की बीमारी के कारण घरेलू आय में हुई गिरावट को पूरी तरह से बराबर करने के लिए अपर्याप्त है। जो महिलाएं काम के लिए बाहर जाती हैं, वे मुख्य रूप से खेत मजदूर के रूप में काम करती हैं, जहां उन्हें गैर-कृषि गतिविधियों (मर्फेल्ड 2021) की तुलना में काफी कम भुगतान किया जाता है।

तालिका 2. परिवार के मुखिया और उसकी पत्नी की बीमारी के झटके का पत्नी की मासिक श्रम आपूर्ति पर प्रभाव

बाजार श्रम आपूर्ति गैर बाजार घरेलू उत्पादन

आय

बाजार श्रम

अपने खेत पर

घरेलु

पशुधन

मुखिया बीमार

16.743*

0.187**

-0.092**

0.051

0.053

पत्नी बीमार

-66.709***

-0.623***

-0.144**

-1.279***

-0.388**

अवलोकनों की संख्या

59,243

59,402

59,402

59,402

59,402

औसत

738

6.03

3.11

18.57

5.96

टिप्पणियाँ: (i)*** दर्शाता है कि अनुमान सांख्यिकीय रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण है और एक छोटी मानक त्रुटि और उच्च परिशुद्धता का तात्पर्य है; *, **, और *** क्रमशः 1%, 5% और 10% स्तरों पर सांख्यिकीय महत्व को दर्शाते हैं। (ii) आंकड़ों में, बीमारी के दिन शून्य होने पर बीमारी का मान 1 हो जाता है।

तालिका 3 पत्नी के बीमार पड़ने पर घर के मुखिया के लिए अतिरिक्त श्रमिक प्रभाव दिखाती है। पत्नी को बीमारी का झटका लगने की घटना से घर का मुखिया घरेलू कामों और पशुधन गतिविधियों में अधिक काम करता है। घर के मुखिया के इस अतिरिक्त श्रमिक प्रभाव को इस तथ्य से समझाया गया है कि घर के मुखिया की पत्नी अपना अधिकांश समय घरेलू और पशुधन गतिविधियों में बिताती है, और इसलिए, पत्नी के एक बार बीमार होने का झटका घर के मुखिया को इन गतिविधियों में अधिक संलग्न होने के लिए प्रेरित करता है।

तालिका 3. परिवार के मुखिया और उसकी पत्नी की बीमारी के झटके का मुखिया की मासिक श्रम आपूर्ति पर प्रभाव

बाजार श्रम आपूर्ति गैर बाजार घरेलू उत्पादन

आय

बाजार श्रम

अपने खेत पर

घरेलु

पशुधन

मुखिया बीमार

-195.302***

-1.189***

-0.365***

-0.379**

-0.534**

पत्नी बीमार

-1.121

-0.108

0.032

0.109*

0.102

अवलोकनों की संख्या

57,923

59,402

59,402

59,402

59,402

आश्रित चर का औसत

2,465

11.47

5.67

4.76

6.36

टिप्पणियाँ: (i) *** यह दर्शाता है कि अनुमान सांख्यिकीय रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण है और इसका अर्थ है एक छोटी मानक त्रुटि और उच्च परिशुद्धता; *, **, और *** क्रमशः 1%, 5% और 10% स्तरों पर सांख्यिकीय महत्व को दर्शाते हैं। (ii) आंकड़ों में, बीमारी के दिन शून्य होने पर बीमारी का मान 1 हो जाता है।

जबकि, औसतन, हम पाते हैं कि परिवार के मुखिया और पत्नी दोनों ही एक-दूसरे की बीमारी के समय अपनी श्रम आपूर्ति को बदलकर कार्य करते हैं, ऐसे प्रतिपूरक श्रम आपूर्ति प्रतिक्रियाओं में कई दिलचस्प पैटर्न सामने आते हैं। सबसे पहले, पत्नी की बीमारी के बदले में परिवार के मुखिया द्वारा घरेलू कार्य-दिवसों की वृद्धि उम्रदराज मुखिया वाले परिवारों के सन्दर्भ में अधिक होती है। वृद्ध पुरुष उन युवा पुरुषों की तुलना में अपने खेत और पशुधन के काम में अधिक समय व्यतीत करते हैं, जो मजदूरी-श्रम गतिविधियों में अधिक समय व्यतीत करते हैं। इसलिए बाजार के काम से निकाले गए समय और पत्नी की बीमारी के दौरान घरेलू काम में प्रतिस्थापित होने के संदर्भ में समय की अवसर लागत वृद्ध पुरुषों5 की तुलना में कम उम्र के पुरुषों के लिए अधिक है।

दूसरा, पति/परिवार के मुखिया की बीमारी के कारण युवा पत्नियों द्वारा श्रम आपूर्ति अधिक होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी के लिए मजबूत शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है, इसलिए केवल युवा महिलाएं ही बाजार में श्रम आपूर्ति बढ़ाकर अपने पति की बीमारी का जवाब देने में सक्षम हैं। इसके अलावा, यदि परिवार में आश्रितों की संख्या अधिक है तो वे संभवतः घरेलू कामों की देखभाल कर सकते हैं, जिससे घरेलू कामों में परिवार के मुखिया का अतिरिक्त श्रमिक प्रभाव कम हो जाता है, लेकिन बाजार में श्रम आपूर्ति में पत्नी का अतिरिक्त श्रमिक प्रभाव बढ़ जाता है। ऐसे आश्रितों की उपस्थिति के चलते परिवार के मुखिया के बीमार पड़ जाने की स्थिति में उसकी पत्नी के बाहर काम करने की क्षमता का लाभ मिलता है।

तीसरा, संपत्ति-हीन गरीब परिवारों की उधार लेने की क्षमता सीमित होने तथा बीमारियों के दौरान होने वाली आय की हानि को कम करने हेतु एकमात्र माध्यम मजदूरी करना होने के कारण का उनके परिवार के मुखिया की बीमारी के बदले में उसकी पत्नी की श्रम आपूर्ति प्रतिक्रिया कहीं ज्यादा होती है।

हम यह भी पाते हैं कि परिवार के मुखिया की बीमारी के बदले में काम करने की उसकी पत्नी की क्षमता श्रम मांग चक्र में होनेवाले आवर्तनों से प्रभावित होती है। पत्नियां अपनी श्रम आपूर्ति केवल मुख्य कृषि मौसम के महीनों में बढ़ाती हैं क्योंकि उस दौरान स्थानीय कृषि कार्य के अवसर आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं, ऐसा दुबले कृषि मौसमों के दौरान नहीं होता। इसलिए, आयु और लिंग-आधारित श्रम विभाजन के साथ श्रम मांग चक्र बीमारी से प्रेरित आय झटकों के बदले में काम करने के एक साधन के रूप में अंतर-घरेलू श्रम प्रतिस्थापन को सीमित करता है।

निष्कर्ष

हमारे परिणामों से संकेत मिलता है कि अल्पकालिक और क्षणिक बीमारी की घटनाएं भी ग्रामीण कृषि परिवारों पर असर डालती हैं, जिसका अर्थ है कि इन परिवारों पर अधिक गंभीर या दीर्घकालिक बीमारी के बहुत अधिक गंभीर परिणाम होंगे। दीर्घकालिक गंभीर बीमारी या विकलांगता के प्रभावों की पहचान करना कठिन है क्योंकि वे परिवारों की श्रम संरचना में संरचनात्मक परिवर्तन लाते हैं और श्रम आपूर्ति में स्थायी परिवर्तन लाते हैं। जबकि परिवार के भीतर प्रतिपूरक श्रम आपूर्ति प्रतिक्रियाओं के माध्यम से जोखिम-साझाकरण किया जाना बीमारी से प्रेरित आय झटकों से उबरने का एक साधन प्रतीत होता है, लेकिन यह पर्याप्त से बहुत कम है तथा यह परिवार की जनसांख्यिकीय संरचना और ग्रामीण मजदूरी श्रम बाजार में आवर्तनों की दृष्टी से अत्यधिक संवेदनशील है।

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टिप्पणियाँ:

  1. पैनल डेटा कई समय पर अवलोकनों के एक ही सेट (इस मामले में व्यक्तियों) को मापता है।
  2. एक औसत परिवार में 5-6 वयस्क सदस्य होते हैं: परिवार का मुखिया, मुखिया का जीवनसाथी, बेटा (बेटी), बेटी (बेटी), और बहू। प्रत्येक परिवार के लिए मुखिया (और मुखिया का जीवनसाथी) 'अद्वितीय' होता है। हालाँकि, परिवार के जीवन-चक्र के आधार पर, बाकी की संरचना परिवारों में बहुत भिन्न होती है। अतः हमारे अध्ययन में, हम पुरुष मुखिया और उसकी पत्नी के बीच श्रम प्रतिस्थापन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन घर में अन्य सदस्यों की उपस्थिति को निग्रहित करते हैं।
  3. चित्र 2 (दाया पैनल) से पता चलता है कि बीमारी के झटके मौसमी होते हैं क्योंकि वे मानसून के महीनों में अधिक प्रचलित होते हैं। इसी प्रकार से, हम देखते हैं कि बाजार और घर-उत्पादन की गतिविधियों में श्रम की आपूर्ति भी सभी महीनों में गाँव-विशिष्ट कृषि चक्र के आधार पर भिन्न होती है। इस ग्राम-स्तरीय आवर्तन को आँका नहीं गया तो यह श्रम आपूर्ति और बीमारी के बीच नकली संबंध का कारक हो सकता है।
  4. पति की अस्थायी बेरोजगारी अवधि के दौरान पत्नी की श्रम आपूर्ति में अस्थायी वृद्धि को 'अतिरिक्त श्रमिक प्रभाव' कहा जाता है।
  5. उम्रदराज मुखिया वाले परिवार भी अधिक वयस्क सदस्यों वाले परिवारों के अनुरूप होंगे और हो सकता है कि उन घरों में परिवार का मुखिया प्राथमिक वेतन पाने वाला न हो।

लेखक परिचय: अभिषेक दुरेजा इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान, मुंबई में रिसर्च स्कॉलर हैं। दिग्विजय एस. नेगी इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान, मुंबई में सहायक प्रोफेसर हैं।

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