शांतनु मिश्रा (सह-संस्थापक और ट्रस्टी, स्माइल फाउंडेशन) चर्चा करते है कि कैसे कोविड के कारण सामाजिक आवागमन और सामाजिक कार्यकलापों पर लगे प्रतिबंध एवं घर में अनुकूल माहौल बनाने के लिए वयस्कों पर पूर्ण निर्भरता के कारण बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। वे स्कूलों के दोबारा खुलने पर (जब खुलेंगे) उनके द्वारा बच्चों के अधिकाधिक समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालते हैं।
आपके शोध और अनुभव के आधार पर, वे कौन से प्रमुख तीन कारक हैं जिनसे कोविड-19 संकट और इससे संबंधित लॉकडाउन ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है?
कोविड-19 ने बच्चों को अपने घरों में कैद रहने को मजबूर कर दिया है। लंबे समय तक स्कूल का बंद रहना, बच्चों के मनोसामाजिक स्वास्थ्य और विकास के लिए महत्वपूर्ण बाहरी गतिविधियों और सामाजिक संपर्क की कमी; और वायरस को लेकर व्याप्त अनिश्चितता और भय ने बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित किया है।
स्वयं के और अपने प्रियजनों के स्वास्थ्य के बारे में भय और चिंता बच्चों के लिए भारी तनाव और परेशान करने वाली हो सकती है। डिजिटल उपकरणों तक बढ़ती पहुंच तथा महामारी के बारे में मास मीडिया पर बहुत ज्यादा कवरेज के चलते लगातार कोविड-19 के बारे में समाचार एवं जानकारी मिलते रहने के कारण उनके तनाव और संभवतः अपने प्रियजनों को खोने की चिंता को और बढ़ा दिया है।
बच्चों के लिए एक और चुनौती, ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम को अपनाना है। हमारी शिक्षा प्रणाली कक्षा शिक्षण पर अधिक निर्भर है और अधिकांश बच्चे अपनी पढ़ाई की जिम्मेदारी स्वतः लेने में असमर्थ हैं। इसके अलावा, कनेक्टिविटी में व्यवधान और विशेष रूप से 2-3 बच्चों वाले या सीमित संसाधनों वाले परिवारों में डिजिटल उपकरणों तक सीमित पहुंच ने बच्चों द्वारा अनुभव की जाने वाली निराशा को और बढ़ा दिया है। सीमित सामाजिक संपर्क और ऑनलाइन शिक्षा के परिणामस्वरूप बच्चे टीम वर्क से दूर हो रहे हैं।
जिन बच्चों के घर में जगह कम है उनके घर में लॉकडाउन के कारण हर समय पूरे परिवार का एक साथ मौजूद रहने का मतलब है कि बच्चे को एक अनुकूल वातावरण बनाने के लिए घर पर अपने वयस्कों पर निर्भर रहना होगा, और ऐसी स्थिति एक साथ कई समस्याओं को जन्म देती है। चूंकि बच्चे के माता-पिता घर से ही काम कर रहे होंगे और काम का बोझ, स्वास्थ्य और वित्त संबंधी अपने तनाव से घर में ही परेशान हो रहे होंगे, और यह परिस्थिति बच्चों को दुर्व्यवहार और हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती है।
किसी चीज के नियंत्रण में रहने के बजाय ये बच्चे अपने अनुकूल परिस्थिति बनाने के लिए वयस्कों पर निर्भरता के कारण सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
क्या यह प्रभाव बच्चों के कुछ समूहों (आयु, लिंग, या घरेलू आय के सन्दर्भ में) पर दूसरों की तुलना में अधिक स्पष्ट है, और यदि है तो क्यों?
कोविड-19 संकट और इससे जुड़े लॉकडाउन ने आमतौर पर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। नाजुक परिस्थितियों में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। स्माइल फाउंडेशन के माध्यम से, हम देश-भर1 के 22 राज्यों में वंचित समुदायों के साथ काम करते आ रहे हैं, और हमने देखा है कि कई माता-पिता अपनी आजीविका और नौकरी खो चुके हैं। इसके परिणामस्वरूप परिवारों में बढ़ती गरीबी और दुख उन्हें निराशा और हिंसा की ओर ले जा रहे हैं, और ऐसी स्थिति में बच्चे- विशेष रूप से बालिकाएँ और शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इसके चलते बालिकाओं की पढ़ाई बंद करने के मामले भी हमारे ध्यान में आ रहे हैं, क्योंकि उनके माता-पिता द्वारा उन्हें या तो घरेलू काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है या उनकी जल्दी शादी करवाई जा रही है। इसी प्रकार से, कुछ किशोर लड़कों को भी काम और मजदूरी के लिए स्कूल से निकाला जा रहा है।
कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा में वृद्धि के रूप में एक प्रकार की आभासी महामारी के भी प्रमाण मिले हैं। क्या आपको लगता है कि बच्चों पर भी इसी तरह के प्रभाव पड़ रहे हैं?
लोगों के स्वास्थ्य संबंधी आपात-स्थितियों के पूर्वानुभवों ने यह दर्शाया है कि ऐसी स्थितियों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ लैंगिक आधार पर घरेलू हिंसा अथवा शारीरिक शोषण-सहित हिंसा में वृद्धि की प्रबल संभावना होती है। कोविड-19 महामारी के दौरान एक बचावकारी हस्तक्षेप के रूप में, हम अपनी परियोजनाओं के माध्यम से बच्चों और उनके माता-पिता को बाल सुरक्षा, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में और आवश्यकता होने पर उपलब्ध हेल्पलाइन का उपयोग करने के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने का प्रयास कर रहे हैं। हम घर-घर जाकर बच्चों और उनके माता-पिता से बात कर रहे हैं। हमने संगठन के समेकित प्रयासों के लिए एक 'बाल संरक्षण नीति' भी तैयार की है, जिसके तहत ‘साइबर सुरक्षा’ विषय पर बच्चों और माता-पिता के लिए सत्र आयोजित किए गए हैं।
बच्चों के स्क्रीन-टाइम में वृद्धि को अक्सर उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह बताया गया है। हालांकि, ऑनलाइन कक्षाओं ने बच्चों के लिए लंबे समय तक डिजिटल उपकरणों का उपयोग करना अनिवार्य बना दिया है, और इसे मना करना माता-पिता के लिए भी स्वाभाविक रूप से मुश्किल है। आपके अनुसार इसका बच्चों पर कितना प्रभाव पड़ सकता है? और इससे कैसे निपटा जा सकता है?
बच्चों के स्क्रीन-टाइम में वृद्धि को हमेशा उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह माना गया है। महामारी के दौरान बच्चे ऑनलाइन शिक्षण पर अधिक समय इसलिए व्यतीत कर रहे हैं क्योंकि यह एक ऐसा माध्यम है जो उन्हें स्कूली शिक्षा से जुड़े रहने में सहायक है।
यह अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि हम ऑनलाइन सुरक्षा को प्राथमिकता दें और बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से अनुपयुक्त जानकारी के संपर्क से दूर रखकर बढ़े हुए स्क्रीन-टाइम के प्रतिकूल प्रभावों से उन्हें बचाएं।
समुदायों के साथ अपने कार्य के एक भाग के रूप में, हम माता-पिता को साइबर सुरक्षा पर परामर्श भी दे रहे हैं कि किस प्रकार से उन्हें अपने बच्चों को इन उपकरणों का उपयोग सावधानी से और उनकी उम्र के हिसाब से उपयुक्त तरीके से करने का मार्गदर्शन देने और इस पर निगरानी रखने की आवश्यकता है। इसके अलावा, हम सीखने की मिश्रित पद्धतियों को बढ़ावा देते हैं- जब भी और जहां भी संभव हो, हम बच्चों को मुद्रित वर्कशीट और पाठ्यक्रम पुस्तकें प्रदान करते हैं। हम घर पर सुरक्षित विज्ञान प्रयोगों, मॉडल बनाने और अवलोकन और अनुसंधान के आधार पर असाइनमेंट को भी प्रोत्साहित करते हैं। इससे बच्चों को अध्ययन करने हेतु एक दिशा मिलती है और ऑफ-लाइन तरीके से अध्ययन करने का अवसर मिलता है जो उन्हें व्यस्त रखता है।
कोविड-19 के कारण आवागमन (गतिशीलता) पर लगे प्रतिबंधों को देखते हुए, बच्चों को व्यस्त रखने और शारीरिक रूप से सक्रिय रखने के कौन से उत्तम तरीके आप बताना चाहेंगे ?
कोविड-19 के कारण बच्चों की गतिशीलता वास्तव में गंभीर रूप से प्रभावित हुई है, जिससे उन्हें कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। हम ऑफ़-लाइन सीखने के मिश्रित तरीकों को बढ़ावा देने के साथ ही, बच्चों को अच्छे स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करने में सहायता हेतु योग का ऑन-लाइन प्रशिक्षण भी प्रदान करते हैं। बागवानी एक और गतिविधि है जिसके बारे में हमने उनको बताया और बच्चे इसका आनंद ले रहे हैं। हम बच्चों को किचन गार्डनिंग में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, क्योंकि इससे उन्हें उनकी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी। हमने कई संसाधन एजेंसियों और संगठनों जैसे डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साथ भी सहयोगात्मक कार्य किया है, जिसके माध्यम से बच्चों को विभिन्न गतिविधियां करके प्रकृति के बारे में जानने का मौका मिल सके। स्वच्छता, स्वास्थ्य और पोषण पर केन्द्रित सत्रों के जरिये उन्हें खुद की देखभाल और अच्छे स्वास्थ्य के महत्व के बारे में जागरूक किया गया है।
आप बच्चों के मन में इस वायरस के प्रति निरंतर बढ़ते भय को रोकने के साथ-साथ, उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराने और यह सुनिश्चित करने कि वे बरती जाने वाली सावधानियों के महत्व को समझ रहे हैं, के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाए रखने हेतु क्या सलाह देंगे?
हमने बच्चों के साथ बातचीत करते समय सावधानीपूर्वक डिजाइन किए गए एक संतुलित दृष्टिकोण का उपयोग किया है। उन्हें कोविड-19 से संबंधित सावधानियों और सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूक करना महत्वपूर्ण है। उन्हें रचनात्मक शिक्षण से जोड़ना काफी महत्वपूर्ण है, साथ ही अपने परिवार और साथियों को सावधानियों का पालन करने में मदद करने के लिए काम देना भी जरूरी है, यह उन्हें और अधिक जिम्मेदार बनाएगा। अवसाद-ग्रस्त बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य परामर्शदाताओं द्वारा उचित परामर्श देने की भी आवश्यकता होगी।
कोविड-19 और संबंधित लॉकडाउन ने स्वास्थ्य और वित्तीय मामलो- दोनों के कारण बढ़ी हुई चिंता और परेशानी ने वयस्कों को प्रभावित किया है। यह बच्चों की उनकी देखभाल करने वालों के रूप में उनके माता-पिता भूमिका पर प्रतिकूल प्रभाव कैसे डाल सकता है, और इसे कम करने के लिए माता-पिता/अभिभावक क्या उपाय अपना सकते हैं?
महामारी और उससे कारण लगे लॉकडाउन ने परिवारों को उनके स्वास्थ्य और आर्थिक रूप से प्रभावित किया है। नौकरी का चला जाना और कमाई का नुकसान, अपने मूल स्थानों के लिए पलायन करना, मन में वायरस से संक्रमित होने का डर और भविष्य के बारे में अनिश्चितता माता-पिता को चिंतित और तनावग्रस्त कर रही है।
हमारा प्रयास रहता है कि हम जितने बच्चों के साथ संपर्क में हैं, उतने ही उनके माता-पिता और परिवारों से जुड़ कर उन चुनौतियों को समझें जिनका वे सामना कर रहे हैं, और उनकी आजीविका और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए प्रासंगिक सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए उनका मार्गदर्शन करें। हमने "स्माइल ऑन व्हील्स" (मोबाइल क्लिनिक) और सामुदायिक स्वास्थ्य जन-संपर्क कार्यक्रमों के माध्यम से स्वास्थ्य विशेषज्ञों और पेशेवरों के जरिए सामान्य स्वास्थ्य-जांच और परामर्श सेवाएं प्रदान करने के साथ-साथ उचित स्वास्थ्य आदतों के बारे में समुदायों को संवेदनशील बनाने के लिए कई जागरूकता और सेवा शिविर आयोजित किए हैं। हमने आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को एक या दो महीने की राहत देने के लिए सूखा राशन और स्वच्छता किट का भी वितरण किया है। हमारा मानना है कि उपरोक्त हस्तक्षेपों द्वारा हमने माता-पिता को उनके तनाव से कुछ राहत दी है, जिससे वे अपने बच्चों की अधिक सक्रियता और धैर्य से देखभाल कर सकेंगे।
आपको क्या लगता है कि प्रत्यक्ष रूप से स्कूली शिक्षा की कमी ने बच्चों को कैसे प्रभावित किया है? क्या स्कूलों को कोविड-19 हेतु आवश्यक प्रोटोकॉल के साथ फिर से खोलने से मदद मिलेगी?
स्कूलों को कोविड-19 हेतु आवश्यक प्रोटोकॉल के साथ फिर से खोलने पर बच्चों के बेहतर भावनात्मक और सामाजिक विकास को गति देने में सुविधा मिलेगी क्योंकि प्रत्यक्ष स्कूली शिक्षा की कमी उन्हें प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रही है। स्कूल वापस आना, अपने साथियों और शिक्षकों से मिलना, स्कूल के सीखने के अनुकूल माहौल में पढ़ना, निश्चित रूप से बच्चों को महामारी का सामना करने और उन्हें सहज बनाने में मदद करेगा। पिछले डेढ़ साल के दौरान सीखने की प्रक्रिया में बढ़ती खाई एक बहुत बड़ी कमी के रूप में सामने आई है, जिसे हमें दूर करना होगा।
स्कूलों को फिर से खोलते समय, शिक्षा के हितधारकों द्वारा वर्तमान स्कूल शिक्षण प्रणाली का पुनर्मूल्यांकन कर उसका पुनर्निर्धारण करने की आवश्यकता है। यह महत्वपूर्ण है कि हम शिक्षा को विषय-आधारित पाठ्यक्रम के साथ मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता तक सीमित न रखें, बल्कि बच्चों को वे जिस रूप में हैं वैसे ही स्वीकार करें, उनके अनुभवों और पृष्ठभूमि का अवलोकन करें, और समग्र रूप में उनकी उम्र के अनुसार उन्हें उपयुक्त पोषण, भावनात्मक और बौद्धिक स्वास्थ्य प्रदान करें। ऐसा करने से निश्चित ही बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का स्तर ऊपर उठ सकेगा।
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टिप्पणियाँ:
- स्माइल फाउंडेशन, एक गैर-लाभकारी संगठन है जो भारत के 22 राज्यों में 1000 से अधिक दूरदराज के गांवों और झुग्गियों में काम करता है ताकि वंचित तबके के बच्चों, युवाओं और महिलाओं को शिक्षा, नवीनतम स्वास्थ्य देखभाल और बाजार-केंद्रित आजीविका कार्यक्रमों के माध्यम से सशक्त बनाया जा सके।
लेखक परिचय: शांतनु मिश्रा स्माइल फाउंडेशन के सह-संस्थापक और कार्यकारी ट्रस्टी हैं।
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