सामाजिक पहचान

कोविड-19: लॉकडाउन और घरेलू हिंसा

  • Blog Post Date 30 अप्रैल, 2020
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Nalini Gulati

Editorial Advisor, I4I

nalini.gulati@theigc.org

जैसे-जैसे दुनिया भर की सरकारें कोरोनावायरस के प्रसार को कम करने के लिए विभिन्न तीव्रता से लॉकडाउन लागू कर रहे हैं, और इससे भारत सहित कई देशों में घरेलू हिंसा की खबरों में अचानक बड़ा उछाल आया है। इस पोस्ट में, नलिनी गुलाटी ने कहा है कि कोविड-19 द्वारा पैसे हुए मौजूदा मौजूदा घरेलू हिंसा से पीड़ितों की स्थिति को बिगाड़ सकता है और साथ ही नए पीड़ित भी पैदा कर सकता है। उन्होने उन संभावित कदमों पर भी चर्चा की है जिसे सरकार और नागरिक समाज संस्थानों को इस समस्या का समाधान करने के लिए तुरंत उठाना चाहिए।

घरेलू हिंसा से पीड़ितों की स्थिति को बिगाड़ सकता है और साथ ही नए पीड़ित भी पैदा कर सकता है। उन्होने उन संभावित कदमों पर भी चर्चा की है जिसे सरकार और नागरिक समाज संस्थानों को इस समस्या का समाधान करने के लिए तुरंत उठाना चाहिए। 24 मार्च 2020 की रात को, तीन सप्ताह के लिए (अब 4 मई तक विस्तारित) देश में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा करते हुए प्रधान मंत्री मोदी ने रामायण से लक्ष्मणरेखा का उदाहरण देते हुए इसके और घर की सीमा के बीच की समानताओं का उल्‍लेख किया। हम में से बहुत से लोग तुरंत इन प्रतिबंधों के कारण हमारे सामान्‍य जीवन और कार्य में आने वाले व्यवधानों के बारे में विचार करने लगे। इस महामारी के बारे में नए सिरे से सोचने तथा खुद की रक्षा करने के संबंध में भी चिंता प्रकट हुई ।

जो अपने दुराचारियों के साथ रह रहे थे, उनके लिए अब रेखा के दोनों ओर खतरा मंडरा रहा था।

अत्यधिक संक्रामक कोरोनावायरस के लिए अभी तक कोई वैक्सीन या कोई प्रमाणित इलाज उपलब्ध न हो पाने के कारण इस बीमारी के प्रसार को कम करने के लिए ‘सामाजिक दूरी’, एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में उभरी है और दुनिया भर में सरकारों द्वारा अलग-अलग स्तर के लॉकडाउन लागू किए जा रहे हैं। घर पर रहने के भयावह आदेशों के परिणामस्‍वरूप दोनों, विकसित एवं विकासशील देशों से अचानक घरेलू हिंसा की खबरों में एक बड़ा उछाल आया है।

घर पर रहना असुरक्षित है?

भारत में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (2018) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 1,03,272 महिलाओं ने "पति या उनके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता" की शिकायत दर्ज कराई है, जो महिलाओं के खिलाफ सभी रिपोर्ट किए गए अपराधों की सबसे बड़ी श्रेणी (एक तिहाई) है। राष्ट्रीय महिला आयोग को 23 मार्च से 10 अप्रैल के बीच ऐसे 123 'ईमेल' प्राप्त हुए हैं, जिससे घरेलू हिंसा की शिकायतों की तीव्र वृद्धि ज़ाहिर होती है। केरल और पंजाब जैसे राज्य सरकारों ने और महिला आयोगों ने भी इस खतरनाक प्रवृत्ति पर गौर किया है।

सामान्य समय में भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों की कम रिपोर्टिंग की समस्‍या रहती है। सामाजिक कलंक के अलावा, इसका एक महत्वपूर्ण कारण अपराधी(यों) द्वारा बदला लिए जाने का डर भी है। लॉकडाउन के दौरान आवाजाही में बाधा होने के कारण माता-पिता के घर जैसे सुरक्षित स्थान पर जाने का विकल्प समाप्‍त हो जाता है, अत: इस दौरान घरेलू दुर्व्‍यवहार या हिंसाओं की कम रिपोर्टिंग की संभावना और भी बढ़ जाती है। दुर्व्‍यवहार करने वाले के साथ कैद हो जाने के कारण, फोन कॉल कर अपनी स्थिति के बारे में अधिकारियों, दोस्तों या रिश्तेदारों से बात करना मुश्किल हो सकता है 11 भले कुछ महिलाएं मदद लेने के लिए इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम हो सकती हैं, लेकिन अशिक्षित एवं गरीब महिलाओं के लिए, ऐसी परिस्थिति में, शिकायत को दर्ज करने की संभावना और धूमिल हो जाती है क्योंकि वे आमतौर पर इसके लिए डाक का इस्तेमाल करती थीं।

लॉकडाउन की स्थिति न केवल मौजूदा पीड़ितों के साथ होने वाली हिंसा को बढ़ा सकती है, बल्कि नए पीड़ित भी बना सकती है। अचानक पूरे दिन घर में रहने की अप्राकृतिक स्थिति, हर दिन बिना आगंतुकों के, और सामान्य से अधिक खाली समय अपने आप में कई मनोवैज्ञानिक मुद्दों का कारण बन सकता है। इसके साथ, घातक वायरस का डर और काम एवं वित्तीय सुरक्षा के बारे में अनिश्चितता भी मौजूद रहती है। जैसे-जैसे हम सामाजिक क्रम के निचले स्‍तर की ओर जाते हैं, दैनिक वेतन के अभाव में बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और नियमित आपूर्ति तक पहुंच से संबंधित तनाव भी नज़र आते ते हैं2 । घबराहट के इस समय में, ऐसी स्थितियों की भी कल्पना की जा सकती है जहां वायरस के संक्रमण का बहाना बना कर घर के भीतर किसी को अलग-थलग किया जाता है या किसी का बहिष्‍कार किया जाता है - जो भावनात्मक शोषण और मानसिक उत्पीड़न को गहरा करता है।

वास्तव में, आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी को देखते हुए, नौकरियां खोने और व्‍यवसाय विफल हो जाने के कारण लॉकडाउन के बाद भी मानसिक तनाव से प्रेरित दुर्व्‍यवहार एवं हिंसा भारी मात्रा में जारी रहेगी3 । नौकरियां महिलाएं भी खोएँगी। वित्तीय स्वतंत्रता के इस नुकसान की कीमत, इनमे से कुछ महिलाओं को घर पर अपने सशक्‍त महसूस करने और सौदेबाजी की शक्ति खोकर चुकानी पड़ेगी। महिलाओं की कमजोर स्थिति उनके साथ दुर्व्यवहार करने वालों को और साहस दे सकती है।

वर्तमान कार्रवाई: राज्य और नागरिक समाज क्या कर सकते हैं

कोविड-19 ने ऐसा परिदृश्‍य प्रस्‍तुत किया है जिसमें घरेलू दुर्व्यवहार घटनाएं बढ़ी हैं, और पीड़ितों द्वारा रिपोर्ट करने और उनकी मदद करने में अधिक जटिलता आई है। घरेलू दुर्व्यवहार की समस्‍या का समाधान करने के लिए मौजूदा तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है, साथ ही इन असाधारण परिस्थितियों के अनुरूप नए समाधानों पर विचार-विमर्श भी किया जाना चाहिए। जिन मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है और जो उपाय किए जा सकते हैं उनकी व्यवहार्यता लॉकडाउन और लॉकडाउन के बाद की अवधि में अलग-अलग होगी। यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि ये उपाय शिक्षा के स्तर, प्रौद्योगिकी तक पहुंच और इसे उपयोग करने की क्षमता के स्‍तर पर प्रभावशाली हों।

घरेलू हिंसा से निपटना, वर्तमान में, कोविड-19 संकट का समाधान करने के लिए विकसित की जा रहीं राष्ट्रीय प्रतिक्रिया योजनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। नीति के उच्चतम स्तरों पर मुद्दे की स्वीकार्यता और प्राथमिकता दुर्व्यवहार करने वाले लोगों को एक मजबूत संदेश दे सकती है और निवारक के रूप में कार्य कर सकती है। कई लोगों का मानना ​​है कि वर्तमान संकट में प्रधान मंत्री मोदी के नेतृत्व ने प्रभावी भूमिका निभाई है; राष्‍ट्र के नाम उनके संबोधनों और प्रतीकात्मक पहलों को लाखों भारतीयों द्वारा सराहा गया है। घरेलू सद्भाव पर ध्यान केंद्रित करने से कई दुर्व्यवहार पीड़ितों को बचाया जा सकता है। इसे टीवी और रेडियो पर एक अभियान द्वारा समर्थित किया जा सकता है, जिसमें फिल्म कलाकार तथा क्रिकेटरों जैसी मशहूर हस्तियों द्वारा संदेश दिए गए हों 4 । इसके अलावा, जब मामलों की पहचान की जाती है और कार्रवाई की जाती है तो इन्हें मीडिया द्वारा, पहचान गुप्‍त रखते हुए, प्रचारित किया जाना चाहिए।

फ्रांस में, पीड़ितों को घरेलू हिंसा की रिपोर्ट दवाई दुकानों में करने की सलाह दी गयी है, और यदि दुर्व्यवहार करने वाला व्‍यक्ति साथ हो तो किसी कोड का उपयोग करने को कहा गया है। बाद में दवाई दुकान वाले पुलिस को सूचित करते हैं। भारत में लॉकडाउन के दौरान इसी प्रकार की प्रणाली स्थापित की जा सकती है, क्योंकि कुछ दवाई एवं किराने की दुकानों को प्रत्येक क्षेत्र में खुले रहने अनुमति दी गयी है और आवश्यक वस्‍तुओं को खरीदने के लिए थोड़ी दूरी पर चलना ज्यादातर स्थानों में स्वीकार्य है। स्थानीय अधिकारियों को मुखबिरों को आश्वस्त करना चाहिए कि उनकी पहचान का खुलासा नहीं किया जाएगा। इसके अलावा, महिलाओं द्वारा 'कर्फ्यू पास' (आवश्यक सेवाओं तथा आपातकालीन आवाजाही आदि का लाभ उठाने के लिए एक निर्धारित अवधि के लिए जारी किया गया) के लिए किए गए आवेदनों पर अधिक उदारतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए, ताकि यदि आवश्यक हो तो उनके लिए घरों से बाहर निकलना और मदद लेना संभव हो सके।

कैनडा जैसे देश लिंग आधारित हिंसा के कारण घर से भागने वालों के आश्रयों में निवेश कर रहे हैं। संसाधनों को यह सुनिश्चित करने के लिए समर्पित किया जा रहा है कि आश्रयों में कोई भीड़भाड़ न हो और सामाजिक दूरी का अनुपालन किया जाए। जैसा कि भारत में कोरोना रोगियों के लिए क्‍वारंटीन वार्ड स्थापित करने हेतु होटल के कमरों तथा स्टेडियम जैसे स्थानों का उपयोग किया जा रहा है, दुर्व्यवहार पीड़ितों के लिए भी ऐसे आश्रय प्रदान करना उसी प्रयास का हिस्सा हो सकता है।

स्थानीय एनजीओ उन मामलों पर नज़र रख सकते हैं जिनकी जानकारी उन्हें लॉकडाउन से पहले आए फोन कॉलों से थी, और दोस्तों एवं रिश्तेदारों को पीड़ितों के संपर्क में रहने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। कुछ मामलों में पीड़ित और अपराधी के दूरस्थ परामर्श से मदद मिल सकती है।

जहां संभव हो वहाँ ऑनलाइन सर्वेक्षण के माध्यम से नए पीड़ितों की पहचान करने में मदद मिल सकती है। राज्य महिला आयोगों द्वारा ऐप और ईमेल-आधारित रिपोर्टिंग को बढ़ावा देना, इस दिशा में, एक सरहनीय एवं स्वागत योग्य कदम है।

सूक्ष्‍म वित्‍तीय संस्थान - विशेष रूप से वो जो एसएजजी (स्व-सहायता समूह) पर ध्यान केंद्रित करते हैं, इस संबंध में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पहले से मौजूद खुद के समपारकों का लाभ उठाते हुए वे वित्तीय कठिनाई के इस समय में शिकायत केन्द्रों के साथ-साथ आजीविका समर्थन के प्रदाताओं के रूप में कार्य कर सकते हैं।

इस तरह के सभी उपायों के लिए धन की आवश्यकता होती है, और कोई यह तर्क दे सकता है कि अभी पहले से ही राज्य के संसाधनों का पूरा उपयोग किया जा रहा है। साल-दर-साल, यह देखा जाता है कि महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के लिए बजटीय आवंटनों का पूरा उपयोग नहीं किया जाता है। इस बात पर हाल हीं में ध्यान दिया गया है कि 2013 में जब से 'निर्भया फंड' की स्‍थापना की गई है, मंत्रालयों ने इसका केवल 35 प्रतिशत हीं इस्तेमाल किया था। हलकी अब तक फंड का ध्यान सार्वजनिक स्थानों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाते हैं पर रहा है, पर वर्तमान स्थिति घरेलू दुर्व्यवहार पीड़ितों की सहायता के लिए एक बड़े आवंटन की मांग कर रहा है।

दुर्व्यवहार करने वाले लोगों के साथ बंद पीडि़तों की मदद करने के लिए ज्यादा देरी नहीं करनी चाहिए। त्वरित कार्रवाई की योजना बनाने और स्थानीय सरकारों, जमीनी स्तर के संगठनों एवं समुदायों द्वारा इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए एक साथ समन्वित प्रयास किए जाने पर तत्काल ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

  1. यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए हेल्पलाइन चलाने वाली दिल्ली स्थित एनजीओ जगोरी ने, कॉल में 50 प्रतिशत की गिरावट अनुभव की है।
  2. ऐसे हीं कारक परिवार में बच्चों या किसी और कमजोर के साथ दुर्व्यवहार में वृद्धि का कारण भी बन सकते हैं। यह पोस्ट विवाहित महिलाओं पर केंद्रित है।
  3. 2005-2016 की अवधि के लिए 31 विकासशील देशों के प्रतिनिधि आंकड़ों पर आधारित द वर्ल्ड बैंक इकोनॉमिक रिव्यू में प्रकाशित, भालोत्रा एवं अन्य (2019) द्वारा किए गए, हाल ही के अध्‍ययन से पता चलता है कि पुरुष बेरोजगारी दर में 1 प्रतिशत की वृद्धि महिलाओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा की घटनाओं में 0.05 प्रतिशत अंक या 2.75 प्रतिशत तक वृद्धि से जुड़ी है।
  4. उत्तर प्रदेश राज्य के पुलिस द्वारा मास्‍क पहनी हुए एक महिला के स्केच के साथ इस संदेश विज्ञापन निकालना एक सराहनीय पहल है - "कोरोना को दबाएं, अपनी आवाज को नहीं"।

लेखक परिचय: नलिनी गुलाटी आईजीसी (अंतर्राष्ट्रीय विकास केंद्र) के इंडिया सेंट्रल प्रोग्राम में कंट्री इकोनॉमिस्ट और आइडियास फॉर इंडिया की प्रबंध संपादक हैं।

2 Comments:

By: Dr Gouri Singh Parte

Very nice

By: S L Sharma

घरेलू हिंसा अधिनियम को और अधिक कठोर बनाया जाना चाहिए। अधिवक्ता एस एल शर्मा 9312231850, Our youtube chanel ( legal expert in delhi )

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