कृषि

सूचना ही शक्ति है : आईसीटी और कृषि उत्पादकता

  • Blog Post Date 22 मई, 2025
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विकासशील देशों में कृषि की कम उत्पादकता का एक कारण यह है कि किसानों के पास आधुनिक कृषि विधियों के उपयोग के बारे में पर्याप्त जानकारी या मार्गदर्शन की कमी है। इस लेख में, बांग्लादेश में किसानों को कृषि प्रथाओं के बारे में विशेषज्ञों से परामर्श करने में सक्षम बनाने वाले कॉल सेंटर सहित सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के पहल के प्रभाव की जांच की गई है। यह पाया गया कि हस्तक्षेप के बाद, फोन सेवा तक पहुँच वाले गाँवों में भूखंड स्तर पर कृषि संबंधी अकुशलता में 50% की कमी देखी गई।

भूमि या जलवायु जैसे भौगोलिक कारकों में अंतर के बावजूद, गरीब देशों में खेती के कम उत्पादक होने का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि किसान आधुनिक तकनीकों का उपयोग नहीं कर रहे हैं और अभी भी पुरानी पारम्परिक कृषि पद्धतियों का पालन करते हैं (फोस्टर और रोसेनज़वेग 2010)। साक्ष्य दर्शाते हैं कि किसानों के पास अक्सर आधुनिक कृषि विधियों के उपयोग के बारे में पर्याप्त जानकारी और मार्गदर्शन की कमी होती है (मैग्रुडर 2018)। विशेषज्ञ सलाह और प्रशिक्षण तक पहुँच से किसानों को बेहतर कृषि पद्धतियों के बारे में जानने में मदद मिल सकती है (एंडरसन और फेडर 2004), लेकिन ये व्यक्तिगत सेवाएँ महंगी हैं तथा कई किसानों की पहुँच से बाहर हैं (फ़ैब्रेगास एवं अन्य 2019)। क्या आधुनिक कृषि पद्धतियों के बारे में दूर से मिलने वाली सलाह तक पहुँच से कृषि उत्पादन में सुधार होता है? हम अपने एक हालिया अध्ययन (चक्रवर्ती, नेगी और राव 2025) में,  यह पता लगाते हैं कि बांग्लादेश में विशेष रूप से सूचना के प्रसार लिए मोबाइल फोन-आधारित सलाह वाले सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) हस्तक्षेप से धान उत्पादन में अक्षमताओं को दूर करने में कैसे मदद मिली है।

कृषि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बना हुआ, जिससे 40% से अधिक आबादी को रोजगार मिलता है और यह ग्रामीण आजीविका में महत्वपूर्ण योगदान देता है (एशियाई विकास बैंक, 2023)। अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद, यह क्षेत्र विशेष रूप से धान की खेती में कम उत्पादकता का अनुभव कर रहा है। बांग्लादेश में धान की औसत उपज लगभग 4.9 टन प्रति हेक्टेयर है, जो अन्य प्रमुख धान उत्पादक देशों की तुलना में काफी कम है (आकृति-1)। उत्पादकता में इस अंतर का कारण अक्सर आधुनिक कृषि पद्धतियों के बारे में जानकारी का अभाव, उच्च उपज वाले इनपुट के सीमित उपयोग और उप-इष्टतम यानी सबऑप्टीमल संसाधन आवंटन (आलम और किजिमा 2024) को माना जाता है।

आकृति-1. शीर्ष 20 धान उत्पादक देशों की धान की उपज

नोट : आकृति में शीर्ष 20 धान उत्पादक देशों में धान की उपज (पट्टियाँ) और कुल धान उत्पादन (बिंदीदार रेखा) को दर्शाया गया है।

स्रोत : एफएओस्टैट के डेटा पर आधारित।

ग्रामीण बांग्लादेश में, अधिकांश किसान पारम्परिक खेती के तरीकों और ज्ञान के अनौपचारिक स्रोतों, जैसे पड़ोसी किसानों या स्थानीय व्यापारियों पर निर्भर होते हैं, जो हमेशा सटीक या वर्तमान समय के हिसाब से ताज़ा जानकारी प्रदान नहीं कर पाते हैं। इसके इलावा, खेती के ज्ञान का प्रसार करने के व्यक्तिगत कृषि विस्तार सेवाओं की पहुँच सीमित है और उन्हें अपनाना महंगा है। इससे बड़ी संख्या में किसान समय पर विशेषज्ञ मार्गदर्शन प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं।

आईसीटी-आधारित विस्तार सेवाओं का वादा

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, बांग्लादेश सरकार ने वर्ष 2014 में कृषि कॉल सेंटर शुरू किए। इन केंद्रों का उद्देश्य मोबाइल फोन के माध्यम से सस्ती, समय पर और ज़रूरत के हिसाब से सलाह प्रदान करना था, जिससे किसान फसल प्रबंधन, कीट नियंत्रण, उर्वरक उपयोग और अन्य कृषि प्रथाओं के बारे में विशेषज्ञों से सलाह ले सकें। इस हस्तक्षेप का उद्देश्य ख़ासतौर पर छोटे किसानों के बीच सूचना के अंतर को पाटना और उनकी उत्पादकता में सुधार लाना था।

हम अपने अध्ययन में कृषि कॉल सेंटर हस्तक्षेप (केसीसीआई) के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए वर्ष 2011-2012, 2015 और 2018-2019 में आयोजित बांग्लादेश एकीकृत घरेलू सर्वेक्षण (बीआईएचएस) से राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि पैनल डेटासेट का लाभ उठाते हैं। हम अलग-अलग क्षेत्रों में और समय के साथ फोन सेवा की उपलब्धता में भिन्नता और 2014 में कॉल सेंटर सेवा की शुरूआत का उपयोग करते हैं ताकि व्यक्तिगत भूखंडों के स्तर पर कृषि अकुशलता पर इसके प्रभाव को मापा जा सके। आकृति-2 में समय के साथ नमूना गाँवों में फोन सेवा की उपलब्धता में वृद्धि को दर्शाया गया है।

आकृति-2. पिछले कुछ वर्षों में सर्वेक्षित गाँवों की फोन कवरेज में वृद्धि

स्रोत : बांग्लादेश एकीकृत घरेलू सर्वेक्षण (बीआईएचएस)

कृषि अकुशलता में उल्लेखनीय कमी

हमारा मुख्य परिणाम चर धान उत्पादन में अकुशलता का माप है। इसे मापने के लिए, हम बीआईएचएस डेटासेट से भूखंड-स्तरीय इनपुट के उपयोग और स्थान डेटा को जोड़ते हैं और वैश्विक कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्र (जीएईज़ेड) डेटासेट से सम्भावित उपज डेटा प्राप्त करते हैं। सम्भावित उपज, प्रत्येक जीएईज़ेड प्लॉट की भौगोलिक बंदोबस्त को देखते हुए, खेती के इनपुट के प्रत्येक सम्भावित संयोजन- अर्थात् जल आपूर्ति के प्रकार और पूरक इनपुट के स्तर के लिए अधिकतम प्राप्त करने-योग्य उपज को दर्शाती है। सबसे पहले, हम प्रत्येक परिवार के स्थान को जीएईज़ेड प्लॉट से मिलाते हैं और इनपुट उपयोग के अनुरूप सम्भावित उपज की गणना करते हैं। फिर हम भूखंड-स्तरीय अक्षमता माप की गणना वास्तविक और सम्भावित उपज के बीच प्रतिशत अंतर के रूप में करते हैं, जो भौगोलिक स्थितियों और इनपुट उपयोग दोनों के सम्बन्ध में भिन्न होता है।

हमारे अध्ययन का एक मुख्य परिणाम यह है कि इस हस्तक्षेप से फोन सेवा की उपलब्धता वाले गाँवों में भूखंड-स्तर की अकुशलता में 50% की कमी आई। इस प्रकार, किसानों को विशेषज्ञ सलाह लेने में सक्षम बनाकर, कॉल सेंटर सेवा ने उन्हें इनपुट का बेहतर उपयोग करने, आधुनिक तरीके अपनाने और अकुशलता को कम करने में मदद की। आगे, हम यह भी पाते हैं कि अकुशलता पर हस्तक्षेप का प्रभाव मुख्य रूप से उन भूखंडों के कारण होता है जहाँ वर्षा आधारित खेती का उपयोग किया जाता है, न कि उन भूखंडों द्वारा जिनमें ट्रैक्टर का उपयोग किया जाता है। आकृति-3 में इन परिणामों को दर्शाया है।

आकृति-3. हस्तक्षेप के बाद भूखंड-स्तर की अकुशलता में कमी

नोट : (i) दोनों प्रतिगमन के लिए परिणाम चर धान उत्पादन में भूखंड-स्तर की अकुशलता हैं। प्रतिगमन 1 में हस्तक्षेप के समग्र प्रभाव पर ध्यान केंद्रित है, जबकि प्रतिगमन 2 में भूखंड स्तर पर इनपुट उपयोग द्वारा हस्तक्षेप के विषम प्रभाव पर ध्यान केंद्रित है। (ii) गुणांक (1) प्रतिगमन 1 से समग्र प्रभाव के बिन्दु अनुमान को 90% विश्वास अंतराल के साथ दर्ज करता है। इसी तरह, गुणांक (2) और (3) प्रतिगमन 2 से 90% विश्वास अंतराल के साथ ट्रिपल-अंतर गुणांक के बिन्दु अनुमान प्रस्तुत करते हैं।

तकनीकी नोट : (i) डिफरेंस-इन डिफरेंस का उपयोग दो समूहों में समय के साथ परिणामों के विकास की तुलना करने के लिए किया जाता है, जहाँ एक पर किसी घटना या नीति का प्रभाव पड़ा था - इस मामले में, कॉल सेंटर सेवा तक पहुँच- जबकि दूसरे पर नहीं पड़ा था। 'ट्रिपल डिफरेंस' अनुमान वर्षा आधारित खेती और ट्रैक्टर का उपयोग करने वाले भूखंडों के औसत परिणामों और सिंचाई का उपयोग करने वाले भूखंडों के औसत परिणामों और ट्रैक्टर का उपयोग न करने वाले भूखंडों के औसत परिणामों में अंतर को दर्शाता है। (ii) 90% विश्वास अंतराल यह दर्शाता है कि यदि प्रयोग को नए नमूनों के साथ बार-बार दोहराया जाए, तो 90% बार गणना किए गए विश्वास अंतराल में सही प्रभाव होगा।

बेहतर कुशलता के पीछे के तंत्र

हम आगे उन तंत्रों का पता लगाते हैं जो अकुशलता में देखी गई कमी को प्रेरित करते हैं। एक प्रमुख तंत्र हस्तक्षेप के बाद इनपुट के उपयोग की मात्रा में परिवर्तन था। वर्षा आधारित जल का उपयोग करने वाले किसानों ने उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा दिया। इसके अतिरिक्त, खेती के लिए समर्पित श्रम-घंटों में वृद्धि के प्रमाण मिले। इससे पता चलता है कि हस्तक्षेप से पहले, वर्षा आधारित भूखंडों में इनपुट का उपयोग कम और संभवतः उप-इष्टतम था, लेकिन हस्तक्षेप के बाद यह बढ़ गया।

आकृति-4. हस्तक्षेप के बाद वर्षा आधारित किसानों द्वारा इनपुट उपयोग की मात्रा में परिवर्तन

नोट : (i) प्रत्येक परिणाम चर के लिए, आंकड़े 90% विश्वास अंतराल के साथ एक ही प्रतिगमन से 'ट्रिपल डिफरेंस' गुणांक के बिन्दु अनुमानों को दर्शाते हैं। (ii) पैनल (ए) उन भूखंडों के सन्दर्भ में हस्तक्षेप के प्रभाव को दर्शाता है, जिन्होंने वर्षा आधारित खेती का उपयोग करने की सूचना दी गई। इसी तरह, पैनल (बी) उन भूखंडों के सन्दर्भ में हस्तक्षेप के प्रभाव को दर्शाता है, जिन्होंने ट्रैक्टरों का उपयोग करने की सूचना दी गई थी।

इसके विपरीत, जिन किसानों की पहले से ही ट्रैक्टर जैसे उच्च-स्तरीय इनपुट तक पहुँच थी, उन्होंने इनपुट उपयोग में बहुत कम या कोई बदलाव नहीं दर्शाया। यह इस विचार को पुष्ट करता है कि हस्तक्षेप विशेष रूप से उन किसानों के लिए फायदेमंद था, जो पारम्परिक खेती के तरीकों का अभ्यास करते थे और विशेषज्ञ सलाह तक उनकी पहले से पहुँच नहीं थी। साथ ही, हमें हस्तक्षेप के बाद विस्तार सेवाओं के साथ बढ़ी हुई बातचीत के सबूत मिलते हैं। हस्तक्षेप के बाद, मोबाइल फोन की सुविधा वाले गाँवों में वर्षा आधारित किसानों ने कृषि एजेंटों के साथ व्यक्तिगत परामर्श या विस्तार अधिकारियों के दौरे की अधिक सम्भावना बताई। यह इस बात का संकेत है कि कॉल सेंटर विस्तार एजेंटों से व्यक्तिगत परामर्श की उपयोगिता को प्रदर्शित करने में सफल रहे।

भौगोलिक नेटवर्क की भूमिका और स्पिलओवर प्रभाव

अध्ययन से एक और महत्वपूर्ण जानकारी यह मिलती है कि हस्तक्षेप के प्रभाव को बढ़ाने में भूगोल-आधारित सामाजिक नेटवर्क की भूमिका है। हमने पाया कि भौगोलिक दृष्टि से टेलीफोन सुविधा वाले परिवारों के नज़दीक रहने वाले किसानों पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। इससे पता चलता है कि कृषि संबंधी ज्ञान समुदायों के भीतर फैल जाता है, जिससे सेवा तक सीधी पहुँच न रखने वाले लोगों को भी लाभ होता है।

हमने यह भी पाया कि भौगोलिक दृष्टि से दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थित परिवार, जिनके सामाजिक सम्बन्ध कम थे, जैसा कि 5 किलोमीटर के दायरे में परिवारों की संख्या से निर्धारित होता है, हस्तक्षेप से सबसे अधिक लाभान्वित हुए। यह उल्लेखनीय है क्योंकि पारम्परिक कृषि विस्तार सेवाएँ अक्सर ऐसे दूरदराज़ के किसानों तक पहुँचने में विफल रहती हैं। कॉल सेंटरों ने पारम्परिक, प्रायः दुर्गम सूचना स्रोतों पर अपनी निर्भरता कम करके, एक महत्वपूर्ण सूचना अंतर को पाट दिया।

निष्कर्ष और निहितार्थ

इस अध्ययन के निष्कर्ष कृषि उत्पादकता में सुधार लाने में आईसीटी की क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। हस्तक्षेप ने किसानों को समय पर और प्रासंगिक जानकारी प्रदान करके, किसानों द्वारा आधुनिक इनपुट्स का उपयोग बढ़ाया और उत्पादन अक्षमताओं को कम किया। चूंकि विकासशील देश कृषि की कम उत्पादकता से जूझ रहे हैं, इसलिए उच्च उत्पादकता के लिए आईसीटी-आधारित सलाहकार सेवाओं को बढ़ाना और उनका अनुकूलन अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।

हमारा अध्ययन समान कृषि चुनौतियों का सामना करने वाले विशेष रूप से बांग्लादेश, और सामान्य रूप से अन्य विकासशील देशों के लिए कई महत्वपूर्ण नीतिगत अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। मोबाइल-आधारित सलाहकार सेवाओं का विस्तार करने से विशेष रूप से छोटे और दूरदराज़ के किसानों के लिए ज़रूरत-विशिष्ट और समय पर महत्वपूर्ण जानकारी देने में मदद मिल सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी में सुधार करने से कृषि उत्पादकता को बढ़ाकर ऐसी सेवाओं के दायरे और प्रभावशीलता का विस्तार करने में मदद मिल सकती है। अध्ययन में पाया गया है कि पारम्परिक, कम लागत वाले इनपुट का उपयोग करने वाले किसानों को सबसे अधिक लाभ हुआ, जिससे पता चलता है कि इन किसानों के लिए सलाहकार सेवाएँ तैयार करने से उत्पादकता में सबसे अधिक लाभ हो सकता है। इसके अतिरिक्त, कृषि ज्ञान का प्रसार करने के लिए मौजूदा सामाजिक नेटवर्क का लाभ उठाने से इन सलाहों के प्रभाव को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। अध्ययन में यह बात भी सामने आती है कि भौगोलिक दृष्टि से दूरदराज़ के किसान, जिनके पास अक्सर पारम्परिक विस्तार सेवाओं तक पहुँच नहीं होती, उन्हें कॉल सेंटर सहायता से सबसे अधिक लाभ हुआ। इस प्रकार, ऐसे किसानों के लिए लक्षित आउटरीच कार्यक्रमों से अकुशलता को कम करने और उत्पादकता को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। समय-समय पर प्रशिक्षण, फॉलो-अप कॉल और व्यक्तिगत प्रतिक्रिया के माध्यम से आईसीटी-आधारित सेवाओं के साथ किसानों की सहभागिता को बनाए रखना आधुनिक इनपुट और प्रथाओं को निरंतर अपनाने और उनका उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में आवश्यक हो सकता है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : अरण्य चक्रवर्ती अहमदाबाद विश्वविद्यालय के अमृत मोदी स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीति के सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने 2023 में मैकगिल विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की। दिग्विजय एस. नेगी अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। इससे पहले वे इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर), मुंबई में असिस्टेंट प्रोफेसर और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पोस्टडॉक्टरल फेलो थे। दिग्विजय ने भारतीय सांख्यिकी संस्थान, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र में पीएचडी और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री प्राप्त की है। राहुल राव भी अहमदाबाद विश्वविद्यालय के अमृत मोदी स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने आईआईएम बैंगलोर से अर्थशास्त्र में पीएचडी पूरी की और आईआईटी कानपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की।

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