भारत में दर्ज बलात्कार के मामलों में से 30% से अधिक मामले 18 साल से कम उम्र की बालिकाओं के साथ हुए हैं और इसी उम्र की लड़कियों को सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है। बालिकाओं को ख़तरे में डालने वाला एक प्रमुख कारक पर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं का अभाव है। इस लेख में दर्शाया है कि जहाँ स्त्री-पुरुष के लिए स्वतंत्र शौचालयों की सुविधा होती है वहाँ छात्राओं की संख्या में 10% की वृद्धि हुई है और बाल बलात्कार के मामलों में 2.6% की कमी आई है, जबकि यूनिसेक्स शौचालय अप्रभावी पाए गए हैं। यह प्रभाव मुख्य रूप से सह-शिक्षा और माध्यमिक विद्यालयों में बने शौचालयों के कारण पाया गया है।
इस लेख का एक अंग्रेज़ी संस्करण पहले वॉक्सडेव पर प्रकाशित हो चुका है।
बच्चे अपने दिन का बड़ा समय स्कूल में बिताते हैं, जो उनके लिए सुरक्षा और सीखने को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया एक स्थान है। हालांकि, साक्ष्य दर्शाते हैं कि इन स्थानों में कभी-कभी छिपे हुए खतरे भी हो सकते हैं (इवांस एवं अन्य 2023)। भारत में बाल यौन अपराधों के बारे में किया गया शोध स्कूली वातावरण में हो रहे दुर्व्यवहार की व्यापकता पर प्रकाश डालता है (चौधरी एवं अन्य 2018)। कर्नाटक के वर्ष 2021 और 2022 के बाल यौन हिंसा से संबंधित मासिक आँकड़े दर्शाते हैं कि अप्रैल, मई के दौरान इन मामलों में 20% की कमी आती है तथा इसी समय राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में छुट्टियाँ होती हैं (आकृति-1)। यह मौसमी पैटर्न, कि शैक्षणिक सत्र के दौरान बाल बलात्कार की घटनाएँ बढ़ जाती हैं और स्कूल की छुट्टियों के दौरान कम हो जाती हैं, यह दर्शाता है कि बच्चों के लिए स्कूल में सुरक्षित वातावरण का अभाव भी हो सकता है।
आकृति-1. मौसम के अनुसार बाल यौन शोषण के मामलों की स्थिति

टिप्पणी : इस ग्राफ में वर्ष 2021 और 2022 के मासिक आँकड़ों के आधार पर दर्शाया है कि कर्नाटक में बाल यौन शोषण के मामले पूरे वर्ष में कैसे बदलते हैं। कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य था जहाँ से हमें यह विस्तृत जानकारी मिल सकी।

बिना पर्याप्त बुनियादी स्वच्छता ढाँचे वाले स्कूल बालिकाओं के लिए जोखिम पैदा करते हैं
अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाएँ इस समस्या को बढ़ाने का एक बड़ा कारण होती हैं। वर्ष 2020 में गुजरात में हुई एक घटना ने इस मुद्दे को पुनः सुर्खियों में ला दिया था, जब एक स्कूली छात्रा स्कूल के पास शौच के लिए एकांत जगह तलाश रही थी और उसके साथ बलात्कार किया गया। राज्य को 'खुले में शौच मुक्त' घोषित किए जाने के बावजूद, प्रयोग करने-योग्य शौचालयों के अभाव के चलते उसे इस दर्दनाक स्थिति का सामना करना पड़ा था। यह कोई इकलौता मामला नहीं है। भारत में 22% स्कूलों में लड़कियों के लिए उचित सुविधाओं का अभाव है और जिन स्कूलों में स्त्री-पुरुष के लिए स्वतंत्र शौचालयों की व्यवस्था नहीं है, उनमें एक चौथाई लड़कियाँ अपने मासिक धर्म के दौरान कक्षाओं से अनुपस्थित रहती हैं (यूनिसेफ, 2024)।
उचित शौचालयों के बिना, जिनमें से कई में दरवाज़े और दीवारें नहीं होतीं, लड़कियों को खुले में शौच का जोखिम उठाना, पानी कम या न पीना और मासिक धर्म के दौरान स्कूल से अनुपस्थित रहने जैसे मुश्किल फैसले लेने पड़ते हैं (तट्टीपल्ली 2024)। लड़कियों और लड़कों के लिए अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराने से लड़कियों की सुरक्षा दो महत्वपूर्ण तरीकों से बढ़ सकती है। पहला, इससे लड़कियों को एक निजी, सुरक्षित स्थान मिलने से उनका खुले में शौच करना कम हो जाता है, जिससे सम्भावित हमलावरों के सामने पड़ने की सम्भावना कम हो जाती है। दूसरा, सह-शिक्षा वाले स्कूलों में चूँकि जोखिम अक्सर अंदर से ही होता है, स्त्री-पुरुष के लिए स्वतंत्र स्वच्छता सुविधाओं के होने से महिलाओं और पुरुषों के बीच प्रत्यक्ष अंतर का निर्माण होता है, जिससे उत्पीड़न और यौन शोषण की सम्भावना कम हो जाती है।
स्त्री-पुरुष के लिए स्वतंत्र शौचालयों के निर्माण से स्कूलों में बाल यौन शोषण में कमी आती है
हालांकि स्कूल स्वच्छता के स्वास्थ्य और शैक्षिक लाभ सर्वविदित हैं (कैमरन एवं अन्य 2019, एडुकिया 2017), लेकिन लैंगिक अपराध पर इसके प्रभाव का अभी तक पूरी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है। हमारा शोध इस बात का पहला प्रमाण प्रस्तुत करता है कि कैसे स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने से भारत में बाल बलात्कार के मामलों में उल्लेखनीय कमी आती है (गाओ एवं अन्य 2025)। हम विशेष रूप से यह पाते हैं कि सभी प्रकार के स्कूल शौचालयों का एक जैसा निवारक प्रभाव नहीं होता। केवल स्त्री-पुरुष के लिए स्वतंत्र शौचालय ही, ख़ासकर सह-शिक्षा और माध्यमिक विद्यालयों में ऐसे व्यवहारों को प्रभावी ढंग से रोकते हैं, जबकि यूनिसेक्स शौचालयों के होने से ऐसा नहीं होता है।
खुले में शौच से जुड़े यौन अपराधों का उच्च जोखिम भारत में काफी समय से चिंता का विषय रहा है और अधिकांश शोध घरेलू शौचालयों और पीड़ित वयस्क महिलाओं पर केन्द्रित हैं (हुसैन एवं अन्य 2022); स्कूली वातावरण और बाल पीड़ितों के बारे में साक्ष्यों का अभाव है। हमने वर्ष 2005 से 2012 के बीच 600 भारतीय ज़िलों के आँकड़ों का विश्लेषण किया है। यह वह दौर था जब कानूनी बदलावों के होने से उपलब्ध अपराध के आँकड़ों के वर्गीकरण में गड़बड़ी हुई थी।1 स्कूली शौचालयों के रिकॉर्ड और अपराध डेटा के मिलेजुले आँकड़ों का उपयोग करते हुए, हम पाते हैं कि स्त्री-पुरुष के लिए स्वतंत्र शौचालयों की सुविधा पाने वाली छात्राओं में 10% की वृद्धि से बाल बलात्कार के मामलों में 2.6% की कमी आती है। हमारे निष्कर्ष दर्शाते हैं कि यह प्रभाव मुख्य रूप से सह-शिक्षा विद्यालयों में बने शौचालयों के कारण होता है, जहाँ अपराधी संभवतः पुरुष छात्र या कर्मचारी होते हैं। साथ ही, माध्यमिक विद्यालयों में, जहाँ 13-18 वर्ष की आयु के छात्रों को यौन अपराधों का सबसे अधिक खतरा होता है। इसके विपरीत, कम से कम भारत में, यूनिसेक्स शौचालयों से इस तरह का सुरक्षात्मक लाभ नहीं मिला पाता है।
स्कूली शौचालयों और यौन शोषण के बीच कारण-कार्य सम्बन्ध की पुष्टि
हम सम्भावित भ्रामक कारकों की जाँच करते हैं और इस बात का कारण-कार्य सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करते हैं कि क्या स्कूल के शौचालय से बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध कम होते हैं? हमारा विश्लेषण दर्शाता है कि स्कूल के शौचालयों का प्रभाव आर्थिक समृद्धि, कानूनी या पुलिस क्षमता, या अन्य स्कूल अवसंरचना जैसे कारकों से प्रेरित नहीं होता है। प्लेसीबो परीक्षणों से यह भी पता चलता है कि स्कूल के शौचालयों के निर्माण का अन्य यौन अपराधों (उदाहरण के लिए, वयस्क बलात्कार, अन्य लिंग-संबंधी अपराध) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि बाल बलात्कार में कमी का श्रेय विशेष रूप से स्कूल के शौचालयों को दिया जा सकता है, न कि बेहतर पुलिस व्यवस्था या अन्य व्यापक सामाजिक परिवर्तनों को, जो आम तौर पर अपराध को कम करते हैं।
हम इस कारण-सम्बन्ध का और अधिक आकलन करने के लिए, वर्ष 2009 के ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान योजना के बाद शौचालयों के निर्माण में आई तेज़ी का विश्लेषण करते हैं, जिसने बुनियादी स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए शौचालय ब्लॉकों को न्यूनतम स्कूल मानक के रूप में अनिवार्य कर दिया था। आकृति-2 पैनल-ए, शुरुआत में कम शौचालय कवरेज वाले जिलों में वर्ष 2009 के बाद शौचालय निर्माण में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है, जो नीति के प्रभाव की पुष्टि करता है, जबकि पैनल-बी स्कूल की दीवारों जैसे अन्य स्कूल बुनियादी ढाँचे में कोई समान वृद्धि नहीं दर्शाता है। डिफरेंस-इन-डिफरेंस (डीआईडी) दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, पैनल-सी वर्ष 2009 के बाद मजबूत 'उपचार' वाले जिलों (हस्तक्षेप के अधीन) में बाल बलात्कार के मामलों में गिरावट दर्शाता है, जबकि पैनल-डी दर्शाता है कि वयस्क बलात्कार के मामले स्थिर रहे। पैनल-ई और एफ में 'ट्रिपल-डिफरेंस' (डीडीडी) दृष्टिकोण का उपयोग किया है, जिसमें बाल बलात्कार की तुलना अन्य अपराधों से, कम बनाम उच्च शौचालय कवरेज वाले ज़िलों से और वर्ष 2009 से पहले बनाम बाद की अवधि से की गई, जिससे हमारे निष्कर्षों की पुष्टि हुई। इसने इस सम्भावना को भी खारिज कर दिया कि कम रिपोर्टिंग हमारे परिणामों को प्रभावित कर रही थी, क्योंकि यह सम्भव नहीं है कि वर्ष 2009 के बाद केवल कम-शौचालय कवरेज वाले जिलों में बाल बलात्कार के मामलों की रिपोर्टिंग में ही बदलाव आया हो।
आकृति-2. वर्ष 2009 की शैक्षिक योजनाओं का प्रभाव
अधिक समतापूर्ण लैंगिक दृष्टिकोण वाले जिलों में प्रभाव अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं
केवल बाहरी बाधाएँ ही पर्याप्त नहीं हैं। सामाजिक मनोविज्ञान अनुसंधान बताता है कि यौन हिंसा के लिए अपराधियों को दो प्रमुख बाधाओं को पार करना होगा- (i) पहुँच में बाहरी बाधाएँ और (ii) उनकी अपनी आंतरिक बाधाएँ (रूडोल्फ एवं अन्य 2018)। स्त्री-पुरुष के लिए स्वतंत्र शौचालय से पहुँच में बाहरी बाधाओं से निपटने में मदद मिल सकती है, लेकिन पारम्परिक लैंगिक मानदंडों के चलते आंतरिक समस्याओं को बढ़ावा मिलता है। हानिकारक लैंगिक मानदंड लड़कियों के खिलाफ यौन हिंसा को वैध बना सकते हैं, जिससे ऐसे अपराधों की सम्भावना बढ़ जाती है (नोउ वायलेंस इन चाइल्डहुड, 2017), जिससे स्कूल शौचालय प्रावधान के प्रभाव कमज़ोर हो जाते हैं।
स्थानीय संस्कृति की भूमिका की जाँच करने के लिए हम पता लगाते हैं कि क्या शौचालय निर्माण के प्रभाव स्थानीय लैंगिक मानदंडों पर निर्भर करते हैं? हमारे निष्कर्ष दर्शाते हैं कि लैंगिक दृष्टिकोण से अधिक समतापूर्ण जिलों में कई सम्बंधित कारकों जैसे कम बाल वधुओं का होना, पत्नी की पिटाई को कम बर्दाश्त करना, जन्म लिंग अनुपात की विषमता का कम होना, स्त्री-पुरुष के लिए स्कूलों में अलग-अलग शौचालय होना आदि का काफी प्रभाव पड़ता है। जहाँ हानिकारक मानदंड बने रहते हैं, वहाँ यौन अपराधों के विरुद्ध स्कूल शौचालयों की सुरक्षात्मक भूमिका कम हो जाती है।
स्कूल बुनियादी ढाँचा नीति के निहितार्थ
हमारे निष्कर्ष दर्शाते हैं कि स्कूल के शौचालय केवल बुनियादी ढाँचे से कहीं अधिक हैं, वे यौन हिंसा के विरुद्ध एक ढाल भी हैं। हालांकि, इस नीति की सफलता शौचालय के प्रकार, स्कूल की परिस्थिति और स्थानीय संस्कृति पर निर्भर करती है। इसलिए नीति-निर्माताओं को सह-शिक्षा और माध्यमिक विद्यालयों में स्त्री-पुरुष के लिए स्वतंत्र शौचालयों को प्राथमिकता देनी चाहिए जहाँ यौन हिंसा का जोखिम सबसे अधिक है। केवल निर्माण कार्य ही पर्याप्त नहीं होगा, दीर्घकालिक सफलता लैंगिक मानदंडों से निपटने पर निर्भर करती है। ऐसे देश में जहाँ लाखों लड़कियों को बुनियादी सुरक्षा का अभाव है, यह दोहरा दृष्टिकोण स्कूलों को वास्तविक आश्रय स्थल बनाने में सहायक हो सकता है।
टिप्पणी :
- वर्ष 2012 से लेकर, भारत में बलात्कार से संबंधित कानूनी ढाँचे में कई बड़े बदलाव किए गए, जिससे ऐसे अपराधों की रिपोर्टिंग और वर्गीकरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा और अपराध के आँकड़ों में विसंगतियाँ पैदा हुईं। वर्ष 2012 के अंत में लागू किए गए लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो- पीओसीएसओ) अधिनियम ने पीड़ितों के सम्बन्ध में यौन अपराधों की परिभाषा को लिंग-तटस्थ बना दिया। वर्ष 2013 में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम में बलात्कार की कानूनी परिभाषा को और व्यापक बना दिया गया तथा स्पष्ट किया कि शारीरिक प्रतिरोध के न होने का अर्थ सहमति नहीं है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : पेई गाओ सिंगापुर के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में सहायक प्रोफेसर हैं। सिंगापुर आने से पहले, वे एनयूआई-शंघाई में सहायक प्रोफेसर और ग्लोबल नेटवर्क असिस्टेंट प्रोफेसर थीं। पेई ने चीन के शिनान जियाओतोंग विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से मास्टर ऑफ साइंस और पीएचडी की उपाधियाँ प्राप्त की हैं। उनके शोध की रूचि में आर्थिक इतिहास और विकास अर्थशास्त्र शामिल हैं, जिसमें वे शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देती हैं। अदिति कोठारी क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव में एक लिंग विश्लेषक हैं। उन्होंने येल-एनयूएस कॉलेज से स्नातक की डिग्री और हार्वर्ड केनेडी स्कूल से सार्वजनिक नीति में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की है। उनकी वर्तमान शोध रुचि मुख्य रूप से विकास अर्थशास्त्र में है और राजनीतिक अर्थव्यवस्था व सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे पर उनका अधिक ध्यान रहता है। यू-शियांग लेई हांगकांग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने नेशनल ताइवान यूनिवर्सिटी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है तथा एलएसई से अर्थमिति एवं गणितीय अर्थशास्त्र में एमएससी व अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधियाँ प्राप्त की हैं। उनकी वर्तमान शोध रुचि मुख्यतः विकास अर्थशास्त्र में है और उनका ध्यान विशेष रूप से राजनीतिक अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक अवसंरचना पर केन्द्रित रहता है।
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