भारत में, घरों में इनडोर पाइप से पेय जल (आईपीडीडब्ल्यू) की आपूर्ति बहुत सीमित है, और महिलाओं पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि उन्हें बाहर से पानी लाने का बोझ उठाना पड़ता है। यह लेख 2005-2012 के भारत मानव विकास सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए दर्शाता है कि परिवारों को इनडोर पाइप से पेय जल मिलने से रोजगार में- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और गैर-कृषि रोजगार- दोनों के मामले में लैंगिक अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है।
रोजमर्रा की जिंदगी में व्यक्तिगत और घरेलू उपयोग के लिए पानी के महत्व को तब सबसे स्पष्ट रूप से समझा जाता है जब किसी को यह आसानी से उपलब्ध नहीं होता और उसे इसके लिए इंतजार करना पड़ता है और/या इसे दूर से लाना पड़ता है। यह अनुत्पादक बोझ भारत में महिलाओं और बच्चों पर असमान रूप से डाला जाता है। सामाजिक रूप से पुरुषों को परिवार के कमाने वाले सदस्य की भूमिका में माना जाता रहा है और महिलाओं एवं बच्चों- विशेष रूप से लड़कियों को अक्सर घर के लिए पानी और जलाऊ लकड़ी लाना, साफ़-सफाई करना, खाना बनाना और घर का सामान्य संचालन जैसे घरेलू कार्यों की जिम्मेदारियां दी जाती हैं (ओ'रेली 2006, फ्लेचर और अन्य 2017, जयचंद्रन 2019)। पाइप से पानी की आपूर्ति उपलब्ध न होने का मतलब है पानी के अधिक खुले स्रोतों का उपयोग करना, जो परिवार के लिए अधिक स्वास्थ्य जोखिम और बीमारी का कारण बनता है– और इसके चलते महिलाओं को अधिक अवैतनिक काम करना पड़ता है। महिलाओं पर पड़ रहे घरेलू कार्यों के अनुपातहीन बोझ को देखते हुए, और भारतीय परिवारों के लिए घर के अंदर पाइप के जरिये पानी की उपलब्धता (कॉफ़ी और अन्य 2014, चौधरी और देसाई 2021) बहुत कम है, इस तथ्य के मद्देनजर, हाल ही में किये गए एक अध्ययन (सेडाई 2021) से मैं दर्शाता हूं कि घरों में पाइप से पानी की व्यवस्था कराने से घरेलू श्रम और स्वास्थ्य असमानता में कमी लाई जा सकती है।
इनडोर पाइप से पेय जल आपूर्ति का महिलाओं के समय के उपयोग और श्रम पर प्रभाव
इनडोर पाइप से पेय जल (आईपीडीडब्ल्यू) के संदर्भ में समय आवंटन और श्रम उत्पादकता (बेकर 1965) के मानक आर्थिक सिद्धांत में प्रकाश डाला गया है। सबसे पहला, घर में पाइप से पेय जल का न होना महिलाओं को पानी इकट्ठा करने के घरेलू काम हेतु व्यतीत होने वाले समय में वृद्धि के माध्यम से असमान रूप से प्रभावित करता है। रोजगार के सन्दर्भ में, तर्क यह है कि प्रतिदिन पानी नहीं लाने से बचाए गए समय को श्रम बाजार (मीक्स 2017) में पुन: आवंटित किया जा सकता है। चित्र 1 भारत में महिलाओं पर पड़ रहे जल संग्रहण के अधिक बोझ को दर्शाता है। चित्र 2 महिलाओं को दिए गए भुगतान-योग्य कार्य और जल संग्रहण के लिए आवंटित समय के बीच का सह-संबंध, जाति के आधार पर दर्शाता है।
चित्र 1. वयस्क महिलाओं और पुरुषों द्वारा दैनिक जल संग्रहण (मिनटों में)
टिप्पणियाँ: (i) उपरोक्त आंकड़ा भारत में महिलाओं पर पडने वाले जल संग्रह के बोझ के कर्नेल घनत्व प्लॉट को दर्शाता है। (ii) वयस्क महिलाओं और पुरुषों में 14 वर्ष आयु वर्ग के लोग शामिल हैं।
स्रोत: 2005-2012 भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस)।
चित्र 2. महिलाओं द्वारा दैनिक जल संग्रहण और बाजार कार्य (मिनटों में), जाति के अनुसार
दूसरा, आईपीडीडब्ल्यू के न होने के कारण सतही जल प्रदूषण आधारित अधिक बीमारी के चलते व्यक्तिगत स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है। तीसरा, आईपीडीडब्ल्यू की अनुपलब्धता के चलते, परिवार अक्सर पीने के पानी के सामुदायिक और कम स्वच्छ स्रोतों (जैसे खुले कुएं, हैंडपंप, या अन्य सतह-स्तर के स्रोत) का सहारा लेते हैं, ऐसे में उनके द्वारा अपने हाथ कम बार धोये जाने की स्थिति में परिवार में बीमारीयां बढ़ सकती हैं। फलस्वरूप, महिलाएं अपना अधिक समय अवैतनिक देखभाल के कार्य में बिताती हैं (जैसे- स्कूल नहीं जा रहे दस्त से पीड़ित बच्चों या बुखार, खांसी और अन्य संक्रमण वाले बुजुर्गों की देखभाल करना) और श्रम बाजार में कम समय बिताती हैं।
उपरोक्त अवधारणा का अनुसरण करते हुए, मैं सबसे पहले भारत में आईपीडीडब्ल्यू की स्थिति की जांच करता हूं। आईएचडीएस (भारत मानव विकास सर्वेक्षण) 2005-2012 और एक्सेस (एक्सेस टू क्लीन कुकिंग एनर्जी एंड इलेक्ट्रिसिटी सर्वे ऑफ स्टेट्स) 2015-2018 का पैनल डेटा भारत में घरेलू स्तर पर पर्याप्त आईपीडीडब्ल्यू की स्पष्ट कमी को दर्शाता है। आईएचडीएस के आंकड़े दर्शाते हैं कि, वर्ष 2005 में, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आईपीडीडब्ल्यू की औसत पहुंच क्रमशः 16% और 51% थी; जबकि वर्ष 2012 में, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इसकी औसत पहुंच क्रमशः 21% और 50% थी। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अंतर्गत भारत में आईपीडीडब्ल्यू में लगभग 5% की वृद्धि होना एक ग्रामीण घटना है। भारत में राज्यों के बीच और भीतर असमानताएं हैं। इन दोनों वर्षों में आईपीडीडब्ल्यू की जिला स्तर (आईएचडीएस-सर्वेक्षण जिलों) पर औसत पहुंच लगभग 0.25% से 0.5% थी। कुछ जिलों (ज्यादातर शहरों और भारत के दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में) जहां आईपीडीडब्ल्यू आपूर्ति के औसत घंटे छह से 12 घंटे के बीच हैं, को छोड़कर, चाहे कोई भी राज्य हो, अधिकांश जिलों को दिन में लगभग एक और सात घंटे पानी की आपूर्ति होती है। कुल मिलाकर, भारत में घरेलू स्तर पर पीने के पानी के बुनियादी ढांचे की गंभीर कमी है।
घर के अंदर पाइप से पीने का पानी उपलब्ध कराने से किसे लाभ होता है?
मैं व्यक्तिगत, घरेलू स्तर और ग्राम स्तर पर, लिंग और स्थान के अनुसार रोजगार और स्वास्थ्य परिणामों पर आईपीडीडब्ल्यू के प्रभावों की जांच करता हूं। आईपीडीडब्ल्यू1 तक पहुंच में भिन्नता को समझने के लिए, मैं आईएचडीएस (2005-2012)2 (देसाई और वैनमैन 2018) के राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि पैनल3 का उपयोग करता हूं। सर्वेक्षण में लिंग-पृथक श्रम और गैर-श्रम बाजार की प्रमुख विशेषताओं (अर्थात, घर पर अवैतनिक देखभाल का काम), रोजगार डेटा जैसे मजदूरी वेतन, खेत, गैर-कृषि रोजगार, वार्षिक आय, कार्यदिवस तथा स्व-रिपोर्ट की गई स्वास्थ्य की स्थिति, व्यक्तिगत स्तर पर अन्य के साथ-साथ दस्त जैसी बीमारी की घटना, और जल संग्रहण के मिनट को शामिल किया गया है। विश्लेषण के लिए मैंने आईएचडीएस सर्वेक्षण के प्रत्येक दौर से 78,751 पुरुषों और 71,623 महिलाओं के समय संतुलित नमूने4 का उपयोग किया है।
चित्र 3. वर्ष 2005-2012 के दौरान लैंगिक आधार पर जल और जल संग्रहण तक पहुंच
टिप्पणियाँ: (i) आईपीडीडब्ल्यू और 'घर में पानी' को प्रतिशत में दर्शाया है। (ii) पानी की आपूर्ति के घंटे, और जल संग्रह के मिनट का दैनिक औसत, पानी लाने के लिए कम से कम कुछ समय व्यतीत किया है तो दर्शाया है।
मैं निम्नलिखित तरीके से अनुभव-जन्य विश्लेषण करता हूं: सबसे पहले, मैं व्यक्तिगत स्तर के डेटा को गांव स्तर पर निपाती रूप में देखते हुए और समय5 के साथ बहिर्जात गांव-स्तर की विशेषताओं के माध्यम से गांव-स्तर पर पानी के बुनियादी ढांचे की स्थापना को नियंत्रित करके रोजगार के परिणामों पर आईपीडीडब्ल्यू के प्रभाव की जांच करता हूं। दूसरा, मैं स्थानीय औसत उपचार प्रभावों6 के साथ आकस्मिक अनुमानों को खोजने के लिए, एक राज्य के एक विशेष जिले में एक साधन चर7 के रूप में अन्य सभी गांवों या प्राथमिक नमूना इकाइयों में आईपीडीडब्ल्यू की औसत पहुंच में अस्थायी भिन्नता का उपयोग करता हूंI यह साधन किसी जिले में एक परिवार की आईपीडीडब्ल्यू तक पहुंच की संभावना को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, लेकिन अन्य नियंत्रणों पर सशर्त, व्यक्तिगत स्तर पर रोजगार और स्वास्थ्य के परिणामों को सीधे प्रभावित नहीं करता है। आस-पास के क्षेत्रों में उपलब्ध पानी के बुनियादी ढांचे की स्थापना की सापेक्ष आसानी के माध्यम से और पाइप से पानी के लाभों के बारे में जागरूकता के माध्यम से अन्य गांवों में उच्च औसत में पहुंच, विचाराधीन गांव में पहुंच को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। आईपीडीडब्ल्यू की उपलब्धता के निम्न औसत को देखते हुए, मैं यह अनुमान लगाता हूं कि यदि हम संबंधित व्यक्ति के विचाराधीन गांव को अपने विश्लेषण में शामिल नहीं करते हैं, तो निर्धारित गांव में अन्य गांव-स्तरीय पहुंच का कोई प्रभाव व्यक्ति के परिणाम पर नहीं पड़ेगा। मैं यह भी अनुमान लगाता हूं कि परिवार के अपने समुदाय-स्तर के आईपीडीडब्ल्यू का प्रभाव व्यक्तिगत श्रम-बल की भागीदारी पर पड़ेगा, अतः किसी के अपने गांव को साधन में शामिल नहीं करना 'बहिष्करण प्रतिबंध' का संकेत है।
तालिका 1. भारत में आईपीडीडब्ल्यू तक पहुंच
अवलोकन |
माध्य |
मानक विचलन |
माध्य |
मानक विचलन |
||
आईएचडीएस |
2005 |
2012 |
टी परिक्षण |
|||
आईपीडीडब्ल्यू |
40,018 |
0.236 |
0.442 |
0.302 |
0.459 |
*** |
2015 |
2018 |
|||||
एक्सेस |
||||||
आईपीडीडब्ल्यू |
8,563 |
0.057 |
0.232 |
0.066 |
0.248 |
** |
स्रोत: 2005-2012 आईएचडीएस और 2015-2018 एक्सेस सर्वेक्षण के आधार पर लेखक द्वारा की गई गणना।
टिप्पणियाँ: (i)एक्सेस सर्वेक्षण में भारत के छह अपेक्षाकृत गरीब राज्यों: मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल किया गया है। (ii) टी-टेस्ट सर्वेक्षण के वर्ष, 2015 और 2018 तक आईपीडीडब्ल्यू तक पहुंच में औसत अंतर दिखाता है। (iii) मानक विचलन एक ऐसा माप है जिसका उपयोग उस सेट के औसत से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है।
आईपीडीडब्ल्यू और रोजगार
मैं देखता हूँ कि आईपीडीडब्ल्यू तक पहुंच होने से महिलाओं की किसी भी रोजगार की संभावना (30 दिनों या उससे अधिक की अवधि के लिए किसी भी प्रकार के भुगतान वाले काम) 11.3 प्रतिशत अंक (पीपी) और पुरुषों की रोजगार की संभावना 11.9 प्रतिशत अंक (पीपी) तक बढ़ जाती है। ये प्रभाव ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भिन्न होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में, आईपीडीडब्ल्यू तक पहुंच से महिलाओं द्वारा रोजगार की संभावना में 19.5 प्रतिशत अंक की वृद्धि होती है, जो पुरुषों के सन्दर्भ में 12.1 प्रतिशत अंक (पीपी) वृद्धि से काफी अधिक है। इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों में, रोजगार पर आईपीडीडब्ल्यू का सकारात्मक प्रभाव केवल पुरुषों (17.4 पीपी) के लिए दिखाई देता है, जबकि महिलाओं के सन्दर्भ में उनके रोजगार पर आईपीडीडब्ल्यू का कोई प्रभाव नहीं होता है। मजदूरी/वेतन8 रोजगार के संदर्भ में, मैंने पाया कि आईपीडीडब्ल्यू तक पहुंच से समग्र नमूने के सन्दर्भ में महिलाओं के रोजगार की संभावना 12.1 प्रतिशत और पुरुषों की 11 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में, यह प्रभाव महिलाओं के लिए 16 प्रतिशत और पुरुषों के लिए 8.9 प्रतिशत है। इससे पता चलता है कि आईपीडीडब्ल्यू से महिलाओं के लिए रोजगार लाभ केवल कृषि रोजगार या स्व-रोजगार तक ही सीमित नहीं है; ये मजदूरी/वेतन रोजगार में भी दिखाई दे रहे हैं। तथापि, जैसा कि 'किसी भी प्रकार के रोजगार' के संदर्भ में देखा गया है, शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के मजदूरी/वेतन रोजगार पर आईपीडीडब्ल्यू का कोई प्रभाव नहीं है। हालांकि, शहरी क्षेत्रों में पुरुषों के रोजगार पर आईपीडीडब्ल्यू का सकारात्मक और महत्वपूर्ण प्रभाव है (वर्ष में मजदूरी/वेतन रोजगार में 13.6 प्रतिशत वृद्धि)| भारत में विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में महिलाओं के लिए प्रच्छन्न (छिपी) बेरोजगारी (अतिरिक्त श्रम) के उच्च स्तर को देखते हुए, ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार में लाभ महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण है (मजूमदार और सरकार 2020)।
मेरे विश्लेषण से पता चलता है कि आईपीडीडब्ल्यू की उपलब्धता पुरुषों और महिलाओं- दोनों की संयुक्त रूप से वार्षिक आय में 13.8% की वृद्धि करती है। यह प्रभाव महिलाओं के सन्दर्भ में अधिक मजबूत है- जो पुरुषों के 11.2% की तुलना में 17.5% है। जैसा कि रोजगार की संभावना के साथ, महिलाओं की आय में वृद्धि केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही देखी गई है, वहीँ दूसरी ओर, पुरुषों ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आय में वृद्धि की है। महिलाओं की आय पर आईपीडीडब्ल्यू का सकारात्मक प्रभाव- और यह ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए अधिक है- मेरा तर्क है कि यह समय, स्वास्थ्य और उत्पादकता प्रभावों के संयोजन के कारण हो सकता है जो महिलाओं के लिए घर में जल संग्रह करने और साफ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के बोझ को कम कर सकता है। आईपीडीडब्ल्यू से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के वार्षिक कार्यदिवसों में 28 दिनों तक की वृद्धि होती है, जबकि शहरी क्षेत्रों में इसका कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं है। पुरुषों के सन्दर्भ में, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं है। कुल मिलाकर, आईपीडीडब्ल्यू के रोजगार के निहितार्थ ग्रामीण महिलाओं के लिए हैं, लेकिन ग्रामीण और शहरी पुरुषों- दोनों के लिए, यह दर्शाता है कि शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के रोजगार में बाधा बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं से परे है।
आईपीडीडब्ल्यू, स्वास्थ्य और शिक्षा
मैंने यह भी पाया कि आईपीडीडब्ल्यू की उपलब्धता से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के स्व-रिपोर्ट किए गए स्वास्थ्य में 33.7% सुधार और गरीब महिलाओं के लिए स्व-रिपोर्ट किए गए स्वास्थ्य में 50.6% सुधार होता है। विश्लेषण से पता चलता है कि आईपीडीडब्ल्यू की उपलब्धता समग्र नमूने के सन्दर्भ में दस्त (डायरिया) की संभावना को 1.5% तक कम कर देती है। मुझे शहरी क्षेत्रों में डायरिया पर आईपीडीडब्ल्यू के मजबूत प्रभाव पता चलता है, जहाँ 2.2% की कमी आई है। यह शहरी क्षेत्रों में घरेलू जल आपूर्ति के उच्च सतह-स्तर के संदूषण के कारण अपेक्षित है। नमूने के लिए, आईपीडीडब्ल्यू की उपलब्धता के कारण एक महीने में स्कूल से अनुपस्थिति के 1.48 दिन कम हो जाते हैं। लड़कियों के लिए यह प्रभाव एक महीने में स्कूल से अनुपस्थिति के 1.55 दिन कम है। शहरी लड़कियों की तुलना में ग्रामीण लड़कियों के लिए भी प्रभाव अधिक स्पष्ट हैं, जो विगत महीने में स्कूल में अनुपस्थिति के क्रमशः 2.44 और 1.39 कम दिन है ।
समापन टिप्पणी
मुझे लगता है कि आईपीडीडब्ल्यू रोजगार में लैंगिbook pक अंतर को कम करने में बहुत महत्वपूर्ण है, घर में पाइप से पानी की उपलब्धता से विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और गैर-कृषि रोजगार- दोनों के सन्दर्भ में महिलाओं को रोजगार के अवसरों के मामले में उल्लेखनीय रूप से लाभ होता है। भारत में महिलाओं की श्रम-शक्ति भागीदारी दर में तेजी से गिरावट- 1995 में 30% से 2012 में 20% तक10 के संदर्भ में, ग्रामीण परिवारों की आईपीडीडब्ल्यू तक पहुंच, आपूर्ति के दृष्टिकोण से ग्रामीण भारत में रोजगार के अवसरों में लैंगिक अंतर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पारिवारिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए बुनियादी ढांचे के मामले में भी आईपीडीडब्ल्यू महत्वपूर्ण हो सकता है, जो परिवार में महिलाओं के अवैतनिक काम में कमी ला सकता है, जिससे उनके लिए भुगतान-योग्य श्रम बाजार गतिविधियों के लिए अधिक समय उपलब्ध हो सकता है। मेरे परिणाम बताते हैं कि पाइप से पानी की उपलब्धता न होने की स्थिति में, महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता जितनी हो सकती है, उससे कम है। इस आलोक में, भारत में महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के लिए अन्य बुनियादी ढांचे में पानी, बिजली, शौचालय और गैस जैसे बुनियादी ढांचे की उपलब्धता महत्वपूर्ण हो सकती है।
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टिप्पणियाँ:
- हमारा उपचार चर 'आईपीडीडब्ल्यू' सर्वेक्षण मद "क्या आपके घर में इनडोर पाइप से पीने का पानी मिलता है?" हाँ के लिए 1 है और नहीं के लिए 0 है|
- आईएचडीएस में, जनसांख्यिकीय, स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक आर्थिक विशेषताओं पर घरेलू, व्यक्तिगत, गांव और स्कूल स्तर पर व्यापक विषय शामिल हैं।
- पैनल डेटा में पूरे समय में बार-बार अवलोकनों की एक ही इकाई (इस मामले में फर्म) को दर्ज किया गया है।
- "समय-संतुलित" नमूने का तात्पर्य है कि जो परिवार दोनों सर्वेक्षण तरंगों में नहीं हैं, उन परिवारों को शामिल नहीं किया है।
- हमारे द्वारा यह मानने पर कि आईपीडीडब्ल्यू में या बाहर चयन व्यक्तिगत या घरेलू स्तर पर है, यहां स्थापित निश्चित प्रभाव समय के साथ किसी भी गांव-विशिष्ट प्रभावों का नियंत्रण करते हैं और प्रतिगमन के गुणांक को सशर्त रूप से बहिर्जात माना गया है (कुलवाल और वैन डेवल 2013, चौधरी और देसाई 2021) ।
- ग्रामीण भारत और चीन (लेमीशेन और मैंग्यो 2011, वनजा 2020) में बच्चे और मातृ स्वास्थ्य पर इन-यार्ड पानी की पहुंच के प्रभाव की पहचान करने हेतु समान 'लीव आउट' सामुदायिक रणनीति का उपयोग किया गया है।
- अंतर्जात चिंताओं को दूर करने के लिए अनुभव-जन्य विश्लेषण में साधन चर का उपयोग किया गया है। साधन एक अतिरिक्त कारक है जिससे हम व्याख्यात्मक कारक और हित के परिणाम के बीच सही आकस्मिक संबंध देख पाते हैं। यह व्याख्यात्मक कारक के साथ सह-संबद्ध है लेकिन हित के परिणाम को सीधे प्रभावित नहीं करता है।
- मजूदरी/वेतन चर आईएचडीएस व्यक्तिगत सर्वेक्षण प्रश्नावली से लिया गया है जिसमें पूछा गया है: "अब, घरेलू खेत या घर के किसी भी व्यवसाय में काम करने के अलावा, आप [नाम] ने नकद या वस्तु के भुगतान के लिए पिछले साल क्या काम किया"।
- मैं, 'अच्छा', 'बहुत अच्छा' और 'ठीक' स्वास्थ्य प्रतिक्रियाओं को 1 के बराबर और 'खराब' और 'बहुत खराब' स्वास्थ्य को 0 के बराबर बताता हूं।
- वर्ष 1995-2005 से 2005-2014 तक, 14-59 आयु वर्ग की महिलाओं की श्रम-बल में भागीदारी के औसत के साथ तुलना करके, विश्व बैंक के विश्व विकास संकेतकों से, लेखक द्वारा की गई गणना।
लेखक परिचय: आशीष सेदाई कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र में एक पीएच.डी. उम्मीदवार है।
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