व्यापार

भारत के क्षेत्रीय निर्यात विविधीकरण के रुझान

  • Blog Post Date 21 अगस्त, 2025
  • दृष्टिकोण
  • Print Page
Author Image

Sharmila Kantha

Confederation of Indian Industry

sharmila.kantha@cii.in

वैश्विक व्यापार में हाल ही में आए व्यवधान एक 'न्यू नॉर्मल- नई सामान्य स्थिति' की ओर इशारा करते हैं, जहाँ वस्तुओं का व्यापार संघर्षों, अनिश्चित टैरिफ और निर्यात प्रतिबंधों जैसे कारकों के प्रति संवेदनशील होता है। इस लेख में, शर्मिला कांता ने वर्ष 2017 और 2024 के बीच के भारत के निर्यात संबंधी रुझानों का विश्लेषण किया है और वे यह विचार प्रस्तुत करती हैं कि देश किस प्रकार से अपने निर्यात बाज़ारों के सन्दर्भ में क्षेत्रीय विविधीकरण के माध्यम से इस 'न्यू नॉर्मल’ स्थिति का सामना कर सकता है।

डोनाल्ड ट्रम्प ने जनवरी 2025 में जब से संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया है, तब से अप्रत्याशित टैरिफ नीतियों, नीतिगत परिवर्तनों और उलटफेरों ने विश्व व्यापार में निराशा की स्थिति पैदा कर दी है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने अपने अप्रैल 2025 के वैश्विक व्यापार परिदृश्य और सांख्यिकी में खेद व्यक्त किया कि उसके पूर्व अनुमान के अनुसार, वर्ष 2025 में वस्तुओं के व्यापार की मात्रा लगभग 3% बढ़ने की उम्मीद थी। लेकिन पारस्परिक टैरिफ और उनके अस्थाई निलंबन को ध्यान में रखते हुए, नए अनुमानों को अब माइनस 0.2% पर रखा गया है।

मध्य पूर्व में हो रहे ताज़ा संघर्षों से इस परिदृश्य पर और अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है, जहाँ इस लेख के लिखे जाने तक, इज़राइल और ईरान के बीच एक अनिश्चित युद्धविराम संधि लागू थी और होर्मुज़ जलडमरूमध्य से होकर गुरने वाला भारी यातायात वाला व्यापार मार्ग अचानक बंद होने का खतरा बना हुआ था। वैश्विक व्यापार में हाल ही में आए व्यवधान एक 'न्यू नॉर्मल’ के उदय की ओर इशारा करते हैं, जहाँ वस्तुओं का व्यापार निरंतर उथल-पुथल भरे दौरों के प्रति संवेदनशील है, जिसमें विभिन्न वैश्विक मंचों पर अप्रत्याशित संघर्ष, अनिश्चित टैरिफ और दुर्लभ मृदा तथा अर्धचालकों (सेमीकंडक्टर) जैसे महत्वपूर्ण इनपुट पर निर्यात प्रतिबंधों से संबंधित खतरे प्रति-खतरे शामिल हैं। मैं इस लेख में वर्ष 2017 और 2024 के बीच के भारत के निर्यात संबंधी रुझानों का विश्लेषण करती हूँ और यह पता लगाती हूँ कि देश क्षेत्रीय विविधीकरण के माध्यम से इस अपरिहार्य 'न्यू नॉर्मल’ स्थिति का कैसे सामना कर सकता है।

अनिश्चित वैश्विक वातावरण में भारत का व्यापार

कई वर्षों से भारत विकास की गति को बढाने के लिए निर्यात का लाभ उठाने का प्रयास करता रहा है। वर्ष 2024-25 में, अशांत और अनिश्चित वैश्विक व्यापारिक माहौल में भी, भारत ने 437.5 अरब अमेरिकी डॉलर का निर्यात मूल्य हासिल किया। विश्व व्यापार संगठन के अप्रैल के पूर्वानुमान के अनुसार, वैश्विक व्यापारिक निर्यात में वर्ष 2024 में पिछले वर्ष की तुलना में 2% की वृद्धि होगी, जिसमें भारत का प्रतिशत 2.62% होगा (वाणिज्य विभाग, 2025)। हालांकि, ऐसा वर्ष 2023 में 4.8% की गिरावट के बाद हुआ है, जो विश्व व्यापारिक निर्यात में 1% की गिरावट के कारण है।

जब वैश्विक मूल्य श्रृंखलाएँ बदल रही हैं और नियमित रूप से कई झटके लग रहे हैं, भारत ऐसे समय में अपने निर्यात को बढ़ाने और निर्यात अनुकूलन को मज़बूत करने के अपने प्रयासों में संघर्ष कर रहा है1। इन झटकों के बीच, अन्य देश बाज़ारों और स्रोत देशों के विविधीकरण, वैकल्पिक उत्पादों की खोज, तथा ऑन-शोरिंग, नियर-शोरिंग एवं फ्रेंड-शोरिंग जैसी रणनीतियों के माध्यम से अपने निर्यात ढाँचे को अनुकूलित करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत ने अपने निर्यात प्रोफाइल को नया आकार देने के लिए फिलहाल इन रणनीतियों को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया है।

भारत के प्रमुख निर्यात बाज़ार

पहले तो भारत के निर्यात में विविधीकरण के बजाय और अधिक संकेन्द्रण देखा गया है। वर्ष 2017 तक भारत के शीर्ष पाँच निर्यात बाज़ार अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), हांगकांग, चीन और सिंगापुर थे, जिनका कुल मिलाकर इसके कुल वस्तु निर्यात में 38.9% हिस्सा था। वर्ष 2024 तक नीदरलैंड ने शीर्ष पाँच बाज़ारों में हांगकांग को पीछे छोड़ दिया, जिसका मुख्य कारण रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के बाद भारत से परिष्कृत ईंधन की बढ़ी हुई ख़रीद है। इस प्रकार, शीर्ष पाँच गंतव्य अब भारत के कुल निर्यात का 39.4% हिस्सा हो गए हैं (तालिका-1)। इसी प्रकार, शीर्ष 10 गंतव्यों की हिस्सेदारी में विविधता आने के बजाय मामूली वृद्धि हुई है।

इन देशों में उल्लेखनीय बात यह है कि अमेरिका की हिस्सेदारी 15.6% से बढ़कर 18.3% हो गई है। भारत के व्यापार प्रोफ़ाइल में अमेरिका की बढ़ती स्थिति को देखते हुए, दुनिया के लिए विघटनकारी टैरिफ और नए टैरिफ समझौतों का उनका वर्तमान रुख भारत के भविष्य के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। यद्यपि प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है, जिससे अमेरिकी बाज़ार में भारतीय वस्तुएँ अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकती हैं (अन्य देशों के साथ अमेरिकी व्यापार समझौतों पर निर्भर करते हुए), अमेरिका की हिस्सेदारी में और वृद्धि भारत के निर्यात की समग्र स्थिरता के लिए हानिकारक होगी।

तालिका-1. भारत के कुल निर्यात में शीर्ष निर्यात बाज़ारों की हिस्सेदारी (वर्ष 2017 और 2024)

देश

2017

2024

अमेरिका

15.6%

18.3%

यूएई

10.1%

8.5%

हांगकांग

5.1%

1.5%

नीदरलैंड

1.8%

5.6%

चीन

4.2%

3.6%

सिंगापुर

3.9%

3.4%

और 2024 के बीच, विश्व आयात में 60 खरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई है। इसमें से, भारत अपने निर्यात में केवल लगभग 14 अरब 60 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही विस्तार कर पाया, जो वैश्विक बाज़ार में हुई वृद्धि का मात्र 2.4% ही था। वैश्विक व्यापार में बदलाव के अगले सात वर्षों के दौरान, वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी लगभग 1.7% से बढ़कर 1.8% हो गई, जबकि इसकी रैंकिंग में 20वें स्थान से सुधार होकर यह 18वें स्थान पर आ गई। उल्लेखनीय रूप से, वर्ष 2024 में शीर्ष 25 निर्यातकों में केवल चीन (और कुछ हद तक वियतनाम) ने ही अपने वैश्विक निर्यात हिस्से में उल्लेखनीय वृद्धि की, जबकि अधिकांश अन्य देशों ने अपना हिस्सा कम कर दिया या उसे लगभग उसी स्तर पर बनाए रखा।

क्षेत्रों का गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि भारत ने अफ्रीका में पर्याप्त लाभ अर्जित किया और इस अवधि में महाद्वीप के लगभग 151 अरब अमेरिकी डॉलर के अतिरिक्त आयात में 9.8% की आपूर्ति की है। अफ्रीका को भारत के समग्र निर्यात में 57% से अधिक का योगदान देने वाले प्रमुख घटक रहे खनिज ईंधन, दवा उत्पाद, वाहन, अनाज और मशीनरी। इन सभी ने अफ्रीका के इन उत्पादों के कुल आयात में बाज़ार हिस्सेदारी हासिल की, जो एक उत्साहजनक प्रदर्शन है।

वर्ष 2025 की तरह, भारत ने वर्ष 2017 और 2024 के बीच अमेरिकी बाज़ार में अपनी पैठ बनाई और अमेरिकी आयात में इसकी हिस्सेदारी 2.1% से बढ़कर 2.7% हो गई। अमेरिका ने दुनिया से अपनी खरीद में लगभग 9 खरब 53 अरब बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि की, जबकि भारत इस मांग का 4.3% (या लगभग 40 अरब अमेरिकी डॉलर) हासिल कर सका। अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश होने के नाते, भारत इसे अपने निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण बाज़ार बना सकता है। लेकिन उसे इस गंतव्य पर अपनी निर्भरता को संतुलित करने के साथ-साथ, अन्य बाज़ारों पर अधिक मज़बूती से ध्यान देना होगा। इसके बावजूद कि यूरोपीय संघ इसके सबसे पसंदीदा गंतव्यों में से एक है, ईयू के 28 सदस्य देशों में भारत की उपस्थिति कम है। दुनिया से यूरोपीय संघ के कुल आयात (74 खरब अमेरिकी डॉलर) में भारत का योगदान केवल 1.3% है। अध्ययनाधीन अवधि के दौरान, यूरोपीय संघ ने विश्व से 18 खरब अमेरिकी डॉलर के अतिरिक्त आयात की माँग की, जबकि भारत ने इस क्षेत्र में अपने निर्यात में केवल 42 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि की है। यह देखते हुए कि प्रतिस्पर्धी देश पहले से ही बाज़ार में प्रभावी ढंग से व्यापार कर रहे हैं और यूरोपीय संघ के अनुसमर्थन की प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है, अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर भारत की निर्भरता कुछ हद तक अति-आशावादी हो सकती है।

भारत ने गतिशील आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी खो दी है, जिसने वर्ष 2017 और 2024 के बीच अपने वैश्विक आयात को 12 खरब 60 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 18 खरब 80 अरब अमेरिकी डॉलर कर दिया था। इसमें भारत की हिस्सेदारी 2.2% से घटकर 1.9% रह गई है और यह बाज़ार की वृद्धि का केवल 1.2% (या 7 अरब अमेरिकी डॉलर) ही हासिल कर सका है। आसियान के आयात का एक उल्लेखनीय हिस्सा संभवतः चीन द्वारा अपने निर्यात को अमेरिका तक पहुँचाने के प्रयास के कारण है और अन्य बाज़ारों द्वारा चीन से आयात पर प्रतिबंध लगाए जाने के कारण भी है। इसके अलावा, आसियान और भारत की विनिर्माण क्षमताएँ समान स्तर पर हैं, जिससे भारत के लिए इस बाज़ार को विकसित करना चुनौतीपूर्ण हो रहा है। भारत ने आसियान के ऑटोमोटिव और कार्बनिक रसायन बाज़ार में कुछ हिस्सेदारी हासिल की, लेकिन वर्ष 2022 में रत्न और आभूषण, मशीनरी और खनिज ईंधन के निर्यात में हुई मामूली वृद्धि वर्ष 2024 तक समाप्त हो गई। निकटवर्ती पड़ोसी और भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के अभिन्न अंग के रूप में, भारतीय निर्यातकों द्वारा आसियान की ओर अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (एलएसी) क्षेत्र में भारत के निर्यात में 44% की वृद्धि हुई है, लेकिन यह अभी भी निम्न स्तर पर है। वर्ष 2024 तक एलएसी आयात में इसकी हिस्सेदारी 1.6% तक सीमित रही है, जो इसके समग्र वैश्विक निर्यात हिस्से से कम है। यह क्षेत्र 14 खरब अमेरिकी डॉलर का आयात कर रहा है और कुछ स्थानीय मूल्यवर्धन के साथ अमेरिकी बाज़ार के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है।

तालिका-2. चुनिंदा क्षेत्रों को भारत का निर्यात (2017 और 2024)

क्षेत्र

2017 (अमेरिकी डॉलर बिलियन)

2024 (अमेरिकी डॉलर बिलियन)

क्षेत्र के कुल आयात में भारत के निर्यात का हिस्सा (% में)

क्षेत्र के आयात में वृद्धि में भारत की हिस्सेदारी (% में)

विश्व से आयात

भारत से आयात

विश्व से आयात

भारत से आयात

2017

2024

अमेरिका

2406.08

50.52

3359.31

91.23

2.1

2.7

4.3

ईयू28

5637.42

54.03

7489.01

96.49

1.0

1.3

2.3

अफ्रीका

503.91*

23.10

655.65

37.92

4.6

5.8

9.8

आसियान

1257.98

28.27

1875.32

35.60

2.2

1.9

1.2

एलएसी

988.28*

14.03

1396.38

22.21

1.4

1.6

2.4

विश्व

17800.00

295.86

23987.20

441.70

1.7

1.8

2.4

टिप्पणी : (i) क्षेत्र के सभी देशों ने रिपोर्ट नहीं की, कुछ आँकड़े (*) मिरर डेटा का प्रतिनिधित्व करते हैं। (ii) कुल आयात में भारत के निर्यात के हिस्से की गणना किसी वर्ष में भारत के निर्यात को विश्व से आयात से विभाजित करके की गई है।

स्रोत : इंट्रासेन डेटा का उपयोग करके लेखक द्वारा की गई गणना।

भविष्य की ओर देखते हुए

निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत की नीतिगत संरचना अतिरिक्त लागतों की भरपाई और यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि करों का निर्यात पर असर न पड़े। विनिर्माण को बढ़ावा देने की हालिया नीतियों, विशेष रूप से उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना के माध्यम से, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में निर्यात को काफी मदद मिली है। छोटे निर्यातकों को किफायती ऋण उपलब्ध कराने, ऋण गारंटी बढ़ाने और व्यापार सुविधा को डिजिटल बनाने के भी प्रयास किए गए हैं। एक प्रमुख रणनीति विभिन्न साझेदार क्षेत्रों और देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते या वार्ताएँ करना रही है।

संक्षेप में, वर्तमान विश्व व्यापार परिदृश्य में, भारत को एक अधिक आक्रामक निर्यात संवर्धन रणनीति की आवश्यकता है जो क्षेत्रीय रूप से स्तरीकृत और संतुलित हो। हालांकि उन्नत राष्ट्र बड़े बाज़ार हैं, भारत ग्लोबल साउथ में अपने प्रयासों को कमज़ोर नहीं कर सकता, जहाँ पिछले कुछ वर्षों में आयात में भी वृद्धि देखी गई है। उसे बढ़ते आयात रुझानों को पहचानने के लिए वास्तविक समय में आँकड़ों की निगरानी करनी चाहिए। उन वस्तुओं की पहचान करने की दिशा में व्यवस्थित रूप से काम करना चाहिए जिनमें उसे तुलनात्मक लाभ है और उन्हें निर्दिष्ट क्षेत्रों और देशों में विपणन करना चाहिए। वैश्विक व्यापार वर्तमान में जिन कठिनाइयों का सामना कर रहा है, उसके बावजूद, भारत अपनी तेज़ विकास दर के साथ, विकास के एक अधिक प्रभावी चालक के रूप में निर्यात का लाभ उठाने और अपनी समग्र बाह्य आर्थिक अनुकूलता बनाने में सक्षम होना चाहिए।

इस लेख में व्यक्त विचार पूरी तरह से लेखक के अपने हैं और आवश्यक नहीं कि ये आई4आई संपादकीय बोर्ड के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।

टिप्पणी :

  1. यदि अन्यथा उल्लेख न किया हो तो सारा प्रयुक्त डेटा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केन्द्र (25 जून 2025 को एक्सेस किया गया) से लिया गया है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : शर्मिला कांता भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की औद्योगिक नीति विशेषज्ञ हैं और ‘अर्थव्यवस्था एवं उद्योग’ सलाहकार बोर्ड की सदस्य हैं। भारतीय उद्योग से दस साल से अधिक समय से जुड़ी रहने के कारण उन्होंने आर्थिक नीति के मुद्दों पर व्यापक रूप से काम किया है।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक न्यूज़ लेटर की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

संबंधित विषयवस्तु

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें