पर्यावरण

भारत में पराली जलना कम करने के लिए स्थानांतरण भुगतान डिज़ाइन करना

  • Blog Post Date 27 जुलाई, 2023
  • लेख
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Kelsey Jack

University of California, Santa Barbara

kelseyjack@ucsb.edu

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Namrata Kala

MIT Sloan School of Management

kala@mit.edu

पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, ख़ासकर उत्तर भारत में। पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाने के लिए सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रम की शुरुआत के बावजूद, किसानों में इस प्रक्रिया में तरलता और विश्वास की कमी है। यह लेख पंजाब में किए गए एक अध्ययन का वर्णन करता है और बताता है कि यद्यपि कार्यक्रम के अनुपालन में चुनौतियों का सामना हो सकता है, आंशिक अग्रिम भुगतान वाले अनुबन्ध पराली जलने को कम करने और पराली जैसे फसल अवशेषों के कुशल प्रबंधन में उपकरणों व तकनीक के उपयोग को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।

खराब वायु गुणवत्ता दुनिया भर में एक बढ़ती हुई समस्या है और यह बीमारी और मृत्यु का एक प्रमुख रोकथाम योग्य कारण है (फुलर एवं अन्य 2022)। वायु प्रदूषण उत्तर भारत के लगभग आधा अरब निवासियों की जीवन प्रत्याशा को सात साल तक कम कर देता है (ली और ग्रीनस्टोन 2021)। इस क्षेत्र में प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत फसल अवशेषों यानी पराली का जलाया जाना है। यह फसल के बाद कृषि भूमि को साफ करने के लिए आग का उपयोग करने की एक प्रथा है। 2015 से उत्तर भारत में किसानों को फसलों के अवशेष जलाने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ा है और सरकार ने इसे हटाने और प्रबंधित करने के लिए मशीनों पर सब्सिडी दी है। लेकिन इन नीतियों के परिणामस्वरूप जलने में बड़ी कमी नहीं आई है।

एक नए अध्ययन (जैक एवं अन्य 2022) में, हम पेमेंट्स फॉर इकोसिस्टम सर्विसेज़ (पीईएस) नामक एक अनुबन्ध प्रणाली में परिशोधन का परीक्षण करते हैं, जो पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाने पर सशर्त नकद हस्तांतरण का लाभ देता है। वर्तमान दृष्टिकोण की तुलना में पीईएस के दो फायदे हैं। पहला यह कि ये नीतियां जुर्माने या अन्य सज़ाओं की तुलना में राजनीतिक रूप से अधिक व्यवहार्य हैं। दूसरा, उपकरण सब्सिडी के विपरीत जो इनपुट को बदलने का प्रयास करती है, ये परिणाम में सुधार को प्रोत्साहित करती है। हालाँकि, पीईएस कार्यक्रमों में अनुबन्ध डिज़ाइन संभावित रूप से महत्वपूर्ण है, जिसमें (अन्य सशर्त नकद हस्तांतरण अनुबन्धों की तरह) तरलता की कमी का सामना करने या इस बात पर भरोसा नहीं होने के कारण कि उनके अनुपालन के बाद सशर्त भुगतान किया जाएगा, किसानों की रूचि कम हो सकती है। हम परीक्षण करते हैं कि क्या ऐसी बाधाओं को कम करने के लिए स्थापित अनुबन्ध प्रणाली, कार्यक्रम की प्रभावकारिता को प्रभावित करते हैं।

पराली जलाने का आर्थिक प्रभाव

एक हालिया अध्ययन का अनुमान है कि पराली जलाने से 2018 में भारत में 86,000 असामयिक मौतें हुईं, जिनमें से आधे से अधिक मौतें पंजाब राज्य में धान की पराली जलाने के कारण हुईं (लैन एवं अन्य 2022)। वर्ष 2018 में पंजाब में लगभग 40 लाख एकड़ धान के अवशेष जलाए गए। सांख्यिकीय जीवन के मूल्य के रूप में 70,00,00 डॉलर का उपयोग करते हुए (मजूमदार और मधेस्वरन 2018), प्रति एकड़ पराली जलने पर औसत मृत्यु लागत 8,000 डॉलर आती है। इसकी तुलना में धान के उत्पादन से प्रति एकड़ लगभग 500 डॉलर का राजस्व प्राप्त होता है। इससे पता चलता है कि अवशेष जलाने को खत्म करने से निश्चित रूप से सामाजिक कल्याण में वृद्धि होगी।

पंजाब में पराली जलाने पर पीईएस के प्रभाव का मापन

हम पीईएस कार्यक्रमों के अनुपालन में सुधार के लिए अनुबन्ध डिज़ाइन के महत्व का परीक्षण करते हैं। तरलता जैसी बाधाओं को कम करने के लिए जैसे कि किसानों के पास फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए उपकरण किराए पर लेने के लिए भुगतान करने से पहले पर्याप्त नकदी नहीं होगी या भरोसा कम होगा कि भुगतान का सशर्त हिस्सा पूरा होगा। हम इन दोनो कारकों को अलग-अलग करते हैं- प्रस्तावित कुल (सशर्त) राशि और बिना शर्त अग्रिम भुगतान का अनुपात। यदि अग्रिम भुगतान तरलता और विश्वास या फिर दोनो की बाधाओं को कम करने में प्रभावी हैं, तो वे मानक अनुबन्धों की तुलना में अधिक प्रभावी हो सकते हैं। हालाँकि, इन अनुबन्धों में अनुपालन के लिए सशर्त भुगतान कम है, इसलिए वे अनुपालन को कम कर सकते हैं।

हमने मानक पीईएस और आंशिक अग्रिम पीईएस की प्रभावकारिता की तुलना करने के लिए 2019 धान-उगाने (खरीफ) के दौरान पंजाब के 171 गांवों में एक यादृच्छिक नियंत्रित यानी रैंडमाईज़ेड कंट्रोलड परीक्षण किया। हमने तीन किसान समूहों की तुलना की- जिन्हें अनुबन्ध नहीं मिला (नियंत्रण समूह), जिन्हें इस सत्यापन पर सशर्त भुगतान के साथ अनुबन्ध प्राप्त हुआ कि किसान ने आग नहीं जलाई (मानक पीईएस) और जिन्हें आंशिक अग्रिम भुगतान के साथ अनुबन्ध प्राप्त हुआ यह (स्पष्ट रूप से) अनुपालन पर बिना शर्त था। शेष को सत्यापन के बाद सशर्त भुगतान किया गया था (अग्रिम पीईएस)।

मानक पीईएस शाखा में दो उपचार शाखाएँ शामिल थीं। पहली, किसानों को अनुपालन के लिए रु. 800 प्रति एकड़, और दूसरी रु.1600 प्रति एकड़। अग्रिम भुगतान शाखा में भी दो उपचार शाखाएँ शामिल थीं- पहली पेशकश किसानों को अनुपालन के लिए प्रति एकड़ रु. 800, जिनमें से 200 का अग्रिम भुगतान किया गया था, और दूसरी, रु. 800 प्रति एकड़, जिसमें से 400 रुपये अग्रिम भुगतान किया गया था।

हमने कई डेटा स्रोतों का उपयोग करके मापा कि पीईएस ने पराली जलने को कैसे प्रभावित किया। सबसे पहले, हमने यह समझने के लिए अनुबन्ध अनुपालन डेटा का उपयोग किया कि जिन किसानों की निगरानी की गई, उन्होंने जलाने में भाग लिया या नहीं। दूसरा, हमने रिमोट सेंसिंग उपायों का उपयोग किया जो सभी किसानों के लिए न जलाने का अनुमानित उपाय तैयार करता है। तीसरा, हमने फसल अवशेष प्रबंधन के उपायों पर अपने एंडलाइन सर्वेक्षण के डेटा का उपयोग किया, जिसमें फसल जलाने के प्राथमिक विकल्प भी शामिल हैं। उदाहरण के लिए, बेलर जैसे कृषि उपकरण जो या तो खेत से अवशेषों को हटाते हैं (एक्स-सीटू) या अगली फसल को सीधे खेत में बो देते हैं और (इन-सीटू) जैसे कि हैप्पी सीडर्स, जो ट्रैक्टरों के पीछे लगाए गए बिना जुताई वाले प्लांटर्स हैं।

जाँच परिणाम

हमने पाया कि पीईएस अनुबन्धों की स्वीकार्यता अधिक थी, दोनों उपचार शाखाओं के लगभग 72% किसानों ने अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए। जिन किसानों को अग्रिम भुगतान किया गया था, उन्होंने अधिक उत्साह व भागीदारी नहीं दिखाई। संभवतः इस तथ्य के कारण कि अनुबन्ध प्रस्ताव के समय अग्रिम भुगतान की पेशकश नहीं की गई थी (यह उनके बैंक खाते की जानकारी संसाधित होने के दो से तीन दिन बाद वितरित किया गया था)।

जलने को मापने के लिए उपग्रह से प्राप्त चित्रों का उपयोग करते हुए हमने पाया कि पीईएस हस्तांतरण का एक हिस्सा पहले से देने से फसल जलने में उल्लेखनीय कमी आई। नियंत्रण समूह के सापेक्ष, अपफ्रंट पीईएस ने जलन को 8 से 11.5 प्रतिशत अंक तक कम कर दिया। इसके विपरीत, नियंत्रण समूह के सापेक्ष मानक पीईएस का प्रभाव शून्य से अप्रभेद्य है। इससे पता चलता है कि मानक सशर्त नकद हस्तांतरण के डिज़ाइन में बदलाव से अनुबन्ध की प्रभावशीलता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

जलने में कमी काफी हद तक अपफ्रंट कॉन्ट्रैक्ट आर्म में एक्स-सीटू प्रबंधन उपकरण (अर्थात्, बेलर) के उपयोग में वृद्धि से मेल खाती है, जो नियंत्रण समूह के सापेक्ष लगभग 9.5 प्रतिशत अंक है। इन-सीटू उपकरणों के उपयोग में कोई वृद्धि नहीं हुई है जो औसतन अधिक महंगा है। यह इस सेटिंग में एक्स-सीटू प्रबंधन तकनीकों के उपयोग के लिए किसानों की प्राथमिकताओं को दर्शाता है। पीईएस कार्यक्रमों की लागत प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए हम पीईएस लागत की तुलना कम अवशेष जलाने के लाभों से करते हैं। किसानों के एक बड़े हिस्से द्वारा जिन्हें अग्रिम भुगतान किया गया था, अनुपालन न करने के बावजूद, कार्यक्रम की अनुमानित लागत हमारे 8,000 डॉलर के प्रति एकड़ मृत्यु दर अनुमान से काफी कम है।

निष्कर्ष

इन परिणामों से पता चलता है कि अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए पीईएस भुगतान के माध्यम से फसल अवशेष जलाने को कम किया जा सकता है। हमारा डिज़ाइन, जो संस्थागत बाधाओं और किसानों की चिंताओं को ध्यान में रखता है, प्रभावकारिता में काफी सुधार कर सकता है। प्रतिभागियों द्वारा महंगे परिवर्तन को पूरा करने के बाद संपूर्ण भुगतान प्रदान करने की तुलना में अनुबन्ध भुगतान का एक हिस्सा अग्रिम रूप से प्रदान करने से जलने में बड़ी कमी आती है। अधिक 'बर्बाद' भुगतान (जिन किसानों की आग जलती रहती है) के बावजूद, अग्रिम भुगतान के साथ पीईएस अभी भी लागत-प्रभावी है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप जलने में कटौती होती है और यह लागत से कहीं अधिक लाभ प्रदान करती है।

पीईएस कार्यक्रम आशावाद का कारण प्रदान करते हैं। वे आकर्षक हैं क्योंकि उन्हें उन संगठनों द्वारा लागू किया जा सकता है जो आग को कम करना चाहते हैं और जिन्हें जुर्माना लगाने का अधिकार नहीं है। इसके अलावा, अग्रिम भुगतान की आवश्यकता समय के साथ कम महत्वपूर्ण हो सकती है क्योंकि समय के साथ भुगतान पर भरोसा बढ़ता है। पर्यावरणीय जोखिमों की व्यापकता भारत में फसल अवशेष जलाने को कम करने के लिए पीईएस और अन्य कार्यक्रमों में निवेश को उचित ठहराती है और यह समझने में भी कि उन्हें किसानों के लिए कैसे काम में लाया जाए।

(यह आलेख पहली बार VoxDev पर प्रकाशित हुआ था।)

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : बी. केल्सी जैक ब्रेन स्कूल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंस एंड मैनेजमेंट, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। सीमा जयचंद्रन प्रिंसटन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और सार्वजनिक मामलों की प्रोफेसर हैं। नम्रता काला डब्ल्यू मौरिस यंग (1961) प्रबंधन की कैरियर डेवलपमेंट प्रोफेसर और एमआईटी स्लोअन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में एप्लाइड इकोनॉमिक्स की सहायक प्रोफेसर हैं। रोहिणी पांडे हेनरी जे. हेंज-द्वितीय अर्थशास्त्र की प्रोफेसर और येल विश्वविद्यालय में आर्थिक विकास केंद्र की निदेशक हैं। 

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