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क्या परिवहन में ढाँचागत विकास से ग्रामीण भूमि असमानता बढ़ती है?

  • Blog Post Date 14 सितंबर, 2023
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परिवहन से जुड़े आधारभूत संरचना में निवेश से व्यापार लागत कम होती है और गांव शहरी बाज़ारों के साथ जुड़ जाते हैं। यह लेख दर्शाता है कि इस स्थानिक एकीकरण के कारण ग्रामीण भारत में भूमि असमानता बढ़ने का अनपेक्षित परिणाम भी निकल सकता है। यह लेख, औपनिवेशिक रेलमार्ग स्थानों और स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग नेटवर्क से गांव की दूरी के आधार पर बाज़ार तक पहुँच के प्रभावों को पृथक करके देखता है। अध्ययन से पता चलता है कि एकीकरण से भूमिहीन परिवारों की संख्या में और उत्पादक कृषि प्रौद्योगिकी को अपनाने में वृद्धि होती है, जिससे बड़े खेत और भी बड़े हो जाएंगे और भूमि असमानता बढ़ जाएगी। 

क्या आपने कभी सोचा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में खेत बड़े पैमाने के कृषि-व्यवसाय क्यों हैं, जबकि भारत जैसे विकासशील देशों में खेत छोटे परिवार के भूखंड जैसे होते हैं? इसके कुछ कारक तुरंत दिमाग में आते हैं : संयुक्त राज्य अमेरिका तुलनात्मक रूप से एक प्रचुर भूमि वाला देश है और वहाँ के हर किसान की एक बड़े राष्ट्रीय बाज़ार तक पहुँच है, जो व्यापक पक्की सड़कों और राजमार्ग नेटवर्क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आमतौर पर, किसी देश में भूमि असमानता की सीमा और उसमें बढौत्तरी उस देश के भूमि बंदोबस्त, इतिहास, राजनीति, प्रौद्योगिकी और बाज़ार की ताकतों के बीच के जटिल आदान-प्रदान का परिणाम होता है। हाल के साक्ष्यों से पता चलता है कि विश्व में भूमि असमानता 20वीं सदी की शुरुआत, जब यह बढ़ना शुरू हुई थी, से लेकर 1980 के दशक तक लगातार कम हुई है (बौलुज़ एवं अन्य 2020)। भूमि असमानता में दिखने वाला यह निर्णायक मोड़ आर्थिक उदारीकरण और परिवहन से जुड़े बुनियादी ढाँचे में भारी निवेश के माध्यम से स्थानिक बाज़ार एकीकरण के साथ मेल खाता है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या परिवहन ढाँचे में निवेश के कारण व्यापार लागत में हुई नाटकीय गिरावट की हाल के दशकों में भूमि असमानता की प्रवृत्ति की विपरीत चाल में कोई भूमिका थी? 

ब्रेवरमैन और स्टिग्लिट्ज़(1989) के प्रकल्पित विश्लेषण से पता चलता है जब क्रेडिट बाज़ार अपूर्ण हों तब परिवहन अवसंरचना में सुधार से घटने वाली व्यापार लागत गांवों में भूमि असमानता को बढ़ा सकती है। कम व्यापार लागत से कृषि वस्तुओं की उत्पादक कीमतें और कृषि प्रौद्योगिकी की लाभप्रदता बढ़ती है। बड़े किसानों की ऋण तक पहुँच बेहतर होती है और उन्हें अक्सर साहूकारों पर निर्भर रहने वाले छोटे किसानों की तुलना में औपचारिक बैंकों से, कम ब्याज दरों पर ऋण मिल जाता है। इस प्रकार, बडी भूमि वाले किसान बड़े पैमाने पर रिटर्न प्राप्त करने के लिए कम लागत पर नई तकनीक अपना सकते हैं और ऋण से जूझ रहे छोटे किसानों के खेत खरीद सकते हैं। इससे भूमि असमानता बढ़ेगी क्योंकि बड़े खेत बड़े होते जायेंगे, जबकि छोटे खेत में या तो कोई बदलाव नहीं होगा, या वे विरासत के आधार पर विभाजन के चलते अथवा खरीदे जाने के कारण और भी छोटे होते जायेंगे। हम अपने हालिया लेख (बर्ग एवं अन्य 2023) में, लम्बे समय में परिवहन के ढाँचागत विकास के कारण ग्रामीण भारत में भूमि स्वामित्व की असमानता पर बाज़ार एकीकरण के प्रभावों पर पहला साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। 

अनुभवजन्य रणनीति

क्या ब्रेवरमैन-स्टिग्लिट्ज़ का प्रकल्पित विश्लेषण डेटा के सामने टिक पाता है? हमने यह जानने के लिए, परिवहन निवेश और स्थानिक एकीकरण में अग्रणी, भारत के अनुभव की ओर रुख किया। पूरे इतिहास में सड़कों, राजमार्गों, पुलों और रेलवे पर किए गए भारी निवेश के कारण भारत में व्यापार लागत कम हुई है। औपनिवेशिक युग के दौरान, अंग्रेज़ों ने रेल नेटवर्क में भारी निवेश किया था। हाल के दशकों में, भारत सरकार ने स्वर्णिम चतुर्भुज (जीक्यू) को अपने मुकुट का रत्न मानते हुए परिवहन नेटवर्क को बड़े पैमाने पर उन्नत और विस्तारित किया। वर्ष 2001 और 2013 के बीच निर्मित, जीक्यू भारत के प्रमुख शहरों, दिल्ली (उत्तर में), कोलकाता (पूर्व में), मुंबई (पश्चिम में) और चेन्नई (दक्षिण में) को आपस में जोड़ता है। इन परिवहन नेटवर्कों के कारण स्थानिक बाज़ार का एकीकरण हुआ है। बाज़ार पहुँच के एक लोकप्रिय माप, ग्रेविटी माप के अनुसार, वर्ष  1962 और 2011 के बीच के  प्रत्येक दशक में औसत बाज़ार पहुँच में 25% की वृद्धि हुई है। 

हम वर्ष 2012 के भारत मानव विकास सर्वेक्षण-II (आईएचडीएस-II) से प्राप्त ग्रामीण जिलों के डेटा का उपयोग करते हुए, भूमि असमानता पर बाज़ार एकीकरण के प्रभावों का एक अनुभवजन्य विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं और एक तंत्र के रूप में प्रौद्योगिकी को अपनाने की भूमिका का पता लगाते हैं। विशेष रूप से हम इन संबंधों को प्रभावित कर सकने वाले अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए, भूमि असमानता और बाज़ार पहुँच के मापों के बीच के अंतर्संबंधों का अध्ययन करते हैं। 

हमारा विश्लेषण भूमि असमानता के दो मापों पर केंद्रित है :(i) भूमि गिनी सूचकांक1 तथा (ii) भूमिहीन परिवारों की संख्या। बाज़ार तक पहुँच के बारे में हमारे माप, ग्रेविटी माप में, शहरों की आबादी और सड़कों, राजमार्गों के साथ यात्रा के समय का उपयोग किया गया है। जहाँ जनसंख्या गंतव्य बाज़ार के आकार को दर्शाती है वहीं, उच्च यात्रा समय बाज़ार तक कम पहुँच का संकेत देता है।

सह-संबंध के अलावा, कार्य-कारण स्थापित करने के लिए हम भूमि असमानता और बाज़ार पहुँच, दोनों को प्रभावित करने वाले अन्य महत्वपूर्ण कारकों को नियंत्रित या कंट्रोल में रख के देखते हैं। क्योंकि इतिहास वर्तमान भूमि असमानता का एक मज़बूत आधार है, इसलिए हम वर्ष 1961 के जनसंख्या घनत्व को कंट्रोल करते हैं। साथ ही, बाकी सभी भौगोलिक कारकों जैसे, ढलान, ऊंचाई, फसल उपयुक्तता, वर्षा, तापमान को कंट्रोल करते हैं।

इस के बावजूद यह जान पाना कठिन है कि क्या बाज़ार पहुँच भूमि असमानता का कारण बनती है क्योंकि सड़क मार्ग और राजमार्ग विभिन्न जिलों में यादृच्छिक यानी रैंडम पद्धति से नहीं बनाए जाते हैं। बजाय इसके, वे सरकार के उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं, जो सीधे भूमि, बाज़ार और इस प्रकार भूमि असमानता को भी प्रभावित कर सकते हैं। इस मुद्दे के समाधान के लिए हम दो दृष्टिकोण अपनाते हैं। पहला, हम इतिहास को देखते हैं- 1880 के दशक तक औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार द्वारा निर्मित ऐतिहासिक रेल नेटवर्क का स्थान मुख्य रूप से आर्थिक उद्देश्यों के बजाय डिफेन्स के ज़रिये तय किया गया था (डोनाल्डसन 2018)2। इसका मतलब है कि उनका निर्धारण सीधे तौर पर किसी जिले की आर्थिक क्षमता से संबंधित नहीं है और इस प्रकार, इससे बाज़ार पहुँच से हटकर, भूमि असमानता की वृद्धि प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

आकृति-स्वर्णिम चतुर्भुज कनेक्टिंग नेटवर्क


दूसरा, हम आकृति-1 में जीक्यू नेटवर्क से प्रेरित एक 'अमहत्वपूर्ण स्थान' के आधार पर अनुसंधान डिज़ाइन का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, तथ्य यह है कि पटना (बिहार राज्य में) से जीक्यू की दिल्ली-कोलकाता राजमार्ग-खंड की दूरी दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल राज्य में) से काफी कम इसलिए नहीं है  कि जीक्यू का लक्ष्य पटना की आर्थिक क्षमता को बढ़ाना या पटना में गरीबों की मदद करना था। इसलिए, पटना के संदर्भ में बाज़ारों में बेहतर प्रदर्शन प्रासंगिक है। हालाँकि, जीक्यू का वास्तविक पथ निर्धारण उसके न्यूनतम लागत-मार्ग से इधर-उधर हो सकता है और यह इसके पीछे के राजनीतिक कारणों को दर्शाता है। हम वास्तविक मार्ग की ऐसी संभावित अंतर्जातता से बचने के लिए, अपने अध्ययन में नोडल शहरों को जोड़ने वाले काल्पनिक रैखिक मार्ग का उपयोग करते हैं। हम एक साधन चर(IV) यानी इंस्ट्रुमेंटल वेरिएबल दृष्टिकोण3 का उपयोग करते हैं ताकि हम जिलों में बाज़ार पहुँच में भिन्नता के केवल उस हिस्से का उपयोग कर सकें, जो ऐतिहासिक रेलमार्गों और निकटतम जीक्यू आर्म की दूरी से परिणामित होता है और इस प्रकार किसी भी संभावित अंतर्जातता को दूर कर सकें।

हमारे परिणाम

आकृति-2 में तीन वैकल्पिक अनुमान रणनीतियों के तहत अनुमानित परिणामों को दर्शाया गया है। पहले अनुमान में एक साधन के रूप में औपनिवेशिक रेलमार्ग की लम्बाई (रेलरोड IV) का उपयोग किया है और दूसरे में स्वर्णिम चतुर्भुज नेटवर्क (जीक्यू IV) की दूरी का उपयोग किया गया है। तीसरे अनुमान में इन दोनों (लासो IV)4 सहित संभावित साधन चरों के एक सेट में चयन के लिए एक सांख्यिकीय पद्धति का उपयोग किया गया है। यहाँ अनुमानों में कुछ भिन्नता है, फिर भी परिणाम काफी सुसंगत हैं।

आकृति-2. बाज़ार पहुँच के संबंध में अनुमानित लोच


हमारे नतीजे दर्शाते हैं कि बाज़ार पहुँच में 10% की वृद्धि से भूमि गिनी गुणांक में 2.5% की वृद्धि होती है और लम्बे समय में भूमिहीन परिवारों की संख्या में 6.8% की वृद्धि होती है। यह सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण और सार्थक वृद्धि5 हैं। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि औसत जिले में लगभग आधे परिवार भूमिहीन (56.4%) हैं aur 6.8% वृद्धि का मतलब है कि भूमिहीन परिवारों का नया प्रतिशत लगभग 60.24% हो जाएगा। संक्षेप में, बाज़ार तक बढ़ती पहुँच से भूमि असमानता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। 

इस विश्लेषण से ब्रेवरमैन और स्टिग्लिट्ज़ (1989) द्वारा प्रस्तावित सिद्धांत को भी बल मिलता है। अर्थात, कम व्यापार लागत प्रौद्योगिकी अपनाने की लाभप्रदता को बढ़ाकर बड़े पैमाने पर उससे जुड़े रिटर्न को बढ़ाती है। बाज़ार तक पहुँच में 10% की वृद्धि होने से कृषि प्रौद्योगिकी अपनाने संबंधी रिटर्न 3.5% बढ़ जाता है। कुछ संकेत मिलते हैं कि बाज़ार तक पहुँच भूमि की बिक्री में वृद्धि से जुड़ी है, लेकिन ये अनुमान कम सटीक हैं और इसके साक्ष्य निर्णायक नहीं हैं। 

निष्कर्ष

संक्षेप में, अनुमान के परिणामों से दो महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त होते हैं। पहला, भारत में सड़कों और राजमार्गों में भारी निवेश से भूमि असमानता बढ़ने की संभावना होती है। और दूसरा, ग्रामीण अंदरूनी इलाकों को शहरी बाज़ारों के साथ जोड़ने के बड़े प्रयास से कृषि प्रौद्योगिकी को अपनाने और कृषि विकास के रिटर्न बढ़ाने में मदद मिलेगी। 

इसका एक महत्वपूर्ण नीतिगत निहितार्थ यह है कि छोटे और मध्यम किसानों की ऋण पहुँच में सुधार से दक्षता और ‘इक्विटी’ दोनों में सुधार करके दोहरा लाभ लिया जा सकता है। ऋण तक बेहतर पहुँच के साथ, छोटे और मध्यम किसान नई तकनीक अपनाकर बड़े किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होंगे। हालांकि, कुछ मामलों में अपेक्षाकृत अकुशल, छोटे और मध्यम किसानों के लिए अपनी ज़मीन बेचना और पास के शहरी श्रम बाज़ार में पलायन करना (या आवागमन करना), या गैर-कृषि व्यवसाय शुरू करना बेहतर हो सकता है, परन्तु यह तय करना महत्वपूर्ण है कि ऋण बाज़ार तक पहुँच की कमी के कारण छोटे और मध्यम किसानों को नुकसान न हो। सरकार को परिवहन ढाँचे में निवेश के साथ-साथ ऋण बाज़ार नीतियों पर भी विचार करने की ज़रूरत है। 

टिप्पणियाँ:

  1. गिनी सूचकांक यह मापता है कि किसी अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों या परिवारों के बीच भूमि (या आय और उपभोग) का वितरण पूरी तरह से समान वितरण से किस हद तक विचलित होता है। इसमें 0 सूचकांक पूर्ण समानता को दर्शाता है जबकि 100 पूर्ण असमानता को दर्शाता है।
  2. 1880 के बाद अंग्रेज़ों द्वारा निर्मित रेलमार्गों को ‘अकाल आयोग की रिपोर्ट’ के कारण आंशिक रूप से गरीब क्षेत्रों के लिए लक्षित किया गया था।
  3. अंतर्जात संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए अनुभवजन्य विश्लेषण में साधन चर या इंस्ट्रुमेंटल वेरिएबल का उपयोग किया जाता है। यह साधन चर (हमारे अध्ययन में बाज़ार तक पहुँच) के साथ सह-संबद्ध है, लेकिन ब्याज के परिणाम (भूमि असमानता, बाज़ार तक पहुँच के माध्यम से इसके प्रभावों को छोड़कर) को सीधे प्रभावित नहीं करता है। व्याख्यात्मक कारक और रुचि के परिणाम के बीच कारण-संबंध को मापने के लिए साधनों का उपयोग किया जा सकता है।
  4. लैस्सो द्वारा चुने गए IV ढलान के साथ प्रतिक्रिया करने वाले जीक्यू से दूरी के आधार पर हैं ; जीक्यू से दूरी की ऊंचाई के साथ परस्पर-क्रिया और रेलमार्ग की लम्बाई की फसल की उपयुक्तता के साथ परस्पर-क्रिया।
  5. यह अनुमान लासो IV परिणामों पर आधारित है। यदि हम 2एसएलएस अनुमानों का उपयोग करते हैं, तो 10% अधिक बाज़ार पहुँच का मतलब है कि जिले में भूमिहीन परिवारों में 7.6% की वृद्धि हुई है। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : क्लॉडिया बर्ग विश्व बैंक के अनुसंधान विकास समूह की स्थिरता और बुनियादी ढांचा इकाई में एक विस्तारित अवधि सलाहकार हैं। ब्रायन ब्लैंकेसपुअर विश्व बैंक के विकास डेटा समूह में एक वरिष्ठ भूगोलवेत्ता हैं। एम. शाहे इमरान कोलंबिया विश्वविद्यालय में नीति संवाद पहल के एक विकास अर्थशास्त्री हैं। फ़रहाद शिल्पी विश्व बैंक में विकास अनुसंधान समूह (सतत विकास और बुनियादी ढाँचा) में एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं।

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