गरीबी तथा असमानता

‘थाली सूचकांक’ उस ओर संकेत करता है जो गरीबी के अनुमान नहीं दर्शाते

  • Blog Post Date 07 अगस्त, 2025
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Pulapre Balakrishnan

Centre for Development Studies

pulapre.balakrishnan@gmail.com

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Aman Raj

Krea University

aman.raj@krea.edu.in

भारत में गरीबी का आकलन आमतौर पर गरीबी रेखा के आधार पर किया जाता है जो ज़रूरी मानी जाने वाली दैनिक कैलोरी की पूर्ति के लिए आवश्यक क्रय शक्ति की पहचान करती है। इस लेख में, बालकृष्णन और राज 'थाली’ के सन्दर्भ में जीवन स्तर को मापते हैं। वे भोजन के अभाव की सीमा के आधार पर, भारत में गरीबी संबंधी मापन की समीक्षा का तर्क देते हैं।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) ने जनवरी 2025 में पारिवारिक उपभोग व्यय पर सर्वेक्षण, 2023-24 (इसके बाद, एचसीईएस 2024) प्रकाशित किया। इस डेटा के जारी होने के बाद, अन्य स्रोतों के अलावा भारतीय स्टेट बैंक- एसबीआई (2025) और विश्व बैंक (2025) द्वारा भारत के सन्दर्भ में गरीबी के अनुमान प्रस्तुत किए गए हैं। ये अनुमान अधिकतर उपभोग संभावनाओं के आधार पर गरीबी रेखा निर्धारित करने की प्रथा का पालन करते हैं। ज़्यादातर मामलों में, गरीबी रेखा में ज़रूरी समझी जाने वाली दैनिक कैलोरी सेवन को संतुष्ट करने के लिए आवश्यक क्रय शक्ति की पहचान की जाती है और गरीबी रेखा से कम उपभोग व्यय वाली आबादी के वर्ग को ‘गरीब’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। हालांकि, मूर्त वस्तुओं के सन्दर्भ में जीवन स्तर का एक मापन कम से कम उतना ही उपयोगी होगा।

थाली आहार

हम इसे ध्यान में रखते हुए, भोजन के दैनिक प्रति व्यक्ति उपभोग मूल्य (जिसे एनएसएस द्वारा 'एमपीसीई', या मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के रूप में दर्शाया गया है) को वर्ष 2023-24 में आबादी के लिए थाली की संख्या में परिवर्तित करते हैं। जीवन स्तर के माप के रूप में थाली आहार1 काफी सहज है, क्योंकि यह देश भर में भोजन की एक पहचानने-योग्य इकाई का प्रतिनिधित्व करता है, भले ही इसके लिए सटीक शब्द भिन्न-भिन्न हों। हम प्रतिदिन दो थाली आहार को भोजन उपभोग के न्यूनतम स्वीकार्य मानक के रूप में अपनाते हैं और इसलिए इसे जीवन स्तर भी कहते हैं।

गणना की दृष्टि से, इससे जनसंख्या के उपभोग के वास्तविक मूल्य का अनुमान लगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली थाली की कीमत के बारे में प्रश्न उठता है। इस जानकारी का एक आसान स्रोत रेटिंग और विश्लेषण एजेंसी क्रिसिल है, जो उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम भारत में प्रचलित इनपुट कीमतों के आधार पर, घर में एक थाली बराबर भोजन तैयार करने की औसत लागत प्रकाशित करती है। वर्ष 2023-24 में एक शाकाहारी थाली के लिए, पूरे वर्ष और पूरे देश में, औसतन यह लागत लगभग 30 रुपये थी। जबकि एक मांसाहारी थाली की लागत 58 रुपये थी। हम इन दोनों आँकड़ों का अलग-अलग अनुमान के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इन्हें प्रस्तुत करने से पहले निम्नलिखित टिप्पणियाँ करना ज़रूरी है।

सबसे पहले, थाली में क्या होना चाहिए, इसकी कोई मानक परिभाषा नहीं है। हमें लगता है कि क्रिसिल की शाकाहारी थाली की अवधारणा देश भर में मान्यता प्राप्त शाकाहारी भोजन के काफी करीब है। मांसाहारी थाली की सटीक पहचान करना अधिक कठिन है क्योंकि इसकी सामग्री विभिन्न क्षेत्रों में काफी भिन्न होती है। इसके अलावा, हालांकि क्रिसिल की शाकाहारी थाली की परिभाषा काफ़ी सटीक है, लेकिन अनुमानित लागत ‘घर में बनी’ थाली के लिए है। सभी श्रमिक हर दिन अपने सभी भोजन के लिए घर का बना खाना नहीं खा पाते हैं। यह बात रोज़गार की तलाश में लंबी दूरी तय करने वाले प्रवासियों के सन्दर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जो भारत के आर्थिक परिदृश्य का तेज़ी से हिस्सा बन रहे हैं। हमारी अनौपचारिक पूछताछ में हमें बताया गया कि राजस्थान, बिहार, केरल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में किसी एक व्यावसायिक दुकान से खाए जाने वाले शाकाहारी थाली आहार का मूल्य 30 रुपये से अधिक था। इसलिए, 30 रुपये का अनुमान ज़रूरत से कम होने की संभावना है। तो क्या मांसाहारी थाली के लिए भी 58 रुपये का अनुमान कम ही होगा? इन आपत्तियों के बावजूद, हम थाली की लागत का अपना अनुमान क्रिसिल के अनुमानों पर आधारित करते हैं, क्योंकि ये हमारे अध्ययन से बाहर के स्रोत से लिए गए हैं।

भोजन के सन्दर्भ में जीवन का स्तर

जीवन स्तर को मापने के लिए हम जिस खाद्य उपभोग मूल्य का उपयोग करते हैं, उसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से मुफ्त आपूर्ति, ‘कार्यस्थल पर मुफ्त प्राप्त पका हुआ भोजन’ और ‘सहायता के रूप में प्राप्त पके हुए भोजन’ का आरोपित मूल्य शामिल है। एचसीईएस 2024 खाद्य उपभोग का औसत मूल्य तो बताता है, लेकिन यह पूरी आबादी के लिए उपभोग मूल्य (एमपीसीई) की गणना नहीं करता है। चूँकि जीवन स्तर का आकलन करते समय हम इस वितरण में रुचि रखते हैं, इसलिए हमने प्रत्येक खंड (फ्रैक्टाइल) के लिए उपभोग मूल्य की गणना की है। हमने ऐसा एचसीईएस 2024 में अपनाई गई विधि के अनुसार किया है, जिसमें सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओ एसपीआई) की वेबसाइट पर उपलब्ध ‘मुफ्त में प्राप्त विभिन्न खाद्य पदार्थों की मात्रा और इकाई मूल्यों के आँकड़ों’ का उपयोग किया गया है। खाद्य उपभोग के मूल्य के अपने अनुमानों की जांच के लिए, हमने अखिल भारतीय औसत एमपीसीई की तुलना, जिसमें भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में हमारे अनुमानों में निहित आरोपण शामिल है, एचसीईएस 2024 में प्रकाशित आँकड़ों के साथ की। हमने पाया कि इसमें 4% से कम का अंतर है, जबकि हमारा अनुमान इससे अधिक है।

उपभोग की संभावनाओं का मूल्याँकन करते समय मुफ्त राशन को ध्यान में रखना प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि भारत सरकार ने घोषणा की है कि जनवरी 2024 से पाँच वर्षों के लिए 80 करोड़ (800 मिलियन) लोगों को, जो कि आबादी के 50% से अधिक हैं, मुफ्त राशन दिया जाएगा। जनसंख्या के विभिन्न हिस्सों में भोजन पर उनके खर्च को देखते हुए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपभोग किए जा सकने वाले थाली भोजन की संख्या के हमारे अनुमान ग्रामीण और शहरी भारत के लिए अलग-अलग तालिकाओं, 1 और 2, में प्रस्तुत किए गए हैं।

तालिका-1. ग्रामीण भारत में उपभोग का ‘थाली सूचकांक’

फ्रैक्टाइल

भोजन पर मासिक प्रति व्यक्ति व्यय- आरोपण सहित (रु.)

भोजन पर दैनिक प्रति व्यक्ति व्यय- आरोपण सहित (रु.)

नियंत्रित शाकाहारी थालियों की संख्या

नियंत्रित मांसाहारी थालियों की संख्या

0-5%

1,060.36

35.35

1.18

0.61

5-10%

1,281.15

42.71

1.42

0.74

10-20%

1,444.16

48.14

1.60

0.83

20-30%

1,609.46

53.65

1.79

0.92

30-40%

1,755.13

58.50

1.95

1.01

40-50%

1,901.74

63.39

2.11

1.09

50-60%

2,043.02

68.10

2.27

1.17

60-70%

2,217.40

73.91

2.46

1.27

70-80%

2,428.58

80.95

2.70

1.40

80-90%

2,735.59

91.19

3.04

1.57

90-95%

3,101.35

103.38

3.45

1.78

95-100%

3,876.47

129.22

4.31

2.23

स्रोत : एचसीईएस 2024 की तालिका ए10F और सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आँकड़ों का उपयोग करके गणना की गई (6 मई 2025 को डेटा एक्सेस किया गया)।

विभिन्न खंडों (फ्रैक्टाइल) में खाद्य उपभोग के वास्तविक मूल्य का हमारा अनुमान जीवन स्तर के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। ग्रामीण भारत में, 40% आबादी दिन में दो शाकाहारी थाली बराबर भोजन नहीं खरीद सकती और 80% लोग एक शाकाहारी और एक मांसाहारी थाली का संयोजन नहीं खरीद सकते, जिसकी कुल लागत 88 रुपये है। शहरी भारत में, 10% आबादी एक दिन में दो शाकाहारी थाली बराबर भोजन नहीं खरीद सकती है और 50% आबादी एक दिन में एक शाकाहारी और एक मांसाहारी थाली नहीं खरीद सकती है। ग्रामीण भारत में खाद्यान्न का अभाव, जितना समझा जाता है, उससे कहीं अधिक व्यापक है।

तालिका-2. शहरी भारत में उपभोग का ‘थाली सूचकांक’

 

फ्रैक्टाइल्स

भोजन पर मासिक प्रति व्यक्ति व्यय- आरोपण सहित (रु.)

भोजन पर दैनिक प्रति व्यक्ति व्यय- आरोपण सहित (रु.)

नियंत्रित शाकाहारी थालियों की संख्या

नियंत्रित मांसाहारी थालियों की संख्या

0-5%

1,344.51

44.82

1.49

0.77

5-10%

1,656.75

55.22

1.84

0.95

10-20%

1,895.55

63.19

2.11

1.09

20-30%

2,145.90

71.53

2.38

1.23

30-40%

2,350.31

78.34

2.61

1.35

40-50%

2,572.20

85.74

2.86

1.48

50-60%

2,775.92

92.53

3.08

1.60

60-70%

3,061.41

102.05

3.40

1.76

70-80%

3,370.61

112.35

3.75

1.94

80-90%

3,873.95

129.13

4.30

2.23

90-95%

4,475.68

149.19

4.97

2.57

95-100%

5,984.70

199.49

6.65

3.44

स्रोत : एचसीईएस 2024 की तालिका ए10F और सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आँकड़ों का उपयोग करके गणना की गई (6 मई 2025 को डेटा एक्सेस किया गया)।

क्या भारत के हालिया गरीबी अनुमान जीवन स्तर को पर्याप्त रूप से दर्शाते हैं?

थाली सूचकांक भारत में गरीबी के कुछ अनुमानों पर परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है जो एचसीईएस 2024 के प्रकाशन के बाद सामने आए हैं। इनमें से, एसबीआई का अनुमान ग्रामीण और शहरी भारत दोनों में गरीबी को 5% से कम दर्शाता है। दूसरी ओर, जीवन स्तर का थाली सूचकांक, भोजन से वंचित रहने के उच्च स्तर की ओर इशारा करता है। यह विरोधाभास इसलिए है क्योंकि गरीबी संबंधी अध्ययन यह मानकर चलते हैं कि परिवार या व्यक्ति अपनी सारी आय भोजन पर खर्च करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह धारणा संभवतः गलत है, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों से जुड़ने के लिए व्यय की कुछ मदों, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन और वस्त्र जिन्हें प्राथमिकता मान लिया गया है, की आवश्यकता होती है। इन मदों पर खर्च करने की आवश्यकता से खाद्य व्यय पर दबाव पड़ता है, जो खाद्य पदार्थों की कीमत के साथ-साथ वास्तविक उपभोग की संभावनाओं को निर्धारित करता है। अब, आय के सही उपभोग के लिए परिवारों को कम खाना पड़ेगा। इसलिए, भोजन पर खर्च के आँकड़ों से शुरुआत करना और इसे व्यवहार्य खाद्य उपभोग के माप में बदलना, हमारे विचार से, यथार्थवादी है। इस तरह के दृष्टिकोण की प्रासंगिकता को इस बात से समझा जा सकता है कि एसबीआई रिपोर्ट में गरीबी के अनुमान वर्ष 2011-12 के लिए ‘तेंदुलकर गरीबी रेखा’ के अपडेट पर आधारित हैं। बाद की मुद्रास्फीति दर को लागू करने पर, रिपोर्ट वर्ष 2023-24 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 1,632 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 1,944 रुपये की ‘मासिक गरीबी रेखा’ दर्शाती है। हम तालिका-1 और 2 से देख सकते हैं कि ये व्यय स्तर ग्रामीण आबादी के 40% और शहरी आबादी के 20-30% के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दो शाकाहारी थाली के बराबर नहीं हैं, तब भी जब यह मान लिया जाए कि व्यय पूरी तरह से भोजन पर है। विश्व बैंक द्वारा एचसीईएस 2023 के आँकड़ों का उपयोग करते हुए गरीबी के अनुमानों का दूसरा सेट अप्रैल 2025 में प्रकाशित किया गया था। वे एसबीआई की तुलना में और भी अधिक आशावादी हैं, जो ग्रामीण भारत के लिए ‘अत्यधिक गरीबी’ को 2.8% और शहरी भारत के लिए 1.1% मानते हैं। हम पाठकों पर छोड़ते हैं कि वे इन गरीबी अनुमानों की तुलना ‘थाली सूचकांक’ का उपयोग करके वर्ष 2023-24 में भारत में जीवन स्तर के अनुमानों से करें।

भोजन की कीमत की प्रमुखता

जीवन स्तर के थाली सूचकांक का उपयोग करने पर हमारे निष्कर्ष दर्शाते हैं कि भारत में गरीबी को मापने के तरीके पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। शुरुआत में, हम गरीबी के ऐसे मापन का तर्क देंगे जिसमें प्रतिदिन कम से कम दो थाली भोजन शामिल हों। यहाँ हम गरीबी को बहुआयामी रूप में देखने की उभरती हुई प्रथा के निहितार्थ पर प्रकाश डालना चाहेंगे। हालांकि यह उपयोगी भी है और आय गरीबी पर अब तक के फोकस की तुलना में एक सुधार भी है, लेकिन अभाव के बारह संकेतकों (नीति आयोग, 2024) वाले एक सूचकांक के आधार पर दर्ज कम गरीबी, लगातार जारी खाद्य अभाव को छिपा सकती है, जो हमारे विचार में जीवन स्तर और इस प्रकार गरीबी के मूल्याँकन के मूल में बना रहना चाहिए। यहाँ प्रस्तुत अनुमान दर्शाते हैं कि भारत में खाद्य अभाव के सन्दर्भ में मापी गई गरीबी का स्तर आय गरीबी के मापन के मौजूदा दृष्टिकोण पर आधारित स्तरों से अधिक होने की संभावना है। भोजन पर नियंत्रण निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले खाद्य की इकाई कीमत इस अभ्यास का केंद्रबिंदु है। हमारा अध्ययन भारत में जीवन स्तर के लिए भोजन की कीमत की प्रमुखता की ओर इशारा करता है, यह एक ऐसा कारक है जिस पर नीति-निर्माताओं द्वारा बहुत कम ध्यान दिया जाता है, लेकिन यह भारत में गरीबी की समस्या के समाधान के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है।

परिशिष्ट : 6 जून को हमारे मूल अंग्रेज़ी लेख के प्रकाशन के बाद, सम्पादकों ने हमारा ध्यान मैत्रीश घाटक और ऋषभ कुमार (मई 2024) द्वारा आई4आई में प्रकाशित लेख 'आज कितने भारतीय गरीब हैं?’ की ओर आकर्षित किया, जिसमें वर्ष 2022-23 के पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण द्वारा निहित गरीबी के स्तर का अनुमान लगाने के लिए एक साधारण भोजन की कीमत का उपयोग किया गया था। प्रस्तुत लेख को लिखते समय हमें इस कार्य की जानकारी नहीं थी और इस सन्दर्भ के लिए हम संपादकों को धन्यवाद देते हैं। सच कहें तो, हमारा लेख भारत में उपभोग के मानक का एक माप है जो थाली में भोजन की कीमत पर आधारित है। घाटक और कुमार द्वारा किया गया यह अध्ययन गरीबी अध्ययन के अनुरूप है, जिसमें गरीबी रेखा का निर्माण किया गया है तथा गरीबों की संख्या पर इसके प्रभाव को इंगित किया गया है। हालांकि, दोनों ही लेख इस बात का संकेत देते हैं कि भारत में गरीबी की संभावना, एचसीईएस 2024 के प्रकाशन के बाद कुछ प्रमुख और प्रचारित अध्ययनों में दिए गए अनुमानों से अधिक है, जिनकी समीक्षा यहाँ की गई है।

लेखक आदित्य भट्टाचार्य, महेंद्र देव, उदय शंकर मिश्रा, पीसी मोहनन, एम परमेश्वरन, इंदिरा राजारामन, ऋषि व्यास को उनकी उपयोगी सलाह के लिए धन्यवाद देते हैं। यदि कोई त्रुटि हो, तो वह लेखकों की अपनी होगी।

टिप्पणी :

  1. थाली का अर्थ एक प्लेट है और थाली भोजन आहार की एक सम्पूर्ण इकाई है जिसमें चावल/रोटी, दाल और सब्ज़ियाँ या मांस/मछली शामिल होती हैं। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : पुलप्रे बालकृष्णन तिरुवनंतपुरम स्थित विकास अध्ययन केन्द्र में मानद विज़िटिंग प्रोफेसर हैं। उन्होंने अशोक विश्वविद्यालय, सोनीपत, हरियाणा में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और भारतीय प्रबंधन संस्थान कोरीकोड, केरल में वरिष्ठ फेलो के रूप में भी कार्य किया है। उनका शोध भारत में मुद्रास्फीति, विकास और उत्पादकता के क्षेत्रों में रहा है। बालकृष्णन को विकास अध्ययन में विशिष्ट योगदान के लिए मैल्कम आदिशेषय्या पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अमन राज क्रेया विश्वविद्यालय में टीचिंग फेलो हैं। उन्होंने बिहार में पीएम-किसान योजना के मूल्याँकन हेतु आईसीएसएसआर द्वारा वित्त पोषित एक परियोजना पर काम किया है। उनके शोध में अनुप्रयुक्त समष्टि अर्थशास्त्र, मौद्रिक अर्थशास्त्र, समष्टि-वित्त और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की गतिशीलता शामिल हैं। 

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