भारत में सामाजिक पहचान पर आधारित भेदभाव व्यापक रूप में फैला होने की वजह से, भेदभाव में जाति-लिंग अंतर्विरोध के अध्ययन हेतु एक अनूठी सेटिंग उपलब्ध होती है। यह लेख, उत्तर प्रदेश में किये गए एक क्षेत्रीय प्रयोग के आधार पर दर्शाता है कि मरीज द्वारा महिला डॉक्टरों की तुलना में पुरुष डॉक्टरों को पसंद किये जाने के कारण जाति-संबंधी पूर्वाग्रह इस लिंग संबंधी भेदभाव को और बढ़ा सकते हैं। भारत में निम्न-जाति के पेशेवरों की बढ़ती हिस्सेदारी को देखते हुए, यह लिंग-जाति अंतर्विरोध पेशेवरों के बीच लैंगिक असमानताओं को बढ़ा सकता है।
2018 के लैंगिक असमानता सूचकांक में, भारत 162 देशों (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी), 2019) में से 122वें स्थान पर है। भारत में महिला श्रम-बल भागीदारी (एफएलएफपी) की कम दर तथा महिलाओं और पुरुषों के बीच बड़ी वेतन असमानताएं, दोनों हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में एफएलएफपी लगभग 25% है, और शहरी क्षेत्रों (लाहोटी और स्वामीनाथन 2016) में यह 20% से कम है, जिसमें 2018-2019 (चक्रवर्ती 2020) के अनुसार, महिला कर्मचारियों का औसत वेतन पुरुषों के औसत वेतन का लगभग 65% है। महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार के लिए उठाए गए कदमों के अलावा, कोई ऐसा संवैधानिक अधिदेश या कानून नहीं है जिसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार या शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं के लिए सीटें सुनिश्चित की गई हों। केवल बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब जैसे कुछ राज्यों ने पिछले दशक के दौरान सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षण की शुरुआत की है। शैक्षणिक संस्थानों के संदर्भ में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ने एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) विषयों में महिलाओं की भागीदारी के निम्न स्तर को ठीक करने के लिए वर्ष 2018 में महिलाओं के लिए 20% सीटों का आरक्षण शुरू किया। यह उपाय महिलाओं की हिस्सेदारी को वर्ष 2018-19 में कुल सीटों के लगभग 14% से बढाकर वर्ष 2020-21 में 20% तक कराने में काफी सफल रहा है।
इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि निचली जाति के समुदायों को आज भी कलंकित और उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है (मधेश्वरन और एटवेल 2007, थोरात और एटवेल 2007, सिद्दीकी 2011, बनर्जी एवं अन्य 2009, बनर्जी एवं अन्य 2013, इस्लाम एवं अन्य 2018, इस्लाम एवं अन्य 2021)। भारत में, ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों जैसे एससी (अनुसूचित जाति) और एसटी (अनुसूचित जनजाति) को सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों, शिक्षा और राजनीति (देशपांडे 2013) में समान अवसर प्रदान करने के लिए वर्ष 1950 में जाति-आधारित आरक्षण की शुरुआत की गई थी। मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद, 1990 के दशक की शुरुआत में सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी कोटा में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को शामिल करने के लिए अंततः इसका विस्तार किया गया था। वर्ष 2006 में किये गए 93वें संविधान संशोधन में शैक्षिक कोटा में ओबीसी को भी शामिल किया गया। जैसा कि नीचे चित्र 1 से स्पष्ट है, सरकार द्वारा वित्त पोषित शैक्षणिक संस्थानों में एसटी के लिए 7.5%, एससी के लिए 15% और ओबीसी के लिए 27% जाति-आधारित कोटा (देशपांडे 2013) के परिणामस्वरूप, विभिन्न चिकित्सा विज्ञान कार्यक्रमों में निचली जाति के छात्रों- विशेष रूप से ओबीसी के नामांकन की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। यह विभिन्न जाति समूहों में प्रवेश के लिए अलग-अलग क्वालीफाइंग स्कोर रखे जाने के कारण संभव हुआ है (बर्ट्रेंड एवं अन्य 2010)।
चित्र 1. जाति और वर्ष के आधार पर चिकित्सा-विज्ञान में नामांकित छात्रों का हिस्सा
टिप्पणियाँ: (i) लेखकों द्वारा की गई गणना अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (एआईएसएचई) के आंकड़ों पर आधारित है। (ii) इस डेटा में चिकित्सा-विज्ञान के सभी कार्यक्रमों (उदाहरण के लिए, एमबीबीएस (बैचलर ऑफ मेडिसिन एंड बैचलर ऑफ सर्जरी), फार्मेसी और फार्माकोलॉजी, नर्सिंग, आदि) में नामांकित छात्र शामिल हैं।
हमारा अध्ययन
हाल के एक अध्ययन (इस्लाम एवं अन्य 2021) में, हम यह जाँच करते हैं कि क्या लिंग और जातिगत भेदभाव का सह-अस्तित्व लैंगिक असमानता को बढ़ाता है। हमने 2017 में उत्तर प्रदेश (यूपी) राज्य के कानपुर नगर जिले में 40 विभिन्न स्थानों पर 3,128 प्रतिभागियों के बीच एक यादृच्छिक क्षेत्र प्रयोग किया। प्रयोग के एक भाग के रूप में, प्रत्येक प्रतिभागी को अनुसंधान दल द्वारा आयोजित मोबाइल स्वास्थ्य क्लिनिक पर स्वास्थ्य जांच के लिए पंजीकरण करने हेतु आमंत्रित किया गया।
यह प्रयोग कई चरणों में आयोजित किया गया था: सबसे पहले, प्रत्येक प्रतिभागी को यादृच्छिक रूप से 'उपचार समूह' से महिला या पुरुष-डॉक्टर नियत किया गया। प्रत्येक प्रतिभागी को अपने पंजीकरण के समय एक विशेष लिंग (महिला या पुरुष) के चार डॉक्टरों को रैंक करने के लिए कहा गया था (नियत ‘उपचार समूह’ के आधार पर, अर्थात, प्रत्येक प्रतिभागी को महिला या पुरुष डॉक्टरों को रैंक करने के लिए कहा गया था, लेकिन दोनों को एक साथ नहीं); तथापि इसमें अलग-अलग जाति एवं अनुभव के संयोजन-सहित अपने सबसे पसंदीदा डॉक्टर (रैंक 1) से लेकर कम से कम पसंदीदा डॉक्टर (रैंक 4) तक रैंक करना था। प्रत्येक डॉक्टर की जाति एवं अनुभव भिन्न था: (1) उच्च जाति का उपनाम और उच्च स्तर का अनुभव; (2) निचली जाति का उपनाम और उच्च स्तर का अनुभव; (3) उच्च जाति का उपनाम और निम्न स्तर का अनुभव; और (4) निचली जाति का उपनाम और निम्न स्तर का अनुभव। दो उच्च जाति के डॉक्टरों के उपनाम सामान्य जाति श्रेणी (जीसी) के थे, जबकि दो निचली जाति के डॉक्टरों के उपनाम एससी, एसटी या ओबीसी समूहों के थे। उच्च स्तर के अनुभव वाले दो डॉक्टरों का अनुभव 12 साल या आठ साल का था। इसके विपरीत, निम्न स्तर का अनुभव हमेशा चार साल का होता है। तालिका-1 में प्रतिभागी द्वारा रैंक किए गए चार डॉक्टरों का उदाहरण दिया गया है।
तालिका 1. चार डॉक्टरों का उदाहरण, जिन्हें प्रतिभागी को रैंक करने के लिए कहा गया था
निम्नलिखित चार महिला डॉक्टरों को सबसे पसंदीदा (1) से लेकर सबसे कम पसंदीदा (4) रैंक दें: |
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उच्च जाति के उपनाम वाला डॉक्टर (चार साल का अनुभव) |
निचली जाति के उपनाम वाला डॉक्टर (चार साल का अनुभव) |
उच्च जाति के उपनाम वाला डॉक्टर (आठ साल का अनुभव) |
निचली जाति के उपनाम वाला डॉक्टर (आठ साल का अनुभव) |
रैंकिंग एक प्रकार से प्रोत्साहन-स्वरूप था, क्योंकि प्रतिभागियों को यह बताया गया था कि उनका चेक-अप उनके कम पसंदीदा डॉक्टर के बजाय अधिक पसंदीदा डॉक्टर से कराये जाने की अधिक संभावना है। तथापि, समझने में आसानी हो इसलिए हमने परिणाम प्रस्तुत करने के लिए रिवर्स रैंक का उपयोग किया, अर्थात प्राप्त रैंक से पांच माइनस, इसका मतलब यदि उच्च रिवर्स रैंक है तो प्रबल वरीयता है।
दूसरा, प्रतिभागियों ने एक संक्षिप्त सर्वेक्षण प्रश्नावली भरकर दी, जिसमें उनकी मूल जनसांख्यिकीय, सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं के बारे में जानकारी पूछी गई थी। इसके बाद प्रतिभागियों के लिए चिकित्सक नियत कर उन्हें अपॉइंटमेंटस दी गईं। वास्तविक स्वास्थ्य सेवाएं अंतिम चरण में प्रदान की गईं।
लैंगिक और जाति-आधारित भेदभाव
मरीज़ जब डॉक्टरों के साथ लैंगिक आधार पर सांख्यिकीय रूप से भेदभाव करते हैं, तो सिद्धांत अनुमान लगाता है कि महिला डॉक्टरों को उनके अनुभव का प्रतिफल (रिटर्न) पुरुष डॉक्टरों की तुलना में कम मिलता है। नीचे दिए गए चित्र 2 से पता चलता है कि कम अनुभव वाली महिला डॉक्टरों को औसतन 1.84 का रिवर्स रैंक प्राप्त होता है। इसकी तुलना में, कम अनुभव वाले पुरुष डॉक्टरों को औसतन 1.79 का रिवर्स रैंक प्राप्त होता है। लेकिन, उच्च स्तर के अनुभव वाले पुरुष डॉक्टरों को महिला डॉक्टरों की तुलना में अधिक वरीयता (3.21 बनाम 3.16) दी जाती है। इस प्रकार, परिणामों से पता चलता है कि महिला डॉक्टरों को अधिक श्रम बाजार का नुकसान होता है क्योंकि वे अधिक कार्य-अनुभव जमा करती हैं।
चित्र 2. लैंगिक आधार पर भेदभाव के साक्ष्य
नोट: (i) रिवर्स रैंक एक प्रतिभागी से डॉक्टर को मिलने वाली रैंक से पांच अंक कम है। उच्च रिवर्स रैंक प्राप्त करने वाले डॉक्टर को अधिक प्राथमिकता दी जाती है। (ii) त्रुटि पट्टियाँ माध्य/औसत ± SEM (माध्य की मानक त्रुटि) का प्रतिनिधित्व करती हैं।
दूसरी ओर, जाति-आधारित भेदभाव के प्रमाण भी मिलते हैं। चित्र 3 से पता चलता है कि उच्च स्तर के अनुभव और साथ ही निम्न स्तर के अनुभव- दोनों सन्दर्भों में, निचली जाति के डॉक्टरों की तुलना में उच्च जाति के डॉक्टरों का औसत रिवर्स रैंक अधिक है। इस प्रकार, यह दर्शाता है कि अनुभव के बावजूद निचली जाति के डॉक्टरों के साथ हमेशा भेदभाव किया जाता है।
चित्र 3. जाति-आधारित भेदभाव के साक्ष्य
नोट: (i) रिवर्स रैंक एक प्रतिभागी से डॉक्टर को मिलने वाली रैंक से पांच अंक कम है। उच्च रिवर्स रैंक प्राप्त करने वाले डॉक्टर को अधिक प्राथमिकता दी जाती है। (ii) त्रुटि पट्टियाँ माध्य/औसत ± SEM (माध्य की मानक त्रुटि) का प्रतिनिधित्व करती हैं।
लिंग-जाति आधारित अंतर्विरोध
अंत में, हम यह जांच करते हैं कि जाति, लिंग और अनुभव के आधार पर डॉक्टरों के रिवर्स रैंक की अलग से रिपोर्टिंग किये जाने पर, जाति और लिंग आधारित अंतर्विरोध अंतर-लिंग असमानता को कैसे प्रभावित करता है। चित्र 4 का बायाँ पैनल दर्शाता है कि निचली जाति के डॉक्टरों में, निम्न स्तर के अनुभव वाले महिला डॉक्टरों और पुरुष डॉक्टरों को समान रूप से वरीयता दी जाती है, जबकि उच्च स्तर के अनुभव वाले पुरुष डॉक्टरों की तुलना में महिला डॉक्टरों को काफी कम वरीयता दी जाती है। दूसरी ओर, चित्र 4 के दायें पैनल से पता चलता है कि उच्च जाति के डॉक्टरों में, निम्न स्तर के अनुभव वाले महिला डॉक्टरों को पुरुष डॉक्टरों की तुलना में काफी अधिक वरीयता दी जाती है, जबकि उच्च स्तर के अनुभव वाले पुरुष और महिला- दोनों डॉक्टरों को समान रूप से पसंद किया जाता है। इस प्रकार हम पाते हैं कि, निचली जाति के डॉक्टरों के सन्दर्भ में, उनकी लैंगिक स्थिति (महिला/पुरुष) के आधार पर अनुभव के प्रतिफल (रिटर्न) की दर कम होने की वजह से, उच्च जाति के डॉक्टरों की तुलना में निचली जाति के डॉक्टरों में लैंगिक असमानता बदतर है।
चित्र 4. डॉक्टरों से सांख्यिकीय भेदभाव, उनकी लैंगिक स्थिति, जाति के आधार पर
नोट: (i) रिवर्स रैंक एक प्रतिभागी से डॉक्टर को मिलने वाली रैंक से पांच अंक कम है। उच्च रिवर्स रैंक प्राप्त करने वाले डॉक्टर को अधिक प्राथमिकता दी जाती है। (ii) त्रुटि पट्टियाँ माध्य/औसत ± SEM (माध्य की मानक त्रुटि) का प्रतिनिधित्व करती हैं।
नीति क्रियान्वयन
हमारे निष्कर्ष अलग-अलग भेदभाव वाले समूहों के अंतर्विरोध झेल रहे व्यक्तियों पर अधिक नीतिगत ध्यान देने की मांग करते हैं। भारत में लिंग और जाति आधारित आरक्षण की शुरूआत को राजनीति और सरकारों में महिलाओं और निचली जाति के व्यक्तियों के कम प्रतिनिधित्व को दूर करने में काफी सफलता मिली है। उच्च शिक्षण हेतु जाति-आधारित आरक्षण ने पिछड़े वर्गों के उच्च-कुशल नौकरियों के प्रतिनिधित्व में भी सफलतापूर्वक सुधार किया है, जिसके फलस्वरूप उनकी आय में वृद्धि हुई है (बर्ट्रेंड एवं अन्य 2010)। चिकित्सा पेशे में निम्न जाति के व्यक्तियों की हिस्सेदारी वर्ष 1999 में लगभग 12% थी, जो बढ़कर वर्ष 2009 में 50% से अधिक हो गई है, इससे डॉक्टरों की युवा पीढ़ी में निम्न जाति की पृष्ठभूमि के डॉक्टरों के आने की अधिक संभावना है। हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि उच्च कुशल पेशेवरों के बीच लैंगिक असमानता के बढ़ने की संभावना रहेगी। तथापि, जाति-आधारित आरक्षण के बावजूद जाति-आधारित भेदभाव के बने रहने की वजह से यह सवाल उठता है कि क्या सकारात्मक कार्रवाई के कार्यान्वयन में आरक्षण के अलावा किसी वैकल्पिक दृष्टिकोण पर विचार किया जाना चाहिए (इस्लाम एवं अन्य 2018)।
आरक्षण के लिए एक वैकल्पिक सकारात्मक कार्रवाई रणनीति यह हो सकती है कि उच्च शिक्षण हेतु कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के छात्रों को बेहतर ढंग से तैयार करने के लिए अधिक शैक्षिक संसाधनों को समर्पित किया जाए, ताकि उनके प्रवेश मानदंड में बदलाव किए बिना मेडिकल स्कूलों में उनके नामांकन में सुधार किया जा सके। यह दृष्टिकोण उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ा सकता है और इस नकारात्मक सोच को कम कर सकता है कि महिलाओं और निम्न जाति समूहों की उत्पादकता कम है या वे कम गुणवत्ता वाली सेवाएं प्रदान करते हैं। उच्च कुशल व्यवसायों में महिलाओं और निम्न जाति समूहों के बढ़ते हुए प्रतिनिधित्व और उनके प्रति कम भेदभाव एक प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करा सकता है और सेवाओं की समग्र गुणवत्ता में सुधार ला सकता है।
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लेखक परिचय: असद इस्लाम वर्तमान में सेंटर फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स एंड सबस्टैंटियलिटी (सीडीईएस) के निदेशक और मोनाश यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। देबायन पकर्शी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। सौभाग्य साहू भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में आर्थिक विज्ञान विभाग में एक पीएच.डी. छात्र हैं। चून वांग मोनाश यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। यवेस ज़ेनौ अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं और मोनाश यूनिवर्सिटी में व्यवसाय और अर्थशास्त्र में रिचर्ड स्नैप चेयर हैं|
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