मानव विकास

भारत के प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में सुधार : बेहतर सेवा वितरण, मृत्यु दर में कमी

  • Blog Post Date 14 अगस्त, 2025
  • लेख
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Patrick Agte

Stockholm School of Economics

patrick.agte@hhs.se

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Jitendra Kumar Soni

Government of Rajasthan

jksoniias@gmail.com

भारत में एक 60 वर्षीय व्यक्ति के आगे औसतन लगभग 19 वर्ष तक जीवित रहने की सम्भावना है, जो उच्च आय वाले देशों की तुलना में चार वर्ष कम है और यह अंतर आंशिक रूप से गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की खराब पहुँच के कारण है। राजस्थान के आँकड़ों के आधार पर इस लेख में यह दर्शाया है कि एक सुधार के रूप में पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में एक मध्यम-स्तरीय स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ता को शामिल करने से सेवा प्रावधान में सुधार होता है, रोगियों के आने की संख्या बढ़ती है और सभी आयु वर्गों में मृत्यु दर में कमी आती है।

भारत ने हाल के दशकों में, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। बाल मृत्यु दर में काफ़ी गिरावट आई है और यह धीरे-धीरे उच्च आय वाले देशों के बराबर पहुँच रही है। इसके विपरीत, 60 वर्ष की आयु में जीवन प्रत्याशा में भारत और उच्च आय वाले देशों के बीच का अंतर बना हुआ है और यह समय के साथ बढ़ा भी है।1 इसमें योगदान देने वाला एक प्रमुख कारक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच की कमी है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2017-2018 के अनुसार ग्रामीण भारत में 38% मृत वयस्कों को उनकी मृत्यु से पहले कोई चिकित्सा सुविधा नहीं मिली। यहाँ तक कि जब लोग देखभाल की तलाश करते भी हैं तो उन्हें अक्सर अविश्वसनीय सेवाओं और निम्न-गुणवत्ता वाला उपचार प्राप्त होता है (दास एवं अन्य 2016)।

वर्ष 2018 में शुरू की गई आयुष्मान भारत पहल के एक भाग के रूप में, भारत के नीति-निर्माताओं का उद्देश्य इन कमियों को दूर करना और प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं को स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्रों में परिवर्तित करके स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मज़बूत करना था, जिन्हें अब आयुष्मान आरोग्य मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस सुधार का एक प्रमुख हिस्सा उप-केन्द्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) की नियुक्ति करना था। ये उप-केन्द्र भारत की प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का सबसे निचला स्तर हैं और पहले इनमें केवल एक सहायक नर्स मिडवाइफ (एएनएम) और मान्यता-प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) ही कार्यरत थे। नए सीएचओ संविदा कर्मचारी हैं जिनके पास नर्सिंग की डिग्री होना आवश्यक है और उन्हें पूरे समुदाय को बुनियादी बाह्य-रोगी देखभाल सेवाएँ प्रदान करने और पुरानी बीमारियों की जाँच करने का दायित्व सौंपा गया है। वर्ष 2024 तक, देश भर के स्वास्थ्य केन्द्रों में 1,38,000 से अधिक सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) तैनात किए जा चुके होंगे, जिससे 75 करोड़ से अधिक लोगों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में मदद मिलेगी (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, 2024)।

यद्यपि इस सुधार का लक्ष्य ग्रामीण समुदायों के करीब व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा पहुँचाना था, लेकिन स्वास्थ्य परिणामों पर इसका प्रभाव अनिश्चित है। स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों की अनुपस्थिति की उच्च दर (चौधरी एवं अन्य 2006) को देखते हुए, केवल कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने से बेहतर सेवाएँ नहीं मिल सकतीं। इसके अलावा, सार्वजनिक सुविधाओं में कम भरोसा और सीमित जानकारी के चलते रोगियों की प्रतिक्रियाएं कमज़ोर पड़ सकती हैं (वैगनर एवं अन्य 2023)। यदि देखभाल की गुणवत्ता का आकलन करना मुश्किल है और रेफरल दुर्लभ हैं, तो यह सुधार अनजाने में जटिल स्थितियों वाले रोगियों को नुकसान भी पहुँचा सकता है। क्योंकि इसके कारण वे आस-पास के शहरों में अधिक योग्य चिकित्सकों से देखभाल लेने के बजाय केवल मध्यम स्तर के स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों पर निर्भर रह जाते हैं।

अध्ययन का डिज़ाइन और डेटा स्रोत

हमने अपने अध्ययन (एग्टे और सोनी 2025) में, राजस्थान के उप-केन्द्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) की नियुक्ति के सेवा प्रावधान, रोगियों के दौरे और स्वास्थ्य परिणामों पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्याँकन किया है। हमने उदयपुर जिले के 193 गाँवों के दो दौर के प्राथमिक सर्वेक्षण आँकड़ों के साथ प्रशासनिक आँकड़ों को संयोजित किया है ताकि व्यापक रूप से यह समझा जा सके कि सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) की तैनाती से रोगियों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं पर क्या प्रभाव पड़ा है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि मार्च 2022 में कार्यान्वयन के पहले दौर में राजस्थान में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) की केवल लगभग दो-तिहाई रिक्तियाँ ही भरी गईं।2 इस चरणबद्ध कार्यान्वयन से हम एक तुलनात्मक डिफ़रेंस-इन-डिफ़रेंस डिज़ाइन का उपयोग करके पहले दौर में सीएचओ की तैनाती वाले और नहीं वाले उप-केन्द्रों के बीच समय के साथ परिणामों में परिवर्तनों की तुलना कर सके।

किसी जिले के किस उप-केन्द्र में सीएचओ की तैनाती होगी, इसका निर्णय स्थानीय अधिकारियों द्वारा किया जाता था, जिन्हें केवल सीएचओ के निवास स्थान और उप-केन्द्र के स्थान के बारे में जानकारी दी जाती थी। इस नियुक्ति प्रक्रिया को समझने के लिए, हमने ‘उपचार’ और ‘नियंत्रण’ समूह उप-केन्द्रों की अवलोकनीय भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर तुलना की।

हम तीन डेटा स्रोतों पर निर्भर हैं। हमारा बड़े पैमाने का प्रशासनिक डेटासेट एएनएम द्वारा एकत्र किए गए नियमित डेटा पर आधारित है और इसमें चार साल की अवधि (अप्रैल 2019 से मार्च 2024) में राजस्थान के सभी गाँवों को शामिल किया गया है। हमने 193 गाँवों में सार्वजनिक प्रदाताओं, निजी प्रदाताओं और परिवारों पर मूल सर्वेक्षण डेटा के दो दौर एकत्र किए। पहला, सीएचओ की तैनाती से ठीक पहले का था और दूसरा ‘उपचारित’ उप-केन्द्रों में सीएचओ के शामिल किए जाने के 9 से 12 महीने बाद का था। डेटा संग्रह के दूसरे दौर के दौरान, हमने स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और प्रदाता के प्रदर्शन के अतिरिक्त आँकड़े प्राप्त करने के लिए नमूना उप-केन्द्रों पर अघोषित ऑडिट दौरे और रोगी निकास सर्वेक्षण भी किए। अंत में, हमने एक स्थानीय गैर-सरकारी संगठन, खुशी बेबी, के सहयोग से चल रही एक स्वास्थ्य सेवा जनगणना के माध्यम से पारिवारिक प्रदाता विकल्पों के संबंध में डेटा प्राप्त किया।

अध्ययन के परिणाम

हमने पाया कि सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) ने सार्वजनिक सेवा व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार किया है। हम अपने अघोषित ऑडिट दौरों के आँकड़ों का उपयोग करते हुए, दर्शाते हैं कि सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) वाले उप-केन्द्रों के किसी विशेष दिन खुले रहने की सम्भावना 25 प्रतिशत अधिक होती है (आकृति-1, बायाँ पैनल)। स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में भी वृद्धि हुई- पेशंट एग्जिट सर्वेक्षणों (आकृति-1, दायाँ पैनल) के अनुसार, ‘उपचार’ समूह के उप-केन्द्रों में काल्पनिक चिकित्सा विवरणों में जाँच-सूची पूर्णता दर अधिक थी और रोगी-प्रदाता अंतःक्रिया में सुधार हुआ। पेशंट एग्जिट सर्वेक्षणों के परिणाम यह भी दर्शाते हैं कि ‘उपचार’ समूह के उप-केन्द्रों में गए रोगियों में संतुष्टि का स्तर अधिक था और उनके रक्तचाप का माप कराने की सम्भावना अधिक थी।

आकृति-1. स्वास्थ्य सेवा और गुणवत्ता पर सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों का प्रभाव

टिप्पणियाँ : (i) यह आँकड़ा अघोषित ऑडिट दौरे और पेशंट एग्जिट सर्वेक्षणों के परिणामों को प्रस्तुत करता है। (ii) बाएँ पैनल में उन उप-केन्द्रों का अनुपात दर्शाया गया है जो अघोषित दौरे के दिन कम से कम किसी समय खुले थे। (iii) दायें पैनल में उन प्रश्नों की संख्या दर्शाई है जो उप-केन्द्र में स्वास्थ्य सेवा प्रदाता ने पेशंट एग्जिट सर्वेक्षणों के अनुसार रोगी से पूछे थे। (iv) व्हिस्कर 95% विश्वास अंतराल के अनुरूप हैं (जो यह दर्शाता है कि यदि हम अध्ययन को कई बार दोहराते हैं, तो वास्तविक प्रभाव 100 में से 95 मामलों में इस सीमा के भीतर होगा) जो उप-केन्द्र पर क्लस्टर किए गए 'मानक त्रुटियों' पर आधारित है। (v) ‘नियंत्रण’ समूह के लिए उप-केन्द्र-स्तरीय भार व्युत्क्रम सम्भाव्यता भार द्वारा निर्मित किए जाते हैं, जो उन उप-केन्द्रों को अधिक भार देता है, जिनमें सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) की नियुक्ति होने की अधिक सम्भावना थी।

इसका परिणाम सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग में वृद्धि के रूप में सामने आया (आकृति-2, बायां पैनल)। सुधार से पहले ‘उपचार’ और ‘नियंत्रण’ समूह उप-केन्द्रों में लगभग समान स्तर और रुझान थे, लेकिन सीएचओ की नियुक्ति के बाद हमने स्पष्ट रूप से रुझान में बदलाव देखा, जिसके परिणामस्वरूप ‘नियंत्रण’ समूह की तुलना में ‘उपचार’ समूह में रोगियों की संख्या में औसतन 58% की वृद्धि हुई। ये अतिरिक्त रोगी कौन हैं? स्वास्थ्य सेवा जनगणना के रोगी विकल्पों के डेटा से पता चलता है कि यह प्रभाव नए रोगियों के कारण है, जो अन्यथा किसी भी तरह की देखभाल की ज़रूरत नहीं समझते। सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) वाले उप-केन्द्रों में तीव्र बीमारियों (जैसे दिल का दौरा और मिर्गी) और दीर्घकालिक बीमारियों (जैसे उच्च रक्तचाप और मधुमेह) के निदान में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो उपचारात्मक और निवारक देखभाल दोनों में लाभ का संकेत देता है। हालांकि, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं में कोई बदलाव नहीं हुआ।

आकृति-2. रोगियों के आगमन और मृत्यु दर पर सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों का प्रभाव

टिप्पणियाँ : (i) यह आँकड़ा समय के साथ ‘उपचार’ और ‘नियंत्रण’ समूह उप-केन्द्रों के लिए औसत परिणाम प्रस्तुत करता है। (ii) रोगियों के आगमन और मृत्यु के आँकड़े प्रशासनिक आँकड़ों से प्राप्त किए गए हैं। (iii) सभी आयु मृत्यु दर को उप-केन्द्र के आवाह क्षेत्र (रोगियों के आगमन क्षेत्र) में प्रति 1,000 लोगों पर एक तिमाही में होने वाली मौतों की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है। (iv) ‘नियंत्रण’ समूह के लिए उप-केन्द्र-स्तरीय भार व्युत्क्रम सम्भाव्यता भार द्वारा निर्मित किए गए हैं। (v) उपचार प्रभाव तुलनात्मक डिफ़रेंस-इन-डिफ़रेंस प्रतिगमन से प्राप्त किया गया है जिसमें सभी पूर्व और बाद की अवधि की तिमाहियों को शामिल किया गया है। (vi) यह 5% के स्तर पर महत्व को इंगित करता है और 1% के स्तर पर महत्व को इंगित करता है।

सार्वजनिक सेवा व्यवस्था को सीधे प्रभावित करने के अलावा, सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) द्वारा सुधार का निजी प्रदाताओं पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा। हम निजी प्रदाता सर्वेक्षणों से प्राप्त जानकारी का उपयोग करते हुए, यह दर्शाते हैं कि सीएचओ के आने के बाद निजी प्रदाताओं ने अपनी गुणवत्ता में सुधार किया। बाज़ार शक्ति में गिरावट के अनुरूप, ये प्रभाव उन गाँवों में सबसे अधिक थे जहाँ आधार रेखा पर केवल एक निजी प्रदाता मौजूद था।

इस सुधार से स्वास्थ्य परिणामों में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। राज्यव्यापी प्रशासनिक आँकड़ों का उपयोग करने पर हम पाते हैं कि जिन गाँवों में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) वाले उप-केन्द्र हैं, वहाँ दो वर्षों में सभी आयु वर्ग की मृत्यु दर में 10% की कमी देखी गई (आकृति-2, दायाँ पैनल)। यह कमी लगभग पूरी तरह से बुजुर्गों (56 वर्ष से अधिक आयु के) में केंद्रित थी, जिसका अर्थ है कि उनकी जीवन प्रत्याशा में कम से कम तीन महीने की वृद्धि हुई।3 सर्वेक्षण के आँकड़े अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में भी गिरावट दर्शाते हैं, जिसका मुख्य कारण फिर से वृद्ध लोग हैं। ये परिणाम विभिन्न संवेदनशीलता जाँचों के लिए मज़बूत हैं और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच के विस्तार के मृत्यु दर पर पड़ने वाले प्रभावों पर अंतर्राष्ट्रीय साक्ष्यों के अनुरूप हैं (बेली और गुडमैन-बेकन 2015, बैंकलारी एवं अन्य 2023, मोरा-गार्सिया एवं अन्य 2024)।

सुधार की सफलता को बेहतर ढंग से समझने के लिए, हमने रोगी व्यवहार के एक 'विच्छिन्न विकल्प मॉडल (डिस्क्रीट चॉइस मॉडल)’ का आकलन किया। यह मॉडल इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि रोगी विभिन्न प्रदाता विशेषताओं, जैसे गुणवत्ता, दूरी और कीमत, को कैसे महत्व देते हैं और यह दर्शाता है कि वे सेवा वितरण में बदलावों पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। हम इस मॉडल का उपयोग करते हुए दर्शाते हैं कि सीएचओ सुधार सफल रहा क्योंकि इससे सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा की पहुँच और गुणवत्ता में एक साथ सुधार हुआ। इसके विपरीत, केवल पहुँच या गुणवत्ता में सुधार करने से सीमित प्रभाव ही होंगे। इसका कारण यह है कि, स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए गुणवत्ता में वृद्धि आवश्यक है, लेकिन रोगी की पसंद केवल पहुँच में बदलाव पर ही निर्भर करती है, गुणवत्ता पर नहीं। एक ही समय में पहुँच और गुणवत्ता बढ़ाकर, सीएचओ नए रोगियों तक पहुँचने में सफल रहे और उन मौजूदा रोगियों की भी सहायता की जो सुधार से पहले ही उप-केन्द्र में आ चुके थे। मॉडल सिमुलेशन से यह भी पता चलता है कि स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान स्थानीय बाज़ार स्थितियों को ध्यान में रखकर स्वास्थ्य परिणामों में और भी बड़े सुधार प्राप्त किए जा सकते हैं।

निष्कर्ष

हमारा विश्लेषण दर्शाता है कि उप-केन्द्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) की नियुक्ति से सेवा प्रावधान और स्वास्थ्य परिणामों में सुधार हुआ है। लागत-प्रभावशीलता विश्लेषण से यह पता चलता है कि यह सुधार न केवल मृत्यु दर को कम करके, बल्कि भविष्य में अस्पताल में भर्ती होने पर होने वाले सरकारी खर्च को भी कम करके, दीर्घावधि में अपने आप ही लाभदायक साबित होगा। निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं पर पड़ने वाले प्रभाव, बड़े पैमाने पर नीति सुधारों का मूल्याँकन करते समय अन्य हितधारकों पर पड़ने वाले अप्रत्यक्ष प्रभावों को ध्यान में रखने के महत्व को दर्शाते हैं। कुल मिलाकर हमारे निष्कर्ष दर्शाते हैं कि सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं में मध्य-स्तरीय प्रदाताओं को शामिल करना स्थानीय स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने की दिशा में एक आसान उपाय हो सकता है। अधिक व्यापक रूप से, इन परिणामों से हाल के शोध साहित्य में कुछ और चीजें जुड़ जाती हैं जो यह दर्शाती हैं कि कैसे कर्मचारियों को बढाने से राज्य की क्षमता में सुधार हो सकता है (गेनीमियन एवं अन्य 2024)। हालांकि, सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) की नियुक्ति के दीर्घकालिक प्रभावों को समझने और क्या सीएचओ के स्थायी कर्मचारी बन जाने के बाद उनके प्रभाव में कोई बदलाव आता है, आगे और शोध की आवश्यकता है।

इस लेख में व्यक्त सभी विचार और त्रुटियाँ केवल लेखकों की हैं और यह लेख आवश्यक रूप से राजस्थान सरकार के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता।

टिप्पणियाँ :

  1. उच्च आय वाले देशों में वर्ष 1960 और 2019 के बीच 60 वर्ष की आयु में जीवन प्रत्याशा 6 से बढ़कर 22.9 वर्ष हो गई, लेकिन भारत में यह केवल 14.2 से बढ़कर 18.6 वर्ष हुई (संयुक्त राष्ट्र, 2022)।
  2. हम 'उपचार समूह' को उन उप-केन्द्रों के रूप में परिभाषित करते हैं जिनमें मार्च 2022 में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) की नियुक्ति हुई, जबकि 'नियंत्रण समूह' के 15% उप-केन्द्रों को भी दिसंबर 2022 में एक नए सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) मिला, जो आकृति-2 में ‘नियंत्रण’ समूह में रोगियों के आगमन में सकारात्मक रुझान को दर्शाता है।
  3. हमारा प्रशासनिक डेटा पाँच आयु समूहों के सन्दर्भ में मृत्यु पर समग्र जानकारी प्रदान करता है- शिशु (<1 वर्ष), बच्चे (1-4 वर्ष), किशोर (5-14 वर्ष), वयस्क (15-55 वर्ष) और बुजुर्ग (>56 वर्ष)। हमें अन्य आयु समूहों की मृत्यु दर में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं मिला। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : पैट्रिक एग्टे एक विकास अर्थशास्त्री हैं और जुलाई 2025 से स्टॉकहोम स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर के रूप में पदस्थ हैं। इससे पहले वे येल इकोनॉमिक ग्रोथ सेंटर में पोस्टडॉक्टरल एसोसिएट थे और उन्होंने 2023 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। उनका शोध भारत और लैटिन अमेरिका में स्वास्थ्य सेवा व शिक्षा बाज़ारों का अध्ययन करने के लिए अनुप्रयुक्त सूक्ष्मअर्थशास्त्र और अनुभवजन्य औद्योगिक संगठन के उपकरणों का उपयोग करता है। डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी राजस्थान कैडर के 2010 बैच के एक भारतीय प्रशासनिक अधिकारी हैं। वे राजस्थान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक रह चुके हैं और वर्तमान, जयपुर जिले के जिला कलेक्टर एवं मजिस्ट्रेट हैं। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से राजनीति विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। 

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