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खुशी के बीज : क्या कृषि फोटोवोल्टिक्स किसानों की आय को दोगुना करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है?

  • Blog Post Date 11 जुलाई, 2025
  • दृष्टिकोण
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हाल के वर्षों में, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और इससे संबद्ध गतिविधियों का योगदान कम हो गया है और किसानों की वास्तविक आय लगभग स्थिर हो गई है। यह लेख दर्शाता है कि कृषि में सौर ऊर्जा को शामिल करने वाले एग्रीफोटोवोल्टिक्स जैसे नए विचारों में किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ, भूमि-उपयोग दक्षता को बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता है।

वर्ष 2016 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों को उनकी वास्तविक आय दोगुनी करने में मदद करने की दिशा में एक बड़ा लक्ष्य निर्धारित किया था। तब से सरकार ने पीएम किसान और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)1 जैसे कार्यक्रम लागू किए हैं। किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के माध्यम से किसानों को संस्थागत ऋण प्राप्त होने में वृद्धि हुई है।

भारत में कृषि की स्थिति ठीक नहीं है- आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार, अर्थव्यवस्था के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की हिस्सेदारी वर्ष 2020 और 2023 के बीच 20.3% से घटकर 18.3% हो गई है। कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का जीवीए (2011-12 की कीमतों पर) वर्ष 2020 और 2024 के बीच 4.1% से घटकर 1.4% हो गया है। किसानों की वास्तविक आय में कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ है। भूमि की कमी और कम उत्पादकता कृषि विकास में बाधा डालती है और जलवायु परिवर्तन इस संकट को और बढ़ा देता है (गुलाटी, कपूर और बाउटन 2019)।

इन परिस्थितियों में, एग्रीफोटोवोल्टिक्स (एपीवी) यानी कृषि क्षेत्र में प्रकाश संश्लेषण के तरीकों को जोड़ना जैसे नए विचारों की खोज करना सार्थक है। एपीवी सौर ऊर्जा को खेती के साथ जोड़ता है। इससे किसानों को फसल और बिजली की बिक्री से दोहरी आय मिलती है। किसानों की आय बढ़ाने के अलावा, एपीवी भूमि-उपयोग दक्षता को बढ़ाता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करता है।

एपीवी मॉडल : किसान, सहकारी समितियाँ और डेवलपर्स

एपीवी में कई हितधारक शामिल होते हैं : किसान सौर पैनलों के नीचे की ज़मीन जोतते हैं, निजी कंपनियाँ (डेवलपर्स) सौर प्रणालियों की स्थापना, उनके रख-रखाव, स्वामित्व का काम सम्भालती हैं और वितरण कंपनियाँ (डिस्कॉम) सौर ऊर्जा खरीदने का काम करती हैं। परियोजना का सफलतापूर्वक विस्तार के लिए, इसका प्रत्येक हितधारक के लिए व्यावहारिक होना आवश्यक है। बसु, गुलाटी और अधोलेया (2025) द्वारा किए गए नए शोध से पता चलता है कि ऐसा हो सकता है।

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सम्बन्ध अनुसंधान परिषद (आईसीआरआईईआर) द्वारा वर्ष 2024 में किए गए एक अध्ययन में दिल्ली के नजफगढ़ में ‘सनमास्टर सिस्टम्स’ द्वारा संचालित एक एपीवी परियोजना का अध्ययन किया गया। इस मॉडल में, किसान ने अपनी ज़मीन 25 साल के लिए निजी डेवलपर को पट्टे पर दी थी। अपनी ज़मीन पर एपीवी प्रणाली के ढाँचे की स्थापना से पहले, किसान ने गेहूँ और सरसों जैसी पारम्परिक फ़सलें उगाकर सालाना लगभग 41,000 रुपये प्रति एकड़ की शुद्ध आय प्राप्त होने के बारे में बताया। प्रणाली की स्थापना के बाद, किसान को पट्टे की आय के रूप में सालाना 1,00,000 रुपये प्रति एकड़ मिलते हैं, जो उसकी आधारभूत आय के दोगुना से भी ज़्यादा है। किसान के अनुसार, निश्चित आय उसे वित्तीय स्थिरता प्रदान करती है, जिससे उसे फ़सल खराब होने के जोखिम और कम भूमि उत्पादकता जैसी समस्या से छुटकारा मिल जाता है। अनुबंध के अनुसार, ऊर्जा और फ़सल बिक्री से होने वाली आय उस निजी डेवलपर को मिलती है जिसने सौर प्रणाली स्थापित करने में अपना निवेश किया था। डेवलपर डिस्कॉम को 5.10 रुपये प्रति किलोवाट-घंटा (केडब्ल्यूएच) की फीड-इन-टैरिफ दर पर ऊर्जा बेचता है, साथ ही फसलों की खेती के माध्यम से अतिरिक्त आय भी अर्जित करता है।

अध्ययन में एक वैकल्पिक दृष्टिकोण पर भी विचार किया गया जहाँ किसान को किराया कमाने के अलावा फसलों उगाने और बेचने का अधिकार भी मिलता है। आमतौर पर छायादार बुनियादी ढांचे के नीचे बेहतर परिणाम देने वाली टमाटर, आलू या हल्दी जैसी उच्च मूल्य वाली छाया-सहिष्णु फसलें उगाने से किसान की आय 1,50,000 रुपये प्रति एकड़ तक पहुँच सकती है। इस तरह से फसल की खेती और पट्टे से कुल वार्षिक आय लगभग 2,50,000 लाख रुपये प्रति एकड़ तक हो सकती है। इसका मतलब पारम्परिक खेती की तुलना में आय में छह गुना वृद्धि होगी और इस प्रकार ग्रामीण आजीविका को कहीं अधिक बढ़ाने में एपीवी की क्षमता रेखांकित हो सकेगी।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 77वें दौर के आँकड़ों से पता चलता है कि भारत में 85% से अधिक किसान छोटे और सीमांत किसान हैं। इन किसानों के पास 5 एकड़ से कम जमीन है। यहाँ किसान सहकारी समितियाँ भूमिका निभा सकती हैं- किसान सहकारी समितियाँ या किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) एपीवी में प्रवेश की बाधाओं को दूर करने के लिए भूमि और पूंजी को एक साथ ला सकते हैं। इस मामले में, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) एक सौर डेवलपर और एक किसान दोनों के रूप में कार्य करेगा, जिससे दोनों तरह की आय अर्जित होगी।

डेवलपर्स के लिए निवेश रिटर्न टैरिफ दरों पर निर्भर करता है। छोटे पैमाने की सौर परियोजनाएं, जैसे कि पीएम-कुसुम घटक ए2 के तहत स्थापित परियोजनाएं, आमतौर पर 2.50 रुपये और 3.50 रुपये प्रति किलोवाट-घंटे के बीच का टैरिफ लगाती हैं। 3.25 रुपये प्रति किलोवाट घंटे पर, अध्ययन की गई एपीवी परियोजनाएं व्यवहार्य बनी हुई हैं। इस टैरिफ दर पर, डेवलपर अपनी लागत को 10 वर्षों में वसूल कर सकता है।3 3.50 रुपये प्रति किलोवाट-घंटा की औसत रियायती भुगतान दर यह अवधि घटकर 7 वर्ष हो जाती है। 3.25 रुपये प्रति किलोवाट-घंटे (जहाँ एपीवी व्यवहार्य हो जाता है) का टैरिफ ताप ऊर्जा (3.85 रुपये प्रति किलोवाट-घंटे) की औसत ऊर्जा खरीद लागत (एपीपीसी) से कम है।4 अतः मांग पक्ष की नज़र से देखें तो डिस्कॉम को थर्मल पावर की तुलना में एपीवी अधिक आकर्षक लग सकता है।

एपीवी को बढ़ावा देना- वित्तपोषण, भूमि उपयोग संबंधी नीतियाँ

भारत में एपीवी की अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन इसकी सफलता मौजूदा बाधाओं को दूर करने पर निर्भर करती है। सौर परियोजनाएँ काफी लागत वाली हैं, जिनकी लागत प्रति मेगावाट कई करोड़ रुपये होती है। अनुदान, कम ब्याज़ दर वाले ऋण और कर प्रोत्साहन से किसानों को उच्च प्रारंभिक लागत को कम करने में मदद मिल सकती है। ब्याज़ दरों के अलावा, संपत्ति गिरवी रखने जैसी कठोर ऋण आवश्यकताओं के चलते ऋण प्राप्त करना कठिन हो जाता है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के ऋण गारंटी कोष का विस्तार करने जैसी लक्षित नीतियाँ वित्तपोषण विकल्पों में सुधार ला सकती हैं और उन्हें अधिक व्यवहार्य बना सकती हैं।

सरकार ने इस वर्ष किसान समूहों को लगभग 7,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इससे 10,000 और किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनेंगे। बजट में प्रति किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) 15 लाख रुपये का अनुदान और 2 करोड़ रुपये तक की ऋण गारंटी सुविधा की व्यवस्था भी की गई है। देश में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार करने से एपीवी की गति बढ़ सकती है और एपीवी अधिक समावेशी बन सकते हैं।

राज्य सरकारों को भी अपनी भूमि-उपयोग संबंधी नीतियों को मज़बूत करना चाहिए- कृषि भूमि को गैर-कृषि स्थिति में परिवर्तित किए बिना मिश्रित भूमि उपयोग की अनुमति देने से एपीवी में निवेश को सुव्यवस्थित करने में मदद मिलेगी। साथ ही, राज्यों को अपनी संबंधित भूमि-उपयोग नीतियों में भूमि पट्टे समझौतों को शामिल करना चाहिए। ऐसी व्यवस्था किसानों और डेवलपर्स को अधिक लचीलापन प्रदान करेगी और उपलब्ध भूमि की मात्रा में भी वृद्धि होगी। अंततः एपीवी प्रणाली को प्रभावी ढंग से स्थापित और संचालित करने में किसानों को दक्ष बनाने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की भी आवश्यकता होगी।

एपीवी से एक साथ दो महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान हो जाता है- भूमि-उपयोग दक्षता में सुधार करते हुए जलवायु परिवर्तन से लड़ना। यह खेती के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को सक्षम करके उच्च उत्पादकता के लिए एक स्थाई मार्ग प्रदान करता है। उचित समर्थन मिलने पर, किसानों की आय दोगुनी करने की लम्बे समय से चली आ रही पहेली को बुझाने की दिशा में एपीवी एक नायाब कड़ी साबित हो सकता है।

इस लेख में व्यक्त किए गए विचार केवल लेखकों के अपने हैं और रूरी नहीं कि वे I4I संपादकीय बोर्ड के विचारों को दर्शाते हों।

टिप्पणियाँ :

  1. पीएम किसान का उद्देश्य किसानों को वार्षिक न्यूनतम आय सहायता प्रदान करना है ; जबकि पीएमएफबीवाई का उद्देश्य फसल विफलताओं के खिलाफ बीमा कवर प्रदान करना है, जिससे किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिलती है।
  2. प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान, या पीएम-कुसुम, किसान, किसानों के समूहों, सहकारी समितियों या अन्य संगठनों द्वारा विकेन्द्रीकृत, ग्रिड से जुड़े सौर या नवीकरणीय ऊर्जा-आधारित बिजली संयंत्रों की स्थापना पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न करना और इसे ग्रिड में पहुँचाना है।
  3. फीड-इन-टैरिफ के आँकड़े पीएम-कुसुम ए को लागू करने वाले विभिन्न राज्यों से राज्य विद्युत नियामक आयोग (एसईआरसी) के टैरिफ आदेशों पर आधारित हैं। गणना में पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण के लिए 70:30 के ऋण-इक्विटी अनुपात पर विचार किया गया है, जैसा कि पीएम-कुसुम ए के तहत सामान्य मानदंड है।
  4. राष्ट्रीय स्तर पर औसत बिजली खरीद लागत (एपीपीसी) दर की गणना पर एक याचिका के आधार पर। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : बिदिशा बेनर्जी आईसीआरआईईआर में एक रिसर्च एसोसिएट हैं और उन्हें अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में तीन वर्षों का अनुभव है। उनका कार्य सौर नवाचारों पर केंद्रित है, जिनमें एग्रीवोल्टेइक, बिल्डिंग-इंटीग्रेटेड फोटोवोल्टेइक (बीआईपीवी), ग्रीन हाइड्रोजन, बायोएनर्जी नीतियाँ  और वर्चुअल पावर प्लांट शामिल हैं। बिदिशा ने टेरी एसएएस से अक्षय ऊर्जा में एमटेक, इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया है। शुभोदीप बसु भी आईसीआरआईईआर में कृषि, नीति, स्थिरता और नवाचार (एपीएसआई) टीम के साथ एक रिसर्च फेलो हैं। उन्होंने सिम्बायोसिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र (विकास अध्ययन) में एमएससी और कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से अर्थशास्त्र (ऑनर्स) में बीएससी की डिग्री प्राप्त की है। ग्रामीण आजीविका पर मिश्रित-विधि अनुसंधान में छह वर्षों से अधिक के अनुभव के साथ, उन्होंने जनजातीय मामलों के मंत्रालय के लिए कई प्रभाव मूल्यांकनों पर काम किया है। उनकी रुचियों में किसान समूह, कृषि सौरीकरण और भूजल शासन शामिल हैं। सोहम रॉय एक जलवायु-तकनीक पेशेवर हैं, जिन्हें अनुसंधान, परामर्श और उद्यमिता का अनुभव है। वह वर्तमान में एक स्टील्थ एआई नामक एक स्टार्टअप के सह-संस्थापक हैं, जो एसएमई, ओईएम और वित्तीय संस्थानों के लिए एक डीकार्बोनाइज़ेशन कोपायलट विकसित कर रहा है। उन्होंने टेरी स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर और जादवपुर विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। उनकी मुख्य विशेषज्ञता स्थिरता रणनीति, नीति अनुसंधान और जलवायु कार्रवाई को सक्षम बनाने हेतु प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग में निहित है।

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