मानव विकास

शिक्षकों का विकास और स्कूल का प्रदर्शन- अच्छा प्रदर्शन करने वाले स्कूलों से सात सबक

  • Blog Post Date 21 नवंबर, 2025
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Amarjeet Sinha

Centre for Social and Economic Progress

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स्कूली शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षकों की केन्द्रीय भूमिका का महत्त्व सब जानते हैं, फिर भी गुणवत्तापूर्ण परिणामों की राह में ज़मीनी स्तर पर चुनौतियाँ आती हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के स्कूलों में हुए एक प्रायोगिक अध्ययन से प्राप्त प्रारंभिक अंतर्दृष्टि के आधार पर, अमरजीत सिन्हा ने मोटे तौर पर कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या, प्रभावी स्कूल प्रबंधन और शिक्षक विकास की एक सुदृढ़ प्रणाली के साथ बेहतर प्रदर्शन करने वाले स्कूलों से उदहारण प्रस्तुत किए हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक की केन्द्रीय भूमिका को पहचाना गया है। इसके आधार पर राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने एकीकृत अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम के लिए पाठ्यक्रम की रूपरेखा, राष्ट्रीय मार्गदर्शन मिशन और शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक मानकों के दस्तावेज़ तैयार किए हैं। लेकिन, ये दस्तावेज़ गुणवत्तापूर्ण परिणामों के रास्ते में आ रही उन वास्तविक चुनौतियों को पर्याप्त रूप से नहीं दर्शाते जिनका सामना शिक्षकों को ज़मीनी स्तर पर करना पड़ता है।

अच्छा प्रदर्शन करने वाले स्कूलों की पहचान

यदि छात्रों के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत तुलना का आधार हो तो इस वर्ष के केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड़ (सीबीएसई) के परिणामों ने एक बार फिर यह बात स्पष्ट कर दी है कि केन्द्र द्वारा वित्तपोषित नवोदय विद्यालय समिति (एनवीएस) और केन्द्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) प्रणालियों के अंतर्गत आने वाले स्कूल सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। जब गुणवत्ता प्रदर्शन सूचकांक (किसी स्कूल में छात्रों द्वारा प्राप्त औसत अंकों पर आधारित सूचकांक) पर विचार किया जाए तो कई शैक्षणिक रूप से नवोन्मेषी और अच्छी तरह से प्रबंधित निजी और ग़ैर-सहायता प्राप्त स्कूल बहुत अच्छा प्रदर्शन करते नज़र आते हैं।

जिन श्रेणियों के स्कूल सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हैं, उनकी पहचान होती है पर्याप्त कर्मचारी, कुशल और प्रभावी स्कूल प्रबंधन और शिक्षक विकास की एक मज़बूत प्रणाली। इन संस्थानों में प्रत्येक शिक्षक का चयन एक पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है और उन्हें मार्गदर्शन, गहन शैक्षणिक तैयारी और सहायक निगरानी के माध्यम से व्यावसायिक विकास के अवसर प्रदान किए जाते हैं। ये संस्थान इस सिद्धांत पर काम करते हैं कि प्रवेश स्तर पर एक योग्य शिक्षक को एक सफल शिक्षक बनने के लिए हर प्रकार के समर्थन, मार्गदर्शन, व्यावसायिक विकास और अनुभव की आवश्यकता होती है। ये संस्थान ये संस्थान हर रिक्त पद को जल्दी से जल्दी भरने के लिए 'कोई रिक्त स्थान उपलब्ध नहीं है' की नीति अपनाते हैं जिसके अंतर्गत रिक्त पदों को भरने के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों का एक पैनल तैयार रखते हैं। इसमें से किसी योग्य शिक्षक को तुरंत नौकरी पर रख लिया जाता है।

कई अन्य स्कूलों, ज़्यादातर सरकारी या खराब तरीके से प्रबंधित निजी स्कूलों पर नज़र डालने पर, हम पाते हैं कि वे भी टीचर एजुकेशन सिस्टम से प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती करते हैं। दुर्भाग्य से, वे उन्हें स्कूल के अच्छे प्रदर्शन के लिए अपनी उस उत्कृष्टता का उपयोग करने के अवसर प्रदान नहीं करते। कई निजी स्कूलों में कम वेतन ; सरकारी स्कूलों में कई प्रकार के शिक्षकों (नियमित, संविदा, परामर्शदाता, अतिथि, सेवानिवृत्त पुनर्नियोजित) की अपर्याप्त कुल संख्या ; खराब रखरखाव सहित स्कूल का ख़राब प्रबंधन ; कमज़ोर या बिना कोई निगरानी या मार्गदर्शन ; शिक्षक प्रदर्शन मूल्यांकन का अभाव ; चुनाव ड्यूटी, जनगणना और सर्वेक्षण ड्यूटी के रूप में भारी ग़ैर-शैक्षणिक कार्यभार और मध्याह्न भोजन कार्यक्रम के प्रबंधन जैसी अन्य ग़ैर-शैक्षणिक ज़िम्मेदारियाँ ; छात्रों के लिए स्वचालित स्थाईयी शैक्षणिक खाता रजिस्ट्री (एपीपीएआर) या अन्य आईडी बनाना ; कई व्हाट्सएप-आधारित दैनिक रिपोर्टिंग कार्य इत्यादि के चलते नए भर्ती हुए शिक्षकों की शिक्षकी योग्यता के गुण ख़त्म हो जाते हैं। समाचार पत्रों से ज्ञात होता है कि कुछ स्कूलों में एक भी छात्र बोर्ड़ परीक्षा पास नहीं कर पाता है, जो स्कूल प्रणाली पर एक गम्भीर कलंक है।

माध्यमिक शिक्षा पर सार्वजनिक रिपोर्ट

सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति केन्द्र की एक पहल, माध्यमिक शिक्षा पर सार्वजनिक रिपोर्ट (पीआरओएसई- प्रोज़) के एक भाग के रूप में, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर, जिसमें दिल्ली और हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्यों के आसपास के जिले शामिल हैं) में एक प्रायोगिक अध्ययन किया जा रहा है। अगले तीन वर्षों में 10 राज्यों के स्कूलों में किए जा रहे इस अध्ययन से मानव विकास की आकांक्षाओं और किसी न किसी रूप में उनकी पूर्ति या अस्वीकृति पर कई गुणवत्तापूर्ण जानकारी प्राप्त होने वाली है। इसमें घरेलू और स्कूली स्तर के मुद्दों पर ध्यान दिया रहा है, जिनमें लैंगिक और सामाजिक कारक, परिवारों की आय और स्थानिक स्थिति, स्कूलों के साथ महत्वाकांक्षी समुदायों का असमान संबंध और स्कूल प्रशासन एवं शिक्षकों की औपचारिक नौकरशाही जैसे मुद्दे शामिल हैं। कई उदाहरणों में सीमित साधनों वाले अनौपचारिक समुदायों का एक अपारदर्शी और शक्तिशाली स्कूल प्रणाली के साथ जुड़ाव दिखाई देता है। जहाँ कई शिक्षक और प्रधानाचार्य यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं कि बच्चे अपनी मानवीय क्षमता के आधार पर सीखें और अपने जीवन में प्रगति करें, वहीं कई अन्य ऐसे भी हैं जो बुनियादी पर्याप्तता और कार्यक्षमता के अभाव को एक बड़ी चुनौती मान रहे हैं। स्कूल विकास एवं प्रबंधन समिति, समुदाय और स्कूल पदाधिकारियों के बीच की खाई को पाटने के लिए एक अप्रभावी संस्थागत संरचना प्रतीत होती है।

एनसीआर के बड़ी संख्या में स्कूलों का दौरा करने की इस प्रक्रिया से, अच्छा प्रदर्शन करने वाले स्कूलों से स्पष्ट उदाहरण मिलते हैं। यह लेख स्कूली शिक्षा की सफलता में योगदान देने वाले कुछ प्रमुख कारकों की पहचान करने का एक प्रयास है।

बेहतर प्रदर्शन करने वाले सरकारी और निजी स्कूलों से क्या उदाहरण मिलते हैं?

स्कूलों में कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या

सबसे पहला- किसी भी स्कूल के प्रभावी संचालन के लिए शिक्षकों, खेल प्रशिक्षकों, संगीत और कला शिक्षकों, परामर्शदाताओं, ग़ैर-शिक्षण कर्मचारियों, कंप्यूटर शिक्षण संकाय आदि की पर्याप्त संख्या होना अनिवार्य है। गणित और विज्ञान जैसे विषयों के प्रमुख शिक्षकों की अनुपस्थिति में स्कूल अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। खेल, संगीत और कला में बच्चों को सुविधा की कमी के कारण शिक्षकों के लिए प्रत्येक बच्चे की काबिलियत को पहचानना भी असंभव हो जाता है। इस तरह की पहचान बच्चे के शैक्षणिक और सह-पाठ्यचर्या संबंधी प्रदर्शन को बदलने की क्षमता रखती है।

इसके अलावा, शिक्षकों की पर्याप्त संख्या के बिना मार्गदर्शन और व्यावसायिक विकास चुनौतीपूर्ण हो जाता है, क्योंकि किसी भी शिक्षक को प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए स्कूल की ज़िम्मेदारियों से मुक्त नहीं किया जा सकता है। जब तक स्कूलों को नियमित नियुक्तियाँ होने तक प्रशिक्षित शिक्षकों से रिक्तियों को भरने का अधिकार नहीं दिया जाता, तब तक क्षमता एक बड़ा मुद्दा बना रहेगा।

कार्यक्षमता सुनिश्चित करने के लिए स्कूल प्रबंधन को सशक्त बनाना

दूसरा- शिक्षकों और स्कूलों के बेहतर प्रदर्शन के लिए कार्यात्मकता का होना ज़रूरी है। अगर पानी का फ़िल्टर काम नहीं करता, पंखा ठीक से नहीं चलता, बेंचें-कुर्सियाँ टूटी हुई हैं और प्रधानाध्यापक को अपने स्तर पर ये काम करवाने का अधिकार नहीं है, तो वह स्कूल एक ख़राब स्कूल ही रहेगा। ऐसे अधिकांश स्कूलों में कोई संस्थागत बुनियादी ढाँचा निर्माण और रखरखाव व्यवस्था नहीं है, जिससे गिरती हुई इमारत और नए निर्माण कार्य एक साथ बेतरतीब ढंग से चलते रहते हैं। स्कूलों को स्वायत्त होना चाहिए, स्थानीय समुदायों और अभिभावकों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। उनके पास अपनी सभी रखरखाव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए असीमित धन होना चाहिए। हमें अविश्वास से विश्वास की ओर बढ़ना होगा।

शैक्षणिक नवाचारों के लिए अवसर

तीसरा- प्रशिक्षण का कैस्केड मोड यानी एक से अनेक वाला तरीका, जिसमें राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और ब्लॉक स्तर पर संस्थाएँ बारी-बारी से शिक्षक विकास की ज़िम्मेदारी लेती हैं, प्राथमिक या माध्यमिक/उच्च माध्यमिक स्तर पर काम नहीं करता। ज़रूरत इस बात की है कि व्यावसायिक विकास पाठ्यक्रमों के तहत शैक्षणिक नवाचारों को लागू करने के अवसर हों। पीएम श्री (पीएम स्कूल्स फॉर राइज़िंग इंडिया, एक ऐसा कार्यक्रम जो शिक्षक-नेतृत्व वाले शैक्षणिक नवाचारों के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करता है) के अलावा, कई केवीएस और एनवीएस स्कूल ऐसी पहलों को लागू करने में चुनौतियों का सामना कर रहे थे। कई अन्य सरकारी स्कूलों की तुलना में बेहतर सुविधाओं के बावजूद, केवीएस और एनवीएस को भी इन अतिरिक्त संसाधनों की ज़रूरत थी। शिक्षकों के पास प्रयोग करने के संसाधन होने चाहिए ताकि हर बच्चा सीख सके।

गुणवत्ता की नियमित निगरानी से स्कूलों के प्रदर्शन में सुधार होता है। केवीएस, एनवीएस और अच्छे निजी स्कूलों में संस्थागत और स्कूल/कक्षा स्तर पर, गुणवत्ता और क्षमता विकास का एक गहन दृष्टिकोण अपनाया जाता है। उत्कृष्ट शिक्षकों को एक संसाधन के रूप में पहचानना, सर्वश्रेष्ठ संकाय के साथ प्रशिक्षण और संसाधन केन्द्र स्थापित करना और उत्कृष्ट स्कूलों को शिक्षक विकास केन्द्रों के रूप में उपयोग करना कुछ ऐसे उपाय हैं जो बहुत कारगर साबित हुए हैं। राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषदों (एससीईआरटी) या शिक्षा में उन्नत अध्ययन संस्थानों (आईएएसई) द्वारा दिया जाने वाला नियमित शिक्षक प्रशिक्षण अक्सर उतना प्रभावी नहीं होता है।

शिक्षकों का प्रदर्शन और जवाबदेही

चौथा- शिक्षक प्रदर्शन और जवाबदेही का विषय हमेशा एक संवेदनशील विषय होता है। शिक्षक प्रदर्शन मूल्यांकन के एक भाग के रूप में गुणवत्ता निगरानी मानदंड विकसित करना महत्वपूर्ण है। जैसा कि कई निजी स्कूल श्रृंखलाओं ने करना शुरू कर दिया है। संशोधित सुनिश्चित कैरियर प्रगति की जगह प्रदर्शन आधारित कैरियर प्रगति ने ले ली है, जहाँ शिक्षकों के प्रदर्शन का मूल्यांकन शैक्षणिक पर्यवेक्षण के लिए ज़िम्मेदार लोगों द्वारा किया जाता है। कठोर शैक्षणिक पर्यवेक्षण से ही शिक्षक विकास के ज़रिए स्कूल के प्रदर्शन में योगदान दिया जा सकता है। हम शिक्षण पेशे में औसत दर्जे के बने रहने का जोखिम नहीं उठा सकते। गुणवत्ता और उत्कृष्टता के लिए एक कार्यात्मक मार्गदर्शन और सहायता प्रणाली के साथ शिक्षकों का वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन, शिक्षकों के नेतृत्व वाले शैक्षणिक नवाचारों को और बढ़ावा देगा। यह देखते हुए कि कई राज्यों में शिक्षक भर्ती भ्रष्टाचार में फंसी हुई है, शिक्षक प्रदर्शन मूल्यांकन को स्कूल प्रणालियों का केन्द्रबिंदु बनाना महत्वपूर्ण है। प्रधानाचार्य और उप-प्रधानाचार्य की स्कूल-स्तरीय नेतृत्व टीम के पास शिक्षक प्रदर्शन की निगरानी करने का अधिकार होना चाहिए।

शिक्षकों को शिक्षण पर ध्यान केन्द्रित करने देना

पाँचवाँ- समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दलों और सरकारी विभागों में इस बात पर आम सहमति बने कि शिक्षक स्कूल में पढ़ाने के लिए है, न कि ग़ैर-शैक्षणिक ज़िम्मेदारियों के लिए जो स्कूल के प्रदर्शन में बाधा डालती हैं। हम स्कूल भवन तो बनाते हैं, लेकिन मानव संसाधनों को ग़ैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाकर उत्कृष्टता का विकास नहीं होने देते। इस प्रथा को तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए। यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि शिक्षक का समय ग़ैर-शैक्षणिक कर्तव्यों के बजाय शैक्षणिक गतिविधियों और कक्षाओं में व्यतीत हो।

अभिभावकों और समुदाय का स्कूलों से जुड़ाव

छठा- विकेन्द्रीकृत स्कूल प्रबंधन और स्कूलों में अभिभावकों की भागीदारी सभी अच्छे प्रदर्शन वाले स्कूलों की एक सामान्य विशेषता है। कम आय वाले परिवारों के बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन में परिवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। सीखने और उत्कृष्टता के अवसरों का लाभ उठाने में सक्षम होने के लिए उन्हें शिक्षक और अभिभावकों के बीच साझेदारी की आवश्यकता होती है। स्कूलों को अभिभावकों और बच्चों के प्रति अपनी प्रतिकूल भूमिका से मुक्त होने के लिए शिक्षकों और अभिभावकों को एक सहायक भूमिका में शामिल करते हुए विकेन्द्रीकृत सामुदायिक कार्रवाई की ज़रूरत है। शिक्षक कम आय वर्ग के बच्चों की क्षमताओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते, क्योंकि सही देखभाल और समर्थन से कई जगहों पर बड़े बदलाव भी आए हैं।

स्कूल प्रधानाचार्य पद का महत्त्व

सातवाँ- स्कूल प्रधानाचार्यों का विशेष चयन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह कोई ऐसा पद नहीं है जो किसी को भी दिया जा सके। व्यक्ति में टीम का नेतृत्व करने के लिए नेतृत्व और क्षमता होनी चाहिए। अभिभावकों की सहभागिता से भी अच्छे प्रदर्शन के लिए दबाव बनता है और उनके साथ जुड़ना स्कूल के प्रदर्शन में एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है। हर अच्छा स्कूल इस बात को मानता है कि स्कूल के प्रधान का पद सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

समापन विचार

अच्छे विचार तब तक प्रभावी व्यवहार में नहीं बदलेंगे जब तक कि बाधाओं को पर्याप्तता, कार्यक्षमता और शिक्षक-नेतृत्व वाले शैक्षणिक नवाचारों के माध्यम से दूर नहीं किया जाता। इन गतिविधियों के लिए, स्कूलों में उत्कृष्टता और स्कूल के प्रदर्शन की निगरानी के लिए सभी सहभागियों और स्कूलों के बीच एक नई आम सहमति बनाने की आवश्यकता है। स्कूल प्रणालियों के प्रबंधन के लिए नियमित बदलाव की नहीं, बल्कि गुणवत्तापूर्ण परिवर्तन आवश्यकता है। जो स्कूल अच्छा प्रदर्शन करते हैं, वे उन स्कूलों के लिए आसानी से समझ में आने वाले सबक प्रस्तुत करते हैं जो अच्छा प्रदर्शन नहीं करते। चुनौतियों को स्वीकार करना स्कूली शिक्षा के पुनर्जागरण की दिशा में पहला कदम है। सभी संबंधित पक्षों द्वारा यह पहला कदम उठाया जाना चाहिए।

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आवश्यक नहीं कि वे आई4आई संपादकीय बोर्ड़ के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय :

अमरजीत सिन्हा सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस में सीनियर फेलो हैं, जहाँ वे पब्लिक रिपोर्ट ऑन सेकेंडरी एजुकेशन (प्रोज़) के काम कोका समन्वय देखते हैं। 2022-2024 तक उन्होंने पब्लिक एंटरप्राइज़ेज़ सिलेक्शन बोर्ड के मेंबर के तौर पर काम किया। इससे पहले वे प्रधानमंत्री के सलाहकार (जुलाई 2021 तक) के तौर पर कार्यरत थे, जहाँ वे सामाजिक क्षेत्र और ग्रामीण पहलों को देखते थे। 1983 बैच के बिहार कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी, अमरजीत दिसंबर 2019 में भारत सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के सचिव पद से सेवानिवृत हुए। उन्होंने सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को डिज़ाइन करने और ग्रामीण क्षेत्रों के कार्यक्रमों में शासन से जुड़े सुधार लाने में अहम भूमिका निभाई है।  

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