भारत में जल प्रदूषण को नियंत्रित करने और जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए गहन डेटा संग्रह और निगरानी की आवश्यकता है। पोहित और मेहता इस लेख में, एनसीएईआर और टीसीडी की एक परियोजना का वर्णन करते हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के प्रमुख स्थानों पर पानी की गुणवत्ता मापदंडों से संबंधित आंकड़े एकत्र करने के लिए नावों से जुड़े स्वचालित सेंसरों का उपयोग किया गया। वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि कैसे इन निष्कर्षों से प्रदूषण के स्रोतों को समझने में मदद मिल सकती है ताकि प्रभावी नीतिगत हस्तक्षेप और प्रदूषकों द्वारा नियामक अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
21 अक्टूबर 2021 को आयोजित 26वें संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, सीओपी26 द्वारा अपनाया गया ग्लासगो जलवायु समझौता, सबसे अधिक प्रदूषणकारी क्षेत्रों में दीर्घकालिक और सार्थक डीकार्बोनाइज़ेशन के लिए तकनीकी नवाचार उत्प्रेरित करने के लिए सरकारों और निजी क्षेत्र को एक साथ लाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। यह सीओपी26 समझौता देश को स्वच्छ और जलवायु-अनुकूल-लचीली अर्थव्यवस्था में परिवर्तन में सहायक जलवायु कार्रवाई पर भारत के हितों, और भारत में की गई पहलों पर भी प्रकाश डालता है। हालाँकि इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम, दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के एजेंडे के अनुरूप पर्याप्त अनुकूलन कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए प्रासंगिक ज्ञान और साधनों को प्राप्त करना है।
क्या भारत ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ने को तैयार है? अक्सर यह बताया जाता है कि भारत के पास अत्यधिक मज़बूत डेटा संग्रह प्रणाली है, लेकिन जहां तक पर्यावरणीय आंकड़ों का सवाल है, यह बेहद कम है। ऐसे समय में जब नीति निर्धारण और आर्थिक विकास के लिए जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखना अनिवार्य हो गया है, विभिन्न पर्यावरणीय घटकों पर आधिकारिक आंकड़ों में कोई भी कमी देश के शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को साकार करने के प्रयासों में गंभीर रूप से बाधा उत्पन्न कर सकती है। भारत में विकास को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक आंकड़ों की जांच के लिए राष्ट्रीय लेखांकन की पारंपरिक प्रणाली, एसएनए का ऐतिहासिक रूप से उपयोग किया जाता रहा है। एसएनए आर्थिक रणनीति और नीति निर्माण के लिए उत्पादन, रोज़गार, उपभोग, आय और वित्तीय लेनदेन से संबंधित मौद्रिक आंकड़ों पर लगभग विशेष रूप से निर्भर करता है। ये आंकड़े 1950 के दशक की शुरुआत से आर्थिक सर्वेक्षणों और प्रशासनिक रिकॉर्ड के माध्यम से प्राप्त किए गए हैं। हालाँकि एसएनए की कार्यप्रणाली और इसके घटकों को वर्ष 1993 में संशोधित किया गया था, लेकिन जो सामने आया वह कई अनुषंगी विवरणों का समामेलित रूप था जो बड़े पैमाने पर पर्यटन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे लोकप्रिय विकासात्मक विषयों पर केंद्रित थे।
पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को प्रमुखता मिलने के साथ, भारत को अपने अनुसंधान प्रयासों को तेज़ करने और पर्यावरण के विभिन्न आयामों- विशेष रूप से पानी की आपूर्ति और उपयोग, हरित प्रौद्योगिकियों और समुद्री अर्थशास्त्र से संबंधित उच्च गुणवत्ता वाले, उन्नत डेटा का निर्माण करने की आवश्यकता है। वर्ष 2006-07 में पर्यावरण की दृष्टि से विस्तारित सामाजिक लेखांकन मैट्रिक्स (ईएसएएम) के निर्माण के माध्यम से व्यक्तिगत शोधकर्ताओं द्वारा पर्यावरण संरक्षण खातों के मॉड्यूल तैयार करने का एक प्रारंभिक प्रयास, इस दिशा में उठाए गए पहले महत्वपूर्ण कदमों में से एक है (पाल एवं अन्य 2012)।
पर्यावरण संरक्षण के सभी पहलुओं पर बेहतर डेटा प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल देते हुए, हम इस लेख में जलवायु गतिशीलता पर गंभीर हानिकारक प्रभाव डालने वाले- विशेष रूप से नदी प्रदूषण को रोकने के लिए डेटा अनिवार्यताओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
जल की गुणवत्ता और प्रदूषण पर डेटा की आवश्यकता
पृथ्वी के पानी का 71 प्रतिशत पानी महासागरों, नदियों, झीलों और ग्लेशियरों में ; मिट्टी में नमी के रूप में ; और हवा में जलवाष्प के रूप में उपस्थित है। और यह महत्वपूर्ण संसाधन गुणवत्ता और मात्रा दोनों के मामले में लगातार खतरे में है। नवीनतम संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर क्रमशः 26% और 46% लोगों की सुरक्षित पेयजल और बुनियादी स्वच्छता तक पहुंच नहीं है (यूनेस्को, 2023)। लगातार पानी की तकलीफ और जल प्रदूषण के प्रभावों से जूझने वाले लगभग 80% लोग एशिया, विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान और उत्तर-पूर्व चीन में रहते हैं।
अन्य शोधों से पता चला है कि सालाना 3 करोड़ 70 लाख भारतीय जल-जनित बीमारियों से प्रभावित होते हैं- डायरिया से 15 लाख बच्चों की मौत होती है और जल प्रदूषण के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष प्रभाव के कारण 7 करोड़ 30 लाख कार्य-दिवस नष्ट हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप 90 करोड़ रुपये का आर्थिक बोझ पड़ता है। खराब अपशिष्ट जल प्रबंधन, अनुचित सिंचाई प्रथाएं जैसे कि कीटनाशकों और उर्वरकों का अनियंत्रित उपयोग, तेल प्रदूषण, जल निकायों में मानवजनित अपशिष्ट का निर्वहन, अनियमित शिपिंग और औद्योगिक गतिविधि, साथ ही धार्मिक अनुष्ठानों के कारण नदियों में विषाक्त पदार्थों का जलमग्न होना जैसे सभी करक योगदान करते हैं। नियमित रूप से व्यापक, जल प्रदूषण हर गुजरते साल के साथ, भारत को अपनी चपेट में ले रहा है (पोहित और मेहता 2022, यूनेस्को, 2023)।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि भारत में दुनिया की 18% आबादी रहती है, लेकिन उसके पास जल संसाधन का केवल 4% उपलब्ध है, जो इसे दुनिया में सबसे अधिक पानी की कमी वाले क्षेत्रों में से एक बनाता है। इसके अलावा इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में 70% मीठे पानी के स्रोत दूषित पाए गए तथा भारत अपने जल संसाधनों की गुणवत्ता के मामले में 122 देशों में से 120 वें स्थान पर है (नीति आयोग, 2019, मेहता और पोहित 2023)।
जल डेटा की निगरानी के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग करना
इस प्रकार, भूमि और नदियों तथा अन्य जल स्रोतों में पानी की गुणवत्ता की निगरानी करना एक अंतरराष्ट्रीय आवश्यकता है। यूरोपीय संघ में, यूरोपीय ग्रीन डील के ज़रिए जैविक जैव-विविधता को बहाल करने, जल प्रदूषण को कम करने और पानी की गुणवत्ता के मानकों को सुनिश्चित करने के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में, पर्यावरण संरक्षण एजेंसी प्रत्येक राज्य में जल प्रदूषण के समाधान के लिए नियम लागू करती है। दुनिया भर के देश प्रभावी जल गुणवत्ता निगरानी मापदंडों और तरीकों के महत्व को तेज़ी से समझ रहे हैं।
भारत में भी, सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण और जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए कई प्रमुख कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे कि वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया ‘नमामि गंगे राष्ट्रीय मिशन’। यह परियोजना नदी के किनारे सार्वजनिक अभिसरण के प्रमुख स्थानों पर प्रदूषण पर अंकुश लगाकर पवित्र नदी के पानी को पुनर्जीवित करने की कोशिश करते हुए, नदी के पानी की गुणवत्ता पर नियमित रूप से डेटा एकत्र करने और निगरानी करने की आवश्यकता पर ज़ोर देती है। इस संदर्भ में नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा नदी प्रदूषण पर हाल ही में किए गए व्यापक अध्ययन में डेटा संग्रह पद्धति और आंकलन का विश्लेषण करना प्रासंगिक होगा। शिकागो विश्वविद्यालय के टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट (टीसीडी) के सहयोग से किए गए इस अध्ययन में, प्रदूषण के उच्च स्तर के लिए कुख्यात चुनिंदा हिस्सों में गंगा के पानी की गुणवत्ता की जांच की गई है (एनसीएईआर, 2020)। यह परियोजना देश में पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में अत्याधुनिक अनुसंधान करने के लिए रोडमैप तैयार करते हुए, कार्बन फुटप्रिंट को नियंत्रित करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अन्य हरित कार्यक्रमों के साथ भी मेल खा सकती है।
एनसीएईआर-टीसीडी अध्ययन, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के निश्चित स्थानों में गंगा नदी के किनारे रहने वाले मछली पकड़ने और आध्यात्मिक अनुष्ठानों, दोनों के संदर्भ में, उच्च स्तर की मानवीय भागीदारी की विशेषता वाले नदी-समुदायों की सामाजिक और आर्थिक भागीदारी का पता लगाता है। परंपरागत रूप से, नदी के पानी की निगरानी बड़े पैमाने पर पारंपरिक तरीकों से की जाती है- आमतौर पर नदी पर मासिक आधार पर सामयिक दूरी पर पानी के नमूने एकत्र करके, उन नमूनों का प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाता है। इस संसाधन-गहन और समय लेने वाली प्रक्रिया के चलते अक्सर नमूनों के संभावित गलत प्रबंधन और दोषपूर्ण प्रयोगशाला प्रोटोकॉल के कारण मानवीय त्रुटियाँ रह जाती हैं। इसके अलावा, नदियाँ गतिशील प्रणालियाँ हैं जिनका लक्षण और मार्ग बार-बार बदल सकते हैं। इसलिए, इस तरह का विरल डेटा जल निकाय की स्थिति को सटीक रूप से समझने या संबंधित नीतिगत चर्चाओं को पर्याप्त रूप से आकार देने में असमर्थ हो सकता है ।
इस अंतर को पाटने के कदम उठाते हुए, एनसीएईआर-टीसीडी टीम ने उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में चार अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम स्थानों पर गंगा नदी के पानी के वास्तविक समय के विश्लेषण के लिए निरंतर, इन-सीटू डेटा संग्रह किया। प्रोजेक्ट टीम ने स्थानिक और अस्थायी रूप से अलग-अलग उच्च-रेज़लुशन पर जल डेटा इकट्ठा करने के लिए, एक पूर्वनिर्धारित मार्ग पर दिन के अलग-अलग समय पर एक किनारे से दूसरे किनारे तक ज़िगज़ैग पैटर्न में चल सकनेवाले एक नाव से जुड़े कई सबमर्सिबल, स्वचालित सेंसरों का उपयोग करके पानी की गुणवत्ता का मापन किया। आकृति-1 और 2 क्रमशः उत्तर प्रदेश के दो शहरों, उन्नाव और नरोरा में नावों द्वारा अपनाए गए मार्गों को दर्शाते हैं।
आकृति-1. नमूना संग्रह स्थानों के साथ, उत्तर प्रदेश में उन्नाव स्थल पर नाव की सवारी का मार्ग
आकृति-2. नमूना संग्रह स्थानों के साथ उत्तर प्रदेश में नरोरा साइट पर नाव की सवारी का मार्ग
नदी के एक विशेष क्षेत्र का मापन करने के लिए, सेंसर हेड को पानी की सतह के नीचे 12 इंच की गहराई पर पानी में डुबोया गया था, जहाँ सेंसर एक साथ जीपीएस स्थान और 10-12 जल गुणवत्ता मापदंडों को मापते थे, और इस मापन में पीएच, विघटित ऑक्सीजन, विद्युत चालकता, मैलापन, तापमान, क्लोरोफिल-ए, ट्रिप्टोफैन, और रंगीन विघटित कार्बनिक पदार्थ आदि शामिल थे (आकृति-3 देखें)। नाव की 1-2 मीटर/सेकंड की गति से सटीक मैलापन मापन किया जा सका, जबकि 10 सेकंड के अंतराल पर प्रत्येक 15-20 मीटर की दूरी पर सेंसर माप भी कैप्चर किया जा सका। हीटमैप के लिए, मापा गया डेटा, डेटा स्थानों के बीच रैखिक रूप से प्रक्षेपित किया गया। ये माप अलग-अलग मौसमों और समय के दौरान अलग-अलग स्थानों पर दोहराए गए।
आकृति-3. मापे गए विभिन्न प्रयोगशाला स्तर और सेंसर-आधारित पैरामीटर
एक अग्रणी जल-से-बादल अध्ययन के रूप में, एनसीएईआर-टीसीडी परियोजना से प्रदूषण के प्रसार और स्रोतों का आगे गणितीय विश्लेषण करने और उपलब्ध डेटा का प्रक्षेप करने के लिए गंगा नदी से समय-मुद्रांकित और जियोटैग किए गए डेटा के क्लाउड पर साझा करने की सुविधा भी मिली। हीटमैप और विज़ुअलाइज़ेशन के अन्य रूपों के माध्यम से नदी के पानी की गुणवत्ता की ऐसा गतिशील मापन मौसम, प्रदूषण, मछली पकड़ने और सामान्य उपयोग के प्रभाव के कारण नदी के पानी की गुणवत्ता में समग्र और स्थान-विशिष्ट परिवर्तन को समझने में काफी मदद कर सकता है। यह मापन प्रदूषण के सटीक स्रोतों और स्थानों को इंगित करने में भी मदद कर सकता है, जिससे प्रदूषकों द्वारा प्रभावी स्वच्छता हस्तक्षेप और नियामक अनुपालन दोनों सुनिश्चित हो सकते हैं। इसके अलावा, इस अध्ययन में आजीविका के लिए नदी पर निर्भर नदी-तटीय समुदायों के संदर्भ में नदी में प्रदूषण के निहितार्थ का आकलन किया गया। साथ ही, नदी जल प्रदूषण की देश को आर्थिक लागत का भी आकलन किया गया।
निष्कर्ष
एनसीएईआर-टीसीडी परियोजना इस बात का एक उपयुक्त उदाहरण है कि कैसे पर्यावरणीय डेटा प्राप्त किया जा सकता है और न केवल जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है, बल्कि दुनिया भर में पानी के पर्यावरण-आर्थिक विवरणों की प्रणाली, एसईईए-वाटर द्वारा निर्धारित चार्टर को भी फलीभूत किया जा सकता है। एसईईए-वाटर के ज़रिए विभिन्न क्षेत्रों के जलविज्ञान संबंधी आँकड़ों की एक विस्तृत श्रृंखला को एक सुसंगत सूचना प्रणाली में एकीकृत किया जाता है और इसे पर्यावरणीय उद्देश्यों को नीतिगत दिशा प्रदान करने के लिए आर्थिक डेटा के साथ जोड़ा जाता है। पारिस्थितिकी तंत्र आंकलन के एक प्रमुख घटक के रूप में पानी का महत्व संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य-6 में भी परिलक्षित होता है, जो विशेष रूप से प्रदूषण को कम करके, डंपिंग को समाप्त करने और खतरनाक सामग्रियों के निस्तार, अनुपचारित अपशिष्ट जल के अनुपात को कम करने तथा पानी का पुनर्चक्रण और सुरक्षित पुन:उपयोग को बढाकर पानी की गुणवत्ता में सुधार करने पर केंद्रित है। एसईईए-वॉटर में प्रस्तावित और एनसीएईआर-टीसीडी परियोजना में उपयोग की जाने वाली नवीन पद्धतियाँ पर्यावरणीय संकेतकों के विकास और मापन के लिए एक रूपरेखा प्रदान करके इन लक्ष्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
भारत इन लक्ष्यों को तभी प्राप्त कर सकता है जब वह जलवायु परिवर्तन और अन्य आकस्मिकताओं से अपने पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए अपनी डेटा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक व्यापक नीति अपनाएगा।
लेख में व्यक्त विचार लेखकों के व्यक्तिगत विचार हैं।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : अनुपमा मेहता एनसीएईआर (नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च) में प्रकाशन प्रमुख और वरिष्ठ संपादक हैं। संजीब पोहित एनसीएईआर में सीनियर फेलो हैं।
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