आर्थिक विकास सम्पूर्ण कार्यबल के सफल उपयोग पर निर्भर करता है। एजाज़ ग़नी का तर्क है कि लैंगिक समानता न केवल मानवाधिकारों का एक प्रमुख स्तम्भ है, बल्कि उच्च और अधिक समावेशी आर्थिक विकास को बनाए रखने का एक शक्तिशाली साधन हो सकता है। उनके अनुसार भारत की आर्थिक प्रगति के बावजूद, आर्थिक भागीदारी के मामले में भारत में लैंगिक संतुलन दुनिया में सबसे कम है और वे इस शोध आलेख में इन असमानताओं को उजागर करने वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के कुछ आँकड़े साझा करते हैं।
आर्थिक विकास स्वाभाविक रूप से एक लैंगिक आधार वाली प्रक्रिया है और लिंग आधारित असमानताएं साझा समृद्धि में आने वाली बड़ी बाधाएं हैं (संयुक्त राष्ट्र, 2019)। पिछली शताब्दी में समाज में महिलाओं की बढ़ी हुई भूमिका आर्थिक विकास का एक केन्द्रीय चालक रही है। यह वृद्धि कई रूपों में आई है- श्रम-बल में महिलाओं की भागीदारी के लिए राजनीतिक और सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करना, प्रतिभाशाली महिलाओं को नेतृत्व की भूमिकाओं तक पहुँचने से रोकने वाले शिक्षा, वेतन-अन्तर और प्रबंधन प्रथाओं में व्याप्त भेदभाव को कम करना।
आर्थिक गतिविधियों में महिला भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रोत्साहन ने भी अधिकांश देशों में आर्थिक विकास को गति देने और रोज़गार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है (विश्व बैंक, 2012)। चूँकि महिलाओं में पर्यावरण, शासन और सामाजिक जागरूकता भी अधिक होती है और वे पुरुषों की तुलना में परिवार के भविष्य में अधिक निवेश करती हैं, सम्भावित कार्यबल के आधे को सशक्त बनाने से लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के अलावा महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक लाभ मिल सकते हैं।
आर्थिक उदारीकरण और संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से भारत की भारी आर्थिक प्रगति के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था में लैंगिक असमानता गहरी जड़ें जमाए हुए है। पिछले दो दशकों के दौरान महिला श्रम-बल भागीदारी दर में गिरावट आई है और यह कई उप-सहारा अफ्रीकी देशों (नजीब एवं अन्य 2020, विश्व बैंक, 2022) से काफी की नीचे बनी हुई है। महिलाओं को आर्थिक और राजनीतिक नेतृत्व वाले पदों पर कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है और जब वे पुरुषों के समान या समान-मूल्य वाले कार्य करती हैं तो उन्हें कम वेतन मिलता है। महिलाओं को गरीबी की सबसे अधिक घटनाओं, सबसे खराब स्वास्थ्य परिस्थितियों और हिंसा का शिकार होने की सबसे अधिक सम्भावना का सामना करना पड़ता है और लड़कियों को बाल विवाह, किशोर आयु में गर्भावस्था तथा बाल घरेलू काम की सम्भावना का भी सामना करना पड़ता है (ग़नी एवं अन्य 2012)।
उद्यमिता में लैंगिक आधार पर विभाजन
भारत और दुनिया भर के कई विकासशील देशों ने बेहतर व्यापक आर्थिक नीतियों, व्यापार और नियामक सुधारों, मानव और भौतिक बुनियादी ढाँचे में निवेश आदि से लेकर क्षेत्रीय और वैश्विक बहुपक्षीय संस्थानों द्वारा समर्थित संरचनात्मक सुधारों को लागू किया है। संरचनात्मक परिवर्तन उत्पादन के कारकों के बढ़ते उपयोग और उच्च उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से उच्च आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन करता है।
हाल के वर्षों में लैंगिक समानता पर संरचनात्मक नीति सुधारों का फोकस बढ़ा है। भारत संरचनात्मक परिवर्तन और लैंगिक समानता के बीच के सम्बंधों की जाँच के लिए एक अच्छा डेटा पॉइन्ट प्रदान करता है, क्योंकि यहाँ सरकार महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने में अग्रणी है, लेकिन देश कार्यस्थल में लैंगिक मुद्दों को विनियमित करने में पिछड़ा हुआ है। वर्ष 2023 के संयुक्त राष्ट्र वैश्विक लिंग अन्तर डेटा से पता चलता है कि अध्ययन के 146 देशों में से 127 देशों की तुलना में भारत में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसर की स्थिति खराब है।
भारत में 900 से अधिक जिलों के उद्यम सर्वेक्षण का उपयोग करके, आर्थिक विकास के विभिन्न चालकों के लिए एक ‘लैंगिक लेंस’ लागू किया गया। उद्यम भारत में विकास और संरचनात्मक परिवर्तन के चालकों को एक सूक्ष्म लेंस प्रदान करते हैं (ग़नी एवं अन्य 2016)। दुर्भाग्य से, यह पाया गया कि भारत का संरचनात्मक परिवर्तन नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और लैंगिक अन्तर को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देने में विफल रहा है। विनिर्माण रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है और अधिक महिला श्रमिक विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में सेवा क्षेत्र को बेहतर (या अधिक सुलभ) रोज़गार का साधन मान रहे हैं।
भारत में महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यम कम-भुगतान वाले उद्योगों में केन्द्रित हैं और जमावड़े की यह स्थिति समय के साथ बढ़ी है। आँकड़े औसत उद्योग वेतन और असंगठित विनिर्माण क्षेत्र में महिला नेतृत्व वाले उद्यमों की हिस्सेदारी के बीच एक मज़बूत नकारात्मक सम्बंध को दर्शाते हैं (ग़नी एवं अन्य 2016)। महिला-स्वामित्व वाले उद्यमों की हिस्सेदारी और औसत उद्योग वेतन के बीच के इस नकारात्मक सम्बंध का चलन सेवा क्षेत्र में भी है, लेकिन विनिर्माण क्षेत्र जितना ठोस नहीं है।
उद्योग के आधार पर लैंगिक पैटर्न की जाँच करने पर पता चलता है कि तम्बाकू उत्पाद, पहनने के लिए तैयार परिधान और कपड़ा उद्योग महिला उद्यमियों की सबसे बड़ी संख्या और हिस्सेदारी को आकर्षित करते हैं, शायद इसलिए कि ये उद्योग शारीरिक श्रम के मामले में अपेक्षाकृत कम आवश्यकता वाले माने जाते हैं। सेवाओं में शिक्षा, सुवेज, कचरा निपटान, स्वच्छता और वित्तीय मध्यस्थता सेवाएं हैं जो महिला स्वामियों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी को आकर्षित करती हैं। मोटे तौर पर ये वह उद्योग हैं, जिन्होंने महिला कर्मचारियों की सबसे बड़ी संख्या और हिस्सेदारी को आकर्षित किया है।
भारत में, उद्यम के मालिक की लैंगिक स्थिति से बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की लैंगिक स्थिति का अनुमान लगता है। जिन उद्योगों में महिला उद्यमिता और रोज़गार की दर अधिक है, वे मोटे तौर पर ऐसे उद्योग हैं जिनमें महिला मालिकों के साथ-साथ, महिला कर्मचारियों की संख्या के मामले में विभाजन सबसे अधिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोग अपने ही लिंग के अन्य लोगों के साथ काम करना पसंद करते हैं- ऐसा पुरुष-प्रधान उद्यमों के सन्दर्भ में भी सच है। कुछ उद्योग, जैसे परिवहन उपकरण, रेडियो, टेलीविजन और निर्मित धातु उत्पाद विनिर्माण में सबसे अधिक विभाजन है, जबकि सेवाओं के मामले में, जल परिवहन, सड़क परिवहन तथा अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में पुरुष नेतृत्व वाले उद्यमों में सबसे अधिक पुरुष श्रमिकों को रोज़गार प्राप्त है।
हालांकि अधिकांश उद्योगों में लिंग के आधार पर विभाजन बढ़ गया है, छोटे उद्यमों में यह अधिक महत्वपूर्ण है। सभी आकार के उद्यमों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के सन्दर्भ में लैंगिक आधार पर विभाजन अधिक है। अलग ढंग से कहा जाए तो, औसतन, एक पुरुष कर्मचारी के पुरुष सहकर्मी के साथ काम करने की सम्भावना एक महिला कर्मचारी के महिला सहकर्मी के साथ काम करने की तुलना में अधिक होती है। महिला कर्मचारियों के सन्दर्भ में, सयंत्रों के आकार में मध्यम आकार तक की वृद्धि के साथ यह विभाजन कम हो जाता है। विनिर्माण क्षेत्र में पुरुषों श्रमिकों के बीच यह विभाजन उद्यमों के विभिन्न आकारों में ज़्यादा नहीं बदलता।
लैंगिक अन्तर में स्थानिक असमानताएँ
विकास को उच्च गति देने के लिए उदारीकरण और संरचनात्मक परिवर्तन के बावजूद, भारत में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र, दोनों में गहरी लैंगिक असमानता बनी हुई है। यह पूर्वी एशियाई अनुभव के विपरीत है, जहाँ महिला श्रम-बल की बढ़ती भागीदारी ने पूर्वी एशियाई विकास के चमत्कार में भूमिका निभाई है (ग़नी एवं अन्य 2016)।
भारत के कुछ दक्षिणी राज्यों, जैसे कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु ने विनिर्माण क्षेत्र में महिलाओं द्वारा लैंगिक समानता और व्यवसाय-स्वामित्व में सुधार की प्रवृत्ति दर्शाई है (ग़नी एवं अन्य 2014)। हालांकि, बिहार, हरियाणा और गुजरात जैसे राज्यों में महिला प्रतिष्ठान स्वामित्व दर अभी भी बेहद कम है। विनिर्माण क्षेत्र में महिला स्वामित्व दरों में गहरी लैंगिक असमानताएं प्रमुख शहरों में भी स्पष्ट हैं।
भारत का एक तेज़ी से बढ़ता और अधिक प्रभावशाली क्षेत्र, सेवा क्षेत्र भी, नए उद्यमों की शुरुआत में लैंगिक असमानताओं को कम करने में विफल रहा है। केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे उच्चतम महिला स्वामित्व दर वाले राज्यों में सेवाओं में महिला उद्यम स्वामित्व हिस्सेदारी मुश्किल से 10% तक पहुँचती है और राजस्थान, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह बहुत कम, यानी 6% है (ग़नी 2013)। हालांकि, प्रमुख शहरों में महिला उद्यम स्वामित्व दरें सेवाओं में समग्र राज्य औसत से अधिक हैं। खराब बुनियादी ढाँचे और व्यवसाय शुरू करने में बाधा बनने वाले प्रतिबंधात्मक पारिवारिक मानदंडों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में लैंगिक असमानताएं बदतर बनी हुई हैं। इसलिए महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों को विनिर्माण और सेवा क्षेत्र दोनों के मामले में मज़बूत समूह अर्थव्यवस्थाओं से लाभ होता प्रतीत होता है (ग़नी एवं अन्य 2016)।
भारत के राज्यों में लैंगिक भागीदारी में किसी भी तरह के सम्मिलन या कन्वर्जेन्स का अनुभव नहीं हुआ है बल्कि, उच्च आय वाले राज्यों में महिला नेतृत्व वाले सयंत्रों के शेयरों में उच्च वृद्धि प्रदर्शन जारी रखा है और महिला नेतृत्व वाले सयंत्रों के मामले में भारत के अग्रणी और पिछड़े राज्यों के बीच की खाई बढ़ गई है। शहरीकरण ने टियर दो या टियर तीन के शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी लैंगिक अन्तर को कम नहीं किया है। भारत के प्रमुख शहरों से दूरी बढ़ने के साथ-साथ सेवा क्षेत्र में महिला रोज़गार हिस्सेदारी में महिला-स्वामित्व वाले व्यवसायों की हिस्सेदारी में गिरावट देखी जा सकती है।
किसी बाज़ार में प्रवेश करने वाली महिला उद्यमियों का एक अच्छा अनुमान उस उद्योग में मौजूदा व्यवसायों के बीच उच्च महिला उद्यम स्वामित्व से लगता है। इसके अलावा, संबंधित उद्योगों (समान श्रम आवश्यकताओं और इनपुट-आउटपुट बाज़ारों वाले) में स्थानीय व्यवसायों में उच्च महिला स्वामित्व, अधिक महिला प्रवेश दर का संकेत देता है। इस प्रकार महिलाओं की आर्थिक भागीदारी के लिए लिंग नेटवर्क स्पष्ट रूप से मायने रखता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि लैंगिक सशक्तिकरण मानव क्षमता को साकार करने और विकास और रोज़गार सृजन के लिए एक मज़बूत मंच तैयार करने में सहायक हो सकता है।
लैंगिक समानता के लिए भविष्य की राह
लैंगिक समानता एक मौलिक मानव अधिकार है और महिला उद्यमिता उच्च व अधिक समावेशी विकास का केन्द्रीय चालक है। महिला श्रम-बल में कम भागीदारी और व्यावसायिक अलगाव के कारण अक्षमताएं सामने आती हैं और प्रतिभा का गलत आवंटन होता है, जिसका यदि समाधान किया जाए, तो आय बढ़ेगी और विकास को बढ़ावा मिलेगा। यदि लैंगिक रोज़गार अन्तर समाप्त हो जाए तो दीर्घकालीन प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद लगभग 20% अधिक होगा (पेनिंग्स 2022)। नेतृत्व वाले पदों में लैंगिक समानता न केवल आर्थिक विकास को बढ़ा सकती है, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय परिणामों में भी सुधार कर सकती है।
भारत को गहरे तक व्याप्त लैंगिक अन्तर को कम करने के लिए एक व्यापक रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। लैंगिक परिवर्तन की राह में पहला स्तम्भ स्कूलों और कॉलेजों में विशाल लैंगिक अन्तर को कम करने के लिए शिक्षा को बढ़ाना होना चाहिए। दूसरा स्तम्भ, देश की विकास रणनीति को उसकी लैंगिक रणनीति के साथ एकीकृत करना है- भारत के विकास एजेंडे को आर्थिक अवसरों, कमाई और उत्पादकता तक पहुँच में लैंगिक अन्तर को कम करने पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। तीसरा स्तम्भ, महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ाना है। भारत ने स्थानीय पंचायत चुनावों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने में पहले ही बड़ी प्रगति की है और इसे विधानसभा और संसद चुनावों तक बढ़ाया जा सकता है।
भौतिक और मानव बुनियादी ढाँचे (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और टियर दो शहरों में) में निवेश में सुधार, डिजिटल क्रांति और तकनीकी प्रगति के माध्यम से औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों के बीच सम्बंधों को मज़बूत करने और स्थानीय व्यवसायों में लैंगिक नेटवर्क को बढ़ावा देकर लैंगिक असमानताओं को कम करने और आर्थिक विकास को बढ़ाने की बहुत बड़ी सम्भावना है। अधिक महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने हेतु श्रम बाज़ारों और इनपुट-आउटपुट बाज़ारों में महिला नेटवर्क को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है, क्योंकि महिलाओं को सुरक्षा चिंताओं और/या सामाजिक मानदंडों के कारण भौगोलिक गतिशीलता में अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। भारत में यात्रा सीमित, भीड़भाड़ वाली और अप्रत्याशित हो सकती है और इसलिए, बेहतर परिवहन बुनियादी ढाँचे वाले राज्यों ने महिला उद्यमियों के लिए बाज़ारों तक पहुँच में एक बड़ी बाधा को कम किया है।
अवैतनिक घरेलू ज़िम्मेदारियों के लिए आवश्यक समय को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाने की भी आवश्यकता है। ये निवेश न केवल महिलाओं के लिए, बल्कि व्यवसायों और अर्थव्यवस्था के लिए भी उपयोगी हैं। कुछ प्रकार की बुनियादी सुविधाओं (जैसे पानी, बिजली और स्वच्छता) तक पहुँच की कमी का उन महिलाओं पर अधिक प्रभाव पड़ता है जो पारिवारिक रखरखाव और देखभाल गतिविधियों के लिए समय और ज़िम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा वहन करती हैं। बेहतर बिजली और पानी की पहुँच से महिलाओं पर अपने परिवारों के लिए आवश्यक घरेलू सामान उपलब्ध कराने का बोझ कम हो जाता है और उन्हें उद्यमशीलता गतिविधियों की ओर अधिक समय लगाने का मौका मिलता है।
सम्भावित कार्यबल के आधे को सशक्त बनाने से लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के अलावा महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ भी होते हैं। हालांकि आर्थिक समानता प्राप्त करने के लिए कभी-कभी कठिन विकल्पों (जैसे प्रगतिशील कराधान) की आवश्यकता होती है जो प्रयास को हतोत्साहित कर सकता है ; यहाँ विपरीत सच है। महिला सशक्तिकरण और उद्यमशीलता को खोलने से व्यापक गतिशील अर्थव्यवस्था और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
भारत को विश्व स्तरीय अर्थव्यवस्था बनाने के लिए महिला उद्यमिता को आर्थिक वृद्धि और विकास में बड़ी भूमिका निभानी होगी। हाल की आर्थिक प्रगति के बावजूद, भारत का उद्यमशीलता लिंग संतुलन दुनिया में सबसे कम है। इस संतुलन में सुधार करना और अधिक आर्थिक विकास तथा लैंगिक समानता की उपलब्धि की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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लेखक परिचय : एजाज़ ग़नी वर्तमान में पुणे इंटरनेशनल सेंटर में सीनियर फेलो हैं। वह पहले विश्व बैंक में प्रमुख अर्थशास्त्री थे और उन्होंने अफ्रीका, पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया, कॉर्पोरेट रणनीति और स्वतंत्र मूल्यांकन इकाई पर काम किया है।
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