समष्टि अर्थशास्त्र

कोविड-19 संकट और छोटे व्यवसायों की स्थिति: एक प्राथमिक सर्वेक्षण से निष्कर्ष

  • Blog Post Date 07 जुलाई, 2020
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Shantanu Khanna

University of California, Irvine

shantanu@uci.edu

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Udayan Rathore

Oxford Policy Management

rathore.udayan@gmail.com

हाल के अपने बयान में, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री ने स्वीकार किया कि यह क्षेत्र "अस्तित्व के लिए जूझ रहा है"। इस आलेख में, शांतनु खन्ना और उदयन राठौर ने, मई 2020 में, 360 से अधिक उद्यमों में किए गए अपने सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्षों का उल्‍लेख किया है जिनमें वे इस क्षेत्र पर कोविड संकट के प्रभाव का आकलन करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। प्रारंभिक निष्कर्ष से ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र अत्‍यधिक संकट के दौर से गुजर रहा है जिसमें सूक्ष्म उद्यमों की स्थिति सबसे खराब है।

 

भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) ने देश की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2019 तक, भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) (भारत सरकार (जीओआई), 2018) का लगभग एक तिहाई हिस्‍सा, और इसके विनिर्माण आउटपुट और निर्यात (जीओआई, 2019) का लगभग आधा हिस्सा इसी क्षेत्र का है। इसके अलावा, यह क्षेत्र आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और लगभग 11 करोड़ नौकरियां (जीओआई, 2018) प्रदान करता है। इस क्षेत्र के महत्व को स्वीकार करते हुए, एमएसएमई मंत्री, श्री नितिन गडकरी ने पिछले साल एक कार्यक्रम में कहा था कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आधा हिस्सा इस क्षेत्र का होगा और यह अगले पांच वर्षों में 5 करोड़ नए रोजगार जोड़ेगा। हालांकि, इस मुलाकात के कुछ ही महीने बाद, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन होने के साथ आर्थिक गतिविधियां रुक जाने के कारण यह क्षेत्र बुरी तरह से लडखड़ा गया है।

इस आलेख में, हम उद्यमों में चल रहे सर्वेक्षण से कुछ प्रमुख निष्कर्षों का उल्‍लेख कर रहे हैं जो इस क्षेत्र पर कोविड संकट के प्रभाव का आकलन करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं (राठौर और खन्ना 2020)। इस प्रकार, अब तक हम 360 से अधिक उद्यमों का साक्षात्कार ले चुके हैं, और कुछ महीनों में उनका पुनः सर्वेक्षण करने की योजना है। इस सर्वेक्षण में अधिकांश फर्में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) की हैं, और विभिन्न औद्योगिक संगठनों तथा उनके सदस्यों के नेटवर्क के माध्यम से उनसे संपर्क किया गया था। कुल प्रतिदर्शों में से 40% प्रतिदर्श सूक्ष्म-उद्यमों के हैं, जबकि लघु और मध्यम उद्यमों के प्रतिदर्शों का प्रतिशत क्रमशः 50% और 10% है। हमारे प्रारंभिक निष्कर्ष से ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र अत्‍यधिक संकट के दौर से गुजर रहा है जिसमें सूक्ष्म उद्यमों की स्थिति सबसे खराब है। चूंकि हमारे उत्तरदाता ऐसे फ़र्म हैं जो उद्योग संगठनों के सदस्य हैं, इसलिए प्रतिदर्श अपेक्षाकृत बड़ी फर्मों की ओर झुका हुआ है। अत:, यह संभावना है कि हमारे अनुमान की तुलना में इस क्षेत्र में संकट का वास्तविक स्तर अधिक हो।

उत्पादन में गिरावट और अनुमानित नुकसान

यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि संकट से पहले के महीनों में भी इस क्षेत्र की स्थिति ठीक नहीं थी। मांग पक्ष में, पिछले वर्ष में मंदी के बड़े संकेत थे (बेरा 2019)। आपूर्ति पक्ष पर, आरबीआई (भारतीय रिज़र्व बैंक) के अध्ययन में पाया गया कि जीएसटी (वस्‍तु एवं सेवा कर) लागू होने तथा नोटबंदी ने ही एमएसएमई क्षेत्र (बेहरा और वाही 2018) पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था, जिसमें एनबीएफसी (गैर बैंकिंगं वित्‍तीय कंपनियों) संकट (इंडो-एशियन न्यूज सर्विस (आईएएनएस), 2019) के कारण और वृद्धि हो गंई थी। हमारे आंकड़े यह भी बताते हैं कि फर्में लॉकडाउन से पहले अपनी क्षमता के 75% पर काम कर रही थीं। लॉकडाउन के बाद, कंपनियां औसतन केवल 11% क्षमता पर काम कर रही थीं, जिनमें से 56% कंपनियां बिल्कुल भी उत्पादन नहीं कर रहीं थीं (आकृति 1)। ये संख्या उस लॉकडाउन की गंभीरता को दर्शाती है, जिसे दुनिया के सबसे कठोरतम लॉकडाउन के रूप में माना गया है (ब्लावेटनिक स्कूल ऑफ गवर्नमेंट, 2020)।

आकृति 1. लॉकडाउन से पहले और बाद, क्षमता के % के रूप में उत्पादन

नोट: कैप्ड बार 95% विश्वास अंतराल को दर्शाते हैं।

आकृति में प्रयुक्त अंग्रेज़ी शब्दों के अर्थ:

Pre-Lockdown Capacity Utilization (%) - लॉकडाउन-पूर्व क्षमता उपयोग (%)

Present Capacity Utilization (%) - वर्तमान क्षमता उपयोग (%)

यदि लॉकडाउन 17 मई को समाप्त होता तो हमने उद्यम मालिकों को अपने कुल नुकसान का अनुमान लगाने के लिए कहा। औसतन, यह उनकी वार्षिक बिक्री का लगभग 17% था, जो बताता है कि लगभग दो महीने का राजस्व पहले ही नष्‍ट हो चुका है। आकृति 2 विभिन्न फर्म आकारों के लिए रोजगार चतुर्थकों के अनुसार इन नुकसान शेयरों को प्रस्तुत करता है। ध्यान दें कि सबसे छोटी फर्म को सबसे अधिक नुकसान हुआ। आठ से कम कर्मचारियों वाली फर्मों को अपनी वार्षिक बिक्री की 24% की हानि हुई, जबकि 45 से अधिक कर्मचारियों वाली फर्मों को लगभग 10% हानि हुई जो कि काफी कम है। अब जबकि लॉकडाउन बढ़ाया दिया गया है, इस स्थिति के और बिगड़ने की संभावना है।

आकृति 2. फर्म के आकार के अनुसार बिक्री के एक हिस्से के रूप में हानि

नोट: कैप्ड बार 95% विश्वास अंतराल को दर्शाते हैं। बिन्‍स फर्म (रोजगार) आकार की चतुर्थक पर आधारित हैं। 265 फर्मों ने बिक्री की सूचना दी, क्योंकि यह वैकल्पिक था।

संकट के समय उधार लेना

एमएसएमई इकाइयों के एक बड़े हिस्से के पास औपचारिक वित्त (रामकृष्णन 2019) की उपलब्धता नहीं है। अकेले हमारे प्रतिदर्श में, अपने वित्त के प्राथमिक स्रोत के रूप में, 45% उद्यमों ने खुद की पूंजी (31%) और अनौपचारिक माध्‍यमों (14%) की सूचना दी। इन स्रोतों पर निर्भर रहने वाले सूक्ष्म उद्यमों की हिस्सेदारी 57% से भी अधिक थी।

हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि संकट के बावजूद, 63% उद्यमों ने किसी भी अतिरिक्त धन के लिए बैंक से संपर्क नहीं किया है। ऐसा करने वाली 37% फर्मों में से, केवल एक तिहाई से भी कम फर्में कुछ धन प्राप्‍त कर पाईं हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वे संकट के दौरान अन्य स्रोतों से उधार ले रहे थे, मालिकों ने 33% खुद की बचत पर, 18% ने साहूकारों पर और 18% ने रिश्तेदारों एवं दोस्तों पर फर्म के निर्भर होने की सूचना दी। आकृति 3 से पता चलता है कि संकट के दौरान, उधार लेना कुल मिलाकर अधिक महंगा है, और जबकि कंपनियां आमतौर पर सालाना लगभग 12% ब्याज का भुगतान करती थीं, अब वे 14% ब्याज का भुगतान कर रही हैं।

आकृति 3. संकट के दौरान उधार लेने पर ब्याज दरें

नोट: कैप्ड बार 95% विश्वास अंतराल को दर्शाते हैं। यह उन 96 फर्मों पर आधारित है जिन्‍होंने संकट के दौरान उधार लिया।

आकृति में प्रयुक्त अंग्रेज़ी शब्दों का अर्थ:

Regular interest - नियमित ब्याज; Crisis interest - संकट के दौरान ब्याज

आजीविका का नुकसान

स्वाभाविक रूप से, संकट के कारण नौकरियों में भी बड़ा नुकसान हुआ है। हमारे सर्वेक्षण के अनुसार, औसतन 45% फर्म अपने श्रमिकों को रोके रखने में सक्षम रही हैं। आकृति 4 विभिन्न फर्म द्वारा रोके गए कर्मचारियों की हिस्सेदारी को दर्शाता है। पहली चतुर्थक (नौ या उससे कम कर्मचारियों वाली) वाले फर्म केवल अपने कर्मचारियों के 35% को रोके रखने में सक्षम रही हैं, जबकि शीर्ष चतुर्थक (45 श्रमिकों या अधिक) वाले फर्मों ने अपने 53% कर्मचारियों को रोक रखा है। हमने उद्यमों से यह भी पूछा (1-10 के पैमाने पर) कि यदि लॉकडाउन 17 मई से आगे बढ़ने की स्थिति आई तो क्‍या वे मई के लिए मजदूरी का भुगतान करने में सक्षम रहेंगे। औसत प्रतिक्रिया 10 में से 3 पर थी। चूंकि कई राज्यों में 31 मई के बाद भी लॉकडाउन को आगे बढ़ाया गया है, श्रमिकों के लिए संकट गहराता ही दिखाई दे रहा है।

आकृति 4. फर्म के आकार के अनुसार, बनाए रखे गए श्रमिकों का हिस्सा (%)

नोट: कैप्ड बार 95% विश्वास अंतराल को दर्शाते हैं। बिन्‍स फर्म (रोजगार) आकार की चतुर्थक पर आधारित हैं।

आकृति में प्रयुक्त अंग्रेज़ी शब्दों का अर्थ:

Less than 9 – 9 या उससे कम; Above 45 – 45 या उससे अधिक

अस्तित्व की लड़ाई

हाल के एक बयान में, श्री. गडकरी ने स्वीकार किया कि यह क्षेत्र अब "अस्तित्व के लिए जूझ रहा है" (पीटीआई (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया), 2020 ए)। हमारे आंकड़े डेटा मूल्यांकन का समर्थन करते हैं। कुल मिलाकर, 70% से अधिक फर्मों ने बताया है कि लॉकडाउन के बढ़ने पर वे केवल तीन महीने या उससे कम समय तक चल पाएंगे। एक तिहाई फर्मों का कहना है कि वे एक महीने से ज्यादा समय तक नहीं चलेंगे। इसके बावजूद, 56% फर्म मालिकों ने कहा कि लॉकडाउन का कोई विकल्प नहीं था। आधे से अधिक फर्म मालिकों ने कहा कि अगर उन्‍हें आज फिर से उत्पादन शुरू करने की अनुमति दी जाती है तो वे अपने उद्यमों में सामाजिक दूरी के मानदंडों का पूरी तरह से पालन करने में सक्षम होंगे।

हमने उद्यमों को राहत उपायों पर उनकी सिफारिशों के लिए भी कहा। तत्काल राहत के लिए, कई फर्मों ने नियत बिजली शुल्क को माफ करने का सुझाव दिया। सिफारिशों के पाठ विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि फर्मों ने अल्पकालिक ब्याज मुक्त ऋण देने, करों का विलंबन करने, कर रिफंड में तेजी लाने तथा मांग को प्रोत्साहित करने के लिए जीएसटी स्लैब को कम करने के माध्यम से राहत का सुझाव दिया। कई उद्यमों ने उत्‍पादन के फिर से शुरू हो जाने तक कर्मचारियों को मजदूरी के भुगतान में सहायता के लिए भी अनुरोध किया।

जाहिर है, एमएसएमई के सामने आने वाले मुद्दे गंभीर और जरूरी हैं। एमएसएमई क्षेत्र (पीटीआई, 2020बी) के लिए आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस), सही दिशा में उठाया गया एक कदम प्रतीत होता है। हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि आने वाले महीनों में फर्मों को मांग में कमी और लंबे समय तक श्रमिकों की कमी होने की उम्मीद है। इस क्षेत्र को पूरी तरह तबाह होने से बचाने के लिए, आने वाले महीनों में बहुत कुछ करने की आवश्यकता होगी। इस संकट को ध्‍यान में रखते हुए भारत के आर्थिक सुधार हेतु इन फर्मों का अस्तित्व सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।

राठौर द्वारा व्यक्त किए गए कोई भी विचार उनके खुद के हैं, और यह ज़रूरी नहीं की वे उनके नियोक्ता के हों।

लेखक परिचय: शांतनु खन्ना यूनिवरसिटि ऑफ कैलिफोर्निया, इरविन से अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रहे हैं। उदयन राठौर ऑक्सफोर्ड पॉलिसी मैनेजमेंट (इंडिया) में असिस्टेंट कनसलटेंट के पद पर कार्यरत हैं।

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