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बिजली की कटौती को कम करने हेतु बिजली संयंत्रों की प्रोत्साहन राशि निश्चित करना

  • Blog Post Date 26 अप्रैल, 2022
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Fiona Burlig

University of Chicago

burlig@uchicago.edu

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Akshaya Jha

Carnegie Mellon University

akshayaj@andrew.cmu.edu

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Louis Preonas

University of Maryland, College Park

lpreonas@umd.edu

भारत में अपेक्षाकृत उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे और बिजली संयंत्रों की पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद, उपभोक्ताओं को लगातार बिजली की कटौती का सामना करना पड़ता है। यह लेख भारत में ब्लैकआउट के सन्दर्भ में एक नए स्पष्टीकरण को सामने लाता है: जब बिजली की खरीद लागत बढ़ जाती है, तो उपयोगिताएं बिजली संयंत्रों से कम बिजली खरीदना पसंद करती हैं, जिससे अंतिम उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने वाली बिजली की मात्रा सीमित हो जाती है। थोक मूल्य लागत में कमी लाने वाले ‘थोक आपूर्ति सुधार’ ब्लैकआउट को प्रभावी तरीके से कम करने में सहायक हो सकते हैं।

दुनिया भर के धनी देश बड़ी मात्रा में बिजली की खपत करते हैं (गर्टलर एवं अन्य 2016)। चूँकि विकासशील देशों में परिवार अमीर हो रहे हैं और बिजली के उपकरण खरीद रहे हैं, आने वाले दशकों में बिजली की मांग नाटकीय रूप से बढ़ने का अनुमान है (वोल्फ्राम एवं अन्य 2012)। हालांकि, विकासशील देशों में बिजली के ब्लैकआउट सर्वव्यापी हैं (एबेबेरेस 2021, गर्टलर एवं अन्य 2017)। ब्लैकआउट महंगे हो सकते हैं, क्योंकि वे फर्म की उत्पादकता को कम करते हैं (ऑलकॉट एवं अन्य 2016, कोल एवं अन्य 2018), उत्पादन लागत में वृद्धि करते हैं (स्टाइनबक्स और फोस्टर 2010, फिशर-वेंडेन एवं अन्य 2015) और पारिवारिक आय (बरलैंडो 2014) को भी कम करते हैं।

विकासशील देशों में होने वाले बार-बार के ब्लैकआउट में कई कारक योगदान करते हैं। उपभोक्ताओं को बिजली प्रदान करने वाले जनरेटर और तारों की जटिल प्रणाली जितनी मजबूत है उतनी इसकी सबसे कमजोर कड़ी भी है। जहां बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता खराब होती है उन जगहों पर वोल्टेज स्पाइक्स और ग्रिड व्यवधान अधिक बार होते हैं (मैकरे 2015)। जैसा कि घाना के डमसोर संकट (डीझान्सी एवं अन्य 2018) में देखा गया है, कम आय वाले देशों में बिजली की मांग को पूरा करने हेतु पर्याप्त बिजली का उत्पादन करने के लिए बहुत कम बिजली उत्पादन क्षमता हो सकती है। तथापि, भारत में उपभोक्ताओं को अपेक्षाकृत उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे और बिजली संयंत्रों की पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद, लगातार बिजली कटौती का सामना करना पड़ता है। एक नए शोध (झा एवं अन्य 2022) में, हम भारत के बिजली आउटेज के संदर्भ में एक नए स्पष्टीकरण को सामने लाते हैं: जब बिजली की खरीद लागत बढ़ जाती है, तो यूटिलिटी बिजली संयंत्रों से कम बिजली खरीदना पसंद करती हैं, जिससे अंतिम उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने वाली बिजली की मात्रा सीमित हो जाती है।

भारतीय उपयोगिताएँ यह तय करती हैं कि कब बिजली देनी है

यह स्पष्ट प्रतीत हो सकता है कि बिजली की लागत बढ़ने पर यूटिलिटीज कम बिजली खरीदना पसंद करेंगी। लगभग हर सेटिंग में, कीमतों में वृद्धि होने पर मांग में गिरावट आती है। तथापि, उच्च आय वाले देशों में, बिजली की लागत जो भी हो, इससे संबंधित विनियम यूटिलिटीज को सभी उपभोक्ताओं की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त बिजली खरीदने के लिए मजबूर करते हैं (नेशनल एसोसिएशन ऑफ रेगुलेटरी यूटिलिटी कमिश्नर, 2021)। परिणामस्वरूप, अगर कोई अपनी रोशनी चालू करना चाहता है, तो यूटिलिटी कानूनी रूप से उन्हें बिजली बेचने के लिए बाध्य है जो उन्हें ऐसा करने देती है। भारत और अन्य विकासशील देशों में, ऐसे विनियम कमजोर या अस्तित्वहीन हैं। जब एक भारतीय यूटिलिटी को खुदरा उपभोक्ताओं की मांग को पूरा करने के लिए उच्च लागत से थोक बिजली खरीदनी पड़ती है- जैसे, किसी गर्मी के दिन जब एयर कंडीशनर चलाने के लिए बिजली का उत्पादन करने के लिए अक्षम बिजली संयंत्रों को चलाना पड़ता है- तो यूटिलिटी बिजली की खरीद कम करने का विकल्प चुन सकती है। इसका परिणाम ब्लैकआउट में होता है, जहां भारतीय परिवार अपने एयर कंडीशनर का उपयोग नहीं कर पाते हैं,और ऐसी स्थिति में उनके पास यूटिलिटी को यह बताने का कोई तरीका भी नहीं होता कि वे अपने एयर कंडीशनर का उपयोग करने के लिए आवश्यक बिजली हेतु कितना भुगतान करने को तैयार होंगे।

चित्र 1 अमेरिकी बिजली बाजार बनाम भारतीय बिजली बाजार में बिजली की मांग के बीच के अंतर को दर्शाता है। नीचे की ओर झुकी हुई रेखा (बैंगनी रंग में) भारतीय थोक मांग का वक्र है: जैसे-जैसे कीमतें बढ़ती हैं, यूटिलिटी बाज़ार से कम बिजली की माँग करती हैं। ऊर्ध्वाधर रेखा (हल्के नीले रंग में) अमेरिका या यूरोप के अधिकांश हिस्सों में थोक बिजली की मांग को दर्शाती है: नियामकों द्वारा बिजली का थोक मूल्य जो भी हो, सम्पूर्ण बिजली की मांग को पूरा करने के लिए थोक क्षेत्र से पर्याप्त बिजली खरीदना यूटिलिटीज के लिए अनिवार्य किया गया है। अंत में, आपूर्ति वक्र (काले रंग में) दर्शाता है कि आपूर्ति की गई बिजली की मात्रा कीमतों के साथ बढ़ती है; यह एक 'स्टेप फंक्शन' है क्योंकि बिजली संयंत्रों में बिजली की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन की सीमांत लागत बहुत भिन्न हो सकती है। हम आपूर्ति और मांग का अन्तर्विभाजन करके, इसमें अंतर्निहित ट्रेड-ऑफ को देख सकते हैं कि अनिवार्य रूप से बिजली की सभी मांगों को पूरा किया जाना चाहिए। एक ओर जहां उपभोक्ताओं को अधिक बिजली की आपूर्ति की जाती है वहीँ दूसरी ओर, इस अधिदेश के तहत थोक बिजली की कीमतें अधिक हैं, जिसके कारण अंतिम उपयोगकर्ता उपभोक्ताओं को भी इसकी अधिक कीमतों का सामना करना पड़ सकता है।

चित्र 1. अमेरिका बनाम भारतीय बिजली बाजार में बिजली की आपूर्ति और मांग

भारतीय बिजली क्षेत्र पर वर्ष 2013 से 2019 तक के विस्तृत प्रशासनिक डेटा का उपयोग करते हुए, हम दर्शाते हैं कि बिजली की खरीद लागत बढ़ने पर भारतीय यूटिलिटीज ब्लैकआउट को बढ़ाती हैं। हम भारत के सबसे बड़े थोक बिजली बाजार- भारतीय ऊर्जा एक्सचेंज (आईईएक्स) के हजारों आपूर्ति और मांग वक्रों को डिजिटाइज़ करते हैं, जहां यूटिलिटीज उपभोक्ता फिर से बेची जाने वाली बिजली खरीदने हेतु अपनी बोलियां प्रस्तुत करते हैं। दिन के सभी घंटों में,यूटिलिटीज की मांग नीचे की ओर झुकी हुई है,जिसकी औसत लोच 1 से अधिक है। इसका मतलब यह है कि यदि थोक बिजली की कीमत 1% से बढ़ती है, तो यूटिलिटीज उपभोक्ता प्रदान की जाने वाली बिजली की मात्रा में 1% से अधिक की कमी करेंगी।

हम यह भी पता लगाते हैं कि यदि उपकरण में खराबी के कारण बिजली संयंत्र बंद हो जाते हैं- जिससे बिजली की आपूर्ति की कुल लागत बढ़ जाती है, तो उपभोक्ताओं को आपूर्ति की जाने वाली बिजली की मात्रा का क्या होता है। हम अनुमान लगाते हैं कि राज्य में अधिक बिजली संयंत्र उपकरण विफल होते हैं तो अन्य संयंत्र बिजली उत्पन्न करने के लिए उपलब्ध होने के बावजूद उस राज्य में बिजली की आपूर्ति की मात्रा घट जाती है।

बिजली संयंत्र के प्रोत्साहन से भी ब्लैकआउट होता है

इसका तात्पर्य यह है कि भारत अपने मौजूदा बिजली संयंत्रों को अधिक बार उत्पादन करने के लिए उपलब्ध कराकर ब्लैकआउट को कम कर सकता है। इसके लिए भारतीय बिजली आपूर्ति में चल रही अक्षमताओं को दूर करने की आवश्यकता होगी: किसी एक विशिष्ट दिन, देश की गैर-नवीकरणीय उत्पादन क्षमता का लगभग 27% कम हो जाता है (चित्र 2 देखें, जिसमें भारतीय केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण से दैनिक डेटा का उपयोग किया गया है)। इनमें से कई आउटेज तकनीकी मुद्दों जैसे कि उपकरण की विफलता के कारण हैं। तथापि, आउटेज के एक बड़े हिस्से के लिए, संयंत्र कठोर अनुबंधों सहित आर्थिक कारकों का हवाला देते हैं, जो उनके अनुबंध में निर्दिष्ट एकल यूटिलिटी के अलावा खरीदारों को बिजली बेचने की उनकी क्षमता को प्रतिबंधित करते हैं। विक्रेताओं और खरीदारों को मौजूदा आर्थिक स्थितियों के आधार पर अनुबंधित स्थितियों में व्यापार करने की अनुमति देने से, कम लागत वाले संयंत्रों को 'विवेकाधीन' आउटेज से बचने के लिए उन दिनों में प्रोत्साहन मिलेगा जब उनकी बिजली विशेष रूप से मूल्यवान होगी। हम पाते हैं कि इससे दिन-प्रतिदिन के बाजार में आपूर्ति की जाने वाली बिजली की मात्रा में 13% तक की वृद्धि हो सकती है।

आउटेज की स्थिति में उत्पादन क्षमता का दैनिक हिस्सा

Share of generating capacity : उत्पादन क्षमता का हिस्सा

All outages : सभी आउटेज

Equipment : उत्पादन क्षमता का हिस्सा

Discretionary : विवेकाधीन

यदि भारतीय नियामकों ने ब्लैकआउट को समाप्त कर दिया तो क्या होगा?

सभी उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करनी चाहिए ऐसा एक नियामक अधिदेश यूटिलिटीज के लिए लागू करना एक स्पष्ट नीति समाधान की तरह लग सकता है। जैसा कि चित्र 1 में दिखाया गया है, इस तरह का 'पूर्ण मांग' अधिदेश लागू करने से,अंतिम उपयोगकर्ताओं को आपूर्ति की गई मात्रा और थोक बिजली की कीमतों में वृद्धि होगी- संभावित रूप से लगभग सभी ब्लैकआउट को समाप्त करने के लिए यूटिलिटीज पर अत्यधिक उच्च वित्तीय बोझ डालना होगा। एक आदर्श दुनिया में, अर्थशास्त्रियों का उत्तर सरल है कि उपभोक्ताओं को बिजली के लिए भुगतान करने की उच्चतम से निम्नतम इच्छा तक क्रमबद्ध किया जाना चाहिए, और बिजली संयंत्रों द्वारा उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति तब तक की जानी चाहिए जब तक कि एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन की सीमांत लागत अगले उपभोक्ता की भुगतान करने की इच्छा से अधिक न हो- अन्यथा यूटिलिटी एक ऐसे जाल में पड़ सकती है जहां भुगतान न करने से बिजली तक पहुंच कमजोर हो जाती है (बर्गेस एवं अन्य 2020)। उपभोक्ता की भुगतान करने की औसत इच्छा को बेंचमार्क करने का एक तरीका यह ध्यान देना है कि कई भारतीय उपभोक्ता डीजल बैकअप जनरेटर खरीदने और उसे चलाने के लिए वर्तमान में प्रति मेगावाट घंटे (MWh) लगभग रु 13,000-36,000 का व्यय करते हैं।

हमारे परिणाम दर्शाते हैं कि यदि भारतीय नियामक ब्लैकआउट को पूर्ण रूप से समाप्त करने की अनिवार्यता यूटिलिटीज पर लागू करते हैं, तो यूटिलिटीज को प्रति मेगावाट बिजली की लागत डीजल बैकअप उत्पादन की लागत से 2-7 गुना अधिक होगी। तथापि, यह लागत बहुत अधिक उचित होगी यदि भारतीय नियामक भी बिजली संयंत्रों में 'विवेकाधीन आउटेज' को खत्म करने के लिए अनुबंध सुधार लागू करते हैं, क्योंकि कम लागत से बिजली पैदा करने वाले अधिक बिजली संयंत्र उपलब्ध होंगे। विवेकाधीन रुकावटों-रहित दुनिया में, एक नियामक अधिदेश की लागत डीजल बैकअप जनरेटर की खरीद और संचालन की लागत से तुलनीय होगी।

आगे की सीख

विकासशील देशों में बिजली बंद होने से फर्मों और परिवारों को भारी लागत का सामना करना पड़ रहा है। इन ब्लैकआउट के कई कारण हैं, जिनमें सीमित बिजली उत्पादन क्षमता और असफल वितरण अवसंरचना शामिल हैं। हम ब्लैकआउट के लिए एक नया स्पष्टीकरण प्रदान करते हैं: जब खरीद लागत अधिक होती है, तो यूटिलिटी थोक क्षेत्र से कम बिजली खरीदना पसंद करती हैं, जिससे अंतिम उपयोगकर्ताओं तक कम बिजली पहुंचती है। कई विकासशील देशों में-जहां बिजली की चोरी करना और बिल का भुगतान न करना प्रचलित है, खुदरा क्षेत्र में सुधारों के माध्यम से यूटिलिटीज की लाभप्रदता में सुधार करना एक कठिन चुनौती है (खन्ना और रोव 2021)। हमारे परिणाम दर्शाते हैं कि थोक कीमतों को कम करने वाले ‘थोक आपूर्ति सुधार’ अधिक लागत प्रभावी तरीके से ब्लैकआउट को कम कर सकते हैं।

चूँकि विकासशील देश अक्षय ऊर्जा की ओर संक्रमण कर रहे हैं, इस प्रकार के सुधार तेजी से महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। पवन और सौर संसाधनों की परिचालन लागत बहुत कम होती है, लेकिन वे केवल जब हवा चल रही हो या सूरज चमक रहा हो, तो ही रुक-रुक कर उत्पादन करते हैं। यदि पवन/सौर उत्पादन में बड़े उतार-चढ़ाव की स्थिति से निपटने हेतु आपूर्तिकर्ताओं के अनुबंध पर्याप्त लचीले नहीं हैं, तो ब्लैकआउट की घटनाओं को कम करना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।

यह लेख VoxDev और VoxEU के सहयोग से प्रकाशित किया गया है।

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लेखक परिचय: फियोना बर्लिग युनिवर्सिटी औफ शिकागो में हैरिस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में सहायक प्रोफेसर और नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च में फैकल्टी रिसर्च फेलो हैं। अक्षय झा करनेगी मेलों युनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीति के सहायक प्रोफेसर हैं। लुइस प्रीओनास युनिवर्सिटी औफ मैरीलैंड, कॉलेज पार्क में कृषि और संसाधन अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।

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