भारत का बड़े पैमाने का परिवार नियोजन कार्यक्रम, मिशन परिवार विकास, गर्भनिरोधक तक पहुँच में सुधार करता है, कार्यक्रम अपनाने वाले लाभार्थियों को नकद प्रोत्साहन प्रदान करता है और 146 जिलों में प्रजनन की वर्तमान उच्च दर को कम करने के उद्देश्य से परिवार नियोजन के बारे में जानकारी का प्रसार करता है। इस लेख में एनएफएचएस के कई दौरों के डेटा का उपयोग करते हुए, हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप जन्मों की संख्या में गिरावट, महिलाओं और पुरुषों की प्रजनन प्राथमिकताओं में कमी और गर्भनिरोधक को अपनाने में वृद्धि के साक्ष्य का दस्तावेज़ीकरण किया गया है।
उच्च प्रजनन दर खराब मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और शिशु मृत्यु दर में वृद्धि से जुड़ी हुई है (बीन एवं अन्य 1992)। विकासशील देशों में, 15-49 वर्ष की आयु की महिलाओं में गर्भावस्था को मृत्यु का एक प्रमुख कारण माना जाता है (विश्व स्वास्थ्य संगठन, 2023)। वार्षिक रूप से, लगभग 30 लाख बच्चे मृत पैदा होते हैं (संयुक्तराष्ट्र, 2014), जबकि 40 लाख जीवित जन्मे बच्चे जन्म के 4 सप्ताह के भीतर मर जाते हैं (हैडॉक एवं अन्य 2008)। राष्ट्रीय स्तर पर, उच्च प्रजनन क्षमता को प्रति-व्यक्ति निम्न सकल घरेलू उत्पाद (गूटमार्क और एंडर्सन 2020) के साथ भी जोड़ा गया है।
प्रजनन सम्बन्धी निर्णय जटिल होते हैं, क्योंकि ये सामाजिक और आर्थिक भलाई, धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं और जीवन-साथियों के दबाव जैसे कई कारकों से प्रभावित होते हैं। इसलिए सरकारों के लिए केवल सार्वजनिक नीति के माध्यम से इन्हें कुशलता से संचालित करना मुश्किल हो जाता है। चीन और जापान में राष्ट्रीय प्रजनन दर को नियंत्रित रखने के प्रयास प्रसव की असाधारण उच्च दर को कम करने में सरकारों की भागीदारी और निवेश के महत्त्व और जटिलता का प्रमाण हैं।
भारत सरकार द्वारा नवंबर 2016 में लागू किया गया मिशन परिवार विकास (एमपीवी), एक हालिया कार्यक्रम है जिसका लक्ष्य उत्तर प्रदेश राज्य, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और असम के उच्च प्रजनन क्षमता वाले 146 जिलों में प्रजनन क्षमता को प्रतिस्थापन स्तर (यानी प्रति महिला 2.1 बच्चे) तक लाना है। एमपीवी की अनूठी विशेषता प्रजनन क्षमता को कम करने के प्रति इसका बहुआयामी दृष्टिकोण है। पहली विशेषता यह कि इस कार्यक्रम ने सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर आपूर्ति में वृद्धि के माध्यम से इंजेक्शन, मौखिक गर्भनिरोधक गोली (ओसीपी), इंट्रा-गर्भाशय गर्भनिरोधक उपकरण (आईयूसीडी) और कंडोम जैसे गर्भ निरोधकों तक जनता की पहुँच में सुधार किया। परिवार नियोजन तरीकों के अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए, नवविवाहित जोड़ों को गर्भ निरोधकों, गर्भावस्था परीक्षण किट और परिवार नियोजन की जानकारी के साथ एक पुस्तिका सहित प्री-पैकेज्ड किट दिए गए। दूसरी, एमपीवी ने अपना ध्यान परिवार नियोजन के बारे में जानकारी प्रसारित करने पर केन्द्रित किया ताकि गर्भ निरोधकों की बढ़ी हुई आपूर्ति को अपनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा सके। यह कार्य त्रैमासिक अभियानों, दूरदराज के क्षेत्रों में चलने वाली मोबाइल वैनों के ज़रिए ऑडियो-विज़ुअल फिल्मों के माध्यम से परिवार नियोजन की सर्वोत्तम प्रथाओं और लाभों का प्रसार करके, महिलाओं व उनकी सास के बीच संचार को बढ़ावा देने और यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को प्रभावित करने हेतु स्थानीय स्वास्थ्य केन्द्रों पर आयोजित सम्मेलनों के माध्यम से पूरा किया गया। तीसरी विशेषता यह कि इन आपूर्ति-केन्द्रित और सूचनात्मक हस्तक्षेपों के साथ उन लाभार्थियों के लिए नकद प्रोत्साहन को जोड़ा गया, जिन्होंने गर्भ निरोधकों और नसबंदी को सफलतापूर्वक अपनाया।
एमपीवी को मौजूदा मान्यता-प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) नेटवर्क के माध्यम से लागू किया गया। ‘आशा’ प्रशिक्षित महिला सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, जो समुदाय और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बीच सम्पर्क स्थापित करती हैं। वे भर्ती के बाद व्यापक प्रशिक्षण से गुजरती हैं, महिलाओं और बाल स्वास्थ्य देखभाल के लिए निरंतर ऑन-द-जॉब प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं और वे अपने संबंधित गांवों की स्वास्थ्य देखभाल स्थिति से परिचित होती हैं जहाँ का कार्य उन्हें सौंपा गया है।
हम अपने अध्ययन (अग्रवाल एवं अन्य 2023) में, एमपीवी कार्यक्रम के तहत इन विभिन्न हस्तक्षेपों- परिवार नियोजन सेवाओं की आपूर्ति में वृद्धि, इन सेवाओं को लेने के लिए प्रोत्साहित करना, उच्च प्रजनन क्षमता के दुष्प्रभावों के बारे में लाभार्थियों को शिक्षित करना, इन सेवाओं को अपनाने और उपयोग को प्रोत्साहित करना, प्रजनन दर पर, साथ ही कार्यक्रम जिलों में परिवार नियोजन प्रथाओं और गर्भनिरोधक उपयोग को अपनाने जैसे हस्तक्षेपों के समग्र प्रभाव का अनुमान लगाते हैं।
शोध पद्धति
रुचि के परिणामों पर एमपीवी के प्रभाव का अनुमान लगाने हेतु, हम कार्यक्रम के सन्दर्भ में जिला पात्रता में भिन्नता का उपयोग करते हैं। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, एमपीवी केवल 146 जिलों में लॉन्च किया गया था, जिसमें से हम ‘उपचारित’ समूह का निर्माण करते हैं। देश के शेष जिलों (गैर-एमपीवी जिले) से हम अपना ‘नियंत्रण’ समूह बनाते हैं। चूँकि एमपीवी जिलों को उनमें प्रचलित उच्च प्रजनन क्षमता के आधार पर चुना गया था और देश के अन्य जिलों की तुलना में उनकी औसत प्रजनन क्षमता बहुत अधिक होने की संभावना है। और चूँकि जिलों में एमपीवी कार्यक्रम लागू होने से पहले ही अन्तर मौजूद है, अतः इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन के बाद ‘उपचारित’ समूह और ‘नियंत्रण’ समूह में प्रजनन दर की तुलना करना सटीक नहीं हो सकता है। अतः हम तुलना को निष्पक्ष बनाने के लिए, डिफरेंस-इन-डिफरेंस दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं- सबसे पहले, हम एमपीवी के लागू होने से से पहले और बाद में प्रजनन दर में अन्तर को देखते हैं। इसके बाद, हम एमपीवी और गैर-एमपीवी जिलों के बीच समय के साथ इन अंतरों में आए बदलाव (अन्तर) को देखते हैं। यह दूसरा अन्तर एमपीवी कार्यक्रम के प्रभाव का हमारा अनुमान है। इस पद्धति का उपयोग मुख्य रूप से ‘उपचारित’ और ‘नियंत्रित’ समूहों के बीच पहले से मौजूद अंतरों के प्रभाव को खत्म करने के लिए किया गया है। रुचि के मुख्य परिणामों में अन्तर के अलावा, हम महिला की उम्र, शिक्षा, जाति, धर्म, घर के मुखिया की उम्र और लिंग, ग्रामीण निवास के साथ-साथ धन जैसे विभिन्न सह-संयोजकों को भी नियंत्रित करते हैं, जिन्हें इन औसत अंतरों के साथ सह-संबद्ध किया जा सकता है।
ऊपर वर्णित डिफरेंस-इन-डिफरेंस पद्धति को लागू करने के लिए हम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के चौथे (2015-16) और पाँचवें (2019-21) दौर का उपयोग करते हैं, जिनमें स्वास्थ्य, प्रजनन क्षमता, गर्भनिरोधक का उपयोग, नसबंदी और प्रत्येक दौर में लगभग 7,00,000 महिलाओं के प्रतिनिधि नमूने के लिए परिवार नियोजन की जानकारी का प्रदर्शन के बारे में जानकारी एकत्रित की गई है। चूंकि एमपीवी कार्यक्रम नवंबर 2016 में लागू किया गया था, अतः एनएफएचएस-4 का उपयोग कार्यक्रम-पूर्व (प्री-प्रोग्राम) डेटा के रूप में है जबकि एनएफएचएस-5 कार्यक्रम-पश्चात (पोस्ट-प्रोग्राम) डेटा के रूप में काम आता है।
इन अनुमानों की विश्वसनीयता इस धारणा पर आधारित है कि, कार्यक्रम के नहीं होने की स्थिति में (अर्थात, प्रतितथ्यात्मक रूप में), ‘उपचारित’ और ‘नियंत्रण’ समूहों के बीच परिणामों में अन्तर सांख्यिकीय रूप से शून्य से अप्रभेद्य होगा। हम इस धारणा की जांच एनएफएचएस-2 (1998-99), एनएफएचएस-3 (2005-06), और एनएफएचएस-4 (2015-16) के कार्यक्रम-पूर्व (प्री-प्रोग्राम) डेटा का उपयोग करके करते हैं। हम एमपीवी और गैर-एमपीवी जिलों के बीच एनएफएचएस-2 से एनएफएचएस-4 तक प्रजनन क्षमता में बदलाव की तुलना करते हैं और पाते हैं कि परिणाम सांख्यिकीय रूप से शून्य से अप्रभेद्य हैं यानी 0 से इन्हें अलग देखना सम्भव नहीं है। अनिवार्य रूप से, हम दर्शाते हैं कि कार्यक्रम के कार्यान्वयन से पहले एमपीवी और गैर-एमपीवी जिलों में समय के साथ प्रजनन क्षमता में परिवर्तन सांख्यिकीय रूप से एक दूसरे से भिन्न नहीं थे। इस प्रकार, यदि हम एमपीवी के कार्यान्वयन के बाद प्रजनन प्रवृत्तियों में सांख्यिकीय रूप से महत्त्वपूर्ण अन्तर पाते हैं, तो इसका श्रेय इस कार्यक्रम को दिया जा सकता है।
शोध के परिणाम
एमपीवी और गैर-एमपीवी जिलों में प्रचलित औसत कुल प्रजनन दर (टीएफआर) की तुलना करने पर पता चलता है कि वर्ष 1998-99 से 2015-16 तक (यानी, एमपीवी के कार्यान्वयन से पहले), दोनों समूहों में टीएफआर में समान दर से गिरावट आई है। हालाँकि वर्ष 2015-16 से 2019-21 तक, एमपीवी जिलों में टीएफआर गैर-एमपीवी जिलों की तुलना में तेज़ी से घटी है।
आकृति-1. एमपीवी और गैर-एमपीवी जिलों में कुल प्रजनन दर में रुझान
टिप्पणियाँ : i) औसत टीएफआर की गणना एनएफएचएस-2, एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 से महिलाओं के डेटा का उपयोग करके की गई है। ii) बिंदीदार खड़ी रेखा एमपीवी के कार्यान्वयन को इंगित करती है।
प्रजनन क्षमता को मापने के लिए हमारा मुख्य परिणाम चर एनएफएचएस सर्वेक्षण के चौथे और पाँचवें दौर से पहले के पाँच और तीन वर्षों में जन्मों की संख्या है। हमने पाया कि एमपीवी जिलों में कार्यक्रम कार्यान्वयन के बाद जन्मों की संख्या में गैर-एमपीवी जिलों की तुलना में पिछले पाँच वर्षों में 0.022 जन्मों और पिछले तीन वर्षों में 0.013 जन्मों की गिरावट आई है। इसका मतलब है कि प्रभाव का आकार लगभग 5% कम जन्म है। हमने यह भी पाया कि उच्च आधारभूत प्रजनन क्षमता वाले जिलों और एकल परिवारों के सन्दर्भ में कार्यक्रम का प्रभाव अधिक ठोस है।
आकृति-2. पिछले पाँच (बाएं पैनल) और तीन वर्षों (दाएं पैनल) में जन्मों की संख्या पर एमपीवी का प्रभाव
टिप्पणियाँ : i) बिन्दु अनुमान 95% विश्वास अंतराल के साथ खड़े अक्ष पर प्रस्तुत किए गए हैं। ii) बिंदीदार खड़ी रेखा एमपीवी के लॉन्च को इंगित करती है।
आकृति-2 में, हम विभिन्न सर्वेक्षण वर्षों का उपयोग करते हुए उन वर्षों के स्तर पर कार्यान्वित घटना अध्ययन के परिणाम प्रस्तुत करते हैं, जिनमें एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस -5 सर्वेक्षण किए गए थे। घटना अध्ययन दो उद्देश्यों को पूरा करता है- कार्यान्वयन के बाद कार्यक्रम के प्रभावों का प्रमाण दिखाना (जैसा कि आकृति में नकारात्मक बिन्दु अनुमानों में दर्शाया गया है) और यह दिखाना कि हमारी अनुभवजन्य रणनीति एमपीवी और गैर-एमपीवी जिलों (जो कि प्री-प्रोग्राम वर्ष 2016 के लिए सांख्यिकीय रूप से महत्त्वहीन बिन्दु अनुमान से स्पष्ट है) के बीच प्रजनन क्षमता में पूर्व-कार्यक्रम अन्तर के सन्दर्भ में ठोस है। रिकॉर्ड किए जाने के समय गर्भवती होने की संभावना में 1 प्रतिशत अंक की कमी भी है। वास्तविक प्रजनन क्षमता के अलावा, हम महिलाओं की बताई गई प्रजनन प्राथमिकताओं में भी कमी पाते हैं, जिसे बच्चों की आदर्श संख्या (एमपीवी जिलों में 0.07 जन्मों से कम) और अधिक बच्चों की इच्छा (एमपीवी जिलों में 3 प्रतिशत अंक कम) पर उनकी राय से मापा गया है।) पुरुषों की रिपोर्ट की गई प्रजनन प्राथमिकताएं भी एमपीवी जिलों में बड़ी गिरावट दर्शाती हैं। प्रजनन प्राथमिकताओं में गिरावट से पता चलता है कि, तत्काल प्रभावों के अलावा, एमपीवी कार्यक्रम भविष्य में दम्पतियों के निर्णय लेने के मानदंडों को प्रभावित करने को भी आश्वासित करता है।
हमें एमपीवी के तहत विभिन्न हस्तक्षेपों के सकारात्मक प्रभावों के प्रमाण भी मिले हैं। सूचना प्रसार प्रयासों के परिणामस्वरूप, एमपीवी जिलों में महिलाओं को समाचार पत्रों और पत्रिकाओं (2.8 प्रतिशत अंक), टेलीविजन (7.5 प्रतिशत अंक) के साथ-साथ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत (2.8 प्रतिशत अंक) के माध्यम से परिवार नियोजन की जानकारी प्राप्त होने की अधिक संभावना थी। इसके अलावा, परिवार नियोजन तक बेहतर पहुँच के परिणामस्वरूप महिलाओं के बीच गर्भ निरोधकों का उपयोग (8.9 प्रतिशत अंक) और नसबंदी (4.8 प्रतिशत अंक) में वृद्धि हुई है। प्रजनन चक्र के आरम्भ में गर्भनिरोधक के उपयोग और नसबंदी किए जाने के भी प्रमाण मिले हैं। एमपीवी जिलों में पुरुषों में भी गर्भ निरोधकों के उपयोग और परिवार नियोजन सम्बन्धी जानकारी में वृद्धि देखी गई है।
विभिन्न गर्भ निरोधकों (आकृति-3) पर विघटित प्रभाव, हम महिला नसबंदी, इंजेक्शन, ओसीपी और कंडोम के उपयोग पर सकारात्मक प्रभाव पाते हैं। एक दिलचस्प 'स्पिलओवर' प्रभाव जन्मों की संख्या को कम करने के लिए रिदम पद्धति का बढ़ता उपयोग और सकारात्मक प्रभाव था1। कंडोम या गोलियों जैसी अन्य पद्धतियों का उपयोग उपलब्धता और सामाजिक कलंक से बाधित है, जबकि रिदम पद्धति पूरी तरह से मांग-आधारित है। इस पद्धति के उपयोग में वृद्धि एमपीवी हस्तक्षेपों का हिस्सा नहीं थी या इसके कार्यक्रम दस्तावेजों में अनुशंसित भी नहीं थी। यह परिवार नियोजन के लाभों और उच्च प्रजनन क्षमता से जुड़े स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में बढ़ती जागरूकता का अप्रत्यक्ष प्रभाव हो सकता है, जिन्हें एमपीवी के माध्यम से प्रदान किया गया था।
आकृति-3. महिलाओं के गर्भनिरोधक उपयोग पर एमपीवी का प्रभाव
टिप्पणियाँ : i) पीपीआईयूडी प्रसवोत्तर अंतर्गर्भाशयी डिवाइस को संदर्भित करता है। ii) एलएएम लैक्टेशन एमेनोरिया विधि को संदर्भित करता है। iii) हमारे प्रतिगमन के परिणाम 95% विश्वास अंतराल के साथ रंगीन बिन्दुओं के ज़रिए दर्शाए गए खड़े अक्ष पर दर्शाए गए हैं। iv) बिंदीदार क्षैतिज रेखा शून्य प्रभाव को इंगित करती है।
निष्कर्ष
उच्च प्रजनन क्षमता सूक्ष्म स्तर पर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर इसके प्रतिकूल प्रभाव और समग्र स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद के साथ नकारात्मक सम्बन्ध के मद्देनज़र, एक सार्वजनिक स्वास्थ्य सम्बन्धी चिंता है। हालाँकि, प्रजनन सम्बन्धी निर्णयों में शामिल जटिलता को देखते हुए, प्रजनन दर को कुशलता से संचालित करना मुश्किल है। सरकारों के दीर्घकालिक प्रयासों के बावजूद, भारत के कुछ जिलों में प्रजनन दर में बेहद धीमी गति से कमी इस तथ्य को प्रमाणित करती है।
हमने पाया कि मिशन परिवार विकास की छत्रछाया में केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप सम्भावित लाभार्थियों की प्रसव और प्रजनन प्राथमिकताओं की घटनाओं को कम करने, गर्भ निरोधकों के उपयोग को बढ़ाने और नसबंदी को अपनाने के साथ-साथ महिलाओं और उनके पतियों दोनों के बीच परिवार नियोजन के बारे में लोगों को शिक्षित करने में प्रभावी थे। हालाँकि कुल प्रजनन दर2 पर प्रभाव को मापना अभी जल्दबाज़ी होगी, कार्यक्रम के लागू होने बाद जन्मों में कमी आना एक स्पष्ट संकेत है कि एमपीवी कार्यक्रम सही दिशा में उठाया गया कदम है।
टिप्पणियाँ :
- रिदम पद्धति शब्द गर्भाधान नियंत्रण की विधि को दर्शाता है जहाँ दम्पति महिला की प्रजनन अवधि की गणना के आधार पर कुछ निश्चित अवधि के दौरान सम्भोग से परहेज़ करते हैं (श्नेप और मुंडी 1952) ।
- कुल प्रजनन दर एक महिला की प्रजनन अवधि पर मापी जाती है जो कई वर्षों तक चलती है और इसलिए एमपीवी कार्यक्रम के लागू होने के बाद केवल कुछ वर्षों के भीतर सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : सार्थक अग्रवाल भारतीय प्रबंधन संस्थान लखनऊ, भारत में अर्थशास्त्र में शोध छात्र हैं। सोमदीप चटर्जी भारतीय प्रबंधन संस्थान कलकत्ता में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। ओइन्ड्रिला डे भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं।
क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक न्यूज़ लेटर की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।
Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.