सामाजिक पहचान

शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन: भारत में महिला श्रम-शक्ति की भागीदारी इतनी कम क्यों है?

  • Blog Post Date 15 दिसंबर, 2021
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Deepaboli Chatterjee

Centre for Policy Research

deepaboli@cprindia.org

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Neelanjan Sircar

Centre for Policy Research

neelanjan.sircar@gmail.com

भारत में महिलाओं की श्रम-शक्ति में भागीदारी एक जटिल सामाजिक मसला है, जो अन्य बातों के अलावा– पितृ-सत्तात्मक मानदंड, ग्रामीण-शहरी संक्रमण, और मांग एवं आपूर्ति कारकों के बेमेल होने के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई है। उत्तर भारत के चार शहरों के आसपास के किए गए एक क्षेत्रीय अध्ययन के आधार पर यह लेख दर्शाता है कि गतिशीलता और घर तक पहुंच में आसानी, महिलाओं की कार्य भागीदारी के सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक हैं।

यह लेख 'शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन' पर आधारित पांच-भाग की श्रृंखला में से पहला है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुमानों के अनुसार, भारत की महिला श्रम-शक्ति भागीदारी दर (एफएलएफपी) वर्ष 2005 के 32% की तुलना में गिरकर 2019 में 21% हो गई- यह दर दक्षिण एशिया में सबसे कम और दुनिया में सबसे कम दरों में से एक है। श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी में इस तेज गिरावट ने शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं- दोनों का ध्यान समान रूप से आकर्षित किया है। भारत में कम एफएलएफपी अनिवार्य रूप से एक जटिल सामाजिक मसला है, जो अन्य बातों के साथ-साथ- पितृसत्तात्मक मानदंड (जयचंद्रन 2021), ग्रामीण-शहरी संक्रमण (नेफ एवं अन्य 2012), और आपूर्ति और मांग कारकों के बेमेल होने (देशपांडे और सिंह 2021) के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई है।

अधिकांश साहित्य महिलाओं को 'काम करने' या 'काम नहीं करने' के रूप में विभाजित करता है, तथापि ये घर के पास या घर के भीतर के काम संबंधी बारीकियों को छुपाते हैं, जबकि यही भारत में महिलाओं के काम का बड़ा हिस्सा हैं। एक नए अध्ययन (चटर्जी और सरकार 2021) में, हम घर से बाहर काम करने के लिए एक महिला की पसंद को उनके एक नीतिगत निर्णय के रूप में देखते हैं जो घर के बाहर संभावित वेतन के साथ परिवार की अपेक्षाओं को संतुलित करता है। इस सन्दर्भ में, मुख्य अंतर्दृष्टि यह है कि घर में मांग पर्याप्त रूप से अधिक होने की वजह से श्रम बाजार में प्रवेश करने हेतु किया गया नीतिगत विचार– जिसके चलते श्रम-बल में प्रवेश करने की इच्छा अनिवार्य रूप से अंशकालिक और घर के आस-पास काम दिलाती है, और ऐसे काम जिनमें सुविधाजनकता और निकटता दोनों है उन्हें हम ‘काम’ के रूप में उल्लिखित करते हैं। यहाँ पर स्पष्ट कर दें कि ये मांगें महिलाओं द्वारा न केवल घर में बिताए गए समय के बारे में हो सकती हैं, बल्कि इनमें एक धारणा यह भी है कि परिवार के कार्यों को करना परिवार की महिला सदस्य का 'कर्तव्य' है।

इस पहेली पर प्रकाश डालने के लिए, हम श्रम-बल में प्रवेश करने की महिलाओं की इच्छा में निकटता और सुविधाजनकता की भूमिका को उजागर करने हेतु उत्तर भारत के शहरों- धनबाद (झारखंड), इंदौर (मध्य प्रदेश), पटना (बिहार) और वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के आसपास के क्षेत्र के विवरणात्मक डेटा और वहां किये गए एक सर्वेक्षण प्रयोग का विश्लेषण करते हैं। हमारी मुख्य अंतर्दृष्टि यह है कि महिलाओं को काम के लिए जाने हेतु यदि अपने घर से अधिक दूरी तय करनी पड़ती हो तो वे श्रम-बाजार से बाहर निकलने को विवश हो जाती हैं, इसलिए कई महिलाएं अपने घर के पास के अंशकालिक काम को प्राथमिकता देती हैं।

दूसरे शब्दों में, महिलाएं वास्तव में श्रम-शक्ति में प्रवेश करना तभी पसंद करती हैं, जब उन्हें अपने घर के पास अंशकालिक आधार पर काम मिलता हो। इसका मतलब किसी के श्रम बाजार में प्रवेश करने के इनकार को उसकी प्राथमिकता के साथ जोड़कर नहीं देखना चाहिए। इससे यह भी प्रतीत होता है कि अपर्याप्त श्रम-बाजार में महिलाओं द्वारा मांग रखने के बारे में उनका लक्षण-वर्णन तब तक स्पष्ट नहीं होगा जब तक कार्य-समय के सुविधाजनक होने और किसी भी संभावित रोजगार के स्थान से उनके घर की निकटता के बारे में विवरण विनिर्दिष्ट नहीं किया जाता।

कृषि तथा श्रम-बल में महिलाओं की भागीदारी

हालांकि हमारे अध्ययन के चार स्थानों में से प्रत्येक की औद्योगिक संरचना में महत्वपूर्ण भिन्नता है, परिवार के पुरुष प्राथमिक वेतन-भोगी (पीडब्ल्यूई) की तुलना में महिलाएं निरंतर रूप से कृषि कार्य में अधिक लगी हुई हैं, जिसमें कामकाजी महिलाओं के अपने पुरुष पीडब्ल्यूई समकक्षों की तुलना में कृषि-कार्य में लगे होने की संभावना 18-29 प्रतिशत अधिक है। वास्तव में, धनबाद को छोड़कर हमारे अध्ययन के सभी स्थानों में घर के बाहर कार्यरत अधिकांश महिलाएं कृषि कार्य में लगी हुई हैं, जबकि अध्ययन के प्रत्येक स्थान में पुरुष पीडब्ल्यूई में से बहुत कम संख्या में पुरुष कृषि कार्य में लगे हुए हैं। यह देखते हुए कि हमारे प्रत्येक शोध स्थल में 25% से कम कामकाजी उम्र की महिलाएं आय-सृजन के कार्य में लगी हुई हैं, इससे पता चलता है कि अधिकांश महिलाएं घर के भीतर या उसके आस-पास की गतिविधियों में लगी हुई हैं। इसके अलावा, जब भी रोजगार के स्रोत के रूप में कृषि का कार्य उपलब्ध नहीं होता है, तो ऐसी स्थिति में महिलाओं के श्रमबल में शामिल होने की संभावना कम होती है।

महिलाओं के सन्दर्भ में श्रम बाजार की संरचना में ग्रामीण-शहरी संक्रमणों की स्थिति को समझने हेतु, हमने अपने नमूने में शहरी और ग्रामीण इलाकों के आधिकारिक प्रशासनिक वर्गीकरण का उपयोग किया। फिर हमने अपने प्रत्येक अध्ययन स्थान हेतु इस संभावना का मॉडल तैयार किया कि एक महिला पारिवारिक स्तर के परिसंपत्ति सूचकांक के एक कार्य के रूप में श्रम शक्ति में प्रवेश करती है।

चित्र 1. महिला श्रम शक्ति भागीदारी में ग्रामीण-शहरी अंतर

चित्र 1 हमारे अध्ययन के चार स्थलों में इन प्रवृत्तियों को दर्शाता है। ग्रामीण क्षेत्र सबसे गरीब परिवारों में निरंतर रूप से एफएलएफपी के उच्च स्तर दिखाते हैं (एक संभावित अपवाद धनबाद है, जहां कृषि कार्य के समग्र स्तर निम्न हैं)। लेकिन, धन-संपत्ति के मध्यम स्तर पर, ग्रामीण क्षेत्रों में एफएलएफपी की दर शहरी क्षेत्रों के साथ मिलती-जुलती है। हम समझते हैं कि ऐसा महिलाओं के लिए कृषि कार्य को छोड़कर पर्याप्त मजदूरी के अवसरों के न होने के परिणामस्वरूप हुआ है, महिलाएं (या परिवार) जिसे अपनी आय उच्च होने की स्थिति में छोड़ देने का विकल्प चुनती हैं।

दरअसल, धनबाद, पटना और वाराणसी के सबसे धनी परिवारों में एफएलएफपी वास्तव में थोड़ा अधिक है। शायद शहरी संदर्भों में, पर्याप्त धन-संपत्ति (और मानव पूंजी) वाले परिवार की महिलाओं के लिए कुशल, सफेदपोश काम के अधिक अवसर हैं- भले ही इनका समग्र स्तर काफी कम हो।

यह ध्यान देने लायक है कि एफएलएफपी में ग्रामीण-शहरी रोजगार का अंतर, ग्रामीण और शहरी परिवारों के बीच के धन-संपत्ति के अंतर से कहीं अधिक है। हमारा मानना है कि यह अंतर इस कारण है कि ग्रामीण परिवारों की महिलाएं अक्सर कृषि नौकरियों में संलग्न हो सकती हैं जो सुविधाजनक और घर के निकट भी होती हैं। इसके विपरीत, गैर-कृषि क्षेत्रों में, निकटता और सुविधाजनक होने की शर्तों को पूरा करने वाली नौकरियों की उपलब्धता काफी कम होती है।

सुविधाजनकता और निकटता के लिए प्राथमिकताएँ

हमने प्रत्येक शहर में एक पीडब्लूई के अलावा एक कामकाजी उम्र की महिला को उत्तरदाता के रूप में काम करने के लिए यादृच्छिक रूप से चुना। कुल मिलाकर, हम प्रत्येक शहर में 2,854 (इंदौर) और 3,447 (वाराणसी) के बीच नमूने के साथ 12,579 परिवारों में पीडब्ल्यूई और कामकाजी उम्र की महिला दोनों का सर्वेक्षण करने में सक्षम थे। यदि (महिला) उत्तरदाता बेरोजगार थी, तो हमने उससे पूछा कि क्या वह एक 'उपयुक्त नौकरी' करने के लिए तैयार होगी और वह अपनी नौकरी हेतु किस प्रकार का अनुबंध चाहेगी। कुल मिलाकर, हमने चार शहरों में 9,777 बेरोजगार महिलाओं का सर्वेक्षण किया, जिनका नमूना आकार प्रत्येक शहर में 2,295 (पटना) और 2,674 (धनबाद) के बीच था। तालिका 1 दर्शाती है कि अधिकांश महिलाएं काम करना चाहती हैं, और उनमें से, काफी अधिक प्रतिशत महिलाएं अंशकालिक काम पसंद करती हैं, जो श्रम अनुबंधों में लचीलेपन की प्राथमिकता के अनुरूप है।

तालिका 1. सुविधाजनक कार्य-समय के लिए महिलाओं की प्राथमिकताएँ

कार्य प्राथमिकताएं

धनबाद (%)

इंदौर(%)

पटना(%)

वाराणसी(%)

काम करने की इच्छा जताई

58

52

60

66

नियमित पूर्णकालिक कार्य

41

28

38

33

नियमित अंशकालिक कार्य

59

65

57

62

समसामयिक/आकस्मिक कार्य

0

7

5

5

सुविधाजनक कार्य-समय हेतु प्राथमिकता को समझने के लिए, हमने उन्हें कार्य-समय की प्राथमिकताओं के लिए कारण बताने के लिए कहा। हमने उन्हें कई प्रकार के उत्तर देने की इजाजत दी। इन उत्तरों को हम यहां दो प्रकार के उत्तरों में विभाजित करते हैं: (क) एक वे जो कमाई और फिट की गुणवत्ता पर आधारित और विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत प्राथमिकताओं या वित्तीय आवश्यकताओं के अनुरूप हैं; और (ख) दुसरे वे जो पारिवारिक चिंताओं और घर के निकट कार्य में शामिल होने की आवश्यकता पर आधारित और हमारे ट्रेड-ऑफ़ मॉडल के अनुरूप हैं। उत्तरदाताओं को कई कारण बताने की अनुमति दी गई थी।

तालिका 2 में, हम प्रत्येक प्रतिक्रिया देने वाले उत्तरदाताओं का प्रतिशत प्रदर्शित करते हैं और छह प्रतिक्रियाओं को इन दो श्रेणियों में अलग करते हैं। उत्तरदाता ने अपनी नौकरी को प्राथमिकता देने का कारण यदि यह दिया कि (ए) वह घर के कार्य भी कर सकती है; (बी) नौकरी पास में उपलब्ध थी; या (सी) परिवार ने उसे नौकरी करने की अनुमति दे दी, तो ऐसे उत्तरदाता को हमने परिवार के काम की चिंताओं के कारण बताने के रूप में माना। और उत्तरदाता ने अपनी नौकरी को प्राथमिकता देने का कारण यदि यह दिया कि (ए) नौकरी की वजह से परिवार को वित्तीय रूप से सहायता मिली; (बी) इस नौकरी में अच्छा वेतन था; या (सी) वह नौकरी के लिए योग्य है; तो ऐसे उत्तरदाता को हमने वित्तीय या व्यक्तिगत कारण देने के रूप में माना।

तालिका 2. श्रम बाजार की प्राथमिकताओं के लिए महिलाओं द्वारा दिए गए कारण

पसंदीदा कार्य-समय के कारण

धनबाद(%)

इंदौर(%)

पटना(%)

वाराणसी(%)

दूरी या पारिवारिक काम की बाधाएं

इस नौकरी के साथ-साथ घर के कार्य भी कर सकते हैं

33

14

23

21

यह नौकरी घर के आस-पास उपलब्ध है

5

16

11

14

परिवार इस नौकरी के लिए समर्थन करता है और अनुमति देता है

6

7

10

14

वित्तीय आवश्यकता या व्यक्तिगत प्राथमिकताएं

पारिवारिक आय में आर्थिक रूप से योगदान कर सकते हैं

21

11

23

19

अच्छा वेतन मिलता है

11

9

6

2

इस नौकरी के लिए योग्य है

7

8

7

12

हमारे अध्ययन के सभी स्थलों पर, मुख्य कारण यह बताया गया कि उत्तरदाता घर के कार्य करने में भी सक्षम होगा। सामान्य तौर पर, हमारे मॉडल के अनुरूप चिंताओं का सेट रहा जिसमें व्यक्तिगत प्राथमिकताओं या वित्तीय जरूरतों की तुलना में पारिवारिक काम की बाध्यताओं को अधिकांश बार रिपोर्ट किया गया- और स्पष्ट रूप से हमारे चार अध्ययन स्थलों में से तीन में घर से निकटता को शीर्ष उत्तर के रूप में दिया गया।

प्राथमिकताओं को समझने के लिए एक सर्वेक्षण प्रयोग

श्रम बाजार में प्रवेश करने के लिए कई जटिल कारक संभावित रूप से प्राथमिकताओं को प्रभावित करते हैं। यहां, हम एक नए सर्वेक्षण प्रयोग के माध्यम से, श्रम बाजार में प्रवेश करने की इच्छा पर कई कारकों के सापेक्ष प्रभाव को समझने के लिए नौकरी के अनुबंध के प्रकार का सार-संक्षेप करते हैं। जहां सर्वेक्षण में उत्तरदाता द्वारा पहले उपयुक्त नौकरियों का सेट प्रदान किया गया था; यह समझने के लिए कि वे एक 'उपयुक्त नौकरी' करने के लिए एक महिला की इच्छा को कैसे प्रभावित करते हैं, हम तीन कारकों को प्रयोग में लाते हैं– परिवार की आय, पारिवारिक कर्तव्यों में दूसरों से सहायता, और संभावित काम के स्थान से दूरी।

सर्वेक्षण प्रयोग में, हमने उत्तरदाता को उसके मुहल्ले (पड़ोस) में की गई नौकरी की पेशकश के आधार मामले के प्रतिकूल एक साथ तीन संकेतों में हेरफेर किया। ऐसा करने के लिए, हमने सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं को यादृच्छिक रूप से शब्दचित्र के आठ संस्करण सौंपे (तालिका 3 देखें)। मूल मामले को संस्करण 1 में दर्शाया गया है, जिसमें हमने उत्तरदाता (एक कामकाजी उम्र की बेरोजगार महिला) से पूछा कि यदि उसके घर के आस-पास दी जाती है तो क्या वह उपयुक्त नौकरी करने को तैयार होगी। शब्दचित्र के हर दूसरे संस्करण में, हमने यह कहते हुए उत्तरदाता की एक उपयुक्त कार्य करने की इच्छा के बारे में पूछा: 1) पीडब्लूई को काम छोड़ना पड़ा; और/या 2) परिवार का कोई सदस्य मदद के लिए आया; और/या 3) घर से एक घंटे की दूरी पर नौकरी की पेशकश की जा रही है।

तालिका 3. सर्वेक्षण प्रयोग संरचना

संस्करण

प्राथमिक वेतन भोगी

मदद

नौकरी के अवसर के लिए प्रत्यक्ष निकटता

1

-

-

आस-पास में

2

-

-

एक घंटा दूर

3

-

कोई मदद के लिए आता है

आस-पास में

4

-

कोई मदद के लिए आता है

एक घंटा दूर

5

किसी कारण से काम छोड़ना पड़ता है

-

आस-पास में

6

किसी कारण से काम छोड़ना पड़ता है

-

एक घंटा दूर

7

किसी कारण से काम छोड़ना पड़ता है

कोई मदद के लिए आता है

आस-पास में

8

किसी कारण से काम छोड़ना पड़ता है

कोई मदद के लिए आता है

एक घंटा दूर

तालिका 4 में प्रतिगमन परिणाम श्रम बाजार में प्रवेश करने के लिए एक महिला की इच्छा पर प्रत्येक हेरफेर (आय, सहायता, दूरी) के सापेक्ष प्रभाव का वर्णन करता है। एक उपयुक्त काम करने की इच्छा पर काम करने हेतु की गई एक घंटे की यात्रा के प्रभाव का परिणाम अब तक का सबसे बड़ा प्रभाव है, और इस दूरी के कारण हमारे अध्ययन के चार स्थलों में श्रम-बल में प्रवेश करने की इच्छा में 12 से 23 प्रतिशत अंक की गिरावट आई है। कुछ हद तक आश्चर्यजनक रूप से, श्रम बाजार में प्रवेश करने के लिए घोषित प्राथमिकता में आय बहुत कम मायने रखती है। श्रम बाजार में प्रवेश करने की इच्छा में सहायता भी बहुत कम मायने रखती है, जो यह दर्शाती है कि महिलाओं द्वारा घर पर काम किया जाना, उनके द्वारा केवल घर में बिताया गया समय नहीं है बल्कि यह उनके प्रति अपेक्षाओं और उनके कर्तव्य के अनुरूप है।

तालिका 4. सर्वेक्षण प्रयोग प्रतिगमन के परिणाम

धनबाद

इंदौर

पटना

वाराणसी

अंतर

-0.233***

(0.018)

-0.146***

(0.02)

-0.163***

(0.02)

-0.123***

(0.02)

मदद

-0.031

(0.018)

0.003

(0.02)

0.022

(0.02)

-0.077***

(0.2)

आय

-0.047***

(0.018)

0.01

(0.02)

-0.024

(0.02)

-0.012

(0.02)

निरंतरता

0.478***

(0.018)

0.455***

(0.02)

0.49***

(0.02)

0.520***

(0.021)

एन

2,674

2,344

2,295

2,464

नोट: (i) इस धारणा को देखते हुए कि शून्य परिकल्पना सच है, पी-मान यानी कम से कम उतना ही चरम परिणाम प्राप्त करने की संभावना है जितना कि परिणाम देखे गए हैं। (ii) गुणांक की व्याख्या "उपयुक्त नौकरी" के लिए श्रम-बल में प्रवेश करने के इच्छुक लोगों में अनुपात परिवर्तन के रूप में की जानी चाहिए।

इस सर्वेक्षण प्रयोग के परिणाम, श्रम-बल परिणामों की संरचना में गतिशीलता और दूरी की भूमिका की दृढ़ता से पुष्टि करते हैं।

निष्कर्ष और नीतिगत निहितार्थ

पिछले अध्ययनों से पता चला है कि बढ़ती आय और मानव पूंजी ग्रामीण-शहरी परिवर्तनों के साथ कैसे एफएलएफपी में गिरावट का कारण बनती है (अफरीदी एवं अन्य 2018, नेफ एवं अन्य 2012)। लेकिन श्रम-बल में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली स्थानिक और आर्थिक संरचनाओं को ग्रामीण-शहरी परिवर्तन कैसे प्रभावित करते हैं, इसे स्पष्ट करने की दिशा में बहुत कम काम हुआ है।

जैसा कि हमारी चर्चा से पता चलता है, धन-संपत्ति को गणना में लिए जाने के बाद भी, शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में एफएलएफपी का उच्च स्तर दिखाई देता है। इस क्रम में सामाजिक बाध्यताओं के साथ, हम दिखाते हैं कि महिलाएं घर के आस-पास के अंशकालिक काम के लिए प्राथमिकताएं देती हैं- ऐसी स्थितियां जो कृषि श्रम बाजार की विशेषता हैं, लेकिन शहरी श्रम बाजार की नहीं। भारत में जैसे-जैसे शहरीकरण हो रहा है, उन मानदंडों को पूरा करने वाले श्रम बाजार के अवसर कम उपलब्ध हो रहे हैं, जिसके चलते महिलाओं को या तो श्रम बाजार छोड़ना पड़ रहा है या वे उसमें प्रवेश करने हेतु अनिच्छुक होती जा रही हैं।

हमारे सर्वेक्षण के परिणाम इन अंतर्ज्ञानों की पुष्टि करते हैं: महिलाओं को काम के स्थान पर जाने के लिए यदि कम से कम एक घंटे की यात्रा करनी पड़ती है, तो उनके उपयुक्त नौकरी लेने हेतु प्राथमिकता व्यक्त करने की संभावना 12 से 23 प्रतिशत अंक कम होती है। इन प्रभावों की अहमियत परिवार के प्राथमिक वेतन भोगी (पीडब्ल्यूई) के नौकरी खोने या पारिवारिक कर्तव्यों में परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा महिला की सहायता करने के प्रभाव से कहीं अधिक है। हमारे निष्कर्ष, गतिशीलता और आसानी से घर तक पहुंच को, आमतौर पर श्रम बाजार में प्रवेश पर सबसे बड़ा प्रभाव माने जाने वाले आर्थिक कारकों से भी अधिक महत्वपूर्ण एफएलएफपी के निर्धारकों के रूप में दर्शाते हैं।

हम इस बात पर जोर देते हैं कि, जबकि हमारा अध्ययन श्रम बाजार की मांग पर नहीं है, इन परिणामों से पता चलता है कि शहरी श्रम बाजार निकटता और सुविधाजनकता की विशेषताओं के साथ महिलाओं के लिए नौकरियों की अपर्याप्त संख्या प्रदान करता है, स्वाभाविक है कि अधिक से अधिक शहरीकरण घर में (अवैतनिक) काम की उम्मीदों के चलते कम एफएलएफपी की ओर ले जाएगा। हम काम के अनुबंध के प्रकार या नौकरी के स्थान की घर से निकटता के बारे में विस्तृत जानकारी के बिना भी, नियोक्ता की प्राथमिकताओं या क्षेत्रीय मांग से महिलाओं के लिए श्रम बाजार की मांग को कम करने के नुकसान को भी रेखांकित करते हैं।

नीति निर्माण के लिए हमारे अध्ययन के महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं। जबकि कोई आर्थिक संरचना में ऐसे परिवर्तनकारी परिवर्तनों की आशा कर सकता है जो महिलाओं के लिए मजदूरी को नाटकीय ढंग से बढाते हों, लेकिन यह भविष्य में भारत के सन्दर्भ में होता नजर नहीं आता है। नीति निर्माण हेतु एक विवेकपूर्ण दिशा का निर्धारण करना शहरी स्थानों में महिलाओं के यात्रा के समय को कम करने और उनके लिए सुरक्षित, कुशल और निकट परिवहन में निवेश करने के साथ-साथ ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देना है जो अधिक सुविधाजनक कार्य-समय की अनुमति देते हैं। निरपवाद रूप से, एफएलएफपी को बढ़ाने की प्रक्रिया का कार्य लंबा और कठिन होगा। इस प्रक्रिया के लिए, महिलाओं की गतिशीलता को अधिकतम करनेवाला शहरी डिजाइन एक प्रमुख घटक होगा।

इस श्रृंखला के अगले भाग में भारत में कामकाजी महिलाओं के कर्त्तव्य पर चर्चा की जाएगी।

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लेखक परिचय: दीपाबोली चटर्जी सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली (भारत) से संबद्ध एक शोधकर्ता हैं। नीलांजन सरकार सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फेलो हैं।

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