कोविड-19 महामारी और उससे जुड़े लॉकडाउन का तत्काल प्रतिकूल प्रभाव ऐसे प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों पर काफी अधिक देखा गया जिनकी अपने मूल गांवों में सरकारी योजनाओं तक पहुंचने की क्षमता अनिश्चित थी। जून-जुलाई 2020 में बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में किये गए एक सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए सरीन एवं अन्य यह पाते हैं कि प्रवासियों के परिवारों को भोजन में कटौती करने और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से पीड़ित होने की संभावना अधिक थी, भले ही उन्होंने गैर-प्रवासी परिवारों की तुलना में अधिक आय होने की जानकारी दी हो।
भारत में कोविड-19-प्रेरित लॉकडाउन पहली बार मार्च 2020 में लगाया गया था, और इसने सरकार द्वारा संचालित सामाजिक सुरक्षा की कई योजनाओं और कमजोर आबादी के संकट को कम करने में उनकी भूमिका की परीक्षा ली। लॉकडाउन का तात्कालिक प्रतिकूल प्रभाव ऐसे प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों पर काफी अधिक देखा गया जिनकी अपने मूल गांवों में सरकारी योजनाओं तक पहुंचने की क्षमता अनिश्चित थी।
हम जून-जुलाई 2020 (राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में ढील देने के पहले दो महीनों) में बिहार के 12 जिलों1 में 3,093 परिवारों के लिए आरसीआरसी (कोविड-19 के प्रति त्वरित ग्रामीण सामुदायिक अनुक्रिया)2 द्वारा एकत्रित आंकड़ों का उपयोग करते हैं, ताकि राज्य की कमजोर आबादी के अनुभव को समझा जा सके, तथा यह भी ज्ञात हो सके कि इस अभूतपूर्व प्रतिकूल समय में प्रमुख सरकारी योजनाओं का प्रदर्शन कैसा रहा है।
कुल मिलाकर, अध्ययन के नमूने में मुख्य रूप से वंचित परिवार हैं जिनमें से 75% परिवारों की वार्षिक आय 60,000 रुपये से कम है। लगभग 11% परिवार सामान्य जाति के, 60% अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), 23% अनुसूचित जाति (एससी) और 6% अनुसूचित जनजाति (एसटी) के हैं। नमूने में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व 12% है, जिनमें से 73% ओबीसी और 27% सामान्य जाति के हैं। अखिल भारतीय जनगणना (2011) में बिहार राज्य के औसत की तुलना में, हमारे नमूने में एससी, एसटी, और मुसलमानों की संख्या थोड़ी ज्यादा है। सर्वेक्षण में शामिल लगभग 39% परिवारों में प्रवासी श्रमिक हैं। -1.7 मिलियन (जनगणना, 2011) के शुद्ध प्रवासन (आने वाले प्रवासियों की संख्या में से जाने वाले प्रवासियों की संख्या को घटाते हुए) के साथ, बिहार दूसरे राज्यों में प्रवास करने वाले निवासियों के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर था।
सरकारी योजनाओं तक पहुंच
हम समीक्षा करते हैं कि सर्वेक्षण के दौरान, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)3, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), और प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई)4 जैसी प्रमुख सरकारी योजनाओं का विभिन्न आय समूहों से संबंधित परिवारों के प्रति प्रदर्शन कार्यनिष्पादन कैसा रहा है।
तालिका 1. आय वर्ग के अनुसार, परिवारों की खाद्य सुरक्षा तथा सरकारी योजनाओं तक पहुंच
परिवार की वार्षिक आय (रु. में) |
खाद्य वस्तुओं में कटौती करने वाले परिवार |
तीन या अधिक बार मुफ्त राशन प्राप्त किया |
परिवार के सदस्य जिन्होंने मनरेगा के तहत कार्य किया |
जनधन खाताधारक महिलाओं वाले परिवार |
सभी तीन जनधन हस्तांतरण प्राप्त हुए (जनधन खाताधारकों में से ) |
नमूने का आकार |
30,000 से कम |
58% |
46% |
11% |
65% |
56% |
1,093 |
30,000 से 60,000 |
50% |
55% |
12% |
75% |
50% |
1,277 |
60,000 से अधिक |
47% |
54% |
2% |
64% |
57% |
723 |
कुल |
52% |
51% |
9% |
69% |
54% |
3,093 |
मनरेगा, जो कोविड-19 संकट के प्रति केंद्र सरकार की अनुक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, को लॉकडाउन लागू होने के बाद से चेतावनीपूर्ण आशा के साथ देखा गया है। सर्वेक्षण महीनों के दौरान योजना का दायरा इसकी शुरुआत के बाद से सबसे अधिक रहा है (शर्मा 2020)। आधिकारिक मनरेगा आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल और अगस्त 2020 के बीच बिहार में जारी किए गए जॉब कार्डों की संख्या में 1.1 मिलियन की वृद्धि हुई है(एमएन और रे 2020)। निराशाजनक रूप से, देरी से भुगतान, पर्याप्त कार्य को मंजूरी नहीं दिया जाना, और राज्य न्यूनतम मजदूरी (अग्रवाल और पिकरा 2020) की तुलना में कम मजदूरी होना जैसे मुद्दे अप्रैल 2020 के बाद से लगातार बने हुए हैं और उठाए गए हैं (कुमार 2020)। इस बात से शायद यह परिलक्षित होता है कि हमारे नमूने में केवल 9% परिवार ही ऐसे थे जिनके सदस्य मनरेगा के तहत काम कर रहे थे। मनरेगा के तहत गरीब परिवारों के काम करने की अधिक संभावना थी (उच्चतम आय समूह में 2% की तुलना में न्यूनतम आय समूह में 11%,), जो ग्रामीण संकट और सामाजिक सुरक्षा के लिए योजना की संभावित उपयोगिता का संकेत देता है।
पर्याप्त भोजन तक पहुंच के बारे में परेशान करने वाली एक स्थिति तब आई जब 52% परिवारों ने भोजन में कटौती की सूचना दी। यह परिवार के वार्षिक आय स्तरों के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ था: कम आय वाले परिवारों द्वारा भोजन में कटौती की सूचना दिए जाने की अधिक संभावना थी (तालिका 1)।
यदि पीडीएस के बारे में बात की जाए, जिसे लॉकडाउन के बाद "सक्षम लोगों के लिए भी” एक सुरक्षा कवच के रूप में देखा गया है, हमारे नमूने के 51% परिवारों ने अप्रैल 2020 से तीन बार से अधिक मुफ्त राशन प्राप्त करने की सूचना दी है। हालांकि, सबसे कम आय वर्ग में 46% की तुलना में थोड़े सक्षम परिवारों (प्रति वर्ष 30,000 रुपये से ऊपर की कमाई) के लिए इसकी पहुंच बेहतर (~5%) थी।
जन धन खातों में, तीन बार 500 रुपये का हस्तांतरण, महामारी के समय सबसे अधिक देखी गई नीतिगत अनुक्रिया है। सोमांची (2020) का अनुमान है कि राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 46% ग्रामीण परिवार नकदी हस्तांतरण से बाहर हैं। हमारे नमूने में, 69% परिवारों में एक महिला जन धन खाताधारक थी और उनमें से 54% ने तीनों हस्तांतरण प्राप्त करने की सूचना दी। जबकि सालाना 30,000 से 60,000 रुपए आय वर्ग के परिवारों के पास एक खाता होने की सर्वाधिक संभावना है (ऐसे परिवारों का 75%), इन परिवारों में भी सभी तीन हस्तांतरण प्राप्त होने की कम से कम संभावना (50%) थी।
'प्रवासियों के परिवारों' की स्थिति
गैर-प्रवासी परिवारों की तुलना में प्रवासियों वाले परिवारों (ये हमारे नमूने का 39% है और इसके बाद इन्हें ‘प्रवासियों के परिवारों के रूप में कहा जाएगा) के बीच खाद्य सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य, और योजनाओं तक पहुंच की स्थिति क्या है?
तालिका 2. अध्ययन के नमूने में प्रवासियों के परिवारों की आय प्रोफ़ाइल
परिवार की वार्षिक आय (रुपए में ) |
प्रवासियों का (के) परिवार |
गैर-प्रवासी परिवार |
30,000 से कम |
33% |
67% |
30,000 से 60,000 |
35% |
65% |
60,000 से अधिक |
57% |
43% |
कुल |
39% |
61% |
हमारे नमूने की जानकारी में प्रवासन 'मजबूरी-आधारित' अधिक है और यह 'ग्राहक-आधारित' या आकांक्षा के बजाय वित्तीय कठिनाई और घर के आस-पास कमाई के अवसरों की कमी के कारण (इन कारणों से प्रवासियों के 67% परिवारों ने प्रवासन की सूचना दी) है। यहां तक कि उच्च आय वाले प्रवासियों के परिवारों द्वारा खाद्य-पदार्थों में कटौती की अधिक संभावना थी (तालिका 2): 59% ऐसे परिवारों ने भोजन में कटौती की, जो गैर-प्रवासी परिवारों से 12 प्रतिशत अधिक अंक है (तालिका 3)। प्रवासियों के परिवारों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के रूप में नींद न आने (39%), निराश/चिंतित(83%) और चिड़चिड़ापन/गुस्सा (43%) का सामना करने की भी अधिक संभावना थी (तालिका 4)।
तिरपन प्रतिशत प्रवासियों के परिवारों ने लॉकडाउन की शुरुआत के बाद कम से कम तीन बार पीडीएस राशन प्राप्त किया, और 10% ने मनरेगा के तहत काम किया। ये आंकड़े गैर-प्रवासियों के लिए समान थे। हालांकि, प्रवासियों के परिवारों में एक महिला जन धन खाताधारक का उच्च प्रतिशत (गैर-प्रवासी परिवारों के लिए 64% की तुलना में 75%) था और साथ ही 500 रुपए के सभी तीन हस्तांतरण प्राप्त करने वाले खाताधारकों का भी उच्च प्रतिशत होने था।
जब हम नमूने को सबसे गरीब घरों तक सीमित करते हैं, तो पीडीएस राशन और पीएमजेडीवाई के संदर्भ में प्रवासियों के परिवारों और गैर-प्रवासी परिवारों के रुझान काफी हद तक समान हैं। हालांकि, इस समूह के प्रवासियों के परिवारों में गैर-प्रवासी परिवारों (8%) के सापेक्ष मनरेगा (17%) के तहत काम करने की अधिक संभावना थी।
तालिका 3. प्रवासियों के परिवारों और गैर-प्रवासी परिवारों के लिए सरकारी योजनाओं तक पहुंच
खाद्य वस्तुओं में कटौती करने वाले परिवार |
तीन या अधिक बार मुफ्त राशन प्राप्त किया |
परिवार के सदस्य जिन्होंने मनरेगा के तहत कार्य किया |
जनधन खाताधारक महिलाओं वाले परिवार |
सभी तीन जनधन हस्तांतरण प्राप्त हुए (जनधन खाताधारकों में से ) |
नमूने का आकार |
|
प्रवासी (सियों) के परिवार |
59% |
53% |
10% |
75% |
57% |
1,221 |
गैर-प्रवासी परिवार |
47% |
50% |
9% |
64% |
51% |
1,872 |
तालिका 4. प्रवासियों के परिवारों और गैर-प्रवासी परिवारों का मानसिक स्वास्थ्य
नींद न आने की सूचना देने वाले परिवार |
निराश/चिंता की सूचना देने वाले परिवार |
चिड़चिड़ापनर/गुस्स की सूचना देने वाले परिवार |
नमूने का आकार |
|
प्रवासी (सियों) के परिवार |
39% |
83% |
43% |
1,221 |
गैर-प्रवासी परिवार |
26% |
75% |
35% |
1,872 |
हमारे नमूने में, सर्वेक्षण के समय 79% प्रवासियों के परिवारों के एक या एक से अधिक सदस्य वापस आ चुके थे। कुल मिलाकर, इन परिवारों में से 56% परिवार किसी भी आर्थिक गतिविधि में शामिल नहीं थे, 22% अनौपचारिक श्रमिक के रूप में काम कर रहे थे, और 18% अपने स्वयं के खेत/पशुधन पर काम कर रहे थे। जो लोग थोड़ा सक्षम थे, उनके काम से बाहर रहने की संभावना अधिक थी: उच्चतम आय वर्ग में 79% लोगों ने काम नहीं किया (आकृति 1)।
आकृति 1. गांवों में लौटने के बाद प्रवासियों के परिवारों की रोजगार स्थिति
‘आकांक्षी जिलों’ की स्थिति कैसी थी?
आकांक्षी जिलों’5 में रहने वालों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए, हम पूछते हैं कि उन्होंने खाद्य सुरक्षा और योजनाओं/कार्यक्रमों की पहुंच के मामले में दूसरों की तुलना में कैसा प्रदर्शन किया है? क्या कुछ जिले ऐसे हैं जो दूसरों की तुलना में बेहतर करते हैं, शायद बेहतर प्रशासन को दर्शाते हैं?
हम पाते हैं कि आकांक्षी जिलों (अररिया, कटिहार, मुजफ्फरपुर, और नवादा) में रहने वाले परिवार गैर-आकांक्षी जिलों में रहने वाले परिवारों की तुलना में बहुत अधिक असुरक्षित थे। आकांक्षी जिलों में रहने वाले परिवारों में से, 56% ने भोजन में कटौती की सूचना दी, जबकि गैर-आकांक्षी जिलों में ऐसे परिवार 45% थे। हालांकि, पीडीएस, मनरेगा और जन धन खाता धारकों एवं हस्तांतरण के लिए आकांक्षी जिलों में सरकारी कार्यक्रमों की पहुंच काफी बेहतर थी (तालिका 5)। ये रुझान तब भी बने रहते हैं जब हम आकांक्षी और गैर-आकांक्षी जिलों के सबसे गरीब घरों की तुलना करते हैं।
तालिका 5. आकांक्षी और गैर-आकांक्षी जिलों में खाद्य सुरक्षा और सरकारी योजनाएं
खाद्य वस्तुओं में कटौती करने वाले परिवार |
तीन या अधिक बार मुफ्त राशन प्राप्त किया |
परिवार के सदस्य जिन्होंने मनरेगा के तहत कार्य किया |
जनधन खाताधारक महिलाओं वाले परिवार |
सभी तीन जनधन हस्तांतरण प्राप्त हुए (जनधन खाताधारकों में से ) |
नमूने का आकार |
|
परिवार आकांक्षी जिले |
62% |
71% |
15% |
80% |
69% |
1,267 |
परिवार |
45% |
38% |
5% |
61% |
39% |
1,826 |
यदि आकांक्षी जिलों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो, ऐसा नहीं है कि एक जिला बाकी की तुलना में अलग-अलग सरकारी योजनाओं में बेहतर प्रदर्शन करता है (तालिका 6)। उदाहरण के लिए, नवादा में लगभग 90% परिवारों ने तीन या अधिक बार मुफ्त राशन प्राप्त करने की सूचना दी, लेकिन केवल 6% परिवारों ने मनरेगा के तहत काम किया था। मुजफ्फरपुर, जिसमें मनरेगा के तहत काम करने वाले 16% परिवार थे, जन धन खातों की बहुत कम पहुंच (66%) थी और अन्य जिलों के सापेक्ष बहुत कम हस्तांतरण (56% खाताधारक) की सूचना दी गई। जब हम आकांक्षी और गैर-आकांक्षी जिलों में रहने वाले सबसे गरीब परिवारों की तुलना करते हैं, तब भी हम योजनाओं के उपयोग में समान असमानता देखते हैं।
तालिका 6. क्या आकांक्षी जिलों के भीतर असुरक्षा और पहुंच भिन्न है?
जिले |
खाद्य वस्तुओं में कटौती करने वाले परिवार |
तीन या अधिक बार मुफ्त राशन प्राप्त किया |
परिवार के सदस्य जिन्होंने मनरेगा के तहत कार्य किया |
जनधन खाताधारक महिलाओं वाले परिवार |
सभी तीन जनधन हस्तांतरण प्राप्त हुए (जनधन खाताधारकों में से ) |
नमूने का आकार |
अररिया |
76% |
50% |
29% |
98% |
95% |
241 |
कटिहार |
49% |
87% |
7% |
95% |
64% |
237 |
मुजफ्फरपुर |
64% |
68% |
16% |
66% |
56% |
631 |
नवादा |
89% |
89% |
6% |
84% |
74% |
158 |
आकांक्षी जिलों में सरकारी कार्यक्रमों की समग्र बेहतर पहुंच से पता चलता है कि इन जिलों ने वास्तव में अधिक नीतिगत ध्यान दिया गया है, जैसा कि हम उम्मीद कर सकते हैं। सरकारी सहायता तक बेहतर पहुंच के बावजूद, इन जिलों के निवासियों द्वारा भोजन की कमी की सूचना दिए जाने की अधिक संभावना थी जो यह बताता है कि इन भौगोलिक क्षेत्रों की विशेषताओं संबंधी कमजोरियों को दूर करने के लिए यह अनुक्रिया पर्याप्त नहीं थी। यह ऐसे क्षेत्रों के लिए निरंतर, दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता को इंगित करता है ताकि संकटों के समय इनका अधिक सुदृढ़ बना रहना सुनिश्चित हो सके।
लेखक आलेख के पहले प्रारूप पर उपयोगी टिप्पणियों के लिए वेद आर्य को, बिहार में आंकड़ा-संग्रह प्रक्रिया में भाग लेने वाले संगठनों, आंकड़े एकत्र करने वाले प्रगणकों और इस विश्लेषण के लिए सर्वेक्षण आंकड़ों को साझा करने के लिए आरसीआरसीटीम को धन्यवाद देना चाहते हैं।
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टिप्पणियाँ:
- सर्वेक्षण किए गए 12 जिलों में अररिया, पूर्वी चंपारण, कैमूर, कटिहार, किशनगंज, मुजफ्फरपुर, नवादा, पटना, समस्तीपुर, सारन, सीवान और पश्चिम चंपारण थे।
- आरसीआरसी 50 से अधिक समुदाय-आधारित संगठनों का एक समूह है जो ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से प्रवासियों की सहायता करने के प्रयासों के समन्वय के लिए एक साथ आए हैं। नेटवर्क के माध्यम से, आरसीआरसी ने जून-जुलाई 2020 में 12 भारतीय राज्यों में सर्वेक्षण किया है। संगठनों को यादृच्छिक ढंग से नमूने घरों को चुनने पर मार्गदर्शन प्रदान किया गया था। हालांकि, स्थिति को देखते हुए, यह संभावना नहीं है कि सभी संगठन वास्तव में यादृच्छिक नमूने का सर्वेक्षण करने में सक्षम थे। इसके अलावा, संकट की स्थिति में, यह संभावना है कि संगठन ऐसे अधिक परिवारों का सर्वेक्षण करने में सक्षम हों जिनके साथ पूर्व में वे किसी प्रकार से जुड़े रहे हों। इसका अभिप्राय है कि नमूना राज्य की कमजोर आबादी का सांख्यिकीय रूप से प्रतिनिधित्व न कर सके, और निष्कर्षों को सर्वेक्षण किए गए परिवारों के अनुभवों को दर्शाते हुए देखा जा सकता है।
- मनरेगा एक ग्रामीण परिवार को एक वर्ष में 100 दिनों के मजदूरी-रोजगार की गारंटी देता है, जिसके वयस्क सदस्य निर्धारित न्यूनतम मजदूरी पर अकुशल मैनुअल काम करने को तैयार हैं।
- पीएमजेडीवाई भारत सरकार का एक वित्तीय समावेशन कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य भारतीय नागरिकों के बीच बैंक खातों, प्रेषण, ऋण, बीमा और पेंशन जैसी वित्तीय सेवाओं तक पहुंच का विस्तार करना है।
- आकांक्षी जिले वे जिले हैं "जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम प्रगति दिखाई है और इस प्रकार उन पर ध्यान केंद्रित करने वाली नीति की आवश्यकता है" (नीति आयोग, 2018)।
लेखक परिचय: अंकुर सरीन आईआईएम अहमदाबाद के पब्लिक सिस्टम समूह एवं रवि जे. मथाई सेंटर फॉर इनोवेशन इन एजुकेशन में सहायक प्रोफेसर हैं। अद्वैता राजेंद्र आईआईएम अहमदाबाद के पब्लिक सिस्टम समूह में पीएचडी की छात्रा हैं। करण सिंघल आईआईएम अहमदाबाद में एक शोधकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं।
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