सामाजिक पहचान

क्या ‘वादे’ कारगर होते हैं? 'अपनी बेटी अपना धन' कार्यक्रम के दीर्घकालिक लाभों का आकलन

  • Blog Post Date 23 नवंबर, 2021
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Shreya Biswas

BITS Pilani, Hyderabad Campus

shreya@hyderabad.bits-pilani.ac.in

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Upasak Das

University of Manchester

upasak.das@manchester.ac.uk

1994-1998 के दौरान, हरियाणा की राज्य सरकार ने बाल विवाह की समस्या के समाधान हेतु एक सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रम चलाया; जिसके तहत, समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के माता-पिता को, यदि उनकी बेटी 18 वर्ष की आयु तक अविवाहित रहती है, उनकी बेटी के जन्म के समय ही एकमुश्त नकद हस्तांतरण का वादा किया गया। यह लेख दर्शाता है कि इस कार्यक्रम से लड़कियों द्वारा शिक्षा की प्राप्ति में सुधार आया और बाल विवाह में कमी आई, परन्तु लिंग-संबंधी मानदंडों में परिवर्तन नहीं हुआ।

सशर्त नकद हस्तांतरण (सीसीटी) कार्यक्रम उन लाभार्थियों को नकद प्रोत्साहन प्रदान करते हैं जो कुछ शर्तों को पूरा करते हैं, यह कार्यक्रम मानव पूंजी में सुधार और गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने हेतु व्यापक रूप से अपनाये गए एक हस्तक्षेप के रूप में उभरा है। ऐसे कार्यक्रमों की प्रमुख विशेषताओं में से एक, भुगतान की निरंतर आवृत्ति का प्रावधान है, जो कई मामलों में वार्षिक होता है। इस सन्दर्भ में किये गए अध्ययनों से यह चिंता भी सामने आई है कि विशेष रूप से कमजोर संस्थानों वाले देशों में इसके अनुपालन से जुड़ी लागतें अक्सर बोझिल हो सकती हैं, और ये अक्सर उनकी प्रभावशीलता को सीमित करती है (ब्राउ और होडिनॉट 2011)। इसके विपरीत, सीमित शर्तों के अधीन एक निश्चित अवधि के अंत में किये जाने वाले एकमुश्त भुगतान पर निर्भर कार्यक्रम इसके प्राप्तकर्ताओं के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ पैदा करने में प्रभावी हो सकते हैं। हाल के एक अध्ययन में, हम 1994 से 1998 (बिस्वास और दास 2021) के बीच हरियाणा राज्य में लागू किये गए इस तरह के दीर्घकालीन नकद लाभों से जुड़े एक कार्यक्रम ‘अपनी बेटी अपना धन (एबीएडी) कार्यक्रम’ का मूल्यांकन करते हैं।

अपनी बेटी अपना धन कार्यक्रम

इस कार्यक्रम के तहत, बेटियों को जन्म देने वाले माता-पिता, 500 रुपये के तत्काल वित्तीय अनुदान के साथ लंबी अवधि का एक बचत बांड (25,000 रुपये के परिपक्वता मूल्य वाला) प्राप्त करने के हकदार थे; और यह बांड उनकी बेटियों के 18 साल की होने तक अविवाहित रहने की स्थिति में ही भुनाया जा सकता था। इसके लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित परिवार, और जिनके पास गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के कार्ड थे, वे इसके लाभार्थी होने के पात्र थे। हम कार्यक्रम के दीर्घकालिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव का आकलन करते हैं, जिसमें बाल विवाह की संभावना, शिक्षा की प्राप्ति, और संभावित लाभार्थियों की श्रम-शक्ति में भागीदारी के साथ ही उनके समय-आवंटन पैटर्न, विवाह के समय आयु, विवाह के बाद के सशक्तिकरण संकेतक, गर्भावस्था से संबंधित संकेतक (उदाहरण के लिए, संस्थानों में प्रसव की संभावना, प्रसव-पूर्व जांच), और अंतर-पीढ़ी के स्वास्थ्य संकेतक शामिल हैं। हम यह भी पता लगाते हैं कि लाभार्थियों के माता-पिता ने इस तरह के कार्यक्रमों का इस्तेमाल अपनी बेटियों के लिए पक्का घर या अधिक जमीन के स्वामित्व वाली उच्च सामाजिक स्थिति के दूल्हे सुनिश्चित करने के लिए शादी के बाजार में कैसे किया।

अध्ययन

हम कार्यक्रम के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए कई राष्ट्रीय और राज्य-प्रतिनिधि डेटासेट का उपयोग करते हैं। हमारा मुख्य डेटा स्रोत 2015-16 के दौरान किया गया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) है। हम श्रम बाजार और एबीएडी के समय-आवंटन प्रभाव को मापने के लिए 2019 में आयोजित समय-उपयोग सर्वेक्षण (टीयूएस)1 के साथ-साथ 2017-18 और 2018-19 में आयोजित आवधिक श्रम-बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के दो दौर के डेटा का भी उपयोग करते हैं।

एबीएडी कार्यक्रम 1994 से 1998 तक चलाया गया था, अतः 2015 में किये गए सर्वेक्षण में शामिल 16-21 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं तथा 2016 में किये गए सर्वेक्षण में शामिल 17-22 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को पात्र आयु (संभावित लाभार्थी)2 की महिलाओं के रूप में माना गया। हमने गैर-लाभार्थी समूह को तुलना समूह के रूप में रखा, जिसमें हरियाणा और पड़ोसी राज्य पंजाब3 से अधिक आयु वर्ग की महिलाओं का समूह4, हरियाणा और पंजाब के समान और अधिक आयु वर्ग के पुरुष और पंजाब की समान आयु वर्ग की महिलाएं शामिल थीं।

कार्यक्रम के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए, हम एक ट्रिपल अंतर पद्धति का उपयोग करते हैं। यहां, हम सबसे पहले हरियाणा राज्य की आयु के अनुसार योग्य लड़कियों की तुलना उन लड़कियों से करते हैं जो बड़ी हैं (पहला अंतर)। फिर हम इस अंतर की तुलना हरियाणा में लड़कों के बीच समान अंतर (दूसरा अंतर) से करते हैं। लड़कों और लड़कियों की यह तुलना बड़ी और छोटी लड़कियों के बीच किसी भी अंतर का कारण है जो समय के प्रभाव के कारण उत्पन्न हो सकती है। फिर दूसरे अंतर की तुलना पंजाब (ट्रिपल अंतर) राज्य के सन्दर्भ में उसी दूसरे अंतर से की जाती है। यह ट्रिपल अंतर अनुमान अन्य परस्पर कारकों के आंकलन के बाद, हरियाणा के संभावित लाभार्थियों पर इस कार्यक्रम के प्रभाव को दर्शाता है जिसे समयोपरि सुधारों के साथ एवं एबीएडी के अलावा परिणाम संकेतक5,6 को प्रभावित कर सकने वाले अन्य हस्तक्षेपों से जोड़ा जा सकता है।

निष्कर्ष

हमारा विश्लेषण एबीएडी लाभार्थियों की शिक्षा में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत देता है। जिन लाभार्थियों का विवाह हुआ था, उनके माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्कूली शिक्षा पूरी करने की संभावना क्रमशः 7.6 और 6 प्रतिशत अधिक थी। फिर भी, हम उनकी श्रम-शक्ति भागीदारी में कोई सुधार नहीं पाते हैं। इसे कई कारकों से समझा सकते हैं। सबसे पहले, शिक्षा के लिए श्रम बाजार का रिटर्न गैर-रैखिक और बढ़ती हो सकती है, जिसका यह अर्थ है कि व्यक्ति केवल उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही श्रम बाजार के अवसरों का लाभ उठा सकते हैं। यदि उच्च शिक्षा प्राप्ति पर एबीएडी का कोई अतिरिक्त प्रभाव नहीं होता, तो श्रम बाजार के लाभ दुर्ग्राह्य रह जाते। हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि भले ही स्कूल के पूरा होने की संभावना बढ़ गई हो, लेकिन उच्च शिक्षा पर कोई और प्रभाव नहीं पड़ा था।

दूसरा, हरियाणा में पारंपरिक रूप से प्रचलित कठिन लैंगिक मानदंडों के कारण, वहां महिलाओं के शैक्षिक स्तर में वृद्धि के बावजूद महिला श्रम आपूर्ति अप्रभावित रही क्योंकि शायद महिलाओं को काम करने के लिए बाहर जाने की अनुमति नहीं दी गई | यदि ऐसा होता, तो शिक्षा में सुधार के बावजूद, लाभार्थियों के दैनिक जीवन में समय आवंटन भी काफी हद तक अप्रभावित रहता। वास्तव में, हमारे परिणाम घरेलू काम के लिए आवंटित समय, अवैतनिक देखभाल, सामाजिकता, स्व-देखभाल पर ध्यान देने अथवा ख़ाली समय बिताने7 के संदर्भ में, कार्यक्रम के लाभार्थियों और गैर-लाभार्थियों के बीच कोई अंतर नहीं दर्शाते हैं। इसलिए, हमारा तर्क है कि हस्तक्षेप के बावजूद, लैंगिक मानदंड और दृष्टिकोण अपरिवर्तित रहे हैं। यह हरियाणा के संदर्भ में भी सहज रूप में समझा जा सकता है, क्योंकि वहां ये मानदंड अत्यधिक निहित हैं।

चित्र 1. चयनित परिणामों पर एबीएडी का प्रभाव

नोट: यह आंकड़ा दर्शाता है कि हरियाणा और पंजाब की गैर-लाभार्थी महिलाओं की तुलना में, विवाहित एबीएडी लाभार्थियों के एक निश्चित स्तर की शिक्षा पूरी करने, एक निश्चित उम्र में शादी करने, पक्के मकान जैसी संपत्ति या एक सीमा से अधिक जमीन धारण कर रहे एक वैवाहिक परिवार से संबंधित होने की कितनी अधिक संभावना है।.

चित्र में आये अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अनुवाद:

Completed secondary: माध्यमिक शिक्षा पूर्ण की

Completed higher secondary: उच्च माध्यमिक शिक्षा पूर्ण की

Child marriage: बाल विवाह

Marriage at 18/19 years: 18/19 की आयु में विवाह

Cemented house: पक्का घर

Land >0.05 hectare: भूमि 0.05 हेक्टेयर से अधिक

इसके बाद, हम लाभार्थियों के बीच शादी की उम्र और शादी के बाद के संकेतकों पर कार्यक्रम के प्रभाव का आकलन करते हैं। हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि 18 साल की उम्र से पहले शादी करने की संभावना में 5.1 प्रतिशत की कमी आई है। यह सीधे हस्तक्षेप के कारण हो सकता है क्योंकि कार्यक्रम में नकद प्रोत्साहन का भुगतान 18 वर्ष की आयु तक अविवाहित रहने वाली लड़कियों से संबद्ध था। लेकिन लाभार्थी को पैसा मिलने के बाद क्या हुआ? हमने पाया कि लड़कियों की 18-19 साल की उम्र में शादी करवाने की संभावना में लगभग 8.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसका अर्थ है कि एबीएडी कार्यक्रम ने लैंगिक मानदंडों में पर्याप्त सुधार नहीं किया। यह इस तथ्य से और अधिक उजागर होता है कि हम विवाह के बाद के सशक्तिकरण संकेतकों8; प्रसव-पूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल, संस्थानों में प्रसव, स्तनपान की अवधि; और बच्चों का कम वजन, कमजोर या अविकसित होना जैसे अंतर-पीढ़ीगत परिणामों में कोई बदलाव नहीं पाते हैं।

अन्य वैवाहिक लाभ (रिटर्न)

एबीएडी के कार्यान्वयन से, यदि विवाह के पश्चात उनकी सापेक्ष सौदेबाजी या श्रम-बल भागीदारी में कोई बदलाव नहीं होने के साथ यदि लाभार्थियों की शैक्षिक प्राप्ति में कोई सुधार हुआ है, तो अपनी बेटी की शिक्षा में निवेश करने हेतु माता-पिता को किस तरह का प्रोत्साहन मिला होगा? 18-19 वर्ष की उम्र में विवाह किये जाने में वृद्धि के बारे में हमारे निष्कर्ष दास और नंदा (2016) के साथ मेल खाते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि एबीएडी रसीदों का उपयोग विवाह के बाजार में दहेज के रूप में किया जा रहा था। हरियाणा जैसे संदर्भों में, जहां कम उम्र में शादी करवाने और दहेज की प्रथा प्रचलित थी, यह संभव है कि माता-पिता ने अपनी बेटियों के लिए अच्छे गुणों से संपन्न दूल्हे सुनिश्चित करने और देरी से विवाह की लागत की भरपाई के लिए बेटियों की बेहतर शिक्षा के साथ-साथ दहेज का उपयोग किया होगा।

यहां, हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि एबीएडी लाभार्थियों की शादी ऐसे परिवारों में होने की अधिक संभावना थी जिनके पास पक्के घर और 0.05 हेक्टेयर से अधिक भूमि थी, जिन्हें अक्सर एक समुदाय के भीतर सामाजिक स्थिति का संकेतक माना जाता गया। इसके अलावा, हम देखते हैं कि एबीएडी लाभार्थी जिन्होंने माध्यमिक शिक्षा पूरी कर ली थी, उनके ऐसे परिवारों में विवाह करने की अधिक संभावना थी। इन छोटे छोटे प्रमाणों के जरिये हम यह तर्क कर सकते हैं कि माता-पिता ने अपनी बेटियों की शादी अच्छे गुणों से संपन्न दूल्हे से कराके अपनी सामाजिक स्थिति को बढ़ाने के लिए एबीएडी हस्तांतरण का उपयोग किया और अपनी बेटी की शिक्षा में सुधार किया।

समापन टिप्पणी

कुल मिलाकर, हमें इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि वित्तीय लाभों के 'वादे' पर आधारित एबीएडी जैसा सशर्त नकद हस्तांतरण (सीसीटी) कार्यक्रम, बाल विवाह के प्रसार को कम करने के साथ-साथ लाभार्थियों के शैक्षिक प्राप्ति के वर्षों को बढ़ाने में सफल रहा। हालांकि, यह कार्यक्रम लैंगिक मानदंडों को बदलने में विफल रहा, और इसका संकेत नकद हस्तांतरण प्राप्त करने के तुरंत बाद विवाह की संभावना में वृद्धि के साथ-साथ ही महिलाओं की श्रम-बल में भागीदारी या महिला सशक्तिकरण के अन्य संकेतकों में कोई सुधार नहीं होने से मिलता है। वास्तव में, हम पाते हैं कि कार्यक्रम के अंतर्गत नकद हस्तांतरण का और संबंधित शैक्षिक लाभ का उपयोग उच्च सामाजिक स्थिति वाले दूल्हे को सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा था। हमारे परिणाम पूरक हस्तक्षेपों की और साथ ही सशर्त नकद हस्तांतरण (सीसीटी) कार्यक्रम की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं जो सामाजिक मानदंडों और महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को बदल सकते हैं, और इनसे इष्टतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

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टिप्पणियाँ:

  1. टीयूएस उस समय-अवधि के बारे में जानकारी प्रदान करता है जिसके लिए सर्वेक्षण से एक दिन पहले नमूना आबादी द्वारा विभिन्न गतिविधियां की जाती हैं।
  2. इसके बाद, लाभार्थियों के रूप में संदर्भित।
  3. 1966 के पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत हरियाणा को पंजाब राज्य से अलग किया गया था, जो इन दोनों राज्यों के निवासियों द्वारा साझा किए गए समान ऐतिहासिक अनुभवों को दर्शाता है। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, हरियाणा और पंजाब दोनों की संयुक्त राजधानी है, और दोनों राज्यों में तुलनीय लिंग-अनुपात, साक्षरता दर और फसल पैटर्न हैं, जो इसे एक प्रासंगिक तुलना समूह बनाते हैं।
  4. वर्ष 2015 और 2016 में क्रमश: 22-27 वर्ष और 23-28 वर्ष के आयु वर्ग का सर्वेक्षण किया गया।
  5. इसी तरह की नीति का उपयोग करते हुए, हम पीएलएफएस और टीयूएस में सर्वेक्षण किए गए लोगों में से आयु-योग्य व्यक्तियों और तुलना समूह को अलग करते हैं। हमारे नमूने में एससी और ओबीसी परिवारों से संबंधित व्यक्ति शामिल हैं।
  6. बीपीएल कार्ड के स्वामित्व तथा धन और प्रति-व्यक्ति उपभोग व्यय प्रतिशत के आधार पर गरीब परिवारों को शामिल करने के ठोस परिणाम हमारे अध्ययन से दिखते हैं।
  7. अविवाहित और विवाहित महिलाओं के लिए अलग-अलग समय-उपयोग आवंटन परिवर्तन सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन रहा।
  8. संकेतकों में, महिलाओं की अपने स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने की क्षमता, उनके द्वारा बड़ी घरेलू खरीदारी, परिवार से मिलने जाना, और पत्नी के प्रति पति का सामान्य रवैया जैसे कि ठिकाना पूछना, विश्वासघाती होने का आरोप लगाना और उनकी पारिवारिक यात्राओं को सीमित करना शामिल हैं।

लेखक परिचय: श्रेया बिस्वास, अर्थशास्त्र और वित्त विभाग, बिट्स पिलानी, हैदराबाद कैंपस में सहायक प्रोफेसर हैं। उपासक दास यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के ग्लोबल डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट में इकोनॉमिक्स ऑफ पॉवर्टी रिडक्शन के प्रेसिडेंशियल फेलो हैं।

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