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डिजिटल सपना: भारत को भविष्य के लिए कौशल-निपुण बनाना

  • Blog Post Date 16 जून, 2022
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कोविड-19 महामारी ने हमारे जीवन में आम होती जा रही प्रौद्योगिकी की गति को तेज कर दिया है, इसने एक बड़े डिजिटल विभाजन को भी उजागर किया है, जिससे भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस प्रतिमान बदलाव से बाहर हो गया है। वर्ष 2017-18 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए, मुमताज और मोथकूर देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में डिजिटल साक्षरता में भिन्नता को उजागर करते हैं,और इस संदर्भ में किये गए सरकारी प्रयासों पर चर्चा करते हैं।

कोविड-19 महामारी ने हमारे जीवन में आम होती जा रही प्रौद्योगिकी की गति को तेज कर दिया है। कार्यस्थल तेजी से डिजिटल रूप से सक्षम व्यावसायिक समाधानों की ओर बढ़ रहे हैं, शिक्षा और चिकित्सा परामर्श ऑनलाइन हो रहे हैं, और संपर्क-रहित डिजिटल लेनदेन को प्राथमिकता और बढ़ावा दिया जा रहा है, ये कुछ उदाहरण हैं कि कैसे प्रौद्योगिकी तेजी से अपनी सर्वव्यापी उपस्थिति स्थापित कर रही है। हालाँकि, इस महामारी ने एक बड़े डिजिटल विभाजन को भी उजागर किया है,जिससे भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस प्रतिमान बदलाव से बाहर हो गया है। जुलाई-सितंबर 2020 के लिए भारतीय दूरसंचार सेवा प्रदर्शन संकेतकों के अनुसार, 30 सितंबर 2020 को, भारत में प्रति 100 लोगों पर इंटरनेट ग्राहकों की कुल संख्या 57.29 है, यह संख्या ग्रामीण भारत की (33.99) तुलना में शहरी भारत (101.74)1 में लगभग 3 गुना अधिक है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के 75वें दौर (2017-2018) की रिपोर्ट के अनुसार, पारिवारिक स्तर के आंकड़ों से पता चलता है कि शहरी परिवारों के 23.4% की तुलना में केवल 4.4% ग्रामीण परिवारों के पास कंप्यूटर है। इंटरनेट तक पहुंच के मामले में, 42% शहरी परिवारों की इंटरनेट तक पहुंच है,जबकि ग्रामीण परिवारों के संदर्भ में यह आंकड़ा केवल 14.9% है।

डिजिटल अवसंरचना की उपलब्धता मौजूदा अंतराल को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जबकि इस अवसंरचना का लाभ उठाने में सक्षम होने के लिए भारत की आबादी में डिजिटल कौशल का निर्माण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। हम भारत में डिजिटल साक्षरता को समझने के लिए एनएसएस के 75वें दौर के पारिवारिक डेटा का उपयोग करते हैं, और सरकार द्वारा की गई कई पहलों के संदर्भ में आगे बढ़ने के लिए अपनी सिफारिशें करते हैं।

भारत में डिजिटल साक्षरता का स्तर

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय डिजिटल साक्षरता को "व्यक्तियों और समुदायों की जीवन स्थितियों के भीतर सार्थक कार्यों के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों को समझने और उपयोग करने की क्षमता" के रूप में परिभाषित करता है। कोई भी व्यक्ति जो कंप्यूटर/लैपटॉप/टैबलेट/स्मार्टफोन संचालित कर सकता है और अन्य आईटी से संबंधित उपकरणों का उपयोग कर सकता है उसे डिजिटल रूप से साक्षर माना जाता है। इस परिभाषा के आधार पर, यदि परिवार में कम से कम एक व्यक्ति के पास कंप्यूटर संचालित करने और इंटरनेट का उपयोग करने की क्षमता है (5 वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों के बीच) तो हम ऐसे परिवारों को डिजिटल रूप से साक्षर होने के रूप में परिभाषित करते हैं। उपरोक्त परिभाषा के आधार पर, हम पाते हैं कि भारत में केवल 38% परिवार ही डिजिटल रूप से साक्षर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के केवल 25% की तुलना में शहरी क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता 61% है जो अपेक्षाकृत अधिक है।

चित्र 1. भारत में पारिवारिक स्तर पर डिजिटल साक्षरता

स्रोत: एनएसएस डेटा; लेखकों द्वारा की गई गणना।

उपभोग चतुर्थक के जरिये डिजिटल साक्षरता का विश्लेषण करने से पता चलता है कि निचले चतुर्थक2 में डिजिटल रूप से साक्षर परिवारों का प्रतिशत सबसे कम है, जो शीर्ष चतुर्थक के 77% की तुलना में 17% है। ग्रामीण परिवारों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में लगभग 17-25% चतुर्थक में डिजिटल रूप से साक्षर परिवारों का प्रतिशत अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों के भीतर उपभोग चतुर्थक में डिजिटल साक्षरता स्तरों की तुलना करते हुए, यह देखा जा सकता है कि निचला चतुर्थक शीर्ष चतुर्थक की तुलना में 44% के पर्याप्त अंतर से पीछे है।

चित्र 2. उपभोग चतुर्थक के अनुसार भारत में डिजिटल साक्षरता का स्तर

स्रोत: एनएसएस डेटा; लेखकों द्वारा की गई गणना।

शिक्षा के मामले में, यदि परिवार का कोई सदस्य स्नातक है, तो ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार के डिजिटल रूप से साक्षर होने की 71% संभावना है, और यह शहरी क्षेत्रों में 90% है।

चित्र 3. भारत में डिजिटल साक्षरता का स्तर, स्नातक स्तर की स्थिति के अनुसार

स्रोत: एनएसएस डेटा; लेखक द्वारा की गई गणना।

ग्रामीण भारत में व्यवसाय प्रोफ़ाइल के अनुसार, गैर-कृषि व्यवसायों से नियमित मजदूरी/वेतन प्राप्त करने वाले परिवारों में डिजिटल रूप से साक्षर परिवारों का प्रतिशत लगभग 53% है। इसके विपरीत, कृषि क्षेत्र में आकस्मिक श्रमिकों की डिजिटल साक्षरता का स्तर सबसे कम 13% है। शहरी भारत में, नियमित मजदूरी/वेतनभोगी श्रमिकों में डिजिटल साक्षरता सबसे अधिक 73% है और यह आकस्मिक श्रमिकों में सबसे कम 30% है।

चित्र 4 ए. व्यवसाय के अनुसार ग्रामीण भारत में डिजिटल साक्षरता का स्तर

स्रोत: एनएसएस डेटा; लेखकों द्वारा की गई गणना।

Self employed in agriculture: कृषि में स्वरोजगार

Self employed in non-agriculture: गैर-कृषि में स्वरोजगार

Regular wage/salary earning in agriculture: कृषि में नियमित मजदूरी /वेतन

Regular wage/salary in non-agriculture: गैर-कृषि में नियमित मजदूरी/वेतन

Casual labour in agriculture: कृषि में सामयिक श्रम:

Casual labour in non-agriculture: गैर-कृषि में सामयिक श्रम

Others : अन्य

चित्र 4बी. व्यवसाय के अनुसार शहरी भारत में डिजिटल साक्षरता का स्तर

स्रोत: एनएसएस डेटा; लेखकों द्वारा की गई गणना।

जब हम सामाजिक समूहों को देखते हैं, तो अनुसूचित जनजातियों की समग्र डिजिटल साक्षरता पारिवारिक स्तर पर सबसे कम 21% है। चित्र 5 में सामाजिक समूहों में ग्रामीण-शहरी विभाजन स्पष्ट दिखता है।

चित्र 5. सामाजिक समूह के आधार पर भारत में डिजिटल साक्षरता का स्तर

स्रोत: एनएसएस डेटा; लेखकों द्वारा की गई गणना।

भारतीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में डिजिटल साक्षरता

भारत में डिजिटल रूप से साक्षर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शीर्ष 10% में लक्षद्वीप, चंडीगढ़ और गोवा शामिल हैं। लक्षद्वीप में ग्रामीण-शहरी अंतर उल्लेखनीय रूप से 1% कम है, जबकि चंडीगढ़ में ग्रामीण-शहरी अंतर 27% है।

चित्र 6ए. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों,ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में संयुक्त रूप से डिजिटल साक्षरता(%)

स्रोत: एनएसएस डेटा; लेखकों द्वारा की गई गणना।

नोट: यहां दर्शाया गया प्रतिशत कुल परिवारों में डिजिटल रूप से साक्षर परिवारों का प्रतिशत है।

चित्र 6बी. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता (%)

स्रोत: एनएसएस डेटा; लेखकों द्वारा की गई गणना।

नोट: यहां दर्शाया गया प्रतिशत कुल परिवारों में डिजिटल रूप से साक्षर परिवारों का प्रतिशत है।

चित्र 6सी. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, शहरी क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता (%)

स्रोत: एनएसएस डेटा; लेखकों द्वारा की गई गणना।

नोट: यहां दर्शाया गया प्रतिशत कुल परिवारों में डिजिटल रूप से साक्षर परिवारों का प्रतिशत है।

गोवा और केरल एकमात्र ऐसे राज्य हैं जिन्होंने पारिवारिक स्तर पर 70% से अधिक डिजिटल साक्षरता हासिल की है और यह वहां की राज्य सरकारों द्वारा वर्षों से की गई विभिन्न पहलों के कारण हुआ है। वर्ष 2002 में,केरल की राज्य सरकार ने केरल के मलप्पुरम जिले में प्रत्येक घर में कम से कम एक व्यक्ति को कंप्यूटर-साक्षर बनाने के उद्देश्य से अक्षय परियोजना शुरू की। इस परियोजना की सफलता ने मलप्पुरम को भारत में पहला ई-साक्षर जिला3 और अक्षय को एक राज्य-व्यापी प्रयास बना दिया। केरल सरकार द्वारा कई अन्य पहलें भी की गईं, जैसे कि वर्ष 2001 में स्कूली छात्रों को डिजिटल रूप से साक्षर बनाने के लिए शुरू की गई आईटी @स्कूल पहल4 (जिसे अब केआईटीई (केरल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन) के रूप में जाना जाता है), सूचना केरल मिशन5, और केरल राज्य आईटी मिशन6। दूसरी ओर, गोवा की राज्य सरकार ने डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने और राज्य भर में डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 2016 में गूगल इंडिया के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।

कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधीन प्रशासनिक सुधार विभाग ने सार्वजनिक सेवाओं के डिजिटल प्रावधान के संबंध में राज्य सरकारों द्वारा की गई पहल के लिए वर्ष 2019 में एक राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सेवा वितरण का मूल्यांकन आयोजित किया। सेवाओं तक पहुंच, सामग्री की उपलब्धता,उपयोग में आसानी,और सूचना सुरक्षा और गोपनीयता के आधार पर राज्य के पोर्टलों का मूल्यांकन किया गया। केरल और गोवा राज्य क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर रहे।

पीएमजीदिशा के माध्यम से भारत को कौशल-निपुण बनाना

ग्रामीण भारत में कौशल बढ़ाने और ग्रामीण और शहरी भारत में व्याप्त डिजिटल विभाजन के अंतर को कम करने की तात्कालिकता को स्वीकार करते हुए, भारत सरकार ने वर्ष 2017 में पीएमजीदिशा योजना शुरू की। यह ग्रामीण क्षेत्रों में 6 करोड़ लोगों को डिजिटल रूप से साक्षर बनाने के लक्ष्य के साथ दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित किए जा रहे प्रति परिवार एक सदस्य के साथ 40% ग्रामीण परिवार शामिल हैं। इस योजना का उद्देश्य डिजिटल उपकरणों और इंटरनेट पर 20 घंटे का बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करना और कैशलेस लेनदेन पर विशेष ध्यान देने के साथ सरकार-सक्षम ई-सेवाओं का लाभ उठाने के लिए इन उपकरणों का उपयोग कैसे करना है, यह सीखाना है। पीएमजीदिशा के तहत अब तक लगभग 2.76 करोड़ उम्मीदवारों को डिजिटल रूप से साक्षर के रूप में प्रमाणित किया गया है।

पीएमजीदिशा योजना अधिक लोगों को डिजिटल दुनिया से परिचित कराने के लिए फायदेमंद है,अगर यह योजना प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से लाभार्थियों की आजीविका बढ़ाने के अपने उद्देश्य का विस्तार करती है,तो इसका प्रौद्योगिकी के साथ संबंध अधिक लंबे समय तक बना रहेगा। इसे विभिन्न लाभार्थी समूहों के लिए लक्षित हस्तक्षेप शुरू करके प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भारत में किसानों को मौसम के रुझान, स्थायी कृषि तकनीकों और बाजारों के बारे में सटीक और समय पर जानकारी की अनुपलब्धता के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ता है। डिजिटल उपकरणों तक पहुंच और उसके उपयोग से किसानों को कृषि पद्धतियों के संदर्भ में अधिक जानकारीप्रद विकल्प तय करने में मदद मिलेगी। यह 'डिजिटल कृषि' को मुख्यधारा में लाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इसी के मद्देनजर,भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई)ने राजीव गांधी पशु चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (रीवर) पुदुचेरी के साथ मिलकर किसानों में डिजिटल साक्षरता को बढ़ाने और स्थायी कृषि तकनीकों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने हेतु वर्ष 2020 की शुरुआत में एक किसान डिजिटल साक्षरता केंद्र शुरू किया। किसानों को डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग के बारे में प्रशिक्षित करने हेतु देश भर में ऐसे केंद्रों की स्थापना या कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी), स्कूल आईटी लैब, कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) आदि जैसे मौजूदा अवसंरचना का उपयोग करना, कृषि कार्यबल को कौशल-निपुण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू उपयोगकर्ता-केंद्रितता है- उत्पादों को अंतिम उपयोगकर्ता की क्षमताओं और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए,यदि किसानों को सूचना के प्रसार में मदद करने के लिए एक मोबाइल फोन एप्लिकेशन विकसित किया जा रहा है, तो यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि भारत में बड़ी संख्या में किसान अभी भी साक्षर नहीं हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, पाठ के बजाय छवियों,ऑडियो और वीडियो के माध्यम से निर्देशों को संप्रेषित करने के नवीन तरीके अपनाए जा सकते हैं। उपयुक्त रूप से डिज़ाइन किए गए उपकरण ऐसे डिजिटल उत्पादों के विकास का एक अभिन्न अंग होने चाहिए। सरकार को मौजूदा पोर्टलों और ई-एनएएम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) जैसे अनुप्रयोगों में सुधार करना चाहिए, ताकि लाभार्थियों के व्यापक समूह द्वारा उन्हें स्वीकार किया जाकर उनके उपयोग को बढ़ाया जा सके।

अंत में, पीएमजीदिशा के वर्तमान लक्ष्य देश भर में आधारभूत डिजिटल साक्षरता स्तरों में अंतर को ध्यान में रखे बिना समान रूप से निर्धारित किए गए हैं। गोवा,केरल,चंडीगढ़ और लक्षद्वीप में पहले से ही डिजिटल साक्षरता का स्तर 70% से अधिक है,जबकि पीएमजीदिशा का लक्ष्य प्रत्येक राज्य/केंद्र-शासित प्रदेश के 30% परिवारों को डिजिटल रूप से साक्षर बनाना है। दूसरी ओर, कई पूर्वोत्तर और बीमारू (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) राज्यों में डिजिटल साक्षरता 30% से कम है। उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर लक्ष्य-निर्धारण में संशोधन किये जाने की तत्काल आवश्यकता है।

भारत में डिजिटल साक्षरता की वर्तमान स्थिति स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि डिजिटल दुनिया में 'किसी को पीछे नहीं छोड़ना' के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, दूरसंचार अवसंरचना के विकास के माध्यम से बेहतर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि इस अवसंरचना का सर्वोत्तम उपयोग करने में सक्षम होने के लिए भारतीय आबादी में कौशल का निर्माण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

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टिप्पणियाँ:

  1. यह इंगित करता है कि शहरी भारत के लोगों में प्रति व्यक्ति एक से अधिक इंटरनेट सदस्यता हो सकती है।
  2. यदि विभिन्न परिवारों के उपभोग मूल्यों को आरोही क्रम में सूचीबद्ध किया गया है,तो उनके उपभोग के मामले में निचले चतुर्थक का संदर्भ नीचे के 25% परिवारों के बारे में होगा।
  3. ई-साक्षर का तात्पर्य है कि उस जिले में प्रत्येक परिवार में कम से कम एक व्यक्ति कंप्यूटर साक्षर है।
  4. केआईटीई (पूर्व में IT@स्कूल प्रोजेक्ट) केरल राज्य के शिक्षा विभाग की एक ‘विशेष प्रयोजन वाहक कंपनी’ है। इसका उद्देश्य स्कूलों के साथ-साथ उच्च शिक्षा संस्थानों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान करना है।
  5. सूचना केरल मिशन, केरल के स्थानीय स्वशासन विभाग के अधीन एक स्वायत्त संस्था है। इसका उद्देश्य केरल में 1,209 स्थानीय स्वशासन संस्थानों को कम्प्यूटरीकृत और नेटवर्कबद्ध करना है।
  6. केरल राज्य आईटी मिशन केरल के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के तहत संचालित होता है। यह राज्य में सभी ई-गवर्नेंस पहलों को तकनीकी-प्रबंधकीय सहायता प्रदान करता है।

लेखक परिचय: वेणुगोपाल (वेणु) मोथकूर विकास जांच और मूल्यांकन कार्यालय, नीति आयोग में एक जांच और मूल्यांकन विशेषज्ञ हैं। फातिमा मुमताज विकास जांच और मूल्यांकन कार्यालय, नीति आयोग में युवा प्रोफ़ेशनल हैं।

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