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ऋण बाज़ार में सकारात्मक कार्रवाई : क्या इससे अल्पसंख्यक कल्याण में बढ़ोतरी होती है?
धार्मिक अल्पसंख्यकों के कल्याण में सुधार के लिए भारत सरकार के कार्यक्रम के एक भाग के रूप में, वर्ष 2009 में वाणिज्यिक बैंकों को इन समूहों को दिए जाने वाले ऋण बढ़ाने के निर्देश दिए। यह लेख दर्शाता है क...
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S. K. Ritadhi
Muhammad Yasir Khan
12 सितंबर, 2024
- लेख
भारत में निजी ऋण बाज़ार का उद्भव
भारत में पिछले कुछ वर्षों में अपेक्षाकृत उच्च डिफ़ॉल्ट जोखिम वाली छोटी और मध्यम आकार की फर्मों को वित्तपोषण करने वाले निजी ऋण बाज़ार में वृद्धि देखी गई है। इस लेख में दत्ता और सेनगुप्ता उभरते वाणिज्यि...
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Pratik Datta
Rajeswari Sengupta
22 मई, 2024
- दृष्टिकोण
बिहार में स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से जोखिम साझा करने की सुविधा
यह देखते हुए कि बिहार में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) कार्यक्रम से महिलाओं की कम ब्याज़-दर वाले ऋण तक पहुँच में सुधार हुआ है, इस लेख में उपभोग वृद्धि के गाँव-स्तरीय भिन्नता में अंतर की जांच करके इस बात ...
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Orazio Attanasio
Anjini Kochar
Aprajit Mahajan
Vaishnavi Surendra
21 सितंबर, 2023
- लेख
एमएसएमई को जमानती (कोलेटरल) ऋण दिए जाने से जुड़ा कम उत्पादकता जाल
महामारी के दौरान एमएसएमई को दिए गए बैंक ऋण की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। इस लेख में, हर्ष वर्धन ने इस वृद्धि के संभावित चालक के रूप में बैंक ऋणों की सरकारी गारंटी के बारे में चर्चा की है। वह जमानती...
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Harsh Vardhan
10 नवंबर, 2022
- लेख
बुढ़ापे का भविष्य
भारत में बुजुर्गों के लिए सार्वजनिक सहायता के व्यापक स्तर पर विस्तार की आवश्यकता है। ड्रेज़ और डफ्लो इस लेख में तर्क देते हैं कि इसकी अच्छी शुरुआत निकट-सर्वव्यापक सामाजिक सुरक्षा पेंशन से हो सकती है। ...
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Jean Drèze
Esther Duflo
07 अक्टूबर, 2022
- दृष्टिकोण
क्या वित्तीय पहुंच से भारतीय अनौपचारिक क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा मिल सकता है?
विकासशील देशों में साख बाजारों की व्यापक विफलता के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई साख संबंधी बाधाओं को व्यापक रूप से उद्यमिता के लिए एक प्रमुख बाधा के रूप में माना गया है। यह लेख वर्ष 2010-11 और 2015-16 के ...
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Ira N. Gang
Rajesh Raj S.N.
Kunal Sen
26 मई, 2022
- लेख
सामाजिक-धार्मिक समूहों के भीतर व्याप्त जातिगत असमानताएँ: उत्तर प्रदेश से साक्ष्य प्रमाण
मंडल आयोग और सचर समिति की रिपोर्ट में चार प्रमुख जाति समूहों के भीतर जातिगत असमानताओं के अस्तित्व को दर्शाया गया है। हालाँकि, इस विषय पर सीमित डेटा ही उपलब्ध है। यह लेख उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014-2015...
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Srinivas Goli
Chhavi Tiwari
13 मई, 2022
- लेख
कोविड-19: बिहार की सरकारी योजनाएँ कमजोर आबादी की सहायता कितने अच्छे से कर रहीं हैं?
कोविड-19 महामारी और उससे जुड़े लॉकडाउन का तत्काल प्रतिकूल प्रभाव ऐसे प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों पर काफी अधिक देखा गया जिनकी अपने मूल गांवों में सरकारी योजनाओं तक पहुंचने की क्षमता अनिश्चित थी। ...
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Advaita Rajendra
Ankur Sarin
Karan Singhal
13 अप्रैल, 2021
- फ़ील्ड् नोट
क्या कृषि ऋण की माफी इतनी बुरी है?
विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न हदों तक कृषि ऋणों की माफी के आशय की घोषणाओं की मीडिया और अन्य टिप्पणीकारों द्वारा सख्त आलोचना की गई है। इस आलेख में डॉ. प्रनब सेन ने उन दावों की वैधता की जांच की ह...
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Pronab Sen
14 दिसंबर, 2018
- दृष्टिकोण